DNA Is Hereditary Material Assortment Zoology Question Answer
DNA Is Hereditary Material Assortment Zoology Question Answer :- In this post all the questions of the second part of zoology are fully answered. This post will provide immense help to all the students of BSc zoology. All Topic of zoology is discussed in detail in this post.
प्रश्न 4 – मेण्डल के वंशागति नियमों का वर्णन कीजिए।
Describe Mendel‘s principles of heredity.
उत्तर – इस प्रश्न के उत्तर के लिए इसी Unit – IIIrd के प्रश्न 1, 2 तथा 3 के अध्ययन करें।
प्रश्न 5 – ‘DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है‘ की व्याख्या कीजिए। DNA की संरचना, रासायनिक संघटन तथा इसका जैविक महत्व बताइए।
Discuss the role of DNA as hereditary material. Give structure, chemical composition and biological significance ol DNA.
अथवा वाटसन व क्रिक के डी०एन०ए० मॉडल का वर्णन चित्रों सहित कीजिए।
Describe Watson and Crick model of DNA with diagrams, अथवा प्यूरीन तथा पिरिमिडीन पर टिप्पणी कीजिए।
Write short notes on purine and pyrimidine. अथवा न्यूक्लियोसाइड तथा न्यूक्लियोटाइड पर टिप्पणी कीजिए।
Write short notes on nucleosides and nucleotides.
उत्तर –
DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है
(DNA is a Hereditary Material)
DNA में समस्त जीव-क्रियाओं के संदेश निहित रहते हैं जिन्हें वह एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में पारगत करता है। इसके प्रमाण बैक्टीरिया, वाइरस तथा मोल्ड पर किए गए अनुसन्धानों से मिलते हैं।
बैक्टीरिया पर अनुसन्धान
(Research on Bacteria) Notes
एफ० ग्रिफिथ (F. Griffith) ने सन् 1928 में न्यूमोकोकस (डिप्लोकोकस र न्यूमोनी) के दो प्रभेदों (strains) को अलग-अलग इन्जेक्शन द्वारा चूहों (mice) में प्रवेश कराया। इन दोनों प्रभेदों में से एक प्रभेद (SIII) उग्र (virulent) था तथा दसरा प्रभेद (RII) अनुग्र (non-virulent) था, इससे कोई संक्रमण नहीं होना था। जब SIII प्रभेद को गर्म करके मार दिया गया और उस मृत प्रभेद को अकेले ही इन्जेक्ट किया गया तो चूहों की मृत्यु नहीं हुई, जिससे ज्ञात हुआ कि SIII प्रभेद की मृत्यु कर देने वाली संक्रमणता गर्म कर देने से नष्ट हो जाती है। परन्तु जब जीवित RII और मृत SIII का रिंग मिश्रण का इन्जेक्शन लगाया गया, तब संक्रमण के कारण चूहे मर गए और उन मरे हुए चूहों से उग्र प्रकार का न्यूमोकोकस भी प्राप्त हुआ।
ओ० टी० ऐवेरी (O. T. Avery), सी० एम० मैक्लिओड (C. M. Macleod) तथा एम० मैकार्थी (M. McCarthy) ने सन् 1944 में बताया कि न्यूमोकोकस की उग्रता एक पॉलिसैकेराइड सम्पुट पर निर्भर थी। यह सम्पुट (capsule) उग्र प्रभेद SIII में पाया जाता है और अनग्र प्रभेद RII में इसका अभाव होता है। जब असम्पुटित RII प्रभेद की कोशिकाओं में सम्पुटित प्रभेद SIII के DNA युक्त निचोड़ को निकालकर मिलाया गया तो मिश्रण से SIII लक्षणों वाली कुछ कोशिकाएँ पृथक् की जा सकीं। उग्र प्रभेद के DNA ने अनुग्र प्रभेद के लक्षणों को रूपान्तरित कर दिया। इस परिघटना को रूपान्तरण (transformation) कहते हैं।
जब प्रयुक्त निचोड़ को DNA नाशक एन्जाइम DNAase के साथ मिलाते हैं तो DNA की इससे निचोड़ की रूपान्तरण क्षमता नष्ट हो जाती है।
इस प्रयोग से सर्वप्रथम यह सिद्ध हो गया कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है।
