Bsc 2nd Year Physics IV Physical Optics and Lesers Long Question Part C
प्रश्न . फ्रेनल के अद्द्धावत्ती कटिबन्ध की व्याख्या कीजिए । किसी फ्रेनल कटिबन्ध का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए। दिखाइए कि किसी एक वृहत् तरंगाग्र के कारण उस पर स्थित बिन्दु पर उत्पन्न आयाम केवल प्रथम अद्भधावर्ती कटिबन्ध से उत्पन्न आयाम का आधा होता है। इसके आधार पर प्रकाश के सरल रेखीय संचरण की व्याख्या कीजिए। Explain Fresnel’s ‘Half period zone’. Calculate the area of a Fresnel zone. Show that the amplitude due to large wavefront at a point is just half that due to first half period zone acting alone. Based on this explain the rectilinear propagation of light.
अथवा फ्रेनल के अर्द्धकाल जोन को समझाइए। अर्द्धकाल जोन की संरचना बताइए। किसी जोन का क्षेत्रफल आप किस प्रकार ज्ञात करते हैं? Explain Fresnel’s half period zone. Give construction of a half period zone. How will you find the area of any zone ?
अथवा फ्रेनल के अद्द्धावर्ती कटिबन्ध क्या हैं? किस प्रकार एक समतल तरंगाग्र को अद्द्धावर्ती कटिबन्धों में विभाजित किया जाता है? What are Fresnel’s half period zones ? How a plane wavefront is divided into half period zones ?
उत्तर : फ्रेनल के अद्द्धावर्ती कटिबन्ध अथवा अर्द्धकाल जोन- प्रकाश के तरंग-सिद्धान्त के अनुसार, किसी प्रकाश स्रोत से तरंगें सभी दिशाओं में चलती हैं जिससे काल्पनिक माध्यम ईथर के कण कम्पन करने लगते हैं। समान कला में कम्पन करने वाले कणों के सतत बिन्दु पथ को तरंगाग्र (wavefront) कहते हैं। हाइगेन्स के सिद्धान्त के अनुसार तरंगाग्र पर स्थित प्रत्येक बिन्दु द्वितीयक तरंगिकाएँ (secondary wavelets ) भेजता है। फ्रेनल ने यह माना कि ये तरंगिकाएँ व्यतिकरण करने की स्थिति में होती हैं तथा किसी भी बिन्दु पर प्रकाश की परिणामी तीव्रता इन तरंगिकाओं के व्यतिकरण के ही परिणामस्वरूप होती है । एक तरंगाग्र के कारण किसी बिन्दु पर परिणामी तीव्रता का परिकलन करने के लिए फ्रेनल ने तरंगाग्र को कई कटिबन्धों में विभक्त किया जिन्हें फ्रेनल के अद्द्धावर्ती कटिबन्ध (Fresnel’s half period zones) कहते हैं।
अद्द्धावर्ती कटिबन्धों अथवा अर्द्धकाल जोन की रचना अथवा एक समतल तरंगाग्र का अर्द्धावर्ती कटिबन्धों में विभाजन- माना / तरंग लम्बाई के एकवर्णी प्रकाश के लिए ABCD एक समतल तरंगाग्र है । यह तरंगाग्र तीर के चिह्न की दिशा में (बायीं ओर से दायीं ओर) आगे बढ़ रहा है। हाइगेन के सिद्धान्त के अनुसार तरंगाग्र का प्रत्येक बिन्दु द्वितीयक तरंगिकाओं को उत्पन्न करता है । फ्रेनल ने बताया कि तरंगाग्र से दूरस्थ बिन्दु P पर परिणामी प्रभाव उन असंख्य तरंगिकाओं के व्यतिकरण के कारण होगा जो तरंगाग्र के असंख्य बिन्दु से निर्मित हुई हैं। P बिन्दु पर परिणामी प्रभाव जानने के लिए ही फ्रेनल के अनुसार सम्पूर्ण तरंगाग्र को अर्द्ध आवर्ती कटिबन्धों में विभाजित किया जाता है। माना बिन्दु P से तरंगाग्र पर अभिलम्ब PO निर्मित किया गया है जो तरंगाग्र को बिन्दु ० पर काटता है। बिन्दु 0 को P के सापेक्ष तरंगाग्र का धुव (pole) कहते हैं। माना दूरी
प्रथम वृत्त का क्षेत्रफल जिसकी त्रिज्या OM, होगी, प्रथम अद्द्धावर्ती कटिबन्ध कहलाता है। दूसरे वृत्त के क्षेत्रफल में से प्रथम वृत्त का क्षेत्रफल घटाने पर जो वलयाकार पट्टी बनती है, उसे द्वितीय अद्द्धावर्ती कटिबन्ध कहते हैं । इसी तरह n क्रम के वृत्त के क्षेत्रफल में से (n-1) क्रम के वृत्त के क्षेत्रफल घटाने पर वलयाकार पट्टी बनती है उसे n क्रम का अद्द्धावर्ती कटिबन्ध कहते हैं।
इन मण्डलों को अद्द्धावर्ती कटिबन्ध इसलिए कहते हैं कि इनमें से प्रत्येक उत्तरोत्तर मण्डलों के संगत बिन्दुओं से बिन्दु P पर पहुँचने वाली तरंगों का पथान्तर 2 /2 या कलान्तर x होता है। अद्द्धावर्ती कटिबन्ध अथवा अर्द्धकाल जोन का क्षेत्रफल
इस प्रकार, सम्पूर्ण समतल तरंगाग्र के कारण बिन्दु P पर परिणामी आयाम उसी बिन्दु पर प्रथम अद्द्धावर्ती कटिबन्ध के आयाम के आधे के बराबर होता है।
