Diversity Of Pteridophytes Gymnosperms & Elementary Palaeobotany BSc Botany Short Question Answer
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Diversity Of Pteridophytes Gymnosperms & Elementary Palaeobotany
खण्ड ‘अ’ :
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – इफेड्रा के नर व मादा पुष्पों के शंकु का केवल चित्र बनाइए।
उत्तर –
इफेड्रा – नर व मादा पुष्पों के शंकु
(Ephedra : Male and Female Flower with Cones) Notes
प्रश्न 2 – पाइनस के मादा शंकु की अनुदैर्घ्य काट का चित्र बनाइए।
उत्तर
पाइनस – मादा शंकु का L.S. व एक गुरुबीजाणूपर्ण
(Pinus : L.S. of Female Cone and Megasporophyll) Study Notes
प्रश्न 3 – इक्वीसीटम के जीवन चक्र का रेखांकित चित्र बनाइए।
उत्तर –
प्रश्न 4 – साइकस को सागोपाम क्यों कहते हैं?
उत्तर – चीन व जापान में स्थायी रूप से उगने वाला साइकस रिवोल्यूटा (Cycas revoluta) सामान्य रूप से भारतीय बगीचों में उगाया (cultivated) जाता है जो सागो पाम (sago palm) कहलाता है। चूंकि यह पौधा एक सुन्दर पाम (palm) समान ” क्षुपीय (shrubby) प्रकृति का होता है। इस पौधे में एक बेलनाकार, मोटा अशाखित तना होता जिसके अग्रीय भाग पर पत्तियों का एक ताज (crown) होता है।
साइकस रिवोल्यूटा (Cycas revoluta) में तने की आन्तरिक रचना में यह अध्ययन किया गया है कि इसकी मैड्यूलरी किरणों (medullary rays) में सागो स्टाचे कण र starch grains) पाए जाते हैं तथा यह एक मुख्य लक्षण है जिसके कारण यह पौधा सागो पाम’ कहलाता है।
प्रश्न 5 – तख्नजान व बायरहास्ट अथवा टेलर द्वारा दिए गए अना” वर्गीकरण की रूप-रेखा लिखिए।
उत्तर –
तख्तजान (1966) द्वारा दिया गया वर्गीकरण
(Classification proposed by Takhtajan, 1966)
विभाग I – प्रोजिम्नोस्पर्मोफाइटा
विभाग II – टेरिडोस्पर्मोफाइटाB
गण- (1) लाइजिनोप्टेरिडेल्स, (2) मेड्यूलोसेल्स, (3) केलिस्टोफाइटेल्स,
(4) केलेमोपिटाएल्स, (5) केटोनिएल्स, (6) कोरिस्टोस्पर्मेल्स,
(7) पेल्टास्पर्मेल्स, (8) ग्लोसोप्टेरिडेल्स।
विभाग III – साइकेडोफाइटा
विभाग IV – साइकेडियोइडियोफाइटा
विभाग v – गिंगोफाइटा
विभाग VI – कोनीफेरोफाइटा
वर्ग (1) कोर्खाइटोप्सिडा
वर्ग (2) कोनीफेरोप्सिडा
गण – (1) वोल्टजाइएल्स,
(2) कोनीफरेल्स, …
(3) टेक्सेल्स।
प्रश्न 6 – विषमबीजाणुता के जैविक महत्त्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
विषमबीजाणुता का जैविक महत्व .
(Biological Significance of Heterospory) Study Notes
विषमबीजाणुता का जैविक महत्त्व निम्नवत् है
(1) गुरुबीजाणु, गुरुबीजाणुधानी में विकसित होते हैं, जो गुरुबीजाणुपर्ण पर मिलती हैं। गुरुबीजाणु से मादा युग्मकोद्भिद् विकसित होता है जिसमें स्त्रीधानी बनती है।
(2) लघु बीजाणु, लघुबीजाणुधानी में विकसित होते हैं जो लघुबीजाणुपर्ण पर मिलते हैं। लघु बीजाणु नर युग्मकोद्भिद् बनाते हैं। इनमें पुमणु बनते हैं। ..
विषमबीजाणुता लिंग के प्रदर्शन से सम्बन्धित है। इसमें बनने वाले छोटे तथा बड़े आकार के बीजाणु नर तथा मादा लिंग को प्रदर्शित करते हैं। समबीजाणुक जातियों में बीजाणु अंकुरित होकर प्रोथैलस बनाते हैं जिस पर नर तथा मादा जनन अंग विकसित होते हैं। .
