Germination Of Spore And Development Of Prothallus In Lycopodium

Germination Of Spore And Development Of Prothallus In Lycopodium

 

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प्रश्न 11 – लाइकोपोडियम में बीजाणु का अंकुरण व प्रोथैलस के विकास का विस्तृत विवरण लिखिए। 

उत्तर

लाइकोपोडियम में बीजाणु का अंकुरण तथा प्रोथैलस का विकास

(Germination of Spore and Development of Prothallus in Lycopodium) Notes

बीजाणु के अंकुरण के समय में विविधता मिलती है ट्रेब (Treub, 1889) के अनुसार, अंकुरण बीजाणु के जमीन पर पहुँचने के कुछ दिन बाद आरम्भ होता है, जबकि  बुकमैन

Germination Of Spore And Development Of Prothallus In Lycopodium
Germination Of Spore And Development Of Prothallus In Lycopodium

(Bruchmann, 1910) के अनुसार, इसमें 3-8 वर्ष तक का समय लग सकता है। इस समय तक बीजाणु 3-10 cm. तक मृदा के अन्दर पहुँच जाते हैं। प्रोथैलस के परिपक्व होने में करीब 6-15 वर्ष का समय लगता है तथा ये लम्बे समय तक जीवित रहते हैं।

अंकुरण से पहले बीजाणु नमी सोखते हैं जिससे भित्ति फूल जाती है तथा बाह्य भित्ति एक्साइन या एक्सोस्पोर तीन कपाटों में ट्राइरेडियेट रिज (triradiate ridge) के स्थान से खुल जाती है तथा इनटाइन वैसीकल के रूप में बाहर निकल आती है। एक अनुप्रस्थ भित्ति (transverse wall) द्वारा दो कोशिकाएँ बनती हैं–एक छोटी मूलांग कोशिका (rhizoidai cell) तथा एक बड़ी एपीकल कोशिका (apical cell)। एपीकल कोशिका वर्टीकल विभाजन (vertical division) से दो कोशिकाएँ बनाती है। मूलांग कोशिका के पास वाली कोशिका बेसल कोशिका (basal cell) कहलाती है तथा इनमें कोई विभाजन नहीं होता है। दूसरी कोशिका में दो लगातार विभाजनों के फलस्वरूप एक एपीकल कोशिका बनती है जिसकी दो सतहों से विभाजन हो सकते हैं (apical cell with two cutting faces)। यह प्रोथैलस की 5 कोशिका अवस्था वाली स्थिति है। (जिन जातियों में प्रोथैलस रंगहीन तथा मृदा के अन्दर होते हैं उनमें 5 कोशिका अवस्था तथा परिपक्व प्रोथैलस के बीच एक वर्ष का अन्तराल होता है) आगे के विकास हेतु यह आवश्यक है कि एक हाइफा बेसल कोशिका में सहजीवी रूप में प्रवेश करे। (कवक हाइफा के प्रवेश नहीं करने पर आगे का विकास नहीं होता है तथा प्रोथैलस मर जाता है) ऐसा समझा जाता है कि आगे वृद्धि हेतु कवक कुछ महत्त्वपूर्ण पदार्थ प्रोथैलस को उपलब्ध कराता है। आगे के विकास हेतु एपीकल कोशिका विभाजित होकर सेग्मेन्ट बनाती है तथा शीघ्र ही कोशिकाओं के विभज्योतक समूह (group of meristematic cells) द्वारा प्रतिस्थापित की जाती है। इस समूह द्वारा प्रोथैलस का विकास होता है।

वेटमोर तथा मोरेल (Wetmore and Morel, 1951) ने ला० सर्नुअम के बीजाणुओं को प्रयोगशाला में कल्चर किया। उन्होंने बताया कि स्पोर में क्लोरोप्लास्ट पहले बनता है फिर दो असमान आकार की कोशिकाएँ विभाजन द्वारा बनती हैं। छोटी कोशिका सक्रिय नहीं होती है। बड़ी कोशिका विभाजित होकर एक एपीकल कोशिका बनाती है। इस कोशिका में दाएँ तथा बाएँ एकान्तर क्रम में विभाजन होते हैं। कुछ समय बाद यह एक अण्डे के आकार की संरचना बन जाती है जिसमें निश्चित शीर्ष वृद्धि होती है। इसको प्राथमिक ट्यूबरकिल (primary tubercle) कहते हैं। आगे का विकास कवक हाइफा के प्राथमिक ट्यूबरकिल की कोशिकाओं में प्रवेश पर निर्भर करता है। परिपक्व प्रोथैलस के बनने में करीब 6 माह का समय लगता है तथा यह रेडियल सिमट्री (radial symmetry) दिखाता है। .

