BSC Physical Chemistry Mathematical Concepts and Computers
BSC Physical Chemistry Mathematical Concepts and Computers:-
(भौतिक रसायन) लघु उत्तरीय प्रश्न?
परीक्षा प्रश्न-पत्र में इस खण्ड में एक प्रश्न होगा, जिसके 10 भागहोंगे सभा भागाका उत्तर देना अनिवार्य होगा।
प्रश्न 1. सिद्ध कीजिए कि फलन y= x5 + 5x4 – 10 का अधिकता मान x= 1 पर तथा न्यूनतम मान x= 3 पर प्राप्त होता है।
उपर्युक्त को पुनः x के सापेक्ष अवकलित करने पर,
अत: x= 1 पर अधिकतम मान प्राप्त होता है।
अत: x= 3 पर न्यूनतम मान प्राप्त होता है।
प्रश्न 7. टेराबाइट (TB) तथा पीटाबाइट (PB) के मध्य क्या सम्बन्ध है? बताइए।
उत्तर: 1PB = 1024 TB
अर्थात् एक पीटाबाइट (PB), 1024 टेराबाइट (TB) के बराबर होता है।
प्रश्न 8. कम्प्यूटर की भाषा का संक्षेप में वर्णन कीजिए। अथवा FORTRAN का पूरा नाम लिखिए। अथवा BASIC का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर : कम्प्यूटर मनुष्य की भाषा को नहीं समझ सकता है। जिस भाषा को कम्प्यूटर समझ सकता है उसे कम्प्यूटर की भाषा (computer’s language) कहते हैं। इसे प्रोग्रामिंग भाषा भी कहा जाता है। यह विभिन्न प्रकार की होती हैं
- मशीनी भाषा अथवा निम्न स्तर भाषा– यह बाइनरी संख्या 0 तथा 1 से मिलकर बनी हुई है।
- उच्च स्तरीय भाषा– यह अंग्रेजी से मिलती-जुलती है, अत: इस पर कार्य करना आसान है। उच्च स्तरीय भाषा के निम्नवत् उदाहरण हैं
(i) बेसिक (Basic)— इसका पूर्ण अर्थ है बिगिनर्स ऑल परपज सिम्बॉलिक इन्स्ट्र क्शन कोड (Beginners All Purpose Symbolic Instruction Code)। यह प्रोग्रामिंग हेतु प्रयोग की जाती है।
(ii) कोबोल (Cobol)— इसका पूर्ण स्वरूप है कोमन बिजनेस ओरिएन्टिड लेंगवेज (Common Business Oriented Language)। यह बिजनेस डाटा प्रोसेसिंग में प्रयोग
की जाती है।
(iii) फॉरट्रान (Fortran)- इसका पूर्ण रूप है फॉर्मूला ट्रांसलेशन (Formula Translation)। यह भाषा वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोग में लायी जाती है।
(iv) सी (C)- यह भी प्रोग्रामिंग के लिए उपयोगी है। यह सिस्टम सॉफ्टवेयर जैसे आपरेटिंग सिस्टम (Operating system) बनाने में काम आती है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त और भी कई भाषाएँ प्रचलित हैं।
प्रश्न 9. कम्प्यूटर के विभिन्न भागों के आपसी सम्बन्ध चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कोई भी कम्प्यूटर चाहे छोटा हो या बड़ा, चाहे नया हो या पुराना, उसके पाप मख्य भाग होते हैं-इनपुट, आउटपुट, प्रोसेसर, मेमोरी तथा प्रोग्राम। इन भागों में परस्त सम्बन्ध को अग्रांकित चित्र द्वारा दर्शाया गया है
वर्तमान समय में प्रचलित कम्प्यूटर को इलेक्ट्रॉनिक डाटा संसाधन (EDP) यन्त्र अथवा स्व-डाटा संसाधन (ADP) यन्त्र भी कहते हैं।
प्रश्न 10. कम्प्यूटर के विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।।।
उत्तर : कम्प्यूटर के मुख्यतः तीन भाग होते हैं
(1) इनपुट डिवाइस (Input Device),
(2) सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit) तथा
(3) आउटपुट डिवाइस (Output Device)।
(1) इनपुट डिवाइस (Input Device)- जिन डिवाइसेस के द्वारा हम कोई भी सूचना या निर्देश कम्प्यूटर में फीड (Feed) कराते हैं, उन्हें ‘इनपुट डिवाइसेस’ कहते हैं। प्रमुख इनपुट डिवाइसेस निम्नलिखित हैं
(i) की-बोर्ड (Keyboard),
(ii) माउस (Mouse),
(iii) जॉयस्टिक (Joystick)
(iv) लाइट पेन (Light pen) तथा
(v) स्कैनर (Scanner)।
(2) सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (Central Processing Unit)- इसे ‘सी० पी० यू०’ भी कहा जाता है। यह कम्प्यूटर का मस्तिष्क (brain): होता है जो कम्प्यूटर के सभी भागों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। सी० पी० यू० में लॉजिकल तथा अर्थमैटिक डाटा की प्रोसेसिंग की जाती है। सी० पी० यू० की क्षमता (capacity) इस बात पर निर्भर करती है कि इसके द्वारा डाटा की प्रोसेसिंग कितनी तीव्रता और त्रुटिहीनता से की जा रही है। सी० पी० य० की गति को मेगाहर्ट, गीगाहर्ट्स आदि में मापा जाता है। सी० पी० यू० को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है—
(i) कण्ट्रोल यूनिट (Control Unit. CU),
(ii) अर्थमेटिकल तथा लॉजिकल – यूनिट (Arithmetical & Logical Unit, ALU)
(iii) मेमोरी या स्टोरेज क्षमता (Memory or Storage Capacity)
-RAM (Random Access Memory)
-ROM (Read Only Memory)
