Bsc 2nd Year Botany IV Part C Question Answer Notes

Bsc 2nd Year Botany IV Part C Question Answer Notes :-

 

 

खण्ड

प्रश्न 1 – पुमंग की विभिन्न परिस्थितियों को परिभाषित कीजिए।

उत्तर – पुमंग (Androecium)

पुष्प में पाए जाने वाले पुंकेसर चक्र को पुमंग कहते हैं। एक पुंकेसर के तीन भाग होते हैं, पुतन्तु, योजि तथा परागकोश। इनकी व्यवस्था पुष्पों में भिन्न-भिन्न प्रकार से होती है; जैसे-

(1) पृथक्पुंकेसरी (Polyandrous)-पुंकेसर स्वतन्त्र होते हैं।

(2) द्विदीर्घा (Didynamous)-चार पुंकेसरों में से दो के तन्तु छोटे तथा दो के लम्बे होते हैं (जैसे-स्क्रोफुलेरिएसी कुल के सदस्य)।

(3) चतुर्दी (Tetradynamous)-पुष्प में छ: पुंकेसर पाए जाते हैं जिनमें दो पुंकेसरों के तन्तुक छोटे तथा चार के लम्बे होते हैं; जैसे-सरसों।

(4) संघी (Adelphous)-जब पुंकेसरों के पुतन्तु आपस में संगलित होकर समूह बनाते हैं तब उन्हें संघी कहते हैं। ये निम्न प्रकार के हो सकते हैं

(अ) एकसंघी (Monadelphous)-जब सभी पुंकेसर तन्तु एक संघ में व्यवस्थित होते हैं; जैसे-गुड़हल।

(ब) द्विसंघी (Diadelphous)-इसमें पुंकेसर दो समूह में मिलते हैं; जैसे—मटर।

(स) बहुसंघी (Polyadelphous)-जब सभी पुतन्तु संयुक्त होकर कई समूह बनते हैं। जैसे-नींबू।

(5) युक्तकोशी (Syngenesious)-इस प्रकार के पुमंग में सभी पंकेसर तो अलग होते हैं, परन्तु परागकोश संगलित हो जाते हैं; जैसे—सूर्यमुखी।

(6) संपुमंगी (Synandrous)-जब सारे पुंकेसर परागकोश से लेकर पंतन्तक तरह संगलित होकर एक संरचना बन जाते हैं संपुमंगी कहलाते हैं।

(7) दललग्न (Epipetalous)-जब पुंतन्तु दल के साथ संगलित होते है दललग्न कहलाते हैं।

(8) पुंजायांगी (Gynandrous)-पुंकेसर जायांग के साथ जुड़ जाते हैं।

(9) पंवर्तिकाग्रछत्र (Gynostegium)-पुमंग वर्तिकाग्र के साथ जुड़ जाता है. जैसे-एस्क्लेपिडेसी कुल के सदस्य।

(10) पुंजायांग स्तम्भ (Gynostemium)-वह स्तम्भ जिसमें संयुक्त जायांग एवं पुमंग मिलते हैं जैसे-आर्किड।

प्रश्न 2 – टिप्पणी लिखिए-

(क) जड़ों में पेरीडर्म का बनना। 

(ख) प्ररोह शीर्ष के क्षेत्र। 

उत्तर (क) जड़ों में पेरीडर्म का बनना

(Formation of Periderm in Roots)

पेरीसाइकिल (pericycle) की कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता (meristematic activity) आने के कारण कॉर्क कैम्बियम या फेलोजन (cork cambium or phellogen) का निर्माण होता है। कभी-कभी कॉर्क कैम्बियम फ्लोएम से भी बनता है। कॉर्क

कैम्बियम बाहर की तरफ कॉर्क (cork) या काग (phellem) तथा अन्दर की तरफ द्वितीयक कॉर्टेक्स या फेलोडर्म (secondary. cortex or phelloderm) बनाता है द्वितीयक कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ मृदूतक की बनी होती हैं। इनमें क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) नहीं होते हैं। द्वितीयक ऊतक (secondary tissues) बनने के कारण कॉर्टेक्सएण्डोडर्मिस पर दबाव पड़ता है जिसके कारण अन्ततः दोनों फट जाती हैं या नष्ट हो जाती हैं। मूलीय त्वचा (epiblema) सामान्यतः द्वितीयक वृद्धि से ही नष्ट हो जाती है। तने की तरह यहाँ भी कुछ वातरन्ध्र (lenticels) विकसित हो जाते हैं।

(ख) प्ररोह शीर्ष के क्षेत्र 

(Regions of Shoot Apex)

Wardlaw (1965, 68) ने प्ररोह शीर्ष के पाँच क्षेत्र बताए

(1) दूरस्थ क्षेत्र (Distal region)-इसमें इनीशियल की कोशिकाओं का समूह (group of initials) होता है।

(2) उपदूरस्थ क्षेत्र (Subdistal region)-यह विभज्योतकी कोशिकाओं का बना होता है, इसमें वृद्धि क्षेत्र (growth centres) होते हैं।

(3) ऑर्गेनोजेनिक क्षेत्र (Organogenic region)- इसमें पत्ती बनने का आरम्भ (leaf initiation) होता है।।

(4) उपशीर्षस्थ क्षेत्र , (Subapical region)-इस क्षेत्र की कोशिकाओं में निरन्तर विभाजन, दीर्धीकरण व विभेदन होता है।

(5) परिपक्वन क्षेत्र (Region of maturation)-इस क्षेत्र की कोशिकाओं में विभाजन व विभेदन नहीं मिलता है। ये परिपक्व होती हैं।

प्रश्न 3 – मूल शीर्ष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर – मूल शीर्ष (Root Apex)

प्ररोह शीर्ष की अपेक्षा मूलशीर्ष की संरचना सरल होती है क्योंकि मूल में शाखाएँ, पत्तियाँ, फूल आदि नहीं बनते हैं। मूल शीर्ष (root apex) उपान्तस्थ (sub terminal) होती है तथा मूलगोप (root cap) से रक्षित होती है। मूल शीर्ष से अक्ष की तरफ तथा अक्ष से दूसरी तरफ (मूलगोप) कोशिकाएँ बनती हैं। मूल शीर्ष की संरचना के सम्बन्ध में अनेक वाद (theories) दिए गए हैं। इनमें से कुछ का वर्णन निम्न प्रकार है

(1) एपिकल कोशिका वाद (Apical cell theory) – यह वाद Nageli (1858) ने दिया। एक टेट्राहैड्रल अग्र कोशिका (tetrahedral apical cell) संवहन ऊतक वाले क्रिप्टोगेम्स में पायी जाती है। इसकी तीन सतहों से नई कोशिकाएँ बनती हैं जिनसे मूलगोप तय मूल के अन्य प्राथमिक ऊतक बनते हैं।

(2) हिस्टोजन वाद (Histogen theory) –  यह वादं हेन्सटीन (Hanstein 1968) ने दिया। इसके अनुसार तीन हिस्टोजन होते हैं जिनकी उत्पत्ति पृथक्-पृथक् इनीशिय से होती है

(i) डर्मेटोजन (Dermatogen)-इससे बाह्यत्वचा बनती है।

(ii) पेरीब्लेम (Periblem)-इससे कॉर्टेक्स बनता है।

(iii) प्लीरोम (Plerome)-इससे संवहन सिलिण्डर (vascular cylinder) बनता है।

Haberlandt (1914) ने प्रोटोडर्म (protoderm), ग्राउण्ड मेरिस्टेम (ground meristem) तथा प्रोकैम्बियम (procambium) नाम डर्मेटोजन, पेरीब्लेम व प्लीरोम के स्थान पर दिए।

(3) कॉर्पर-कैपे वाद (Korper- Kappe theory) – इस वाद को Schuepp (1917) ने दिया। इसके अनुसार मूल कोशिकाओं में दो तलों में विभाजन होते हैं।

कोशिका पहले अनुप्रस्थ विभाजन (transverse division) से विभाजित होती है। अब इन दो कोशिकाओं में से एक लम्बवत् विभाजन (longitudinal division) से विभाजित होती है। इसको T विभाजन कहते हैं। मूल में दो जोन बनते हैं। एक सीधी T वाला तथा दूसरा उल्टा T (1) वाला। सीधा T जोन Kappe तथा उल्टे T (1) वाला जोन Korper कहलाता है। इसको Body cap वाद ना कहते हैं।

मूल शीर्ष के प्रकार

(Type of Root Apex)