सिलैजिनेला एक विषमबीजाणुक वैस्कुलर पौधा है जो बीज स्वभाव के बहुत निकट है। इसमें बीज नहीं बनते हैं जिसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं
(1) बीजाणुधानी में अध्यावरण (integument) का अभाव।
(2) गुरुबीजाणु का गुरुबीजाणुधानी के अन्दर रुकना सम्भव नहीं।
(3) गुरुबीजाणु तथा इसके ऊतकीय सहयोग का अभाव।
(4) भ्रूण के बनने के पश्चात् विश्रामावस्था का अभाव। सिलैजिनेला में भ्रूण विकसित होकर स्पोरोफाइट बनाता है।
प्रश्न 7 – साइकस के पाँच आर्थिक महत्त्व लिखिए।
उत्तर –
साइकस के पाँच आर्थिक महत्त्व
(Five Economic importance of Cycas) Study Notes
साइकस के पाँच आर्थिक महत्त्व निम्नलिखित हैं
(1) साइकस की कुछ प्रजातियों का उपयोग सजावटी पौधों के रूप में किया जाता है
जैसे—साइकस रिवोल्यूटा (C. revoluta.) आदि।
(2) साइकस के तने के पिथ से स्टार्च निकलता है, जो साबूदाना बनाने के काम आता
है। इस कारण इसको सागोपाम (Sago-palm) भी कहा जाता है।
(3) कुछ स्थानों पर (जैसे—मलाया, असम, इण्डोनेशिया आदि) तरुण साइकस की
पत्तियों को उबालकर शाक की तरह उपयोग में लाया जाता है।
(4) साइकस सर्सिनेलिस (C. circinalis) की पत्तियाँ दक्षिण भारत में चटाई बनाने
के काम आती हैं।
(5) साइकस की कुछ प्रजातियों से चर्म रोग, सिरदर्द आदि की दवा बनाई जाती है।
प्रश्न 8 – सिलैजिनेला के मेगास्पोर व मादा युग्मकोद्भिद् के विकास का चित्र बनाइए।
उत्तर –
सिलैजिनेला का मेगास्पोर व मादा युग्मकोभिद्
(Megaspore and Female Gametophyte of Selaginella) Notes
प्रश्न 9 – इफेड़ा के परिपक्व तने की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बना
उत्तर –
इफेड्रा के परिपक्व तने का T.S.
(T.S. of Old Stem of Ephedra) Notes
प्रश्न 10 – इक्वीसीटम के तने में मरुद्भिद् व जलोद्भिद् लक्षण लिखिए।
उत्तर –
तने के मरुद्भिद लक्षण
(Xerophytic characters of Stem) Notes
1. उभार तथा गर्त (ridges and furrow) की उपस्थिति।
2. मोटी क्यूटिकल की पर्त का होना।
3. धंसे रन्ध्र का उपस्थित होना।
4. बाह्यत्वचा की कोशिकाओं में सिलिका का मिलना पत्तियों का शल्क रूप में मिलना।
5. स्केलेरनकाइमा की उपस्थिति।
6. कॉर्टेक्स में क्लोरेनकाइमा का मिलना।
7. संवहन पूलों का विकसित होना।
तने के जलोद्भिद् लक्षण (Hydophytic characters of Stem)
1. कॉर्टेक्स में वेलीकुलर कैनाल की उपस्थिति।
2. संवहन पूल में केरीनल कैनाल की उपस्थिति।
3. पिथ में गुहा का मिलना।
4. जाइलम तथा फ्लोयम का कम विकसित होना।
प्रश्न 11 – पाइनस की सामान्य जड़ की अनुप्रस्थ काट का आन्तरिक संरचना तथा द्वितीयक वृद्धि दर्शाते हुए केवल चित्र बनाइए।
उत्तर –
पाइनस-सामान्य जड़ की T.S.,
आन्तरिक संरचना व द्वितीयक वृद्धि दर्शाते हुए
(Pinus : T.S. of Normal Root shows Internal Structure and Secondary Growth)
प्रश्न 12 – इक्वीसीटम के एक संवहन पूल का विस्तृत चित्र बनाइए।
उत्तर –
प्रश्न 13 – साइकस के रेकिस की अनुप्रस्थ काट का चित्र बनाइए।
उत्तर –
साइकस-रेकिस की लम्ब काट
प्रश्न 14 – लाइकोपोडियम का वितरण, प्राप्ति स्थान व स्वभाव का विवरण लिखिए।
उत्तर –
लाइकोपोडियम का वितरण, प्राप्ति स्थान तथा स्वभाव
(Distribution, Habitat and Habit of Lycopodium) Notes