(3) आउटपुट डिवाइस (Output Device)- कम्प्यूटर में फीड किए गए डार तथा इनफनाल कामयालयालोक्यशन करने के पश्चात् आउटपुट को दान के लिए डिवाइसे-कोन देता है. उन्हें ‘आउटपुट डिवाइसस कहत है।
मुख्य आउटपुट डिवाइसेस निम्नलिखित हैं
(क) नोटर Monitor) तथा
(ख) शिष्टर Printer)।
प्रश्न 11. लेसर मुद्रक क्या है? समझाइए।
उतर: लेसर मुद्रक में लेसर किरणों तथा जीरोग्राफिक फोटो प्रतिलिपीयन प्रौद्योगिकी का सम्मिलिग किया जाता है। लेसर मद्रक में निर्धारित विषय के पूर्णपृष्ठ का अवश्य उडान प्रतिबिम्ब बनाने के लिए एक छोटे लेसर से एक किरण आवाशत जीरोग्राफिक नियम ढोल के आर-पार पड़े वलनों का (क्षैतिज के समान्तर) क्रमवीक्षण करती है। इससे न केवल वर्ण, अंक सम्बन्धी लक्षण उत्पन्न किए जा सकते है वरन् है आलेखी का आरेखण भी किया जा सकता है।
प्रश्न : 12.17 को बाइनरी में बदलिए।
हल : 17 को बाइनरी संख्या में निम्न प्रकार बदला जाता है
2 | 17 | शेषफल |
2 | 8 | 1 |
2 | 4 | 0 |
2 | 2 | 0 |
1 | 0 |
अत: (17010 = (10001)2
प्रश्न 13. (10010) को दशमलव रूप में बदलिए।
हल : बाइनरी संख्या (10010)2 को दशमलव संख्या में निम्न प्रकार बदलेगे
प्रश्न 14. 5 व्यक्ति एक 8 तल के मकान के भूतल पर लिफ्ट की कोठरी में प्रवेश करते हैं। माना उनमें से प्रत्येक स्वतन्त्र रूप से तथा बराबर प्रायिकता के साथ प्रथम तल से शुरू करके किसी भी तल पर कोठरी छोड़ता है। सभी पाँच व्यक्तियों द्वारा विभिन्न तलों पर कोठरी छोड़ने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
हल : भूतल को छोड़कर 7 तल हैं। चूँकि एक व्यक्ति 7 तलों में से किसी पर भी कोठरी छोड़ सकता है।
विधियों की सम्पूर्ण संख्या = 7°
5 व्यक्ति 5 भिन्न तलों पर कोठरी 7P5, विधियों द्वारा. छोड़ सकते हैं।
प्रश्न 15. आदर्श गैस क्या है?
अथवा आदर्श गैस क्या है, यह वास्तविक गैस से किस प्रकार भिन्न है? |
अथवा आदर्श गैस तथा वास्तविक गैस में अन्तर बताइए।
उत्तर : वह गैस जिसके अणुओं के मध्य परस्पर कोई आकर्षण बल नहीं होता है तथा फैलने पर आयतन परिवर्तन के साथ ऊर्जा में परिवर्तन भी नहीं होता है, आदर्श गैस कहलाती है। ऐसी गैसें ताप तथा दाब की समस्त परिस्थितियों में गैस नियमों का पालन करती हैं अर्थात ये ताप तथा दाब की समस्त परिस्थितियों में आदर्श गैस समीकरण का पालन करती हैं।
आदर्श गैस के निम्नलिखित विशिष्ट गुण हैं
- स्थिर ताप पर, आदर्श गैस के आयतन व दाब का गुणनफल सदैव स्थिर रहता है।
- आदर्श गैस की संपीड्यता इकाई होती है।
- आदर्श गैस के अणुओं के बीच कोई आकर्षण नहीं होता है।
- यदि आदर्श गैस को स्थिर दाब पर ठण्डा किया जाए तो- 273°C तक इस गैस का आयतन घटता जाएगा तथा – 273°C या 0 K पर इसका आयतन शून्य हो जाएगा।
- यदि बिना बाहरी कार्य किए आदर्श गैस का प्रसारण किया जाए तो यह कोई ऊष्मीय प्रभाव नहीं दिखाती है।
वास्तव में, कोई गैस आदर्श नहीं है। यह केवल परिकल्पनात्मक है। .
आदर्श तथा वास्तविक गैसों के मध्य अन्तर .
क्र० सं० | आदर्श गैस | वास्तविक गैस |
1. | ये गैसें भी ताप व दाब पर सभी परिस्थितियों में गैसीय नियमों का पालन करती हैं। | ये गैसें केवल निम्न दाब तथा उच्च ताप पर गैसीय नियमों का पालन करती हैं। |
2. | पात्र में ली गई गैस के आयतन के सापेक्ष उसके अणुओं का आयतन नगण्य होता है। | पात्र में ली गई गैस के आयतन के सा उसके अणुओं का आयतन नगण्य नही होता है। |
3. | गैस के अणुओं के मध्य अन्तर-अणुक आकर्षण बल कार्य नहीं करता है। | गैस के अणुओं के मध्य अन्तर-अणक आकर्षण बल कार्य करता है। |
प्रश्न 16. संघट्टन व्यास और संघट्टन आवृत्ति की परिभाषा लिखिए।
उत्तर : संघट्टन व्यास-संघट्टन वह प्रक्रम है जिसमें दो समान अणुओं के केन्द्र एक-दूसरे से एक निश्चित दूरी σ पर होते हैं, जैसा कि नीचे चित्र में दर्शाया गया है। ।
यह दूरी σ, जब दोनों अणु एक-दूसरे के अधिकतम सम्भव स्थिति तक निकट आ जाए, तब यह दूरी 6 संघट्टन व्यास कहलाती है।
संघट्टन आवृत्ति
किसी निश्चित ताप व दाब पर एक घन सेमी गैस में उपस्थित अणुओं के बीच प्रति सेकण्ड होने वाले संघट्टनों की संख्या को संघट्टन आवृत्ति कहते हैं। सामान्य ताप व दाब पर यह आवृत्ति बहुत अधिक होती है। लेकिन दाब व ताप में वृद्धि से इसका मान और भी अधिक बढ़ जाता है। संघट्टन आवृत्ति के लिए व्यंजक निम्न प्रकार ज्ञात किया जाता है।
माना गैस के एक घन सेमी में अणु की संख्या N है तथा प्रत्येक अणु एक सेकण्ड में 2 संघटन करता है, तो
यदि आण्विक वेग तथा माध्य मुक्त पथ ज्ञात हों तो संघट्टन आवृत्ति परिकलित की जा | सकती है।
प्रश्न 17. औसत चाल (uav.) और सबसे सम्भावित चाल (uMP) का सम्बन्ध लिखिए?