टाइप ए (Type A)-मूल के सभी ऊतक तथा मूलगोप (root cap) एक एपिकल कोशिका (single apical cell) से विकसित होते हैं। उदाहरण-वैस्कुलर क्रिप्टोगेम्स (vascular cryptogams)।

टाइप बी (Type B) — इसमें इनीशियल दो समूह में बनते हैं। एक से संवहन सिलिण्डर (vascular cylinder) तथा दूसरे से कॉर्टेक्स, बाह्यत्वचा व मूलगोप विकसित होते हैं। उदाहरण—जिम्नोस्पर्म।

टाइप सी (Type C) – इसमें इनीशियल तीन परतों में मिलते हैं तथा अल्पविकसित होते हैं। इनसे संवहन सिलिण्डर, कॉर्टेक्स, बाह्यत्वचा तथा मूलगोप बनते हैं।

टाइप डी (Type D) – इसमें इनीशियल तीन परतों में मिलते हैं जिनसे संवहन सिलिण्डर, कॉर्टेक्स, बाह्यत्वचा व मूलगोप बनते हैं। इसमें मूलगोप विशिष्ट रूप से विकसित विभज्योतक केलिप्ट्रोजन (calyptrogen) से बनती है। यह नाम Janezewski ने दिया।

गटनबर्ग (Gutenberg, 1960) के अनुसार मूल शीर्ष दो प्रकार के होते हैं(i) क्लोज टाइप। (ii) ओपन टाइप।

(i) क्लोज टाइप (Close type) – इसमें विभिन्न ऊतकों के इनीशियल पृथक् होते हैं। संवहन सिलिण्डर, कॉर्टेक्स, मूलगोप तथा बाह्यत्वचा के पृथक् इनीशियल होते हैं।

(ii) ओपन टाइप (Open type) – इसमें सभी ऊतकों के इनीशियल कुछ दूरी पर

पृथक् होते हैं। इसमें टाइप सीटाइप डी क्लोज प्रकार के तथा टाइपए टाइप . बी ओपन प्रकार के होते हैं। शीर्ष जिनमें कॉमन इनीशियल (common initial) होते हैं, फाइलोजेनेटिकली आद्य (primitive) होते हैं।

प्रश्न 4 – प्ररोह शीर्ष की संरचना के लिए दिए गए वादों का वर्णन करो।

उत्तर – प्ररोह शीर्ष (shoot apex) वुल्फ (Wolff-1759) के अनुसार प्ररोह का वह भाग है जो सबसे कम उम्र की पत्ती के आद्य (primordia) के ऊपर होता है।

प्ररोह शीर्ष संरचना के विभिन्न वाद

(Various theories of Shoot Apex Structure)

प्ररोह शीर्ष संरचना के विभिन्न वाद निम्नलिखित हैं

(1) शीर्षस्थ कोशावाद (Apical cell theory) – यह वाद नागेली (Nageli 1878) ने प्रस्तुत किया था जिनके अनुसार सम्पूर्ण पौधे का निर्माण एक शीर्षस्थ कोशिका ना होता है। ये कोशिका पिरामिडल (pyramidal) या लेन्टीकुलर (lenticular) प्रकार की होती हैं। शीर्षस्थ कोशिका मुख्य रूप से उच्च वर्ग के शैवालों (algae), ब्रायोफाइटर (bryophytes) व कुछ टेरिडोफाइट्स (pteridophytes) में मिलती है।

(2) हिस्टोजन वाद (Histogen theory) — इस वाद को हेन्सटीन ने सन् 1869 में बताया था। इस वाद के अनुसार तीन जर्म परतें (germ layers)-सबसे बाहर की डर्मेटोजन (dermatogen), बीच की पेरीब्लेम (periblem) तथा अन्दर की प्लीरोम (plerome) होती हैं।

डर्मेटोजन सबसे बाहर की सतह होती है। इससे तने की बाह्यत्वचा (epidermis) बनती है। जड़ों में भी यह एक परत की होती है।

पेरीब्लेम परत डर्मेटोजन के एकदम अन्दर की ओर होती है। प्रारम्भिक अवस्थाओं में पौधे के भिन्न-भिन्न भागों में पेरीब्लेम एक परत की होती है। लेकिन बाद की दशाओं में और विशेष रूप से मध्य भाग में यह कई परतों वाली होती है। पेरीब्लेम विशेष रूप से तने तथा जड़ की कॉर्टेक्स में विकसित होती है।

जड़ और तने का बीच का भाग प्लीरोम (plerome) का बना होता है। यह परत पेरीब्लेम से एकदम अन्दर की ओर ही होती है। यह परत पतली दीवारों वाली कोशिकाओं की बनी होती है। इन कोशिकाओं का निश्चित आकार तथा माप नहीं होता है। Plerome से रम्भ भाग (stellar region) बनता है। इससे परिरम्भ, संवहन ऊतक तथा मज्जा किरण (pericycle, vascular tissues, medullary rays) व मज्जा (pith) आदि भाग बनते हैं।

(3) ट्यूनिका कॉर्पस वाद (Tunica-Corpus theory)—यह वाद सबसे पहले श्मिट (Schmidt, 1924) नामक वैज्ञानिक ने प्रतिपादित किया था। इस वाद के अनुसार मेरिस्टेम के अग्र भाग में दो अलग-अलंग प्रकार के ऊतक होते हैं। इन्हें Tunica तथा Corpus कहते हैं।

Tunica अग्र भाग का बाहर का हिस्सा होती है। सामान्य रूप से यह एक या दो परतों की बनी होती है। फिर भी कुछ एकबीजपत्री पौधों में कई परतों वाली Tunica की खोज की गई है। ये परतें सदा बाहर की ओर होती हैं। इन कोशिकाओं में सदा anticlinal विभाजन होता है। यद्यपि कछ परिस्थितियों में इनमें periclinal विभाजन भी हो सकता है।

Corpus को Tunica घेरे रहती है। Corpus की स्थिति मध्य में होती है। यह अनिश्चित आकार की कोशिकाओं की बनी होती है। Corpus की कोशिकाएँ Tunica की कोशिकाओं से आकार में बड़ी होती हैं। ये कोशिकाएं बिना किसी विशेष दिशा के सभी दिशाओं में विभाजित होती रहती हैं।

Tunica तथा Corpus के दोनों भागों की उत्पत्ति स्वतन्त्र रूप से होती है। ये दोनों भाग रंजक लेने में भी एक-दूसरे से विभिन्न होते हैं।

(4) साइटोहिस्टोलॉजिकल जोनेशन (Cytohistological zonation)-यह वाद फोस्टर (Foster, 1939) ने प्रस्तुत किया जिनके अनुसार शीर्ष को कोशिका ऊतक क्षेत्र आदि के आधार पर बाँटा जा सकता है।

(i) शीर्षस्थ क्षेत्र (Apical initial zone) कोशिकाएँ कम विभाजित होती हैं तथा परिधीय मेरिस्टेमसेन्ट्रल मदर सेल जोन बनाने में योगदान करती हैं।

(ii) मध्यवर्ती जनक कोशिका क्षेत्र (Central mother cell zone)—इसमें विभाजन दर अपेक्षाकृत कम होती है तथा यह परिधीय मेरिस्टेम के निर्माण में सहायता करता है।

(iii) रिब मेरिस्टेम (Rib meristem) इसकी कोशिकाओं में एन्टीक्लाइनल विभाजन होता है।

(iv) परिधीय मेरिस्टेम (Peripheral meristem) इसकी कोशिकाएँ तीव्र विभाजन करती हैं। पत्ती के आद्य (leaf primordia) इसी क्षेत्र में बनते हैं।

(5) एन्यू इनीशियल तथा मेरिस्टेमी डी एटेन्टी सिद्धान्त (Anneau initial and Meristeme d attente theory)-यह सिद्धान्त Buvat (1952, 55) ने दिया। यह प्लेन्टेफाल के पर्णव्यवस्था वाद (Plantefol’s theory of  Phyllotaxis) पर आधारित है। इसमें तीन क्षेत्र होते हैं-

(i) एन्यू इनीशियल जोन (Anneau initial zone or Peripheral active zone)

(ii) मेरिस्टेमी डी एटेन्टी (Meristeme d attente or waiting ameristem)-यह पुष्प या पुष्पक्रम विकसित होते समय सक्रिय होता है।

(iii) मेरिस्टेमी मेड्यूलरी (Meristeme medullarie)-इसको Pith meristem भी कहते हैं। यह सिद्धान्त विवाद का विषय है। मेरिस्टेमी डी एटेन्टी की प्रकृति ही विवाद का कारण है। Ball

