What do you mean h-parameter Notes

What do you mean h-parameter Notes

What do you mean h-parameter Notes:-Input and output impedance, transistor as an oscillator, general discussion, and theory of Hartley oscillator only. Elements of transmission and reception, basic principles of amplitude modulation and demodulation. Principle and design of linear multimeters and their application, cathode ray oscilloscope, and its simple applications.

 

प्रश्न 29. h-पैरामीटर से क्या अभिप्राय है? इनकी गणना कैसे की जाती है? किसी ट्रांजिस्टर के h-पैरामीटर बताइए। 

What do you mean by h-parameter? How are they calculated? Write the h-parameters of any transistor. 

 

उत्तर : संकर या h-प्राचल (Hybrid or h-Parameter)-संकर या h-पैरामीटर चार नियतांक h11, h12, h21 तथा h22 होते हैं। इनकी सहायता से दो पोर्ट रेखीय नेटवर्क (Two port linear network) का व्यवहार जाना जाता है ‘संकर’ का अर्थ होता है ‘मिश्रित’ क्योंकि इन पैरामीटरों की मिश्रित विमाएँ (एक ओम में, दूसरी म्हो में, शेष दो विमारहित) होती हैं, इसलिए इन्हें संकर पैरामीटर (Hybrid Parameters) कहा जाता है।

चार परिवर्तित V1, V2, I1, व I2, में से स्वतन्त्र रूप से निवेशी धारा I1, तथा निर्गत विभव V2 के चुनने का प्रायोगिक महत्त्व है। इसलिए निम्नलिखित समीकरणों के सेट से h-पैरामीटर ज्ञात किया जा सकता है—

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प्रश्न 30. आयाम मॉडुलन क्या है? आयाम मॉडुलित तरंग, मॉडुलन क्रमांक, : प्रतिशत मॉडुलन तथा बैण्ड चौड़ाई के लिए व्यंजक की उत्पत्ति कीजिए। 

What is the amplitude modulation? Derive expressions for amplitude modulated wave, modulation index, percentage modulation, and bandwidth

 

उत्तर : आयाम मॉडुलन (Amplitude Modulation)-जब उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगों के आयाम को निम्न आवृत्ति के श्रव्य सिगनलों के संगत आयामों के अनुरूप परिवर्तित किया जाता है तो उनके परस्पर अध्यारोपण की प्रक्रिया आयाम मॉडुलन कहलाती है।

आयाम मॉडुलित तरंग-माना किसी क्षण ! पर सूचना सिगनल (मॉडुलक सिगनल) की वोल्टता समीकरण निम्नलिखित है—

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प्रश्न 31. कैथोड किरण दोलनदर्शी क्या है? इसके विभिन्न भागों की क्रिया समझाइए तथा इसके उपयोगों को लिखिए। 

What is Cathode Ray Oscilloscope? Explain the working of its various parts and mention its uses.

 

अथवा

 

कैथोड किरण नलिका का स्वच्छ चित्र बनाइए तथा इसके विभिन्न अवयवों व कार्य-विधि को वर्णित कीजिए। 

Draw a neat diagram of CRT and describe its various parts and working. 

 

उत्तर : कैथोड किरण दोलनदर्शी (Cathode Ray Oscilloscope or CRO) , इलेक्ट्रॉनिक संयन्त्रों में कैथोड किरण दोलनदर्शी (CRO) परीक्षण तथा मापन के लिए अत्यधिक लाभदायक है। यह विद्युत सिगनल को दृश्यमान कर देता है। इस प्रकार हम विभव तथा धारा के तरंग रूपों को प्रत्यक्ष देख सकते हैं।

 

दोलनदर्शी का मुख्य अवयव कैथोड किरण नलिका है यद्यपि सम्पूर्ण यन्त्र में और भी इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्थाएँ होती हैं।

 

कैथोड किरण दोलनदर्शी (CRO) के प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं

कैथोड किरण नलिका यह दोलनदर्शी का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है तथा परिवर्ती-विभव का दृश्यमान तरंग-रूप प्रस्तुत करता है। यह इस गुण पर आधारित है कि जब कोई इलेक्ट्रॉन पुंज किसी प्रतिदीप्त पर्दे पर गिरता है तो पर्दे पर एक चमकीला प्रकाश-बिन्दु उत्पन्न हो जाता है। यदि हम दो प्लेटों पर, जिनके बीच से होकर इलेक्ट्रॉन पुंज जाता है, कोई परिवर्ती विभवान्तर स्थापित कर दें तो पुंज विक्षेपित होकर विभवान्तर के परिवर्तन के साथ गति करता है। इस प्रकार पर्दे पर परिवर्तन दिखायी देता है। चूंकि इलेक्ट्रॉन पुंज का जड़त्व अत्यन्त कम होता है, अत: यह बिना किसी समय-पश्चता के विभव परिवर्तनों का ठीक-ठीक अनुगमन करता है।

