BSc 2nd Year Botany V Cytology Genetics Evolution And Ecology Part B Notes :-
खण्ड “स’
प्रश्न 1 – जीन विनिमय अथवा क्रॉसिंग-ओवर पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – जीन विनिमय अथवा क्रॉसिंग-ओवर
(Crossing-over)
गैमीट्स की रचना के समय एक homologous जोड़े के दोनों क्रोमैटिड्स विभिन्न स्थानों पर एक-दूसरे के चारों ओर twist करते प्रतीत होते हैं। इस प्रक्रिया में ये अपने segment का exchange करते हैं जिन पर जीन्स भी linked रहते हैं। एक जोड़े के क्रोमैटिड्स के इस प्रकार के twisting को क्रॉसिंग-ओवर कहते हैं। Twisting के समय क्रोमैटिड्स के सदस्य अलग-अलग ऐसी जगहों से टूट जाते हैं जहाँ कि लिंकेज की शक्ति कम होती है अथवा लिंकेज कमजोर होती है। एक क्रोमैटिड के इस प्रकार के टूटे हुए भाग फिर दूसरे क्रोमैटिड के टूटे हुए भागों से जुड़ते हैं और दोनों क्रोमैटिड्स के जुड़े हुए भाग फिर स्वतन्त्र रूप से कार्य करने लगते हैं।
क्रॉसिंग-ओवर दो प्रकार के होते हैं___
- सोमैटिक अथवा सूत्री क्रॉसिंग-ओवर (Somatic or Mitotic Crossingover)-सूत्री विभाजन के समय इस प्रकार का क्रॉसिंग-ओवर सोमैटिक कोशिकाओं के गुणसूत्रों में होता है। इस प्रकार का क्रॉसिंग-ओवर बहुत कम होता है तथा इसका कोई आनुवंशिक महत्त्व नहीं होता है।
- जर्मिनल अथवा अर्द्धसूत्री क्रॉसिंग-ओवर (Germinal or Meiotic Crossing-over)-अर्द्धसूत्री विभाजन के समय इस प्रकार का क्रॉसिंग-ओवर जर्मिनल कोशिकाओं में होता है। इस प्रकार का क्रॉसिंग-ओवर बहुत अधिक होता है तथा इसका आनुवंशिकी में विशेष महत्त्व होता है। प्राणियों में विभिन्नताएँ इसी के कारण आती हैं।
क्रॉसिंग-ओवर की प्रक्रिया (Mechanism of Crossing-over)
क्रॉसिंग-ओवर के कारण गुणसूत्री भागों का exchange गुणसूत्रों की tetrad अवस्था में होता है। अर्द्धसूत्री विभाजन की prophase अवस्था के समय homologous गुणसूत्र एक-दूसरे के निकट आते हैं और इस प्रकार दोनों के बीच pairing (synapsis) होता है। Synapsis इस प्रकार होता है कि गुणसूत्र के एक ही प्रकार के भाग एक-दूसरे के निकट पड़े रहते हैं एवं ये शायद allelic जीन्स के आपसी खिंचाव के कारण पास-पास आते हैं। Homologous गुणसूत्र के जोड़ों को bivalents कहते हैं। पैकीटीन अवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक bivalent के दोनों क्रोमोसोम लम्बाई में split होते हैं एवं इस प्रकार दो एक ही प्रकार के sister क्रोमैटिड का निर्माण होता है। इस प्रकार बना हुआ ऐसा bivalent, जिसमें चार क्रोमैटिड होते हैं, tetrad कहलाता है। क्रॉसिंग-ओवर के समय endonuclease नामक एन्जाइम के कारण दोनों non-sister क्रोमैटिड पहले टूट जाते हैं। इसके बाद दोनों विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रीय भागों का fusion, ligase नामक एन्जाइम के कारण होता है। दोनों क्रोमैटिड्स के क्रॉसिंग को chiasma formation कहते हैं। इस प्रकार क्रॉसिंग-ओवर की प्रक्रिया में क्रोमैटिड्स के भागों का टूटना, उनका transposition एवं उनका fusion
मादा सफेद आँख वाली (w) केवल तभी हो सकती है जब दोनों ‘X’ गुणसूत्र पर म्यूटेन्ट मिलेगा। जब हेटेरोजाइगस मादा (wt) का क्रॉस सफेद आँख वाले नर (w) से कराते हैं, तब सफेद आँख वाली मादा मिलती है (चित्र)।
