BSC Physical Chemistry Computers languages Notes

BSC Physical Chemistry Computers languages Notes

BSC Physical Chemistry Computers languages Notes:-

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न?

परीक्षा प्रश्न-पत्र में इस खण्ड में चार इकाइयाँ दी जाएँगी। प्रत्येक इकाई में दो प्रश्न हो। | प्रत्येक इकाई से एक प्रश्न चुनते हुए, कोई चार प्रश्न हल कीजिए। 

प्रश्न 1. (i) logex का अवकलन गुणांक ज्ञात कीजिए। 

(ii) सरल रेखाओं की प्रकृति का वर्णन कीजिए 2y = 8x + 9 तथा 5y = 20x + 6.

 

BSC Physical Chemistry Computers languages Notes
BSC Physical Chemistry Computers languages Notes

 

 

प्रश्न 2. (अ) बिन्दु पथ, बिन्दु के बिन्दु पथ के समीकरण, सरल से आप क्या समझते हैं

(ब) सामान्य समीकरण Ax + By + C = 0 की प्रवणता को अन्तः खण्डों का  y=mx + e  में परिवर्तित कीजिए। 

(स) निम्नलिखित रेखाओं की प्रवणताओं तथा अन्तःखण्डों को ज्ञात कीजिए  

(i) 2y = 8x + 2           (ii) 3y = 4x  + 5  

(द) बिन्दुओं (3,  2) तथा (-2,  5) से होकर जाने वाली रेखा की प्रवणता ज्ञात कीजिए। 

 

उत्तर : (अ) (i) किसी दी गई अवस्था या अवस्थाओं में जब एक बिन्दु वक्र बना हुआ गति करता है तो वह वक्र बिन्दु का बिन्दु पथ कहलाता है।

(ii) वह सम्बन्ध जो किसी बिन्दु के बिन्दु पथ पर स्थित प्रत्येक बिन्दु के निर्देशांकों द्वा सन्तुष्ट हो, बिन्दु के बिन्दु पथ का समीकरण कहलाता है।

(iii) सरल रेखा एक ऐसा वक्र है जिस पर किन्हीं दो बिन्दुओं को मिलाने वा रेखाखण्ड का प्रत्येक बिन्दु स्थित होता है।

(iv) X-अक्ष की धनात्मक दिशा के साथ वामावर्त दिशा में किसी रेखा द्वारा बनाए कोण की त्रिकोणमितीय स्पर्शज्या को प्रवणता कहते हैं।

BSC Physical Chemistry Computers languages Notes
BSC Physical Chemistry Computers languages Notes
BSC Physical Chemistry Computers languages Notes
BSC Physical Chemistry Computers languages Notes

 

 प्रश्न 5. कम्प्यूटर को परिभाषित कीजिए तथा कम्प्यूटर के हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर घटकों की विवेचना कीजिए।

अथवा कम्प्यूटर को परिभाषित कीजिए तथा सभी भागों की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए

उत्तर :                                कम्प्यूटर

कम्प्यूटर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘कम्प्यूट (Compute) शब्द से हुई जिसका अर्थ है-‘गणना करना। इस प्रकार शाब्दिक अथ के अनुसार कम (Computer) को गणना करने वाली एक ऐसी मशीन माना जा सकता है जिससे प्रकार की गणनाएँ तेज गति से हो सकती हैं।

कम्प्यूटर एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक मशीन है, जो विभिन्न आगम युक्तियों (inn devices) द्वारा प्राप्त डाटा का अपनी प्रक्रिया (processing) के माध्यम से संग्रहण, क्रमबाट रूप से व्यवस्थीकरण और विश्लेषण करती है तथा डाटा का अर्थपूर्ण सूचना के रूप में परिवर्तित करके निर्गम युक्तियों (output devices) द्वारा स्क्रीन पर दशाता है।

कम्प्यूटर डाटा तथा निर्देशों को ग्रहण करता है, निर्देशों के अनुरूप डाटा पर प्रक्रिया के पश्चात् सूचना प्रदान करता है।

BSC Physical Chemistry Computers languages Notes
BSC Physical Chemistry Computers languages Notes

अत: कम्प्यूटर एक प्रणाली (system) है। प्रणाली से आशय एक निश्चित आउटपुट प्राप्त करने के लिए परस्पर सम्बन्धित विभिन्न तत्वों के समूह से है। कम्प्यूटर के तत्वों को मुख्य रूप से निम्नलिखित दो भागों में विभक्त किया जा सकता है

(A) हार्डवेयर- कम्प्यूटर सिस्टम में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न भौतिक उपकरण सामूहिक रूप से हार्डवेयर (hardware) कहलाते हैं। इसके अन्तर्गत समस्त आगम तथा निर्गम इकाइयाँ (input and output units), भण्डारण इकाइयाँ, केन्द्रीय संसाधन इकाइयाँ  आदि को सम्मिलित किया जाता है

(a) आगम उपकरण (Input Devices)

(b) निर्गम उपकरण (Output Devices)

(c) केन्द्रीय संसाधक इकाई (CPU)

(d) स्मृति (Memory)

