Bsc 2nd Year Physics IV Physical Optics and Lesers Long Question Part B

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Bsc 2nd Year Physics IV Physical Optics and Lesers Long Question Part B :- 

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प्रश्न 1. फ्रेनल बाइप्रिज्म विधि द्वारा एकवर्णी प्रकाश की तरंगदैर्घ्य के व्यंजक की उत्पत्ति कीजिए। Deriv an expression for wavelength of monochromatic light by Fresnel’s biprism method.

उत्तर : फ्रेनल का बाइप्रिज्म (Fresnel’s Biprism) – बाइप्रिज्म स्थायी व्यतिकरण के लिए दो कला-सम्बद्ध स्रोत प्राप्त करने की एक युक्ति है। यह अति अल्प अपवर्तक कोणों के दो प्रिज्मों का संयोग होता है जो कि आधारों पर जुड़े होते हैं। बाइप्रिज्म बनाने के लिए काँच की एक ही प्लेट को इस प्रकार घिसते हैं कि वह एक ऐसे प्रिज्म का रूप ले ले जिसका एक कोण लगभग 179° का तथा शेष दो कोण लगभग 30′-30′ के हों। फिर इसे पॉलिश कर लेते हैं।

फ्रिन्जों का बनना (Formation of Fringes)- बाइप्रिज्म द्वारा फ्रिन्जों का बनना चित्र-2 में दर्शाया गया है। S एक संकीर्ण ऊर्ध्वाधर स्लिट है जिसे एकवर्णी प्रकाश से प्रदीप्त किया गया है। S से चलने वाला प्रकाश बाइप्रिज्म पर सममिततः गिरता है । बाइप्रिज्म स्लिट S के सामने कुछ दूरी पर रखा है तथा इसकी अपवर्तक कोरें स्लिट के समान्तर हैं । प्रिज्म के ऊपरी तथा निचले अर्द्ध- भागों से निर्गत प्रकाश-पुंज , स्लिट S के बाइप्रिज्म द्वारा बने आभासी प्रतिबिम्बों S, व S, से आते प्रतीत होते हैं जो कि कला-सम्बद्ध स्रोतों का कार्य करते हैं। S- वS से अपसारित होने वाले प्रकाश-शंकु BS,E तथा ASC परस्पर अध्यारोपित होते हैं तथा अतिव्यापन क्षेत्र BC में व्यतिकरण फ्रिन्जे बनती हैं। ये फ्रिन्जे अस्थानीकृत हैं तथा एक पदें पर प्राप्त की जा सकती हैं अथवा नेत्रिका द्वारा देखी जा सकती हैं।

एकवर्णी प्रकाश की तरंगदैर्घ्य के सूत्र का निगमन– माना कि S, व S, बाइप्रिज्म द्वारा बने दो आभासी स्रोत हैं तथा XY वह पर्दा है जिस पर फ्रिजें बनी हैं। पर्दे पर स्थित बिन्दु 0, स्रोतों S, व S, से बराबर दूरियों पर है। अतः S व S, से चलने वाली तरंगें बिन्दु 0 पर समान कला में पहुँचती हैं।

 

 

 

इस व्यंजक से स्पष्ट है कि यदि W, D तथा 2d का मापन कर लें तो एकवर्णी प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 2 का मान ज्ञात किया जा सकता है।

 

प्रश्न 2. जब द्विक प्रिज्म के व्यतिकारी प्रकाश-पुंजों में से एक के पथ में एक पतली पारदर्शी प्लेट रख दी जाती है तो फ्रिन्जों में उत्पन्न विस्थापन का परिकलन कीजिए। दर्शाइए कि इससे अभ्रक की प्लेट की मोटाई ज्ञात की जा सकती है।  Calculate the displacement in the fringes when a thin transparent plate is introduced in the path of one of the interfering beams in biprism. Show that the thickness of a plate of mica can be determined from it.