Y सहलग्नी वंशागति (Y-linked inheritance)-नर में अधिकांश लिंग सहलानी जीन ‘X’ गुणसूत्र पर मिलते हैं, परन्तु कुछ जीन ‘Y’ गुणसूत्र पर भी मिलते हैं। इन्हें डोलेन्डिक जीन (holandric gene) कहते हैं। ये जीन पिता से पुत्र में सीधे स्थानान्तरित होते हैं।
“डोसोफिला में ‘Y’ गुणसूत्र का अधिकांश भाग हेटरोक्रोमैटिन होता है। मादा में दो ‘X’ गणसत्र होने से लिंग सहलग्नी वंशागति ऑटोसोम के समान होती है, जबकि नर में एक ‘X’ व एक Y गुणसूत्र होने से लिंग गुणसूत्रों पर उपस्थित जीन अभिव्यक्त होते हैं।
प्रश्न 5 – लिंग गुणसूत्र किसे कहते हैं? इनकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर – जीव की कोशिका में दो प्रकार के गुणसूत्र मिलते हैं
(a) ऑटोसोम (Autosome), (b) एलोसोम (Allosome)|
लिंग गुणसूत्र
(Sex Chromosome) –
एलोसोम को लिंग गुणसूत्र (sex chromosome) भी कहते हैं जो बहुत अधिक आवश्यक होता है। जीव में लिंग निर्धारण (sex determination) के लिए लिंग गुणसूत्र का होना आवश्यक है। जब लिंग गुणसूत्र पर उपस्थित विभिन्न लक्षणों को नियन्त्रित करने वाली जीन उपस्थित होती है, तब उसे लिंग सहलग्नता (sex linkage) कहते हैं। लिंग गुणसूत्र दोनों प्रकार की आकारिकी में समान लिंगों के जीव में समान हों, ऐसा आवश्यक नहीं होता है। लिंग गुणसूत्र पर उपस्थित लक्षण लिंग सहलग्नी वंशागति (sex linked inheritance) के विभिन्न स्वरूप (patterns) प्रस्तुत करते हैं। –
- हर्माफ्रोडाइट अथवा उभयलिंगी (Hermaphrodite)-पादपों में सामान्यत: नर व मादा जनन अंग. एक ही पुष्प में मिलते हैं। इस स्थिति को हर्माफ्रोडाइट कहते हैं।
- मोनोशियस अथवा उभयलिंगाश्रयी (Monoecious)-नर व मादा पुष्प एक ही पादप पर मिलते हैं, तब उभयलिंगाश्रयी कहलाते हैं।
- डायोशियस अथवा एकलिंगाश्रयी (Dioecious) नर व मादा जीव अलग-अलग होते हैं।
नर में नर जननांग (male gonads) तथा मादा में अण्डाशय (ovaries) अथवा मादा जननांग (female gonads) मिलते हैं। इस प्रकार के पृथक्करण (separation) को गानाकोरिस्म (gonochorism) कहते हैं। जनन अंगों व जनन कोशिकाओं में भिन्नता को प्राथमिक लैंगिक लक्षण (primary sexual character) कहते हैं।
नर व मादा के कायिक व आकारिकीय विभिन्नता को द्वितीयक लैंगिक लक्षण (secondary sexual character) कहते हैं।
नर व मादा के मध्य इस प्रकार के आण्विक (molecular), आकारिकीय morphological), कार्यिकी (physiological) व व्यावहारिक (behavioural) विभेदन “सक्सुअल डाइमॉर्फिज्म (sexual dimorphism) कहते हैं।
आनुवंशिक रूप से नियन्त्रित लिंग निर्धारण तकनीक को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा गया है-
(i) लिंग गुणसूत्र तकनीक अथवा हेटरोगैमेसिस
(ii) जीनिक सन्तुलन तकनीक
(iii) नर हेप्लॉइडी अथवा हेप्लोडिप्लॉइडी तकनीक
(iv) एकल जीन प्रभाव।
लिंग गुणसूत्र तकनीक (हेटरोगैमेसिस) [Sex Chromosome Mechanism (Heterogamesis)]- नर व मादा जीवों में सेक्सुअल डाइमॉर्फिज्म (sexual dimorphism) के अतिरिक्त गुणसूत्रों में भी भिन्नता मिलती है। हेन्किंग (Henking) ने स्क्वाश बग (पायरोकोरिस) में शुक्राणुजनन का अध्ययन किया तथा पाया कि आधे शुक्राणुओं में एक अतिरिक्त गुणसूत्र मिलता है। इसको उन्होंने ‘X’ काय कहा। सन् 1902 में मैकक्लंग (McClung) ने टिड्डी (Grasshopper) में युग्मक जनन (gametogenesis) का अध्ययन
