Derive Expression Stability Factor Biasing

Derive Expression Stability Factor Biasing

Derive Expression Stability Factor Biasing:- Input and output impedance, transistor as an oscillator, general discussion, and theory of Hartley oscillator only. Elements of transmission and reception, basic principles of amplitude modulation and demodulation. Principle and design of linear multimeters and their application, cathode ray oscilloscope, and its simple applications.

खण्ड-

 

प्रश्न 23. परिपथ आरेख खींचकर, विभव विभाजक ट्रांजिस्टर बायसिंगर विस्तार से समझाइए तथा इसके प्रमुख गुणों का उल्लेख कीजिए। इस बायसिंग स्थायित्व गुणक के लिए व्यंजक व्युत्पन्न कीजिए। 

Draw a circuit diagram and explain in detail the potential divider transistor biasing, giving its important properties. Derive an expression for the stability factor of the biasing.

उत्तर :                          विभव विभाजक बायसिंग अथवा सार्वत्रिक बायसिंग 

                              (Voltage Divider Biasing or Universal Biasing)

 

सर्वाधिक प्रयुक्त किया जाने वाला ट्रांजिस्टर बायसिंग परिपथ, विशेष रूप से जब लोड प्रतिरोध अल्प हो (जैसा कि ट्रांसफॉर्मर युग्मित प्रवर्धक में होता है), विभव विभाजक एवं उत्सर्जक प्रतिरोधक परिपथ है जिसे चित्र-62 में दर्शाया गया है। वोल्टता विभाजक परिपथ में एक अतिरिक्त प्रतिरोध R2 प्रयुक्त होता है। इससे बायसिंग वोल्टता तथा स्थायित्व गुणांक (S) परस्पर स्वतन्त्र हो जाते हैं तथा इस परिपथ से s का कोई भी इच्छित मान प्राप्त किया जा सकता है। इसी कारण वोल्टता विभाजक बायस सर्वाधिक प्रयुक्त बायसिंग परिपथ है।

 

परिपथ विश्लेषण (Circuit Analysis)-इस विधि में दो प्रतिरोधक R1 तथा R2 सप्लाई वोल्टता VCC से सम्बद्ध होते हैं तथा बायसिंग प्रदान करते हैं। उत्सर्जक प्रतिरोध RE से स्थायित्व प्राप्त होता है। वोल्टता-विभाजक नाम इस तथ्य से व्युत्पन्न होता है कि प्रतिरोध न तथा R2,VCC पर एक वोल्टता-विभाजक बनाते हैं। R2 पर विभवपात आधार सन्धि को अग्र बायसिंग प्रदान करता है, जबकि VCC सप्लाई संग्राहक को उत्क्रम बना करती है। इस परिपथ के स्थायित्व को निम्नलिखित प्रकार समझा जा सकता है—

 

बढ़े हुए ताप के कारण क्षरण धारा में वृद्धि के कारण यदि संग्राहक धारा iC का बढ़ता है तो RE से होकर धारा iE का मान भी बढ़ेगा। इसके परिणामस्वरूप RE विभवपतन बढ़ जाएगा जिसके कारण आधार धारा iB में कमी आ जाएगी।

 

iB (निवेशी धारा) में कमी से संग्राहक धारा iC (निर्गम धारा) कम होने लगता अतः प्रचालन बिन्दु का स्थायित्व प्राप्त होता है। निवेशी धारा पर निर्गम धारा का प्रभाव धारा फीडबैक (current feedback) कहलाता है। धारा फीडबैक के कारण उत्पन्न प्रत्या (सिगनल) लब्धि में वृद्धि को समाप्त करने के लिए प्रतिरोध RE को प्रायः एक अधिक के संधारित्र CE की सहायता से लघुपथित करते हैं जिससे कि यह RE की तुलना में अत्यन्तअल्प प्रतिरोध आरोपित करे तथा अभीष्टं आवृत्तियों पर प्रत्यावर्ती सिगनल के लिए CE से होकर एक अल्प प्रतिबाधा का पथ प्रस्तुत करे।

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स्थायित्व गुणांक (Stability Factor)-विभव-विभाजक बायसिंग परिपथ के लिए वैश्लेषिक व्यंजक, पुराने ढंग, वोल्टता विभाजक परिपथ पर थेवनिन की प्रमेय का उपयोग कर प्राप्त किया जाता है। इसके लिए हम केवल उस वोल्टता विभाजक परिपथ पर विचार करेंगे जिसमें R1 तथा R2 प्रतिरोध हैं तथा लीड A असम्बन्धित है, जैसा कि चित्र-63 (a) तथा चित्र-63 (b) में प्रदर्शित है। थेवनिन वोल्टता,

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स्पष्ट है कि RB का मान जितना कम होगा, स्थायित्व उतना ही अच्छा होगा। अतः सर्वोत्तम स्थायित्व के लिए R1 तथा R2 के मान अल्पतम रखे जाते हैं। परन्तु Q-बिन्दु को स्थिर रख R’B का मान कम करने पर पूर्ति बैटरी VCC से प्राप्त धारा बढ़ जाती है। यदि R’ B को अत्यन्त अल्प रखा जाए तो यह निवेशी सिगनल के लिए शण्ट की तरह कार्य करेगा तथा प्रवर्धक की प्रभावी लब्धि कम हो जाएगी। दूसरी ओर यदि R’B  को स्थिर रख RE का मान बढाया जाए तो VCC का मान इतना बढ़ाना चाहिए कि यह ट्रांजिस्टर को समान शात धारा (quiescent current) पर प्रचालित कर सके। दोनों स्थितियों में बढ़ी हुई शक्ति के व्यय पर स्थायित्व का मान बढ़ जाएगा। यथार्थ में i के दो चरम मानों में से किसी बीच के मान को लिया जाता है।

 

वोल्टता विभाजक बायसिंग परिपथ के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं—

(1) संग्राहक धारा का मान संग्राहक-आधार-क्षरण धारा iCBO के मान तक कम किया जा सकता है।

(2) उचित स्थायित्व गुणांक के लिए विभव विभाजक प्रतिरोधों के किसी भी उचित संयोग का चयन किया जा सकता है।

(3) केवल एक दिष्टधारा सप्लाई बैटरी की ही आवश्यकता होती है।

(4) परिपथ से प्रचालन बिन्दु की स्थायी स्थिति प्राप्त होती है।


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