(1955), Cutter (1959) के अनुसार शीर्ष कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता होती है। ये विशेष परिस्थितियों में सम्पूर्ण प्ररोह शीर्ष का निर्माण करने में सक्षम होते  है।

प्रश्न 5 – जड़ों में द्वितीयक वृद्धि का वर्णन कीजिए। 

उत्तर – जड़ों में द्वितीयक वृद्धि

(Secondary Growth in Roots) 

द्विबीजपत्री जड़ों में संवहन पूल (vascular bundle) अरीय (radial) होते हैं तथा जाइलम एक्सार्क (exarch) होता है। द्वितीयक वृद्धि के लिए सबसे पहले

फ्लोएम (phloem) के नीचे वाली मदतकीय कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता आ जाती है तथा वे विभाजित होने लगती हैं। इस प्रकार जितने फ्लोएम समूह होते है, उतना हा कैम्बियम की स्ट्रिप्स (strips) बनती हैं। ये कोशिकाएँ बाह्यत्वचा के समान्तर (parallel) विभाजित होकर नई कोशिकाएँ बनाती हैं। इसके बाद शीघ्र ही पेरीसाइकिल (pericycle) की वे कोशिकाएँ, जो ठीक प्रोटोजाइलम (protoxylem) के सामने होती है, विभाजित होने लगती हैं। इनके विभाजन से नई कोशिकाओं की परतें बनती हैं। ये कुछ समय पूर्व बनी कैम्बियम स्ट्रिप्स (cambium strips) से मिलकर एक लगातार लहरदार कैम्बियम वलय (a continuous wavy cambium ring) बनाती हैं। इस प्रकार बना यह वलय फ्लोएम समूहों के भीतर की तरफ व जाइलम समूहों के बाहर की तरफ स्थित होता है। यह कैम्बियम वलय प्राथमिक स्थायी ऊतकों से बना होता है। अतः द्वितीयक मेरिस्टेम (secondary meristem) कहलाता है। पहले कैम्बियम का फ्लोएम के नीचे वाला भाग अधिक सक्रिय होता है। इसमें तीव्र विभाजन के फलस्वरूप अधिक मात्रा में द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) अन्दर की तरफ बनता है। इससे कैम्बियम लहरदार (wavy) न रहकर एक घेरा बना लेता है। अब सम्पूर्ण कैम्बियम द्विबीजपत्री तने (dicot stem) की तरह अन्दर की तरफ द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) (अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में) तथा बाहर की तरफ द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) बनाता है। जड़ जमीन के अन्दर होती है। अत: इसके वातावरण में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होते हैं। इस कारण जड़ों में वार्षिक वलय (annual rings) नहीं बनते हैं। प्रोटोजाइलम (protoxylem) के सामने व आस-पास की कैम्बियम कोशिकाएँ मिलकर मेड्यूलरी किरणें (medullary rays) बनाती हैं। ये किरणें मृदूतकीय कोशिकाओं से निर्मित होती हैं तथा स्ट्रिप्स, के रूप में प्रोटोजाइलम से द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) तक फैली रहती हैं। मेड्यूलरी किरणें जड़ों में अपेक्षाकृत अधिक विकसित व स्पष्ट होती हैं। द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) में बड़ी-बड़ी वाहिकाएँ (vessels), मृदूतक (parenchyma) व काष्ठ तन्तु (wood fibres) मिलते हैं। द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem), चालनी नलिकाएँ (sieve tubes), सहायक कोशिका (companion cell) व मृदूतक (parenchyma) की बनी होती है। कभी-कभी इनमें बास्ट रेशे (bast fibres) भी मिलते हैं। प्राथमिक फ्लोएम (primary phloem) कुचलकर नष्ट हो जाता है।

प्रश्न.6 – द्विबीजपत्री तने में द्वितीयक वृद्धि का सचित्र वर्णन कीजिए। अथवा द्विबीजपत्री तने में परिवर्ती वृद्धि अथवा द्वितीयक वृद्धि का वर्णन कीजिए। 

उत्तर – द्विबीजपत्री तने में द्वितीयक वृद्धि

(Secondary Growth in Dicot Stem) “, 

द्विबीजपत्री तने में संवहन पूल (vascular bundle) संयुक्त (conjoint), कोलेटरल (collateral) व खुले (open) होते हैं। इनमें मिलने वाला कैम्बियम अन्तःपूलीय अथवा इन्ट्राफैसीकुलर कैम्बियम (fascicular or intrafascicular cambium) कहलाता है। पूलीय कैम्बियम के साथ-साथ दो पूलों के मध्य स्थित मेड्यूलरी किरण (rmedullary ray) की कुछ कोशिकाएं सक्रिय होकर अन्तरापलीय कैम्बियम Enterfascicular cambium) बनाती हैं। दोनों प्रकार के कैम्बियम मिलकर कैम्बियम वलय (cambium ring) का निर्माण करते हैं।

कैम्बियम वलय से द्वितीयक ऊतकों का निर्माण

(Formation of Secondary Tissues by Cambium Ring)

कैम्बियम की कोशिकाएँ जीवित तथा जीवद्रव्य से भरपूर होती हैं। इनमें अन्तराकोशिक स्थान (intercellular space) नहीं होते हैं। ये कोशिकाएँ निरन्तर विभाजित होकर द्वितीयक

ऊतकों (द्वितीयक जाइलम व द्वितीयक फ्लोएम) को जन्म देती हैं। विभाजन के बाद बनने वाली दो कोशिकाओं में से एक द्वितीयक स्थायी ऊतक बनाती है तथा दूसरी कोशिका मेरिस्टेमेटिक (meristematic) रहती है। स्थिति के अनुसार यदि स्थायी ऊतक (permanent tissue) का निर्माण करने वाली कोशिका बाहर की तरफ होती है, तब इससे द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) बनता है। यदि यह भीतर की तरफ होती है, तब इससे द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) बनता है। कैम्बियम की कोशिकाएँ स्पर्शरेखीय तल (tangential plane) में विभाजित होती हैं अर्थात् बाह्यत्वचा के समान्तर (parallel) विभाजित होती हैं। द्वितीयक वृद्धि में सामान्यतः द्वितीयक जाइलम, द्वितीयक फ्लोएम की अपेक्षा अधिक मात्रा में बनता है।

संवहन पल में मिलने वाला कैम्बियम (cambium) प्राइमरी मेरिस्टम (primary meristem) होता है, परन्तु द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) के समय यह द्वितीयक अतका (secondary tissues) का निर्माण करता है। कैम्बियम में दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं-(a) फ्यूजीफॉर्म इनीशियल (fusiform initials)-जिनसे द्वितीयक जाइलम व द्वितीयक फ्लोएम बनती हैं। (b) रे इनीशियल (ray initials)-इनसे द्वितीयक मेड्यूलरी किरणों (secondary medullary rays) का निर्माण होता है।

द्वितीयक ऊतक (Secondary Tissues)

द्वितीयक वृद्धि में द्वितीयक जाइलम, द्वितीयक फ्लोएम तथा द्वितीयक मेड्यूलरी किरणें बनती हैं। इनका विवरण निम्नलिखित प्रकार हैं –

(a) द्वितीयक फ्लोएम (Secondary phloem)-इसमें चालनी-नलिका (sieve-tubes), सहचर कोशिकाएँ (companion cells) तथा मृदूतक (parenchyma) मिलते हैं। कभी-कभी द्वितीयक फ्लोएम में बास्ट तन्तु (bast fibres) भी मिलते हैं, परन्तु स्टोन कोशिकाएँ (stone cells) कम मिलती हैं। औद्योगिक रूप से महत्त्वपूर्ण रेशे भी इसी नोएम से बनते हैं। द्वितीयक फ्लोएम के लगातार बनने से प्राथमिक फ्लोएम (primary phloem) कुचल जाता है और अक्रियाशील (inactive) हो जाता है।

(b) द्वितीयक जाइलम (Secondary xylem)-इसमें वाहिकाएँ (vessels), वाहिनिकाएँ (tracheids), तन्तु (fibres) तथा मृदूतक (parenchyma) मिलती हैं। वाहिकाओं तथा वाहिनिकाओं में सोपानवत् (scalariform) व गर्ती (pitted) स्थूलन (thickening) मिलती हैं। द्वितीयक जाइलम के बनने से प्राथमिक जाइलम पिथ की तरफ खिसक जाता है। द्वितीयक ऊतकों के साथ-साथ कैम्बियम से द्वितीयक मेड्यूलरी किरणे (secondary medullary rays) भी बनती हैं। प्राथमिक मेड्यूलरी किरणें शीर्षस्थ मेरिस्टेम (apical meristem) से बनती हैं। दोनों ही प्रकार की किरणों का कार्य बाहर की