उत्तर : पारदर्शी पतली प्लेट द्वारा फ्रिन्जों का विस्थापन- यदि एक पतली व पारदर्शी

 

प्लेट किन्हीं दो व्यतिकारी पुंजों में से किसी एक के पथ में रख दी जाए, तब यह देखा जाता है कि सम्पूर्ण फ्रिन्ज-प्रतिरूप उस पुंज की तरफ विस्थापित हो जाता है, जिसके पथ में प्लेट रखी गई है। यदि एकवर्णीय प्रकाश से प्रकाशित दो कला-सम्बद्ध स्रोत S तथा S2 एक-दूसरे से 2d दूरी पर स्थित हों तथा पर्दे XY पर स्थित कोई बिन्दु P है (चित्र- 4)। यदि प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्घ्य , रखी गई प्लेट की मोटाई । तथा उसके पदार्थ का अपवर्तनांक /4 हो, तब स्रोत S, से बिन्दु P के मध्य प्लेट रखने पर प्रकाश द्वारा S, P दूरी तय करने में लगा समय

 

इस सूत्र में 2 d तथा D का मान द्विक प्रिज्म उपकरण का समायोजन करके ज्ञात कर लेते हैं। अभ्रक प्लेट का ॥ ज्ञात होता ही है तथा xo ज्ञात करने हेतु सर्वप्रथम सोडियम लैम्प स्रोत प्रयुक्त करके फ्रिन्ज-प्रतिरूप बना लेते हैं, तत्पश्चात् सोडियम लैम्प को हटाकर उसके स्थान पर एक श्वेत प्रकाश स्रोत रख देते हैं। क्रॉसित-तार को शून्य क्रम वाली श्वेत रंग की फ्रिन्ज के मध्य में फोकस करके सूक्ष्म पेंचमापी का पाठ्यांक पढ़ लिया जाता है। अब अभ्रक की प्लेट को व्यतिकारी पुंज में से किसी एक के पथ में रख दिया जाता है, जिससे समस्त फ्रिन्च प्रतिरूप प्लेट रखे जाने की दिशा में विस्थापित हो जाता है । क्रॉसित-तार को विस्थापित श्वेत-फ्रिज पर फोकस करके फिर पाठ्यांक पढ़ लेते हैं। इन दोनों पाठ्यांकों का अन्तर ही फ्रिन्ज विस्थापन x कहलाता है जिसका मान सूत्र में प्रतिस्थापित करके अभ्रक प्लेट की मोटाई 1 निर्धारित हो जाती है।

 

प्रश्न 3. एकवर्णी प्रकाश की तरंगदैर्घ्य के मापन के लिए न्यूटन वलय विधि का वर्णन कीजिए तथा आवश्यक सिद्धान्त भी दीजिए। क्या होगा यदि लेन्स तथा प्लेट के बीच थोड़ा-सा जल डाल दिया जाए? Describe Newton’s ring method for finding the wavelength of a monochromatic light and give its neccessary law. What will happen if a little water is put between the lens and the plate?

अथवा न्यूटन वलय क्या हैं? सोडियम प्रकाश की तरंगदैर्घ्य न्यूटन के वलयों द्वारा किस प्रकार से ज्ञात की जाती है? प्रयुक्त सूत्र को प्राप्त कीजिए । क्या केन्द्र बिन्दु दीप्त बनाया जा सकता है? स्पष्ट कीजिए। What are Newton’s rings ? How the wavelength of sodium light is determined by Newton’s rings arrangement ? Derive the formula used. a Can you obtain a bright centre in rings arrangement ? Explain.

अथवा न्यूटन वलय विधि द्वारा प्रकाश की तरंगदैर्घ्य किस प्रकार ज्ञात करते हैं? न्यूटन वलय विधि द्वारा किसी द्रव का अपवर्तनांक कैसे ज्ञात किया जाता है? समझाइए। प्रयुक्त सूत्र को व्युत्पन्न कीजिए। Explain how Newton’s ring method can be used for determining the wavelength of monochromatic light? Explain how the refractive index of a liquid is determined by using Newton’s ring? Derive the formula used.

अथवा न्यूटन की वलयों के बनने का वर्णन कीजिए तथा इसकी व्याख्या कीजिए। न्यूटन की वलयों की विधि द्वारा एकवर्णी प्रकाश की तरंगदैर्घ्य किस प्रकार ज्ञात की जाती है?Describe and explain the formation of Newton’s ring. How wavelength of monochromatic light is measured by Newton’s ring method ?