प्रकाश का सरल रेखीय संचरण– यदि एक अपारदर्शी अवरोध अथवा जिसका द्वारक प्रकाश की तरंगदैर्घ्य की तुलना में बहुत बड़ा है किसी प्रकाश-स्त्रोत तथा पर्दे के बीच रख दिया जाए तो पर्दे पर एक सुस्पष्ट छाया अथवा प्रकाशित क्षेत्र प्राप्त होता है। इससे यह पता चलता है कि प्रकाश स्रोत से पर्दे तक सरल रेखाओं में चलता है। यह प्रकाश का सरल रेखीय संचरण कहलाता है। इसकी तरंग-सिद्धान्त के आधार पर व्याख्या निम्नवत् की जा सकती है।
माना एक एकवर्णी प्रकाश का एक समतल तरंगाग्र एक चौकोर (आयताकार) द्वारक ABCD पर अभिलम्बवत् गिरता है। हमें द्वारक से कुछ दूरी पर उसके समान्तर रखे पर्दे पर प्रकाश की तीव्रता ज्ञात करनी है। यदि प्रकाश पूर्णतया सरल रैखिक पथ पर चलता है तो पर्दे पर AB’C’D’ आयताकार क्षेत्र में सभी स्थानों पर एकसमान तीव्रता होनी चाहिए तथा इस क्षेत्र के बाहर बिल्कुल अन्धेरा होना चाहिए। अब हम इस पर तरंग सिद्धान्त के आधार पर विचार करते हैं।
माना हम पर्दे पर P, P,, P एवं P चार बिन्दुओं पर तीव्रता के बारे में विचार करते हैं। बिन्दु P आयत के काफी अन्दर है इसके संगत तरंगाम्र पर ध्रुव 0 है। अब यदि को केन्द्र मानकर तरंगाग्र पर अद्द्धावत्ती कटिबन्ध बनाए जाएँ तो द्वारक के क्षेत्रफल में काफी बड़ी संख्या में कटिबन्ध आ जाएंगे। इस अवस्था में P पर आयाम R = Rj/2 होगा। इसी प्रकार P के सन्निकट सभी बिन्दुओं पर आयाम R/2 होगा तथा वे एकसमान प्रकाश से प्रकाशित रहेंगे।
इसके विपरीत ज्यामितीय छाया के भीतर बिन्दु P, पर विचार करें तो इसके संगत ध्रुव 0, है। 0 को केन्द्र मानकर यदि अद्ध्धावर्ती कटिबन्ध बनाए जाएँ तो लगभग सभी कटिबन्ध द्वारक के बाहर रह जाते हैं परिणामस्वरूप P पर परिणामी आयाम लगभग शून्य होगा।
अब बिन्दु P पर विचार करें जो ABCD’ की सीमा के थोड़ा भीतर है। इसके संगत द्वारक पर ध्रुव 03 है जो कि किनारे से थोड़ा भीतर है। यदि O को केन्द्र मानकर अद्द्धावती कटिबन्ध बनाए जाए तो कुछ कटिबन्ध पूरे और कुछ अधूरे बनते हैं। इस पूरे कटिबन्ध की संख्या सम अथवा विषम होने के साथ P पर तीव्रता तेजी से परिवर्तित होती है। इसी प्रकार P बिन्दु जो ABCD’ के किनारे पर छाया के भीतर स्थित है, उसके संगत ध्रुव 0 पर बनाए गए कटिबन्धों के अनुसार उस पर तीव्रता परिवर्तित होती है ।
चूंकि उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि पर्दे A B C D’ पर आयताकार क्षेत्र पर तीव्रता एकसमान रहती है तथा इसके बाहर के प्रत्येक बिन्दु पर तीव्रता लगभग शून्य रहती है। केवल इसके किनारे के बाहर की ओर बहुत सूक्ष्म दूरी तक तीव्रता घटते क्रम में शून्य हो जाती हैं तथा किनारे के अन्दर तीव्रता में उतार-चढ़ाव होता है। प्रकाश की तरंगदैर्घ्य कम होने के कारण अद्ध्धावर्ती कटिबन्धों के क्षेत्रफल भी अत्यन्त छोटे होते हैं। इस कारण उपर्युक्त वर्णित ABCD के किनारे पर होने वाली घटना भी किनारे से अति-संक्षिप्त दूरी तक ही सीमित रहती और व्यवहार में हमें प्रकाश के सरल रैखिक गमन के अनुसार ही प्रतिदीप्त एवं छाया दिखाई पड़ती है।
प्रश्न 8. किसी प्रिज्म की वर्ण विभेदन क्षमता के लिए व्यंजक व्युत्पन्न कीजिए। Derive an expression for the chromatic resolving power of a prism.
उत्तर : प्रिज्म की वर्ण विभेदन क्षमता-किसी प्रिज्म द्वारा अति सन्निकट तरंगदैर्घ्यो की अलग-अलग स्पेक्ट्रमी रेखाएँ बनाने की क्षमता को उसकी ‘वर्ण विभेदन क्षमता’ कहते हैं।
प्रश्न 9. आवश्यक सिद्धान्त सहित, एक ऋजु कोर के लिए फ्रेनल वर्ग के विवर्तन का वर्णन कीजिए। विवर्तन प्रतिरूप में तीव्रता वितरण को प्रदर्शित कीजिए तथा इसके लक्षणों की विवेचना कीजिए। आप प्रकाश की तरंगदैर्घ्य के निर्धारण के लिए इसका उपयोग किस प्रकार करेंगे? Describe with necessary theory, the Fresnel type of diffraction due to a straight edge. Show the intensity distribution in the diffraction pattern and comment on its features. How would you use it to determine the wavelength of light ?
अथवा ऋजु धार (स्ट्रेट एज) से प्राप्त विवर्तन की घटना का वर्णन कीजिए। स्क्रीन पर प्राप्त तीव्रता वितरण की व्याख्या कीजिए तथा यह भी समझाइए कि छाया क्षेत्र में प्रकाश कैसे पहुँच जाता है। Describe the phenomenon of diffraction due to a straight edge. Interpret the intensity distribution on the screen and explain the penetration of light in the shadow region.