लाइकोपोडियम की लगभग 180 जातियाँ हैं। संसार के सभी भागों में इसकी जातिया पायी जाती हैं। मुख्य रूप से कटिबंधीय (tropical), शीतोष्ण (temperate) क्षेत्रा में इसकी अधिकांश जातियाँ मिलती हैं। चौधरी (1937) तथा पाणिग्रही (1962) के अनुसार लगभग 33 जातियाँ भारतवर्ष में मिलती हैं। अधिकांशतः पूर्वी हिमालय तथा कुमायूँ, नीलगिरी, ऊटी क्षेत्र में तथा इसकी कुछ जातियाँ पश्चिमी हिमालय क्षेत्रों में भी मिलती है।
आमतौर पर मिलने वाली जातियाँ लाइकोपोडियम फ्लेग्मेरिया, ला० हेमलटोनी,” ला० क्लेवेटम, ला० फिल्लेन्थम, ला० सिलेगो, ला० सरेटम, ला० सर्नुअम आदि ।
अधिकांश जातियाँ छायादार (shady), नम (moist) स्थानों पर मिलती हूमस (humus) तथा कार्बनिक पदार्थों की अधिकता मिलती है। ला० फ्लेग्मरिया उपरिरोही (epiphyte) है जो वृक्षों पर लटकता हुआ पाया जाता है। ला० सिलेगो का तना सीधा तथा द्विभाजीशाखित होता है। ला० क्लेवेटम जमीन पर रेंगता हुआ मिलता है।
लाइकोपोडियम के पादप मुग्दर मॉस (club moss) या ग्राउन्ड पाइन्स (ground pines) कहलाते हैं।
पादप मॉस के आकार के प्रतीत होते हैं तथा इनका तना पत्तियों से घिरा रहता है। इनके स्वभाव में अपने आवास व वातावरण के अनुसार विविधता मिलती है। टेम्परेट क्षेत्रों में मिलने वाली जातियाँ जमीन पर रेंगने वाली होती हैं। ला० बोल्यूबाइल एक आरोही (climber) है।
राथमेलर (Rothmalar, 1944) ने वंश को चार वंशों में विभाजित किया (i) हुपरजिया (Huperzia), लाइकोपोडियम सेन्सुट्रिक्टो (Lycopodium sensutricto), लेपीडॉइटिस (Lepidoitis) तथा डाइफेशियम (Diphasium) आदि प्रिटजैल (Pritizel, 1900) ने लाइकोपोडियम को दो उपवंशों में विभाजित किया–(i) यूरोस्टेकिया (Urostachya) तथा (ii) रोप्लोस्टेकिया (Rhopalostachya)।
प्रश्न 15 – साइकस में परागण बूंद पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
परागण बूंद
(Pollen drop) Notes
साइकस में परागण वायु द्वारा होता है। परागकण बीजाण्डद्वार से निकले लसलसे पदार्थ में उलझ जाते हैं। इस पदार्थ को परागण बूंद कहते हैं। इस पदार्थ के सूखने के पश्चात् परागकण परागकोष्ठ (Pollen chamber) के अन्दर प्रवेश करते हैं।
प्रश्न 16 – ट्रांसफ्यूजन ऊतक क्या है?
उत्तर –
ट्रांसफ्यूजन ऊतक
(Transfusion Tissue) Notes
साइकस में मध्य शिरा के पूल (bundle) दोनों ओर वाहिनिकाओं (tracheids) के समान दो समूह मिलते हैं जिन्हें प्राथमिक ट्रांसफ्यूजन ऊतक (primary transfusion tissue) कहते हैं। पेलीसेड व स्पंजी पैरेन्काइमा के बीच लम्बी वाहिनिकाओं के समान कोशिकाओं की दो-तीन परतें मिलती हैं, जो मध्य शिरा से लेकर पक्षों (wings) के किनारों तक अनुप्रस्थ रूप से (transversely) फैली रहती हैं। इस ऊतक के सहायक अथवा
द्वितीयक ट्रांसफ्यूजन ऊतक (secondary transfusion tissue) कहते हैं। इससे पार्श्व
शिराओं की अनुपस्थिति की पूर्ति होती है तथा यह पानी व खनिज लवणों के संवहन में सहायक होता है।
प्रश्न 17 – लाइकोपोडियम के जीवन चक्र का केवल चित्र (विस्तृत) बनाइए।
उत्तर –
प्रश्न 18 – लाइकोपोडियम के जीवन-चक्र का रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर –
प्रश्न 19 – टेरीडियम के जीवन-चक्र का रेखाचित्र द्वारा दर्शाइए।
उत्तर –
टेरीडियम में पीढ़ी एकान्तरण (जीवन-चक्र)
[Alternation of Generation in Pteridium (Life-cycle)] Notes
