Principal Features Advantages over full Wave Center Tap Rectifier
Principal Features Advantages over full Wave Center Tap Rectifier:-Transistor biasing circuits base bias, emitter bias, and voltage divider .bias, D.C. load line. Basic A.C. equivalent circuits, low-frequency model, small-signal amplifiers, common emitter amplifier, common collector amplifiers, and common base amplifiers, current and voltage gain, R.C. coupled amplifier, gain, frequency response, the equivalent circuit at low medium and high frequencies, feedback principles.
प्रश्न 14. पूर्ण तरंग सेतु दिष्टकारी की रचना तथा कार्य-प्रणाली समझाइए। इसके मुख्य लक्षण तथा पूर्ण तरंग केन्द्र-अंशनिष्कासित की तुलना में लाभ क्या हैं?
Explain the construction and working of a full-wave bridge rectifier. What are its principal features and advantages over a full-wave center-tap rectifier?
उत्तर : पूर्ण तरंग सेतु दिष्टकारी (Full Wave Bridge Rectifier)-सेतु दिष्टकारी का परिपथ चित्र-44 में दर्शाया गया है। इसमें चार p-n सन्धि डायोड D1 , D2 , D3 व D4 एक व्हीटस्टोन सेतु ABCD के रूप में परस्पर जुड़े होते हैं। सेतु के दो विपरीत सिरे A व C एक ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली के सिरों S1 व S2 से जुड़े होते हैं जिसकी प्राथमिक कुण्डली पर निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज (जिसका दिष्टकरण करना है) लगाया जाता है। सेतु के दूसरे विपरीत सिरों B व D के बीच लोड प्रतिरोध RL लगाया जाता है।
कार्य-प्रणाली (Working)-माना ट्रांसफॉर्मर की प्राथमिक कुण्डली के सिरों के बीच ज्यावक्रीय निवेशी वोल्टेज लगाने पर द्वितीयक कुण्डली S1S2 के सिरों के बीच प्रेरित वोल्टेज निम्नांकित है
जहाँ E0 अधिकतम ट्रांसफॉर्मर द्वितीयक वोल्टेज है। यही वोल्टेज E सेतो C के बीच आरोपित होता है। वोल्टेज E का समय t के साथ विचरण चित्र-45 (a) में दर्शाया गया है।
यह स्पष्ट है कि किसी भी क्षण धारा दो डायोडों में प्रवाहित होती है जो कि लोड प्रतिरोध RL तथा ट्रांसफॉर्मर के श्रेणीक्रम में होते हैं। अत: निवेशी वोल्टेज के धनात्मक अर्द्धचक्र के दौरान धारा स्पंद (current pulses) अग्रवत् होती हैं
शिखर उत्क्रम वोल्टेज (Peak Inverse Voltage, PIV)—चित्र-44 में जब S1 धनात्मक होता है, तब डायोड D3 धारा चालित करता है जबकि D4 नहीं करता। यदि हम लूप S1ADCS2 के लिए किरचॉफ का वोल्टेज नियम लगाएँ तथा D3 के सिरों के बीच अल्प वोल्टेज पतन को नगण्य मान लें, तब D4 के सिरों के बीच शिखर उत्क्रम वोल्टेज E होगा, अर्थात् PIV = E0 न कि 2 E0 जो कि केन्द्र-अंशनिष्कासित दिष्टकारी के लिए होता है।
सेतु दिष्टकारी के मुख्य लक्षण (Principal Features of Bridge Rectifier)— सेतु दिष्टकारी के केन्द्र-अंशनिष्कासित दिष्टकारी की तुलना में अनेक लाभ हैं
(1) ट्रांसफॉर्मर की प्राथमिक तथा द्वितीयक दोनों कुण्डलियों में धारा निवेशी वोल्टेज के पूर्ण चक्र के दौरान बहती है, अत: केन्द्र-अंशनिष्कासित दिष्टकारी परिपथ की तुलना में छोटा ट्रांसफॉर्मर प्रयुक्त किया जा सकता है।
(2) इसमें प्रयुक्त ट्रांसफॉर्मर में केन्द्र-अंशनिष्कासन नहीं होता, अतः इसमें कम लागत आती है।
(3) इसमें प्रत्येक डायोड के सिरों के बीच PIV केन्द्र-अंशनिष्कासित दिष्टकारी की तुलना में आधा होता है, अत: यह उच्च वोल्टताओं पर प्रयुक्त किया जा सकता है।
सेतु दिष्टकारी में दो हानियाँ भी हैं
(1) इसमें दो अतिरिक्त सन्धि डायोडों की आवश्यकता होती है।
(2) प्रत्यावर्ती निवेशी वोल्टेज के प्रत्येक अर्द्धचक्र में श्रेणीक्रम में जुड़े दो डायोडों में धारा ता है। अतः सेतु दिष्टकारी के आन्तरिक प्रतिरोध में वोल्टेज पतन केन्द्र-अंशनिष्कासित दिष्टकारी की तुलना में दुगुना होता है। इससे दिष्टकरण दक्षता घट जाती है तथा वो नियन्त्रण भी कम हो जाता है।