Heterospory And Seed Habit BSc Botany Notes

Heterospory And Seed Habit BSc Botany Notes

 

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प्रश्न 12 – विषमबीजाणुता तथा बीज स्वभाव पर लेख लिखिए।

उत्तर

विषमबीजाणुता तथा बीज स्वभाव 

(Heterospory and Seed Habit) Notes

एक ही जाति की बीजाणुधानी में दो असमान आकार के बीजाणुओं का निर्माण होना, विषमबीजाणुता या असमबीजाणुता (heterospory) कहलाता है।

इस प्रकार की विषमबीजाणुता सिलैजिनेला, मार्सीलिया, एजोला, साल्वीनिया, आइसोटिस आदि में मिलती है। आकार में बड़े बीजाणु गुरुबीजाणु (megaspore) तथा छोटे बीजाणु लघुबीजाणु (microspore) कहलाते हैं। लघुबीजाणु नर युग्मकोद्भिद् (male gametophyte) तथा गुरुबीजाणु (megaspore) मादा युग्मकोद्भिद् (female gametophyte) को जन्म देते हैं। नर गैमीटोफाइट से पुमणु तथा मादा गैमीटोफाइट से अण्ड बनता है।

विषमबीजाणुता का उद्भव (Origin of Heterospory) Notes

जीव अवशेषिक अध्ययन (Paleobotanical studies) के आधार पर विषमबीजाणुता कुछ बीजाणुओं के नष्ट होने तथा शेष बचे बीजाणुओं के उत्तम पोषाहार के कारण उत्पन्न हुई। गीबल (Goebal) तथा सटक (Shattuck) ने भी पोषण को विषमबीजाणुता का कारण बताया है।

विषमबीजाणुता का जैविक हत्त्व (Biological Significance of Heterospory) 

विषमबीजाणुता का जैविक महत्त्व निम्नवत् है

(1) गुरुबीजाणु, गुरुबीजाणुधानी में विकसित होते हैं, जो गुरुबीजाणुपर्ण पर मिलती है। गुरुबीजाणु से मादा युग्मकोद्भिद् विकसित होता है जिसमें स्त्रीधानी बनती है।

(2) बीजाणु, लघुबीजाणुधानी में विकसित होते हैं, जो लघुबीजाणुपर्ण पर मिलते हैं। लघुबीजाणु नर युग्मकोद्भिद् बनाते हैं। इसमें घुमणु बनते हैं।

बीज वाले पौधों में निम्नलिखित गुण होते हैं

(1) दो प्रकार के बीजाणुओं का बनना।

(2) नर युग्मकोद्भिद् के आकार में कमी।

(3) एक गुरुबीजाणु (megaspore) का बनना।

(4) गुरुबीजाणुधानी पर रक्षक कवच का बनना जैसे अध्यावरण (integument) का बनना।

(5) गुरुबीजाणु का अंकुरण, निषेचन तथा भ्रूण का बनना सभी मातृ पौधे पर होता है।

(6) गुरुबीजाणु तथा गुरुबीजाणुधानी (न्यूसेलस) के ऊतकों के बीच सम्बन्ध होता है। बीजीय पादपों में गुरुबीजाणु न्यूसेलस की कोशिकाओं के मध्य सामंजस्य व अटूट सम्बन्ध होता है।

विषमबीजाणुता लिंग के प्रदर्शन से सम्बन्धित है। इसमें बनने वाले छोटे तथा बड़े आकार के बीजाणु नर तथा मादा लिंग को प्रदर्शित करते हैं, जबकि समबीजाणुक जातियों में बीजाणु अंकुरित होकर प्रोथैलस बनाते हैं जिस पर नर तथा मादा जनन अंग विकसित होते हैं। ..