DNA की संरचना
(Structure of DNA) Notes
DNA केन्द्रक में पाया जाता है। इसकी कुछ मात्रा माइटोकॉण्ड्रिया एवं क्लोरोप्लास्ट में भी पायी जाती है। DNA प्रोटीन के साथ मिलकर क्रोमैटिन जाल का निर्माण करता है। DNA एक बहुलक यौगिक है। इसका अणु भार (molecular weight) बहुत अधिक होता है-10° से 10 डाल्टन। यूकैरियोटिक कोशिका में DNA लम्बे व सर्पिल रूप से कुण्डलित अशाखित तन्तुओं के समान होता है। एक कोशिका में DNA के अणुओं की संख्या गुणसूत्रों की संख्या के बराबर होती है। गुणसूत्रों में DNA प्रोटीन्स के साथ मिलकर न्यूक्लियोप्रोटीन्स बनाता है।
DNA का रासायनिक संघटन
(Chemical Composition of DNA) Notes
DNA तीन भिन्न प्रकार के यौगिकों का बना होता है
- शर्करा (Deoxyribose)
- फॉस्फोरिक अम्ल (Phosphoric acid) डप्लोकोकस
- नाइट्रोजनी क्षार (Nitrogenous bases)-ये नाइट्रोजनी कार्बनिक यौगिक हैं। ये चार प्रकार के होते हैं
(i) एडिनीन (Adenine-A) . (ii) थायमीन (Thymine-T), (iii) साइटोसीन (Cytosine-C) (iv) ग्वानीन (Guanine-G)
(A) एडिनीन तथा ग्वानीन प्यूरीन्स (Purines) कहलाते हैं। ये दो रिंग वाले नाइट्रोजनमय यौगिक हैं।
(B) साइटोसीन तथा थायमीन पिरिमिडीन्स (Pyrimidines) कहलाते हैं। ये एक रिंग वाले यौगिक हैं।
DNA अणु में प्यूरीन तथा पिरिमिडीन सदैव समान मात्रा में होते हैं। एडिनीन की मात्रा थायमीन के बराबर होती है और साइटोसीन की मात्रा ग्वानीन के बराबर होती है।विभिन्न वर्गों के जीवों के DNA में क्षार का अनुपात A + T/G + C अलग-अलग ‘ होता हैं, किन्तु एक ही जाति के विभिन्न प्राणियों में यह मात्रा सदैव निश्चित होती है। DNA के इस अनुपात द्वारा जीव की जाति को पहचाना जा सकता है।
DNA की आण्विक संरचना
(Molecular Structure of DNA) Notes
डी० एस० वाटसन तथा एफ० एच० सी० क्रिक ने सन् 1953 ई० में DNA मॉडल प्रस्तुत किया। यह फ्रैंकलिन तथा विल्किन्स के X-ray data के आधार पर है।
वाटसन तथा क्रिक के अनुसार DNA अणु दो ऐसे धागों का बना होता है जो केन्द्रीय अक्ष (axis) के चारों ओर लिपटकर एक दोहरी कुण्डलिनी बनाते हैं जो वास्तव में एक सीढ़ीनुमा है। ये आपस में युग्मों में जुड़े रहते हैं। एक श्रृंखला का क्षारक दूसरी श्रृंखला के क्षारक से हाइड्रोजन बन्धन द्वारा जुड़ा रहता है। एक युग्म प्यूरीन का होता है | तो दसरा पिरिमिडीन का होता है। ये युग्म एडिनीन (प्यूरीन) तथा थायमीन (पिरिमिडीन) और ग्वानीन तथा साइटोसीन के होते हैं। इस प्रकार A-T तथा G_c युग्म बनते हैं।
संक्षेप में, DNA की आण्विक संरचना इस प्रकार है-DNA अणु केन्द्रीय अक्ष के चारों ओर लिपटे हुए दो धागों का बना होता है। प्रत्येक धागा न्यूक्लियोटाइड की श्रृंखला से मिलकर बना होता है। प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में एक क्षारक (प्यूरीन या पिरिमिडीन), एक फॉस्फेट समूह तथा एक डीऑक्सीराइबोस शर्करा होते हैं। प्रत्येक धागे के न्यूक्लियोटाइड आपस में फॉस्फेट समूह द्वारा जुड़े रहते हैं। दोनों धागे आपस में .. हाइड्रोजन के दुर्बल बन्धनों द्वारा जुड़े रहते हैं।
न्यूक्लियोसाइड
(Nucleoside) Notes
प्यरीन या पिरिमिडीन क्षारक, शर्करा से मिलकर न्यूक्लियोसाइड बनाते हैं; जैसे
एडिनीन + डीऑक्सीराइबोस = एडीनोसीन
ग्वानीन + डीऑक्सीराइबोस = ग्वानोसीन
साइटोसीन + डीऑक्सीराइबोस = साइटिडीन
थायमीन + डीऑक्सीराइबोस = थायमिडीन
न्यूक्लियोटाइड
(Nucleotide)
