Transistor Common Emitter Configuration
Transistor Common Emitter Configuration:-Transistor biasing circuits base bias, emitter bias, and voltage divider .bias, D.C. load line. Basic A.C. equivalent circuits, low-frequency model, small-signal amplifiers, common emitter amplifier, common collector amplifiers, and common base amplifiers, current and voltage gain, R.C. coupled amplifier, gain, frequency response, the equivalent circuit at low medium and high frequencies, feedback principles.
प्रश्न 20. उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में n-p-n ट्रांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्र को प्रदर्शित तथा वर्णित कीजिए।
Represent and describe characteristic curves of n-p-n transistor in common emitter configuration:
उत्तर : उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास मेंn-p-n ट्रांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्र— किसी ट्रांजिस्टर के उत्सर्जक को भू-सम्पर्कित, आधार को निवेशी (input) टर्मिनल तथा संग्राहक को निर्गत (output) टर्मिनल बनाते हुए, वोल्टेज तथा धारा के बीच प्राप्त किए गए ग्राफ, ट्रांजिस्टर के उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में अभिलाक्षणिक वक्र कहलाते हैं।
उभयनिष्ठ उत्सर्जक अभिलाक्षणिक वक्र दो प्रकार के होते हैं
(i) निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र— एक निश्चित संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टेज VCE पर, आधार-उत्सर्जक वोल्टेज VBE तथा आधार धारा iB के बीच ग्राफ को ट्रांजिस्टर का ‘निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र‘ कहते हैं।
संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टता VCE के दो नियंत मानों VCE = 1 वोल्ट तथा VCE = 10 वोल्ट के लिए ऐसे दो अभिलाक्षणिक वक्र अग्रांकित चित्र-57 में प्रदर्शित किए गए हैं
व्याख्या— (i) जब तक आधार-उत्सर्जक वोल्टेज VBE विभव प्राचीर (barrier : voltage, ~0.3V) से कम रहता है, आधार धारा iB लगभग शून्य रहती है। जैसे ही VBE, विभव प्राचीर से अधिक हो जाता है, आधार धारा पहले धीरे-धीरे तथा फिर तेजी से बढ़ती है। वक्र का यह भाग अग्र-अभिनत डायोड के वक्र अभिलाक्षणिक वक्र के समान है।
(ii) निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टेज VCE पर बहुत थोडा निर्भर करते हैं।
ट्रांजिस्टर का निवेशी प्रतिरोध (input resistance) Rin, आधार-उत्सर्जक वोल्टेज में परिवर्तन तथा आधार धारा में संगत परिवर्तन का अनुपात होता है—
चूँकि निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र अरेखीय (non-linear) है, प्रतिरोध Rin परिवर्ती है। वक्र के किसी बिन्दु पर, Rin का मान उस बिन्दु पर वक्र के ढाल (slope) के बराबर होता है, तथा यह किलोओम (k) की कोटि का होता है।
(ii) निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र—एक निश्चित आधार धारा iB पर, संग्राहक उत्सर्जक वोल्टेज VCE तथा संग्राहक धारा iC के बीच ग्राफ को ट्रांजिस्टर का ‘निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र‘ कहते हैं।
संग्राहक धारा के कुछ नियत मानों (iB = 0, 25uA, 50uA, 75uA, 100uA) के लिए ऐसे पाँच अभिलाक्षणिक वक्र निम्न चित्र में प्रदर्शित किए गए हैं—
व्याख्या— (i) संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टेज VCE के केवल बहुत निम्न मानों पर ही (0 व लगभग 1 वोल्ट के बीच), VCE के बदलने पर संग्राहक धारा बहुत तेजी से बरलती है। इस स्थिति में वक्र का भाग लगभग ऊर्ध्वाधर होता है। VcE का वह मान जहा तक संग्राहक धारा बदलती है, ‘जानु वोल्टेज‘ (knee voltage) कहलाता है।
(ii) VCEके जान वोल्टेज से अधिक होने पर, संग्राहक धारा iC लगभग नियत रहती है। VCE के साथ बहुत ही धीरे-धीरे तथा रेखीय रूप से (linearly) बदलती है।
अभिलाक्षणिक वक्र का यह रेखीय भाग श्रव्य-आवृत्ति प्रवर्धक परिपथों में अविकृत (undistorted) निर्गत सिगनल प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त होता है।
(iii) एक दिए गए संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टेज VCE के लिए, संग्राहक धारा iB आधार धारा in के बढ़ने पर बढ़ती है।
(iv) जब आधार धारा iB शून्य है, तब भी क्षीण संग्राहक धारा विद्यमान रहती है। यह धारा अर्द्धचालकों की नैज चालकता (intrinsic conduction) के कारण होती है तथा ताप पर बहुत निर्भर करती है।
एक नियत आधार धारा पर (निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र के रेखीय भाग में), ट्रांजिस्टर के संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टेज VCE में परिवर्तन तथा संग्राहक धारा ic में संगत परिवर्तन के अनुपात को ट्रांजिस्टर का निर्गत प्रतिरोध कहते हैं।
धारा-लाभ (Current-Gain) B ज्ञात करना-इन वक्रों से यह भी पता चलता है कि उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में धारा प्रवर्धन होता है। निवेशी धारा iB माइक्रोएम्पियर (uA) में तथा निर्गत धारा iC मिलीऐम्पियर (mA) में नापी जाती है। उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में, एक निश्चित संग्राहक उत्सर्जक वोल्टता पर, संग्राहक धारा में परिवर्तन तथा आधार धारा में परिवर्तन के अनुपात को ‘धारा-प्रवर्धन’ कहते हैं तथा B से प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार,
B का मान निर्गत अभिलाक्षणिक वक्रों की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है। 8 का मान लगभग 50 होता है।