BSc 1st Year Inorganic Short Question Answer Notes
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रसायन विज्ञान
B.Sc Ist Year (INORGANIC CHEMISTRY)
Inorganic Short Question Answer Notes
UNIT-I
- Atomic Structure
The idea of de Broglie matter waves, Heisenberg uncertainty principle, atomic orbitals, Schrodinger wave equation, the significance of y and y? quantum numbers, radial, and angular wave functions, and probability distribution curves, shapes of s, p, d orbitals. Aufbau and Pauli exclusion principles, Hund’s multiplicity rule. Electronic configurations of the elements, effective nuclear charge.
- Periodic Properties
Atomic and ionic radii, ionization energy, electron affinity and electronegativity-definition, methods of determination or evaluation, trends in the periodic table, and applications in predicting and explaining the chemical behavior.
UNIT-II
III. Chemical Bonding
(A) Covalent Bond: Valence bond theory and its limitations, directional characteristics of the covalent bond, various types of hybridization, and shapes of simple inorganic molecules and ions. Valence shell electron pair repulsion (VSEPR) theory to
NH3, H3O+, SF4, CIF3, ICI2-and H2O, MO theory, homonuclear and heteronuclear (CO and NO) diatomic molecules, multicenter bonding in electron-deficient molecules, bond strength and bond energy percentage ionic character from dipole moment and electronegativity difference.
(B) Ionic Solids: Ionic structures, radius ratio effect, and coordination number, limitation of radius ratio rule; lattice defects. semiconductors, lattice energy and Born-Haber Cycle, solvation energy and solubility of ionic solids, polarizing power, and polarizability of ions. Fagan’s rule, Metallic bond-free electron, valence bond, and bond theories.
(C) Weak Interactions: Hydrogen bonding, van der Waals forces.
UNIT-III
- s-Block Elements
A comparative study, diagonal relationship, salient features of hydrides, salvation, and complication tendencies including their function in biosystems an introduction to alkyls and aryls.
- Chemistry of Noble Gases
Chemical properties of the Noble gases, the chemistry of Xenon, structure, and bonding in Xenon compounds.
Unit-IV
- p-Block Elements
A comparative study (including diagonal relationship) of groups 13-17 elements, compounds like hydrides, oxides, oxyacids, and halides of groups 13-16; hydrides of boron-diborane and higher boranes, borazine, borohydrides, fullerenes, carbides, fluorocarbons, silicates (structural principle), tetrasulphur tetra nitride, basic properties of halogens, interhalogens, and polyhalides.
लघु उत्तरीय प्रश्न?
प्रश्न 1. कक्ष तथा कक्षक में अन्तर कीजिए।
उत्तर : कक्ष तथा कक्षक में अन्तर
क्र० सं० | कक्ष | कक्षक |
1. | कक्ष (orbit) की अवधारणा बोर ने दी थी। | कक्षक (orbital) की अवधारणा तरंग यांत्रिक सिद्धान्त का परिणाम है। |
2. | यह नाभिक के चारों ओर सुस्पष्ट वृत्ताकार पथ है जिसमें इलेक्ट्रॉन परिक्रमण करते हैं। | यह नाभिक के चारों ओर त्रिविम आकाश में वह क्षेत्र है जिसमें इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की प्रायिकता अधिकतम होती है। |
3. | यह इलेक्ट्रॉन की समतल गति (planar motion) को दर्शाता है। | यह इलेक्ट्रॉन की नाभिक के परितः त्रिविमीय गति को दर्शाता है। |
4. | कक्ष इलेक्ट्रॉन को एक निश्चित पथ देता है तथा यह धारणा अनिश्चितता सिद्धान्त का समर्थन नहीं करती है। | कक्षक इलेक्ट्रॉन को एक निश्चित पथ नहीं देता है अर्थात् इसके अनुसार इलेक्ट्रॉन इस क्षेत्र में कहीं भी हो सकता है। यह अवधारणा अनिश्चितता सिद्धान्त के अनुरूप है। |
5. | सभी कक्षाएँ वृत्ताकार या दीर्घवृत्तीय होती हैं। | कक्षकों की आकृतियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं जो उनकी प्रकृति पर निर्भर करती हैं। उदाहरणार्थ— s-कक्षक गोलाकार, p-कक्षक डम्बलाकार तथा d-कक्षक द्वि-डम्बलाकार होते हैं। |
6. | इसमें दिशात्मक गुण नहीं होता। | s-कक्षक को छोड़कर अन्य कक्षकों में
दिशात्मक गुण होता है। |
7. | कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 2n2 होती है। | एक कक्षक में विपरीत चक्रण वाले अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन. उपस्थित हो सकते हैं। |
प्रश्न 7. Be, Mg और N की इलेक्ट्रॉन बन्धुता लगभग शन्य होती है. क्यों?
उत्तर : Be Mg तथा N के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास अपवत है—
Be2-1s2
Mg12-1s2, 2s2 3p6, 3s2
N7-1s2,2s2 2p3
उपरोक्त विन्यासों से यह स्पष्ट है कि Be तथा Mg की स्थिति में बाह्यतम् कक्षक (ns) पर्णपूरित है जबकि N की स्थिति में. बाह्यतम् कक्षक (np) अर्द्धपूरित है। चूंकि पूर्णपूरित तथा अर्द्धपूरित विन्यास अपूर्ण विन्यास की अपेक्षा अधिक स्थायी होते हैं। अत: ये तत्व इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करने की अल्प प्रकृति रखते हैं (क्योंकि इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने पर ये कम स्थायी अपूर्ण विन्यास को प्राप्त कर लेते हैं)। दूसरे शब्दों में ये तत्व इलेक्ट्रॉन ग्रहण नहीं करते हैं अर्थात् इनकी इलेक्ट्रॉन बन्धुताएँ लगभग शून्य या बहुत कम होती हैं।
प्रश्न 8. अक्रियाशील गैसों की इलेक्ट्रॉन बन्धुता शून्य होती है। कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : अक्रियाशील गैसों के विन्यास स्थायी अर्थात् nsnp (हीलियम का विन्यास 182) होते हैं, जिस कारण इन गैसों के परमाणु अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन ग्रहण नहीं करते (या इनमें इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की अल्प प्रवृत्ति होती है), परिणामत: इन तत्वों की इलेक्ट्रॉन बन्धुता का मान शून्य (अथवा अल्प-ऋणात्मक) होता है।
प्रश्न 9. 𝛔 व π–आबन्धों में अन्तर लिखिए।
अथवा 𝛔 –आबन्ध, π–आबन्ध से अधिक मजबूत होता है, क्यों?