उत्तर : ऋजु कोर पर विवर्तन-चित्र-12 में एक संकीर्ण स्लिट S दर्शायी गई है जो 2 तरंगदैर्घ्य के प्रकाश से प्रदीप्त है। E, E, एक ऋजुकोर है जो स्लिट के समान्तर स्थित है तथा XY एक पर्दा है।
बिन्दु M के ऊपर प्रदीप्त क्षेत्र में हमें दीप्त व अदीप्त बैण्ड प्राप्त होते हैं, जिनकी चौड़ाई तथा स्पष्टता धीरे-धीरे कम होती जाती है तथा अन्त में एकसमान प्रदीपन हो जाता है। बिन्दु M के नीचे ज्यामितीय छाया में प्रकाश की तीव्रता शीघ्रता से कम होती जाती है तथा कुछ दूरी के बाद पूर्ण अन्धकार हो जाता है।
पर्दे पर तीव्रता-वितरण का ग्राफीय निरूपण चित्र- 12 में दिखाया गया है।
विवर्तन बैण्डों की व्याख्या- माना WW’ (चित्र-12) स्लिट S से अपसारित होने वाले बेलनाकार तरंगाग्र का परिच्छेद है तथा पर्दे पर प्रदीप्त क्षेत्र में एक बिन्दु A है जहाँ प्रकाश की तीव्रता ज्ञात करनी है। रेखा AS मिलाने पर WW’ को 0 पर काटती है। अतः 0, बिन्दु A के सापेक्ष तरंगाग्र का ध्रुव (pole) होगा।
ज्याओं के चाप खींचते हैं। ये चाप WW को जिन बिन्दुओं पर काटते हैं उनमें को गुजरती हुई स्लिट के समान्तर रेखाएँ खींचते हैं । इस प्रकार तरंगाग्र अद्द्धावर्ती पट्टियों में विभक्त हो जाता है।
बिन्दु A पर तरंगाग्र OW तथा OW’ के कारण प्रकाश पहुँचता है। तरंगामर OW के । कारण आयाम पहली अद्द्धावती पट्टी के आयाम का आधा होता है, अर्थात् – R1/2 होता है। माना तरंगाग्र OW’ के भाग OE, में एक अर्द्धावत्ती पट्टी है, तब बिन्दु A पर आयाम = R1/2+R2
इससे स्पष्ट है कि तरंगाग्र के भाग OE के अद्द्धावती पट्टियों की संख्या विषम होने पर बिन्दु A उच्चिष्ठ (अधिकतम तीव्रता) होता है तथा सम होने पर निम्निष्ठ (न्यूनतम तीव्रता) होता है, अतः जैसे-जैसे हम M से ऊपर प्रदीप्त क्षेत्र में चलते हैं हमें एकान्तर-क्रम में उच्चिष्ठ तथा निम्निष्ठ प्राप्त होते हैं, जिनकी तीव्रता परिवर्तित होती रहती है।
जब बिन्दु A, M से काफी दूर होता है तो ऊपर का सम्पूर्ण अर्द्ध-तरंगाग्र तथा निचल अर्द्ध-तरंगाग्र की बहुत बड़ी संख्या में अदर्ध्धावर्ती पट्टियाँ प्रभावी हो जाती है, तब
इस प्रकार पर्दे पर M से ऊपर जाने पर अन्त में विवर्तन बैण्ड एकसमान प्रदीपन में विलीन हो जाते हैं। विवर्तन फ्रिन्जों की चौड़ाई-बिन्दु A का उच्चिष्ठ अथवा निम्निष्ठ होना इस बात पर निर्भर करता है कि OE में अद्द्धावर्ती पट्टियों की संख्या विषम है अथवा सम। इस प्रकार
एकवर्णी प्रकाश की तरंगदैर्घ्य ज्ञात करने के लिए, प्रकाशिक बैंच के एक स्टैण्ड में रेजर ब्लैड स्लिट के समान्तर लगाते हैं। स्लिट को एकवर्णी प्रकाश से प्रकाशित करते है। उसी बच पर लगी नेत्रिका के द्वारा विवर्तन-चित्र को देखा जाता है तथा पहले और 7वें उच्वष्ठ की स्थितियाँ नोट की जाती हैं। इससे उनके बीच का अन्तराल (x) -21) ज्ञात कर लेते हैं। प्रकाशिक बैंच पर स्लिट, सीधी कोर तथा नेत्रिका की स्थितियाँ नोट करके दूरियाँ p तथा a ज्ञात कर लेते हैं। अन्त में, उपर्युक्त व्यंजक से तरंगदैर्घ्य का मान ज्ञात कर लेते हैं।
प्रश्न 10. जोन प्लेट क्या है? इसका सिद्धान्त दीजिए। कला-व्युत्क्रमण जोन प्लेट से क्या तात्पर्य है? सिद्ध कीजिए कि एक जोन प्लेट में अनेक फोकस होते हैं। What is Zone Plate ? Give its principle. What is meant by phase reversal zone plate? Show that a zone plate has multiple focii.
अथवा जोन प्लेट क्या होती है? इसका सिद्धान्त दीजिए। दर्शाइए कि जोन प्लेट के बहुत फोकस होते हैं।What is Zone Plate ? Give its theory. Show that a zone plate has multiple focii.
उत्तर : जोन प्लेट तथा इसकी रचना-जोन प्लेट, विशेष रूप से निर्मित एक विवर्तक पर्दा है जिसमें प्रत्येक एकान्तर अद्द्धावर्ती कटिबन्ध से प्रकाश अवरोध किया जाता है। जोन प्लेट को बनाने के लिए किसी सफेद कागज पर प्राकृत संख्याओं के वर्गमूल के समानुपाती त्रिज्याएँ लेकर संकेन्द्रिक वृत्त खींचते हैं। प्रथम वृत्त प्रथम अद्द्धावत्ती कटिबन्ध को तथा प्रथम एवं दूसरे वृत्त के बीच की वलयाकार पट्टी दूसरे अद्द्धावर्ती कटिबन्ध को प्रकट करती है। अब यदि एकान्तर कटिबन्धों (माना विषम संख्या वाले) को काला पेन्ट कर दें और इसका एक पतली काँच की प्लेट पर अवकृत (reduce) आकार में फोटोग्राफ ले लें तो इस प्रकार प्राप्त निगेटिव को ही जोन प्लेट कहते हैं । यह एक ऐसा प्रबन्ध होगा जिसके क्षेत्रफल अद्द्धावर्ती कटिबन्धों के संगत होंगे जिसके विषम कटिबन्ध पारदर्शी और सम कटिबन्ध. अपारदर्शी हो जाएंगे। इस प्लेट को धन जोन प्लेट कहते हैं जो चित्र- 14 (a) में दिखाई गई है। इसके विपरीत यदि सम जोन पारदर्शी तथा विषम जोन अपारदर्शी हों तो प्लेट को ॠण जोन प्लेट कहते हैं जो चित्र-14 (b) में दर्शायी गई है । इस प्रकार की रचना के कारण धन जोन प्लेट से उसके प्रतिबिम्ब बिन्दु पर आयाम R = R + R; + R, + … हो जाता है। यह सम्पूर्ण तरंगाग्र से उत्पन्न आयाम R/2 से बहुत अधिक होता है। इस प्रकार P बिन्दु पर तीव्रता भी अत्यधिक हो जाती है। इसी प्रकार की क्रिया ऋण जोन प्लेट से भी होती है।