एक न्यूक्लियोटाइड अणु में एक अणु डीऑक्सीराइबोस शर्करा, एक अणु फास्फोरिक अम्ल तथा चार में से कोई एक अणु क्षारक होता है। इस प्रकार चार प्रकार
के न्यूक्लियोटाइडस होते हैं –
पडनीन + डीऑक्सीराइबोस + फॉस्फोरिक अम्ल = एडिनाइलिक अम्ल
ग्वानीन + डीऑक्सीराइबोस + फॉस्फोरिक अम्ल = ग्वानाइलिक अम्ल
साइटोसीन + डीऑक्सीराइबोस + फॉस्फोरिक अम्ल = साइटोडाइलिक अम्ल ‘
थायमीन + डीऑक्सीराइबोस + फॉस्फोरिक अम्ल = यूरीडाइलिक अम्ल
एक DNA अणु में न्यूक्लियोटाइडस का संयोग
(Union of Nucleotides in a DNA molecule)
DNA के एक दीर्घ अणु (macro-molecule) में कई हजार न्यूक्लियोटाइड्स एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। इन्हें मोनोमियर्स कहते हैं।
DNA अणु में दोनों पॉलिन्यूक्लियोटाइड शृंखलाएँ एक-दूसरे के विमुख दिशा में इस प्रकार विन्यसित होती हैं कि एक का 3′ सिरा दूसरी की 5′ सिरे के साथ स्थित होता है। इस प्रकार की रचना में प्रत्येक श्रृंखला में न्यूक्लियोटाइड्स के फॉस्फेट समूह डीऑक्सीराइबोस के बाहर की ओर स्थित होते हैं और नाइट्रोजिनस क्षार भीतर की ओर उन्मुख रहते हैं। दोनों शृंखलाओं के नाइट्रोजिनस क्षार संलग्न क्षारों के ऑक्सीजन व नाइट्रोजन परमाणुओं के बीच हाइड्रोजन बन्धों द्वारा बंधित रहते हैं। क्षारों में युग्मन इस प्रकार होता है
(i) प्यूरीन्स (एडिनीन व ग्वानीन) पिरिमिडीन्स (साइटोसीन व थायमीन)।
(ii) एडिनीन सदैव थायमीन से और साइटोसीन सदैव ग्वानीन से युग्मन | करता है।
दोनों शृंखलाओं के शर्करा अणुओं की दूरी 11Ā होती है। प्रत्येक DNA हेलिक्स का एक प्रतिवर्तन लगभग 34Ā होता है और इसमें न्यूक्लियोटाइड्स के 10 युगल होते हैं| जो नियमित क्रम से 3- 4K की दूरी पर स्थित होते हैं।
DNA का जैविक महत्त्व
(Biological Significance of DNA)
- DNA की पुनरावृत्ति (Replication of DNA)-DNA की पुनरावृत्ति के समय न्यूक्लियोटाइड्स के नाइट्रोजिनस क्षारों के बीच में हाइड्रोजन बन्धों के टूटने सेDNA की दोनों पॉलिन्यूक्लियोटाइड शृंखलाएँ एक-दूसरे से अलग हो जाती हैं। इस प्रकारअलग हुई दोनों शृंखलाएँ एक-दूसरे की पूरक होती हैं।
उत्तर क्षार युग्मन की विशिष्टता के कारण अलग हुई दोनों श्रृंखलाओं का प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड कोशिकाद्रव्य में से अपने पूरक न्यूक्लियोटाइड को आकर्षित करता है। एक बार जब न्यूक्लियोटाइड्स अपने हाइड्रोजन बन्धों द्वारा अपने सामने स्थित न्यूक्लियोटाइड से जुड़ जाते हैं तो इनके शर्करा अणु भी अपने फॉस्फेट मूलक द्वारा एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं और इस प्रकार एक नई पॉलिन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का निर्माण पूरा हो जाता है इससे सिद्ध होता है कि DNA की द्विकुण्डलिनी की प्रत्येक श्रृंखला एक साँचे की भाँति अपनी पूरक श्रृंखला का निर्माण करती है।
DNA पुनरावृत्ति की इस विधि को अर्द्धसंरक्षी विधि (semi-conservative method) कहते हैं क्योंकि प्रत्येक संतति DNA अणु में एक पॉलिन्यूक्लियोटाइड शृंखलाडल मूल DNA अणु से आती है और दूसरी श्रृंखला संश्लेषण द्वारा बनती है।
- DNA स्थायी रचना है और इसमें उत्परिवर्तन और आनुवंशिकी परिवर्तनों की ल होते हैंसम्भावनाएँ बहुत कम होती हैं।
- DNA में जीव सम्बन्धी सभी सूचनाएँ संकलित रहती हैं।
- प्रोटीन संश्लेषण सम्बन्धी सूचना DNA द्वारा ही भेजी जाती है।
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