प्रश्न 18. NTP पर ऑक्सीजन गैस का वर्ग-माध्य-मूल (R.M.S.) वेग ज्ञात कीजिए।
प्रश्न 19. माध्य मुक्त पथ पर दांब का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर : माध्य मुक्त पथ, किसी एकल (single) अणु द्वारा दूसरे अणु से टकराने से पहले चली गयी दूरी होती है। चूंकि दाब में वृद्धि करने पर कणों के मध्य दूरी कम हो जाएगी। अत: माध्य मुक्त पथ भी कम हो जाएगा, जबकि दाब कम करने पर कणों के मध्य दूरी बढ़ने के कारण यह बढ़ जाएगा। •
प्रश्न 20. माध्य मुक्त पथ को समझाइए।
उत्तर : किसी अकेले अणु द्वारा दूसरे अणु से टकराने से पहले चली गई दरी मक्त पथ कहलाती है। किसी एक अणु के लिए विभिन्न क्षणों में तथा सभी अणुओं के लिए किसी क्षण मक्त-पथ बराबर नहीं हो सकते। अत: एक अणु द्वारा दो उत्तरोत्तर टक्करों के बीच चली गई
औसत दूरी माध्य मुक्त पथ (λ) कहलाती है।
प्रश्न 21. एकल परमाणुक गैस के लिए λ का मान 1.67 होता है। क्यों?
उत्तर : एकल परमाणुक गैस के लिए ताप बढ़ाने में दी गई समस्त ऊष्मा अणुओं की गतिज ऊर्जा को बढ़ाने में व्यय होती है, परन्त द्वि- त्रि- व बहु-परमाणुक गैसों के लिए दी गई। ऊष्मा अणुआ की गतिज ऊर्जा बढ़ाने के साथ-साथ उनकी घूर्णन ऊर्जा तथा कम्पन ऊर्जा बढ़ाने में भी काम आती है। अत: इन गैसों के लिए C, व C, के मान
परमाणुक गैसों के मान से अधिक होते हैं। अतः बहु-परमाणुक गैस के लिए,
यहाँ x, घूर्णन तथा कम्पन ऊर्जा को बढ़ाने में दी गई ऊष्मा है। एकल परमाणुक गैस के लिए, x = 0
प्रश्न 22. कामरलिंग ओन विरियल समीकरण को लिखिए।
उत्तर : कामरलिंग ओन ने गैस के एक अंश के लिए किसी ताप पर PV के मान को दाब के घातांकों के रूप में एक श्रेणी के रूप में दिया। इस प्रकार निम्नांकित समीकरण प्राप्त हुई—
PV = A+ BP + CP2 + DP2 +…..
जहाँ A, B, C तथा D क्रमशः पहला, दूसरा, तीसरा तथा चौथा विरियल गुणांक : (विरियल = बल) कहलाता है। कम दाब पर, A का मान RT के बराबर होता है तथा अन्य विरियल स्थिरांक नगण्य होते हैं। अधिक दाब पर अन्य विरियल गुणांक की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। अत: कम दाब पर,
PV = A= nRT
दोनों विरियल गुणांकों B व C के मान वान्डरवाल्स स्थिरांकों से निम्न प्रकार सम्बन्धित हैं
प्रश्न 23. बॉयल तापमान (TB) क्या होता है? वास्तविक गैस मर महत्त्व है? . –
उत्तर: बॉयल तापमान किसी गैस का आदर्श व्यवहार से विचलन सबसे अच्छा संपाव प्रदर्शित किया जा सकता है। Z की परिभाषा अग्रवत् है :
सभी ताप व दाब की दशाओं के लिए, आदर्श गैस के लिए Z = 1 होगा। Z का मान 1 से जितना कम या अधिक होगा, गैस उतना ही आदर्श व्यवहार से कम या अधिक विचलन प्रदर्शित करेगी।
किसी गैस का वह ताप जिस पर PV का मान स्थिर रहे जिससे बॉयल नियम का पूर्णतः पालन हो, बॉयल बिन्दु (Boyle point) या बॉयल तापमान (Boyle . temperature) कहलाता है।
बॉयल तापमान से कम ताप पर Z का मान पहले घटता है फिर न्यूनतम मान आता है और अन्त में दाब के लगातार बढ़ाने पर मान बढ़ना शुरू हो जाता है। विभिन्न गैसों के लिए बॉयल तापमान भिन्न-भिन्न होते हैं। हाइड्रोजन व हीलियम के लिए, ये मान क्रमशः -80°C तथा – 240° C होते हैं। इसका अर्थ है कि -80°C पर हाइड्रोजन गैस अत्यधिक दाब परास (range) के बीच बॉयल नियम का पालन करती हैं। .
. किसी वास्तविक गैस के लिए बॉयल तापमान (TB) का मान निम्न व्यंजक से दिया । जाता है :
जहाँ a व b वान्डरवाल्स स्थिरांक हैं। को
प्रश्न 24. वान्डरवाल्स स्थिरांकों a और b के मात्रक लिखिए।
उत्तर : वान्डरवाल्स स्थिरांक व b के मात्रक
वान्डरवाल्स स्थिरांकों a व b की इकाइयाँ, प्रयुक्त दाब व आयतन की इकाइयों पर | निर्भर करती हैं। यदि दाब को वायुमण्डल में तथा आयतन को लीटर में व्यक्त किया जाए, तो
प्रश्न 25. हाइड्रोजन को सरलतापूर्वक द्रवित करना सम्भव नही है व्याख्या कीजिए।
अथवा व्युत्क्रमण ताप क्या होता है?