(e) अन्य उपकरण (Other Peripherals)।

कम्प्यूटर एक स्वचालित उपकरण है जो गणितीय एवं तार्किक (logical) क्रियाएँ सम्पन्न करता है। इस कार्य में सहायता करने वाले सभी भौतिक उपकरण कम्प्यूटर हार्डवेयर में सम्मिलित किए जाते हैं। केन्द्रीय संसाधक इकाई (CPU) कम्प्यूटर हार्डवेयर का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग होता है। प्रोसेसर, हार्ड डिस्क, CD/DVD ROM, मॉनीटर, की-बोर्ड, प्रिण्टर आदि सभी हार्डवेयर के उदाहरण हैं। कम्प्यूटर हार्डवेयर वह ढाँचा उपलब्ध कराता है जिसका सहायता से कम्प्यूटर प्रोग्राम संचालित किए जाते हैं।

कुछ प्रमुख हार्डवेयर घटकों की विवेचना निम्नलिखित है

  1. की बाड- की-बोर्ड (keyboard) एक प्रमख आगम यक्ति (input device) है। यह देखने में टाइपराइटर जैसा होता है। अन्तर केवल इतना है कि टाइपराइटर द्वाराटंकित सामग्री (typed matter) पेपर पर साथ-साथ छपती है और की-बोर्ड द्वारा किया सामग्री पहले कम्प्यूटर की स्मृति इकाई (memory unit) में संगृहीत हो जाती है (monitor) पर भी प्रदर्शित होती है। कम्प्यूटर के की-बोर्ड में टाइपराइटर की म (keys) के अतिरिक्त कुछ अन्य उपयोगी कुंजियाँ भी होती हैं, जो कुछ विशेष उद्देश्यों के प्रयुक्त की जाती हैं।
  2. माउस- माउस एक अन्य आगम युक्ति है। इसकी ऊपरी सतह पर दो या तीन बटन लगे होते हैं जिनको दबाकर विकल्प (option) को चुना जाता है। बटन दबाने की यह क्रिया Clicking कहलाती है। माउस में नीचे की सतह पर एक रबड़ की बॉल लगी होती है, जब हम माउस को पैड पर चलाते हैं तो इसके अन्दर लगे हॉरिजोंटल तथा वर्टिकल रोलर रबड़ की गेंद के घूमने के कारण घूमने लगते हैं। इससे स्क्रीन पर उपस्थित माउस पॉइण्टर (mouse pointer) भी हमारी मनोवांछित दिशा में चलने लगता है। आजकल optical mouse का प्रचलन भी बढ़ रहा है। ये माउस (mouse) प्रकाश के सिद्धान्त पर कार्य करते हैं।
  3. स्कनर- स्कैनर एक ऐसी आगम युक्ति (input device) है जिसके द्वारा किसी चित्र या लिखित जानकारी को सीधे ही कम्प्यूटर में संग्रहीत किया जा सकता है। यह फोटो कॉपी मशीन की भाँति कार्य करती है। फोटो कॉपी मशीन सीधे पेपर पर फोटो कॉपी बनाती है, जबकि स्कैनर पहले कम्प्यूटर की मेमोरी में चित्र अथवा लिखित जानकारी को संगृहीत कर लेता है। स्कैनर द्वारा संगृहीत डाटा मेमोरी में सामान्य से अधिक स्थान (space) घेरता है। स्कैनर से डाटा ग्रहण करने के लिए कम्प्यूटर में अतिरिक्त सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर की आवश्यकता होती है।
  1. एम०आई०सी०आर० इसके माध्यम से मुख्यत: बैंकों के चैक पर नीचे की ओर अंकित बैंक संख्या, जमाकर्ता की खाता संख्या तथा कुछ अन्य संकेत एक विशेष प्रकार की स्याही द्वारा लिखे जाते हैं जिसमें चुम्बकित (magnetized) हो सकने वाले पदार्थों के कण मिले होते हैं।

एम०आई०सी०आर० (Magnetic Ink Character Recognition) में दो प्रकार के फॉण्ट प्रयोग में लाए जाते हैं जिनमें से एक को E13B के नाम से जाना जाता है। इसमें 0 से 9 तक अंक तथा चार विशेष प्रकार के संकेत होते हैं। ये मुख्यत: बैंक चैक में प्रयुक्त किए जाते हैं। एम०आई०सी०आर० के पढ़ने की गति लगभग 1200 डॉक्यूमेण्ट प्रति मिनट होती है।

  1. जॉयस्टिक- जॉयस्टिक का प्रयोग कम्प्यूटर गेम खेलने में किया जाता है। जॉयस्टिक में एक ऊर्ध्वाधर (vertical) लीवर लगा होता है। यह लीवर जॉयस्टिक के आधार (base) से जुड़ा होता हैं। इसे स्टिक (stick) भी कहते है। इसी स्टिक का प्रयोग करके हम स्क्रीन पर कर्सर को किसी भी दिशा में घमा सकते है।

जॉयस्टिक के आधार में पोटेन्शियोमीटर नामक यन्त्र लगाया जाता है जो स्टिक के घूमने की मात्रा को संगृहीत करता है तथा इसी मात्रा के आधार पर स्क्रीन कर्सर घूमता है। जॉयस्टिक के आधार में एक स्प्रिंग भी होती है जो स्टिक को केन्द्रीय अवस्था में लाती है।