 

उत्तर : प्रायोगिक प्रबन्ध चित्र-5 में प्रदर्शित है।

 

काँच की एक क्षैतिज समतल प्लेट P पर, एक बड़ी वक्रता त्रिज्या के समतल-उत्तल लेन्स L को इस प्रकार रखते हैं कि लेन्स का वक्र पृष्ठ कॉच की प्लेट को स्पर्श करे। काँच की प्लेट G को ऊर्ध्व से 45° का कोण बनाते हुए लगाया जाता है। सोडियम लैम्प से एकवर्णी प्रकाश प्लेट G पर आपतित होता है, जहाँ से परावर्तित होकर वह लेन्स L तथा प्लेट P के बीच बनी वायु-फिल्म पर अभिलम्बवत् आपतित होता है। इस वायु-फिल्म के ऊपरी व निचले पृष्ठों से परावर्तित होने वाली किरणों में व्यतिकरण होता है, जिससे न्यूटन वलय बनती हैं। इन वलयों को एक निम्न शक्ति वाले सूक्ष्मदर्शी (M) द्वारा देखा जाता है जो कि वायु-फिल्म पर फोकस की जाती हैं।

सिद्धान्त:-  यदि फिल्म का अपवर्तनांक तथा मोटाई । हो तो ऊपरी व निचले पृष्ठों से परावर्तित किरणों के मध्य पथान्तर 2ut cos (r + 6) होता है, जहाँ ऊर्ध्व में झुकाव है तथा । फिल्म कोण है। यदि लेन्स की वक्रता त्रिज्या बड़ी हो तो 6 को नगण्य मान सकते हैं। निचले पृष्ठ से परावर्तित किरण द्वारा श का कलान्तर आ जाता है, जो 2 / 2 पथान्तर के तुल्य है, अत: दो किरणों के मध्य प्रभावी पथान्तर

समीकरण (1) व (2) से स्पष्ट है कि nवीं दीप्त अथवा अदीप्त वलय / के निश्चित मान के लिए प्राप्त होगी। वायु-फिल्म में t का मान एक वृत्त की परिधि पर निश्चित रहता है , जिसका केन्द्र लेन्स व प्लेट के स्पर्श बिन्दु पर होता है, अतः वलय संकेन्द्री वृत्तों के रूप में प्राप्त होती हैं।

यदि लेन्स के वक्र पृष्ठ की वक्रता त्रिज्या R हो तथा nवीं दीप्त वलय की त्रिज्या जहाँ फिल्म की मोटाई । है तो यह सिद्ध किया जा सकता है कि

 

लेन्स की वक्रता त्रिज्या R तथा न्यूटन वलयों के व्यास नापकर समीकरण (7) की सहायता से 2 के मान की गणना की जा सकती है।

 

विधि :- सबसे पहले उपकरण का उचित समायोजन करके न्यूटन वलय प्राप्त करते हैं तथा सूक्ष्मदर्शी M की नेत्रिका को क्रॉस -तार पर फोकस करके सूक्ष्मदर्शी की वायु-फिल्म से दूरी इस प्रकार समायोजित करते हैं कि सूक्ष्मदर्शी में देखने पर न्यूटन वलय स्पष्टतया दिखाई दें। प्लेट P व लेन्स L की स्थिति इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि सूक्ष्मदर्शी के क्रॉस -तार का कटान बिन्दु न्यूटन-वलय निकाय के केन्द्र से संपाती हो जाए। पुन: सूक्ष्मदर्शी को क्षैतिज दिशा में इस प्रकार विस्थापित करते हैं कि क्रॉस- तार केन्द्र से 24 वीं वलय पर आ जाए। अब स्केल पर सूक्ष्मदर्शी की स्थिति नोट कर लेते हैं पुनः स्पर्श -पेंच की सहायता से सूक्ष्मदर्शी को विपरीत दिशा में विस्थापित करते हैं तथा 22वीं, 20वीं 18वीं,… वलयों पर क्रॉस-तार को सैट करके पाठ्यांक लेते जाते हैं। इस प्रकार चौथी वलय तक पहुँच जाते हैं।

पुन: इसी प्रकार के पाठ्यांक केन्द्र के दूसरी ओर उन्हीं वलयों के लिए लेते हैं। एक ही न वलय के दोनों सिरों पर लिए गए पाठ्यांकों का अन्तर उस वलय के व्यास के बराबर है।