उत्तर : वह ताप जिसके नीचे गैस का प्रसारण करने पर शीत उत्पन हो व्याख्या व्युत्क्रम ताप कहलाता है
साधारण गैसों के लिए वायुमण्डलीय दाब पर व्युत्क्रमण ताप सामान्य ताप से बड़ा अधिक होता है। अत: इन गैसों का अचानक प्रसारण करने पर ये ठण्डी हो जाती हैं तथा द्रवि भी हो जाती हैं। H2, व He के लिए ऐसा नहीं है। इन गैसों का सामान्य ताप पर प्रसारण कर से ऊष्मा उत्पन्न होती है। इसका कारण यह है कि इन गैसों के क्रान्तिक ताप काफी कम है। (H2 =-80°C, He=- 240°C )। यदि इन गैसों पर इनके क्रान्तिक ताप या व्युत्क्रमण – ताप से नीचे ठण्डा करके जल-थॉमसन प्रभाव लागू किया जाए तो ठण्डक उत्पन्न होती है तथ गैस द्रवित हो जाती है, जबकि हाइड्रोजन व हीलियम की स्थिति में ताप बढ़ जाता है; इसलिए हाइड्रोजन व हीलियम को सरलतापूर्वक द्रवित करना सम्भव नहीं है।
R= गैस स्थिरांक।
प्रश्न 26. किसी द्रव के क्वथनांक पर उसकी गतिज ऊर्जा की समीकरण लिखिए।
उत्तर : किसी द्रव की औसत गतिज ऊर्जा का समीकरण निम्नवत् है
प्रश्न 27. द्रव क्रिस्टल के दो रूपों के नाम लिखिए।
उत्तर : द्रव क्रिस्टल के दो रूप निम्नवत् हैं
(i) नीमैटिक द्रव क्रिस्टल
(ii) स्मेक्टिक द्रव क्रिस्टल
प्रश्न 28. द्रव अवस्था में किस-किस प्रकार के अन्तराअणुक बल होते हैं? ,
उत्तर : किसी पदार्थ के विभिन्न संघटक अणओं में परस्पर लगन वाल बल व अन्तराअणक बल कहते हैं। इस बल के द्वारा पदार्थ के अण एक-दूसरे से बध रहत ह। किस भी पदार्थ का भौतिक तथा रासायनिक व्यवहार मख्यतया इस तथ्य पर निर्भर करता है कि उसके अणु किस प्रकार एक-दूसरे पर बल लगाते हैं। इन्हीं के कारण गैस के अणु पास आकर दो बनाते हैं। कुछ अन्तराअणुक बल नीचे दिए गए हैं 1.द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्योन्यक्रिया
इस प्रकार का संसंजक बल दो ध्रुवीय अणुओं के मध्य कार्य करता है।
H2O, NH3, HCI. HBr आदि अणुओं में स्थायी रूप से द्विध्रुव होते हैं। इन पदार्थ में अवयवा अणु सामान्य अवस्था में इस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं कि एक अण का धन धुर्व दुसरे अणु के ऋणं ध्रुव के निकट रहे अथवा उसकी और आकर्षित रहे| ऐसी स्थिति में द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्योन्य क्रिया आकर्षण के कारण अन्तराअणुक बल उत्पन्न हो जाता है
II विधव-प्रेरित द्विध्रुव अन्योन्यक्रिया
इस प्रकार का संसंजक बल (cohesive force) ध्रुवीय तथा अध्रुवीय अणुओं के मिश्रण में उपस्थित रहता है।
III. आयन-द्विध्रुव अन्योन्यक्रिया
किसी ध्रुवीय अणु (जैसे-जल का अणु) तथा किसी आयन के मध्य लगने वाले बल को आयन-द्विध्रुव बल कहते हैं। इसी क्रिया के कारण आयनिक यौगिक जल में विलेय. होते हैं।
प्रश्न 29. ‘क्रिस्टल जालक’ एवं ‘एकक कोष्ठिका’ पदों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : क्रिस्टल जालक एवं एकक कोष्ठिका
क्रिस्टलीय ठोसों का मुख्य अभिलक्षण अवयवी कणों का नियमित और पुनरावृत्त पैटर्न है। यदि क्रिस्टल में अवयवी कणों की त्रिविमीय व्यवस्था को आरेख के रूप में निरूपित किया जाए, जिसमें प्रत्येक कण को बिन्दु द्वारा चित्रित किया गया हो तो व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते हैं। इस प्रकार,
“दिक्स्थान (स्पेस) में क्रिस्टलीय ठोस के अवयवी कणों (परमाणु, आयन अथवा . अणु) की नियमित त्रिविमीय व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते हैं।”
पुन: चूँकि क्रिस्टल जालक में अवयवी कणों का नियमित पुनरावृत्त पैटर्न होता है। अतः हम केवल जालक के लघुतम भाग को सुपरिभाषित करना होता है। यह लघुतम भाग एकक कोष्ठिका कहलाता है। इस प्रकार,
“एकक कोष्ठिका क्रिस्टल जालक का लघुतम भाग है जिससे जालक की ज्यामिति . व्यक्त की जा सकती है।’
प्रश्न 30. घनीय क्रिस्टल में सममिति के तत्वों की कुल संख्या कितनी है?
उत्तर : एक घनीय ठोस (जैसे-NaCl) में 23 सममिति तत्व होते हैं जैसे कि आगे प्रदर्शित किया गया है
(अ)सममिति समकोणीय तल– सममिति समकोणीय का एक तल गया है। ऐसे दो तल और होंगे, जो चित्र में दिखाए तल के 90° पर होते हैं। समिति समकोणीय तलों की संख्या तीन होगी।
(ब) सममिति विकर्ण तल-घन से गुजरता हुआ एक विकर्ण तल चित्र-5 (b) में प्रदर्शित किया गया है। घन से विकर्णत: गुजरते हुए ऐसे छः तल और होंगे।
(स) चतुष्क अक्ष सममिति-चतुष्क अक्ष में से एक चित्र-5 (c) में दिखाया गया है। इस प्रकार के तीन अक्ष होंगे जो एक-दूसरे के 90° कोण पर होते हैं।
(ट) त्रिक अक्ष सममिति–एक ऐसा अक्ष जो सम्मुख कोनों से गुजरता है चित्र-5 (d) में दिखाया गया है। इस प्रकार के कुल चार त्रिक अक्ष होंगे।
(ङ) द्विक अक्ष सममिति-सम्मुख किनारों (edges) से उत्पन्न हुआ एक ऐसा अक्ष चित्र-5 (e) में दिखाया गया है। इस प्रकार के कुल 6 द्विक अक्ष होंगे।
(य) सममिति केन्द्र–घन के केन्द्र पर एक सममिति केन्द्र होगा [चित्र-5 (]|
अतः घनीय (cubic) क्रिस्टल में विभिन्न प्रकार के सममिति तत्वों की कुल संख्या निम्न होगी- .
सममिति तल = 3+6= 9 तत्व ..