  1. वब कमरा वेब कैमरा एक आगम युक्ति है जिसके प्रयोग से हम स्थिर अथवा गतिशील चित्रों को कम्प्यूटर में संग्रहीत कर सकते हैं तथा उन्हें विभिन्न कार्यों के लिए प्रयुक्तकर सकते हैं। आजकल इण्टरनेट का प्रयोग बढ़ रहा है, वेब कैमरे के प्रयोग से आपदा द्वारा प्रदत्त वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का लाभ उठा सकते हैं। दूर बैठे व्यक्ति से इस प्रकार बार सकते हैं जैसे कि वह आपके सामने बैठा है।

वेब कैमरे को कम्प्यूटर के यू०एस०बी० (USB) पोर्ट में लगाते हैं। कम्प्यूटर के साथ इन्स्टॉल होने के पश्चात् यह एक वीडियो कैमरे की तरह कार्य कर सकता है।

  1. प्रिण्टर- प्रिण्टर एक हार्ड कॉपी आउटपुट युक्ति (hard copy output device) है, जिसका प्रयोग हम पेपर पर आउटपुट प्राप्त करने के लिए करते हैं। प्रिण्टर का प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त होने वाले इलेक्टॉनिक बाइनरी संकेत (signals) को Text या Graphics के रूप में प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। हम प्रिण्टर को प्रिण्टिग के स्तर, गति, आकार, तकनीक और मूल्य के आधार पर वर्गीकृत कर सकते हैं।

प्रिण्टर निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं 

  • इम्पैक्ट प्रिण्टर (Inipact Printer)
  • नॉन इम्पैक्ट प्रिण्टर (Non Impact Printer)।
  1. प्लॉटर यह एक हार्ड कॉपी निर्गम युक्ति है जिसका उपयोग Graphical Image तथा बड़े-बड़े चित्रों व नक्शों आदि को बनाने में किया जाता है। इसमें Image बनाने के लिए इंक पेन (ink pen) या इंक जेट (ink jet) का उपयोग किया जाता है, जो एक अथवा अलग-अलग रंगों में हो सकते हैं। प्लॉटर दो प्रकार के होते हैं-

(i) ड्रम प्लॉटर तथा

(ii) फ्लैट बैड प्लॉटर।

ड्रम प्लॉटर में कागज ड्रम पर लगा रहता है, जो आगे-पीछे घूम सकता है। प्रिण्टिग के समय ड्रम आगे-पीछे तथा Pen दाएँ-बाएँ गति करते हैं जिससे Image आदि बनती हैं।

फ्लैट बैड प्लॉटर में पेपर स्थिर रहता है तथा पेन X एवं Y दिशा में गति करके | Image आदि तैयार करते हैं। प्लॉटर का प्रिण्टिग स्तर सबसे अच्छा होता है।

  1. वी०डी०यू०- वी० डी० यू० (Visual Display Unit) एक सॉफ्ट कॉपी निर्गम युक्ति है जिसे मॉनीटर (monitor) भी कहा जाता है। यह देखने में टेलीविजन की तरह का होता है जिसका प्रयोग दश्य आउटपट (video output) प्राप्त करने में किया जाता हो ।

मॉनीटर स्क्रीन पर दिखाई देने वाला चित्र, छोटे-छोटे बिन्दुओं से मिलकर बनता | जिन्हें पिक्सेल (Pixel–Picture element) कहते हैं। पिक्सेल स्क्रीन पर पंक्ति (row)  और कॉलम (column) में होते हैं। पंक्ति और कॉलम का गुणनफल मॉनीटर का रेजोल्यूशन (resolution) कहलाता है। वीडी०यू० को दो श्रेणियों में बाँटा गया है-मोनाक्रा (monochrome) और कलर (colour)।

मोनोक्रोम मॉनीटर केवल श्याम श्वेत चित्र को प्रदर्शित कर सकते हैं, जबकि कर मानाटर लगभग 17 Million Colour तक प्रदर्शित कर सकते हैं। ये सभी रग he Green, Blue को विभिन्न अनुपात में मिलाने से प्राप्त होते हैं।

  1. स्पीकर- यह एक निर्गम यक्ति है जिससे ध्वनि के रूप में आउटपुट मिलता स्पीकर का प्रयोग गाना सुनने, गेम्स के दौरान अथवा प्रेजेण्टेशन आदि के समय किया जाता है माइक से ध्वनि एनालॉग सिग्नल्स के रूप में इनपुट की जाती है तथा साउण्ड कार्ड के दाम ध्वनि को डिजिटल सिग्नल्स में परिवर्तित किया जाता है, तत्पश्चात् स्पीकर से ध्वनि आर रूप में ली जाती है।

