Explain Working Common Base Configuration
Explain Working Common Base Configuration:- Transistor biasing circuits base bias, emitter bias, and voltage divider .bias, D.C. load line. Basic A.C. equivalent circuits, low-frequency model, small-signal amplifiers, common emitter amplifier, common collector amplifiers, and common base amplifiers, current and voltage gain, R.C. coupled amplifier, gain, frequency response, the equivalent circuit at low medium and high frequencies, feedback principles.
प्रश्न 21. उभयनिष्ठ आधार विन्यास में p-n-p ट्रांजिस्टर की कार्य-विधि व . अभिलाक्षणिक वक्र को प्रदर्शित तथा वर्णित कीजिए।
Explain the working of common base configuration in p-n-p transistor and show its characteristics curve.
उत्तर : p-n-p ट्रांजिस्टर के उभयनिष्ठ आधार दिष्ट-धारा (स्थैतिक) अभिलाक्षणिक वक्र (Common base d.c. static characteristic curves of a p-n-p transistor)-वोल्टता के साथ धारा के परिवर्तन को निरूपित करने वाले वक्र ट्रांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्र कहलाते हैं। उभयनिष्ठ-आधार विन्यास में, ट्रांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्र दो प्रकार के होते हैं
(i) निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र (Input Characteristic Curves)-एक नियत संग्राहक-आधार वोल्टेज VCB पर, उत्सर्जक-आधार वोल्टेज VEB तथा उत्सर्जक धारा BE के बीच ग्राफ ट्रांजिस्टर का ‘निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र’ कहलाता है।
(ii) निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र (Output Characteristic Curves) नियत उत्सर्जक धारा iE पर, संग्राहक-आधार वोल्टेज VCB तथा संग्राहक-धारा iC केली ग्राफ ट्रांजिस्टर का ‘निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र’ कहलाता है।
उभयनिष्ठ-आधार विन्यास में p-n-p ट्रांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त करने के लिए परिपथ चित्र-59 के अनुसार तैयार करते हैं। उत्सर्जक को अग्र-अभिनत करने के लिए इसे एक धारा-नियन्त्रक के द्वारा बैटरी VEE के धन ध्रुव से जोड़ा गया है जिसके ऋण ध्रुव को आधार से सम्बन्धित कर दिया गया है। उत्सर्जक-आधार वोल्टता (emitter-to-base voltage) VEB को एक वोल्टमीटर से तथा उत्सर्जक-धारा (emitter current) iE को एक मिलीअमीटर mA से पढ़ा जाता है। संग्राहक को उत्क्रम-अभिनत (reverse biased) करने के लिए एक-दूसरे धारा-नियन्त्रक के द्वारा दूसरी बैटरी Vcc के ऋण ध्रुव से जोड़ा गया है जिसके धन सिरे को आधार से सम्बन्धित कर दिया गया है। संग्राहक-आधार वोल्टता (collector-to-base voltage) VCB को एक दूसरे वोल्टमीटर से तथा संग्राहक धारा (collector current) iC को एक दूसरे मिलीअमीटर mA से पढ़ा जाता है।
निवेशी (अथवा उत्सर्जक) अभिलाक्षणिक वक्र खींचने के लिए, संग्राहक-आधार वोल्टेज VCB को पहले शून्य पर रखते हैं तथ उत्सर्जक-आधार वोल्टेज VEB को शून्य से धीरे-धीरे आगे बढ़ाते हैं तथा उत्सर्जक-धारा iE का मान पढ़ते जाते हैं। VEB तथा iE बीच ग्राफ खींच लेते हैं। (चित्र-60)। इसी प्रकार एक दूसरा ग्राफ VCB को 40 वोल्ट (माना) रखकर खींच लेते हैं।
इन अभिलाक्षणिक वक्रों से निम्नलिखित दो निष्कर्ष निकलते हैं