ओर परिधि के ऊतकों तक जल व भोज्य पदार्थों को पहुँचाना है। ये किरणें अरीय (radial) रूप में व्यवस्थित रहती हैं। मेड्यूलरी रे एकस्तरी (uniseriate) या बहुस्तरी (multiseriate) हो सकती हैं। ये होमोजीनस (एक प्रकार की कोशिकाओं से निर्मित) या हेटरोजीनस (erect and procumbent cells) से बनी हो सकती हैं।

प्रश्न 7 – पत्ती की आन्तरिक संरचना का उदाहरण सहित सचित्र वर्णन कीजिए। 

उत्तर – पत्ती की आन्तरिक संरचना

(Internal Structure of Leaf)

पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं

(1) पृष्ठधारी पत्ती (Dorsiventral leaf)-द्विबीजपत्री पौधों की पत्तियाँ क्षैतिज (horizontal) दिशा में रहती हैं। अतः सूर्य का प्रकाश इनकी ऊपरी सतह पर अधिक पड़ता है। प्रकाश के इस असमान वितरण का पत्ती की रचना पर भी प्रभाव पड़ता है। इसमें मीसोफिल (mesophyll) दो ऊतकों से मिलकर बनती है। ऊपर की बाह्यत्वचा (upper epidermis) के नाच पलासेड पैरेन्काइमा (palisade parenchyma) तथा निचली बाह्यत्वचा (lower epidermis) के ऊपर स्पंजी पैरेन्काइमा (spongy parenchyma) मिलती है।

(2) समद्विपाश्विक पत्ती (Isobilateral leaf)-एकबीजपत्री पौधों की पत्तियाँ आमतौर पर सीधी या खडी (erect) होती हैं। अत: दोनों तरफ प्रकाश समान रूप से पड़ता है और बनावट भी दोनों तरफ एक-सी होती है। इसमें मीसोफिल पेलीसेड व स्पंजी पैरेन्काइमा में विभक्त नहीं होता है।

आम की पत्ती (पृष्ठाधारी) की आन्तरिक संरचना

[Internal Structure of Mango (dorsiventral) Leaf] 

आम की पत्ती की वर्टिकल काट (vertical section) का सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करने पर निम्नांकित संरचनाएँ मिलती हैं-

(1) ऊपरी बाह्यत्वचा (Upper epidermis)-यह पैरेन्काइमा की कोशिकाओं से बनी सबसे बाहर की परत है। इस पर क्युटिकिल (cuticle) मिलती है जो पानी के अत्यधिक २ वाष्पन को रोकती है। इसमें क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) व रन्ध्र (stomata) नहीं मिलते हैं।

(2) निचली बाह्यत्वचा (Lower epidermis)-ऊपरी बाह्यत्वचा की भाँति यह भी पैरेन्काइमा की एक कोशिका मोटी परत है। इसमें रन्ध्र (stomata) मिलते हैं। प्रत्येक (stoma) में दो द्वार कोशिकाएँ (guard cells) होती हैं जिनमें हरितलवक (chlori मिलते हैं। स्टोमा के भीतर की तरफ एक गुहा होती है जिसे सबस्टोमेटल चेम्बर (substomatal chamber) या श्वसन गुहिका (respiratorydhan गुहिका से गैसों के आदान-प्रदान में सहायता मिलती है।

(3) पर्ण मध्योतक (Mesophyll)-ऊपरी व निचली बाह्यत्वचा के बीच मिलने वाला ऊतक मीसोफिल कहलाता है। मोसोफिल (mesophyll) पेलीसेड (palisade) व स्पंजी (spongy) पैरेन्काइमा से मिलकर बनता है। पेलीसेड पैरेन्काइमा की कोशिकाएँ लम्बी, बाहात्वचा के समकोण वाली अक्षों के साथ-साथ लगी रहती हैं। इनमें प्रचुर मात्रा में क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) मिलते हैं तथा अन्तराकोशिक स्थान नहीं मिलते हैं। पेलीसेड मोन्काइमा में दो या तीन परत मिलती हैं।

स्पंजी पैरेन्काइमा की कोशिकाएँ प्रायः गोलाकार (round) या अण्डाकार (oval) आकृति की होती हैं तथा इन कोशिकाओं के बीच अन्तराकोशिक स्थान (intercellular डत विकसित होते हैं जिससे गैसों के विसरण में सहायता मिलती है। स्पंजी पैरेन्काइमा में क्लोरोप्लास्ट मिलते हैं। पत्ती में मीसोफिल भोजन निर्माण का कार्य करता है।

(4) संवहन पूल (Vascular bundle)-संवहन पूल अनियमित रूप में मिलते हैं। संवहन पल (vascular bundle), संयुक्त (conjoint), कोलेटरल (collateral) बन्द (closed) होता है। इसमें जाइलम (xylem) ऊपरी बाह्यत्वचा (upper dermis) की तरफ व फ्लोएम (phloem) निचली बाह्यत्वचा (lower epidermis) की तरफ होता है। जाइलम में वाहिकाएँ, वाहिनिकाएँ, तन्तु व मृदूतक (parenchyma) मिलती हैं। जाइलम का मुख्य कार्य जल व खनिज लवणों को पर्णफलक के विभिन्न भागों तक ले जाना है। फ्लोएम में चालनी नलिका, सहचर कोशिकाएँ व मृदूतक मिलती हैं। प्रोटोजाइलम ऊपरी बाह्यत्वचा की तरफ होता है। संवहन पूल मृदूतक की बनी हुई बण्डल शीथ (bundle sheath) से घिरा रहता है। मध्य शिरा का संवहन पूल अपेक्षाकृत बड़ा होता है। मध्य शिरा के दोनों ओर मिलने वाले संवहन पूलों में जाइलम व फ्लोएम की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।

मक्का की (समद्विपाश्विक) पत्ती की आन्तरिक संरचना 

[Internal Structure of Maize (isobilateral) Leaf]

मक्का की पत्ती की संरचना का विवरण निम्नवत् है-

(1) बाहात्वचा (Epidermis)-GHT HET a giat malloracht HTC (one cell thick) बाह्यत्वचा मिलती है। दोनों बाह्यत्वचा क्यूटिकिल (cuticle) से ढकी रहती हैं तथा उनमें रन्ध्र (stomata) मिलते हैं। ऊपरी बाह्यत्वचा (upper epidermis) में कुछ कोशिकाएँ अपेक्षाकृत बड़ी होती हैं। इनको बलीफॉर्म कोशिकाएँ (bulliform cells) कहते हैं। इनका मुख्य कार्य वाष्पोत्सर्जन कम करने में सहायता करना है।

(2) पर्ण मध्योतक Mesophyll)—यह पेलीसेड व स्पंजी पैरेन्काइमा में भिन्नत नहीं हाता है। इसकी कोशिकाएँ समव्यासी व एक-दसरे से सटी रहती हैं। इनमें क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) मिलते हैं तथा अन्तराकोशिक स्थान भी होते हैं। ये स्थान अपेक्षाकृत छोटे होते हैं।

(3) संवहन पूल (Vascular bundle)-संवहन पूल संयुक्त (conjoint), लटरल (collateral) व बन्द (closed) होते हैं। संवहन पूल मृदूतक की बनी बण्डल ne (bundle sheath) से घिरे होते हैं। प्रत्येक संवहन पूल के नीचे व ऊपर स्क्ल रेनकाइमा की कोशिकाओं के समह (patches) भी मिलते हैं। संवहन पूल में ऊपर की तरफ फ्लोएम व नीचे की तरफ फ्लोएम मिलता है। बण्डल शीथ की कोशिकाओं में मण्ड कण (starch grains) व क्लोरोप्लास्ट भी होते हैं।

प्रश्न 8 – विशिष्ट प्रकार की जड़ों जैसे संचयी जड़ें, जनन मूल, श्वसन मूल तथा सहजीवी मूल; पर विस्तार से लिखिए।

उत्तर – (A) संचयी जड़ें (Storage Roots)

जड़ें भोजन अथवा खाद्य पदार्थों के संचयन के कारण गूदेदार बन जाती हैं। अधिकांश पौधे का वायवीय भाग प्रतिकूल परिस्थितियों में नष्ट हो जाता है। अनुकूल समय आने पर इन जड़ों से नया पौधा बनता है।