(B) सॉफ्टवेयर- सॉफ्टवेयर एक प्रोग्राम होता है, जो छोटे-छोटे निर्देशों instructions) से मिलकर बनता है। ये निर्देश कम्प्यूटर को यह बताते हैं कि उसे किस समय तथा क्या कार्य करना है। इस प्रकार सॉफ्टवेयर द्वारा हार्डवेयर पर नियन्त्रण किया जाता है तथा हार्डवेयर से अपनी आवश्यकतानुसार कार्य कराया जाता है। सॉफ्टवेयर का प्रयोग किए बिना हार्डवेयर का प्रयोग नहीं किया जा सकता। अन्य शब्दों में, सॉफ्टवेयर (software) उन प्रोग्राम्स (निर्देशों के सामूहिक स्वरूप) को कहा जाता है जिन्हें हार्डवेयर पर क्रियान्वित किया जा सकता है। यह क्रमबद्ध निर्देशों (commands) का समूह होता है। इसके द्वारा किसी विशिष्ट कार्य को पूर्ण किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- पत्र लेखन (letter writing) के लिए , सामान्यतया ‘भाइक्रोसॉफ्ट वर्ड’ (MS-Word) का प्रयोग किया जाता है, जबकि लेखांकन (accountancy) कार्य के लिए सामान्यतया ‘टैली’ (Tally) का प्रयोग किया जाता है। अत: स्पष्ट है कि “सॉफ्टवेयर प्रयोगकर्ता और कम्प्यूटर के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने का माध्यम होते हैं। सॉफ्टवेयर स्वयं कार्य नहीं करते, अपितु कम्प्यूटर को कार्य करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश देते हैं।”

सॉफ्टवेयर के प्रकार सॉफ्टवेयर मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं |

  1. सिस्टम सॉफ्टवेयर

सिस्टम सॉफ्टवेयर एक या एक से अधिक प्रोग्राम्स का समूह होता है जिसका निर्माण कम्प्यूटर पर नियन्त्रण रखने के लिए किया जाता है। इसके द्वारा हम कम्प्यूटर को सरलतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण ढंग से संचालित कर सकते हैं। इसका प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। यह आकार में बहुत बड़ा तथा संरचना में अत्यधिक जटिल होता है जिस कारण इसके निर्माण के लिए कम्प्यूटर की संरचना का ज्ञान होना अति आवश्यक है। इनके द्वारा निम्नलिखित सुविधाएँ प्राप्त होती हैं

(1) प्रयोगकर्ता कम्प्यूटर से सम्बन्ध स्थापित कर सकता है।

(2) प्रयोगकर्ता आवश्यकता के समय अन्य प्रोग्राम्स भी चला सकते हैं।

(3) इनकी सहायता से प्रयोगकर्ता कम्प्यूटर से जुड़ी अन्य युक्तियों (peripheral _devices) जैसे प्रिण्टर (printer), स्कैनर (scanner) व टेप ड्राइव (tape drive) आदि से सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं।

(4) प्रयोगकर्ता अन्य प्रोग्राम्स का निर्माण भी कर सकते हैं।

(5) प्रयोगकर्ता हार्डवेयर्स जैसे सी०पी०यू० व स्मृति (memory) आदि पर भी नियन्त्रण रख सकते हैं।

 

प्रकार सिस्टम सॉफ्टवेयर विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं जैसे—

(क) ट्रांसलेटर (Translator), (ख) ऑपरेटिंग सिस्टम (Open system),  (ग) डी०बी०एम०एस० (DBMS), (घ) सिमुलेटसे (Simulators) तथा (Drivers)।

BSC Physical Chemistry Computers languages Notes

  1. एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर

एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर एक या एक से अधिक प्रोग्राम्स का ऐसा समोर किसी विशेष कार्य के संपादन के लिए बनाया जाता है। इनका प्रयोग सामान्य तथा सीमित होता है। इनका प्रयोग सिस्टम सॉफ्टवेयर के साथ ही किया जाता है। इनके अन्तर्गत विभिन प्रकार के प्रोग्राम आते हैं, जो या तो प्रयोगकर्ता द्वारा बनाए जाते हैं या बने-बना. (readymade) बाजार में उपलब्ध होते हैं। इनका एक उदाहरण-पे-रोल पैकेज (Pav-ral package) है जिसका प्रयोग विभिन्न कम्पनियों द्वारा प्रत्येक महीने में कर्मचारियों के पे-स्लिप्स (Pay-slips) आदि बनाने में किया जाता है। इनके अन्य उदाहरण हैं-वर्ड प्रोसेस प्रोग्राम (Word Processor Program), स्प्रेड शीट (Spread Sheet), डेस्क टॉप पब्लिशिंग (Desk Top Publishing), मेल प्रोग्राम (Mail Program), डाटा एण्ट्र (Data Entry), ड्राइंग या सी०ए०डी० प्रोग्राम (Drawing or CAD Program), फाइल स्थानान्तरण प्रोग्राम (File Transfer Program), डेवलपमेण्ट टूल (Developmen Tool), पेण्ट प्रोग्राम (Paint Program) आदि।

प्रकार- एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को मुख्यत: दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

(क) यूजर डेवलप्ड या कस्टमाइज्ड एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (User Developed a Customized Application Software),

(ख) स्टैण्डर्ड पैकेज या स्टैण्डर्ड एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Standard Packageo Standard Application Software)

 