 

अब विभिन्न वलयों के व्यासों के वर्ग D तथा वलय-संख्या n के बीच एक ग्राफ खींचते हैं। यह ग्राफ एक सरल रेखा है (चित्र- 6)। इस ग्राफ पर दो बिन्दु B व C लेकर त्रिभुज CBM बना लेते हैं, जिसमें

 

दीप्त केन्द्र यदि क्राउन-काँच के एक उत्तल लेन्स को फ्लिण्ट काँच की प्लेट के ऊफ़ रखकर इनके बीच सैसाफ्रास के तेल की कुछ बूँदें डाल दें तो इस प्रबन्ध से प्राप्त न्यूटन वला का केन्द्र दीप्त होता है। इसका कारण यह है कि सैसाफ्रास का तेल क्राउन-कॉाँच के सापेक्ष प्रकाशत: सघन तथा फ्लिण्ट काँच के सापेक्ष विरल होता है। अतः तेल की फिल्म के दोनों पृष्ठ पर प्रकाश का परावर्तन एक जैसी स्थितियों में (विरल से सघन माध्यम में जाते हुए) होता। तथा प्रत्येक स्थिति में 7 का कालान्तर उत्पन्न होता है। इस प्रकार व्यतिकारी किरणें एक है कला में हो जाती हैं। अत: वलयाकार फ्रिन्जों का केन्द्र दीप्त होता है।

न्यूटन के वलयों की विधि से द्रव का अपवर्तनांक ज्ञात करना- जिस द्रव क अपवर्तनांक ज्ञात करना हो, उसे न्यूटन-वलय प्राप्त करने की व्यवस्था में लेन्स तथा काँच की प्लेट के मध्य भर देते हैं। यदि यह द्रव काँच के सापेक्ष विरल है तो द्रव- फिल्म के निचले पृष्ठ से परावर्तित होने वाली तरंग में x का कलान्तर (अर्थात् 2/2 का पथान्तर) उत्पन्न होगा। यति द्रव काँच के सापेक्ष सघन है तो फिल्म के ऊपरी पृष्ठ से परावर्तित होने वाली तरंग में का कलान्तर उत्पन्न होगा। स्पष्ट है कि प्रत्येक दशा में ए कलान्तर (2/2 का पथान्तर) उत्पन्न होगा। अत: व्यतिकारी किरणों के बीच प्रभावी पथान्तर

 

 

प्रश्न 4. फेब्री-पेरो व्यतिकरणमापी की संरचना व कार्यविधि का वर्णन कीजिए तथा फ्रिन्जों में तीव्रता वितरण प्राप्त कीजिए।Describe the construction and working of Febry-Perotinterferometer and obtain intensity distribution in the fringes.

उत्तर : फेब्री-पेरो का व्यतिकरणमापी-जब दो या अधिक अथवा अनन्त कला सम्बद्ध प्रकाश-पुंजों में व्यतिकरण होता है तो तीक्ष्ण फ्रिन्जें प्राप्त होती हैं। इस प्रकार के व्यतिकरण को ‘बहुल पुंज व्यतिकरण’ कहते हैं। फेब्री तथा पेरो के व्यतिकरणमापी में अधिक पुंज व्यतिकरण ही होता है।

संरचना (Construction) :- इस व्यतिकरणमापी में दो प्रकाशत: समतल काँच की प्लेटें A व B (चित्र-7) होती हैं जिनके बीच के स्थान में वायु होती है। इन प्लेटों के आन्तरिक पृष्ठ पर चाँदी अथवा ऐलुमिनियम की पॉलिश होती है। प्लेट B जो कि प्रेक्षक की ओर है, स्थिर रहती है। प्लेट A को एक यथार्थ सूक्ष्ममापी पेंच के द्वारा चलाकर, दोनों प्लेटों के बीच की दूरी को बदला जा सकता है। प्लेट B पर पेंच व स्प्रिंग लगे रहते हैं जिनके द्वारा इसके परावर्तक पृष्ठ को प्लेट A के परावर्तक पृष्ठ के ठीक समान्तर किया जाता है । प्लेटें A व B कुछ प्रिज्मीय बनी होती हैं ताकि इसके बाहरी पृष्ठों से परावर्तित किरणों के बीच व्यतिकरण न हो।

