BSC Organic Chemistry Long Question Answer

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BSC Organic Chemistry Long Question Answer:-

खण्ड ‘स’ : विस्तृत उत्तरीप्रश्न?

Q. 7. त्रिविम समावयवता क्या है? प्रकाशिक समावयवता से आप क्या है? लैक्टिक अम्ल तथा टार्टरिक अम्ल की प्रकाशिक समावयवता की विवेचना कीजिए।

अथवा लैक्टिक अम्ल तथा टार्टरिक अम्ल के उदाहरण लेते हुए प्रकाशिक समावयवता की विस्तृत विवेचना कीजिए।

अथवा किरैलिटि क्या है? दो असमान कार्बन परमाणुओं युक्त यौगिकों में प्रकाशित समावयवता स्पष्ट कीजिए।

 

उत्तर : त्रिविम समावयवता- दो या दो से अधिक ऐसे यौगिक जिनके अणुसूत्र एवं संरचना सूत्र समान होते हैं, परन्तु अन्तराकाश में उनके परमाणुओं की व्यवस्था भिन्न होती है, त्रिविम समावयवी कहलाते हैं और यह घटना त्रिविम समावयवता कहलाती है।

प्रकाशिक समावयवता

ऐसे यौगिक जिनके भौतिक तथा रासायनिक गुण समान हैं, परन्तु जिनका व्यवहार ध्रुवित प्रकाश के प्रति भिन्न होता है, प्रकाशिक समावयवी कहलाते हैं और यह घटना प्रकाशिक समावयवता कहलाती है।

  • वे पदार्थ जो ध्रुवित प्रकाश के तल को दायीं ओर घुमाते हैं, दक्षिणावर्त या d-रूप या (+) रूप कहलाते हैं।
  • वे पदार्थ जो ध्रुवित प्रकाश के तल को बायीं ओर घुमाते हैं, वामावर्त या j-रूप या (-) रूप कहलाते हैं।
  • ऐसे पदार्थ जो ध्रुवित प्रकाश के तल को नहीं घुमाते, वे ध्रुवण अघूर्णक (मीसो रेसिमिक) कहलाते हैं।

किसी भी यौगिक के d– व J-रूप बिम्ब-प्रतिबिम्ब सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं तथा इन्हें प्रतिबिम्बरूपी कहते हैं।

किसी पदार्थ की ध्रुवित प्रकाश के तल को घुमाने की शक्ति विशिष्ट घूर्णन के रूप में पोलेरीमीटर के द्वारा ज्ञात की जाती है। घूर्णन की मात्रा निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है

  • यौगिक की प्रकृति
  • विलायक की प्रकृति
  • विलयन की सान्द्रता
  • प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्घ्य
  • विलयन का ताप
  • परत की मोटाई जिससे ध्रुवित प्रकाश गुजरता है।

किसी भी यौगिक के प्रकाशिक घूर्णक होने के लिए यह आवश्यक है कि उसे असममित कार्बन परमाणु उपस्थित हो अर्थात् ऐसा कार्बन परमाणु जिसकी चारों संयोजकता चार भिन्न-भिन्न परमाणुओं या समूहों के द्वारा सन्तुष्ट हों; जैसे- .

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वाण्ट हॉफ के अनुसार, किसी भी यौगिक के द्वारा प्रदर्शित प्रकाशिक समावयवी यौगिकों की संख्या 20 होती है, जहाँ n भिन्न असममित कार्बन परमाणुओं की संख्या है।