III. यूटिलिटी सॉफ्टवेयर 

ये विशेष प्रकार के प्रोग्राम होते हैं जिनको कम्प्यूटर अथवा कम्प्यूटर से जुड़े अवयव की मरम्मत या रख-रखाव के लिए बनाया जाता है। इनके प्रयोग से कम्प्यूटर को सरलतापूर्व तथा अच्छे ढंग से संचालित किया जा सकता है। ये सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर के लिए अनिवार्य रू से आवश्यक नहीं होते हैं अर्थात् इनके बिना भी कम्प्यूटर को चलाया जा सकता है। इनक सर्विस प्रोग्राम (service program) भी कहते हैं। ये मुख्यतः अन्य प्रोग्राम्स में से त्रुटि हटा (de-bugging), टेक्स्ट का सम्पादन (editing) करने, डाटा आदि को किसी विशेष क्रम व्यवस्थित करने तथा डाटा को आगम/निर्गम युक्ति (input/output device) से कहा भजन आदि में प्रयुक्त होते हैं। इनके उदाहरण निम्नलिखित हैं—

BSC Physical Chemistry Computers languages Notes

(1) डिस्क डिप्रैगमेंटर (Disk Defragmentor),

(2) वायरस स्कनेर एव् रिमूवर Tort To Fuck (Virus Scanner and Remover), 

(3) टेक्स्ट सम्पादन (Text Editing),

(4) डी-बगिंग टूल (De-bugging Tool),

(5) सोर्ट एण्ड मर्ज (Sort and Merge),

(6) फाइल का रख-रखाव (File Maintenance) आदि।

उपयुक्त यूटिलिटी सॉफ्टवेयर में दो प्रोग्राम प्रमुख हैं, जो निम्नलिखित हैं—

(क) डिस्क डिफ्रेगमेंटर (Disk Defragmentor),

(ख) वायरस स्कैनर एवं रिमूवर (Virus Scanner and Remover)।

 

प्रश्न 6. कम्प्यूटर की विभिन्न भाषाएँ क्या हैं? इसकी प्रत्येक भाषा की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।।। 

उत्तर :                                                        कम्प्यूटर भाषा (1) 

(Computer Language)

कम्प्यूटर के आरम्भिक काल में कोड लिखने के लिए बाइनरी भाषा का ही प्रयोग किया जाता था, जिसमें अनेक कठिनाइयाँ आती थीं। बाद में अपेक्षाकृत सरल भाषाओं का विकास होने लगा तथा वर्तमान तक आते-आते ऐसी प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास हो चुका है जिनका प्रयोग कर कम्प्यूटर पर कार्य करना सरल हो गया है। विकास-क्रम के आधार पर कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग भाषाओं को निम्न चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

 

(I) निम्न स्तरीय भाषाएँ या एल०एल०एल० 

[ Low Level Languages (LLL)]

इस प्रकार की भाषा में की जाने वाली प्रोग्रामिंग कम्प्यूटर की मेमोरी तथा सी०पी०यू० (CPU) में उपस्थित रजिस्टर्स (Registers) के आधार पर की जाती है। हम जानते हैं कि एक कम्प्यूटर की संरचना दूसरे कम्प्यूटर से भिन्न होती है, जिस कारण, अलग-अलग कम्प्यूटरों के लिए निम्न स्तरीय भाषा (Low Level Language) में लिखे अलग-अलग प्रोग्रामों का प्रयोग किया जाता है। इन भाषाओं को मशीन आधारित भाषाएँ (Machine Dependent Languages) भी कहते हैं। इस प्रकार की भाषा में प्रोग्रामिंग करने के लिए, यह आवश्यक है कि प्रोग्रामर को कम्प्यूटर की संरचना का समुचित ज्ञान हो। इस श्रेणी में दो भाषाएँ आती हैं

  1. मशीनी भाषा (Machine Language),
  2. असेम्बली भाषा (Assembly Language)।

 

  1. मशीनी भाषा (Machine Language) 

इसका प्रथम पीढ़ी की भाषा (first generation language) भी कहते हैं। इस भाषा में बाइनरी अंकों (0 व 1) के आधार पर प्रोग्रामिंग होती है। इसमें निर्देशों (instructions), रजिस्टर्स (registers), मेमोरी लोकेशन (memory location) व डाटा (data) को बाइनरी रूप में दिया जाता है। इस भाषा को कम्प्यूटर बिना किसी ट्रांसलेटर सॉफ्टवेयर (translator software) का प्रयोग किए सरलता से समझ सकता है। इस भाषा में लिखे किसी भी प्रोग्राम को सीधे ही कम्प्यूटर द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। मशीनी भाषा में लिखे निर्देश के दो भाग होते हैं

  • आपरेशनपार्ट (operation Part)- इसे OP-Code भी कहते हैं। ऑपरेशन (Operation) करना है।
  • ऑपरेण्ड पार्ट (Operand Part)- इस भाग में उन ऑपरेशन (address) अथवा मेमोरी लोकेशन लिखा रहता हैं जिन पर यह ऑर । एडस यह कम्प्यटर को यह बताता है कि इस ऑपरेशन के लिए आवश्यक डाटा कहाँ ।

ऑपरेशन हो जाने के पश्चात् परिणाम (result) को, कहाँ पर स्टोर करना है। और कुछ सामान्य उदाहरणों में गणितीय ऑपरेशन (+, *,÷,-), लॉजिकल और (>, <,!,=, =) डाटा रीड/राइट करना आदि हैं।

मशीनी भाषा में लिखे प्रोग्राम निम्नलिखित प्रकार से प्रदर्शित होते हैं—

BSC Physical Chemistry Computers languages Notes
BSC Physical Chemistry Computers languages Notes

