Sense Organ Of Aurelia Zoology 1st Year Question Answer

Sense Organ Of Aurelia Zoology 1st Year Question Answer

 

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प्रश्न 6 – ऑरीलिया की ज्ञानेन्द्रियों का वर्णन कीजिए। 

Describe the sense organs of Aurelia. 

उत्तर –

ऑरीलिया की ज्ञानेन्द्रियाँ 

(Sense Organs of Aurelia) Notes

आरालिया में आठ संस्पर्शक (rhopalia) ज्ञानेन्द्रियाँ होती है पीय सीमान्ती खाँचों में स्थित रहती हैं। प्रत्येक संस्पर्शक की रचना में एक टेन्टाकुलोसिस्ट तथा सन्तुलनपुटी (statocyst), दो नेत्रिका (olfactory pits) होते हैं।

(I) टेन्टाकुलोसिस्ट तथा सन्तुलनपुटी (Tentaculocys and Statocyst)

यह एक खोखली मुग्दराकार संरचना है जो दोनों सीमान्त पल्लवाभ (marginal lappets) के बीच स्थित होती है। यह बाहर की ओर छत्रतट के एक प्रवर्ध द्धारा आच्छदित रहती है जिसे हुड (hood) कहते है। हुड दोनों सीमान्ती लेपेट्स के आधारों को भी जोडता है। टेन्टाकुलोसिस्ट

के ठीक नीचे पक्ष्माभी संवेदी उपकला कोशिकाओं की एक गद्दी होती है।

यह कोशिकाएँ बहिचर्म के नीचे स्थित अवछत्रीय तन्त्रिका जाल से जुड़ी होती हैं। टेन्टाकुलोसिस्ट एक विशिष्ट खोखला स्पर्शक होता है। स्पर्शक पुटी के अन्दर वलय नाल का प्रवर्ध फैला रहता है जो जठरचर्म से आस्तरित होता है। टेन्टाकुलोसिस्ट के दूरस्थ भाग में बहुभुजीय कोशिकाओं का एक समूह होता है। इनकी उत्पत्ति जठरचर्म से होती है। प्रत्येक कोशिका के अन्दर स्वयं स्रावित एक कण स्टेटोलिथ होता है जो कैल्सियम सल्फेट और कैल्सियम फॉस्फेट का बना होता है। प्राणी के तैरते समय जब कभी उसका शरीर किसी भी दिशा में तिरछा हो जाता है तो स्टेटोलिथ भार के सन्तुलन का कार्य करते हैं। ये टेन्टाकुलोसिस्ट की मुग्दराकार रचना को उसके आधार पर से आवश्यकतानुसार ऊपर उठाते या नीचे मोड़ते हैं जिससे प्राणी का सन्तुलन बना रहता है। प्राणी के तैरते समय टेन्टाकुलोसिस्ट शरीर के सन्तुलन पर नियन्त्रण रखते हैं। तैरते समय यदि प्राणी का छत्र तिरछा हो जाता है तो टेन्टाकुलोसिस्ट के मुग्दर अपने नीचे की संवेदी गद्दियों पर दबाव डालते हैं जिससे उनकी संवेदी कोशिकाएँ उत्तेजित हो जाती हैं। छत्र जितना अधिक तिरछा होता है, उत्तेजना भी उतनी ही अधिक होती है। अवछत्रीय

Sense Organ Of Aurelia Zoology
Sense Organ Of Aurelia Zoology

(subumbrellar) तन्त्रिका जाल इस उत्तेजना को पेशी रेशों में ले जाता है जो उसके अनसार कार्य करते हैं। इस प्रतिक्रिया के फलस्वरूप प्रत्येक स्पंदन में छत्र के ऊपरी आधे भाग से जल नीचे के आधे भाग की अपेक्षा कम धकेला जाता है और इस प्रकार छत्र स्वयं ठीक हो जाता है।

(II) नेत्रक (Ocellus) Study Notes

नेत्रक दो होते हैं जिनमें से एक की उत्पत्ति एक्टोडर्मल तथा दूसरे की एण्डोडर्मल होती है। पहले नेत्रक को वर्णक बिन्दु नेत्रक (pigment spot ocellus) कहते हैं।

यह टेन्टाकुलोसिस्ट के क्लब से बाहर की वर्णकित एवं संवेदी अधिचर्म कोशिकाओं का एक समूह होता है। दूसरे नेत्रक को वर्णक प्याला नेत्रक (pigment cup ocellus) कहते हैं। यह प्यालाकार गुहिका होती है और वर्णकित एवं संवेदी जठरचर्मी कोशिकाओं द्वारा आस्तरित रहती है। यह टेन्टाकुलोसिस्ट से अन्दर की ओर स्टेटोलिथ के साथ स्थित रहता है। दोनों नेत्रको की संवेदी कोशिकाएँ क्रमश: अपने नीचे स्थित तन्त्रिका जालों से जुड़ी रहती हैं। नेत्रक प्रकाशग्राही (photoreceptors) होते हैं।

III. घ्राण गर्ते (Olfactory pits) Study Notes

ये मोटी अधिचर्म के गड्ढों के रूप में होती हैं जिनमें संवेदी कोशिकाएँ होती हैं। इस प्रकार का एक गड्ढा हुड के आधार पर पाया जाता है। इसे बाहरी या उपमुख घ्राण गर्त (outer aboral olfactory pit) कहते हैं। दूसरा भीतरी अभिमुख घ्राण गर्त कहलाता है। यह स्पर्शक पुटी से अन्दर की ओर पक्ष्माभी संवेदी उपकला कोशिकाओं की गद्दी के आधार पर स्थित होता है।

ये घ्राण गर्न सम्भवत: रसायनग्राही होते हैं।


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