 

संरचना-कैथोड किरण नलिका का सामान्य स्वरूप चित्र-75 में प्रदर्शित है। इसक तीन मुख्य भाग हैं-(i) इलेक्ट्रॉन-गन, जो एक महीन व त्वरित इलेक्ट्रॉन पुंज उत्पन्न करती है, (ii) विक्षेपण व्यवस्था तथा (iii) प्रतिदीप्ती पर्दा। ये सब एक उच्च निर्वात वाली काप क आकार की काँच की नली M में बन्द रहते हैं।

नलिका के सँकरे सिरे पर जड़ी इलेक्ट्रॉन-गन में एक अप्रत्यक्ष तप्त कैथोड C, एक नियंत्रक ग्रिड G, एक फोकसन ऐनोड A1, तथा एक त्वरक ऐनोड A2 होते हैं। ये सब समा बेलन के रूप में होते हैं। ग्रिड G को कैथोड के सापेक्ष, ऋणात्मक विभव पर रखा जाता जबकि A1 को साधारण धनात्मक विभव पर तथा A2 उच्च धनात्मक विभव पर रखा जाता है|

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नलिका के मध्य भाग में स्थित विक्षेपण तन्त्र (deflecting system) में प्लेटों के दो युग्म X-X तथा Y.Y होते हैं जो एक-दूसरे के लम्बवत् होते हैं। जब किसी युग्म पर विभवान्तर ‘आरोपित किया जाता है तो उसकी प्लेटों के बीच स्थिर-वैद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है जो इलेक्ट्रॉन पुंज को विक्षेपित कर देता है। युग्म X-X, पुंज को क्षैतिज दिशा में तथा युग्म Y-Y इसे ऊर्ध्वाधर दिशा में विक्षेपित करता है।

 

नलिका के चौड़े सिरे S पर भीतर की ओर किसी प्रतिदीप्त पदार्थ जैसे जिंक सिलिकेट अथवा जिंक सल्फाइड का लेप चढ़ा रहता है। यह प्रतिदीप्त के समान कार्य करता है।

 

नलिका की पार्श्व दीवारों पर चालक पेंट (ग्रेफाइट का लेप) चढ़ा रहता है जिसे एक सम्बन्धकारी T के द्वारा द्वितीय ऐनोड A2 से जोड़ दिया जाता है। इस पेन्ट के माध्यम से, पर्दे S से निकलने वाले द्वितीयक इलेक्ट्रॉन, नलिका की शक्ति सम्भरण बैटरी को वापस चले जाते हैं। इस प्रकार पर्दे पर ऋणात्मक आवेशों को एकत्रित नहीं होने दिया जाता।

 

क्रिया-विधि— कैथोड C से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन, ग्रिड G के प्रतिकर्षण के कारण, एक महीन किरण पुंज के रूप में संकेन्द्रित होकर इसमें से गुजरते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों की संख्या को ग्रिड विभव को परिवर्तित करके नियन्त्रित किया जा सकता है। इस प्रकार ग्रिड विभव द्वारा पर्दे पर प्रकाश-बिन्दु की चमक को नियन्त्रित किया जाता है।

 

फोकसन ऐनोड A1 तथा त्वरक ऐनोड A2 मिलकर एक इलेक्ट्रॉन लेन्स बनाते हैं जो इलेक्टॉन पंज को पर्दे S पर फोकस करता है। जब A1 का विभव परिवर्तित किया जाता है तो खेलनों के बीच समविभव पृष्ठ (जिन्हें चित्र में बिन्दु रेखाओं द्वारा दिखाया गया है) बदलते हैं तथा एक स्थिति ऐसी आती है जबकि पुंज तीक्ष्ण रूप से पर्दे S पर फोकस हो जाती है। चकि पर्ने का विभव वही होता है जो A2 का होता है (दोनों सम्बन्धकारी T द्वारा जुड़े होते हैं), अत: इलेक्ट्रॉन पर्दे S पर उसी गतिज ऊर्जा से पहुँचते हैं जो उन्हें A2 द्वारा प्राप्त होती है।

पर्दे पर तरंग रूपों का चित्रण— समयाधार विभव की आवश्यकता-इस प्रत्यावर्ती विभव V को, जिसका तरंग-रूप पर्दे पर प्राप्त करना है, Y-प्लेटों पर लगाया जाता है। इस विभव के प्रभाव से प्रकाश बिन्दु एक सीधी रेखा में ऊर्ध्वाधर रूप में ऊपर-नीचे गति करेगा।

 