 

मशीनी भाषा के गुण (Characteristics of Machine Language) 

मशीनी भाषा के निम्नलिखित गुण होते हैं

(i) कम्प्यूटर, मशीनी भाषा को सीधा ही समझ सकता है, इसीलिए इस भाषा में लिखे| प्रोग्राम को एक्सीक्यूट करने के लिए ट्रांसलेटर सॉफ्टवेयर की आवश्यकता नहीं होती है।

(ii) मशीनी भाषा सीधे मेमोरी लोकेशन व रजिस्टर पर कार्य करने की सुविधा प्रदान करती है। इस भाषा में लिखे प्रोग्राम अधिक तेज गति से एक्सीक्यूट होते हैं।

(iii) मशीनी भाषा में लिखे प्रोग्रामों के द्वारा, हम कम्प्यूटर के रिसोर्सेस का पूर्ण रूप से प्रयोग कर सकते हैं। मशीनी भाषा की कमियाँ (Drawbacks of Machine Language) 

 

मशीनी भाषा की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं ____

 (i) मशीन आधारित भाषा होना (Machine dependent language)- यक्ष भाषा कम्प्यूटर की संरचना पर निर्भर करती है, जिस कारण यह आवश्यक नहीं है कि एक प्रकार के कम्प्यूटर पर सही तरीके से चल रहा प्रोग्राम, दूसरे प्रकार के कम्प्यूटर पर भी स प्रकार से ही चलेगा। इसी कारण, अलग-अलग कम्प्यूटरों के लिए, अलग-अल’ लिखने पड़ते हैं।

 

(ii) प्रोग्रामिंग में असविधा (Complications in programming)- भाषा में निर्देशों को 1 व 0 के रूप में लिखा जाता है। अत: मशीनी भाषा में प्राग्राम अत्यन्त कठिन होता है।

(iii) गलतियों को खोजने व सुधारने में असुविधा (Complications in searching and debugging of errors)- मशीनी भाषा में लिखे प्रोग्राम में गलतियों terrors) को खोजना तथा प्रोग्राम में परिवर्तन करना अत्यन्त कठिन होता है।

(iv) कम्प्यूटर की संरचना का ज्ञान (Knowledge of the architecture of computers)— यह भाषा मशीन आधारित होती है। अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि प्रोग्रामर को कम्प्यूटर की संरचना का भी पर्याप्त ज्ञान हो।

 

असेम्बली भाषा (Assembly Language) 

इस भाषा को द्वितीय पीढ़ी की भाषा (second generation language) भी कहा जाता है। कम्प्यूटर विशेषज्ञों द्वारा मशीनी भाषा में कोड लिखने में आने वाली कठिनाइयों को कम करने के लिए प्रयास शुरू किए गए; परिणामस्वरूप इस भाषा का विकास हुआ। इस भाषा में मशीनी भाषा के बाइनरी अंकों के स्थान पर कुछ याद रखने योग्य सिम्बल्स, जिन्हें निमॉनिक (mnemonic) कहा जाता है, का प्रयोग किया गया। इन सिम्बल्स में वर्णमाला (alphabets) तथा संख्यात्मक प्रतीकों (numeric symbols) का प्रयोग होता है। इस भाषा में कुछ फंक्शन (function), ऑपरेशन (operation) व कोड (code) के लिए प्रतीकों (symbols) या नामों का प्रयोग किया जाता है। यह भाषा मैक्रो बनाने व उसका प्रयोग करने की सुविधा भी प्रदान करती है। एक मैक्रो (macro) के दो हिस्से होते हैं, जिनमें से एक मैक्रो का नाम तथा दूसरा मैक्रो की बॉडी (body) होता है। इसमें विभिन्न प्रकार के निर्देश लिखे होते हैं। इस मैक्रो का प्रयोग हम आवश्यकता पड़ने पर, कहीं भी कर सकते हैं। इस कारण एक ही कोड को, हमें बार-बार नहीं लिखना पड़ता है। असेम्बली भाषा में लिखा निर्देश निम्न प्रकार होता है

ऑप-कोड                       एड्रेस

ADD                            FST

ADD                            B

SUB                            C

इसमें ADD कम्प्यूटर को यह बताता है कि जोड़ (addition) का ऑपरेशन होना है तथा एड्रेस कम्प्यूटर को यह बताता है कि इस एड्रेस की वैल्यू का प्रयोग ऑपरेशन में करना है। प्रोग्राम में लिखा निर्देश कम्प्यूटर को यह बताता है कि मेमोरी एड्रेस FST की वैल्यू को ऐक्यूमुलेटर (accumulator) की वैल्यू में जोड़ दो।

हम जानते हैं कि कम्प्यूटर केवल मशीनी भाषा ही समझता है। इस कारण हमें असेम्बली भाषा में लिखे प्रोग्राम को मशीनी भाषा में बदलने की आवश्यकता पड़ती है। यह कार्य, असेम्बलर (assembler) नामक ट्रांसलेटर (translator) करता है। यह ट्रांसलेटर असेम्बली भाषा में लिखे प्रोग्राम को मशीनी भाषा में बदलने का कार्य करता है। एक बार मशीनी भाषा में परिवर्तित होने के पश्चात् ही प्रोग्राम का क्रियान्वयन सम्भव होता है।

 

असेम्बली भाषा के गुण (Characteristics of Assembly Language) 

असेम्बली भाषा के प्रमुख गुण अग्रलिखित हैं- .