उत्तर : सिग्मा व पाई–आबन्ध में अन्तर
(Differences between Sigma and Pi-bonds)
(1) सिग्मा आबन्ध, कक्षकों के समान अक्ष (same axis) पर सम्मुख (head to head), अर्थात् अक्षीय अतिव्यापन द्वारा बनता है, जबकि π-आबन्ध कक्षकों के पार्श्व अतिव्यापन (collateral overlapping) द्वारा बनता है।
(2) किसी कोण पर हुए अतिव्यापन की अपेक्षा, एक ही अक्ष पर हुआ अतिव्यापन सदैव अधिक होता है। इसलिए 𝛔-आबन्ध, π-आबन्ध से अधिक प्रबल होता है। 𝛔 व π –आबन्धों की ऊर्जा में लगभग 15 किलोकैलोरी/मोल (63 • 5 किलोजूल/मोल) का अन्तर होता है।
(3) किन्हीं दो परमाणुओं के बीच बनने वाला पहला आबन्ध सदैव 𝛔-आबन्ध होता है। इससे तात्पर्य यह है कि π-आबन्ध कभी अकेला नहीं बनता।
(4) 𝛔-आबन्ध का इलेक्ट्रॉन अभ्र नाभिकीय अक्ष पर सममित होता है। इसलिए 𝛔-आबन्ध के सापेक्ष चारों ओर परमाणुओं का घूर्णन मुक्त होता है, जबकि π-आबन्ध नाभिकीय अक्ष पर असममित होता है, अर्थात् π-आबन्ध में इलेक्ट्रॉन अभ्र तल के ऊपर तथा नीचे अतिव्यापन करता है। इस कारण इसमें मुक्त घूर्णन सम्भव नहीं होता।
(5) 𝛔-आबन्ध संकरित कक्षकों के अतिव्यापन से भी बन सकते हैं तथा ये आबन्ध बहुत प्रबल होते हैं, परन्तु संकरित कक्षक π-आबन्ध बनाने में भाग नहीं लेते।
प्रश्न 10. H2O में आबन्ध कोण NH3 के आबन्ध कोण से कम होता है। का सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : NH3 में नाइट्रोजन परमाणु पर एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म, जबकि H2O में ऑक्सीजन परमाणु पर दो एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित हैं। VSEPR सिद्धान्त के अनुसार इलेक्ट्रॉन युग्मों के बीच प्रतिकर्षण अन्योन्यक्रियाएँ निम्नलिखित क्रम में घटती हैं
एकाकी युग्म-एकाकी युग्म (lp– lp) > एकाकी युग्म-बन्धी युग्म (lp – bp) > बन्धी युग्म-बन्धी युग्म (bp- bp)
ऑक्सीजन परमाणु पर एकाकी युग्म-एकाकी युग्म प्रतिकर्षण अधिक होने के कारण H2O में H-0 आबन्ध युग्म, NH3 में NH आबन्ध युग्म की अपेक्षा अधिक निकट होते हैं, अत: H2O में आबन्ध कोण NH3 के आबन्ध कोण से कम होता है।
NH3 में आबन्ध कोण : 107°
H2O में आबन्ध कोण : 104.5°
प्रश्न 11. उचित तर्कों सहित समझाइए कि F– (g) का F (g) से बनना ऊष्माक्षेपी है –जबकि O-2 (g) का O(g) से बनना ऊष्माशोषी है।
उत्तर : F(g) + e– → F– (g) : ऊष्माक्षेपी
O(g) + e– → O– (g) : ऊष्माक्षेपी
O–(g) + e– → O2- (g) : ऊष्माशोषी
F(g) से F– (g) की तरह O(g) से O– (g) का बनना ऊष्माक्षेपी है, परन्तु O– (g) से O2-(g) के बनने में O– (g) तथा जुड़ने वाले इलेक्ट्रॉन के बीच प्रतिकर्षण होता है। अतः O– (g) में इलेक्ट्रॉन जोड़ने के लिए ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है। तृतीय पद में शोषित ऊष्मा द्वितीय पद में उत्सर्जित ऊष्मा से कहीं अधिक होती है जिसके फलस्वरूप कुल क्रिया
O(g) + 2e → 02 (g) ऊष्माशोषी होती है।
प्रश्न 12. निम्नलिखित आयनों को जल में विद्युत चालकता के घटते क्रम में लगाइए
Li+, K+, Cs+, Rb+, Na+
उत्तर : Cs+> Rb+ > K+ >Na + > Li+
इसका कारण यह है कि Li+ की जलयोजन ऊर्जा सर्वाधिक तथा Cs+ की जलयोजन ऊर्जा न्यनतम होने के कारण जलीय विलयन में Cs+ का आकार सबसे छोटा तथा Li+ का आकार सबसे बड़ा होता है। अत: Cs+ की चालकता अधिकतम होती है क्योंकि आकार में वर्धि (जलीय विलयन में) के साथ चालकता घटती जाती है।
प्रश्न 13. फॉस्फीन, अमोनिया से दुर्बल क्षार है, कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : किसी यौगिक का क्षारीय लक्षण उसके द्वारा प्रोटॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति के द्वारा ज्ञात किया जाता है। नाइट्रोजन का परमाणु आकार फॉस्फोरस से कम होता है तथा इसकी विद्यत ऋणात्मकता अधिक होती है।
इसके कारण नाइट्रोजन परमाणु का एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म ( lone pair of electron) प्रोटॉन के साथ उप-सहसंयोजन के लिए फॉस्फोरस की अपेक्षा अधिक सरलता से उपलब्ध होता है। अत: अमोनिया की प्रोटॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति फॉस्फीन से अधिक होती है परिणामस्वरूप अमोनिया फॉस्फीन से अधिक क्षारीय होती है।
प्रश्न 14. कारण सहित बताइए कि H—F द्रव है, जबकि H—Cl, H—Br तथा H—I गैस हैं।
उत्तर : H—F द्रव है, जबकि H—Cl, H—Br तथा H—I गैस हैं। इसका कारण यह है कि अधिक विद्युत ऋणी प्रकृति तथा छोटे परमाणु आकार के कारण फ्लुओरीन परमाणु सरलतापूर्वक हाइड्रोजन आबन्ध बना सकता है। अत: H—F हाइड्रोजन बन्धों के कारण संगुणित अणु बनाता है तथा द्रव अवस्था में उपस्थित रहता है।
दूसरी ओर कम विद्युत ऋणी होने के कारण क्लोरीन, ब्रोमीन व आयोडीन हाइड्रोजन आबन्ध नही बनाते हैं। अत: H—Cl, H—Br तथा H—I संगणित अण नहीं बनाते तथा विलगित गैसीय अणु के रूप में रहते हैं।
प्रश्न 15. H—F का क्वथनांक H—CI से अधिक है। क्यों?
उत्तर : H व Cl के मध्य विद्युत ऋणात्मकता का अन्तर (3 . 0—2 . 1 = (0—9) कम होता है तथा H—F में H व F के मध्य विद्युत ऋणात्मकता का अन्तर (4 — 0—2—1 = 1—9) अधिक होता है। इस कारण HF अणु में प्रबल अन्तराणुक हाइड्रोजन आबन्ध बनता है जिसके कारण बहुत सारे अणु हाइड्रोजन आबन्ध द्वारा जुड़कर विशाल अणु बनाते हैं।
इस विशाल आण्विक संरचना तथा प्रबल अन्तराणुक हाइड्रोजन आबन्धों को तोड़ने हेतु अर्थात अवस्था परिवर्तन हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है और अधिक ऊर्जा व्यय होने के कारण HF का क्वथनांक उच्च होता है, जबकि HCl के मध्य हाइड्रोजन आबन्ध बहुत दुर्बल होता है। अतः अवस्था परिवर्तन में अपेक्षाकृत कम ऊर्जा व्यय होगी, इस कारण इसका क्वथनांक कम होगा।
प्रश्न 16. हैलोजेन रंगीन क्यों होते हैं?
उत्तर : सभी हेलाजेन रंगीन होते हैं। इसका कारण यह है कि इनके अणु दृश्य क्षेत्र में प्रकाश अवशोषित कर लेते हैं जिसके फलस्वरूप इनके इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर उच्च ऊर्जा स्तरों में चले जाते हैं, जबकि शेष प्रकाश उत्सर्जित हो जाता है। हैलोजेनों का रंग वास्तव में इस उत्सर्जित प्रकाश का रंग होता है।
उत्तेजन के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा परमाणु आकार के अनुसार F से I तक लगातार घटती है, अत: उत्सर्जित प्रकाश की ऊर्जा F से | तक बढ़ती है।
दृसरे शब्दों में, हैलोजेन का रंग F2 से I2 तक गहरा होता जाता है। उदाहरण के लिए, F2 बैंगनी प्रकाश अवशोषित करके हल्का पीला दिखाई देता है, जबकि आयोडीन पीला तथा हरा प्रकाश अवशोषित करके गहरे बैंगनी रंग का प्रतीत होता है। इसी प्रकार हम CI, के हरे-पीले तथा ब्रोमीन के नारंगी-लाल रंग की व्याख्या कर सकते हैं।
प्रश्न 17. (i) निऑन को सामान्यतया चेतावनी संकेतनों में ही क्यों प्रयोग किया जाता है?
(ii) उत्कृष्ट गैसों में केवल जीनॉन के ही यौगिक क्यों ज्ञात हैं?
उत्तर : (i) निऑन प्रकाश लम्बी दूरी से भी दृश्य होता है, यहाँ तक कि कुहरे तथा धुल भरे वातावरण में भी इसे देखना सम्भव होता है। इसलिए निऑन को सामान्यतया चेतावनी संकेतनों में प्रयोग किया जाता है।
(ii) रेडॉन (जो कि रेडियोऐक्टिव तत्व है) को छोड़कर, उत्कृष्ट गैसों में जीनॉन की आयनन ऊर्जा सबसे कम होती है इसलिए यह सरलतापूर्वक रासायनिक यौगिक (विशेषकर F2, तथा O2, के साथ) बना लेता है।
प्रश्न 18. कारण बताइए
(i) उत्कृष्ट गैसें केवल फ्लुओरीन तथा ऑक्सीजन के साथ ही यौगिक क्यों बनाती हैं?
