organic chemistry Important Long Question Answer

प्रश्न 11.(अ) ऐल्कीन की इलेक्ट्रोफिलिक तथा मुक्त मूलक योग अभिक्रियाओं की क्रियाविधि उचित उदाहरण द्वारा समझाइए। 

उत्तर : ऐल्कीन की योग अभिक्रियाएँ-ऐल्कीन अणु में कार्बन-कार्बन द्वि-बन्ध होता है। इस बन्ध में एक सिग्मा (σ) तथा एक पाई (π) बन्ध होता है। π-बन्ध के इलेक्ट्रॉन दोनों बना मध्य समान तरीके से साझे में नहीं होते हैं, अत: दोनों कार्बनों पर बराबर मात्रा में आवेश रहते है। अत: कार्बन-कार्बन द्वि-बन्ध के इलेक्ट्रॉनों का उद्गम होता है, इसी कारण यह इलेक्ट्रोफिलिक अभिकर्मकों को आकर्षित करने की क्षमता रखता है।

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योग अभिक्रिया की सामान्य क्रियाविधि 

ऐल्कीन का कार्बन-कार्बन द्वि-बन्ध दो एकसंयोजक परमाणुओं या समूहों से योग करके एक संतृप्त यौगिक बनाता है।

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योग अभिक्रिया में एक श-बन्ध टूटकर दो सिग्मा बन्ध बनते हैं अर्थात् 802 sp3-संकरण में परिवर्तित हो जाता है।

इनकी योग क्रियाएँ दो प्रकार से होती हैं

  1. इलेक्ट्रोफिलिक क्रियाविधि
  2. मुक्त मूलक क्रियाविधि
  3. इलेक्ट्रोफिलिक क्रियाविधि– π-बन्ध की उपस्थिति के कारण द्वि-बन्ध न्यूक्लियोफाइल की भाँति व्यवहार करता है। ये π-इलेक्ट्रॉन अत्यन्त आसानी इलेक्ट्रोफिलिक अभिकर्मकों को उपलब्ध हो जाते हैं। अत: इस क्रियाविधि में कोई इलेक्ट्रोफिलिक अभिकर्मक ही सर्वप्रथम कार्बन-कार्बन द्वि-बन्ध पर आक्रमण करता है।

इलेक्ट्रोफिलिक योग क्रियाएँ ध्रुवीय माध्यम में होती हैं और इनको दो प्रकार से प्रदर्शित कर सकते हैं

(a) विवत कार्बोकैटायन क्रियाविधि— यह निम्न पदों में होती है

(i) सर्वप्रथम आक्रमणकारी अभिकर्मक हेटरोलिटिक विखण्डन से धनायन तथा ऋणायन बनाता है।

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(ii) अब इलेक्ट्रोफाइल X” कार्बन-कार्बन द्वि-बन्ध से क्रिया करके मध्यवर्ती कार्बोकैटायन बनाता है।

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(iii) अन्तिम पद में कार्बोकैटायन न्यूक्लियोफाइल X© से शीघ्रता से संयुक्त होकर योग यौगिक देता है।

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उपर्युक्त आधार पर Br2 की एथीन से अभिक्रिया निम्न प्रकार होगी पद

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उपर्युक्त क्रियाविधि के पक्ष में प्रमाण 

यह इस तथ्य से प्रमाणित होती है कि अन्य न्यूक्लियोफाइलों जैसे CI, NO2. NO3 आदि की उपस्थिति BrCH2CH2CH2Br के साथ BrCH2CH2CI,BrCH2NO2 आदि भी बनते हैं। इन यौगिकों का बनना तभी सम्भव है जब दर निर्धारण पद में मध्यवर्ती कार्बोकैटायन बनता हो।

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(b) हैलोनियम आयन क्रियाविधि

इस क्रियाविधि के अनुसार, (i) π-बन्ध की निकटता के कारण ब्रोमीन अणु का ध्रुवण (polarisation) हो जाता है।

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(ii) ध्रुवित ब्रोमीन अणु आयन धनात्मक भाग से ऐल्कीन के ग-इलेक्ट्रॉन पुंज से क्रिया करके कम स्थायी ग-संकर (T-complex) बनाता है।

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(iii) द्वि-बन्ध के दोनों कार्बन परमाणु ब्रोमीन अणु तथा तोड़कर एक चक्रीय ब्रोमोनियम आयन तथा बरोमेड आयन तथा बरोमेडआयन बनाते है |

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(iv) अन्त में न्यूक्लियोफाइल Bre चक्रीय ब्रोमोनियम आयन के विपरीत और आक्रमण करके डाइब्रोमो ट्रांस (विपक्ष) यौगिक बनाती है।

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चूँकि 1, 2-डाइब्रोमोएथेन समपक्ष (सिस) तथा विपक्ष (ट्रांस) समावयवता नहीं दिखाता इसलिए एथीन में सिस अथवा ट्रांस योग का अन्तर करना कठिन होता है, अतः यह हैलोनियम (चक्रीय) आयन क्रियाविधि को स्पष्ट करती है। उपर्युक्त क्रियाविधि में मध्यवर्ती ब्रोमोनियम आयन का बनना इस तथ्य से भी प्रमाणित होता है कि ब्रोमीन योग के समय CI आयन की उपस्थिति से 1, 2-डाइब्रोमो तथा 1-ब्रोमो-2-क्लोरोएथेन का मिश्रण प्राप्त होता है।

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  1. मुक्त मूलक क्रियाविधि ऐल्कीन में मुक्त मूलक योग

(i) श्रृंखला प्रारम्भक पद- मुक्त मूलक का निर्माण

 

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(iii) श्रृंखला समापन पद—

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मुक्त मूलक योग अभिक्रियाएँ ऑक्सीजन की उपस्थिति में अवरुद्ध हो जाती हैं।

 

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