  • असेम्बली भाषा को सीखना व इसमें प्रोग्रामिंग करना मशीनी भाषा की तल सरल है।
  • असेम्बली भाषा पढ़ने व समझने में सरल होती है, इस कारण इसमें खोजना व प्रोग्राम में परिवर्तन (modification) करना सरल होता है।
  • मैक्रो (macro) के प्रयोग के कारण, इसमें एक ही कोड को एक से अधिक बार लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • असेम्बली भाषा में लिखे प्रोग्राम के द्वारा, हम कम्प्यूटर के स्रोतों (resources, का पूर्ण रूप से प्रयोग कर सकते हैं।

 

असेम्बली भाषा की कमियाँ (Drawbacks of Assembly Language) 

असेम्बली भाषा की प्रमुख कमियाँ इस प्रकार हैं –

  • असेम्बली भाषा को कम्प्यूटर नहीं समझ सकता है, अत: इस भाषा को असेम्बलर (assembler) द्वारा मशीनी भाषा में बदलने की आवश्यकता होती है।
  • यह मशीन आधारित भाषा होती है; इसलिए इस भाषा में, एक प्रकार के कम्प्यूटर के लिए लिखा प्रोग्राम अन्य प्रकार के कम्प्यूटरों पर नहीं चलाया जा सकता है।
  • यह मशीन आधारित भाषा होती है; इसलिए यह आवश्यक है कि प्रोग्रामर को कम्प्यूटर की संरचना का पर्याप्त ज्ञान भी हो।

 

[II] उच्च स्तरीय भाषाएँ या एच०एल०एल 

[High Level Languages (HLL)] 

उच्च स्तरीय भाषाओं का विकास निम्न स्तरीय भाषाओं पर आधारित प्रोग्रामिंग में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए किया गया था। HEL में प्रोग्रामिंग करने के लिए यह आवश्यक नहीं था कि प्रोग्रामर को कम्प्यूटर की संरचना का पूर्ण रूप से ज्ञान हो। HILL में| प्रोग्रामिंग करना, निम्न स्तरीय भाषा की तुलना में सरल है।

HLL के साथ एक समस्या यह है कि इस भाषा में लिखे गए प्रोग्राम को टांसलेटर के द्वारा, मशीनी भाषा में बदलने की आवश्यकता होती है। HEL को मशीनी भाषा में बदलने के लिए—इन्टरप्रेटर (interpreter) व कम्पाइलर (compiler) नाम के दो टांसलेटर उपस्थित होते हैं, जो विभिन्न गुणों के आधार पर एक-दूसरे से अलग होते हैं।

 

उच्च स्तरीय भाषाओं का वर्गीकरण (Classification of High Level Languages) 

विभिन्न गुणों के आधार पर उच्च स्तरीय भाषा को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

  • समस्या आधारित भाषा (Problem Oriented Language),
  • प्रक्रिया आधारित भाषा (Procedure Oriented Language)|

(i) समस्या आधारित भाषा (Problem Oriented Language)- इस प्रकार पाआ में समस्या के समाधान के विस्तृत ब्योरे के स्थान पर परिणाम (output) पर ध्यान है। इन भाषाओं में, समस्याओं को हल करने की पूर्व निर्मित विधियाँ संगृहीत रहता है। जस-FoxPro. Oracle. MS SQL आदि।

 

(ii) प्रक्रिया आधारित भाषा (Process Oriented Language)- इस प्रकार की भाषा में समस्या को हल करने की विधि का विस्तृत ब्योरा दिया जाता है।  इस प्रकार की भाषा में इस तथ्य पर ध्यान दिया जाता है कि समस्या का समाधान किस प्रकार जैसे-BASIC, C, C++ आदि।

उच्च स्तरीय भाषा के लक्षण (Main characteristics of high level language)-उच्च स्तरीय भाषा में प्रोग्राम लिखने के लिए निम्नलिखित गुण दिए गए हैं

 

उच्च स्तरीय भाषा के लक्ष्ण (Main Characteristics of high level language)

 