(ii) जीनॉन XeF3 तथा XeF5 प्रकार के फ्लुओराइड नहीं बनाती है।
उत्तर : (i) फ्लुओरीन तथा ऑक्सीजन सर्वाधिक विद्युत ऋणात्मक तत्व हैं, इसलिए ये अत्यन्त क्रियाशील होते हैं। अत: उत्कृष्ट गैसें विशेषकर जीनॉन केवल फ्लुओरीन तथा ऑक्सीजन के साथ ही यौगिक बनाती हैं।
(ii) Xe के सभी भरे हुए कक्षकों में युग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। 5p- पूर्णपूरित कक्षकों से एक, दो या तीन इलेक्ट्रॉनों की 5d-रिक्त कक्षकों में पदोन्नति दो, चार तथा छह अर्द्धपूरित कक्षक प्रदान करती है। इसलिए Xe परमाणु F परमाणुओं की केवल सम संख्या से संयोग कर सकता है न कि विषम संख्या से। अत: यह XeF3 तथा XeF5 नहीं बना सकता।
प्रश्न 19. कारण सहित समझाइए कि NaCl, H2O में विलेय है जबकि CHCI3 नहीं।
उत्तर : NaCl एक आयनिक (ध्रुवीय) यौगिक है जो ध्रुवीय विलायक जैसे H20 में अपने आयनों में विभक्त हो जाता है इस कारण यह जल में विलेय है। CHCI3 एक सहसंयोजक यौगिक है जिसमें परमाणु परस्पर सहसंयोजक आबन्ध द्वारा संयुक्त होते हैं तथा जल इन आबन्धों को तोड़ नहीं पाता, इस कारण यह जल में अविलेय होता है।
प्रश्न 20. बोरॉन और बेरिलियम में से किसका आयनन विभव अधिक है और क्यों ?
उत्तर : बोरॉन (Z = 5) के आयनन विभव का मान बेरिलियम (Z = 4) के आयनन विभव के मान से कम होता है यद्यपि बोरॉन का नाभिकीय आवेश अधिक होता है। जब हम एक ही मुख्य क्वान्टम ऊर्जा-स्तर पर विचार करते हैं तो s-इलेक्ट्रॉन, p इलेक्ट्रॉन की तुलना में नाभिक की ओर अधिक आकर्षित रहता है।
बेरिलियम में बाह्यतम इलेक्ट्रॉन, जो अलग किया जाएगा, वह s-इलेक्ट्रॉन होगा जबकि बोरॉन में वह p-इलेक्ट्रॉन होगा। स्पष्ट है कि नाभिक की ओर 2s-इलेक्ट्रॉनों का भेदन 2p-इलेक्ट्रॉन की तुलना में अधिक होगा। इस प्रकार बोरॉन का 2p इलेक्ट्रॉन बेरिलियम के 2s-इलेक्ट्रॉन की तुलना में आन्तरिक क्रोड इलेक्ट्रॉनों द्वारा अधिक परिरक्षित होगा।
अत: बेरिलियम के 2s-इलेक्ट्रॉन की तुलना में बोरॉन का 2p-इलेक्ट्रॉन अधिक सरलता से पृथक् हो जाएगा अर्थात् बेरिलियम का आयनन विभव बोरॉन से अधिक होगा।
प्रश्न 21. फॉस्फोरस का परमाणु क्रमांक सल्फर के परमाणु क्रमांक से कम है फिर भी फॉस्फोरस की प्रथम आयनन ऊर्जा सल्फर से ज्यादा है, क्यों? अथवा नाइट्रोजन की प्रथम आयनन एन्थैल्पी ऑक्सीजन से अधिक क्यों होती है?
उत्तर : फॉस्फोरस (15P) या नाइट्रोजन (7N) तथा सल्फर (16S) या ऑक्सीजन (8O) के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न हैं
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से स्पष्ट है कि फॉस्फोरस (या नाइट्रोजन) का p-उपकोश अर्द्धपूर्ण है, जिसके कारण यह अधिक स्थायी है तथा स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से इलक्ट्रान निकालने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
यही कारण है कि फॉस्फोर प्रथम आयनन ऊर्जा सल्फर से (तथा नाइट्रोजन की प्रथम आयनन ऊर्जा ऑक्सीजन से होती है क्योंकि सल्फर (तथा ऑक्सीजन) में p-उपकोश अपूर्ण है तथा अपूर्ण विन्या अर्द्ध-पर्ण विन्यास की अपेक्षा कम स्थायी होता है अत: इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए अपेक्षा कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 22. Fe3+ और Fe2+ में किसका आकार कम है और क्यों?
उत्तर : Fe3+ का आकार Fe2+ से कम है क्योंकि जब परमाणु से एक या अधिक इलेक्ट्रॉन निकाल दिए जाते हैं तो धनायन में अपने जनक परमाणु से कम इलेक्ट्रॉन होते है। यद्यपि नाभिकीय आवेश जनक परमाण के समान ही होता है। जब यह समान नाभिकीय आवेश शेष इलेक्ट्रॉनों पर कार्य करता है
तो प्रति इलेक्ट्रॉन प्रभावी नाभिकीय आवेश में वृद्धि हो जाती है जिससे धनायन के आकार में कमी आ जाती है। स्पष्ट है कि Fe3+ में नाभिकीय आवेश Fe2+ की तुलना में कम इलेक्ट्रॉनों पर कार्य करता है जिससे प्रति इलेक्ट्रॉन प्रभावी नाभिकीय आवेश में वृद्धि हो जाती है तथा Fe3+ का आकार Fe2+ से कम होता है।
प्रश्न 23. प्रत्येक युग्म में किसका आकार बड़ा है? कारण दीजिए।
(a) Na+ या Mg2+ (b) Cu2+ या Cu+
उत्तर : (a) Na+ या Mg2+
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
Na+ : 2, 8
Mg2+ : 2, 8
उपर्युक्त दोनों आयनों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान है परन्तु Mg2+ में प्रोटॉनों की संख्या Na+ से अधिक है जिस कारण इसमें नाभिकीय आवेश अधिक होगा। अत: Mg2+ का आकार Na+ से छोटा होगा अथवा Na+ का आकार बड़ा होगा।
(b) Cu2+ या Cu+ इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
Cu2+ : 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d9
Cu+ : 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10
उपर्युक्त दोनों आयनों में Cu+ बड़ा होगा। Cu2+ आयन की धनायनी त्रिज्या शेष 27 इलेक्ट्रॉनों पर लगने वाले प्रबल नाभिकीय आवेश के कारण कम होती है। दूसरी ओर Cu+ आयन में नाभिकीय आवेश शेष 28 इलेक्ट्रॉनों पर अपेक्षाकृत कम प्रभाव डालता है।
पश्न 24. F, CI, Br में किसकी इलेक्ट्रॉन बन्धुता अधिक है और क्यों?
उत्तर : सामान्यत: किसी वर्ग में नीचे की ओर जाने पर आकार में वृद्धि के साथ इलेक्ट्रॉन बन्धता कम होती जाती है परन्तु F की इलेक्ट्रॉन बन्धुता की अपेक्षा की कारण यह है कि फ्लुआरान परमाणु आकार में छोटा होता है अना इलक्टान-आवश घनत्व उच्च हाता है तथा जुड़ने वाले इलेक्टॉन पसल हो प्रातकषण अनुभव करत ह, पारणामस्वरूप जब F परमाण से एक दोनों इलेक्ट्रान जुड़ता है तो उर्जा की एक निश्चित मात्रा अवशोषित होती है
तथा ऋणायन के बनने के दौरान निर्मुक्त कुल ऊर्जा में कमी आ जाती है। यदि इलेक्ट्रॉन को अपेक्षाकृत बड़े p-कक्षक (CI की स्थिति में 3p-कक्षक) से जोड़ा जाता है तो इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण अत्यन्त कम हो जाता है तथा इलेक्ट्रॉन बन्धुता का उच्च मान प्रेक्षित होता है, अत: क्लोरीन की इलेक्ट्रॉन बन्धुता का मान फ्लुओरीन तथा ब्रोमीन की अपेक्षा अधिक होता है।
प्रश्न 25. स्पष्ट कीजिए कि फ्लुओरीन केवल एक ही ऑक्सोअम्ल, HOF क्यों बनाता है?