टेरीडियम में स्पष्ट पीढ़ी एकान्तरण पाया जाता है। ब्रायोफाइट्स की भाँति जीवन-चक्र के आधे भाग में अगुणित (युग्मकोद्भिद्) रचना तथा आधे भाग में द्विगुणित (बीजाणुउद्भिद्) रचनाएँ बनती हैं, वैसे टेरीडियम स्वयं एक बीजाणुउद्भिद् पादप है। अतः इसका जीवन-चक्र डिप्लोहेप्लोबायोन्टिक (diplohaplobiontic) प्रकार का होता है।
प्रश्न 20 – सिलैजिनेला में माइक्रोस्पोर (microspore) तथा नर युग्मकोदभिद के विकास का चित्र बनाइए।
उत्तर –
सिलैजिनेला का माइक्रोस्पोर
(Microspore of Selaginella) Study Notes
प्रश्न 21 – इफेड्रा की पत्ती की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
इफेड्रा–पत्ती की संरचना
(Ephedra : Structure of Leaf) Study Notes
पत्ती (Leaf)—इसकी पत्ती झिल्ली समान होती है। इसमें एकस्तरीय बाह्यत्वचा होती है, जो पैरेन्काइमा की बनी होती है। इस पर क्यूटिकिल (cuticle) होती है तथा धंसे हुए रन्ध्र (sunken stoma) मिलते हैं। पेलीसेड 2-3 परत की होती है। पेलीसेड कोशिकार क्लोरोप्लास्ट मिलते हैं। इसमें दो संवहन पूल मिलते हैं।
स्पन्जी कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट नहीं मिलते हैं तथा इनमें अन्तराकोशिकीय स्थान मिलते हैं। इ० विरिडिस में बन्डलशीथ (bundle sheath) मिलती है जिसमें ट्रांसफ्यूजन ट्रेकीड्स (transfusion tracheids) भी मिलती हैं। संवहन पूल में जाइलम तथा फ्लोएम मिलते हैं। Cressen तथा Evert (1993) ने इ० विरिडिस में लीफ टिप को अण्डाकार (Oval) बताया। दो संवहन पूल (vascular bundles) केन्द्र में मिलते हैं। पत्ती का आधार crescent के समान होता है जिसमें होमोजीनियस मीसोफिल (homogeneous mesophyll) मिलती है। कभी-कभी तन्तु (fibres) भी मीसोफिल ऊतक में मिल सकते हैं।
प्रश्न 22 – इफेड्रा के तने की अनुप्रस्थ काट का चित्र बनाइए।
उत्तर –
इफेड़ा के तने की अनुप्रस्थ काट
(Ephedra : T.S. of Stem) Notes
प्रश्न 23 – इक्वीसीटम में भ्रूण का परिवर्धन लिखिए।
उत्तर –
इक्वीसीटम भ्रूण का परिवर्धन
(Development of embryo in Equisetum) Notes
जैफ्री तथा वाकर (Jeffery, 1899 and Walker, 1921) के अनुसार, जाइगोट एक अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा विभाजित होता है, जिसके फलस्वरूप ऊपरी एपीबेसल कोशिका तथा निचली हाइपोबेसल कोशिका का निर्माण होता है। इसमें सस्पेन्सर नहीं बनता है। अगला विभाजन समकोण बनाता हुआ होता है। यह भ्रूण की चतुष्फलकीय अवस्था (quadrant stage) है। सेडवेक (Sadebeck, 1868) के अनुसार, जाइगोट के प्रथम विभाजन के बाद, समकोण बनाते हुए उत्तरोत्तर दो और विभाजन होते हैं तथा आठ कोशिकाएँ बनती हैं (octant stage)।
इ० अरवेन्स में एपीबेसल ऑक्टेन्ट की सबसे बड़ी कोशिका तीन भित्तियों द्वारा इस प्रकार विभाजित होती है कि इसके केन्द्र में तने की एक टेट्राहीड्रल एपीक़ल कोशिका बन जाती है। इस कोशिका के पार्श्व में तीन कोशिकाएँ भिन्नित होती हैं जो प्रथम पत्ती आच्छद (sheath) की तीन पत्तियों में विकसित होती हैं। कभी-कभी पत्तियों की संख्या 2 या 4 हो सकती है। पत्तियाँ छोटी तथा शल्कवत् होती हैं। हाइपोबेसल ऑक्टेन्ट विभाजित होकर एक बड़े आकार का (massive) फुट बनाता है। एक सबसे बड़ी कोशिका को हाइपोबेसल अर्ध के पास होती है। मूल इनिशियल की भाँति कार्य करती है तथा इसी से मूलगोप इनीशियल (root cap initial) कोशिका विकसित होती है। भ्रूण का विकास बहि:बीजाणुक (exosporic) होता है।