जोन प्लेट का सिद्धान्त-चित्र-15 के अनुसार माना कागज के तल के लम्बरूप जोन प्लेट का एक खण्ड दर्शाया गया है। S एकवर्णी प्रकाश का बिन्दु स्रोत है जिससे π तरंगदैर्घ्य की गोलिया तरंगे जों प्लेट पर आपतित है तथा p उज्वल पर्तिबिम्ब के अनुरूप परदे की स्थिति है स तथा p जों प्लेट के अक्ष पर मन क्रमशः a तथा b दुरी पर है
यहाँ , जोन प्लेट की प्रमुख फोकस दूरी कहलाती है। चूंकि इस सूत्र में तरंगदैर्घ्य π उपस्थित है, अत: जोन प्लेट में तीव्र वर्ण-विपथन होता है। जोन प्लेट एक अभिसारी लेन्स की तरह कार्य करती है (जिसकी कई फोकस दूरियाँ होती हैं)।
जोन प्लेट के विभिन्न फोकस – माना एक समतल तरंगाग्र एक जोन प्लेट पर अभिलम्बवत् टकराता है, अर्थात् स्रोत S अनन्त पर है या a = » है तो जोन प्लेट उसे किसी बिन्दु P पर फोकस कर देता है जिसकी प्लेट से दूरी समीकरण (9) से दी जाती है। यह दूरी /A कहलाती है। इस अवस्था में प्रत्येक जोन का क्षेत्रफल ba होता है। समीकरण (9) से प्राप्त फोकस दूरी होगी –
f = b = riInd
अब यदि हम जोन प्लेट के अक्ष पर ही किसी बिन्दु P का विचार करें जो प्लेट से (b/3) दूरी पर है तो इस बिन्दु के सापेक्ष अद्धावर्ती कटिबन्ध का क्षेत्रफल होगा, अत: जोन 3 प्लेट के प्रत्येक जोन में अब तीन अद्द्धावतर्ती कटिबन्ध होंगे और P बिन्दु पर परिणामी आयाम R= (R – R + R) + (R; – Rg + Rg ) …(12) चौथे, पाँचवें और छठे कटिबन्ध से आने वाला प्रकाश आवरण से अवरुद्ध हो जाएगा। 1
(यहाँ R , R के मान लगभग या
R, R,… के बराबर होंगे)
3 3 १- े + R + R + R +…)
अर्थात् P; बिन्दु पर प्रकाश तीव्रता भी अन्य स्थानों की तुलना में अधिक होगी। इसे जोन प्लेट का द्वितीय फोकस कहते हैं। द्वितीय फोकस की दूरी
इसी प्रकार b/5, b/7 दूरियों पर भी प्रकाश की अत्यधिक तीव्रता रहती है, जिनकी फोकस दूरियाँ क्रमशः
होती हैं। अत: हम देखते हैं कि जोन प्लेट के अनेक फोकस होते हैं। परन्तु प्रमुख फोकस पर प्रकाश तीव्रता अधिकतम होती है तथा अन्य फोकसों की तीव्रता उत्तरोत्तर कम होती जाती है। कला-व्युत्क्रमण जोन प्लेट-सन् 1898 ई० में वुड (R. W. Wood) ने जोन प्लेट के एकान्तर जोनों को अवरोधित (blocked) करने के बजाय, उत्तरोत्तर जोनों से आने वाली तरंगों के बीच का एक अतिरिक्त पथान्तर उत्पन्न किया जिससे कि सभी जोनों से आने वाली तरंगों के आयाम एक ही चिह्न के हो जाएँ अर्थात् आयाम एक – दूसरे की सहायता करें। इस प्रकार की प्लेट को ‘कला-व्युत्क्रमण जोन प्लेट’ कहते हैं। इसको निम्न प्रकार बनाया जाता है
रासायनिक रूप से साफ की गई काँच की प्लेट पर जिलेटिन के घोल की एक पतली तह का कोटिंग कर दिया जाता है तथा इसे सुखा लिया जाता है। फिर इसे पोटैशियम डाइक्रोमेट के हल्के घोल में कुछ सेकण्डों के लिए डालकर सुग्राही बना लिया जाता है। अब प्लेट को अंधेरे में सुखाकर तथा साधारण जोन-प्लेट के सम्पर्क में रखकर इस पर सूर्य का प्रकाश डालते हैं। जोन प्लेट के पारदर्शी जोनों में से गुजरने वाला प्रकाश जिलेटिन पर क्रिया करता है तथा इसे जल में अघुलनशील (insoluble) बना देता है, जबकि अपारदर्शी जोनों के सम्पर्क तथा जिलेटिन जल में घुलनशील बना रहता है। जब इस काँच की प्लेट को जल में डाला जाता है तो उन भागों का जिलेटिन जहाँ पर प्रकाश नहीं पड़ा था इतनी गहराई तक घुल जाता है कि काँच की प्लेट पर उत्तरोत्तर जोनों से आने वाले प्रकाश में का अतिरिक्त पथान्तर उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार निर्मित कला-व्युत्क्रमण जोन प्लेट , साधारण जोन प्लेट की अपेक्षा चार गुना दीप्त प्रतिबिम्ब बनाती है।
प्रश्न 11. एक संकीर्ण एकल स्लिट द्वारा फ्राउनहोफर विवर्तन का वर्णन कीजिए तथा उच्चिष्ठों व निम्निष्ठों की स्थितियाँ व्युत्पन्न कीजिए। तीव्रता-वितरण वक्र खींचिए क्या होगा यदि स्लिट की चौड़ाई प्रकाश की तरंगदैर्घ्य के बराबर हो जाए?
Describe Fraunhofer diffraction due to a single slit and deduce the positions of maxima and minima. Plot the intensity distribution curve. What will happen if the width of the slit is made equal to the wavelength of light?
