BSc 1st Year Sexual Reproduction In Sycon Question Answer Notes

BSc 1st Year Sexual Reproduction In Sycon Question Answer Notes

 

BSc 1st Year Sexual Reproduction In Sycon Question Answer Notes

 


प्रश्न 3 – साइकॉन में लैंगिक जनन और परिवर्धन का सचित्र वर्णन कीजिए।

Describe the sexual reproduction and development in Sycon or (Scypha).

उत्तर –                     साइकॉन में लैंगिक जनन

                (Sexual Reproduction in Sycon) 

साइकॉन (साइफा) एक उभयलिंगाश्रयी (monoecious) स्पंज है, परन्तु स्त्रीपूर्वता . (protogyny) के कारण इसमें केवल पर-निषेचन होता है। साइकॉन में विशिष्ट जननांगों का अभाव होता है। नर शुक्राणु (sperms) या मादा अण्डाणु (ova) मीसेन्काइम में पाए जाते हैं। इनका विकास आद्य कोशिकाओं (archaeocytes) से होता है।

शुक्राणु (Sperm)-एक परिपक्व शुक्राणु में एक स्पष्ट गोल सिर और एक तरंगशील . पूँछ होती है। पूँछ की गति द्वारा शुक्राणु जल में तैरकर अन्य स्पंजों में पहुंचते हैं।

अण्डाणु (Ova)-एक आर्कियोसाइट से पहले अण्डक (oocyte) बनता है जो पोष काशिकाओं (trophocytes) या नर्म कोशिकाओं को खाकर वृद्धि करता है। दोनों परिपक्वन विभाजनों के पश्चात् अण्डक से अण्डाणु बन जाता है। यह स्पंज की अक्षीय नाल की भित्ति में रहकर किसी दूसरे स्पंज से आए शुक्राणु से निषेचन द्वारा जाइगोट (zygote) बनाता है।

निषेचन आन्तरिक होता है। अण्डाणु का निषेचन मीसेन्काइम में होता है। शुक्राणु जल का धारा के साथ प्रवेश करते हैं। निषेचन क्रिया में यह पहले परिपक्व अण्डाणु के पास की एनासाइट में प्रवेश करता है। इसकी पुच्छ समाप्त हो जाती है और फूले हुए सिर के चारों र एक सम्पुट (capsule) बन जाता है। कोएनोसाइट भी कॉलर व कशाभ छोड़कर अमीबाभ जाता है। अब इसे वाहक कोशिका कहते हैं। अण्डाणु की बाहरी सतह से सम्पर्क के स्थान पर एक अन्तर्वलन बन जाता है। इसी अन्तर्वलन में वाहक कोशिका को ग्रहण किया जाता है। अब शुक्राणु का सिर अण्डाणु के अन्दर प्रवेश कर जाता है। इस प्रकार शुक्राणु के सिर और अण्डाणु के संगलन से युग्मनज (zygote) बनता है।

BSc 1st Year Sexual Reproduction In Sycon Question Answer Notes
BSc 1st Year Sexual Reproduction In Sycon Question Answer Notes

साइकॉन के युग्मनज में परिवर्धन

(Development of Zygote in Sycon)

विदलन (Cleavage)-युग्मनज का परिवर्धन मातृ स्पंज की मीसेन्काइम में होता है। विदलन समान (equal) तथा पूर्णभंजी (holoblastic) होता है। पहले तीन विभाजन ऊर्ध्वाधर होते हैं जिससे आठ ब्लास्टोमियर्स बनते हैं तथा चौथा विभाजन क्षैतिज होता है जिससे आठ ब्लास्टोमियर्स 16 में बँट जाते हैं और ये दो सोपानों (tiers) में व्यवस्थित होते हैं। इनमे से 8 कोशिकाएँ बड़ी मैक्रोमियर्स कहलाती हैं। इनसे पिनेकोडर्म बनती है। शेष छोटी कोशिकाएँ माइक्रोमियर्स कहलाती हैं। इनसे कोएनोडर्म बनती है।