 

फ्रिन्जों का बनना-चित्र-7 में S, एक एकवर्णी विस्तृत प्रकाश-स्रोत लेते हैं जो कि लेन्स L के फोकस-तल में स्थित है। S, के किसी बिन्दु से चलने वाला प्रकाश L, से समान्तर-पुंज के रूप में निकल कर प्लेटों पर गिरता है। पुंज की प्रत्येक किरण, A व B के बीच उनके परावर्तक पृष्ठों से बार-बार परावर्तित होती है तथा प्रत्येक परावर्तन में प्रकाश का कुछ भाग पारगमित भी हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक किरण से अनन्त पारगमित किरणों का एक समूह प्राप्त होता है। इस समूह की किरणें समान्तर व कला-सम्बद्ध होती हैं तथा किन्हीं दो क्रमागत किरणों के बीच एक नियत पथान्तर होता है। लेन्स Lg के द्वारा इनका संकेन्द्रण करने पर इनमें व्यतिकरण होता है। अत: स्रोत S के सभी बिन्दुओं से चलने वाली किरणें, लेन्स के फोकस-तल में रखे पर्दे S2 पर व्यतिकरण-चित्र बनाती हैं।

माना कि प्लेटों A व B के पॉलिशदार पृष्ठों के बीच दूरी d है तथा स्त्रोत के एक बिन्दु s से चलने वाली किरण प्लेटों पर । कोण पर आपतित होती हैं। इस किरण द्वारा उत्पन्न पारगमित किरणों में किन्हीं दो किरणों के बीच पथान्तर 2d coso होगा। अत: यदि निम्न प्रतिबन्ध पूरा होता हो

(जहाँ n एक पूर्णांक है) स्रोत के उन सभी बिन्दुओं का बिन्दुपथ, जिनसे चलने वाली किरणें प्लेटों पर एक ही कोण पर गिरती हैं, एक वृत्त है जिसका केन्द्र 0, है। अत: पर्दें S, पर वृत्तीय संकेन्द्री फ्रिन्जें प्राप्त होती हैं जिनका केन्द्र 0, है । प्रत्येक फ्रिन्ज के लिए 0 का एक निश्चित मान है।

तीव्रता वितरण-यदि आपतित तरंग का आयाम a है, तब फेब्री-पेरो की प्लेटों से पारगमित क्रमागत किरणों के आयाम निम्न होंगे :

 

 

प्रश्न 5. माइकेल्सन के व्यतिकरणमापी की रचना तथा कार्यविधि का वर्णन कीजिए। व्याख्या कीजिए कि निम्न को ज्ञात करने के लिए माइकेल्सन के व्यतिकरणमापी का उपयोग किस प्रकार करते हैं  / Describe the construction and working of a Michelson’s interferometer. Explain how Michelson’s interferometer is used to determine the following :

(क) एकवर्णी प्रकाश की तरंगदैर्घ्य, / the wavelength of monochromatic light,

(ख) सोडियम की D, तथा D, रेखाओं की तरह, परस्पर अत्यन्त निकट तरंगदैर्यों में अन्तर।  /  the difference in wavelengths very close to each other, such as D and D2 lines of sodium.

उत्तर : माइकेल्सन का व्यतिकरणमापी-यह एक ऐसा प्रकाशीय यन्त्र है जिससे विभिन्न स आकृतियों की व्यतिकरण फ्रिन्जें प्राप्त की जा सकती हैं। इसमें एक प्रकाश-किरण को आंशिक में परावर्तन व आंशिक पारगमन द्वारा दो भागों में विभक्त किया जाता है। ये दो किरणें एक-दूसरे के लम्बवत् दिशाओं में जाती हैं तथा पुनः लौटकर एक ही स्थान पर मिलती हैं। इनके बीच व्यतिकरण होता है तथा फ्रिन्जे बनती हैं। इस यन्त्र के प्रकाशिकी में अनेक अनुप्रयोग हैं।

रचना- इसमें दो समतल दर्पण M व M, (चित्र-8) तथा दो समान मोटाई की तथा प्रकाशत: समतल काँच की प्लेटे P व P, होती हैं। दर्पण M, व M. के सामने वाले पृष्ठों पर चाँदी की कलई होती है तथा ये एक-दूसरे के लम्बवत् दो भुजाओं पर जड़े रहते हैं।