सममिति अक्ष = 3+4+6 = 13 तत्व
सममिति केन्द्र = 1 तत्व
∴ सममिति तत्वों की कुल संख्या = 9+13+1= 23
प्रश्न 31. क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय ठोसों में अन्तर लिखिए।
उत्तर : क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय ठोसों में अन्तर
क्र० सं० | क्रिस्टलीय ठोस | अक्रिस्टलीय ठोस |
1. | ये निश्चित ज्यामिति वाले तथा असंपीड्य होते हैं। | इनकी ज्यामिति निश्चित नहीं होती है तथा ये कुछ सीमा तक संपीड्यता दर्शाते हैं। |
2. | इनके गलनांक निश्चित होते हैं। | इनके गलनांक निश्चित (तीक्ष्ण) नहीं होते हैं। |
3. | इनकी गलन ऊष्मा निश्चित तथा अभिलाक्षणिक होती है | इनकी गलन ऊष्मा निश्चित नहीं होती है। |
4. | इनमें अवयवी कणों की दीर्घ परास कोटि पायी जाती है। | इनमें अवयवी कणों की लघु पसस कोटि पायी जाती है। |
5. | ये विषमदैशिक होते हैं अर्थात् इनके भौतिक गुणों के मान विभिन्न दिशाओं में भिन्न-भिन्न होते हैं। | ये समदैशिक होते हैं अर्थात् इनके भौतिक गुण सभी दिशाओं में समान होते हैं।
|
6. | चाक से काटने पर ये सपाट सतह वाले टुकड़ों में विभक्त हो जाते हैं। | चाकू से काटने पर प्राप्त टकडों की सतह सपाट नहीं होती है। |
7. | इन्हें वास्तविक ठोस भी कहा जाता है। | इन्हें आभासी या छदम ठोस या अतिशीतित द्रव भी कहा जाता है। |
उदाहरण-धातुएँ, . सल्फर, सोडियम क्लोराइड आदि। | उदाहरण-काँच, रबड़, प्लास्टिक आदि | |
प्रश्न 32. एक एकल सेल में चार परमाणु या आयन रखने वाले जालक की संरचना क्या होती है?
उत्तर : पृष्ठ या फलक केन्द्रीय घनीय जालक (fcc) में एक-एक परमाणु प्रत्येक कोने पर तथा एक-एक प्रत्येक पृष्ठ केन्द्र पर उपस्थित होता है। अतः
प्रति एकल सेल परमाणुओं की संख्या
अतः चार परमाणु या आयन रखने वाले एकल सेल के जालक की संरचना पल केन्द्रीय घनीय जालक संरचना (fcc) होती है।
प्रश्न: 33. हाइड्रोजन के लिए वान्डरवाल्स स्थिरांक a व 6 लीटर-वायुमण्डल इकाई में क्रमशः 0 : 246 तथा 2-67x 10-2 हैं। हाइड्रोजन के लिए बॉयल ताप (या व्युत्क्रमण ताप) ज्ञात कीजिए।
उत्तर : प्रावस्था नियम समीकरण द्वारा
F = C – P + 2
यदि किसी तन्त्र पर प्रावस्था नियम लागू करने के लिए एक परिवर्ती माना जाए तो स्वतन्त्रता की कोटि का मान एक इकाई कम हो जाता है। उदाहरणार्थ-ठोस-द्रव तन्त्रों में दाब परिवर्ती स्थिर माना जाता है। इस प्रकार
F = (C – P + 2) – 1
या F = C – P + 1
इस समीकरण को लघुकृत या संघनित प्रावस्था नियम समीकरण कहते हैं।
प्रश्न 35. कोलॉइडी अवस्था में पदार्थ अधिक प्रभावशाली क्यों होता है?
उत्तर : कोलॉइडी अवस्था में कोलॉइडी कणों का आकार अधिक होता है जिसके कारण उनकी सतह का क्षेत्रफल अधिक होता है, फलस्वरूप वे अभिकारकों के अणुओं को । अपनी सतह पर शीघ्रता से अधिशोषित कर लेते हैं। –
प्रश्न 36. द्रवविरोधी सॉल और स्वर्ण संख्या को परिभाषित कीजिए।
उत्तर : द्रव विरोधी कोलॉइड- जो पदार्थ द्रव (परिक्षेपण माध्यम) के साथ हिलाने पर सुगमता से कोलॉइडी विलयन नहीं देते हैं, उन्हें द्रवविरोधी कोलॉइड कहते हैं तथा उनके कोलॉइडी विलयन को द्रवविरोधी सॉल कहते हैं।
स्वर्ण संख्या- किसी रक्षी कोलॉइड की मिलीग्राम में वह मात्रा जो 10 मिली गोल्ड को कोलॉइडी विलयन का सोडियम क्लोराइड के 10% सान्द्रता के 1 मिली विलयन द्वारा स्कन्दन रोकती है, उस रक्षी कोलॉइड की स्वर्ण संख्या कहलाती है।
प्रश्न 37. द्रव-स्नेही तथा द्रव-विरोधी कोलॉइडी विलयनों में अन्तर लिखिए।
उत्तर : द्रव-स्नेही तथा द्रव-विरोधी कोलॉइडी विलयनों में अन्तर
क्र०सं० | गुण | द्रव-स्नेही कोलॉइड | द्रव-विरोधी कोलॉइड |
1. | बनाने की विधि | ये विलायक में पदार्थ को विलेय करके बनते हैं। | ये विशेष विधियों से बनते हैं। |
2. | कणों की प्रकृति | इसमें बड़े अणु कणों के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसी कारण इनको आण्विक कोलॉइड कहते हैं। | ये छोटे-छोटे कणों के संयोजन से बनते हैं जिससे इनको संगुणन कोलॉइड कहते हैं। |
3. | भौतिक गुण | घनत्व, अपवर्तनांक आदि पृष्ठ-तनाव के लगभग बराबर होता है। | इनके भौतिक गुण मिश्रण के पृष्ठ-तनाव से कम
होता है। |
4. | पृष्ठ-तनाव | इनकी श्यानता परिक्षेपण माध्यम की श्यानता अधिक होती है। | इनकी श्यानता परिक्षेपण माध्यम के लगभग
बराबर होती है। |
प्रश्न 38. दूध किस प्रकार का पायस है?