किया तथा ‘x’ काय का लिंग निर्धारण में महत्त्व बताया। उन्होंने बताया कि मादा टिड्डी (जीफीडियम फेसिएटम) की कायिक कोशिकाओं में 24 गुणसूत्र मिलते हैं, परन्तु नर टिड्डे में केवल 23 गुणसूत्र मिलते हैं। गहन अध्ययन के पश्चात् स्टीवन (Stevens) तथा विल्सन (Wilson) ने भी इसे बताया कि ‘X’ काय ‘X’ गुणसूत्र के अतिरिक्त कछ और नहीं है। __’X’ गुणसूत्र को लिंग गुणसूत्र भी कहते हैं क्योंकि यह लिंग निर्धारण में महत्त्वपर्ण है। मिल्कवीड बग (लाइगाइस टुरिसिकस) में दोनों नर व मादा जीव में 14 गणसत्र मिलते हैं। मादा में सभी गुणसूत्र युग्म बनाते हैं तथा समजात गुणसूत्रों का आमाप समान होता है, जबकि नर में सभी गुणसूत्र युग्म बनाते हैं। लेकिन ‘X’ गुणसूत्र का समजात ‘Y’ गुणसूत्र उसके समान नहीं होता है।
प्रश्न 8 – ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण का जीनी संतुलन वाद लिखिए।
उत्तर – ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण का जीनी संतुलन वाद (Genic Balance Concept of Sex Determination in Drosophilla)
सी० बी० ब्रिज (C.B. Bridge) ने दिखाया कि मादा डिटरमाइनर ‘X’ गुणसूत्र पर तथा नर डिटरमाइनर ऑटोसोम पर उपस्थित होते हैं। लिंग निर्धारण में जीनी सन्तुलन वाद (genic. balance theory) ड्रोसोफिला में प्रस्तुत किया गया था। ब्रिज ने ‘X’ व ‘A’ गुणसूत्रों के विभिन्न योगों का अध्ययन किया तथा ‘X’ व ‘A’ के अनुपात को बताया [चित्र (A)]। उनके अनुसार ‘x’ व ‘A’ का अनुपात 0 • 5 होने पर नर तथा 1 होने पर मादा मिलते हैं
Q.9 मेंटामेल प्रश्न 9–हीमोफीलिया का पढ़ी विश्लेषण बताइए।
उत्तर- हीमोफीलिया का पीढ़ी विश्लेषण
(Pedigree Analysis of Haemophilia)
लिंग सहलग्नी रोग हीमोफीलिया की पीढ़ी विश्लेषण (pedigree analysis) का अध्ययन यूरोप में इंग्लैण्ड की रानी विक्टोरिया से आरम्भ होता है। उनसे यह रोग उनकी सन्तति में गया। 9 में से 3 सन्तानों में हीमोफीलिया की जीन मिलती है, उसके पुत्रों में से आधे पुत्र हीमोफिलिक थे। रानी ‘X’ गुणसूत्र के लिए हेटरोजाइगस (XX) थी। अगली पीढ़ी में किसी भी मादा में हीमोफीलिया का लक्षण प्ररूप नहीं मिलता है। ये सामान्यत: रोग वाहक (carrier of disease) होती हैं तथा सामान्य नर से सम्पर्क करती हैं। नर हीमोफीलिया से अस्त होते हैं। रोग के लिए होमोजाइगस मादा जीवित नहीं रहती है।
प्रत्येक प्रोथ्रॉम्बिन प्रोटीनेस (फैक्टर X) के उत्पादन को प्रभावित करता है। प्रोथॉम्बिन साधर का थक्का जमाने में आवश्यक विकर है। निम्नलिखित तीन प्रकार के हीमोफीलिया । ज्ञात हैं –
- हीमोफीलिया ‘A’ में एण्टी हीमोफीलिक फैक्टर (AHF अथवा फैक्टर VII) की मात्रा में कमी आ जाती है। इस प्रकार का हीमोफीलिया 50% रोगियों में मिलता है।
- हीमोफीलिया ‘B’ अथवा क्रिसमस रोग प्लाज्मा थ्रोम्बोप्लास्टिन कम्पोनेन्ट (PTC वा फेक्टर IX) की कमी से होता है। इस प्रकार का हीमोफीलिया 20% लोगों को होता है। फीलिया ‘B’ की जीन हीमोफीलिया ‘A’ की एलील नहीं होती है।