उत्तर : एकल स्लिट द्वारा फ्राउनहोफर विवर्तन- माना एकवर्णी प्रकाश का एक समान्तर पुंज जिसकी तरंगदैर्घ्य 2 है, एक संकीर्ण e चौड़ाई की स्लिट AB पर अभिलम्बवत् आपतित हो रहा है (चित्र-16)। स्लिट कागज के तल के लम्बवत् रखी है। माना विवर्तित प्रकाश को एक उत्तल लेन्स L के द्वारा, लेन्स के फोकस-तल में रखे गए पर्दे XY पर फोकस किया गया है। पदें पर प्राप्त विवर्तन-चित्र में एक केन्द्रीय चमकीला बैण्ड होता है जिसके दोनों ओर एकान्तर क्रम में काले तथा घटती हुई तीव्रता के कम चमकीले बैण्ड होते हैं।
व्याख्या-हाइगेन्स के सिद्धान्तानुसार, AB में प्रत्येक बिन्दु से द्वितीयक तरंगिकाएँ (secondary wavelets) सभी दिशाओं में चलती हैं जो तरंगें आपतित किरणों की दिशा में । जाती हैं वे लेन्स द्वारा बिन्दु 0 पर फोकस होती हैं तथा वे तरंगें जो 6 कोण से विवर्तित होती हैं, बिन्दु P पर फोकस होती हैं। हमें बिन्दु P पर प्रकाश की तीव्रता ज्ञात करनी है।
माना AK, BP पर लम्ब हैं। चूंकि तल AK से P तक सभी प्रकाशीय पथ बराबर हैं. अत: A तथा B से 6 दिशा में जाने वाली तरंगिकाओं के बीच पथान्तर
BK = ABsine = e sin 0
इसके संगत कलान्तर = 2л 2 -x पथान्तर
2л 2 = (e sin 0)
माना स्लिट की चौड़ाई AB को n ‘बराबर’ भागों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक भाग से चलने वाले तरंगों के कारण, बिन्दु P पर कम्पन का आयाम (a) समान होगा। किन्हीं दो क्रमागत भागों से P पर पहुँचने वाली तरंगों के बीच कलान्तर
58
a sin
ne sin 0
sin d sin (re sine ni
= a, तब
R = a sina a sina
sin n
na sina
a
जब n→००, तो a → 0, परन्तु गुणन na परिमित बना रहता है। माना na = A तब
R =
अत: P पर परिणामी तीव्रता
Asina
a
sina
C
2
माना
(: aln अल्प है।)
I = R2 = A
..(1)
उच्चिष्ठों व निम्निष्ठों की स्थितियाँ- समीकरण (1) से स्पष्ट है कि तीव्रता न्यूनतम
(शून्य) तब होगी जबकि
अथवा
अथवा
sin a = 0
sin a = 0
a%D+ m
जहाँ m = 1,2,3,… (परन्तु m 3 0)। अब a = TE sine
ne sin 0
= tmn
e sin 0 = + ml
अथवा
(परन्तुa0)
..(2)
इसी समीकरण में m=3D 1,2,3,…. रखने पर क्रमश: पहले, दूसरे, तीसरे, …….
निम्निष्ठों (minima) की दिशाएँ ज्ञात हो जाती हैं। अधिकतम तीव्रता की स्थितियाँ ज्ञात करने के लिए, समीकरण (1) का a के सापेक्ष अवकलन करके शून्य के बराबर रखते हैं। अत: उच्चिष्ठों (maxima) के लिए,
dI = 0
da
अर्थात् मुख्य उच्चिष्ठ आपतित प्रकाश की ही दिशा में होना चाहिए।
यदि तीव्रता I तथा में ग्राफ खींचा जाए तो चित्र-18 में
दिखाए अनुसार होगा। यह विवर्तन-चित्र का ‘तीव्रता वितरण
वक्र’ है। इससे स्पष्ट है कि विवर्तन-चित्र में आपतित प्रकाश की
दिशा में एक चमकीला मुख्य उच्चिष्ठ है । इसके दोनों ओर घटती हुई तीव्रता के गौण उच्चिष्ठ हैं जिनके बीच- बीच में
r, + 2, +3,……. पर निम्निष्ठ हैं। गौण उच्चिष्ठ दो निम्निष्ठों के ठीक बीच में नहीं होते बल्कि थोड़े से विवर्तन चित्र के केन्द्र की ओर विस्थापित होते हैं। यह विस्थापन गौण -3n-2n n 0 n 2n 3n चित्र-18
उच्चिष्ठ के क्रम के बढ़ने के साथ घटता जाता है।
स्लिट को संकीर्ण करने पर क्या होता है- केन्द्रीय उच्चिष्ठ के दोनों ओर ‘प्रथम निम्निष्ठ की दिशा 6 निम्न समीकरण से दी जाती है :
e sin0 ±1
जब का मान कम लिया जाता है अर्थात् जब स्लिट को संकीर्ण किया जाता है तो कोण का मान बढ़ता है। इसका अर्थ है कि केन्द्रीय उच्चिष्ठ का फैलाव बढ़ता है। जब स्लिट की चौड़ाई आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य के बराबर हो जाती है (e%2) तब प्रथम निम्निष्ठ 0 = 90° पर होगा। इसका तात्पर्य यह है कि केन्द्रीय उच्चिष्ठ ही पूरे स्थान को घेर लेगा।
प्रश्न 12. द्वि-स्लिट पर फ्राउनहोफर के विवर्तन की व्याख्या कीजिए। चित्र में क्या परिवर्तन होता है जब-(अ) स्लिट चौड़ाई बढ़ाते हैं, (ब) स्लिटों के बीच की दूरी
बढ़ाते हैं, (स) प्रकाश की तरंगदैर्घ्य बढ़ाते हैं?
Describe Fraunhofer diffraction at a double slit. What is the effect in figure by (a) increasing slit width (b) increasing slit separation (c) increasing the wavelength of light ?