उत्तर : दूध में परिक्षेपण माध्यम जल तथा परिक्षिप्त प्रावस्था वसा है अत: यह जल में तेल (O/W) प्रकार का पायस है।
प्रश्न 39. नदी तथा समुद्र के मिलन बिन्दु पर डेल्टा बनने का कारण बताइए।
उत्तर : नदी के जल में मिट्टी, रेत आदि कोलॉइडी विलयन के रूप में उपस्थित रहते हैं जैसे जल में रेत (SiO2) परिक्षिप्त रहता है, जबकि समुद्री जल में NaCl जैसे लवण विलेय रहते हैं, जो विद्युत-अपघट्य हैं। इन जलों के मिलन बिन्द पर समद्र के NaCl द्वारा नदी के कोलॉइड कणों का स्कन्दन (अवक्षेपण) हो जाता है जिससे मिट्टी, रेत आदि एकत्र होकर डेल्टा का निर्माण कर देते हैं।
प्रश्न 40. आकाश का रंग नीला क्यों होता है?
उत्तर : वायुमण्डल में धूल के कण कोलॉइड कणों के रूप में फैले होते हैं, जो प्रकाश के नीले रंग के अतिरिक्त सभी रंगों को अवशोषित कर लेते हैं। प्रकाश के नीले रंग की किरण का. धल के कोलॉइडी कण प्रकीर्णन कर देते हैं जिससे आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ता है।
प्रश्न 41. रक्षण की व्याख्या उपयुक्त उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर : कोलॉइडों का रक्षण (Protection of Colloids)- गोल्ड, सिल्वर आदि धातुओं के कोलॉइडों का अवक्षेपण विद्यत-अपघट्य की अल्प मात्रा मिलाने से हो जाता है। परन्तु इस प्रक्रम में थोड़ी-सी मात्रा किसी स्थायी द्रव स्नेही कोलॉइड (जस जिलाटन या । ऐल्बुमिन) को कोलॉइडी विलयन में अवक्षेपण से पहले ही मिला दिया जाए तो स्कदन को । पर्णतया रोका अथवा धीमा किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, यदि गोल्ड सॉल में जिलोटन को 16 अल्प मात्रा मिला दी जाए तो सोडियम क्लोराइड विलयन डालने से उसका अवक्षपण नहीं । उ होता। दूसरी ओर, जिलेटिन की अल्प मात्रा मिला दी जाए तो सोडियम क्लोराइड विलयन डालने से उनका अवक्षेपण नहीं होता। दूसरी ओर, यदि कोलॉइडी विलयन को उबाला जाए और प्राप्त अवशेष को पुन: जल में घोला जाए तो वह पुन: कोलॉइडी विलयन में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि. कोलॉइडी विलयन अनुत्क्रमणीय से उत्क्रमणीय में परिवर्तित हो जाता है। इस कार्य के लिए प्रयुक्त द्रव-स्नेही कोलॉइडों को रक्षक कोलॉइड (Protective colloid) कहते हैं और द्रव-स्नेही कोलॉइड के इस गुण को रक्षक क्रिया। (Protective action) अथवा रक्षण कहते हैं।
रक्षक कोलॉइडों द्वारा किसी सॉल के रक्षण को अधिशोषण (Protection) के आधार पर समझाया जा सकता है। ऐसा सुझाव दिया जाता है कि रक्षक कोलॉइड की सतहः अन्तरापृष्ठ पर अधिशोषित हो जाती है और यह कोलॉइडी कण को चारों ओर से घेर लेती है। इस प्रकार बना हुआ यह घेरा अवक्षेपित करने वाले आयनों को कोलॉइडी कणों के समीप आने से रोके रखता है और इस कारण कोलॉइडी कणों का अवक्षेपण नहीं होता। आधुनिक विचार धारा के
अनुसार सॉल के कण और रक्षक कोलॉइड के कण परस्पर एक-दूसरे पर अधिशोषित हो जाते । हैं। यदि रक्षित कणों का आकार रक्षक कणों के आकार से छोटा होता है, तो पहले वाले कणों का दसरे वाले के कणों पर अधिशोषण होगा और यदि रक्षित कणों का आकार रक्षक कणों के आकार से बड़ा होता है तो बाद वाले कण पहले प्रकार के कणों पर अधिशोषित हो जाते हैं।
प्रश्न 42. कारखानों से निकलने वाले धुएँ को कार्बन रहित कैसे किया जाता सकारण बताइए।
उत्तर : धुआँ एक कोलॉइडी तन्त्र है जिसमें कार्बन के ऋण कण वाय में परिवार रहते हैं। इन कार्बन कणों पर ऋणावेश होता है। कारखानों में धुआँ निकालने वाली ऊँची मीनार (चिमनी) में एक धनावेश वाला धातु का गोला, जिसे कॉट्रेल अवक्षेपक कहते हैं, लटका दिया जाता है। धुएँ के कण इस गोले (धन इलेक्ट्रोड) के सम्पर्क में आने पर आवेशमुक्त हो जाते हैं जिससे वे चिमनी में नीचे गिर जाते हैं और कार्बन कणरहित धुआँ बाहर निकल जाता है।
प्रश्न 43. साबुन से कपडे क्यों साफ हो जाते हैं?
