Discovery Of Viruses BSc 1st Year Botany Question Answer
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प्रश्न 10 – विषाणुओं की खोज, गुण, प्रकृति तथा संचरण पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर – विषाणु ऐसे सूक्ष्म अणु हैं, जो कि बहुत-सी बीमारियाँ फैलाते हैं। ये केवल जीवित ऊतकों के अन्दर ही प्रजनन कर सकते हैं। I.
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विषाणुओं की खोज (Discovery of Viruses)
कुछ विषाणु जैसे चेचक के विषाणु का पता मानव को 1700 B.C. में भी था।
चार्ल्स एक्लीव ने 1576 A.D. में टुलिप के फूल व पत्तियों के रंग में अन्तर देखा।
ए० मायस (1886) ने बताया कि तम्बाकू का मोजैक एक संक्रामक रोग है।
स्मिथ (1891) ने भी दिखाया कि आडू का पीलापन एक संक्रामक रोग है।
आइवनोवस्की (1892) ने दिखाया कि तम्बाकू का मोजैक काफी संक्रामक रोग है क्योंकि यह जीवाणु-प्रूफ फिल्टर पेपर के अन्दर से भी होकर गुजर जाता है। इसलिए यह जीवाणुओं से भी छोटा होता है।
बीजेरिन्क (1898) ने आइवनोवस्की की बात को सही बताया तथा ‘Contagium] Vivum Fluidium’ नामक वाद (Thought) दिया।
ट्वार्ट (1915) ने सर्वप्रथम बैक्टीरियोफेज की प्रकृति के बारे में बताया।
स्टैनले (1935) ने T.M.V. को क्रिस्टलीकृत किया तथा उसकी रासायनिक प्रकृति के बारे में बताया। इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बाउडेन (1936) आदि ने बताया कि विषाणु प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल के बने होते हैं।
गियर्स तथा स्कैम (1956) ने बताया कि अकेले न्यूक्लिक अम्ल भी पौधों में बीमारी पैदा कर सकते हैं।
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विषाणुओं के मुख्य गुण (Main Characters of Viruses)
विषाणुओं में जीव तथा निर्जीव दोनों ही प्रकार के गुण मिलते हैं। इनके जैविक गुण निम्नवत् हैं
(1) इनमें आनुवंशिक पदार्थ की पुनरावृत्ति (replication of genetic material) ___ होती है।
(2) इनमें एण्टीजेनिक (antigenic) गुण होते हैं।
(3) आनुवंशिक पदार्थ RNA या DNA होता है। केवल एक ही प्रकार का न्यूक्लिक अम्ल मिलता है। न्यूक्लिक अम्ल double helix or single helix का हो सकता है।
(4) इनका गुणन (multiplication) केवल जीवित कोशिकाओं में होता है। इसके लिए ये परपोषी की कोशिका का उपयोग करते हैं।
(5) विषाणुओं में परपोषी विशिष्टता (host specificity) मिलती है।
(6) इसमें म्यूटेन्ट फोर्म (mutant form) मिलते हैं।
(7) इन पर ताप, रासायनिक पदार्थों, विकिरण आदि का प्रभाव पड़ता है। विषाणुओं की निर्जीव पदार्थों से भी समानता होती है, जो निम्न प्रकार है (1) इनका क्रिस्टलीकरण किया जा सकता है।
(2) परपोषी कोशिका के बाहर विषाणु अक्रिय (inert) होते हैं।
(3) इनमें कोशिका भित्ति तथा कोशिका कला नहीं होती है।
(4) इनमें श्वसन आदि का अभाव होता है।
(5) आनुवंशिक पदार्थ की पुनरावृत्ति तथा अपने संवर्धन के लिए ये परपोषी पर आश्रित
III. विषाणुओं की प्रकृति (Nature of Viruses)
इसके उत्तर के लिए खण्ड ‘अ’ लघु उत्तरीय प्रश्न-2 देखें।
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विषाणु का संचरण (Transmission of Virus)
विषाणु पूर्ण परजीवी होते हैं तथा दूसरे जीवित पदार्थों के अन्दर ही पाए जाते हैं। इनका संचरण निम्नलिखित विधियों से होता है
- यान्त्रिकी संचरण से (By Mechanical Transmission)-विषाणु दूसरे पौधों में सामान्य रूप से छूने से या घिसने से चले जाते हैं। खेतों में काम आने वाले औजारों से इनका संचरण बहुत ही आसानी से होता है।
- पौधों के वर्धी प्रजनन से (By Vegetatively Propagated Plant Parts) आलू, केला, गन्ना आदि फसलों के विषाणु सामान्य रूप से इनके वर्धी प्रजनन से ही जाते हैं। इन फसलों की बुवाई के लिए बीज के रूप में इनके भागों को प्रयोग में लाया जाता है, यदि ये पाणु की बीमारी से पीड़ित हैं तो ये विषाणु नई पैदा होने वाली फसल में भी हस्तान्तरित हो
जाते हैं।
- बीज तथा भूमि से (Through Seeds and Soil)-जई, गेहूँ आदि के विषाण बीजों के द्वारा या भूमि के द्वारा भी संचरित हो जाते हैं। 4. परागकणों द्वारा (Through Pollen Grains)-विषाणुयुक्त परागकण जब स्वस्थ पौधों के सम्पर्क में आते हैं तो स्वस्थ पौधों में इनका संचरण हो जाता है।
- कवकों तथा निमेटोड्स के द्वारा (Through Fungi and Nematodes) कवकों तथा निमेटोड्स के द्वारा भी बहुत-से विषाणुओं का संचरण होता है।
- कीटों द्वारा (Through Insects)-मधुमक्खी, एफिड, मॉथ, तितली, मक्खी तथा हजारों तरह के अन्य कीटों के द्वारा विषाणुओं का संचरण बहुत ही आसानी से हो जाता है।
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