उत्तर : द्वि-स्लिट पर फ्राउनहोफर का विवर्तन-माना तरंगदैर्घ्य 2 के एकवर्णी प्रकाश
का एक समान्तर पुंज दो समान्तर स्लिटों AB तथा CD (चित्र-19) पर अभिलम्बवत् आपतित होता है। प्रत्येक स्लिट की चौड़ाई ( है तथा वे चौड़ाई d के अपारदर्शी भाग से पृथक्कृत हैं। दोनों स्लिटों के संगत बिन्दुओं के बीच की दूरी (e+ d) होगी। माना विवर्तित प्रकाश को एक उत्तल लेन्स L के द्वारा लेन्स के फोकस-तल में रखे पर्दे XY पर फोकस किया गया है। पर्दे पर प्राप्त चित्र एकल स्लिट द्वारा बनने वाले विवर्तन-चित्र के समान है जिस पर समान चौड़ाई की व्यतिकरण फ्रिन्जे अध्यारोपित हैं।
व्याख्या-हाइगेन्स के सिद्धान्त के अनुसार AB तथा CD स्लिटों के प्रत्येक बिन्दु से सभी दिशाओं में द्वितीयक तरंगिकाएँ चलती हैं। एकल स्लिट पर विवर्तन के सिद्धान्त से, प्रत्येक स्लिट से 8 कोण पर विवर्तित तरंगिकाओं के कारण परिणामी आयाम
A sina
a
ne sin 0
अब हम इन AB तथा CD स्लिटों को उनके मध्य-बिन्दुओं S व S, पर रखे दो। कला-सम्बद्ध स्रोतों के तुल्य मान सकते हैं जिनमें से प्रत्येक स्रोत, 6 कोण की दिशा में आयाम की तरंगिकाएँ उत्सर्जित करता है। अत: पर्दे के किसी बिन्दु P पर परिणामी । Asina a आयाम, आयाम Asina वाली दो तरंगों के बीच व्यतिकरण का परिणाम होगा। माना इन
व्यतिकारी तरंगों के बीच कलान्तर ४ है।
(अ) स्लिट चौड़ाई बढ़ाने का प्रभाव-यदि स्लिट चौड़ाई e को बढ़ाया जाता है तो फ्रिन्ज-प्रारूप का एन्वेलप (envelope) परिवर्तित हो जाता है जिससे कि इसका केन्द्रीय शिखर तीक्ष्ण हो जाता है। फ्रिज चौड़ाई, जो कि स्लिटों के बीच दूरी d पर निर्भर करती है, अपरिवर्तित रहती है। अत: केन्द्रीय विवर्तन उच्चिष्ठ में व्यतिकरण उच्चिष्ठों की संख्या घट जाती है।
(ब) स्लिटों के बीच दूरी बढ़ाने का प्रभाव-यदि प्रत्येक स्लिट की चौड़ाई e स्थिर रखी जाए तथा उनके बीच का अन्तराल d बढ़ाया जाए तो फ्रिन्जें परस्पर निकटस्थ हो जाती हैं जबकि विवर्तन प्रतिरूप का एन्वेलप अपरिवर्तित रहता है। अतः केन्द्रीय एन्वेलप में व्यतिकरण उच्चिष्ठों की संख्या बढ़ जाती है।
विलुप्त क्रम-d के कुछ निश्चित मानों के लिए कुछ व्यतिकरण उच्चिष्ठ विलुप्त हो
जाते हैं।
माना के
तथा
कुछ मानों के लिए निम्नलिखित दोनों प्रतिबन्ध साथ-साथ सन्तुष्ट होते हैं
(e+d) sine =+ ni
e sini = + mi
(व्यतिकरण उच्चिष्ठ)
(विवर्तन निम्निष्ठ)
प्रथम प्रतिबन्ध के अनुसार 6 दिशा में व्यतिकरण उच्चिष्ठ होना चाहिए, परन्तु द्वितीय प्रतिबन्ध के अनुसार इस दिशा में कोई विवर्तित प्रकाश नहीं है। अत: इस दिशा में व्यतिकरण उच्चिष्ठ अनुपस्थित होगा। इन दोनों समीकरणों से
e + d
e m
n = 2m
…(5)
= 2, 4, 6,… (: m = 1, 2, 3, ….)
यदि d = e हो तो
अर्थात् दूसरे, चौथे, छठे क्रम के व्यतिकरण उच्चिष्ठ अनुपस्थित होंगे अर्थात् वे पहले, दूसरे, तीसरे, क्रम के विवर्तन निम्निष्ठों से संपाती हो जाएँगे इस प्रकार, केन्द्रीय विवर्तन उच्चिष्ठ में तीन व्यतिकरण उच्चिष्ठ होंगे, एक शून्य क्रम का तथा दो प्रथम क्रम के। [ समीकरण (5) से ]
यदि d = 2e हो तो
n = 3m
= 3, 6, 9, …
सैट
(4)
ero
( m = 1, 2, 3, …) अत: इस दशा में तीसरे, छठे, नौवें,…. क्रम के व्यतिकरण उच्चिष्ठ अनुपस्थित होंगे। इस स्थिति में वे प्रथम, द्वितीय, तृतीय,… क्रम के विवर्तन निम्निष्ठों से संपाती हो जाएँगे इस प्रकार केन्द्रीय विवर्तन उच्चिष्ठ में पाँच व्यतिकरण उच्चिष्ठ होंगे (एक शून्य-क्रम उच्चिष्ठ, दो
प्रथम-क्रम उच्चिष्ठ तथा दो द्वितीय-क्रम उच्चिष्ठ) ।
अतः जैसे-जैसे d बढ़कर e, 2e, 8e, 4e, . होता जाता है (चित्र- 22) केन्द्रीय चिवर्तन उच्चिष्ठ में व्यतिकरण उच्चिष्ठों की संख्या बढ़ती जाती है ।
(स) तरंगदैर्घ्य बढ़ाने का प्रभाव बढ़ाने पर एन्वेलप चौड़ा हो जाता है तथा फ्रिजें प्रश्न 13. विभेदन के लिए रैले की कसौटी समझाइए। समतल पारगमित ग्रेटिंग की
और दूर-दूर तक फैल जाती हैं।
विभेदन क्षमता के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।
Explain Rayleigh’s criterion of resolution. Derive an expression for the resolving power of a plane transmission grating. अथवा चित्र सहित रेले के विभेदन मापदंड को समझाइए, समतल विवर्तन ग्रेटिंग की
विभेदन क्षमता की गणितीय व्याख्या कीजिए। Explain diagrammatically the Rayleigh criterion for resolution. Mathematically describe resolving power of a plane diffraction grating.
