Structure Of Monocystis BSc 1st Year Long Question Answer Notes
Structure Of Monocystis BSc 1st Year Long Question Answer Notes
प्रश्न 6 – मोनोसिस्टिस की संरचना एवं जीवन-चक्र का वर्णन कीजिए।
Describe the structure and life cycle of Monocytes.
अथवा ट्रोफोज्वाइट पर टिप्पणी कीजिए।
Write note on Trophozoite.
उत्तर- मोनोसिस्टिस की संरचना
(Structure of Monocystis)
मोनोसिस्टिस परजीवी की वयस्क प्रावस्था टोफोज्वाइट होती है जो केंचुए के शुक्राशय में पायी जाती है। ट्रोफोज्वाइट सूक्ष्म तथा एककोशिकीय होता है। एक वयस्क ट्रोफोज्वाइट तर्करूपी, चपटा, लम्बा तथा कृमिरूपी होता है जिसके दोनों सिरे नुकीले होते हैं। यह 500u तक लम्बा हो सकता है। ट्रोफोज्वाइट के चारों ओर पेलिकल (pellicle) नाम का आवरण उपस्थित रहता है।
इसका कोशिकाद्रव्य दो स्पष्ट भागों में विभेदित रहता है। बाह्य कणिकाविहीन कोशिकाद्रव्य तथा आन्तरिक कण्किायुक्त अन्तः कोशिकाद्रव्य में असंख्य पैराग्लाइकन कण, वसा कण तथा प्रोटीनयुक्त वॉल्यूटिन कण उपस्थित रहते हैं।
केन्द्रक प्राय: एक केन्द्रिकायुक्त (nucleolus) होता है। केन्द्रकद्रव्य में 8 क्रोमोसोम पाए जाते है।
जीवन-चक्र (Life cycle)-मोनोसिस्टिस एकपोषदीय होता है। जीवन-चक्र में निम्न अवस्थाएँ पायी जाती हैं
- युग्मक निर्माण (Gametogenesis)-केंचुए के शुक्राशय में ट्रोफोज्वाइट वृद्धि करके गोल गैमोन्ट (gamont) अथवा गैमीटोसाइट (gametocyte) का निर्माण करता है। दो गैमीटोसाइट तत्पश्चात अपने चारों ओर एक सिस्ट (cyst) का निर्माण कर लेते हैं। इस सिस्ट के अन्दर ये एक-दूसरे से अलग रहते हैं। यह अवस्था संयुग (शाइजाइगी syzygy) कहलाती है।
सिस्ट के अन्दर प्रत्येक गैमीटोसाइट अनगिनत केन्द्रकीय विभाजन के पश्चात गैमीटों (gametes) का निर्माण करता है जो एक ही प्रकार के होते हैं। ये सिस्ट के अन्दर आपस में जुड़कर जाइगोट अथवा युग्मनज का निर्माण करते हैं।
- स्पोरोगैमी (Sporogamy)-प्रत्येक युग्मनज जो प्रारम्भ में गोल होता है. अण्डाकार स्पोरोब्लास्ट में परिवर्तित हो जाता है। यह अपने चारों ओर एक कठोर पुटिका को स्रावित करता है तथा एक स्पोर में बदल जाता है जो द्विशंक्वाकार (biconical) होता है। स्पोर जल्द ही नौकाकार (boat-shaped) हो जाता है तथा वंश नैवीसेला नामक डायटम की भाँति प्रतीत होता है। इस अवस्था को स्यूडोनैवीसेला कहते हैं। पुटिका के अन्दर स्पोर में तीन केन्द्रकी विभाजन होते हैं जिससे आठ सन्तति केन्द्रकों का निर्माण होता है। प्रथम विभाजन अर्द्धसूत्री प्रकार का होता है। प्रत्येक सन्तति केन्द्रक कोशिकाद्रव्य से घिरा होता है तथा आठ सूक्ष्म, लम्बे तथा तर्क आकार के अगुणित स्पोरोज्वाइट का निर्माण होता है।
इस अवस्था में पुटिका फट जाती है तथा स्पोर केंचुए की शुक्राणु पुटिकाओं में स्वतन्त्र हो जाते हैं। ये स्वतन्त्र स्पोर केंचुए में मैथुन क्रिया के फलस्वरूप शुक्राणुओं एवं शुक्रीयद्रव के साथ स्थानान्तरित हो जाते हैं।
- स्पोर का स्थानान्तरण (Transfer of spores)-मोनोसिस्टिस के स्पोर्स का एक केंचुए से दूसरे केंचुए में स्थानान्तरण निम्न में से किसी एक विधि के द्वारा हो सकता है –
(i) मैथुन क्रिया के बीच (During copulation)-केंचुए की शुक्रवाहिकाओं तथा कोकूनों में कभी-कभी स्पोर्स की उपस्थिति से इस धारणा को बल मिलता है कि ये एक परपोषी से दूसरे परपोषी में मैथुन क्रिया के समय शुक्राणुओं तथा शुक्रीय तरल के साथ स्थानान्तरित
होते हैं।
(ii) परपोषी की मृत्यु (Death of host)-केंचुए की मृत्यु के बाद यह सड़कर नष्ट हो जाता है तब ये स्पोर्स मिट्टी में बिखर जाते हैं। जब इस मिट्टी को कोई अन्य केंचुआ खाता है | तो ये भी उसकी आहार नाल में चले जाते हैं।
(iii) पक्षियों द्वारा (By birds)-जब संक्रमित केंचुए को कोई पक्षी खाता है तो ये स्पोर्स किसी परिवर्तन के बिना ही उसके मल (बीट) के साथ बाहर आ जाते हैं और फिर अन्य केंचुए द्वारा खा लिए जाते हैं। ये स्पोर विभिन्न पक्षियों की आहार नाल में भी पाए गए हैं।
(iv) स्वांगोच्छेदन (Automization) – मोनोसिस्टिस की कुछ जातियों में स्पोर्स केंचुए के पिछले खण्डों की देहगुहा में पाए जाते हैं। ऐसे केंचुए के शरीर का पिछला भाग स्वांगोच्छेदित होने पर स्पोर्स मिट्टी में मुक्त हो जाते हैं। ऐसी मिट्टी को अन्य केंचुए द्वारा खाने पर स्पोर्स भी आहार नाल में चले जाते हैं। दूसरे परपोषी की आहार नाल में स्पोरोसिस्ट फट जाती है या पाचक एन्जाइमों की क्रिया द्वारा विलीन हो जाती है तथा प्रत्येक स्पोर के अन्दर वाले स्पोरोजोइट आहार नाल की अवकोशिका में स्वतन्त्र हो जाते हैं।
स्पोरोजोआइट तर्क आकार और अति महीन जीवद्रव्यी रचनाएँ होती हैं। प्रत्येक में एक केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जी कॉम्प्लैक्स, संचित भोजन की कणिकाएँ होती हैं। इसके अगले भाग में एक जोड़ा स्रावणकारी अंगक (secretory organelles) या रौप्ट्रीज (roptries) होती हैं। इनसे स्रावित द्रव ऊतकों के वेधने का काम करता है।
- स्पोरोज्वाइट गतिशील होते हैं। ये केंचुए की आहारनाल को वेधकर म्यूकोसा कोशिकाओं में चले जाते हैं तथा वयस्क में परिवर्धित हो जाते हैं। तत्पश्चात म्यूकोसा कोशिकाओं से निकलकर केंचुए के शुक्राशय में चले जाते हैं और केंचुए के शुक्राणुओं के | अन्दर जाकर ट्रोफोज्वाइट में परिवर्तित हो जाते हैं।
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