मैक्रोमियर्स का विभाजन कुछ समय के लिए बन्द हो जाता है और ये कुछ गोल आकार के हो जाते हैं। मैक्रोमियर्स में समसूत्री विभाजन होता है जिससे अनेक छोटी-छोटी कोशिकाएँ बन जाती हैं। इनमें अन्दर की ओर कशाभ (flagella) होते हैं। इस अवस्था को ब्लास्टुला (blastula) कहते हैं। ब्लास्टुला में एक ब्लास्टोसील (कोरक गुहा) बन जाती है। इसे स्टोमोब्लास्टुला भी कहते हैं।

स्टोमोब्लास्टुला (Stomoblastula) का एक भाग अनेक छोटे-छोटे, लम्बे व कशाभित माइक्रोमियर्स का तथा दूसरा भाग आठ गोलीय मैक्रोमियर्स का बना होता है। कोरक गुहा मैक्रोमियर्स के बीच से एक छिद्र (मुख) द्वारा बाहर खुलती है। मुख के द्वारा चारों ओर की। अमीबोसाइट्स का भक्षण किया जाता है।

लारवा अवस्था (Larval stage)

ऐम्फिब्लास्टुला (Amphiblastula)-स्टोमोब्लास्टुला में प्रतिलोमन (inversion) होता है, जिसमें यह मुख से अपना अन्दर का भाग उलट कर बाहर निकालता है जिससे कशाभ बाहर की ओर आ जाते हैं। इसे अब ऐम्फिब्लास्टुला लारवा कहते हैं। इसके निचले (अगले) भाग में कशाभ होते हैं और ऊपरी (पिछले) आधे भाग में जिसमें 8 मैक्रोमियर्स होते हैं कशाभ नहीं होते। इस अवस्था में ऐम्फिब्लास्टुला मीसेन्काइम को छोड़कर नाल तन्त्र से होकर बाहर निकलने वाली जल धारा के साथ बाहर निकल आता है। ऐम्फिब्लास्टुला जल में तैरता है और तैरते समय इसका कशाभित भाग आगे की ओर रहता है।

गैस्ट्रला (Gastrula)-स्वतन्त्रतापूर्वक तैरता हुआ ऐम्फिब्लास्टुला कुछ समय पश्चात् स्थिर होता है और गैस्ट्रलाभवन करता है। इसमें मैक्रोमियर्स में माइक्रोमियर्स की अपेक्षा तेजी से विभाजन होता है जिससे लारवा का कशाभित भाग अन्दर की ओर धंसता है और अकशाभित भाग से ढक जाता है। अब यह लारवा एक दोहरी भित्ति का गैस्टुला बन जाता है। इसके निचले भाग में एक ब्लास्टोपोर (blastopore) बनता है। लम्बे बेलनाकार गैस्ट्रला में अनक छिद्र ऑस्टिया (ostia) बन जाते हैं। अकशाभित बाहरी कोशिकाएँ बाह्य पिनेकोडर्म (exopinacoderm), स्क्लेरोब्लास्ट्स ( scleroblasts) और पोरोसाइट (porocytes) बनाती है। अन्दर की कशाभित कोशिकाओं का कोएनोडर्म में विकास होने के साथ ही इससे कोएनोसाइट (choanocytes), आद्य कोशिकाएँ (archaeocytes) तथा अन्य

अमीबोसाइट्स (amoebocytes) बन जाती हैं। इस प्रकार मीसेन्काइम की कोशिकाओं की व्युत्पत्ति दोनों भ्रूणीय स्तरों से होती है। अब शिशु साइकॉन ऑलिंथस अवस्था (olynthine stage) में पहुँच जाता है। यह सरल एस्कॉन स्पंज से मिलता-जुलता होता है। इसमें अरीय नाली के मुकुलन (budding) द्वारा वयस्क या साइकॉनाभ अवस्था (syconoid stage) की व्युत्पत्ति होती है। कशाभित कोएनोसाइट अरीय नालों में स्थानान्तरित हो जाती हैं। कंटिकाओं तथा नाल तन्त्र सहित मध्य स्तर में वृद्धि हो जाने से शरीर भित्ति की मोटाई में वृद्धि होती है। इसके पश्चात शाखा निकलने तथा विभेदीकरण द्वारा निवह (colony) का विकास हो जाता है।

 


Follow me at social plate Form

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top