खाद्य पदार्थों के संचयन के कारण मसला जड़ों में शूनता (swollen) आती है तथा उनका आकार परिवर्तित हो जाता है; जैसे-

(i) फ्यूजीफॉर्म जड़ें (Fusiform roots) ये जड़ें मध्य से मोटी परन्तु अग्र व आधार भाग पर पतली होती हैं; जैसे—मूली (radish)। इस जड़ में से द्वितीयक व तृतीयक जड़ें भी निकलती हैं।

(ii) कोनीकल (Conical)—ये जड़ें आधार पर अधिक चौड़ी होती हैं तथा धीरे-धीरे

पतली होती जाती हैं और शंकु का आकार ले लेती हैं; जैसे-गाजर (carrot)।

(iii) नेपीफॉर्म (Napiform)—इस प्रकार की मूसला जड़ें घट के आकार की होती हैं।

इसमें आधार भाग बहुत चौड़ा होता है, परन्तु यह एकदम नीचे की ओर पतला हो

जाता है। जैसे—शलजम, चुकन्दर आदि।

(iv) वलयाकार (Annulated)-ये जड़ें प्राथमिक व उनकी सभी शाखाओं आदि के

डिस्काकार चपटे होने से बनती हैं जैसे—इपीकाक (Psychotris ipecacuanha)।

(v) मोनोलीफॉर्म (Monoliform) ये जड़ें मोतीनुमा होती हैं। प्राथमिक जड़ें इनकी

शाखाएँ आदि एकान्तर स्थिति में फूलती हैं तथा संकीर्णन प्रदर्शित करती हैं जैसे मोती लगे हों इन्हें मोनोलीफॉर्म जड़ कहते हैं; जैसे-डायोस्कोरिया (Dioscorea) मेंं।

संचयी जड़ों की संरचना (Structure of Storage Roots)

प्राथमिक जड़ों में संचयी खाद्य पदार्थ स्टार्च के रूप में कॉर्टेक्स में जमा रहता है। सामान्य जड़ों में जिनमें द्वितीयक वृद्धि होती है, संचयी पदार्थ तने में एकत्र होता है। जडों में तने की अपेक्षा पैरेन्काइमा अधिक होता है।

कुछ पौधों में मूलतन्त्र के कुछ भाग गूदेदार अंग के रूप में विकसित होते हैं तथा खाद्य पदार्थ एकत्र करते हैं।

गाजर में हाइपोकोटाइल व मूसला जड़ मोटी हो जाती है। कॉर्टेक्स के बाह्य भाग में पेरीडर्म विकसित होता है। द्वितीयक जाइलम व द्वितीयक फ्लोएम में अधिक पैरेन्काइमा के विकास के कारण अंग गूदेदार (fleshy) हो जाते हैं। ,

चुकन्दर में जड़, तना, हाइपोकोटाइल मोटे व गूदेदार हो जाते हैं क्योंकि उनमें असामान्य द्धितीयक वृद्धि होती है। अनेक कैम्बियम की क्रिया से द्वितीयक ऊतक का निर्माण कई स्तरों में होता है। इनमें संवहन पूल बिखरे रहते हैं। द्वितीयक ऊतक की पैरेन्काइमा को संचयी पदार्थ के रूप में मिलती है।

शकरकन्द (आइपोमिया) जड़ के गूदेदार होने का कारण प्राथमिक व द्वितीयक जाइलम में पैरेन्काइमा ऊतकों का अधिक मात्रा में मिलना है।

मूली (Radish) में जड़ व हाइपोकोटाइल का गूदेदार होना द्वितीयक जाइलम में विशिष्ट

मूला (. औकाइमा ऊतक का अधिक मात्रा में निर्माण है।

उपर्युक्त सभी जड़ों में वाहिकाएँ व वाहिनिकाएँ बहुत कम मात्रा में बनती हैं। द्वितीयक के समय अधिक पैरेन्काइमा का उत्पादन होता है, जो अधिक मात्रा में खाद्य पदार्थों का अयन करता है तथा जड़ें उस स्थान पर मोटी व गूदेदार दिखाई देती हैं।

(B) जनन मूल (Reproductive Roots)

सामान्यतः जड़ों से कलिकाएँ नहीं निकलती हैं, परन्तु कुछ पौधों में अपस्थानिक का निकलती हैं जो पर्णिल प्ररोह बनाती हैं। यह कायिक परिवर्धन है। इस प्रकार की जड़ें न जडें कहलाती हैं; जैसे-ट्राइकोसेन्थिस डाइओइका। घायल होने की अवस्था में शकरकन्द, यमबीन (Pachyrhizus anaulatus) आदि में भी अपस्थानिक कलिका विकसित हो जाती है। यदि जड़ों को प्रकाश मिलने लगे, तब भी वे अपस्थानिक कलिका विकसित कर नया पौधा बना सकती हैं।

(C) श्वसन मूल (Respiratory Roots or Pneumatophores)

ये जड़ें सामान्य जड़ों के साथ ही विकसित होती हैं, परन्तु ये ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्ती होने से भूमि के ऊपर वायवीय रूप में बढ़ती हैं। इन जड़ों के वायवीय भाग में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें न्यूमेटोड कहते हैं। इनके द्वारा गैस विनिमय होता है; जैसे-सीरिऑप्स (Ceriops) में।

सेस्बानिया ऐकुयूलिएटा (Sesbania aculeata) में भी इस प्रकार की जड़ें मिलती हैं। जूशिया रिपेन्स (Jussiaea repens) में इस प्रकार की जड़ें छोटी, सफेद, चपटी तथा स्पंजी होती हैं। ये तने की पर्वसन्धियों से अपस्थानिक जड़ों के रूप में निकलती हैं तथा श्वसन में सहायता करती हैं। इनमें वायु भर जाने से पौधा हल्का होकर पानी में तैर पाता है।

श्वसन मूल की शारीरिकी (Anatomy of respiratory roots)-शारीरिक सरचना में न्यूमेटोफोर में कॉर्क भी मिलती है जिनकी कोशिकाएँ सुबेरिनयुक्त होती हैं (सारिऑप्स)। इनमें लेन्टीसेल (वातरन्ध्र) भी मिलते हैं। कॉर्टेक्स अनेक परतों का बना होता है। सकऊतक में बड़े वाय अवकाश मिलते हैं। अन्तःत्वचा निरन्तर होती है। पेरीसाइकिल परिरम्भ भी निरन्तर होती है। संवहन पल संयुक्त (conjoint), कोलेटरल, खुले, एन्डार्क जाइलम तथा पिथ आदि मिलते हैं।

(D) सहजीवी मूल (Symbiotic Root)

जीवाणु व पौधे में सम्बन्ध सहजीवन (symbiotic) प्रकृति का होता है। यह जीवाणु मृदा मारहता है तथा फेबेसी कल के सदस्यों की जड़ों में प्रवेश कर ग्रन्थि बनाता है जिससे जड़ें मान्थमय (nodulated) हो जाती हैं।

ग्रन्थियों में सभी आवश्यक जैव तन्त्र जैसे नाइट्रोजिनेस विकर तथा लेग हीमोग्लोबिन आद मिलता है जो N, का स्थिरीकरण करते हैं। विकर नाइट्रोजिनेस Mo-Fe प्रोटीन है तथा पायुमण्डलीय N., का NH, में परिवर्तन करने की क्रिया का उत्प्रेरण करता है।

N2 + 8e +8 1+ + 16 ATP _ NH + H + 16 ADP+ 16 Pi

पौधे व राइजोबियम में सम्पर्क होते ही सम्पर्क स्थल मुड़कर विकृत हो जाता हा विकृत स्थान से जीवाणु पादप ऊतक में प्रवेश करता है। कुछ जीवाणु बड़े होकर झिल्लीयुक्त हो जाते हैं तथा बैक्टीरिओडड (bacterioid) कहलाते हैं। ये विभाजित नहीं होते हैं तथा इस प्रकार कुछ जीवाणु रूपान्तरित होने से रह जाते हैं। ये रोग के प्रसार में सहायता करते हैं। जड़ में अनक्रिया के फलस्वरूप इन्फेक्शन थेड (infection thread) बनता ह जा पाषा का कोशिका कला द्वारा निर्मित होती है। यह संक्रमित भाग शेष पौधे से पृथक् हो जाता है। अब संक्रमित भाग में कोशिका विभाजन होता है तथा ग्रन्थि निर्मित होती है। ग्रन्थि का सीधा सम्बन्ध पोषी के संवहन ऊतक से स्थापित होने से पोषक तत्त्वों का आदान-प्रदान होता है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया पौधे में उपस्थित nod जीन तथा जीवाणु में उपस्थित nod, nif व fix जीन के समूह के कारण होती है।

प्रश्न 9  –वैस्कुलर कैम्बियम की उत्पत्ति, रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर –  कैम्बियम (Cambium) 

वैस्कुलर ऊतकों में initials की कुछ परतें जो कि द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) के लिए आवश्यक होती हैं, वैस्कुलर कैम्बियम (vascular cambium) कहलाती हैं। द्वितीयक वृद्धि cambium द्वारा होती है। यह द्विबीजपत्री पौधों के मुख्य तनों, शाखाओं तथा जड़ों में पायी जाती है। ..