उत्तर : धूल के कण कपड़ों में लगी चिकनाई से चिपक जाते हैं। जल में कपड़ा भिगोने पर जल तथा चिकनाई एक पायस (emulsion) (एक प्रकार का कोलॉइड) बनाते हैं। साबुन , का जलीय झाग चिकनाई तथा गन्दगी के साथ मिसेल का निर्माण करता है जिससे कपड़े पर से धूल के कणों की पकड़ ढीली हो जाती है और जल से धोने पर यह कपड़े से अलग हो जाता है । जिससे कपड़ा साफ हो जाता है।
प्रश्न 44. निम्नलिखित सॉल में किस पर आवेश होगा
प्रश्न 45. गँदले पानी को साफ करने के लिए फिटकरी का प्रयोग किया जाता है, क्यों? समझाइए।
उत्तर : गॅदले पानी में मिट्टी, रेत आदि की अशुद्धियाँ कोलॉइडी कणों के रूप में उपस्थित रहती हैं। ये कोलॉइडी कण ऋणावेशित होते हैं। कोलॉइडी कणों की अशुद्धि दूर करने के लिए · जल में फिटकरी (पोटाश एलम) डाली जाती है। फिटकरी [K2,SO4.Al2(SO4)3. 24H2O] जल में घुलकर K+, Al3+ तथा SO2-4:- आयनों में वियोजित हो जाती है। K+ और Al3+ द्वारा ऋणावेशित कणों का स्कन्दन हो जाता है और वे जल में नीचे बैठ जाते हैं। इस प्रकार गँदला पानी साफ हो जाता है।
प्रश्न 46. अभिक्रिया के वेग तथा वेग स्थिरांक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : अभिक्रिया का वेग- किसी अभिकारक के सान्द्रण में एकांक समय में होने वाला परिवर्तन, उस अभिक्रिया के वेग को दर्शाता है। यदि सान्द्रण में परिवर्तन को dx तथा समय परिवर्तन को dt से प्रदर्शित करें तो अभिक्रिया का वेग = -dx/dt, , यहाँ ऋण चिह्न समय के साथ अभिकारक के सान्द्रण में होने वाली कमी को दर्शाता है।
वेग स्थिरांक- माना एक अभिक्रिया निम्न प्रकार सम्पन्न होती है
A+ B→ उत्पाद
यदि A तथा B के प्रारम्भिक सान्द्रण क्रमश: p तथा q मोल प्रति लीटर हा तथाt समय में अभिकारक के x मोल प्रति लीटर क्रिया करते हों, तब
अभिक्रिया का वेग,
जहा k एक स्थिरांक है जिसे वेग स्थिरांक या विशिष्ट अभिक्रिया वेग कहते हैं।
अतः प्रत्येक अभिकारक का सान्द्रण इकाई होने पर अभिक्रिया का वेग, उसके वेग स्थिरांक को दर्शाता है।
प्रश्न 47. शून्य कोटि की अभिक्रिया की परिभाषा दीजिए। इसके लिए वेग व्यंजक स्थापित कीजिए।
उत्तर: शून्य कोटि की अभिक्रिया
वह अभिक्रिया जिसमें अभिक्रिया वेग अभिकारक के अणुओं की सान्द्रता पर निर्भर नहीं करता है, शून्य कोटि की अभिक्रिया कहलाती है। उदाहरणार्थ- हाइड्रोजन व क्लोरीन से हाइड्रोजन क्लोराइड गैस का सूर्य के प्रकाश में बनना शून्य कोटि की अभिक्रिया है।
H, + CI2, सूर्य प्रकाश 2HCI
उपर्युक्त अभिक्रिया में गैसों की सान्द्रता का समय के साथ परिवर्तन नहीं होता है। अतः । अभिक्रिया का वेग स्थिर रहता है।
शून्य कोटि अभिक्रिया का वेग व्यंजक
माना शून्य कोटि अभिक्रिया निम्नवत् है—
समीकरण (2) शून्य कोटि की अभिक्रिया का वेग व्यंजक कहलाता है।
प्रश्न 48. छद्म (आभासी) एकाणुक अभिक्रिया क्या होती है?
उत्तर : वे अभिक्रियाएँ जिनकी कोटि तथा आण्विकता भिन्न-भिन्न होती हैं, आभासी या स्यूडो अणुक (आण्विक) अभिक्रियाएँ कहलाती हैं।
उदाहरण—एस्टर का तनु अम्ल द्वारा जल-अपघटन
CH3COOC2H5+ H2O→H, CH3COOH + C2H5OH
इस अभिक्रिया का वेग ∝ [CH3COOC2H5] [ H2O]° है।
इस कारण इसकी कोटि एक तथा आण्विकता दो है। अत: यह आभासी या स्यूडो एकाणुक या छद्म प्रथम कोटि की अभिक्रिया का उदाहरण है।
प्रश्न 49. तीन विभिन्न दाबों पर फॉस्फीन के तापीय अपघटन के लिए। अर्द्धजीवनकाल निम्न प्रकार हैं
प्रारम्भिक दाब (मिमी) | 707 | 79 | 37.5 |
अर्द्धजीवनकाल (सेकण्ड) | 84 | 84 | 84 |
अभिक्रिया की कोटि ज्ञात कीजिए।
हल : प्रश्न में दिए गए मानों से स्पष्ट होता है कि अर्द्धजीवनकाल अथवा विभिन्न प्रारम्भिक दाबों पर अर्द्धपरिवर्तन के लिए प्रयुक्त समय स्थिर है। अतः अभिक्रिया प्रथम कोटि की है।
प्रश्न 50. एके प्रथम कोटि की अभिक्रिया 8 मिनट (t1/2) में 50% पूर्ण होती है। ज्ञात करें कि 24 मिनट में अभिक्रिया का कितना अंश पूर्ण होगा?
अतः 24 मिनट में लगभग 87.5% अभिक्रिया पूर्ण हो जाएगी।
प्रश्न 51. अभिक्रिया वेग पर ताप तथा सान्द्रण का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर : 1. अभिक्रिया वेग पर ताप का प्रभाव- किसी अभिक्रिया का वेग ताप बढ़ने से अत्यधिक बढ़ता है। सामान्यत: प्रत्येक 10°C ताप बढ़ने पर अभिक्रिया का वेग दुगुना या तीन गुना बढ़ जाता है। 10°C के तापों के अन्तर पर अभिक्रिया के वेग स्थिरांकों के अनुपात को ताप गुणांक (temperature coefficient) कहते हैं। अधिकतर ये दो ताप 25°C तथा 35°C चुने जाते हैं।
अधिकतर क्रियाओं के लिए ताप गुणांक का मान 2 या कुछ अभिक्रियाओं के लिए 3 होता है।
2. अभिक्रिया वेग पर सान्द्रण का प्रभाव- क्योंकि समय के साथ अभिकारकों की सान्द्रता घटती है तथा समय के साथ अभिक्रिया का वेग भी कम होता है। अत: अभिकारकों का सान्द्रण कम होने पर अभिक्रिया का वेग घटता है।
प्रश्न 52. एक परिस्थिति बताइए जिसके अन्तर्गत एक द्विआण्विक अभिक्रिया: बलगतिकीय रूप से प्रथम-कोटि की हो सकती है। .
उत्तर : एक द्विआण्विक अभिक्रिया बलगतिकीय रूप से प्रथम कोटि की हो सकती है, यदि अभिकारकों में से एक अभिकारक आधिक्य में उपस्थित हो।
प्रश्न 53. अभिक्रिया : एस्टर + H+→अम्ल + ऐल्कोहॉल का वेग नियम। निम्नलिखित है
वेग पर क्या प्रभाव होगा यदि
- एस्टर की सान्द्रता दुगुनी कर दी जाए?
