Pinacoderm And Choanoderm BSc 1st Year Question Answer Notes
Pinacoderm And Choanoderm BSc 1st Year Question Answer Notes
प्रश्न 1 – साइकॉन में पायी जाने वाली विभिन्न कोशिकाओं की संरचना का वर्णन कीजिए।
Give an account of the structure of different cells found in Sycon.
उत्तर – साइकॉन में दो कोशिकीय स्तर होते हैं –
- पिनेकोडर्म (Pinacoderm) तथा 2. कोएनोडर्म (Choanoderm)|
पिनेकोडर्म तथा कोएनोडर्म के बीच, दोनों को जोड़ते हुए मध्योतक (mesenchyme) का जिलेटिनी मैट्रिक्स होता है।
- पिनेकोडर्म (Pinacoderm)—यह बड़ी, चपटी बहुभुजीय कोशिकाओं की बनी होती है, जिन्हें पिनेकोसाइट कहते हैं। इन कोशिकाओं के मध्य में एक उभरा हुआ भाग होता है। जिसमें केन्द्रक होता है। ये कोशिकाएँ संकुचनशील होती हैं और स्पंज के शरीर की सतह के क्षेत्रफल को कम और अधिक कर सकती हैं।
पोरोसाइट कोशिकाएँ इनकरन्ट नालों के अस्तर में पायी जाती हैं। ये पिनेकोसाइट्स के रूपान्तरण हैं। ये इनकरन्ट नालों को रेडियल नालों से जोड़ती हैं। ये अन्तःकोशिकीय मार्ग प्रोसोपाइल्स कहलाते हैं। पोरोसाइट दोनों सिरों पर खुली होती हैं। इनमें केन्द्रक परिधीय कोशिकाद्रव्य में होता है।
मायोसाइट या पेशी कोशिकाएँ-ऑस्कुलम तथा ऑस्टिया के चारों ओर पाए जाने वाले लम्बे संकुचनशील पिनेकोसाइट्स को मायोसाइट्स कहते हैं। मायोसाइट्स इन छिद्रों के छोटा-बड़ा होने की क्रिया पर नियन्त्रण करते हैं।
- कोएनोडर्म (Choanoderm)-कोएनोडर्म पैरागैस्ट्रिक गुहा को आस्तरित | करती है। इसकी रचना कोएनोडर्म कोशिकाओं से होती है।
कोएनोसाइट कोशिका गोल या अण्डाकार होती हैं। इसमें एक केन्द्रक, एक या दो संकुचनशील धानियाँ, खाद्य धानियाँ और एक आधारी कण काइनेटोसोम होता है। काइनेटोसोम से एक लम्बा फ्लैजेलम निकलता है। फ्लैजेलम के आधार के निकट चारों ओर कोशिका झिल्ली का एक पतला कॉलर होता है, इसीलिए इन कोशिकाओं को collared cells भी कहते हैं।
मीसेन्काइम (Mesenchyme)-पिनेकोडर्म तथा कोएनोडर्म के बीच दोनों को जोड़ते हुए मीसेन्काइम (मध्योतक) होता है। यह जिलेटिनी मैट्रिक्स होता है। इसमें कई प्रकार की अमीबा के समान कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें अमीबाभ कोशिकाएँ (अमीबोसाइट्स) कहते हैं। ये विविध प्रकार के कार्य करती हैं। ये निम्न प्रकार की होती हैं –
(i) आर्किओसाइट्स (Archaeocytes)-ये अविभेदित भ्रूणीय कोशिकाएँ हैं। इनके स्यूडोपोडिया कुण्ठित और केन्द्रक बड़ा होता है।
कार्य (Functions)-इनका कार्य भोजन एवं उत्सर्जी पदार्थों को इधर-उधर ले जाना होता है। ये अन्य प्रकार की कोशिकाओं का भी निर्माण कर सकती हैं। ये अण्डों तथा शुक्राणुओं को भी बनाती हैं। ऐसी कोशिकाओं को टोटीपोटेन्ट कहते है क्योंकि ये प्राणी की किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल जाती हैं। ये पुनरुद्भवन की क्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
(ii) कोलनसाइट्स (Collencytes)-अधिकांश अमीबोसाइट्स में शाखान्वित कूटपाद होते हैं जो प्रायः परस्पर जुड़कर एक बहुकेन्द्रकी जालिका (syncytial network) का निर्माण करते हैं। ये योजी ऊतक कोशिकाएँ या श्लेष कोशिकाएँ (collencytes) कहलाती हैं।
(iii) क्रोमोसाइट्स (Chromocytes)-इन कोशिकाओं में वर्णक पाया जाता है और उनके कूटपादाभ पालिरूपी होते हैं।
(iv) थीसोसाइट्स (Thesocytes)-इनमें संचित भोजन भरा होता है। इनके कूटपादाभ पालिरूप होते हैं। ये सम्भरण कोशिकाओं की भॉति कार्य करती हैं।
(v) मायोसाइट्स (Myocytes)—ये ऑस्टिया, ऑस्कुलम तथा अन्य छिद्रों के चारों ओर पायी जाने वाली फ्यूजीफॉर्म संकुचनशील पेशी कोशिकाएँ हैं। ये इन छिद्रों के परिमाण को नियन्त्रित रखने के लिए अवरोधिनी बनाती हैं।
(vi) स्क्ले रोब्लास्ट (Scleroblast)—यह कंटिकाओं का निर्माण करती हैं। निर्मित कंटिकाओं की प्रवृत्ति के अनुसार इन्हें कैल्कोब्लास्ट, सिलिकाब्लास्ट तथा स्पंजिओब्लास्ट कहते हैं।
(vii) ग्रन्थिल कोशिकाएँ (Gland cells)-इनसे एक प्रकार के चिपकने वाले पदार्थ का स्रावण होता है। ये शरीर तल से एक लम्बी लड़ी द्वारा जुड़ी रहती हैं और जन्तु को आधार तल पर चिपकने में सहायक होती हैं।
(viii) जनन कोशिकाएँ (Germ cells)-स्पंजों में अण्डाणु तथा शुक्राण आद्य कोशिकाओं का रूपान्तरित रूप होते हैं। कुछ जन्तुओं में यह कोएनोसाइट्स के रूपान्तरित रूप माने जाते हैं।