जिम्नोस्पर्म के पौधों में भी कैम्बियम पायी जाती है, परन्तु एकबीजपत्री पौधों (monocotyledons) में cambium अनुपस्थित रहती है। इसीलिए इन पौधों में साधारण द्वितीयक वृद्धि (normal secondary growth) नहीं होती है, परन्तु असाधारण द्वितीयक वृद्धि (abnormal secondary growth) होती है।

वैस्कुलर कैम्बियम की उत्पत्ति 

(Origin of Vascular Cambium)

यह एक ऐसा meristem होता है जो कि lateral meristems के अन्तर्गत होता है। यह या तो इकलौते longitudinal strand के रूप में विकसित होता है या एक पूरे खोखले प्रोकैम्बियम से बने सिलिण्डर के रूप में होता है। प्राथमिक जाइलम (primary xylem) और फ्लोएम के बीच में मिलने वाली कैम्बियम को फैसिकुलर कैम्बियम (fascicular cambium) कहते हैं और कैम्बियम की वे पट्टियाँ जो कि दो संवहन पूलों के मध्य बनती हैं तथा fascicular cambium के हिस्सों को जोड़ती हैं, उन्हें interfascicular cambium कहते हैं। यह interfascicular cambium दो संवहन पूलों के मध्य मिलने नाली मदतकीय कोशिकाओं से विकसित होती है। अतः द्वितीयक मेरिट meristem) है।

वैस्कुलर कैम्बियम की रचना 

(Structure of Vascular Cambium)

कळ वैज्ञानिकों के अनुसार vascular cambium एक अकेली स्थायी initials की परत की बनी होती है। ये initials कुछ बार विभाजित होकर जल्दी ही एक अस्थायी ऊतक में विकसित हो जाती हैं।

दूसरे वैज्ञानिकों के अनुसार initiating कोशिकाओं की कई परतें होती हैं। ये सभी परतें कैम्बियम का एक निश्चित zone बना लेती हैं। इस zone की कुछ निश्चित लाइनें कुछ समय बाद कोशिका बनाने वाले भाग से विकसित हो जाती हैं।

कैम्बियम दो प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है-

(1) रे इनीशियल्स (Ray initials)-इन initials का आकार आइसोडाइमेट्रिक (isodiametric) होता है तथा इनसे medullary rays बनती हैं।

(2) फ्यूजीफॉर्म इनीशियल्स (Fusiform initials)-ये लम्बी कोशिकाएँ होती हैं जिनके किनारे पतले होते चले जाते हैं। ये initials Sequoia semperourens in लम्बाई में 8.7 मिमी तक पहँच जाती हैं: Vertical तन्त्र की सभी कोशिकाएं इन initials के विभाजन से ही बनती हैं। इनसे द्वितीयक जाइलम व फ्लोएम की कोशिकाओं का निर्माण होता है।

कैम्बियम की कोशिकाओं में सामान्य रूप से एक पूर्ण विकसित vacuole होती है तथा इनका साइटोप्लाज्म peripheral होता है। इन कोशिकाओं में एक पूर्ण विकसित केन्द्रक भी होता है। कैम्बियम की कोशिकाओं की radial दीवारें tangential दीवारों से मोटी होती हैं। ये कोशिकाएँ या तो stratified होती हैं या non-stratified। ये कोशिकाएँ बहुत सक्रिय होती हैं तथा इनमें प्लास्टिड आदि आमतौर पर नहीं मिलते हैं।

कैम्बियम के कार्य 

(Functions of Cambium)

कैम्बियम का कार्य मुख्य रूप से meristematic होता है तथा यह अन्दर की तरफ को secondary xylem और बाहर की तरफ को द्वितीयक फ्लोएम को काटती है। कैम्बियम कोशिकाएँ tangentially विभाजित होती हैं तथा दो छोटी कोशिकाएँ बनाती हैं। इन छोटी कोशिकाओं में से एक meristematic बनी रहती है और स्थायी कैम्बियम कोशिका (persistent cambial.cell) कहलाती है तथा दूसरी कोशिका या तो फ्लोएम मातृकोशिका (phloem mother cell) बन जाती है अथवा जाइलम मातृ कोशिका (xylem mother cell) बन जाती है। यह दूसरी कोशिका की बाहरी या अन्दर की स्थिति पर निर्भर करता है। इसी तरह से ही cambium की कोशिकाएँ विभाजित होती रहती हैं। कैम्बियम की कोशिकाओं की क्रियाशीलता वातावरण से भी प्रभावित होती है।

प्रश्न 10 – जाइलम की संरचना का विस्तृत विवरण दीजिए। 

उत्तरजाइलम (Xylem)

जिन पौधों में जाइलम मिलता है, उन्हें ट्रैकियोफाइट कहते हैं। जाइलम का मुख्य कार्य जल तथा घुले खनिज लवणों को मूल से पौधों के विभिन्न अंगों तक पहुँचाना है। जाइलम अग्रलिखित चार प्रकार की कोशिकाओं से बनता है

(1) वाहिनिकाएँ (tracheids), (2) वाहिकाएँ (vessels), (3) जाइलम पैरेन्काइमा (xylem parenchyma), (4) जाइलम तन्तु (xylem fibres)।

(1) वाहिनिकाएँ (Tracheids)-ये लम्बी, बेलनाकार, नलीनुमा व दोनों सिरों पर पतली कोशिकाओं से बनती हैं। ये मृत होती हैं तथा इनकी कोशिका भित्ति कठोर व लिग्निनयुक्त होती है। लिग्निन के स्थूलन भित्ति पर मिलते हैं; जैसे-वलयाकार (annular), सर्पिलाकार (spiral), सोपानवत् (scalariform) तथा जालिकावत् (reticulate)। वाहिनिका एक कोशिका है जिसमें पार्श्व व अनुप्रस्थ भित्ति होती है।

(2) वाहिकाएँ (Vessels)-ये बेलनाकार व नलिकाकार मत कोशिकाएं होती है। इनकी अनुप्रस्थ भित्ति पूर्ण व अपूर्ण रूप से घुल जाती है। वाहिका छोटी व अधिक व्यास की होती है। इनमें भी लिग्निन के स्थूलन मिलते हैं। इनकी भित्ति में गर्त भी मिलते हैं।

(3) जाइलम पैरेन्काइमा (Xylem parenchyma)-ये कोशिकाएँ जीवित होती हैं। ये द्वितीयक जाइलम में अधिक मिलती हैं। इनका मुख्य कार्य जल व खनिज लवणों के संवहन में सहायता करना व भोज्य पदार्थों का संचयन है।

(4) जाइलम तन्तु (Xylem fibres)-ये लम्बी, पतली, नुकीली, दृढ़ ऊतकी सरचना हैं। कोशिका भित्ति मोटी, लिग्निनयुक्त होती है। ये पौधे को दृढ़ता प्रदान करते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं

(i) ट्रैकीडियल तन्तु (Tracheidial fibre)-ये परिवेशित गर्त में मिलते हैं। ये मोटी भित्ति तथा कम लम्बाई के होते हैं।

(ii) लिब्रीफॉर्म तन्तु (Libriform fibre)-ये अधिक लम्बे, मोटी भित्ति तथा सँकरी

गुहा वाले होते हैं।

(पहले बनने वाले जाइलम को प्रोटोजाइलम (protoxylem) कहते हैं। इनमें वलयाकार तथा सर्पिलाकार स्थलन मिलते हैं। बाद में बनने वाला जाइलम (xylem) मेटाजाइलम कहलाता है।

इसमें सीढ़ीनमा (scalariform).जालिकावत (reticulate) तथा गती (pitted) स्थूलन मिलते है। वाहिनिकीय तत्त्वों के विकास के आधार पर ये निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

