Bacteriophage BSc 1st Year Botany Question Answer Notes

Bacteriophage BSc 1st Year Botany Question Answer Notes

 

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प्रश्न 5 – जीवाणुभोजी की संरचना, गुणन तथा जीवन पर लेख लिखिए। 

उत्तर 

जीवाणुभोजी 

(Bacteriophage) Notes

जो विषाणु जीवाणु पर परजीवी होते हैं जीवाणुभोजी कहलाते हैं। इनकी खोज Twort ने सन् 1915 तथा d’Herelle ने सन् 1917 में अलग-अलग की थी।

बैक्टीरियाफेज का शाब्दिक अर्थ जीवाणुओं को खाने वाला (Bacteriophage = bacteria eater) है।

Bacteriophage BSc Notes
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कुछ विषाणु एक्टिनोमाइसिटीज (एक्टिनोफेज-Actinophage), यीस्ट कोशिकाओं मार लग (जाइमोफेज- Zymophage) तथा नीले-हरे शैवालों (साइनोफेज-Cyanophage) पर उपइकाई परजीवी रूप में मिलते हैं।

जीवाणुभोजी एक टेडपोल (tadpole) के समान होता है, इसमें एक सिर (head) तथा का दूरी पूँछ (tail) समान संरचनाएँ मिलती हैं। इनका सिर प्रिज्म की तरह (prism like) या गोलाकार (rounded) या तन्तुमय हो सकता है। तन्तुमय जीवाणुभोजी सिर तथा पूँछ में विभेदित नहीं होते हैं। सिर तथा पूँछ के बीच कॉलर (collar) होता है। पूँछ की लम्बाई सिर के समान होती है तथा यह प्रोटीन की परत से ढकी रहती है। इसके छोर पर एक षट्कोणीय (hexagonal) 1) आधार प्लेट (basal plate) या पुच्छ प्लेट (tail plate) होती है। इसके निचली सतह से ENA शीठ छह पिन जुड़े रहते हैं। इनको पुच्छ पिन्स (tail. pins) कहते हैं। इनकी सहायता से बैक्टीरियोफेज जीवाणु की सतह से चिपकता है तथा एन्जाइम स्रावित कर जीवाणु भित्ति का लयन (lysis) करता है। बैक्टिरियोफेज का सिर न्यूक्लियोकैप्सिड का बना होता है। सिर के मध्य में DNA होता है जो प्रोटीन के एक अलग आवरण से ढका रहता है जिसे आन्तरिक कवच कहते हैं। आन्तरिक कवच कैप्सोमियर का बना होता है। बैक्टीरियोफेज का DNA आनुवंशिक पदार्थ है तथा संक्रमण के लिए उत्तरदायी है।

जीवाणुभोजी का गुणन एवं जीवनचक्र

(Multiplication and Life-cycle of Bacteriophage) _ Notes

विषाणुओं का गुणन केवल जीवित कोशिकाओं के अन्दर ही हो सकता है। गुणन करने के बाद विषाणु अनेक विषाणु कणों को जन्म देते हैं।

जीवाणुओं (bacteria) पर संक्रमण करने वाले विषाणुओं को जीवाणुभोजी (bacteriophage) कहा जाता है। इनका गुणन भी जीवित कोशिकाओं के अन्दर ही होता है। इनमें दो प्रकार का जीवन-चक्र (life-cycle) पाया जाता है –

  1. लाइटिक जीवन-चक्र (Lytic life-cycle),
  2. लाइसोजेनिक जीवन-चक्र (Lysogenic life-cycle)।

इनका संक्षेप में वर्णन निम्नवत् किया जा सकता है –

  1. लाइटिक जीवनचक्र (Lytic life-cycle)-बैक्टीरियोफेज (bacterio phage) एक प्रकार का विषाणु है, जो अपने पोषक (host) अर्थात् जीवाणु (bacteria) से अपनी पुच्छ द्वारा जुड़ जाता है। इस पुच्छ से जीवाणु की कोशिका भित्ति (cell wall) में एक छिद्र-सा बन जाता है। इस छिद्र से होकर विषाणु के न्यूक्लिक अम्ल जीवाणु में प्रवेश कर जाते हैं तथा इसका प्रोटीन से बना आच्छद बाहर ही रह जाता है। जीवाणु कोशिका के अन्दर सक्रिय होकर ये डी०एन०ए० अणु तथा प्रोटीन का निर्माण करते हैं। प्रोटीन डी०एन०ए० से मिलकर नए विषाणु कण (virus particles) बना देते हैं। जीवाणु कोशिका में इस प्रकार से अनेक विषाणु कण एकत्रित हो जाते हैं। ये विषाणु कण जीवाणु कोशिका के फटने अथवा नष्टहोने से स्वतन्त्र हो जाते हैं। वनस्पतिविज्ञों का ऐसा मत है कि लाइसोजाइम नामक विषाण्विक एन्जाइम कोशिका भित्ति के अन्दर से आक्रमण करके उसे खण्डित कर देता है तथा” इससे विषाणु कण बाहर निकल आते हैं। इस प्रकार के विषाणु गुणन के लिए डी०एन०ए० की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

    Bacteriophage BSc Notes
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  2. लाइसोजेनिक जीवनचक्र (Lysogenic life-cycle)-इस प्रकार के जीवन- चक्र में विषाणु का डी०एन०ए० जीवाणु कोशिका के अन्दर पहुँचकर कुछ समय तक अक्रियाशील (inactive) बना रहता है तथा जीवाणु विभाजन के समय डी०एन०ए० केविभाजन के साथ-साथ यह भी विभाजित होकर सन्तति कोशिकाओं में पहुँच जाता है। कछ समय के अन्तराल के बाद कुछ सन्तति कोशिकाओं का विषाणु डी०एन०ए० स्वयं ही पुनः सक्रिय हो जाता है तथा इसके अन्दर भी वे सभी क्रियाएँ पूर्ण होने लगती हैं, जो कि लाइटिक जीवन-चक्र में होती हैं। इस प्रकार के जीवन-चक्र को लाइसोजेनिक जीवनचक्र | (Lysogenic life-cycle) कहते हैं।
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