उत्तर : क्लोरीन, ब्रोमीन तथा आयोडीन ऑक्सोअम्लों की चार श्रेणियाँ बनाते हैं जिनके सामान्य सूत्र HOX, HOXO, HOXO., तथा HOXO3, होते हैं।
इनमें क्लोरीन. ब्रोमीन तथा आयोडीन की ऑक्सीकरण अवस्थाएँ क्रमश: +1, + 3, +5 तथा +7 हैं। फ्लुओरीन उच्च विद्युत ऋणात्मकता तथा छोटे आकार के कारण HOFO, HOFO2, तथा HOFO3 प्रकार के ऑक्सोअम्ल नहीं बनाता जिनमें फ्लुओरीन की ऑक्सीकरण अवस्था क्रमश: +3, + 5 तथा +7 होती हैं। यह केवल एक ऑक्सोअम्ल HOF बनाता है जिसमें इसकी ऑक्सीकरण अवस्था +1 (कम धनात्मक) होती है।
प्रश्न 26. बताइए कि क्यों समूह में विद्युत ऋणीयता नीचे की ओर घटती है?
उत्तर : समूह में नीचे जाने पर, परमाणु क्रमांक में वृद्धि होने के कारण विद्युत ऋणीयता घटती है। इसका कारण समूह में नीचे जाने पर परमाणु आकारों में वृद्धि होना है। परमाणु आकार बढ़ने पर जुड़ने वाला इलेक्ट्रॉन नाभिक से अधिक दूरी पर होने के कारण कम दृढ़ता से जुड़ता है। उदाहरणार्थ, पॉलिंग पैमाने के आधार पर, ऐल्कली धातुओं की विद्युत ऋणीयता निम्नवत् है
ऐल्कली धातु Li Na K Rb Cs Fr
विद्युत ऋणीयता 1.0 0.9 08 0.8 0.7 0.7
प्रश्न 27. निम्नलिखित धनायनों को उनके आकार के अनुसार घटते क्रम में लगाइए
Ra2+, Sr2+, Ca2+, Ba2+
उत्तर : दिए गए धनायनों के आकार का घटता क्रम—
Ra2+ > Ba2+ > Sr2+ > Ca2+
किसी समूह में ऊपर से नीचे जाने पर, परमाणु का आकार बढ़ता है क्योंकि आकार बढ़ने पर कक्षकों का प्रभाव, नाभिकीय आवेश से अधिक हो जाता है।
प्रश्न 28. आयनिक ठोस के त्रिज्या अनुपात नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : आयनिक ठोसों में धनायन तथा ऋणायन की त्रिज्याओं के अनुपात को त्रिज्या अनुपात कहते हैं तथा समन्वयन संख्या और आयनिक क्रिस्टल की संरचना और आकृति ज्ञात करने में त्रिज्या अनुपात के प्रभाव को त्रिज्या अनुपात नियम कहते हैं। विभिन्न समन्वयन संख्या और अणुओं की आकृति के लिए सीमान्त त्रिज्या अनुपात अग्रांकित सारणी में दिए गए हैं
त्रिज्या अनुपात | समन्वयन संख्या | आकृति |
0—0 ∙ 155 | 2 | रेखीय |
0 ∙ 155—0 ∙ 255 | 3 | समतल त्रिभुजीय |
0 ∙ 225—0 ∙ 414 | 4 | चतुष्फलकीय |
0 ∙ 414—0 ∙ 732 | 4 | वर्गाकार समतलीय |
0 ∙ 414—0 ∙ 732 | 6 | अष्टफलकीय |
0 ∙ 732—0 ∙ 999 | 8 | काय केन्द्रित घनीय |
प्रश्न 29. HgF2, AIF3 और SnF4, आयनिक हैं परन्तु इनके क्लोराइड सहसंयोजक होते हैं, क्यों?
उत्तर : फ्लुओरीन, क्लोरीन की अपेक्षा अधिक विद्युत ऋणात्मक होता है इस कारण यह Hg, Al तथा Sn से सरलता से इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके आयनिक यौगिक का निर्माण करता है।
क्लोरीन कम विद्युत ऋणी होने के कारण इनके साथ सहसंयोजक यौगिक निर्मित करता है। इसके अतिरिक्त संयोग करने वाले तत्वों की विद्युत ऋणात्मकताओं में 1 • 8 या इससे अधिक का अन्तर होने पर यौगिक आयनिक होता है तथा यह अन्तर 1 • 8 से कम होने पर यौगिक सहसंयोजक होता है।
F की विद्युत ऋणात्मकता 4 तथा Cl की विद्युत ऋणात्मकता 3 (पॉलिग पैमाने पर) होती है अत: HgF2 (4 – 2 = 2), AlF3(4 – 1.6 = 2 – 4) तथा SnF4 (4 – 1 – 96 = 2 • 04) आयनिक हैं जबकि HgCl2 (3 – 2 = 1), AICI3(3- 1 • 6 = 1 • 4) तथा SnCl(3 – 1- 96 = 1 – 04) सहसंयोजक हैं।
प्रश्न 30. निम्नलिखित यौगिकों में संकरण बताइए
चूंकि N2 अणु में सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित हैं अत: यह प्रतिचुम्बकीय है।
प्रश्न 33. बन्धक आण्विक कक्षक तथा विपरीत बन्धक आण्विक कक्षक में अन्तर को समझाइए।
उत्तर : बन्धक आण्विक कक्षक तथा
विपरीत बन्धक आण्विक कक्षक में अन्तर
क्र० सं० | बन्धक आण्विक कक्षक | विपरीत बन्धक आण्विक कक्षक |
1. | यह परमाण्वीय कक्षक के एक रेखीय संयोग से बनते हैं, जबकि इनके तरंग फलनों का योग होता है।
Ψ= ΨA+ ΨB |
ये परमाण्वीय कक्षकों के एक रेखीय संयोग से बनते हैं, जबकि इनके तरंग फलनों को घटाया जाता है।
Ψ= ΨA- ΨB |
2. | इनकी ऊर्जा संयोग करने वाले परमाण्वीय कक्षकों की ऊर्जा की अपेक्षा कम होती है परिणामस्वरूप ये अधिक स्थायी होते हैं। | इनकी ऊर्जा संयोग करने वाले परमाण्वीय कक्षकों की ऊर्जा की अपेक्षा अधिक होती है। परिणामस्वरूप ये कम स्थायी होते हैं। |
3. | इनके बनने में दो धनावेशित नाभिकों के बीच इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है। | इनके बनने में दो धनावेशित नाभिकों के बीच इलेक्ट्रॉन घनत्व पर्याप्त रूप से कम हो जाता है। |
4. | इन आण्विक कक्षकों के इलेक्ट्रॉन स्थायी बन्ध बनाते हैं। | इन आण्विक कक्षकों के इलेक्ट्रॉन बन्ध बनाने का विरोध करते हैं। |
प्रश्न 34. Na+ आयन का आकार Na से छोटा होता है , क्यों? समझाइए। अथवा सोडियम परमाणु अथवा सोडियम आयन में किसका आकार बड़ा होगा और क्यों? अथवा एक धनायन अपने संगत परमाणु की अपेक्षा छोटा होता है। उदाहरण देकर समझाइए। ।
उत्तर : किसी परमाणु के धनायन की त्रिज्या, उसी परमाणु की त्रिज्या से कम होती है। इसका कारण यह है कि किसी परमाणु के बाह्य कोश में से एक इलेक्ट्रॉन निकल जाने के
कारण उसका प्रभावी नाभिकीय आवेश अधिक हो जाता है, जिससे नाभिक कक्षकों को अपनी ओर खींचता है। अत: धनायन का आकार कम हो जाता है। यही कारण है कि Na+ आयन ” ( धनायन) का आकार Na (परमाणु ) के आकार से कम होता है।
प्रश्न 35. कारण सहित बताइए कि CI- आयन का आकार CI परमाणु से बड़ा होता है।
उत्तर : किसी परमाणु के ऋणायन की त्रिज्या उसी परमाणु की त्रिज्या से बड़ी होती है क्योंकि परमाणु के बाह्य कोश में अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन प्रवेश करने पर इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण के कारण नाभिक व बाह्यतम कक्ष के इलेक्ट्रॉनों के बीच की दूरी बढ़ जाती है, अत: CI– आयन का आकार CI परमाणु से बड़ा होता है, अर्थात् CI– > CI.