(a) अपकेन्द्री (Centrifugal)-जाइलम एन्डार्क (endarch) हाता ह।

(b) अभिकेन्द्री (Centripetal)-जाइलम एक्सार्क (exarch) होता है।

(c) अपकेन्द्री व अभिकेन्द्री (Centrifugal and Centripetal)-5|19614 mesarch होता है।

प्रश्न 11 – कॉर्क कैम्बियम क्या होता है? इसकी उत्पत्ति एवं विकास का वर्णन कीजिए।

उत्तर – कॉर्क कैम्बियम (Cork Cambium)

यह एक द्वितीयक बचाव वाला ऐसा ऊतक होता है जो कि द्वितीयक रूप से वृद्धि करके मोटे हुए तनों तथा जड़ों में बनता है एवं पेरीडर्म (periderm) कहलाता है। पेरीडर्म तीन भागों की बनी होती है-

(1) कॉर्क कैम्बियम अथवा फेलोजन (phellogen), (2) कॉर्क अथवा फेलम (phellem) एवं (3) द्वितीयक कॉर्टेक्स अथवा फेलोडर्म (phelloderm)।

पेरीडर्म की रचना एवं उत्पत्ति ऐसे द्विबीजपत्री एवं नग्नबीजी (gymnosperms) पौधों की जडों एवं तनों में होती है जो कि मोटाई में द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) से बनते हैं।

कॉर्क कैम्बियम एक मेरिस्टेम (meristem) होता है। यह बाहर की ओर को कॉर्क की कोशिकाओं का निर्माण करता है तथा अन्दर की ओर द्वितीयक कॉर्टेक्स (Secondary cortex) का। पेरीडर्म पौधे के ऐसे भागों की बाहरी ओर को विकसित होती है, जो कि लगातार द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) करते रहते हैं।

वैस्कलर कैम्बियम (vascular cambium) से भिन्न फेलोजन अथवा कॉर्क कैम्बियम

साधारण रचना होती है एवं केवल एक ही प्रकार की कोशिकाओं की बनी होती है। ये कोशिकाएँ क्रॉस काट में rectangular दिखाई देती हैं। इनके प्रोटोप्लास्ट में वैक्यूल होते हैं और कभी-कभी क्लोरोप्लास्ट एवं टैनिन भी भरे हो सकते हैं।

अधिकांश तनों में पहली फेलोजन (cork cambium) एपिडर्मिस (epidermis) के नीचे विकसित होती है। लेकिन कुछ पौधों में (e.g. Nerium) यह epidermis की कोशिकाओं के अन्दर विकसित होती है। Prunus एवं कुछ और पौधों में कॉर्क कैम्बियम का एक भाग एपिडर्मिस में विकसित होता है, जबकि इसका बचा हुआ भाग एपिडर्मिस के नीचे विकसित होता है। Pinus एवं Aristolochia के तनों में पेरीडर्म की उत्पत्ति तीसरी अथवा दूसरी कॉर्टेक्स की परत में होती है; Vitis एवं Puncia आदि में फेलोजन अथवा कॉर्ककैम्बियम की उत्पत्ति वैस्कुलर भाग के निकट होती है।

एपिडर्मिस में फेलोजन के विकास के शुरू में प्रोटोप्लास्ट के केन्द्रीय वैक्यूल एवं साइटोप्लाज्म की मात्रा बढ़ जाती है एवं यह दानेदार हो जाता है, इस initial परत के विकास के ठीक बाद में यह वास्तविक कैम्बियम की तरह ही tangentially विभाजित होती है। इस प्रक्रिया के कारण विकसित हुई कोशिकाएँ सामान्य रूप में radial rows में जुड़ी रहती हैं।

प्रश्न 12 – पोषवाह की रचना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 

उत्तर – पोषवाह (Phloem)

सामान्य रूप से पोषवाह (phloem) वह tissue है, जो xylem के बाहर की तरफ होता है, लेकिन कुछ पौधों में यह xylem के अन्दर की तरफ भी उपस्थित होता है। फ्लोएम के माध्यम से भोजन व खनिज लवणों का स्थानान्तरण होता है। ।

फ्लोएम निम्नलिखित चार प्रकार के तत्त्वों का बना होता है

(1) सीव नलियाँ (Sieve tubes)—ये नाजुक, लम्बी, जीवित कोशिकाएँ होती हैं जो ला सेलुलोस की दीवार से घिरी रहती हैं। ये सभी नलियाँ लम्बाई से जुड़ी रहती हैं। इनमें पारपक्व अवस्था में केन्द्रक नहीं होता है। एक बड़ी vacuole भी sieve tubes में उपस्थित होती है।

सीव नलियों में सीव प्लेटें (sieve plates) भी उपस्थित होती हैं। प्रत्येक सीव प्लेट में का छिद्र होते हैं और ये दो प्रकार की होती हैं-

(i) साधारण सीव प्लेट (simple sieve plates)

(ii) मिश्रित सीव प्लेट (compound sieve plates)।

प्रत्येक सीव नलिका में साइटोप्लाज्म के महीन तन्तु उपस्थित होते हैं। आस-पास सीव नलियों के छिद्रों द्वारा cytoplasm एक-दूसरे के अन्दर आता-जाता रहता है। विलेयों स्थानान्तरण (translocation of golutes) में भी ये छिद्र काम आते हैं।

(2) सहायक कोशिकाएँ (Companion cells) ये parenchyma की तरह की ” । कोशिकाएँ होती हैं। उत्पत्ति, स्थान तथा कार्यों में ये सीव नलियों के साथ ही सम्बन्धित रहती हैं। इनमें प्रोटोप्लाज्मः तथा केन्द्रक (nuclei) उपस्थित होते हैं। इसलिए ये जीवित कोशिकाएँ होती हैं। एन्जियोस्पर्स की फ्लोएम में companion cells की उपस्थिति अनिवार्य होती है। इनमें स्टार्च नहीं मिलता है। जिम्नोस्पर्म में सहायक कोशिकाओं के स्थान पर ऐल्ब्यूमिनस कोशिकाएँ मिलती हैं।

(3) फ्लोएम पैरेन्काइमा (Phloem , parenchyma)-ये फ्लोएम में पायी जाने वाली parenchyma की कुछ कोशिकाएँ। होती हैं। कॉर्टेक्स की मृदूतकीय कोशिकाएँ काफी मिलती-जुलती हैं लेकिन इनका आकार कुछ मोटा होता है। ये कोशिकाएँ गोलाकार, बहुकोणीय, नुकीली तथा लम्बी होती हैं। फ्लोएम पैरेन्काइमा में तेल, स्टार्च, टैनिन आदि भरे रहते हैं।

(4) फ्लोएम फाइबर्स (Phloem fibres)-ये bast fibres होते हैं जो कि प्राथमिक फ्लोएम (primary phloem) तथा द्वितीयक फ्लोएम दोनों में पायी जाती हैं। इन फाइबर्स की दीवारों पर सीधे-सादे pits पाए जाते हैं। इनकी दीवारों पर लिग्निन (lignin) होता है, लेकिन में नहीं भी होता है। ये फाइबर्स रस्सी, कपड़ा आदि बनाने में काम आते हैं क्योंकि इनका लम्बाई काफी होती है तथा ये मजबूत होते हैं। ,

प्रश्न 13 – बीजाण्डासन व बीजाण्डविन्यास पर सचित्र टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – बीजाण्डासन (Placenta) यह एक मांसल संरचना है जिसके ऊपर बीजाण्ड (ovule) लगते हैं।…

बीजाण्डविन्यास (Placentation)-बीजाण्ड (ovule) का बीजाण्डासन (placenta)

पर तथा बीजाण्डासन का अण्डाशय (ovary) में अभिविन्यास (arrangement), बीजाण्डन्यास (placentation) कहलाता है। यह निम्न प्रकार का होता है। (चित्र A-F)

(1) सीमान्त (Marginal)-जायांग एकअण्डपी अथवा बहुअण्डपी Monocarpellary or multicarpellary), मुक्ताण्डप होता है तथा बीजाण्ड कतार में किनारे से लगे होते हैं (चित्र A)।

(2) अक्षीय (Axile)-जायांग द्वि अथवा बहुअण्डपी (bi or multicarpellary), बहुकोष्ठीय तथा युक्ताण्डपी (syncarpous) होता है। बीजाण्डासन केन्द्रीय होता है

(चित्र B)। .