- H+ की सान्द्रता दुगुनी कर दी जाए?
उत्तर : (i) अभिक्रिया का वेग दुगुना हो जाएगा।
- वेग पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
प्रश्न 54. उच्च कोटि की अभिक्रियाएँ दर्लभ क्यों हैं?
उत्तर : उच्च कोटि की अभिक्रियाएँ बहुत कम देखने में आती हैं और अधिकतर अभिक्रियाएँ प्रथम तथा द्वितीय कोटि की होती हैं। गैसों के अणु गति के नियमानुसार अणुओं के बीच संघट्ट के कारण अभिक्रियाएँ होती हैं। किसी द्वितीय कोटि की अभिक्रिया के लिए दो अणुओं को टकराना पड़ता है जो काफी सीमा तक सम्भव है। तीन या अधिक अणुओं के एक साथ टकराने की सम्भावनाएँ बहुत ही कम होती हैं और इसी कारण उच्च कोटि की अभिक्रियाएँ बहुत कम होती हैं।
प्रश्न 55. शून्य तथा प्रथम कोटि की अभिक्रियाओं के वेग स्थिरांक की इकाइयाँ लिखिए।
उत्तर : हम जानते हैं कि nवीं कोटि को अभिक्रिया के लिए वेग स्थिरांक की इकाई निम्नलिखित होती है
अतः प्रथम कोटि की अभिक्रिया के k की इकाई सेकण्ड-1 मिनट-1, घण्टा-1आदि हैं।
प्रश्न 56. अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर : ऊर्जा की वह पर्याप्त मात्रा, जिसे बाह्य माध्यम से उपलब्ध कराने पर अभिक्रिया के संघट्टकारी अणुओं द्वारा प्रभावी संघट्ट किए जाते हैं (अर्थात् कुल ऊर्जा देहली ऊर्जा के बराबर होती है), सक्रियण ऊर्जा कहलाती है।
प्रश्न 57. मुक्त मूलकों की संयोग (योग) अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा कितनी होती है?
उत्तर : मुक्त मूलकों की कुछ संयोग (योग) अभिक्रियाओं की सक्रियण ऊर्जा शन्य या नगण्य होती है क्योंकि ये अत्यधिक क्रियाशील होने के कारण तीव्रता से संयोग करके द्वितयी (dimerisation) या असमानुपातन दर्शाते हैं।
प्रश्न 58. उत्प्रेरक विष को परिभाषित कीजिए।
उत्तर : उत्प्रेरक विष-जब कोई बाहरी पदार्थ उत्प्रेरण क्रिया में प्रयुक्त उत्प्रेरक भी क्रियाशीलता को कम या नष्ट कर देता है, उत्प्रेरक विष कहलाता है।
उदाहरण-(1) यदि अमोनिया के बनाने की हेबर विधि में हाइड्रोजन में कार्वन मोनोक्साइड उपस्थित हो तो यह लोहे (जो उत्प्रेरक का कार्य करता है) की क्रियाशीलता को काफी कम कर देती है अर्थात् CO लोहे के लिए विष है। दूसरे शब्दों में, CO उत्प्रेरक विष का कार्य करती है।
(2) निम्नलिखित अभिक्रिया में As2O3, प्लैटिनीकृत ऐस्बेस्टॉस (उत्प्रेरक) के लिए विष का कार्य करता है।
उत्प्रेरक विष उत्प्रेरक की सतह पर विद्यमान सक्रिय केन्द्रों पर मुक्त संयोजकताओं के कारण संयुक्त हो जाते हैं जिसके कारण अभिकारकों के अणु उत्प्रेरक की सतह पर अधिशोषित नहीं हो पाते हैं। इस कारण उत्प्रेरण क्रिया में प्रयुक्त उत्प्रेरक की क्रियाशीलता नष्ट या बहुत कम हो जाती है, फलस्वरूप अभिक्रियाफल बनने की दर घट जाती है।
प्रश्न 59. दूध से दही का जमना किस एन्जाइम के कारण होता है?
उत्तर : दूध में लैक्टोस शर्करा उपस्थित होती है जो लैक्टेस एन्जाइम द्वारा लैक्टिक अम्ल में (अर्थात् दही के रूप में) परिवर्तित हो जाती है।
प्रश्न 60, अम्ल-क्षार उत्प्रेरण पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : वे अभिक्रियाएँ जो विलयन में अम्लों अथवा क्षारों अथवा दोनों के द्वारा उत्प्रेरित होती हैं, अम्ल-क्षार उत्प्रेरण के अन्तर्गत आती हैं। वह अभिक्रिया जो H+ (या H3O+)| आयन द्वारा उत्प्रेरित होती है, किसी अन्य ब्रॉन्स्टेड अम्ल (प्रोटॉनदाता) से नहीं, विशिष्ट प्रोटॉन उत्प्रेरित अभिक्रिया कहलाती है। एस्टरों का विलायकीकरण, शर्कराओं का प्रतिलोमन तथा कीटो-इनॉल रूपान्तरण इसके उदाहरण हैं। दूसरी ओर, वे अभिक्रियाएँ जो ब्रॉन्स्टेड अम्ला द्वारा उत्प्रेरित होती हैं, सामान्य अम्ल उत्प्रेरण अभिक्रियाएँ कहलाती हैं। इसी प्रकार OH– आयनों द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रियाएँ विशिष्ट क्षार-उत्प्रेरित अभिक्रियाएँ कहलाती हैं, जबकि ब्रॉन्स्टेट क्षारों द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रियाएँ सामान्य क्षार-उत्प्रेरित अभिक्रियाएँ कहलाती है। विलायक जल ब्रॉन्स्टेड अम्ल अथवा ब्रॉन्स्टेड क्षार के समान व्यवहार करता ह। कुछ आभक्रियाएं इस प्रकार की होती हैं जिनमें प्रोटॉनदाता तथा प्रोटॉनग्राही दोनों की उपास्थात आवश्यक होती है जैसे ग्लकोस का म्यूटारोटेशन, ये अभिक्रियाएँ अम्ल-क्षार उत्प्रेरण के उदाहरण व्यक्त करती हैं।
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