परिपक्व प्रोथैलस (Mature Prothallus)- लाइकोपोडियम के प्रोथैलस की | संरचना में विभिन्न जातियों में भिन्नता मिलती है। ट्रेब तथा बुकमैन (Treub 1889; and के Bruchmann, 1910) के अनुसार प्रोथैलस तीन प्रकार के होते हैं

  1. प्रथम प्रकार का प्रोथैलस (First type of Prothallus)-इस प्रकार का प्रोथैलस ला० सर्नुअम तथा ला० इनन्डेटम में मिलता है। प्रोथैलस का व्यास 1-2 mm तथा ऊँचाई 2-3 mm होती है। प्रोथैलस का आधार भाग सिलेण्डर के आकार का, रंगहीन तथा माइकोराइजल कवक (mycorrhizal fungus) वाला होता है जो मृदा के अन्दर रहता है।

ऊपरी भाग वायवीय होता है तथा इसमें अनियमित आकार के पत्ती के समान पालियों का जैसी संरचनाएँ होती हैं इस भाग से भोजन निर्माण होता है। मृदा से धंसे भाग में अनेक मला निकलते हैं। विभज्योतक जोन की कोशिकाओं से इसमें वृद्धि होती है। जनन अंगों वाला भाग जेनरेटिव भाग (generative zone) कहलाता है इसमें कवक नहीं मिलता है जनन अंग पालियों के (bases of lobes) के आधार पर विकसित होते हैं।

  1. द्वितीय प्रकार का प्रोथैलस (Second type of Prothallus)-इस प्रकार का प्रोथैलस ला० क्लेवेटम, ला० कोम्प्लेटम तथा ला० एनोटीनम में मिलता है। प्रोथैलाई, नारंगी या पीले या रंगहीन, ट्यूबर समान, मृतोपजीवी होते हैं जो 1-2 cm तक लम्बे तथा जमीन के अन्दर मिलते हैं। इनमें दो भाग होते हैं नीचे वाला कोनीकल भाग तथा ऊपर का जेनेरेटिव भाग (generative region) नीचे वाले भाग की कोशिकाओं से मूलाभास (rhizoids) निकलते हैं। इसमें कॉर्टेकल जोन, सेन्ट्रल स्टोरेज जोन तथा पेलीसेड जोन मिलते हैं तथा इसमें कवक हाइफा का सहजीवन भी होता है।

ऊपर के जेनेरेटिव जोन में में कवक हाइफा का अभाव होता है। यह जोन अपेक्षाकृत चौड़ा होता है तथा इसमें मार्जिनल मेरीस्टेम (marginal meristem) होता है। इसकी पालियों (lobes) के आधार पर जनन अंग विकसित होते हैं।

Germination Of Spore And Development Of Prothallus In Lycopodium
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मिश्रा (Mishra, 1978) ने ला० सरेटम में जीयोफिल्लस प्रोथैलस के विषय में जानकारी दी। ये बेलनाकार या अण्डाकार तथा भूरे रंग के हो सकते हैं। इनकी कोशिकाओं में कवक मिलता है तथा दोनों प्रकार के जनन अंग इन प्रोथैलस पर विकसित होते हैं।

  1. तीसरे प्रकार का प्रोथैलस (Third type of Prothallus)–यह ला० फ्लेग्मेरिया जैसी उपरिरोही जातियों में मिलता है। रंगहीन, अनियमित आकार के मृतोपजीवी प्रोथैलस पेड़ की शाखाओं पर उपस्थित ह्यूमस तथा सड़ी-गली बार्क के नीचे होते हैं। ये अधःस्तर (substratum) से मूलाभास या अन्य रचनाओं से चिपके रहते हैं। कवक मध्य भाग की कोशिकाओं में मिलता है। भोजन तेल रूप में संचित होता है। वर्षी प्रजनन पुराने भागों के

अपक्षय तथा मृत्यु (death and decay) के कारण विखण्डन विधि द्वारा हो सकता है। कुछ जातियों में कभी-कभी गैमी (gamme) जैसी संरचनाएँ बनती हैं जो मातृ प्रोथैलस से अलग होने पर नये प्रोथैलस बनाती हैं। जनन अंग ऊपरी भाग की शाखाओं में विकसित होते हैं। इनके मध्य पेराफाइसिस भी मिलते हैं।

लाइकोपोडियम सिलेगो का प्रोथैलस विशेष लक्षण दर्शाता है

(1) यह वायवीय होने पर हरा व प्रकाशसंश्लेषी होता है।

(2) आंशिक रूप से यह मृदा में तथा मृदा के ऊपर होता है।

(3) होलोफाइटिक (holophytic) पोषण मिलता है।

(4) वायवीय क्षेत्र पालित (lobed) होता है।

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