(3) भित्तीय (Parietal)-जायांग द्वि या बहुअण्डपी (bi or multicarpellary), युक्ताण्डपी तथा एककोष्ठीय होता है। बीजाण्ड परिधि पर लगे रहते हैं। दो निकटस्थ बीजाण्डासन (placenta) जुड़ते हैं (चित्र C)।

(4) मुक्तस्तम्भीय (Free central)—इसमें जायांग द्वि से बहुअण्डपी, युक्ताण्डप a garantuota (bi-multicarpellary, syncarpous and unilocular) EIM बाजाण्ड केन्द्रीय स्तम्भ पर उत्पन्न होते हैं (चित्र D)।

(5) परिभित्तीय (Superficial or Laminar)-जायांग बहुअण्डपी, युक्ताण्डप, काष्ठाय (multicarpellary, syncarpous, multilocular) होता है। बीजाण्ड काष्ठकों के सम्पर्ण अन्तःस्तर पर मिलते हैं। वास्तव में बीजाण्डासन परिधि से भीतर की ओर पाद्ध करता है जिससे सम्पूर्ण अन्त:सतह पर बीजाण्ड (ovule) मिलते हैं (चित्र E)।

(6) आधारीय (Basal)-इसमें एक या अधिक बीजाण्ड अण्डाशय के आधार पर लगे रहते हैं (चित्र F)।

प्रश्न 14 – किसी द्विबीजपत्री तने की (परिपक्व) अनुप्रस्थ काट का वि नामांकित चित्र बनाइए। .. 

उत्तर – द्विबीजपत्री तने की अनुप्रस्थ काट

(T.S. of Dicot Stem)

प्रश्न 15 – असीमाक्षी पुष्पक्रम पर टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर – असीमाक्षी पुष्पक्रम (Racemose Inflorescence) : – इस प्रकार के पुष्पक्रम में मुख्य अक्ष सदा वृद्धि अवस्था में रहता है तथा पुष्प में समाप्त सोता है। पराने फल अक्ष में नीचे की तरफ तथा नई कलिकाएँ अक्ष के शीर्ष पर पायी जाती हैं। इस प्रकार के क्रम को एक्रोपीटल सक्सेशन (acropetal succession) कहते हैं। असीमाक्षी पुष्पक्रम निम्न प्रकार के हैं (चित्र)-

(1) असीमाक्ष (Raceme)-जब मुख्य अक्ष लम्बी व पुष्प सवृन्त (pedicellate) होते हैं; जैसे-सरसों (Mustard)। जब असीमाक्षों का असीमाक्ष बनता है तब यौगिक असीमाक्ष (compound raceme or panicle) कहलाता है।

(2) स्पाइक (Spike)-इसमें मुख्य अक्ष (peduncle) तो लम्बा होता है, परन्तु पुष्प अवन्ती (sessile) होते हैं; जैसे-प्याज, चिरचिटा। जब छोटे छोटे स्पाइक मिलकर एक बड़ा स्पाइक बनाते हैं तब यह स्पाइकिका (spike of spikelet) कहलाता है; जैसे-गेहूँ।

(3) समशिख (Corymb)-इसमें सभी पुष्प एक ही ऊँचाई पर मिलते हैं इसलिए नीचे वाले पुष्पों के पुष्पवृन्त लम्बे होते हैं तथा ऊपर वाले पुष्पों के पुष्पवृन्त छोटे होते हैं; जैसे-कैन्डीटफ्ट (Iberis)।

(4) छत्रक (Umbel)-इसमें मुख्य अक्ष संघनित (condensed) होती है तथा सभी पुष्पों के वृन्त एक ही स्थान से निकलते हुए प्रतीत होते हैं; जैसे-धनिया (Coriandrum)। जब छत्रकों का छत्रक बनता है, तब यह यौगिक छत्रक (compound umbel) पुष्पक्रम कहलाता है।

(5) कैटकिन (Catkin)-यह एकलिंगी (unisexual) स्पाइक है जो उल्टा लटकता (drooping spike) है; जैसे-शहतूत (Morus)।

(6) स्पेडिक्स (Spadix)-इस प्रकार के पुष्पक्रम में स्पाइक का मुख्य अक्ष या पष्यावलिवन्त (peduncle) मांसल (fleshy) होता है तथा सम्पूर्ण पुष्पक्रम एक बड़े रंगीन सहपत्र (bract or spathe) से ढका रहता है। जैसे-मक्का (Maize)। जब अनेक स्पेडिक्स एक स्पेडिक्स में आते हैं तब ये यौगिक स्पेडिक्स (compound spadix) बनाते हैं; जैसे-केला (Musa)।

(7) मुण्डक (Capitulum)-इसमें पुष्पक्रम की अक्ष अत्यन्त संघनित (condensed) हो जाती है तथा अवृन्त पुष्प (sessile flowers) सहपत्र चक्र (involucre of bracts) के द्वारा घिरे रहते हैं।

यदि मुण्डक के सभी पष्प समान होते हैं तब वह समपुष्पी (homogamous) कहलाता है और यदि मुण्डक में दो प्रकार के पुष्प बिम्ब पुष्पक (disc florets) तथा रश्मि पुष्पक (ray florets) पाए जाते हैं यह विषमपुष्पी (heterogamous) कहलाता है।

केपीटुलम में दोनों प्रकार की स्थितियाँ मिलती हैं जैसे सूर्यमुखी (Helianthus) में विषमपुष्पी तथा लानिया (Launaea) में समपुष्पी मुण्डक पाया जाता है। इसमें रिसेप्टेकल या पुष्पक्रम की अक्ष संघनित होकर चपटी (flat) हो जाती है, परन्तु हैड (head) पुष्पक्रम में सामान्यतः एक प्रकार के पुष्प (homogamous) मिलते हैं तथा पुष्पक्रम की अक्ष गोल (globose) होती है; जैसे-कदम्ब (Anthocephalus)।

प्रश्न 16 – वातरन्ध्र पर टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर – वातरन्ध्र (Lenticel) 

ये छाल (बार्क bark) में उपस्थित छिद्र हैं जिनसे गैसों का आदान-प्रदान होता है। इनको वातन रन्ध्र (aerating pores) भी कहते हैं। ये पौधों की सतह पर छोटे निशानों या उभरे हुए क्षेत्रों के रूप में मिलते हैं। ये पूरक कोशिकाओं (complementary cells) के

बने होते हैं। ये कोशिकाएँ गोल या अनियमित आकार की व पतली भित्ति वाली होती हैं। इनमें बहुत विकसित अन्तराकोशिक स्थान (intercellular space) मिलते हैं। कॉर्क कैम्बियम वातरन्ध्र वाले स्थानों पर कॉर्क की जगह पूरक कोशिकाओं का निर्माण करता है। वातरन्ध्र प्रायः रन्ध्र के नीचे बनते हैं। पूरक कोशिकाओं के अधिक संख्या में बनने के कारण बाह्यत्वचा (epidermis) फट जाती है तथा पूरक कोशिकाएँ ऊपर उठकर छोटे-छोटे छिद्र वाले उभार बना लेती हैं। शरद् ऋतु में कॉर्क बनने के कारण वातरन्ध्र बन्द हो जाते हैं, परन्तु सक्रिय ऋतु के आगमन पर रन्ध्र फिर से खुल जाते हैं।’

प्रश्न 17 – द्विबीजपत्री तथा एकबीजपत्री पत्ती में अन्तर लिखिए। 

उत्तर – द्विबीजपत्री (पृष्ठाधारी) व एकबीजपत्री (समद्विपाश्विक) पत्ती में अन्तर 

[Differences between dicot (Dorsiventral) and Monocot (Isobilateral) Leaf] 

प्रश्न 18 – वेलामेन पर टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर – वेलामेन (Velamen) : 

यह सबसे बाहर की तरफ मिलने वाला ऊतक है। इसकी कोशिकाएँ लम्बी, एक-दसरे से सटी हुईं व बड़े आकार की होती हैं। कोशिकाएँ मृत (dead) होती हैं तथा इनकी भित्ति में तन्तमय स्थूलन (fibrous thickenings) मिलते हैं। शुष्क वातावरण में इस परत में हवा भरी रहती है तथा वर्षा ऋतु में इसकी कोशिकाएँ जल से भरी रहती हैं। यह ऊतक बदनीय anndहोता है तथा बाहरी परत को सीमान्त या लिमिटिंग परत (limiting layer) कहते हैं। यह क्यूटिकिल युक्त (cuticularised) होती है।

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