Zoology Reproductive System Of Nereis Question Answer
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प्रश्न 5 – नेरीस के जनन तन्त्र का वर्णन परिवर्धनसहित कीजिए।
Describe the reproductive system of Nereis along with development.
उत्तर –
नेरीस का जनन तन्त्र
(Reproductive System of Nereis)
नेरीस की अधिकांश जातियाँ एकलिंगी (unisexual) होती हैं। इनके वृषण और अण्डाशय अलग-अलग नहीं पहचाने जा सकते और न ही स्थायी होते हैं। ये केवल जननकाल में परिवर्धित युग्मकों के पुंज होते हैं। ये पुंज धड़ प्रदेश के अगले कुछ खण्डों को छोड़कर शेष
समस्त खण्डों में अधर-पटीय पेरिटोनियम के उभारों (proliferation) द्वारा फूले हुए प्रक्षेपों की भाँति विकसित होते हैं।
नर में शुक्राणुजनक (spermatogonia) और मादा में अण्डजनक (oogonia) प्रगुही द्रव में त्यागे जाते हैं। यहाँ ये परिपक्व होकर क्रमश: शुक्राणु तथा अण्डाणु में विकसित हो जाते हैं। एक परिपक्व नेरीस की देहगुहिका में युग्मक भरे पाए जाते हैं।
जनन वाहिनियाँ (Gonad ducts) – नेरीस में जनन वाहिनियों का अभाव होता है। पूर्ण विकसित शुक्राणु अथवा अण्डाणु अधिकतर पश्च वृक्ककों से होकर समुद्र जल में विसर्जित होते हैं। ऐसा वृक्कक जो उत्सर्जी एवं जननिक वाहिनी दोनों का कार्य करता है, वृक्ककमिश्र (nephromixia) या मिक्सोनेफ्रिडिया कहलाता है (गुडरिच, 1945)। कुछ जातियों में युग्मक शरीर भित्ति के फटने से मुक्त होते हैं। शरीर भित्ति के फटने के बाद वयस्क जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है।
पृष्ठ पक्ष्माभी अंग (Dorsal Ciliated Organs) – नेरीस के प्रत्येक खण्ड में पृष्ठ अनुदैर्घ्य पेशियों से सम्बन्धित एक जोड़ी पृष्ठ पक्ष्माभी अंग पाए जाते हैं। प्रत्येक पक्ष्माभी अंग प्रगुही उपकला का पक्ष्माभी क्षेत्र (tract) होता है जो एक छोटे एवं वलित कीप की भाँति दिखाई देता है।
नेरीस का जीवन–वृत्त
(Life – History of Nereis)
वृन्दन (Swarming) Notes
लैंगिक रूप से परिपक्व हेटरोनेरीस अपने युग्मक (शुक्राणु तथा अण्डाणु) विसर्जित करने के लिए समुद्र जल की सतह पर तैरता है। इसके इस व्यवहार को वृन्दन कहते हैं। यह क्रिया रात्री में होती है। मादा कृमि फर्टिलियम (Fertilium) नामक पदार्थ उत्पन्न करती है।
यह पदार्थ नर कृमियों को आकर्षित करके उन्हें शुक्राणु त्यागने के लिए उत्तेजित करता है। इसके बाद शुक्राणु मादा कृमियों को अण्डे त्यागने के लिए उत्तेजित करते हैं।
निषेचन (Fertilization) Notes
नेरीस वाइरेन्स में निषेचन बाह्य समुद्र जल में होता है। नेरीस डाइवर्सिकोलर में ऐपिटोकी नहीं पायी जाती। नर जन्तु मादा के बिल में प्रवेश करके बिल के अन्दर या मिट्टी की सतह पर निषेचन करता है।
परिवर्धन (Development) Notes
नेरीस के परिवर्धन में तीन स्पष्ट अवधियाँ होती हैं — पूर्व लारवा अवधि (Pre-larval period), लारवा अवधि या ट्रोकोफोर (Larval period or trochophore), पश्च लारवा अवधि (Post-larval period or metamorphosis)।
I. पूर्व लारवा अवधि (Pre-larval Period) Notes
नेरीस के अण्डे में असंख्य पीतक गोलिकाएँ और तेल बन्दीकाएँ होती हैं। अण्डे के चारों ओर एक मोटी, अरीय धारीदार झिल्ली होती है जिसे जोना रेडिएटा कहते हैं। इस झिल्ली के चारों ओर एक पतली कोमल झिल्ली होती है। इन झिल्लियों से बाहर एक मोटा जिलेटिनी स्तर होता है। निषेचन के पश्चात् जोना रेडिएटा लुप्त हो जाता है और पीतक गोलिकाएँ जन्तु ध्रुव से कायिक ध्रुव में गति कर जाती हैं। अण्डे से दो पोलरकाय निकल जाती हैं और अण्डे में विदलन होने लगता है।