भ्रूण का तना तथा मूल तेजी के साथ वृद्धि करते हैं। भ्रूण का तने वाला भाग वृद्धि करके लम्बाई में बढ़ता है तथा स्त्रीधानी की कैलिप्ट्रा को फाड़कर ऊपर की तरफ वृद्धि करता है (कैलिष्ट्रा 2-3 स्तरीय पर्तों का बना होता है जो वेन्टर की कोशिकाओं से विकसित होता है) मूल प्रोथैलस को चीरती हुई नीचे की तरफ मृदा में चली जाती है। तना नोड तथा इन्टरनोड में भिन्नित हो जाता है। 10 – 15 नोड इन्टरनोड विकसित होने तक यह ऊपर की तरफ वृद्धि करता है। अब प्राथमिक शाखा के आधार से द्वितीयक शाखा उत्पन्न होती है। शाखा के प्रत्येक नोड पर चार-पाँच पत्तियाँ मिलती हैं। द्वितीयक शाखा की वृद्धि प्राथमिक शाखा के आधार से द्वितीयक शाखा उत्पन्न होती है। शाखा के प्रत्येक नोड पर चार-पाँच पत्तियाँ मिलती हैं। द्वितीयक शाखा की वृद्धि प्राथमिक शाखा के समान होती हैं। प्राथमिक तने के आधार से उत्तरोत्तर शाखाएँ निकलती हैं। तीसरी या चौथी शाखा भूमि में नीचे जाकर राइजोम बनाती हैं।
Campbell (1928) के अनुसार द्वितीयक शाखा की उत्पत्ति आन्तर्जात (endogenous) होती है। यह प्राथमिक जड़ के ऊतक से बनती है। द्वितीयक शाखा पर अपस्थानिक जड़ें मिलती हैं। …
प्राथमिक तना ठोस रहता है। इसमें केरीनल कैनाल नहीं होती है। बीजांकुर (seeding) के आधार पर प्रोटोस्टील मिलता है। प्रथम शाखा के तल पर साइफोनोस्टील मिलता है। वेलीकुलर कैनाल तथा केरीनल कैनाल परिपक्व तने में बनती है।
प्रश्न 24 – साइकस बीजाण्ड की लम्ब काट का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर –
साइकस-बीजाण्ड का L.S.
(Cycas : L.S. of Ovule) Notes
प्रश्न – 25 टेरिडोफाइटा का आर्थिक महत्त्व लिखिए।
उत्तर –
टेरिडोफाइटा का आर्थिक महत्त्व
(Economic Importance of Pteridophyta) Notes
टेरिडोफाइटा का आर्थिक महत्त्व निम्नवत् है
1. लाइकोपोडियम (Lycopodium) के बीजाणुओं का उपयोग आतिशबाजी व विस्फोटकों (explosives) के निर्माण में किया जाता है।
2. लाइकोपोडियम की कुछ प्रजातियों से तेल निकलता है। इनका उपयोग होम्योपैथिक औषधि के निर्माण में किया जाता है। .
3. फर्न की अनेक जातियों का उपयोग आयुर्वेद तथा होम्योपैथी की दवाएँ बनाने में होता है जैसे ओफियोग्लोसम (Ophioglossum), ड्रायोप्टेरिस (Dryopteris), बोट्रीकियम (Botrychium) की जातियाँ।
4. फर्न की कई जातियों का उपयोग सजावटी पौधों (ornamental plants) के रूप में किया जाता है। इनको फर्न हाउस (fern house) तथा व्यक्तिगत बागों (private gardens) में लगाया जाता है जैसे एसप्लेनियम (Asplenium) आदि की जातियाँ।
5. इस वर्ग के कुछ पौधों का उपयोग शोधकार्यों के लिए भी किया गया है; जैसे टेरिस लोंगीफोलिया (Pteris longifolia) आदि।
6. इक्वीसीटम (Equisetum) के तने की एपिडर्मिस (epidermis) की कोशिकाओं में सिलिका (silica) के कण मिलते हैं। अत: इसके तने के गुच्छे को बर्तन साफ करने में उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 26 – भारत में इफेड्रा कहाँ मिलता है? मुख्य स्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर –
भारत में इफेडा का वितरण