3. हीमोफीलिया ‘C’ रोग ऑटोसोम की जीन व प्लाज्मा थ्रोम्बोप्लास्टिन एण्टीसीडेन्ट’ JA अथवा फैक्टर XI) के उत्पाद के मध्य दुर्लभ अन्तक्रिया के कारण होता है। इस प्रकार क हीमोफीलिक की संख्या 1% से भी कम है।
रोग है ऐल्केप्टोन्यूरिया (Alkaptonuria), जो रुधिर में विशिष्ट विकर की अनुपस्थिति से होता है। गेरोड ने आनुवंशिक कमी, एक विशिष्ट विकर व विशिष्ट उपापचयी परिस्थिति में सम्बन्ध की खोज की। बीडल व टाटम ने सन् 1941 में इस सुझाव पर कि जीन विकर के उत्पादन को दिशा देते हैं, कार्य किया। उन्होंने न्यूरोस्पोरा का एक सरल माध्यम पर (जिसमें शर्करा, अकार्बनिक लवण व बायोटिन (विटामिन B) आदि था) संवर्द्धन कर अध्ययन किया। उन्होंने देखा कि इस माध्यम पर न्यूरोस्पोरा सभी आवश्यक मेटाबोलाइट (metabolites) का संश्लेषण कर सकता है। न्यूरोस्पोरा विकर न्यूनता के प्रति अति संवेदी होता है। उन्होंने इसके बीजाणुओं (spores) को रेडियोधर्मी किरणों से उपचारित किया। इससे विशिष्ट विकर के लिए उत्परिवर्तन (mutation) पैदा होता है। इन बीजाणुओं को इनकी क्षमता जाँचने के लिए न्यूनतम माध्यम (minimal medium) पर उगाया (चित्र)। यदि बीजाणु न्यूनतम माध्यम में वृद्धि न कर सकें तथा विकर से युक्त माध्यम में वृद्धि कर जाएँ तो यह माना जाता है कि इस विशिष्ट विकर की कमी से आवश्यक यौगिकों का निर्माण नहीं हो पा रहा है। इस प्रकार का अध्ययन अनेक कोशिकाओं में करने के बाद पाया गया कि दो कोशिकाएँ ऐसी हैं, जो न्यूनतम माध्यम (minimal medium) पर वृद्धि नहीं कर सकती हैं। एक को पाइरीडॉक्सिन तथा दूसरी को थियामिन की आवश्यकता थी। लगभग 1,00,000 इररेडिएटिड स्पोर की सन्तति का अध्ययन कर दर्जनों उत्परिवर्तित स्पोर पृथक् किए गए। प्रत्येक में एक जीन में कमी (defect) का परिणाम विकर की कमी (deficiency of enzyme) के रूप में सामने आता है। इस प्रकार के अध्ययनों के फलस्वरूप एक जीन एक विकर परिकल्पना का प्रतिपादन हुआ।
एक जीन एक पॉलिपेप्टाइड परिकल्पना
(One Gene One Polypeptide Hypothesis)
विकर एक या अधिक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला से निर्मित होते हैं। प्रत्येक की कोडिंग एक अलग जीन के द्वारा होती है। एक जीन एक विकर परिकल्पना को नया रूप एक जीन एक पॉलिपेप्टाइड के रूप में मिला। एक जीन कभी-कभी विभिन्न प्रकार के सम्बन्धित पॉलिपेप्टाइड को एकान्तर स्प्लाइसिंग (alternate splicing) के कारण निर्मित कर सकती है। वेनन इन्ग्राम (Venon Ingram) ने सन् 1956 में सिकेल सेल एनीमिया के लिए उत्तरदायी आण्विक क्रम में उत्परिवर्तन के विषय में बताया। हीमोग्लोबिन में 4 बड़ी पॉलिपेप्टाइड शृंखलाएँ मिलती हैं। इन्ग्राम ने दोनों सामान्य व सिकेल सेल एनीमिया प्रकार की हीमोग्लोबिन को अनेक खण्डों में प्रोटियोलिटिक विकर ट्रिप्सिन (trypsin) की सहायता से बाँटा। इन पेप्टाइड खण्डों को पेपर क्रोमेटोग्राफी द्वारा विश्लेषित कर इनमें अन्तर को जाँचा गया। यह देखा गया कि 30 पेप्टाइड इस मिश्रण से अलग होते हैं। प्रोटीन में भिन्नता केवल एक अमीनो अम्ल में परिवर्तन के कारण होती है। सिकेल सेल हीमोग्लोबिन में वेलीन सामान्य हीमोग्लोबिन में ग्लूटामिक अम्ल के स्थान पर मिलता है। इन्ग्राम ने प्रदर्शित किया कि एक जीन में परिवर्तन (mutation) के कारण केवल एक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला के ऐमीनो क्रम में परिवर्तन होता है।
