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Describe Theory Wien’s Bridge With Uses
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प्रश्न 9. वीन सेतु के सिद्धान्त का उपयोग सहित वर्णन कीजिए।
Describe theory of Wien’s bridge with uses.
उत्तर : वीन का सेतु (Wien’s Bridge)-जब किसी संधारित्र में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित की जाती है, तो कुछ न कुछ शक्ति क्षय (dissipation) अवश्य ही होती है। इसी कारण प्रत्येक संधारित्र को एक AS
आदर्श संधारित्र तथा एक लघु आभासी प्रतिरोध को श्रेणीक्रम संयोग माना जाता है।
वीन के सेतु का प्रयोग किसी संधारित्र की धारिता तथा उसके आभासी प्रतिरोध (अथवा शक्ति गुणांक) को ज्ञात करने के लिए किया जाता है। इसका परिपथ चित्र-30 में दिखाया गया है।
भुजा AB में अज्ञात धारिता का संधारित्र लगा है, जिसे शुद्ध धारिता C1 व उसके श्रेणीक्रम में जुड़े लघु प्रतिरोध r1 से प्रदर्शित किया गया है। भुजा AE में एक परिवर्ती मानक (आदर्श प्रतिरोधहीन) संधारित्र C3 तथा प्रेरणहीन परिवर्ती प्रतिरोध R3 जुड़े हैं। शेष दोनों भुजाओं में प्रेरणहीन प्रतिरोध R2 व R3 जुड़े हैं
दानो सन्तुलन (1) व (2), R3 व C3 को एकान्तर क्रम में परिवर्तित करके प्राप्त किए जात हैं परिवर्तित करने का क्रम C3 से प्रारम्भ करते हैं. ऐसा तब तक करते रहते हैं जब तक कि संसचक में ध्वनि या विक्षेप आना बन्द नहीं हो जाता। फिर C1 तथा r1 समीकरण (2) व (1) से गणना द्वारा ज्ञात कर लेते हैं।
यदि C3 नियत है, तो धारितीय सन्तुलन (capacitive balance) R2 अथवा R4 द्वारा प्राप्त किया जाता है।
शक्ति गुणांक— हमें ज्ञात है कि श्रेणी C-R परिपथ में धारा, विद्युत वाहक बल सापेक्ष, कला कोण ; से आगे रहती है, जहाँ।