(Distribution of Ephedra in India) Notes
प्रश्न 27 – माीलिया के पर्णवृन्त की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर –
मार्सीलिया के पर्णवृन्त की अनुप्रस्थ काट
(T. S. of Petiole of Marsilea). Notes
प्रश्न 28 – मासीलिया के स्पोरोकार्प का H.L.S. का चित्र बनाइए।
उत्तर –
मार्सीलिया का स्पोरोकार्प
(Sporocarp of Marsilea) H.L.S. NOtes
प्रश्न 29 – मासीलिया के स्पोरोकार्प के V.T.S. का चित्र बनाइए।
उत्तर –
मार्सीलिया का स्पोरोकार्प
(Sporocarp of Marsilea) V.T.S. Notes
प्रश्न 30 – सल्फर वर्षा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर –
सल्फर वर्षा (Sulphur shower) Study Notes
पाइनस में लघुबीजाणु गोल व द्विभित्तीय संरचना है। इन्हें परागकण भी कहते हैं। ये लघु बीजाणु परागण से पूर्व नर शंकु से इतनी अधिक मात्रा में वायु के झोंके से विमोचित होते हैं कि एक प्रकार से पीले रंग का बादल-सा चीड़ के जंगलों में दिखाई देता है। इसे ही वनस्पतिविज्ञों ने सल्फर शावर (Sulphur shower) अथवा सल्फर वर्षा का नाम दिया है। पाइन के वन इन पीले परागकणों से आच्छादित हो जाते हैं। वनों का वातावरण एक विशेष प्रकार का हो जाता है। परागकण अत्यधिक मात्रा में नर शंकु से विमोचित होते हैं।
प्रश्न 31 – पाइनस की भारत में मिलने वाली मुख्य प्रजातियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर –
पाइनस (Pinus) Study Notes
पाइनस को सामान्यत: चीड़ (Chir) अथवा पाइन (Pine) के नाम से भी जाना जाता है। ये सदाबहार शंकु रूपी वृक्ष हैं, जो 500-1800 मीटर की ऊँचाई पर मिलते हैं। पाइनस की 70-100 जातियाँ (विलिस, 1986) मिलती हैं। भारत में मिलने वाली मुख्य जातियाँ इस प्रकार हैं
(1) पाइनस एक्सेल्सा अथवा पाइनस वालीचियाना (Pinus excelsa syn. P. wallichiana–Blue pine)
(2) पाइनस इन्सुलेरिस अथवा पाइनस खास्या (P. insularis syn. P. khasiya- Khasi pine)
(3) पाइनस आरमण्डी (P. armandii-Armandis pine)
(4) पाइनस लोंगीफोलिया अथवा पाइनस रॉक्सबरघाई (P. longifolia syn. P. roxburghii-Chir)
(5) पाइनस जिरार्डिआना (P. gerardiana-Chilgoza)
(6) पाइनस मरकुसाई (P. merkusii-Markus pine)।
प्रश्न 32 – पाइनस की नीडिल की अनुप्रस्थ काट का चित्र बनाइए।
उत्तर –
पाइनस-नीडिल का T.S. (Pinus : T.S. of Needle) Study Notes
प्रश्न 33 – यूस्पोरेन्जिएट तथा लेप्टोस्पोरेन्जिएट प्रकार का बीजाणुधानी का विकास लिखिए।
उत्तर – यूस्पोरेन्जिएट प्रकार (Eusporangiate type)-प्रत्येक बीजाणुधानी एक से अधिक पृष्ठीय कोशिकाओं (superficial cells) से विकसित होती है, इसमें परिनत विभाजन (periclinal division) द्वारा दो कोशिकाएँ बनती हैं। बाह्य कोशिका जैकेट इनीशियल (jacket initial) तथा भीतरी कोशिका प्राथमिक बीजाणुजनन कोशिका (primary sporogenous cell) कहलाती है। जैकेट इनीशियल से बीजाणुधानी की बहुस्तरीय भित्ति तथा प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका से बीजाणु बनते हैं। उदाहरण लाइकोपोडियम, इक्वीसीटम, सिलैजिनेला आदि।
लेप्टोस्पोरेन्जिएट प्रकार (Leptosporangiate type)-इसमें बीजाणुधानी का विकास केवल एक पृष्ठीय कोशिका से होता है। परिनत विभाजन से बनी बाह्य कोशिका एकस्तरीय बीजाणुभित्ति तथा भीतरी कोशिका बीजाणुजन ऊतक बनाती है; जैसे-एडिएन्टम, टेरिस आदि।
