Life Cycle Of Taenia Zoology Notes

Life Cycle Of Taenia Zoology Notes

 

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प्रश्न 3 – टीनिया के जीवन-चक्र का वर्णन कीजिए। 

Describe life – cycle of Taenia. 

उत्तर –

टीनिया (फीता कृमि) का जीवन-चक्र

(Life-cycle of Taenia) Notes

टीनिया उभयलिंगी (hermaphrodite) होता है। प्रत्येक परिपक्व देहखण्ड उभयलिंगी होता है-नर एवं मादा जननांगों का एक पूर्ण सैट होता है। जननांग प्रोटेण्ड्स (protandrous) होते हैं, अर्थात् नर जननांग मादा से पहले विकसित हो जाते हैं।

 निषेचन (Fertilization)-इसमें स्व-निषेचन होता है। मैथुन क्रिया एक ही देहखण्ड में या दो खण्डों के बीच होती है। दो भिन्न खण्डों के बीच मैथुन से होने वाले निषेचन को भी पर-निषेचन कहते हैं। निषेचन के द्वारा युग्मनज (zygote) बनता है।

ओंकोस्फियर का निर्माण (Formation of onchosphere)-युग्मनज ऊटाइप म पहुँचते हैं जहाँ पीतक ग्रन्थि से स्रावित पीतक कोशिका (yolk cells) प्रत्येक युग्मक के साध आ जाती हैं। युग्मनज तथा पीतक कोशिका अब एक पतले कवच (shell) या कोरियोनिक झिल्ली में घिर जाते हैं। यह झिल्ली पीत कोशिका द्वारा स्रावित पदार्थ से बनती है। इस प्रकार बना सम्पुट (capsule) गर्भाशय में चला जाता है। आगे का परिवर्द्धन गर्भाशय में होता है।

विदलन (Cleavage)-युग्मनज में विदलन असमान होता है जिससे एक बड़ी कोशिका (megamere) और एक छोटी भ्रूण कोशिका (megamere) और एक छोटी भूर्ण कोशिका (embryonic cell) बनती है। मेगामियर क विदलन से अनेक समान कोशिकाएँ बनती हैं। भ्रूण कोशिका में विदलन से दो प्रकार की भूर्ण कोशिकाएँ बनती हैं-बड़ी कोशिकाएँ मीसोमियर्स तथा छोटी माइक्रोमियर्स। इस प्रकार युगमा से तीन प्रकार की कोशिकाएँ बनती हैं-छोटी माइक्रोमियर्स, मीसोमियर्स तथा मेगामियर्स

माइक्रोमियर्स मोरूला बनाते हैं। मोरूला के चारों ओर सबसे बाहर की ओर मेगासमयर्स का आवरण होता है। पीतक कोशिका अपने पीतक का मेगामियर्स में रूपान्तरण कर धीरे-धीरे लुप्त हो जाती है।

Life Cycle Of Taenia Zoology
Life Cycle Of Taenia Zoology

मेगामियर्स परस्पर fuse हो जाते हैं और एक बाहरी भ्रूण झिल्ली बनाते है। यह  झिल्ली शुरू में भ्रूण कोशिकाओं का पोषण करती है और अन्त में हासित हो जाता  हैं।

मीसोमियर्स एक मोटा, कठोर, क्यूटिकलयुक्त और अरीय रेखित कवच भ्रूणधर (embryophore) बनाते हैं। इस झिल्ली के नीचे एक आधारी झिल्ली होती है। मोरूला के पिछले सिरे पर तीन जोड़ी काइटिनी हुक का विकास होता है। छ: हुक वाले इस भ्रूण को हेक्साकैंथ (hexacanth) कहते हैं। हेक्साकैंथ एक जोड़ी वेधन ग्रन्थियों से युक्त होता है और इसके चारों ओर दो गोलांकुशी झिल्लियाँ होती हैं। इस अवस्था को गोलांकुश या ओंकोस्फियर कहते हैं। ओंकोस्फियर की कोरियोनिक झिल्ली नष्ट हो जाती है जिससे भ्रूणधर (embryophore) ही अब इसका बाहरी आवरण होता है।

द्वितीयक परपोषी में संक्रमण

(Infection in Secondary Host) Notes

फीता कृमि के अन्तिम हेक्साकैंथ से भरे देहखण्ड पृथक् होकर परपोषी के मल के साथ शरीर (आंत्र) से बाहर आ जाते हैं। देहखण्डों के नष्ट होने से हेक्साकैंथ स्वतन्त्र हो जाते हैं। द्वितीयक परपोषी (सूअर) मनुष्य के मल के साथ इन्हें खाकर संक्रमित हो जाता है।

द्वितीयक परपोषी के आमाशय में पहुँचकर जठर रस के द्वारा हेक्साकैंथ का भ्रूणधर तथा आधार कला नष्ट हो जाती है। क्षुद्रांत्र में क्षारीय आंत्र रस द्वारा इनकी, onchospheral Membrane भी गल जाती है। अब पित्त लवणों की उपस्थिति में हेक्साकैंथ सक्रिय हो जाता है  और आंत्र की भित्ति को छेदकर रुधिर वाहिनियों में पहुँच जाता है। अब हुक लष्ट हो जाते हैं हेक्साकैंथ अब यकृत निवाहिका शिरा से होकर यकृत में पहुंचता है। यकृत से यह ह्दय में और फिर रुधिर प्रवाह द्वारा जिह्वा, कन्धे, गर्दन, जंघा आदि की रेखित पेशियों में पहँचकर स्थापित हो जाता है और इस प्रकार प्रत्येक हेक्साकैंथ ब्लैडर वर्म या सिस्टीसर्कस में परिवर्तित जाता है।

ब्लैडर वर्म या सिस्टीसर्कस (Bladder worm)-हुकविहीन हेक्साकैंथ पोषक द्रव का अवशोषण करके वृद्धि करता है। इसकी मध्य भाग की कोशिकाओं के टूटने से एक गहिका बनती है। यह गुहिका बड़ी होती जाती है और इसमें एक तरल भर जाता है। तरल से भरे ब्लैडर की भित्ति पतली होती है।

हुकों वाले सिरों के विपरीत भित्ति मोटी होकर अन्तर्वलित (invaginated) हो जाती है। यह अन्तर्वलित भाग एक खोखली धुंडी के समान होता है, शीघ्र ही यह एक उल्टे स्कोलैक्स या प्रोस्कोलैक्स में बदल जाता है। इसमें चूषक, हुक तथा रोस्टेलम होते हैं। इस अवस्था को ब्लैडर वर्म कहते हैं। .

ब्लैडर वर्म में एक बड़ा आशय और एक स्कोलैक्स होता है। इसलिए इसे सिस्टीसर्कस भी कहते हैं। सिस्टीसर्कस का निर्माण लगभग दस सप्ताह में पूरा हो जाता है। अब यह सूअर के शरीर में निष्क्रिय जीवन व्यतीत करता है। सूअर के ऐसे मांस को मिज़ली सूअर मांस कहते है।

प्राथमिक परपोषी में संक्रमण 

(Infection in Primary host)

अधपके सूअर के मांस को खाने से ब्लैडरवर्म मनुष्य की आंत्र में पहुंच जाते है। सक्रिय हो जाते हैं। प्रोस्कोलैक्स बहिर्वलित हो जाता है और आंत्र की भित्ति से चिपक जाता है। ग्रीवा से देहखण्डों का बनना आरम्भ हो जाता है।

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