CI + e – → CI
2, 8, 7 2, 8, 8
CI का आकार 1 – 40Å तथा Cl का आकार 1 – 81 Å होता है।
प्रश्न 36. कौन–सा यौगिक अधिक सहसंयोजी है—SnCI2 या SnCI4 ? कारण लिखिए।
उत्तर : फजान के नियम के अनुसार, अधिक आवेश वाला परमाणु अपने समीपवर्ती परमाणु को ध्रुवित करने की उच्च प्रवृत्ति रखता है जो अणु में सहसंयोजी गुण उत्पन्न होने का कारण बनता है। SnCl4, यौगिक में Sn + 4 ऑक्सीकरण अवस्था व्यक्त करता है,
जिस कारण इस पर Sn2+ की तुलना में उच्च धनावेश होता है तथा इसका आकार कम होता है अर्थात् Sn4+ आयन Cl को Sn2+ की तुलना में अधिक ध्रुवित कर देता है। अत: SnCl4 अधिक सहसंयोजी होता है। अन्य शब्दों में, SnCl4, सहसंयोजी तथा SnCl2, आयनिक प्रकृति का होता है।
प्रश्न 37. निम्नलिखित में कौन–सा यौगिक अधिक सहसंयोजी होगा, कारण सहित लिखिए-.
(a) AICI3, या AIF3 (b) CCI4 या BCI3 (c) AgCI या NaCI
उत्तर : (a) AICI3 या AIF3— AICl3, AIF3 की अपेक्षा अधिक सहसंयोजक है। इसका कारण यह है कि इन यौगिकों में धनायन (AI3+) तो समान है परन्तु F– आयन, CI– आयन की अपेक्षा काफी छोटा है अत: बड़े आकार का CI– आयन, छोटे आकार के F– आयन की अपेक्षा अधिक सरलता से ध्रुवित हो जायेगा। इस कारण AICI3 की सहसंयोजक प्रवृत्ति अधिक होगी।
(b) CCI4 या BCI3– CCI4, BCI3 की अपेक्षा अधिक सहसंयोजक है क्योंकि C4+ पर धनावेश B3+ की अपेक्षा अधिक है तथा अधिक आवेश वाला धनायन (अर्थात् छोटा धनायन) ऋणायन को अधिक ध्रुवित करेगा। अत: CCI4 अधिक सहसंयोजक होगा।
(c) AgCI या NaCI- AgCl, NaCl की तुलना में अधिक सहसंयोजी होता है। इन योगिकों में, Ag+ आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास अनुत्कृष्ट (non-noble) प्रकार का होता है जबकि Na+ का उत्कृष्ट प्रकार का।
47Ag+ → 2, 8, 18, 18 ; 11Na+ → 2, 8
Ag+ आयन के d-इलेक्ट्रॉन, Na+ आयन के s- तथा p-इलेक्ट्रॉनों की तुलना में नाभिकीय आवेश से कम प्रभावित होते हैं। अत: Ag2+ आयन अधिक आवेशित व्यवहार करते हैं जिस कारण ये Na+ आयन की तुलना में CI–आयन को अधिक प्रबलता से धुवित करने की प्रवृत्ति रखते हैं।
प्रश्न 38. आवरण प्रभाव को समझाइए।
उत्तर : आन्तरिक कोशों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के कारण नाभिक और बाहा कोश के के रूप में इलेक्ट्रॉनों के मध्य आकर्षण बल में हुई कमी को ‘आवरण प्रभाव‘ कहते हैं।
इसको σ से परमश व्यक्त करते हैं। इसका मान स्लेटर (Slater) के नियम की सहायता से ज्ञात किया जाता है। इस बात नियमानसार बाह्यतम कक्ष के प्रत्येक इलेक्टॉन का σ के मान के निर्धारण में अंशदान 0 • 35, वाहा। से पहली कक्ष हेत प्रत्येक इलेक्टॉन का अंशदान 0 • 85 तथा अन्य आन्तरिक कक्षा के प्रत्येक इलेक्टॉन हेत अंशदान 1 होता है जैसे Li व Na हेतु σ के मान क्रमश: 1 • 7 व 8 • 8 होते हैं।
3Li = 2, 1 = 0 x 0 • 35 + 2×0 • 85 = 1.7
11Na = 2, 8, 1 = 0x 0 • 35 + 8×0 • 85 + 2×1 = 8 • 8
प्रश्न 39. जालक त्रुटि क्या है? यह कितने प्रकार की होती है?
उत्तर : आयनिक यौगिकों की आदर्श क्रिस्टल संरचना अथवा आदर्श जालक संरचना में पाए जाने वाले परिवर्तन को जो आयनों के नियत स्थान पर न होने के कारण होते हैं, जालक त्रुटि (क्रिस्टल त्रुटि) कहते हैं। ये निम्नांकित प्रकार की होती है
(i) शॉटकी त्रुटि (रिक्त त्रुटि) (ii) फ्रेंकल त्रुटि (अन्तराकाशी त्रुटि)।
प्रश्न 40. कारण सहित समझाइए कि BaSo4, जल में अविलेय है जबकि Na2SO4 विलेय है।
उत्तर : कोई आयनिक यौगिक जल में केवल तभी विलेय होता है जब इसकी जलयोजन ऊर्जा, जालक ऊर्जा से अधिक हो, अन्यथा यह अविलेय रहता है।
BaSO4 की जालक ऊर्जा इसकी जलयोजन ऊर्जा की अपेक्षा अधिक होती है इस कारण यह जल में अविलेय होता है।
जबकि Na2SO4, की जालक ऊर्जा इसकी जलयोजन ऊर्जा की अपेक्षा कम होती है। जिस कारण यह जल में विलेय होता है।
प्रश्न 41. समझाइए क्यों, LiF जल में आंशिक (कम) विलेय है जबकि Lil पूर्ण विलेय है?
उत्तर : फ्लुओराइड आयन का आकार छोटा होने के कारण लीथियम फ्लुओराश (LiF) की जालक ऊर्जा अत्यधिक उच्च होती है तथा इसकी जलयोजन एन्थैल्पी बहत कर होती है, अत: LiF, जल में आंशिक रूप से विलेय होता है।
लीथियम आयोडाइड (LiI) में, आयोडाइड का आकार बड़ा होने के कारण, LiI को, जालक ऊर्जा बहुत कम होती है तथा इसकी जलयोजन ऊर्जा उच्च होती है। इसके अतिरिका LiI में Li+ के द्वारा L– आयन के ध्रुवण के कारण, आंशिक सहसंयोजक तथा आंशिक आयनिक लक्षण होता है। LiI की जलयोजन ऊर्जा कम होने तथा इसमें आंशिक सहसंयोजक आशिक आयानक लक्षण हान के कारण यह जल में पर्ण विलेय होता है |
प्रश्न 42. अतिचालकता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : अतिचालकता– धातुओं की विद्युत प्रतिरोधकता ताप पर निर्भर करती है। विद्युत प्रतिरोध ताप में कमी के साथ घटता है तथा परम ताप पर लगभग शून्य हो जाता है। इस अवस्था में पदार्थ अतिचालकता से युक्त कहे जाते हैं। इस प्रकार अतिचालकता को इस प्रक्रम के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें धातुएँ, मिश्र धातुएँ तथा रासायनिक यौगिक परम शून्य ताप पर शून्य प्रतिरोधकता के साथ पूर्ण चालक हो जाते हैं।
अतिचालक प्रतिचुम्बकीय होते हैं। इस प्रक्रम की खोज सर्वप्रथम कैमरलिंग ओंस ने की, जब उन्होंने पाया कि पारा 4K ताप पर अतिचालक हो जाता है। वह ताप जिस पर कोई पदार्थ अतिचालक की भाँति व्यवहार करना प्रारम्भ करता है, संक्रमण ताप कहलाता है। यह ताप इस प्रक्रम को स्थापित करने वाली अधिकांश धातुओं में 2 तथा 5 K के मध्य होता है।
अतिचालकों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक, बिल्डिंग चुम्बक वाहकों तथा शक्ति प्रसारण में बहुतायत से होता है।
प्रश्न 43. BF3 तथा NF3 दोनों सहसंयोजक यौगिक हैं किन्तु इनमें से BF3 अध्रुवीय है, जबकि NF3 ध्रुवीय यौगिक है। समझाइए ऐसा क्यों है?