उत्तर : रैले की कसौटी-किसी प्रकाशिक यन्त्र द्वारा किसी बिन्दु-वस्तु का प्रतिबिम्ब बिन्दु न होकर एक विवर्तन चित्र प्राप्त होता है, जिसमें एक केन्द्रीय उच्चिष्ठ तथा उसके चारों ओर द्वितीय उच्चिष्ठ व निम्निष्ठ होते हैं। यदि दो बिन्दु वस्तुएँ एक-दूसरे के समीप हों तो उनके विवर्तन चित्र भी एक-दूसरे के बहुत समीप बनते हैं तथा उनमें अतिव्यापन (०verlapping) होता है। यदि विवर्तन चित्रों में अतिव्यापन थोड़ा-ही होता है तो वस्तुएँ अलग-अलग दिखाई देती हैं तथा यह कहा जाता है कि प्रकाशिक यन्त्र दोनों वस्तुओं में विभेद करने में समर्थ हैं। इसके विपरीत जब विवर्तन चित्रों में अतिव्यापन अधिक है तो दोनों वस्तुएँ अलग-अलग न दिखकर एक ही दिखाई देती हैं, अर्थात् प्रकाशिक यन्त्र उनमें विभेदन नहीं कर पाता है। क्र
विभेदन क्षमता की निश्चित माप के लिए लॉर्ड रैले ने दो बिन्द-स्रोतों के विवर्तन चित्रों की परिणामी तीव्रता, वितरण वक्रों के आधार पर निम्नलिखित अभिधारणा व्यक्त की, जिस रैले की कसौटी कहते हैं “किसी प्रकाशिक यन्त्र द्वारा दो सन्निकट बिन्दु वस्तुएँ अथवा समान तीव्रता की दो सन्निकट स्पेक्ट्रमी रेखाएँ तभी ठीक से विभेदित की जा सकती हैं, जबकि एक के विवर्तन चित्र
का मुख्य उच्चिष्ठ दूसरी के विवर्तन चित्र के प्रथम निम्निष्ठ से सम्पाती हो।” चित्र-23 में दो
तरंगदैर्यों
2, व 2 के विवर्तन चित्रों के तीव्रता वक्र प्रदर्शित किए गए
हैं।
जब दोनों स्पेक्ट्रमी रेखाओं की तरंगदैर्यों में बहुत अन्तर होता है चित्र-23 (c)/ तो दोनों के मुख्य उच्चिष्ठ अलग-अलग स्पष्ट दिखाई देते हैं। यदि दोनों स्पेक्ट्रमी रेखाओं की तरंगदैष्यों में अन्तर इतना है कि एक का मुख्य उच्चिष्ठ दूसरी के प्रथम निम्निष्ठ के सम्पाती हो तो दोनों स्पेक्ट रेखाओं के अलग-अलग होने का आभास होता है, अर्थात् दोनों स्पेक्ट्रमी रेखाएँ ठीक
(just) विभेदित हैं, [चित्र-23 (b)]| यदि 11 व 1 में अन्तर बहुत कम हो तो उनके मुख्य उच्चिष्ठ और निकट आ जाएँगे तथा दोनों के विवर्तन चित्रों में बहुत अधिक अतिव्यापन होगा
और दोनों स्पेक्ट्रमी रेखाओं में विभेदन सम्भव नहीं होगा (चित्र- 23 (a)]।
ग्रेटिंग की विभेदन क्षमता-यदि 2 व 2 + d2 वे दो तरंगदैंर्घ्य हैं जो कि पारगमन n. ग्रेटिंग के द्वारा ठीक विभेदित हो जाती हैं तो रैले की कसौटी के अनुसार (2 + di) का मुख्य उच्चिष्ठ के निकटतम निम्निष्ठ से सम्पाती होना चाहिए।
on
म्ब रों
नके
g)
है।
न
चत्रों
जसे
दो
(2 + d2) का nवाँ उच्चिष्ठ
(e+d) sin 0 = n(1 + d2)
तथा 2 का mवाँ निम्निष्ठ
N(e+d) sin 0 = må
..(1)
…(2)
जहाँ N, पारगमन ग्रेटिंग पर अंकित रेखाओं की कुल संख्या है तथा m के मान,
0, N, 2 N…. nN के अतिरिक्त सभी पूर्णांक हो सकते हैं क्योंकि m के इन मानों के लिए क्रमश: शून्य, प्रथम तथा द्वितीय क्रम के मुख्य उच्चिष्ठ प्राप्त होते हैं। n मुख्य उच्चिष्ठ का निकटतम निम्निष्ठ (nN +1) होगा।
अत:
N(e + d) sin 0 = (nN + 1) 2
समीकरण (1) व (3) से,
अथवा
अथवा
(nN+1)2
N = n(A + di)
nN2 + A = nNA + nNd2
= nN
…(3)
चत्र दो
ों के
নों में
उपर्युक्त समीकरण ही पारगमन विवर्तन ग्रेटिंग की विभेदन क्षमता का समीकरण है। ৮, तरंगदैर्घ्य 2 पर वह न्यूनतम तरंगदैर्घ्य अन्तर है, जिसको ठीक विभेदित किया जा
ष्ट्रमी
करता है।
प्रश्न 14. किसी प्रकाशिक यन्त्र की विभेदन क्षमता को परिभाषित कीजिए। दो प्रतिबिम्बों के विभेदन के लिए रैले की कसौटी की व्याख्या कीजिए।
Define resolving power of an optical instrument. Give Rayleigh’s criterion for the resolution of two images.
उत्तर : प्रकाशिक यन्त्र की विभेदन क्षमता – किसी प्रकाशिक यन्त्र की विभेदन क्षमता उस यन्त्र द्वारा दो अथवा अधिक सन्निकट तरंगदैर्यों के प्रकाश की स्पेक्ट्रमी रेखाओं को स्पष्टतः पृथक्कृत करने की क्षमता को कहते हैं।
P
L2
चित्र-24
उदाहरण-हम एक साधारण प्रिज्म स्पेक्ट्रममापी पर विचार करते हैं (चित्र- 24) । यदि संकीर्ण स्लिट S एक ऐसे स्रोत से प्रदीप्त हो जो कि दो ‘सन्निकट’ तरंगदैर्घ्यों ? व 1, को उत्सर्जित कर रहा है, तब लेन्स L के फोकस-तल में प्राप्त स्पेक्ट्रम में 2, व 12 के संगत दो रेखाएँ होंगी। वास्तव में, प्रिज्म के फलक विवर्तक द्वारकों के समान कार्य करते हैं। अतः स्पेक्ट्रम में दोनों रेखाएँ वास्तव में एक-दूसरे के निकट दो विवर्तन चित्र हैं, जिनका तीव्रता वितरण चित्र-25(a) में प्रदर्शित है। सामान्यतया दोनों विवर्तन चित्र परस्पर अतिव्यापित होते हैं। यदि अतिव्यापन अल्प है तो दोनों विवर्तन चित्रों में मुख्य उच्चिष्ठ अलग-अलग दिखाई देंगे | [चित्र-25(a)]। इस स्थिति में स्पेक्ट्रमी रेखाएँ विभेदित कहलाती हैं, परन्तु यदि विवर्तन चित्र अधिक अतिव्यापित होते हैं तो दोनों रेखाएँ एक ही दिखाई देती हैं तथा परिणामी तीव्रता चित्र-25(b) के समान प्रतीत होती है। इस स्थिति में रेखाएँ विभेदित नहीं होतीं।