वास्तविक तरंग-रूप पाने के लिए, X-प्लेटों के बीच एक रेखीय समयाधार विभव । time-base voltage) लगाया जाता है। एक विशेष वाल्व परिपथ के द्वारा ऐसा विभ किया जाता है जो समय के साथ एक निश्चित मान एक रेखीय रूप से बढ़ता है अचानक घटकर शून्य हो जाता है |चित्र-76 (a)]। इसी चक्र की पुनरावृत्ति होती है। इस विभा के प्रभाव से प्रकाश-बिन्दु पर्दे के बाएँ सिरे से दाएँ सिरे को जाता है तथा पुन: बहुत तेजी से अपनी प्रारम्भिक स्थिति में लौट आता है। यह क्षैतिज प्रसर्प (sweep) दृष्टि निर्बन्ध (persistence of vision) के कारण पर्दे पर एक स्थिर क्षैतिज रेखा के रूप में दिखाई देता है जो दोलनदर्शी को समयाधार प्रदान करती है।

 

जब Y-प्लेटों पर लगे प्रत्यावर्ती विभव V के कारण बिन्दु की ऊर्ध्वाधर गति प्र.प्लेटों पर लगे समयाधार विभव के कारण क्षैतिज प्रसर्प से संयुक्त होती है तो पर्दे पर विभव V का वास्तवकि तरंग-रूप बन जाता है [चित्र-76 (b)]|

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पर्दे पर विभव V के तरंग-रूप का स्थिर चित्र प्राप्त करने के लिए, समयाधार विभव की आवृत्ति को V की आवृत्ति के बराबर अथवा उसके किसी गुणक के बराबर, समायोजित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, समयाधार परिपथ को Y-प्लेटों पर लगे विभव के तुल्यकालत्व (synchronism) में रखा जाता है।

 

समयाधार परिपथ का सामान्य रूप— समयाधार परिपथ जिसमें गैस वाले डायोड को प्रयक्त किया गया है, चित्र-77 में दिखाया गया है। जैसे ही स्विच S को बन्द किया जाता है, संधारित्र C चरघातांकी रूप से प्रतिरोध R के माध्यम से आवेशित हो जाता है। इससे C के सिरा पर विभव तब तक बढ़ता है जब तक कि डायोड दीप्त नहीं हो जाता। तब संधारित्र चाला डायोड के निम्न प्रतिरोध के माध्यम से ‘तेजी से तब तक निरावेशित होता है जब तक डायोड का दीप्ति समाप्त नहीं हो जाती। इस क्षण संधारित्र का विभव विलोप विभव (extinction voltage) के बराबर है। जैसे ही डायोड बुझता है, संधारित्र पुनः चर घातांकी रूप से आ हो जाता है और यही क्रिया बार-बार दोहरायी जाती है। इस तरह प्राप्त निर्गत विभव आ प्रसर्प विभव कहलाता है। इसकी आवृत्ति को R अथवा C को परिवर्तित करके समा किया जा सकता है।

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CRO का ब्लॉक आरेख— CRO में CR नलिका, प्रवर्धक, प्रसर्प परिपथ (sweep circuit) तथा शक्ति सम्भरण (power supply) होते हैं। इसका ब्लॉक आरेख चित्र-78 में दिखाया गया है।

 

X तथा Y-प्लेटों पर विभव, प्रवर्धकों से प्रवर्धित करके लगाए जाते हैं जिससे पूरे पर्दे के विक्षेप प्राप्त हों। क्षैतिज प्रवर्धक का निवेशी विभव समयाधार परिपथ से प्राप्त करते हैं। समयाधार परिपथ को एक बाह्य तुल्यकाली (synchronising) परिपथ से जोड़ा जाता है। कैथोड किरण नलिका, प्रवर्धकों तथा प्रसर्प परिपथ को d.c. विभव शक्ति सम्भरण से जोड़ दिया जाता है।

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उपयोग (Uses)— दोलनदर्शी का मुख्य उपयोग तेजी से परिवर्तित होने वाली वैद्यत अवस्थाओं जैसे a.c. परिपथों में होने वाले परिवर्तनों के अध्ययन में किया जाता है। सामान्यतया यह निम्नलिखित कार्यों में प्रयोग किया जाता है

1 इलेक्टॉनिक वाल्वों तथा ट्रांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्रों का पर्दे पर चित्रण करने में।

  1. a.c. विभवों तथा धाराओं को नापने में।
  2. लौहचुम्बकीय पदार्थों (ferromagnetic materials) के शैथिल्य लूपों के चित्रण में।
  3. aa.c. सिगनलों की आवृत्तियों तथा कलाओं की तुलना में।
  4. टेलीविजन तथा रेडार में।
  5. समयान्तरालों को मापने में।
  6. संगीत यन्त्रों की ध्वनि के तरंग-रूपों के अध्ययन में।

Zoology

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