किरैलिटी प्रतिबिम्बरूपों (enantiomers) की संरचना में अन्तर घूर्णकता से पता चलता है—एक वामावर्त होगा तो दूसरा दक्षिणावर्त होगा। जब कोई अणु अपने दर्पण प्रतिबिम्ब पर अध्यारोपित (superimpose) नहीं किया जा सकता है तब उस अणु में किरैलिटी होती है। किरैलिटी का अर्थ होता है घूर्णकता। इसे सम्पूर्ण विन्यास के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। किरैलिटी असममित का समानार्थी है। किरैल का अर्थ होता है वामावर्त या दक्षिणावत होना इसलिए किरैल केन्द्र का अर्थ हुआ कि वह वामावर्त या दक्षिणावर्त हो सकता है। जब अणु अपने दर्पण प्रतिबिम्ब पर अध्यारोपित हो जाता है तथा उसमें घूर्णकता नहीं होती है| अकिरैल (achiral) अणु कहा जाता है, इसलिए ध्रुवण घूर्णकता (optical activity) एक या एक से अधिक किरैल (chiral) केन्द्रों के कारण होती है। किरैल कार्बन को अ कार्बन को असममित कार्बन भी कहते हैं।

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किरैल अणु, दर्पण प्रतिबिम्ब होते हैं परन्तु अध्यारोपित नहीं होते हैं जबकि अकिरैल अणु, पण प्रतिबिम्ब होने के साथ-साथ अध्यारोपित भी होते हैं।

 

प्रकाशिक घूर्णकता का स्पष्टीकरण ।

वाण्ट हॉफ तथा ली बेल के अनुसार कार्बन की चार संयोजकताएँ एक चतुष्फलक के चार कोनों की ओर निर्देशित रहती हैं जिसके केन्द्र में कार्बन परमाणु है। किन्हीं दो संयोजी बन्धों के बीच का कोण 109° 28′ होता है। यदि ऐसे कार्बन परमाणु से चार भिन्न परमाणु या समूह जुड़े हों तो अन्तराकाश में निम्नलिखित दो प्रबन्ध सम्भव हैं—

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ये दोनों प्रबन्ध अध्यारोपित नहीं होते तथा बिम्ब-प्रतिबिम्ब सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं। अतः ऐसे यौगिक जिनमें असममित कार्बन परमाणु होता है, प्रकाशिक समावयवता प्रदर्शित करते हैं। दूसरी ओर कुछ ऐसे यौगिक ज्ञात हैं जिनमें दो या अधिक असममित कार्बन परमाणु होते हैं, परन्तु फिर भी ये प्रकाशिक अघूर्णक हैं। अत: मात्र असममित कार्बन परमाणु की उपस्थिति ही यौगिक को प्रकाशिक घूर्णक बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है अपितु यौगिक पूर्ण रूप असममित होना चाहिए। यदि यौगिक में सममित तल या सममित केन्द्र होता है तो यौगिक तरिक प्रतिकार के कारण प्रकाशिक अघूर्णक हो जाता है।

सममित तल एक ऐसा काल्पनिक तल है जो कि अणु को इस प्रकार से बाँटता है कि भाग एक-दूसरे का बिम्ब-प्रतिबिम्ब होता है।

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सममित केन्द्र अणु में एक ऐसा काल्पनिक बिन्दु है जिससे किसी भी समूह को मिलाकर लाइन को उतना ही आगे बढ़ाने पर यह मूल समूह के बिम्ब-प्रतिबिम्ब से मिलता है।

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  1. लैक्टिक अम्ल की प्रकाशिक समावयवता

लैक्टिक अम्ल (एक असममित कार्बन परमाणु युक्त यौगिक) समावयवता- लैक्टिक अम्ल (α-हाइड्रॉक्सी प्रोपिऑनिक अम्ल) का CH3-C+H(OH)COOH है, इसमें केवल एक असममित कार्बन परमाणु होता है। यह कार्बन परमाणु चार भिन्न-भिन्न समूहों, –CH3,−H, −OH तथा −COOH से जुड़ा होता है। अतः इस अणु के दो विन्यास सम्भव हैं−

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इनको निम्न तलीय चित्रों की सहायता से भी प्रदर्शित कर सकते हैं−