विदलन (Cleavage) – निषेचित अण्डे में पहले दो विदलन समान और वर्टीकल होते हैं, जिससे चार ब्लास्टोमियर्स बन जाते हैं। विदलन determinate (निर्धारी) होता है। इन चार कोशिका अवस्था के प्रत्येक ब्लास्टोमियर्स से भ्रूण का केवल एक-चौथाई भाग बनता है।
तीसरा विदलन असमान और क्षैतिज (horizontal) होता है। इससे ऊपर जन्तु ध्रुव की ओर चार छोटे माइक्रोमियर्स तथा नीचे अल्पक्रिया ध्रुव (vegetal pole) की ओर चार बड़े मैक्रोमियर्स बन जाते हैं। इसके बाद के विदलन भी असमान होते हैं।
चौथा, पाँचवाँ और छठा विदलन भी क्षैतिज होता है और दोनों खण्डों में तीन चतुष्क (quarteties) और कट जाते हैं। आस-पास की कोशिकाएँ एकान्तरित रूप से स्थित रहती हैं। इस प्रकार का विदलन सर्पिल
विदलन कहलाता है। माइक्रोमियर्स के दूसरे व चौथे चतुष्कों में से एक-एक माइक्रोमियर अन्यों की अपेक्षा बड़ा होता है। इन दोनों को क्रमशः प्रथम एवं द्वितीय सोमेटोब्लास्ट कहते हैं।
द्वितीय सोमेटोब्लास्ट के अलावा शेष माइक्रोमियर्स से एक्टोडर्म, मैक्रोमियर्स से एण्डोडर्म और द्वितीय सोमेटोब्लास्ट से मीसोडर्म का निर्माण होता है। विदलन के कारण एक स्टीरिओब्लास्टुला बन जाता है। आंत्र प्रकोष्ठ (gut pouch) के अन्तर्वलन द्वारा गैस्टुलाभवन
होता है जिसके फलस्वरूप एक पक्ष्माभी गैस्टुला बनता है।
II. लारवा अवधि या ट्रोकोफोर (Larval Period or Trochophore) Notes
गैस्टुलेशन के पश्चात् पक्ष्माभी गैस्टुला ट्रोकोफोर या ट्रोकोस्फीयर लारवा में बदल जाता है। परिवर्धन के 24 घण्टे पश्चात् ही ट्रोकोफोर की संरचना दिखाई देने लगती है। इस सम भ्रूण का आकार टोप के समान हो जाता है। ठीक Equator के ऊपर लारवा के चारों ओर पक्ष्माभी कोशिकाओं की एक मेखला का विकास हो जाता है जिसे प्रोटोट्रोक या प्रीओरल सीलियेटिड बैंड कहते हैं।
नेरीस में ट्रोकोफोर अवस्था भ्रूणिक होती है और अण्डे के अन्दर ही अन्दर व्यतीत हो जाती है। ब्लास्टोसील न होने से यह एक प्रारूपिक ट्रोकोफोर से भिन्न होता है। नेरीस के अण्ड से बाहर निकला लारवा पश्च टोकोफोर लारवा या नेक्टोकीट (nectochaete) कहलाता है। इस के तीनों खण्डों में शूक (bristles) होते हैं। लारवीय संरचनाएँ अधिक विकसित नहीं होती हैं।
III. पश्च लारवा अवधि या कायान्तरण
(Post – larval Period or Metamorphosis) Notes
पश्च ट्रोकोफोर लारवा कुछ दिनों तक सक्रिय रूप से तैरता हुआ सूक्ष्म जीवों को खाता रहता है। तैरते समय ही इसमें कायान्तरण होता है जिससे यह वयस्क में बदल जाता है। इस लारवा के शीर्षस्थ खण्ड भाग से वयस्क प्रोस्टोमियम का विकास हो जाता है। प्रथम खण्ड प्रोस्टोमियम तथा अन्तिम खण्ड पाइजीडियम बनाता है। पक्ष्माभित पट्टियाँ लुप्त हो जाती हैं। अन्तिम खण्ड से आगे की ओर, और अधिक खण्ड बन जाते हैं। खण्डों में शीघ्र ही पैरापोडिया बनने लगते हैं और साथ-ही-साथ लारवा शूक भी बन जाते हैं। इस प्रकार एक शिशु कृमि का विकास हो जाता है। यह निम्न ज्वार रेखा पर समुद्र की तली में बैठ जाता है और नली आकार का बिल बनाना शुरू कर देता है। बिल के अन्दर इसके शरीर में नये खण्डों का निर्माण होता है और यह बिलकारी वयस्क कृमि बन जाता है।
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