प्रश्न 34 – साइकस के भारत में वितरण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
साइकस का वितरण
(Distribution of Cycas) Notes
साइकस एक सदाबहार, ताड़ जैसा पौधा है, जो विश्व के अधिकांश भागों में मिलता है। मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारतीय उपमहाद्वीप, पेसिफिक समुद्र से लगे द्वीप तथा चीन में इसकी प्रजातियाँ मिलती हैं। भारत में इसकी छह स्पीशीज मिलती हैं, जो प्राकृतिक रूप से ओडिशा, पूर्वी बंगाल, असम, मद्रास, कर्नाटक, अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह आदि स्थानों में पायी जाती हैं। Bierhost (1971) ने साइकस की 20 जातियाँ बताई। साइकस रिवोल्यूटा (Cycas revoluta), साइकस सर्सिनेलिस (C. circinalis), साइकस रम्फाई (C. rumphii) आदि साइकस की प्रमुख स्पीशीज हैं। साइकस रिवोल्यूटा को शोभाकारी या सजावटी पौधे के रूप में जापान में उगाया जाता है। भारत में साइकस की चार जातियाँ मिलती हैं
साइकस बेडोमी (C. beddomei), साइकस पेक्टीनेटा (C. pectinata), साइकस सर्सिनेलिस (C. circinalis), साइकस रम्फाई (C. rumphii)।
पन्त (Pant, 1973) के अनुसार साइकस की 37 जातियाँ हैं। भारत में साइकस केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, सिक्किम, अण्डमान – निकोबार द्वीप समूह, उत्तराखण्ड आदि में मिलता है।
तालिका : साइकस का भारत में वितरण
जाति (Species) | प्राप्ति स्थान (Place of occurrence) |
सा० बेडोमी (C. beddomei) | तमिलनाडु के कुडप्पा जिले की पहाड़ियाँ, पूर्वी आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना। |
प्रश्न 35 – निम्नलिखित के वानस्पतिक नाम (Botanical names) लिखिए
(i) मेडन हेयर ट्री, (ii) चिलगोजा, (iii) चीड़, (iv) यू, (v) लर्च, (vi) फर, (vii) स्यूस, (viii) देवदार, (ix) ब्लूपाइन, (x) खासी पाइन, (xi) हेमलॉक।
उत्तर – नाम वानस्पतिक नाम
(i) मेडन हेयर ट्री (Maiden hair tree) गिंगो बाइलोबा (Ginkgo biloba) ..
(ii) चिलगोजा (Chilgoza) पाइनस जिरार्डिआना (Pinus gerardiana)
(iii) चीड़ (Chir) पाइनस रॉक्सबरघाई (P. roxburghii)
(iv) यू (Yew) टैक्सस बकाटा (Taxus baccata)
(v) लर्च (Lirch) लैरिक्स (Larix)
(vi) फर (Fur) एबीज (Abies)
(vii) स्प्रूस (Spruce) पीसिया (Picea)
(viii) देवदार (Deodar) सीड्स (Cedrus)
(ix) 0214157 (Blue pine) पाइनस वालीचियाना – (Pinus wallichiana)
(x) खासी पाइन (Khasi pine) पाइनस खासिया (Pinus khasiya)
(xi) हेमलॉक (Hemlock) स्यूगा (Tsuga)
प्रश्न 36 – पुरावनस्पति विज्ञान तथा जीवाश्म से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में लिखें।
उत्तर – पुरावनस्पति विज्ञान (Palaeobotany)-पेलियोबोटनी विज्ञान की वह शाखा है जिसमें हम इस प्रकार के भूतकालीन पादपों का अध्ययन करते हैं, जो आजकल नहीं मिलते हैं। जीवाश्म की परिभाषा देना एक कठिन कार्य है।
जीवाश्म (Fossil)-जीवाश्म का तात्पर्य जीवों के अवशेष (remains of organisms) से है, जो प्राचीनकाल में जीवित थे, परन्तु अब नहीं हैं।
Schopf (1975) defined fossil as any specimen that demonstrates the physical evidence of the occurrence of ancient life.
Stewart (1983) defined fossil as any evidence of prehistoric life.