इनक पीछे वाले पृष्ठों पर पेंच लगे रहते हैं जिनकी सहायता से इन्हें क्षैतिज अथवा ऊर्ध्वाधर अक्षों के परितः झुकाया जा सकता है। दर्पण M स्थिर है जबकि दर्पण M1 को एक यथार्थ व महीन पेंच के द्वारा तीर की दिशा में एक माइक्रोमीटर स्केल पर चलाया जा सकता है। दर्पण । M द्वारा चली गई दूरी को 10 5 सेमी की यथार्थता तक नापा जा सकता है। प्लेटें P व P, एक-दूसरे के ठीक समान्तर रखी जाती हैं तथा दर्पणों M व M2 से 45° के कोण पर झुकी रहती हैं। प्लेट P का वह पृष्ठ जो प्लेट P, की ओर है, अर्द्ध-रजतित होता है।

 

 

 

 

कार्य-प्रणाली– एक विस्तृत एकवर्णी प्रकाश-स्रोत S से चलने वाली प्रकाश-किरणें लेन्स L से लगभग समान्तर किरण-पुंज के रूप में निकलती हैं तथा प्लेट P में प्रवेश करती हैं। के अर्द्ध-रजतित पृष्ठ पर प्रकाश का कुछ भाग परावर्तित तथा कुछ भाग पारगमित हो जाता है। इस प्रकार हमें दो किरणें प्राप्त होती हैं। परावर्तित किरण 1 दर्पण M, की ओर तथा पारगमित किरण 2 दर्पण M, की ओर चलती है, ये दोनों किरणें क्रमशः दर्पण M, व M. से परावर्तित होकर पुन: अर्द्ध-रजतित पृष्ठ पर आकर संयुक्त होती हैं और एक दूरदर्शक T में प्रवेश करती हैं। चूँकि दूरदर्शक में प्रवेश करने वाली किरणें एक ही स्रोत से निकली हैं, अत: वे कला-सम्बद्ध हैं तथा व्यतिकरण करती हैं। व्यतिकरण त्रिन्जे दूरदर्शक में देखी जा सकती हैं। दर्पण M, तीर की दिशा में आगे-पीछे चलाकर इन किरणा के बीच इच्छानुसार पथान्तर उत्पन्न किया जा सकता है।

(क) एकवर्णी प्रकाश की तरंगदैर्घ्य ज्ञात करना इसके लिए व्यतिकरणमापी को वृत्तीय फ्रिन्जों के लिए समायोजित करते हैं। इसके पश्चात् दर्पण M1 की स्थिति को इस प्रकार न समायोजित करते हैं कि दृष्टि-क्षेत्र के केन्द्र पर एक दीप्त स्पॉट प्राप्त हो जाए। यदि फिल्म की क के मोटाई d है तथा स्पॉट का क्रम 7 हैं, तब दाप्त क्रि्ज की शर्त के आधार पर

अब यदि दर्पण M को M; से 2/2 दूरी पीछे खिसकाया जाए तो 2d के मान में की वृद्धि हो जाती है तथा समीकरण (1) में n का मान (n+1) हो जाता है। अतः अब केन्द्र पर (n+1) वाँ दीप्ति स्पॉट आ जाता है। इस प्रकार प्रत्येक बार M को 2/2 दूरी से पीचे चलाने पर केन्द्र पर अगला दीप्त स्पॉट आ जाता है। माना M को दूरी खिसकाने से केन्द्र पर N नई फ्रिन्जें (धब्बे) आती हैं, तब

 

इस प्रकार सूक्ष्ममापी पेंच की सहायता से दूरी x मापकर तथा संख्या N को गिनकर, 2 के मान की गणना की जा सकती है।

(ख) दो लगभग बराबर तरंगदैर्यों का अन्तर ज्ञात करना-इसके लिए व्यतिकरणमापी को वृत्तीय फ्रिन्जों के लिए समायोजित करते हैं ।