उत्तर : BF3 की संरचना त्रिकोणीय सममित (trigonal symmetrical) है अर्थात् इसमें तीन फ्लुओरीन परमाणु समबाहु त्रिभुज के शीर्षों पर और बोरॉन परमाणु इसकी तीनों माध्यिकाओं के केन्द्र पर स्थित होता है,
अत: इसका द्विध्रुव आघूर्ण शून्य है तथा यह अध्रुवीय यौगिक है। NF3 में N परमाणु पर एक एकाकी युग्म की उपस्थिति होने के कारण, इसकी संरचना पिरैमिड के समान अर्थात् असममित (unsymmetrical) होती है जिस कारण इसका द्विध्रुव आघूर्ण 0 • 24 D है अर्थात् यह एक ध्रुवीय यौगिक है।
प्रश्न 44. TICI3 की तुलना में BCI3 के उच्च स्थायित्व को आप कैसे समझाएँगे?
उत्तर : बोरॉन (B) परमाणु की स्थिति में, अक्रिय युग्म प्रभाव नगण्य होता है। इसका अर्थ है कि इसके तीनों संयोजी इलेक्ट्रॉन (2s2 p1x) क्लोरीन परमाणुओं के साथ बन्ध बनाने के लिए उपलब्ध हैं। इसलिए BCI3 स्थायी होता है। यद्यपि थैलियम (TI) की स्थिति में, संयोजी s-इलेक्ट्रॉन (6s2) अधिकतम अक्रिय युग्म प्रभाव अनुभव करते हैं। अत: केवल संयोजी p इलेक्ट्रॉन (6p1) बन्ध के लिए उपलब्ध होते हैं। इन परिस्थितियों में TICI अत्यधिक स्थायी होता है, जबकि TICI3 अपेक्षाकृत बहुत कम स्थायी होता है।
अतः स्पष्ट है कि TICI3 की तुलना में BCI3 उच्च स्थायी होता है।
प्रश्न 45. कारण बताइए
(i) H2S केवल अपचायक के रूप में कार्य करता है, परन्तु SO2, अपचायक तथा ऑक्सीकारक दोनों रूपों में कार्य करता है।
(ii) SF6 ज्ञात है, परन्तु SH6 नहीं।
उत्तर : (i) सल्फर की न्यूनतम ऑक्सीकरण संख्या -2 है, जबकि इसकी अधिकतम ऑक्सीकरण संख्या +6 है। SO2 में सल्फर की ऑक्सीकरण अवस्था +4 है तथा यह अपनी ऑक्सीकरण संख्या को इलेक्ट्रॉन खोकर घटा सकता है तथा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके बढ़ा भी सकता है। अत: यह अपचायक तथा ऑक्सीकारक दोनों रूपों में कार्य करता है।
दूसरी ओर H2S में S की ऑक्सीकरण संख्या -2 है जिसे इलेक्ट्रॉन खोकर पुनः घटाया नहीं जा सकता अत: यह केवल अपचायक के रूप में कार्य करता है।
(ii) फ्लुओरीन प्रबलतम ऑक्सीकारक होने के कारण सल्फर को इसकी अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था +6 तक ऑक्सीकृत कर सकता है अर्थात् SF6 बना सकता है। दूसरी और H2 अत्यन्त दुर्बल ऑक्सीकारक होने के कारण सल्फर को +6 ऑक्सीकरण अवस्था तक ऑक्सीकृत नहीं कर सकता इसलिए यह SH6 नहीं बनाता।
प्रश्न 46. निम्नलिखित के कारण बताइए–
(i) PF5 अथवा PCl5 ज्ञात है, परन्तु NF5 अथवा NCl5 नहीं।
(ii) अमोनिया एक अच्छी संकुलीकारक है।
अथवा अमोनिया एक लिगेण्ड के रूप में कार्य करती है।
उत्तर : (i) फॉस्फोरस के संयोजी कोश में रिक्त d-कक्षक होते हैं, जबकि N में नहीं होते परिणामस्वरूप फॉस्फोरस अतिरिक्त आबन्ध बनाकर PF5 या PCl5 देता है, जबकि N अपनी सहसंयोजकता को तीन से अधिक नहीं बढ़ा सकता, इसलिए यह केवल NF3 या NCl3 बनाता है, NF5 (अथवा NCI5) नहीं।
(ii) नाइट्रोजन पर इलेक्ट्रॉनों के एकाकी युग्म की उपस्थिति के कारण NH5 एक संकुलीकारक (लिगेण्ड) के रूप में कार्य करती है। यह संक्रमण धातु धनायनों से संयुक्त होकर संकुल बनाती है।
AgCl + 2NH3 → [Ag(NH3)2]Cl
प्रश्न 47. बोरॉन हैलाइड में B—X बन्ध दूरी का मान आपेक्षित मान से कम है, उ विवेचना कीजिए।
उत्तर : बोरॉन हैलाइडों में बोरॉन के 2p-कक्षक रिक्त होते हैं जबकि हैलाइड के B -कक्षक में एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होते हैं। हैलाइड अपने एकाकी युग्म को बोरॉन के क रिक्त कक्षक में दान करके पश्च आबन्ध (back bond) बनाता है जिसके कारण B—X आबन्ध में आंशिक द्वि-आबन्ध लक्षण आ जाता है अर्थात् B—X बन्ध लम्बाई कम हो जाती है।
प्रश्न 48. H—F बन्ध के लिए प्रतिशत आयनिक लक्षण ज्ञात कीजिए। ( H—F की लिए द्विध्रुव आघूर्ण = 1. 92 D, H—F के लिए बन्ध लम्बाई = 0 • 92 Å)
हल : पूर्ण आयनिक लक्षण होने पर,
संभावित द्विध्रुव आघूर्ण, μexp = e x d
= (4•8×10-10) (0 • 92 x 10-8)esu-cm
= 4•416×10-18 esu-cm = 4•416 D
प्रश्न 51. यद्यपि Be—H आबन्ध ध्रुवीय है, तथापि BeH2, अणु का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : BeH2, 180° आबन्ध कोण वाला एक रैखिक (H—Be—H) अणु है। यद्यपि Be—H आबन्ध ध्रुवीय हैं (Be तथा H परमाणुओं के मध्य विद्युत ऋणात्मकता अन्तर के कारण), परन्तु दोनों Be—H आबन्धों की आबन्ध ध्रुवणताएँ एक-दूसरे को समाप्त कर देती हैं, फलस्वरूप अणु का परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है।
प्रश्न 52. ऑक्सीजन एक गैस है जबकि सल्फर एक ठोस है। क्यों?
उत्तर : ऑक्सीजन का आकार सल्फर की अपेक्षा छोटा होता है। छोटे आकार के कारण यह प्रबल pπ-pπ आबन्ध बनाकर द्विपरमाण्विक अणु (O=O) के रूप में रहती है। इस प्रकार ऑक्सीजन में अन्तरआण्विक बल दुर्बल वान्डरवाल्स बल होते हैं जिसके कारण यह गैस अवस्था में रहती है।
दूसरी ओर, सल्फर, S=S (द्वि-आबन्ध) नहीं बनाता है (बड़े आकार के कारण अपितु यह प्रबल सहसंयोजक आबन्ध द्वारा जुड़कर जटिल वलयी संरचना बनाता है जिस कारण यह ठोस अवस्था में रहता है।
प्रश्न 53. जल का क्वथनांक हाइड्रोजन सल्फाइड से अधिक होता है। कारण सहित लिखिए।
अथवा जल एक द्रव है जबकि H2S एक गैस है, क्यों?