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विन्यास (I) तथा (II) एक-दूसरे से परस्पर वस्तु (object) और प्रतिबिम्ब (image) के रूप में सम्बन्धित हैं। इन दोनों को बगैर उल्टे एक-दूसर के उपर अध्यारोपित (superimpose) नहीं कर सकते हैं। अतः यह दोनों विन्यास पृथक-पृथक समन्वय को प्रदर्शित करते हैं। उपर्युक्त में यह मान लेने पर कि घूर्णन बल (force of rotation) H से OH की और किसी कम अणु भार वाले समूह (-CH3) के रास्ते से कार्यरत है तो एक रूप d—या (+) तथा दूसरा j—या (-) होगा। वास्तव में लैक्टिक अम्ल के तीन रूप ज्ञात हैं

 

  1. दक्षिण ध्रुवण घूर्णक रूपइसमें ध्रुवित प्रकाश की दिशा को दायीं ओर घुमाने र क्षमता होती है, अतः इसको J – या (+) रूप कहते हैं। अतः विन्यास (I), d-रूप है।
  2. बायाँ ध्रुवण घूर्णक रूप इसमें ध्रुवित प्रकाश की दिशा को बायीं ओर घुमाने की क्षमता होती है। इसको 1-रूप कहते हैं। अत: विन्यास (II), J रूप है।
  • dl-या (±) या रेसिमिक मिश्रण यह d-तथा J –रूपों का समान मात्राओं का मिश्रण होता है। यह बाह्य सन्तुलन (external compensation) के कारण से ध्रुवण की अघूर्णक (optically inactive) होता है। इसको dl– या (±) या रेसिमिक मिश्रण कहते हैं।

वास्तव में लैक्टिक अम्ल के दो ही प्रतिबिम्ब रूप (enantiomorphs or ‘enantiomers or antimers) होते हैं। तीसरा रूप तो दोनों प्रतिबिम्ब रूपों का सममात्रिक (समान आण्विक) मिश्रण है जिसमें एक रूप दूसरे रूप के घूर्णन प्रभाव को नष्ट कर देता है। यदि लैक्टिक अम्ल को HI के द्वारा प्रोपिऑनिक अम्ल में अपचयित कर दिया जाए तो इसके अणु की असममिती (asymmetry) नष्ट हो जाती है और इसकी ध्रुवण घूर्णकता पूर्णतया समाप्त हो जाती है। प्रोपिऑनिक अम्ल को पुन: लैक्टिक अम्ल में बदलने पर dl-मिश्रण प्राप्त । हो जाता है जिसको विशेष विधियों से d– तथा J-में पृथक् कर सकते हैं। इस क्रिया को पुनः पृथक्कीकरण या वियोजन (resolution) कहते हैं।

 

सारणी 1.2 : लैक्टिक अम्ल के विभिन्न रूपों में अन्तर

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  1. टाटरीक अम्ल (दो असममित कार्बन परमाणु युक्त यौगिक) की प्रकाशिक समावयवता

टाटरीक अम्ल के कार्बनिक अणु में दो असममित कार्बन परमाणु अर्थात् दो समान कन्द्र विद्यमान हैं (जो चिह्न * द्वारा व्यक्त हैं)। प्रत्येक असममित कार्बन परमाणु के साथ चार भिन्न-भिन्न समूह –OH, -H, -COOH तथा – CHOH-COOH समूह जुड़े हुए हैं।

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कार्बन परमाणु की चतुष्फलकीय (tetrahedral) प्रकृति के कारण टार्टरिक अली विद्यमान विभिन्न समूहों की अवकाश (spatial) व्यवस्था या विन्यास (configuration) को चार प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है।