माना प्रायोगिक स्रोत जैसे सोडियम लैम्प में दो तरंगदैर्घ्य π1 व π2  उपस्थित हैं तथा प्रत्येक तरंगदैर्ध्य अपनी अलग-अलग वृत्तीय फ्रिन्जे उत्पन्न करती हैं। माना π1>π2 तथा π1व π2 का अन्तर बहुत कम है। यदि वायु-फिल्म की मोटाई बहुत कम है तो ।, तरंगदैर्घ्य की दीप्त फ्रिन्जें, π2 की दीप्त फ्रिन्जों से लगभग संपाती होती हैं। अब यदि दर्पण M, को उस दिशा में खिसकाया जाए जिससे कि फिल्म की मोटाई बढ़ती जाए तो π1 व π2 की फ्रिन्जों के बीच विभिन्न अन्तराल होने के कारण π1 की फ्रिन्जें, π2, की फ्रिन्जों से पृथक् होने लगती हैं। अन्त 1 में एक ऐसी अवस्था आती हैं जबकि π1 की एक अदीप्त फ्रिन्ज, π2 की दीप्त फ्रिन्ज से संपाती हो जाती है। इस अवस्था में फ्रिन्जों में बहुत अधिक अस्पष्टता हो जाती है।

अब दर्पण M को और पीछे x (माना) दूरी तक हटाते हैं जब तक कि फ्रिन्जें एक बार स्पष्ट हो जाने के पश्चात् फिर से अस्पष्ट नहीं हो जाती। स्पष्ट है कि इस दौरान π1, की n फ्रिन्जें तथा π2 की (n+1) फ्रिन्जे केन्द्र पर प्रकट होती हैं। 1

 

 

अब क्योंकि दर्पण M1 के π/ 2 दूरी चलने पर केन्द्र पर अगले क्रम की फ्रिन्ज प्रकट x = n 21 2 2x = (n + 1) तथा 2 (n+1)=- 2x होती है। अतः

 

चूंकि π1 और π2 में बहुत कम अन्तर है, अत: π1π2के स्थान पर ππ ले सकते हैं। जहाँ 2 दोनों तरंगदैर्यों का औसत है।

 

इस प्रकार यदि हम अधिकतम अस्पष्टता की दो क्रमागत स्थितियों के बीच M द्वारा चली दूरी माप लें तथा मध्यमान तरंगदैर्घ्य ज्ञात कर लें तो उपर्युक्त सूत्र से (4 – 2 की गणना कर सकते हैं।

 

प्रश्न 6. वृत्तीय द्वारक पर फ्राउनहोफर विवर्तन का वर्णन कीजिए । Describe Fraunhofer diffraction at a circular aperture.

उत्तर : वृत्तीय द्वारक द्वारा फ्राउनहोफर विवर्तन- फ्राउनहोफर के अनुसार, जब किसी वृत्तीय द्वारक पर एक समान्तर किरण-पुंज आपतित होता है तो द्वारक के प्रत्येक बिन्दु से सभी दिशाओं में द्वितीयक तरंगिकाएँ चलती हैं। यदि द्वारक के पीछे एक लेन्स रखकर विभिन्न दिशाओं में विवर्तित तरंगों को लेन्स के फोकस-तल में स्थित एक पर्दे पर फोकस किया जाए तो पर्दे पर एक विवर्तन-चित्र प्राप्त होता है।

विवर्तन-चित्र में एक केन्द्रीय प्रदीप्त मण्डल होता है जिसे ‘ऐयरी मण्डल’ (Airy’s disc) कहते हैं। इस मण्डल के चारों ओर एकान्तर क्रम में अदीप्त तथा घटती हुई तीव्रता की दीप्त वलयों का समुदाय होता है। आपतित प्रकाश का लगभग 84% भाग ऐयरी के मण्डल में एकत्रित रहता है तथा शेष (उच्च क्रम के) वलयों में वितरित रहता है। केन्द्रीय मण्डल की कोणीय त्रिज्या 6 अर्थात् मण्डल के केन्द्र तथा प्रथम अदीप्त वलय के बीच कोण निम्न सूत्र से प्राप्त होता है :

0= 1.22 . π/D

 

जहाँ π आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य है तथा d वृत्तीय द्वारक का व्यास है। उपर्युक्त परिणाम से दूरदर्शक की विभेदन-सीमा प्राप्त होती है।


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