उत्तर : जल का क्वथनांक हाइड्रोजन सल्फाइड से अधिक होता है। इसका कारण यह है कि अधिक विद्युत ऋणात्मकता तथा छोटे परमाणु आकार के कारण ऑक्सीजन … तत्व सरलतापूर्वक हाइडोजन बन्ध बना सकता है। अतः हाइड्रोजन बन्धों की उपस्थिति के कारण जल संगुणित अणु बनाता है तथा द्रव अवस्था में रहता है। इन हाइड्रोजन बन्धों को तोड़ने के लिए पर्याप्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है, परिणामस्वरूप जल का क्वथनांक अधिक होता है।
दूसरी ओर कम विद्युत ऋणी होने के कारण सल्फर की हाइड्रोजन बन्ध बनाने की प्रवृत्ति बहुत कम होती है। अत: H2S संगुणित अणु नहीं बनाता तथा गैसीय रूप में रहता है। हाइड्रोजन बन्ध नहीं बनने के कारण इस अणु में आकर्षण बलों को तोड़ने हेतु कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसके कारण इसका क्वथनांक कम होता है।
प्रश्न 54. दर्शाइए कि सैलिसिलिक अम्ल एवं अमोनिया में किस प्रकार की बन्धुता है?
उत्तर : सैलिसिलिक अम्ल– इसमें अन्तरअणुक हाइड्रोजन बन्धुता उपस्थित होती है। किसी यौगिक के एक ही अणु में उपस्थित हाइड्रोजन बन्धुता को ‘अन्तरअणुक हाइड्रोजन बन्धुता’ (intramolecular hydrogen bonding) कहा जाता है।
सैलिसिलिक अम्ल के अणु में दो ऋणविद्युती परमाणु होते हैं। एक ऋणविद्युती परमाणु से हाइड्रोजन सहसंयोजी बन्ध द्वारा जुड़ी रहती है तथा दूसरे ऋणविद्युती परमाणु से यह हाइड्रोजन बन्ध बनाती है।
अमोनिया– इसमें अन्तराअणुक हाइड्रोजन बन्धुता विद्यमान होती है। दो या दो। अधिक समान अथवा असमान अणुओं में उपस्थित हाइड्रोजन बन्धुता को ‘अन्तराअणु हाइड्रोजन बन्धुता’ (Intermolecular hydrogen bonding) कहते हैं। अमोनिया अ परस्पर हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं।
प्रश्न 55. निम्नलिखित रासायनिक समीकरणों को पूरा कीजिए
प्रश्न 56. जल–अपघटन के प्रति नाइट्रोजन ट्राइफ्लुओराइड नाइट्रोजन ट्राइक्लोराइड से अधिक स्थायी है। कारण सहित बताइए।
उत्तर : नाइट्रोजन ट्राइफ्लुओराइड नाइट्रोजन ट्राइक्लोराइड से अधिक स्थायी है। इसका कारण यह है कि NF3, में नाइट्रोजन तथा फ्लुओरीन दोनों की संयोजी कक्षा में रिक्त d-कक्षक उपस्थित नहीं होते, जबकि NCI3 में क्लोरीन परमाणु की संयोजी कक्षा में रिक्त d-कक्षक उपस्थित होते हैं। जल-अपघटन की प्रारम्भिक अवस्था में जल का ऑक्सीजन परमाणु एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म को क्लोरीन परमाणु के रिक्त d-कक्षक में दे देता है जिससे यह जल-अपघटित हो जाता है।
NCI3 + 3H20 → NH3 ↑ + 3HCIO
फ्लुओरीन की संयोजी कक्षा में रिक्त d-कक्षक न होने के कारण यह जल के ऑक्सीजन परमाणु से एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण नहीं कर सकता। अत: यह जल-अपघटित नहीं होता है।
प्रश्न 57. NH3, H2O और HF के क्वथनांक असामान्य रूप से उच्च होते हैं, क्यों?
उत्तर : NH3, H2O और HF तीनों में ही अणु हाइड्रोजन आबन्ध द्वारा संगुणित होकर वृहद् अणु का रूप धारण कर लेते हैं जिन्हें तोड़ने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसी कारण इनके क्वथनांक असामान्य रूप से उच्च होते हैं।
प्रश्न 58. कार्बन डाइऑक्साइड गैस है, जबकि सिलिकन डाइऑक्साइड ठोस है, परन्तु दोनों तत्व आवर्त सारणी के एक ही समूह के सदस्य हैं तथा इनके परमाणु भारों में विशेष अन्तर नहीं है। कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
अथवा CO2 एक गैस है जबकि SiO2 एक ठोस है, क्यों?
उत्तर : CO2 एक गैस है, जबकि SiO2 ठोस है। इसका कारण यह है कि कार्बन डाइऑक्साइड में CO2 अणु पाए जाते हैं, जबकि सिलिकन डाइऑक्साइड एक बहुलक (SiO2), है (चित्र-3)। CO2 में कार्बन परमाणु दो ऑक्सीजन परमाणुओं से द्वि-सहसंयोजक बन्धों से जुड़ा है। इसमें छोटे त्रि-परमाणुक अणु होने के कारण यह साधारण ताप पर गैस है।
O=C=O
दूसरी ओर सिलिकन हाइविसापक एक बड़ा अणू जाता है। जिसमे सिलिकन परमाणु चतुप्फलकीय रूप से चार आक्सीजन परमाणुओं से जुड़ा है यह संरचना त्रिविम स्थान में सभी दिशाओं में विस्तार करती है तथा निम्नाकित प्रकार से प्रदर्शित की जाती है।
सिलिका की संरचना बहुत स्थायी है। अत: Si—O बन्नों को तोड़ने के लिए अत्यमिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसके फलस्वर । इसका गलनांक उच्च होता है।
प्रश्न 59. NH3 का आकार पिरैमिडीय है। क्यों?
उत्तर : अमोनिया अणु में नाइट्रोजन का क्रमांक 7 है तथा इसका इलोकमाना विन्यास 2, 5 है। नाइट्रोजन परमाणु के संगोजी कोश में उपस्थित । इलोक्ट्राँ। ।। से तीन इलेक्टॉन, तीन हाइड्रोजन परमाणओं के इलेक्ट्रॉनों के साथ साहो मग (आबगी यम) बनाते हैं। शेष दो इलेक्ट्रॉन एक एकाकी युग्म बनाते हैं। अत: नाइट्रोजन। परमाण तीन साही पुर्ण तथा एक एकाकी युग्म से घिरा रहता है। VSCPR सिद्धान्त के अनुसार अण की ज्यामिति अनियमित होती है।
नाइट्रोजन परमाणु के निकट चारों इलेक्ट्रॉन युग्मों में प्रतिकर्षण बल न्यूनतम करने में लिए अणु की आकृति चतुष्फलकीय मानी जाएगी, परन्तु एकाकी इलेक्ट्रॉन युग की उपस्थिरि NH: अणु की आकृति को विरूपित (distorts) कर देती है। वास्तव में Ip—bp प्रतिकर्षण bp—bp प्रतिकर्पण से अधिक हो जाता है, परिणामस्वरूप एकाकी युग्म के दोनों ओ उपस्थित N—H आबन्ध भीतर की ओर थोड़ा खिंच जाते हैं। अत: अणु में आबन्ध को 107° हो जाता है जो एक नियमित चतुष्फलक के आबन्। कोण से थोड़ा कम है। NH3 अ. की वास्तविक आकृति पिरैमिडी होती है
प्रश्न 60. SiCl4 का जलीय अपघटन हो जाता है लेकिन CCI4 का जलीय अपघटन नहीं होता। कारण सहित समझाइए।
उत्तर : SiCl4 सरलतापूर्वक जल-अपघटित हो जाता है, जबकि CCl4 जल अपघटित नहीं होता। इसका कारण यह है कि कार्बन की अधिकतम सहसंयोजकता चार है क्योंकि इसकी संयोजी कक्षा में चार कक्षक (एक 2 8 तथा तीन 2 p) होते हैं। कार्बन टेट्राक्लोराइड में यह सहसंयोजकता चार क्लोरीन परमाणुओं द्वारा पूर्ण रूप से सन्तुष्ट हो जाती है। अत: इसकी प्रवृत्ति जल के साथ क्रिया करने की नहीं होती।
दूसरी ओर सिलिकन की अधिकतम सहसंयोजकता छह है क्योंकि इसकी संयोजी कक्षा में रिक्त d-कक्षक भी पाए जाते हैं। अत: यह उपसहसंयोजन द्वारा जल के दो अणु ग्रहण करके जल-अपघटित हो जाता है। इस क्रिया में यह हाइड्रोजन क्लोराइड के दो अणु प्रथम अवस्था में तथा शेष दो अणु द्वितीय अवस्था में निम्नांकित प्रकार से निकालता है
प्रश्न 62. मैटल कार्बाइड्स ( धातु कार्बाइड्स ) के औद्योगिक उपयोगों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर : मैटल कार्बाइड्स के औद्योगिक उपयोग निम्नलिखित हैं
- अपघर्षक, छिद्र एवं कटाई करने वाले यन्त्रों के निर्माण में।
- भट्टी के अस्तर के निर्माण में।
- ऐलुमिनियम कार्बाइड का प्रयोग मेथेन के औद्योगिक निर्माण में।
- धातुकर्म तथा विद्युतऊष्मीय कार्य में अपचायकों के रूप में।
- कैल्सियम कार्बाइड का प्रयोग ऐसीटिलीन के संश्लेषण में।
- सिलिकन कार्बाइड का प्रयोग अपघर्षक के रूप में, धातुकर्म में विऑक्सीकारक के रूप में तथा भट्टी की सतह के लिए परावर्तक पदार्थ के रूप में।
- टंगस्टन कार्बाइड का प्रयोग उच्च गति से चलने वाले यन्त्रों के निर्माण में।
- बोरॉन कार्बाइड्स का प्रयोग-(a) हीरा काटने में, (b) लैम्पो के तन्तु निर्माण (c) विद्युत भट्टियों के इलेक्ट्रोड बनाने में, (d) चट्टान भेदने के औजार बनाने में।
प्रश्न 62. हीलियम को शून्य वर्ग में रखने का कारण दीजिए तथा इसके उपयोग दीजि अथवा निऑन तथा आर्गन को शून्य समूह में क्यों रखा गया है?
