BSc 1st Year Botany Leaf Rust Or Brown Rust Of Wheat Notes

BSc 1st Year Botany Leaf Rust Or Brown Rust Of Wheat Notes

 

BSc 1st Year Botany Leaf Rust Or Brown Rust Of Wheat Notes :- This post will provide immense help to all the students of BSc Botany 1st Year  All PDF Free Download All Notes Study Material Previous Question Answer . You will get full information Related to BSc Botany in over site. In this post I have given all the information related to BSc Botany Completely.

 


प्रश्न 12 – गेहूँ का ब्राउन रस्ट पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर

गेहूँ का लीफ रस्ट या ब्राउन रस्ट रोग

(Leaf Rust or Brown Rust of Wheat)

यह रस्ट रोग पक्सीनिया रूबीगोवेरा या प० रिकोन्डिटा (P. rubigovera or ‘P. recondita) से होता है। इसका प्रकोप पूर्वी तथा उत्तरी भारत में दक्षिण भारत की अपेक्षा अधिक होता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार के कुछ भागों में इसका प्रकोप अन्य रस्ट से पहले आरम्भ होता है। उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में यह रोग दिसम्बर के अन्त तथा जनवरी के प्रारम्भ में पीले रस्ट रोग के साथ देखा जा सकता है। पीले रस्ट तथा ब्राउन रस्ट के मिल जाने पर फसल को अधिक हानि होती है।

रोग चिह्न यूरीडिया पत्ती पर मिलते हैं। अत: यह रोग लीफ रस्ट कहलाता है। कभी-कभी यरीडिया पर्ण आच्छद (leaf sheaths) तथा तने पर भी मिलते हैं। यूरीडिया के पस्टियल गोल या दीर्घवृत्त (oblong), नारंगी होते हैं। बिखरे नारंगी पस्टियूल या धब्बों के कारण यह रस्ट रोग अन्य रस्ट रोगों से स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता है। परिपक्व होने पर यरीडिया परपोषी की बाह्यत्वचा को भेद देते हैं तथा यूरीडिया के चारों तरफ एक पतली झालर (fringe) बन जाती है। यूरीडोस्पोर्स गोल होते हैं तथा एपीस्पोर मोटा व काँटेयुक्त (spiny) होता है। इस पर 3-4 या अधिक अंकुर रन्ध्र (germ pores) होते हैं। फसल कटने पर गर्मी में यूरीडोस्पोर नष्ट हो जाते हैं। पहाड़ों पर 3500-5000 फीट की ऊँचाई पर ये जननक्षम रहते हैं। इसमें टीलिया (telia) दुर्लभ अवस्था में ही बनते हैं। ये आकार में लम्बे या अण्डाकार, काले रंग के होते हैं। परपोषी की बाह्यत्वचा के नीचे मिलते हैं। टीलियम में कई पैराफाइसिस मिलते हैं जो सोरस को कई भागों में बाँट देते हैं। टीलियोस्पोर दीर्घवृत्त (oblong) या फानाकार (cuneiform), दो कोशिकीय बाहरी मोटी दीवार उपसंकोचित (constricted) होती है, इसमें अंकुर रन्ध्र होते हैं।

यह हेटरोसियस (heteroecious) रस्ट है। इसका एकान्तर परपोषी (alternate host) थैलिक्ट्रम (Thalictrum) है जिस पर रस्ट की अन्य जीवन अवस्थाएँ पूरी होती हैं। पालक्ट्रम फ्लेवम (Thalictrum flavum) सबसे रोग ग्राही (susceptible) जाति है जो भारत में नहीं मिलती है, परन्तु यहाँ थै० जैवेनिकम (T. javanicum), थै० फोलिलोग (T. folilosum) तथा थै० न्यूरोकार्पम (T. neurocarpum) जातियाँ 5000-12000 की ऊँचाई पर मिलती हैं।

एकान्तर परपोषी (alternate host) पर मोनोकैरियोटिक अवस्था स्पोरीडिया की बेसीडियोस्पोर द्वारा आरम्भ होती है तथा पिक्निया बनते हैं। धन (+) तथा ऋण (-) पिक्नियोस्पोर तथा फ्लेक्सस सूत्रों द्वारा डाइकैरियोटाइजेशन के पश्चात् डाइकैरियोटिक कवकजाल पर एसिया बनते हैं। ये सब संरचनाएँ बनने की विधि काला रस्ट के समान होती है।

भारत में थैलिक्ट्रम की झाड़ियाँ जिस ऊँचाई पर मिलती हैं, वहाँ टीलियोस्पोर जीवनक्षम (viable) नहीं रह जाते हैं। रस्ट की टीलियल अवस्था भारत में नहीं मिलती है। डॉ० के० सी० मेहता (K. C. Mehta) के शोध के आधार पर कई वर्षों के लगातार प्रयास के बावजद टीलियल अवस्था भारत में नहीं मिली। अत: भारत में थैलिक्ट्रम का कोई महत्त्व नहीं है। ब्राउन रस्ट की 135 दैहिक जातियाँ (physiological races) हैं जिनमें से भारत में लगभग 8 जातियाँ मिलती हैं।

रस्ट का नियन्त्रण (Control of Rust)

रस्ट के नियन्त्रण के लिए निम्नलिखित उपाय कारगर हो सकते हैं

(1) जिंक तथा मैंगनीज वाले डाइथायोकार्बोनेट का खेत में स्प्रे करना चाहिए। जब रस्ट पस्चूल्स उत्पन्न होते हैं तब 10-15 दिन के अन्तराल पर 3-4 स्प्रे करना आवश्यक है। –

(2) आजकल सिस्टेमिक फन्जीसाइड oxycarboxin का प्रयोग लाभकारी सिद्ध ( हुआ है। अतः इसका उपयोग करना चाहिए।

(3) एकान्तर परपोषी को नष्ट करने से भी रोग नियन्त्रण में सहायता मिली है, विशेष रूप से अमेरिका में जहाँ रोग फैलाने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

(4) नाइट्रोजन की अधिकता वाली खादों के प्रयोग से बचना चाहिए। इससे रस्ट कवक की वृद्धि में सहायता मिलती है।

(5) पानी की निकासी का खेत में उचित प्रबन्ध होना चाहिए जिससे मृदा में अधिक नमी न रहे। अधिक नमी रहने से कवक की वृद्धि में सहायता मिलती है।

(6) मिक्स्ड क्रोपिंग विधि (Mixed Cropping System) से भी रोग नियन्त्रण में सहायता मिलती है।

(7) रोग निरोधक जातियों (disease resistant varieties) का प्रयोग करना चाहिए। Sanora 64 तथा Lerma Roja काला रस्ट निरोधक जातियाँ हैं।

 


Follow me at social plate Form

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top