विभेदन की रैले की कसौटी-लॉर्ड रैले ने विभेदन के लिए निम्नलिखित कसौटी का प्रतिपादन किया जो कि सार्वभौमिक रूप से स्वीकार की गई रैले की कसौटी के अनुसार किसी प्रकाशिक यन्त्र द्वारा समान तीव्रता की दो निकटस् रेखाएँ तभी ठीक विभेदित होती हैं जबकि एक के विवर्तन चित्र का मुख्य उच्चिष्ठ दूस
विवर्तन-चित्र के प्रथम निम्निष्ठ से संपाती हो।
चित्र-25 में तरंगदैर्घ्यो A व 20 के दो विवर्तन चित्रों के तीव्रता वक्र इस प्रकार प्रदर्शित किए गए हैं कि एक का मुख्य उच्चिष्ठ दूसरे के प्रथम निम्निष्ठ से संपाती है। इस स्थिति में । आँख को दोनों के विवर्तन चित्रों के तीव्रता- वितरण का परिणामी प्रभाव परिलक्षित होगा जिसे चित्र में बिन्दुदार वक्र से प्रदर्शित किया गया है। इस वक्र के बीच में एक स्पष्ट नति है जिससे
दोनों स्पेक्ट्रमी रेखाओं के पृथक्कृत होने का आभास होता है। यह वह सीमान्त अवस्था है जब दोनों स्पेक्ट्रमी रेखाएँ ‘ठीक’ विभेदित होती हैं।
Resultant Intensity
M
(a)
(b)
चित्र-25
यदि कोई प्रकाशिक यन्त्र (प्रिज्म अथवा ग्रेटिंग) तरंगदैर्यो 2 तथा 2 + d की दो स्पेक्ट्रमी रेखाओं को ठीक विभेदित करता है तो/dh उस यन्त्र की विभेदन
क्षमता की माप होती है।
रैले की कसौटी से प्रकाशिक यन्त्रों की विभेदन क्षमता की गणना की जा सकती है। यह इस कारण सम्भव है कि जब दो स्पेक्ट्रमी रेखाएँ किसी प्रकाशिक यन्त्र द्वारा ठीक विभेदित होती हैं तो रैले की कसौटी के अनुसार, एक का मुख्य उच्चिष्ठ दूसरी के प्रथम निम्निष्ठ से संपाती होती है, अर्थात् दोनों स्पेक्ट्रमी रेखाओं के बीच कोणीय पृथक्करण किसी भी मुख्य उच्चिष्ठ की अर्द्ध कोणीय चौड़ाई के बराबर होता है।
चित्र-26
प्रश्न 15. अवतल परावर्तन ग्रेटिंग का सिद्धान्त बताइए। ग्रेटिंग के आरोपण की
रोलैण्ड की विधि समझाइए।
Give the theory of concave reflection grating. Describe the working of Rowland’s grating mounting. उत्तरं : अवतल परावर्तन ग्रेटिंग का सिद्धान्त
= माना GG’ एक अवतल परावर्तन ग्रेटिंग है जिसका वक्रता केन्द्र C है (चित्र-27)। माना ग्रेटिंग पर A तथा B दो संगत बन्दु हैं, तब AB = (e + d) ग्रेटिंग अवयव (Grating न lement) है। माना S कागज के तल के लम्बवत् एक कीर्ण स्लिट है जिसे तरंगदैर्घ्य के एकवर्णी प्रकाश से काशित किया गया है।
न
(i+di)
सodi)
R
चित्र-27
।
1
(pre)
अर्थात् यदि त्रिज्या R के किसी वृत्त की परिधि पर स्थित हो तो S’ भी इसी वृत्त पर स्थित होगा। इस वृत्त को रोलैण्ड वृत्त कहते हैं। अत: स्पष्ट है कि यदि स्लिट तथा अवतल ग्रेटिंग ऐसे वृत्त की परिधि पर हों जिसका व्यास ग्रेटिंग की वक्रता त्रिज्या के बराबर हो,
तब r’= R cos 0
तब स्पेक्ट्रम भी उसी वृत्त की परिधि पर फोकस होता है। रोलैण्ड आरोपण विधि-रोलैण्ड ने विवर्तित स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए अवतल ग्रेटिंग का प्रयोग किया। रोलैण्ड द्वारा प्रयुक्त व्यवस्था को रोलैण्ड आरोपण विधि (Rowland mounting method) कहते हैं। इस व्यवस्था में स्लिट, ग्रेटिंग तथा फोटोग्राफिक प्लेट समकोण त्रिभुज के शीर्षों पर रखी जाती हैं, जैसा कि चित्र-28 में दर्शाया गया है। SX तथा SY दो लोहे की रेले हैं जो क्षैतिज तल में एक-दूसरे के लम्बवत् रखी हुई हैं। ग्रेटिंग G तथा फोटोग्राफिक प्लेट एक दृढ़ दण्ड के विपरीत सिरों पर आरोपित की जाती हैं, जिसकी लम्बाई R ग्रेटिंग की वक्रता त्रिज्या के बराबर होती है। ग्रेटिंग G तथा प्लेट P क्रमश: Y तथा X-अक्ष के Y
चित्र-28
अनुदिश साथ-साथ खिसकाई जा सकती हैं। बिन्दु G,G तथा P, P क्रमश: ग्रेटिंग तथा प्लेट की SY तथा SX के अनुदिश दो स्थितियाँ निरूपित करते हैं। स्लिट S दोनों पटरियों SX तथा SY के कटान बिन्दु पर रखी जाती है जो सदैव निश्चित स्थिति पर रहती है। इस प्रकार G, P तथा S सदैव एक वृत्त की परिधि पर स्थित होते हैं जो रोलैण्ड वृत्त कहलाता है। जब स्लिट S द्वारा ग्रेटिंग पर श्वेत प्रकाश आपतित होता है, तब प्रकाश का विवर्तन होता है तथा फोटोग्राफ़िक प्लेट पर स्पेक्ट्रम का फोटो प्राप्त होता है। दण्ड को चलाने पर G तथा P नई स्थिति G’ तथा P’ पर पहुंच जाते हैं (परन्तु सदैव रोलैण्ड वृत्त के व्यास के विपरीत सिरों पर होते हैं) तथा विभिन्न क्रम के स्पेक्ट्रम प्राप्त होते हैं। बिन्दु P पर उच्चिष्ठ होने के लिए आवश्यक शर्त,
(e+d) (sin i sin 6) = nå
चूंकि ग्रेटिंग का पृष्ठ सदैव P के समान्तर होता है, अत: विवर्तन कोण सदैव शून्य होगा
तथा आपतित कोण = 2 SGP
परन्तु
(e + d) sin i = nl
sin i = sin SGP =
(e + d)
SP GP
= nd
SP ni [ : (e + d) तथा GP स्थित है।
SP
GP
तथा
स्पष्ट है कि दी गई तरंगदैर्घ्य (A ) के लिए, SP का मान के अनुक्रमानुपाती होता है । अत: जब प्लेट P, SP के अनुदिश S की ओर गति करती है, तब समान अन्तराल पर प्रथम, द्वितीय व तृतीय उच्चिष्ठ मिलता है तथा एक निश्चित क्रम के लिए,
SP o 2
यदि SP के साथ एक पैमाना लगा हो तो इससे । का मान सीधे ही ज्ञात हो जाता है। अत: इस आरोपण विधि से स्पेक्ट्रम रेखा की तरंगदैर्घ्य सीधे ही ज्ञात करना सम्भव है।