उत्तर : हीलियम (He) का परमाणु क्रमांक 2 है जिसके आधार पर इसका इलेक्ट्रीति विन्यास 15- है। यह उपकोश या कक्ष पूर्ण है जिस कारण हीलियम इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान : करता है अर्थात् रासायनिक दृष्टि से अक्रिय है। इसी आधार पर इसकी संयोजकता शून्य है। शून्य के अन्य तत्वों अर्थात् Ne, Ar, Kr, Xe व Rn की संयोजकता भी शन्य है
और उनकी भी बाहार कक्ष पूर्ण होने के कारण वे भी रासायनिक संयोजन व्यक्त नहीं करते हैं। इसके अतिरिक्त इनके अ गुणों जैसे एकपरमाणुकता, वायु में उपस्थिति, Cp / Cν का मान, गैसीय गुण आदि में समानताएँ हैं जिस कारण हीलियम को अन्य तत्वों के साथ शून्य वर्ग में रखा गया है।
हीलियम के प्रमुख उपयोग
हीलियम के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं
(1) गुब्बारों, वायुयानों के टायरों आदि में भरने में।
(2) निर्वात नलियों, रेडियो नलियों आदि के भरने में।
(3) ऑक्सीजन के साथ निश्चित अनुपात में मिश्रित करके गोताखोरों द्वारा साँस लेने में –
प्रश्न 63. क्या PCl; ऑक्सीकारक और अपचायक दोनों का कार्य कर सकता। तर्क दीजिए।
उत्तर : PCI5– में P की ऑक्सीकरण अवस्था +5 है। चूँकि फॉस्फोरस के संयोजी को में पाँच इलेक्ट्रॉन होते हैं, इसलिए यह अपनी ऑक्सीकरण अवस्था को इलेक्ट्रॉन दान कर +5 से अधिक नहीं कर सकता है, अत: PCl5 अपचायक का कार्य नहीं कर सकता। यद्य यह अपनी ऑक्सीकरण अवस्था को +5 से +3 तक या इससे कम मान तक घटा सकता इसलिए PCl5 ऑक्सीकारक का कार्य कर सकता है। उदाहरण के लिए, यह A को Ag में तथा Sn को SnCl4 में ऑक्सीकृत कर देता है।
इन अभिक्रियाओं में P की ऑक्सीकरण संख्या PCl5 में +5 से PCI3 में +3 तक घटती है जबकि Ag की ऑक्सीकरण संख्या 0 से +1 तक बढ़ती है तथा Sn की 0 से +4 तक बढ़ती है। अत: यहाँ PCl5 ऑक्सीकारक की भाँति कार्य करता है।
प्रश्न 64. निम्नलिखित में प्रत्येक का कारण बताइए
(i) SCI6 ज्ञात नहीं है, परन्तु SF6 ज्ञात है।
(ii) सल्फर हेक्साफ्लुओराइड गैसीय विद्युतीय कुचालक के रूप में प्रयुक्त होता है |
Bsc Chemistry Unit 1st Notes Notes (i) फ्लुओरीन, क्लोरीन से अधिक प्रबल ऑक्सीकारक है, इसलिए फ्लुओरीन सल्फर को इसकी अधिकतम + 6 ऑक्सीकरण अवस्था तक सरलतापूर्वक ऑक्सीकृत कर । सकती है अर्थात् SF6 बनाती है। क्लोरीन दुर्बल ऑक्सीकारक होने के कारण सल्फर को अधिकतम +4 ऑक्सीकरण अवस्था तक ऑक्सीकृत कर सकती है, इसलिए SCI4, बनाती है, SCl6 नहीं।
(ii) सल्फर हेक्साफ्लुओराइड (SF6) साधारण ताप पर एक रंगहीन, गन्धहीन तथा र्ग अविषैली गैस है। यह ऊष्मीय रूप से स्थायी तथा रासायनिक रूप से अक्रिय होती है। इसकी
अक्रियाशीलता तथा आन्तरिक विसर्जन को संकुचित करने की उच्च प्रवृत्ति के कारण, इसे उच्च र वोल्टता वाले जनरेटर्स तथा स्विचगीयर्स में गैसीय विद्युतीय कुचालक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है |
प्रश्न 65. फुलरीन क्या हैं? इन्हें कैसे प्राप्त किया जाता है? फुलरीन की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर : फुलरीन
हीलियम, आर्गन आदि अक्रिय गैसों की उपस्थिति में जब ग्रेफाइट को विद्युत आर्क (electric arc) में गर्म किया जाता है, तब फुलरीन का निर्माण होता है। वाष्पित लघु Cn अणुओं को संघनित करने पर प्राप्त कज्जली पदार्थ (sooty material) में मुख्य रूप से C60, कुछ अंश C70 तथा अतिसूक्ष्म मात्रा में 350 या अधिक समसंख्या वाले कार्बन फुलरीन पाए गए हैं।
फुलरीन कार्बन का शुद्धतम रूप है क्योंकि फुलरीन में किसी प्रकार का झूलता बन्ध (dangling bond) नहीं होता है। फुलरीन की संरचना पिंजरानुमा (cage-like) होती है। (C60) अणु की आकृति सॉकर. बॉल के समान होती है। इसे बकमिन्स्टर फुलरीन (buckminster fullerene) भी कहते हैं
इसमें छह सदस्यीय बीस वलय तथा पाँच सदस्यीय बारह वलय होती हैं। एक सदस्यीय वलय छः अथवा पाँच सदस्यीय वलय के साथ संगलित (fused) रहती है, जबकि पाँच सदस्यीय वलय केवल छह सदस्यीय वलय के साथ संगलित अवस्था में रहती है। सर्व कार्बन परमाणु समान होते हैं तथा sp2-संकरित होते हैं।
प्रत्येक कार्बन परमाणु अन्य तीन कार्बन परमाणुओं के साथ तीन आबन्ध बनाता है। चौथा इलेक्ट्रॉन पूरे अणु पर विस्थानीकृत रहता है, जो अणु को ऐरोमैटिक गुण प्रदान करता है। इस गेंदनुमा अणु में 60 उसे (vertices) होते हैं। प्रत्येक उदग्र पर एक कार्बन परमाण होता है। इस पर दोनों एकल तथा द्विबन्ध होते हैं, जिसकी C—C की लम्बाई क्रमश: 143 ∙ 5 pm तथा 138 ∙ 3 pm होती है। गोलाकार फुलरीन को ‘बकी बॉल’ (bucky ball) भी कहते हैं।
Inorganic Chemistry Notes
Bahut hi accha hai