इसकी संरचनाओं में संरचनाएँ (I) व (II) अध्यारोपित न होने वाले प्रतिबिम्ब रूप (enantiomers) हैं। ये दो संरचनाएँ असममित हैं। ये दोनों संरचनाएँ ध्रुवित प्रकाश के तलक प्रति भिन्न-भिन्न व्यवहार करती हैं जिसके कारण ये दोनों प्रकाश सक्रिय समावयव हैं. जबकि संरचना (III) सममित है क्योंकि इसमें अणु को दो समान भागों में विभाजित किया जा सकता है परन्तु यह संरचना ध्रवित प्रकाश के प्रति निष्क्रिय है, अर्थात् यह ध्रवण अपर्णा (optical inactive) है। इसे मेसो समावयवी कहते हैं। इस समावयवी के अणु में ऊपरी आधे भाग का घूर्णन उसके निचले आधे भाग के विपरीत दिशा में घूर्णन से पूर्ण रूप से सन्तुलित हो जाता है, इस कारण यह समावयवी आन्तरिक प्रतिकारक के कारण ध्रुवण अघूर्णक होता है। इन तीन समावयवी रूपों के अतिरिक्त टार्टरिक अम्ल में रेसिमिक रूप भी पाया जाता है जो d-टार्टरिक अम्ल तथा J-टार्टरिक अम्ल का समअणुक मिश्रण होता है। यह भी ध्रुवण अघूर्णक होता है यद्यपि यह बाह्य सन्तुलन (external compensation) के कारण होता है। अत: टार्टरिक अम्ल के चारों रूप ध्रुवित प्रकाश के प्रति निम्न प्रकार से अलग-अलग व्यवहार करते हैं।

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  • टार्टरिक अम्ल का वह रूप जो ध्रुवित प्रकाश के तल को दायीं ओर घमाता है उस प्रकाश सक्रिय रूप को d-या (+) टार्टरिक अम्ल कहते हैं। इसका गलनांक 170°C होता है। यह प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त टार्टरिक अम्ल है।
  • वह रूप जो ध्रुवित प्रकाश के तल को बायीं ओर घुमाता है उस प्रकाश सक्रिय को J– या (-) टार्टरिक अम्ल कहते हैं इसका गलनांक भी 170° C होता है। इसको रेसिमिक अम्ल वियोजन (resolution) से प्राप्त करते हैं।
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  • वह रूप जो ध्रुवित प्रकाश के तल के प्रति ध्रुवण अघूर्णक होता है उसमें आन्तरिक प्रतिकारकों के कारण ऊपरी भाग का ध्रुवण निचले भाग के घूर्णन द्वारा सन्तुलित हो जाता है। इस रूप को मेसो टार्टरिक अम्ल कहते हैं। इस रूप को संश्लेषण द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसका गलनांक लगभग 140°C होता है।
  • d तथा J-टार्टरिक अम्ल का समअणुक मिश्रण ध्रुवण अघूर्णक होता है। इस मिश्रण को बाह्य प्रतिकारकों के कारण रेसिमिक मिश्रण कहते हैं। यह d व J-टार्टरिक अम्ल के रूपों में वियोजित किया जा सकता है तथा इसको संश्लेषण द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसका गलनांक 206°C होता है।
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III. दो असमान असममित कार्बन युक्त यौगिक

वे यौगिक जिनमें एक असममित कार्बन पर संलग्न परमाणुओं या परमाणु समूहों का सेट (set) दूसरे कार्बन पर संलग्न परमाणुओं या समूहों के सेट से भिन्न हो, उनकी इस वर्ग के यौगिकों में गिनती करते हैं। उदाहरण α−क्लोरो, α−हाइड्रॉक्सी सक्सिनिक अम्ल; 2, 3-डाइब्रोमो ब्यूटेनोइक अम्ल; 2, 3-डाइक्लोरो पेन्टेन; 2-क्लोरो-3-हाइड्रॉक्सी ब्यूटेनोइक अम्ल।

दो असमान असममित कार्बन परमाणु युक्त यौगिक चार समावयवी रूपों (2n) में पाए जाते हैं। इनमें चारों समावयव ही ध्रुवण घूर्णक होते हैं जिनमें दो वाम ध्रुवण घूर्णक एवं दो दक्षिण ध्रुवण घूर्णक होते हैं। इनमें दो युग्म प्रतिबिम्ब रूप पाए जाते हैं। प्रत्येक युग्म में एक दक्षिण ध्रुवण घूर्णक एवं एक वाम ध्रुवण घूर्णक पाया जाता है।

इन यौगिकों में मेसो समावयव नहीं होता। उदाहरणार्थ-a-क्लोरो-d’-हाइड्रॉक्सी सक्सिनिक अम्ल के चार समावयव निम्न प्रकार हैं—

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