(i) उत्सर्जक-आधार वोल्टेज VEB को धीरे-धीरे बढ़ाने पर उत्सर्जक धारा iE तेजा कलती है। इससे स्पष्ट है कि उत्सर्जक पर, एक लघु वोल्टेज सिगनल के लिए, ट्रांजिस्टर
(ii) उत्सर्जक धारा iE संग्राहक-आधार वोल्टता VCB पर लगभग अनिर्भर (independent) है।
निर्गत (अथवा संग्राहक) अभिलाक्षणिक वक्र खींचने के लिए, उत्सर्जक-धारा iE को एक उचित नियत मान पर रखकर, संग्राहक-आधार वोल्टेज VCB को शून्य से धीरे-धीरे बढ़ाते हैं तथा संगत संग्राहक धारा (collector current) iC का मान पढ़ते जाते हैं। (VCB को बदलने iE का मान स्थिर रखने के लिए VEB को बदलना पड़ता है।) VCBव IC के बीच ग्राफ खींच लेते हैं (चित्र-61)। इसी प्रकार, iE के विभिन्न निश्चित मानों के लिए अन्य ग्राफ खींच लेते हैं।
इन अभिलाक्षणिक वक्रों से निम्न तीन निष्कर्ष निकलते हैं—
(i) संग्राहक-धारा iC संग्राहक-आधार वोल्टेज VCB के साथ केवल इसके अति निम्न मानों (21 वोल्ट) पर ही बदलती है। इस क्षेत्र में ट्रांजिस्टर कभी कार्यरत नहीं होता।
(ii) जब संग्राहक-आधार वोल्टेज VCB लगभग 1-2 वोल्ट से ऊपर करने पर आधार-संग्राहक सन्धि में को विसरित होने वाले सभी आवेश-वाहक संग्राहक द्वारा एकत्रित कर लिए जाते हैं। अत: वोल्टेज VCB को और आगे बढ़ाने पर संग्राहक धारा में कोई विशेष वृद्धि नहीं होती अर्थात् अब संग्राहक धारा iC वोल्टेज VCB पर निर्भर नहीं करती; केवल उत्सर्जक धारा iE पर निर्भर करती है। ट्रांजिस्टर इसी क्षेत्र में कार्यरत होता है। इस क्षेत्र में संग्राहक-धारा, उत्सर्जक धारा से कुछ कम होती है क्योंकि कुछ आवेश-वाहक पतले आधार के भीतर कोटर-इलेक्ट्रॉन पुनः संयोजनों के कारण लुप्त हो जाते हैं।
(iii) संग्राहक-आधार वोल्टेज VCB में बहुत अधिक परिवर्तन करने पर, संग्राहक धारा iC में बहुत थोड़ा परिवर्तन होता है। इसका यह अर्थ है कि ट्रांजिस्टर का निर्गत प्रतिरोध’ बहुत ऊँचा है। इसी कारण ट्रांजिस्टर में शक्ति व वोल्टता का प्रवर्धन होता है, यद्यपि धारा में कुछ हानि होती है।
प्रश्न 23. ट्रांजिस्टर में उभयनिष्ठ आधार तथा उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यासों के लिए धारा-लाभ प्राचलों क्रमशः तथा को परिभाषित कीजिए। उनके बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
Define current gain parameters a and B for common base and common emitter configuration respectively in a transistor. Establish a relation between them.
अथवा
उभयनिष्ठ आधार विन्यास में, नियत संग्राहक-आधार वोल्टता पर, संग्राहक धारा में परिवर्तन तथा उत्सर्जक धारा में परिवर्तन के अनुपात को a.c. धाराप्रवर्धन कहते हैं। इस प्रकार,
अच्छे ट्रांजिस्टर के लिए a का मान लगभग 0.99 होता है। इसका अर्थ है कि उत्सर्जक धारा का लगभग 99% संग्राहक परिपथ में पहुँच जाता है। किसी आदर्श ट्रांजिस्टर के लिए a का मान 1 होना चाहिए।
उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में, नियत संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टता पर; संग्राहक धारा में परिवर्तन तथा आधार धारा में परिवर्तन के अनुपात को a.c. धाराप्रवर्धन B कहते हैं। इस प्रकार,
चूंकि a का मान 1 के बहुत समीप होता है, इससे (1-)का मान फलत: B काफी बड़ा होता है। यही कारण है कि उभयनिष्ठ आधार प्रव उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक में कहीं अधिक प्रवर्धन होता है। का मान बहुत कम होता है, यनिष्ठ आधार प्रवर्धक की तुलना में,