  • उच्च स्तरीय भाषा में आप प्रोग्राम में इनपुट ले रहे, प्रोसेस कर रहे तथा आउटपट दे रहे डाटा का नाम, उसका प्रकार (अंक, पूर्णांक, भिन्नांक, शब्द, लाइन, कैरेक्टर आदि). उसका आकार आदि सैट कर सकते हैं। उच्च स्तरीय भाषा डाटा स्ट्रक्चर, ऐरे, मैट्रिक्स, टी. लिस्ट, स्टैक आदि भी वर्णित करने की सुविधाएँ प्रदान करती है।
  • यह गणितीय एवं लॉजिकल ऑपरेटर प्रयोग करने की सुविधाएँ प्रदान करती है, इसके अतिरिक्त यह अनेक गणितीय फंक्शन (sin, cos, %, आदि) प्रयोग करने की भी सुविधा देती है।
  • इसमें कण्डीशन, डिसीजन के लिए अनेक कण्ट्रोल स्ट्रक्चर होते हैं; जैसे if-then, else, repeat-until, Do-while hifci
  • उच्च स्तरीय भाषा में रिजर्व शब्दों का सैट होता है जिनमें प्रत्येक शब्द का अपना अद्वितीय अर्थ तथा प्रयोग होता है; जैसे—Read, Write, Print, Get, Put, Do, While, Goto आदि। यह
  • उच्च स्तरीय भाषाओं में सिण्टैक्स नियमों का सैट होता है जिनके अनुसार भाषा के वाक्यों अर्थात् निर्देशों को लिखा जाता है।
  • उच्च स्तरीय भाषाओं के अपने सिण्टिक नियम (semantic rules) भीहोते हैं। ये नियम प्रोग्राम को अर्थ प्रदान करते हैं। इन नियमों के अनुसार प्रत्येक निर्देश का ने केकेवल एक ही अर्थात् विशिष्ट (unique) महत्त्वपूर्ण अर्थ होता है।
  • उच्च स्तरीय भाषाओं में ऐसी अनेक सुविधाएँ हैं जिनके कारण एक ऐल्गोरिथ्म, स्यूडोकोड आदि में लिखे गए प्रोग्राम को सापेक्ष कोड में लिखना अधिक सरल होता है।

उच्च स्तरीय भाषा (HILL) के गुण (Advantages of HLL)— उच्च स्तरीय भाषा के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं

  • HLL में प्रोग्रामिंग के लिए, अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार की भाषा को सीखना व इसमें प्रोग्रामिंग करना सरल होता है।
  • HEL मशीन आधारित भाषा नहीं होती है, अत: एक प्रकार की मशीन (कम्प्यूटर) के लिए बनाए गए प्रोग्राम को दूसरे प्रकार के कम्प्यूटर पर सरलता से चलाया जासकता है।
  • अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग के कारण, इसमें लिखे प्रोग्राम में त्रुटि को खोजन प्रोग्राम में परिवर्तन करना सरल होता है।
  • IN HLL में यह आवश्यक नहीं होता कि प्रोग्रामर को कम्प्यूटर की आन्तरिक संरचना का अच्छा ज्ञान हो।
  • HLL की Library का प्रयोग हम आवश्यकता पड़ने पर कर सकते हैं।
  • HLL में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होने के कारण इनमें बने प्रोग्राम का डॉक्यूमेण्टेशन (documentation) सरलता से हो जाता है।
  • HLL में प्रोग्रामिंग करने में निम्न स्तरीय भाषा की तुलना में कम समय लगता है।

 

चतुर्थ पीढ़ी भाषा [Fourth Generation Language (4GL)] 

 

इस पीढ़ी की भाषाएँ प्रयोगकर्ता के लिए प्रयोग करना आसान है तथा ये नए एप्लीकेशन प्रोग्राम बनाने में सहायता करती हैं। एप्लीकेशन प्रोग्राम डाटा प्रोसेसिंग के लिए बनाए जाते हैं। डाटा प्रोसेसिंग से तात्पर्य नया डाटा जोड़ना, अनावश्यक डाटा को हटाना अथवा आवश्यकतानुसार डाटा में परिवर्तन करना है। चतुर्थ पीढ़ी की भाषाएँ डाटा प्रोसेसिंग के लिए मैन्यूज (menus) द्वारा संचालित स्क्रीन (screen) प्रदान करती हैं जिसमें कार्य करना आसान होता है।

 

चतुर्थ पीढ़ी की भाषाएँ नॉन-प्रोसीजरल (non-procedural) होती हैं, अर्थात् प्रयोगकर्ता केवल कार्य को बताता है। कार्य कैसे करना है यह 4 जी०एल० के एक विशेष कोड Command Processor द्वारा निर्धारित किया जाता है। इस प्रकार की भाषा में कमाण्ड देना बहुत आसान है। एक ही कमाण्ड के द्वारा हम डाटा पर आधारित रिपोर्ट को बना सकते हैं तथा उसे प्रिण्टर द्वारा प्रिण्ट भी कर सकते हैं।

इस प्रकार की भाषा डी०बी०एम०एस० का विशेष प्रयोग करती है, जिसमें डाटा व्यवस्थित रूप में संगृहीत होता है तथा आवश्यकता पड़ने पर सुचारु रूप से प्राप्त किया जा सकता है।

 

 

4 जी०ल० के गुण व अवगुण (Merits and Demerits of 4GL) 4 जी०एल० के मुख्यत: निम्नलिखित गुण व अवगुण होते हैं

  • यह नॉन-प्रोसीजरल भाषा (non-procedural language) होती है।
  • यह सिम्पल क्वेरी भाषा (simple query language) का प्रयोग करती है।
  • यह भाषा प्रयोग के उद्देश्य से आसान है, परन्तु इसका प्रयोग करने के लिए अपेक्षाकृत अधिक प्राथमिक तथा द्वितीयक मेमोरी की आवश्यकता होती है। इसके मध्य में एक डाटाबेस होना आवश्यक है। इसके अन्तर्गत—FoxPro, dbase, PROLOG आदि भाषाए आती हैं।

 

Follow me at social plate Form

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top