सिलैजिनेला एक विषमबीजाणुक वैस्कुलर पौधा है जिसमें गुरुबीजाणु मादा युग्मकोद्भिद् तथा लघुबीजाणु नर युग्मकोद्भिद् बनाते हैं। मादा युग्मकोद्भिद् में युग्मनज का विकास होता है जिससे एक शैशव भ्रूण बनता है। यह परिघटना टेरिडोफाइट में बहुत महत्त्वपूर्ण समझी जाती है, जो बीज स्वभाव के काफी करीब है। इसके गुण निम्नलिखित हैं

(1) विषमबीजाणुता-लघु तथा गुरुबीजाणुओं का होना।

(2) गुरुबीजाणु गुरुबीजाणुधानी के अन्दर अंकुरित होते हैं तथा विभिन्न जातियों में ये विविध स्थितियों में गुरुबीजाणुधानी से बाहर निकलते हैं।

(3) सि० रुपेस्ट्रिस तथा सि० मोनोस्पोरा में केवल एक ही गुरुबीजाणु क्रियाशील होता तथा दूसरी जातियों में गुरुबीजाणुओं की संख्या में निरन्तर कमी होना।

(4) सि० रुपेस्ट्रिस में गुरुबीजाणु का परिवर्द्धन, स्त्रीधानी का बनना, निषेचन तथा भ्रण का बनना सभी कुछ होता है तथा ये सभी प्रक्रियाएँ स्ट्रोबिलस में होती हैं जब वह मातृ पादप से लगा होता है। कुछ वनस्पतिविज्ञों के मतानुसार यह विवीपेरी के समान क्रिया है। इसमें तरुण स्पोरोफाइट ही स्ट्रोबिलस से बाहर निकलता है।

सि०  एपस  में भी गुण मिलते हैं, परन्तु फिर भी सिलैजिनेला में बीज निर्माण नहीं होता है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं

(1) बीजाणुधानी में अध्यावरण (integument) के समान रक्षक कवच का अभाव।

(2) गुरुबीजाणु का गुरुबीजाणुधानी के अन्दर रुकना स्थायी नहीं है।

(3) मार्टिन (196(0) के अनुसार गुरुबीजाणु तथा गुरुबीजाणु का ऊतकीय सहयोग अनुपस्थित होता है।

(4) भ्रूण के बनने के उपरान्त विश्राम अवस्था (resting period) का न होना। सिलैजिनेला में भ्रूण शीघ्र विकसित होकर नया स्पोरोफाइट बनाता है।

सिलैजिनेला तथा नग्नबीजी पादपों में समानता

सिलैजिनेला नग्नबीजी पादप
मेगास्पोरेन्जियम (Megnsporingium) बीजाण्ड का प्रदेह (Nucellus of Ovule)
गुरुबीजाणु (Megaspore) | मेगास्पोर (Megaspore)
मेगागैमीटोफाइट (Megagametophyte) | भ्रूणपोष (Endosperm)
स्त्रीधानी (Archegonium) स्त्रीधानी (Archegonium)
अण्ड (Egg)

 

अण्ड (Egg)

बीजीय पादपों में मेगास्पोर मेगास्पोरेन्जियम (ovule) से बाहर नहीं आता है तथा स्थायी रूप से मातृ पादप में रहता है। निषेचन के बाद अध्यावरण रक्षक कवच बनाते हैं जिसमें भ्रूण सुरक्षित रहता है। परिपक्व होने पर बीज बाहर आते हैं। बीज में एक परिपक्व अध्यावरण द्वारा परिरक्षित मेगास्पोरेन्जियम होता है जिसमें एक मेगास्पोर (embryo Ac) तथा निषेचन के बाद का भ्रूण होता है। भ्रूण की बृद्धि अस्थायी रूप से रुक जाती है। इसको विश्राम अवस्था । (resting period) कहते हैं।

सिलैजिनेला का पादप विषमबीजाणुता तथा बीज स्वभाव का प्रदर्शन करता है, परन्तु इसमें बीज निर्माण नहीं होता है।

 


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