आमतौर पर पौधे मरने के पश्चात् विघटित हो जाते हैं। पादप शरीर का प्रत्येक भाग रासायनिक रूप से यौगिक में परिवर्तित हो जाता है। परन्तु कभी-कभी विशेष वातावरण की
परिस्थितियों में पादप शरीर विघटित नहीं होता है तथा यह चट्टानों आदि पर चिपककर अपनी चिह्न बना देता है। इन जीव अवशेषों को जीवाश्म (fossil) कहा जाता है। ये निर्जीव होते हैं।
पादप जीवाश्म आमतौर पर चट्टानों पर होते हैं। चट्टानें क्रमोत्तर श्रेणियों में एक-दूसरे के ऊपर व्यवस्थित रहती हैं। ये समुद्र की तली या झीलों आदि में बनती हैं। चट्टान निर्माण का समय भू-वैज्ञानिक युग (geological periods) से सम्बन्धित है।
प्रश्न 37 – ‘साइकस में वर्धी प्रजनन‘ पर टिप्पणी लिखिए। ”
उत्तर –
साइकस में वर्धी प्रजनन
(Vegetative Reproduction in Cycas) Notes
साइकस की सभी जातियों में बुलबिल्स (bulbils) द्वारा वर्धीजनन होता है। बुलबिल अपस्थानिक कलिकाएँ हैं जो अपाती पर्णाधारों (persistent leaf bases) के बीच की दरारों में उत्पन्न होती हैं तथा इनका आधार शल्क-पत्रों (scale leaves) से ढका रहता है। अनुकूल परिस्थिति में ये मुख्य पौधे से अलग होकर नये पौधे को जन्म देती हैं।
प्रश्न – 38 टेरिडोफाइटा का वर्गीकरण लक्षणसहित लिखिए।
उत्तर –
टेरिडोफाइटा का वर्गीकरण
(Classification of Pteridophyta) इसको चार सब डिवीजनों में विभाजित किया गया है।
इनके मुख्य लक्षण निम्न प्रकार हैं –
- सब–डिवीजन साइलोफाइटा (Psilophyta)
- अधिकांश पौधे जीवाश्म (fossils) हैं। .
- पत्तियाँ तथा सत्य जड़ अनुपस्थित होती हैं।
- बीजाणुधानी (sporangia) तने के अग्र भाग पर मिलती हैं।
- जल का अवशोषण मूलाभास (rhizoids) द्वारा होता है।
- सब–डिवीजन लाइकोफाइटा या लेपीडोफाइटा (Lycophyta or Lepidophyta)
- स्पोरोफाइट में जड़, तना तथा पत्ती मिलते हैं।
- पत्तियाँ छोटी व सरल होती हैं।
- बीजाणुधानी स्पोरोफिल पर या स्पोरोफिल कोन (cone) के रूप में मिलती हैं।
- होमोस्पोरस (homosporous) अथवा हेटरोस्पोरस (heterosporous) होते हैं।
III. सब–डिवीजन आर्थोफाइटा (Arthrophyta)
- स्पोरोफाइट जड़, तना तथा पत्ती का बना होता है।
- तने पर पर्वसन्धियाँ (node) व पर्व (internode) मिल सकते हैं।
- बीजाणुधानियाँ, बीजाणुधानीधरों (sporangiophores) पर मिलती हैं जो मिलकर एक शंकु (cone) बनाते हैं।
- पत्तियाँ चक्करों (whorl) में व्यवस्थित होती हैं।
- पत्तियाँ माइक्रोफिल्लस (microphyllous) होती हैं।
- सब–डिवीजन फिलीकोफाइटा या टेरोफाइटा (Filicophyta or Pterophyta)
- स्पोरोफाइट जड़, तना व पत्ती में विभेदित होता है।
- पत्तियाँ बड़ी तथा मेगाफिल्लस होती हैं।
- बीजाणुधानियाँ स्पोरोफिल की निचली सतह पर बीजाणुधानी पुंज (sori) में मिलती हैं।
- कुछ फर्न की जातियों को छोड़कर सभी होमोस्पोरस (homosporous) होती हैं। .
प्रश्न 39 – इक्वीसीटम का आर्थिक महत्त्व व वर्गीकीय स्थिति लिखिए।
उत्तर –
इक्वीसीटम का आर्थिक महत्त्व
(Economic Importance of Equisetum) Notes
- तने के बाह्यत्वचा में सिलिका होने के कारण, इसके गुच्छे बर्तन साफ करने के काम आता है।
- इ० आरवेन्स डाइयूरेटिक की भाँति प्रयोग होता है।
- इ० डिवाइल से सूजाक (Gonorrhoea) की दवा बनाई जाती है।
- Benedict (1914) के कुछ जातियों में सोने की उपस्थित (41, ozper ton) बताई। अत: कुछ जातियाँ पादप संकेतक (plant indicator) का भी कार्य करती है।
वर्गीकीय स्थिति
सबडिवीजन (Subdivision) – स्फीनोप्सिडा (Sphenopsida)
गण (Order) इक्वीसीटेल्स (Equisetales)
कुल (Family) – इक्वीसोटेसी (Equisetacae)
वंश (Genus) – इक्वीसीटम (Equiselum)
प्रश्न 40 – पाइनस के तने की R.L.S. व T.L.S. का चित्र बनाइए।
उत्तर – पाइनस-तने की T.L.S. वR.L.S.
(Pinus : T.L.S. and R.L.S. of Stem)