Respiratory System Of Pila BSc Zoology Question Answer
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प्रश्न 3 – घोंघे के श्वसन तन्त्र एवं जलीय श्वसन विधि का वर्णन कीजिए।
Describe the respiratory system of Pila and mention the aquatic respiration.
अथवा पाइला के श्वसन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
Describe respiratory system of Pila.
उत्तर –
पाइला का श्वसन तन्त्र
(Respiratory System of Pila) Notes
पाइला में जलीय तथा स्थलीय दोनों प्रकार से श्वसन होता है। जलीय श्वसन के लिए टीनिडियम (ctenidium) या क्लोम (gill) तथा स्थलीय श्वसन के लिए पल्मोनरी कोष (pulmonary sac) होते हैं। एक जोड़ी न्युकल लोब (Nuchal lobe) सहायक संरचनाओं की भाँति कार्य करते हैं।
श्वसनांग (Respiratory organs) Notes
- टीनिडियम (ctenidium) या क्लोम (gill)-पाइला में केवल एक लम्बा कंधी समान मोनोपेक्टिनेट क्लोम होता है जो मेण्टल गुहा के दायीं ओर ब्रेकियल कक्ष की पृष्ठ दीवार से जुड़ा रहता है। इसकी रचना में एक लम्बी टीनिडियम अक्ष होती है। यह मेण्टल भित्ति से जुड़ी रहती हैं। इस कक्ष में एक अभिवाही (afferent) और एक अपवाही (efferent)
रूधिरि टिनियाँ होती हैं। टीनिडियल अक्ष पर एक पंक्ति में चपटे व तिकोने लैमेली जुड़े रहते हैं।
प्रत्येक लैमिला अपने चौड़े आधार द्वारा टीनिडियल अक्ष से जुड़ा तथा ब्रेकियल अक्ष में लटका रहता है। टीनिडियम के मध्य में स्थित लैमेली सबसे बड़े होते हैं तथा दोनों ओर धीरे छोटे हो जाते हैं। प्रत्येक लैमेला का दायाँ किनारा छोटा होता है और अभिवाही किनारा (afferent side) कहलाता है तथा बायाँ किनारा अपवाही किनारा (efferent ide) कहलाता है। लैमेला के अगले तथा पिछले तल पर प्लीट्स (pleates) होती हैं। ये अत्यन्त संवहनीय होती हैं।
औतिकी (histology) के आधार पर प्रत्येक लैमेला ब्रेकियल एपिथीलियम के दो स्तरों का बना होता है जो एक सँकरे स्थान द्वारा अलग रहते हैं। एपिथीलियम में तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं।
(i) अपक्ष्माभिकी स्तम्भी कोशिकाएँ (non-ciliated columnar cells)
(ii) पक्ष्माभिकी स्तम्भी कोशिकाएँ (ciliated columnar cells)
(iii) ग्रन्थिल कोशिकाएँ (glandular cells)
इन स्तरों के आधार पर संयोजी ऊतक कोशिकाएँ और तिरछी पेशियों के तन्तु होते हैं। इनके नीचे पेलियल एपिथीलियम होती है।
- पल्मोनरी कोष (Pulmonary sac)-पल्मोनरी कोष एक बडे थैले के समान रचना है जो मेण्टल गुहिका के पल्मोनरी कोष में लटका रहता है। यह मेण्टल के रूपान्तरण में बनता है और संवहनीय दीवारों का बना होता है। पल्मोनरी गुहा में खुलता है। पल्मोनरी छिद्र कपाट द्वारा सुरक्षित रहते हैं।
- न्युकल लोब या स्यूडोपिपोडियम (Nuchal lobes or Pseudopipodium)- सिर के दोनों ओर तथा पाद के ऊपर एक मोटा कुंचनशील उभार न्युकलन लोब स्यूडोपिपोडियम होता है। बायाँ न्युकल लोब दाएँ न्युकल लोब की अपेक्षा बड़ा होता है।दोनों न्युकल लोब श्वसन के समय साइफन (siphon) बनाते हैं। इन्हीं से मेण्टल गुहा में जल अन्दर आता है और बाहर निकलता है।
श्वसन पद्धतियाँ
(Mechanism of Respiration) Notes
पाइला में श्वसन दो प्रकार का होता है
जलीय या ब्रेकियल श्वसन (Aquatic or Branchial respiration)
- वायवीय या पल्मोनरी श्वसन (Aerial or Pulmonary respiration) |
- जलीय श्वसन या ब्रेकियल श्वसन (Aquatic or Branchial respiration)—पानी में डूबे रहने पर पाइला पानी में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग करता है। सिर तथा पाद खोल से बाहर निकल आते हैं तथा दायाँ एवं बायाँ न्युकल लोब फैलकर छिछली नाल (shallow channel) बना लेते हैं, परन्तु बायाँ न्युकल लोब और अधिक बड़ा होकर पूर्ण विकसित फनल के समान रचना बनाता है। बाएँ न्युकल लोब से जल की धारा मेण्टल गुहा में पहँचती है तथा एपीटीनिया (epitaenia) के ऊपर से होकर बेंकियल कक्ष के पिछले भाग में पहुँचती है व क्लोम को भिगोती है। यहाँ गैसों का आदान-प्रदान होता है। जल की धारा दाएँ न्युकल लोब से बाहर निकल जाती है।
टीनिडियल फिलामेन्ट की पक्ष्माभिकी-कोशिकाओं के पक्ष्मों (cilia) की गति द्वार -मु तथा मेण्टल गुहा के फर्श के ऊपर-नीचे होने से मेण्टल गुहा में जल की निरन्तर धारा बन रहती है।
- वायवीय श्वसन या पल्मोनरी श्वसन (Aeriel or Pulmonary respiration)-जब पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है या पाइला रह स्थल पर होता है तभी वायवीय श्वसन होता है। पाइला पानी की सतह पर आ जाता है तथा बाएँ न्युकल लोब से बनी नालाकार साइफन को सतह से ऊपर निकाल देता है। पल्मोनरी कक्ष फैलकर बड़ा हो जाता है तथा ब्रेकियल कक्ष से पूर्णतया अलग हो जाता है। साइफन में से होती हुई पल्मोनरी कोष में एकत्र हो जाती है। पल्मोनरी कोष के सिकुड़ने-फैलने की क्रमिक गति निश्वसन (inspiration) तथा नि:श्वसन (expiration) में सहायक होती है। –
पाइला स्थल पर होता है तब पल्मोनरी साइफन नहीं बनता तथा वायु सीधी फैले हुए न्युकल लोब से होकर पल्मोनरी कोष में भर जाती है।
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