प्रश्न 12 – सहलग्नता अथवा लिंकेज पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – सहलग्नता अथवा लिंकेज
(Linkage)
एक गुणसूत्र पर उपस्थित सभी जीन्स एक-दूसरे से इस प्रकार से जुड़े रहते हैं कि अर्द्धसूत्री विभाजन के समय एक गैमीट में एक-साथ transmit होते हैं। एक क्रोमैटित जीन्स के इस प्रकार से जुड़े रहने (linking) की प्रक्रिया को सहलग्नता या लिंक (linkage) कहते हैं। दोनों homologous क्रोमैटिड्स पर उपस्थित जीन्स के सभी जोडोर लिंकेज समूह (Linkage groups) कहते हैं।
मॉर्गन (1910) ने ड्रोसोफिला के साथ कुछ प्रयोग किए एवं पाया कि स्वतन्त्र अपव्यय का नियम सभी जगह एक-सा नहीं होता। इस प्रकार के विचलनों को बाद में मॉर्गन ने लिकेत की प्रक्रिया से सम्बन्धित बताया। उसने बताया कि homozygous parents के विभिन्न जीन्स एक गैमीट में ही घुसने की कोशिश करते हैं एवं एक-साथ ही रहते हैं, जबकि एक ही प्रकार के जीन्स जो कि heterozygous parents से बनते हैं—अलग-अलग गैमीट्स में ही घुसने की कोशिश करते हैं और एक-दूसरे से अलग-अलग रहते हैं। पहली प्रक्रिया को coupling कहते हैं एवं दूसरी प्रक्रिया repulsion कहलाती है। Coupling एवं repulsion दोनों ही linkage के दो विभिन्न पहलू हैं।
जीन्स के linked रहने की मौलिक प्रक्रिया उनके एक ही क्रोमैटिड पर उपस्थिति के कारण होती है। जीन्स के repulsion की प्रक्रिया उनके एक जोड़े के दो क्रोमैटिड्स के ऊपर उपस्थित रहने के कारण होती है। मॉर्गन ने इससे बाद में यह भी सुझाया कि लिंकेज की degree लिंक्ड जीन्स के बीच में उपस्थित दूरी के साथ inversely proportionate होती है। मॉर्गन का यह विचार शीघ्र ही “Theory of Linear Arrangement of Genes in Chromosomes” में प्रतिपादित किया गया। लिंकेज के प्रकार (Kinds of Linkage) : लिंकेज निम्नलिखित दो प्रकार की होती है
- पूर्ण लिंकेज (Complete Linkage)-पैतृक गुणों के combinations दो या दो से अधिक पीढ़ियों में लगातार एवं एक ही प्रकार से यदि आते रहते हैं, तो उसे पूर्ण लिंकेज कहते हैं। इस प्रकार के लिंकेज में जीन्स बहुत closely जुड़े रहते हैं।
- अपूर्ण लिंकेज (Incomplete Linkage)-इस प्रकार के लिंकेज में linked जीन्स सदा एक-दूसरे के साथ ही लगे नहीं रहते क्योंकि homologous non-sister क्रोमैटिड्स विभिन्न लम्बाइयों के टुकड़ों का एक-दूसरे के साथ विनिमय अर्द्धसूत्री विभाजन का प्रोफेज अवस्था के अन्तर्गत करते रहते हैं। गुणसूत्रीय टुकड़ों के इस प्रकार के विनिमय का crossing-over कहते हैं।
लिंकेज के उदाहरण (Examples of Linkage)
जब grey body एवं long wings वाले ड्रोसोफिला की 5 पीढ़ी के heterozygous male का क्रॉस ऐसे homozygous recessive females से कराया जाता है जिसकी black body हो एवं vestigial wings (ggll) हों, तब F, पीढ़ी में
स्फीरोकार्पस (ब्रायोफाइटा) में भी लिंग निर्धारण की लिंग गुणसूत्र तकनीक को देखा गया है। एलन (Allen) ने 1919 में देखा कि स्फीरोकार्पस स्पोरोफाइट में XY लिंग गुणसूत्र मिलते हैं तथा यह ‘X’ तथा ‘Y’ प्रकार के मियोस्पोर बनाते हैं। X मियोस्पोर के अंकुरण से मादा युग्मकोद्भिद् तथा ‘Y मियोस्पोर के अंकुरण से नर युग्मकोद्भिद् बनता है।
|
||||||