BSc 1st Year Botany Fossilization Notes

BSc 1st Year Botany Fossilization Notes

 

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प्रश्न 12 – जीवाश्मीकरण से आप क्या समझते हैं? जीवाश्म अध्ययन की विभिन्न तकनीकों तथा जीवाश्मीकरण के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर 

जीवाश्मीकरण 

(Fossilization) Notes

पादप वायु या अन्य माध्यम से जल में आते हैं तथा संतृप्त होते हैं। सम्पूर्ण पादप या पादप भाग समान्तर या होरीजोन्टल रूप में व्यवस्थित होते हैं। कीचड (mud) या रेत (sand) के साथ ये व्यवस्थित (settle) हो जाते हैं। अधिक सेडीमेन्ट के एकत्रित होने पर ये पादप स्थिर (settle) होते हैं। ये वातावरण झील, समुद्र, स्ट्रीम तथा कॉन्टीनेन्टल शेल्फ के भण्डारण (deposits) हो सकते हैं। कभी-कभी सेडीमेन्टरी वातावरण sub-aqueous हो सकता है। सेडीमेन्ट स्टोनी (stony) हो जाते हैं। चट्टानों के भार के कारण पादप चपटे हो सकते हैं। जैसे-जैसे चट्टान मोटी होती है, पौधों के भाग अधिक चपटे होने लगते हैं तथा पादप के चिह्न (impressions) चट्टानों पर अंकित हो जाते हैं।

जीवाश्म निर्माण में जीवद्रव्य परिरक्षित नहीं होता है जिन कोशिकाओं की भित्ति पतली होती है, उनका परिरक्षण भी भली प्रकार नहीं हो पाता है। काष्ठीय भाग (woody parts) तथा क्यूटिकिल युक्त संरचनाएँ भली प्रकार परिरक्षित (preserve) होती हैं।

एक मत के अनुसार पादप अंगों (plant parts) के ऊतकों का विस्थापन अणु के आधार पर खनिज पदार्थों (mineral matter) से हुआ होगा। यह विस्थापन काफी धीमी गति से होता है। विस्थापन हेतु कार्बोनेट, सिलिकेट्स व पाइरेट आदि उपयोगी हो सकते हैं।

एक अन्य मत के अनुसार पादप के चारों ओर उपस्थित माध्यम में रासायनिक पदार्थ उपस्थित रहे होंगे। इनका धीरे-धीरे पादप में इनफिल्ट्रेशन (infiltration) हुआ है। इन पादप के अंगों के विघटन से कार्बन भी उत्पन्न हुआ होगा जिसकी रासायनिक क्रिया से कैल्सियम, फेरस कार्बोनेट आदि का निर्माण हुआ होगा।

जीवाश्म अध्ययन की तकनीक (Technique of Fossil Study) Notes

जीवाश्म की बाह्य तथा आन्तरिक संरचना का अध्ययन कठिन होता है।

जीवाश्म का अध्ययन निम्नलिखित विधियों के माध्यम से किया जा सकता है

  1. स्थानान्तरण तकनीक (Translocation Technique)-इसमें जीवाश्म को चट्टानों से पारदर्शक आधार पर स्थानान्तरित कर दिया जाए तो पौधे के अवशेष दोनों सतहों पर देखे जा सकते हैं। यह तकनीक कम्प्रेशन जीवाश्म के अध्ययन में उपयोगी है।
  2. मेसीरेशन विधि (Maceration Method)-इस विधि में जीवाश्म, पादप या. उनके भाग को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में भिगोकर साफ करते हैं। यह विधि पीट लिग्नाइट या कोयले के जीवाश्म अध्ययन में प्रयोग करते हैं।

एक अन्य तकनीक में जीवाश्म वाली चट्टान को काटकर छोटे टकडों में परिवर्तित कर लेते हैं, ये टुकड़े अर्द्धपारदर्शक बनाए जाते हैं। फिर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इनका अध्ययन करते हैं।

आजकल पादप जीवाश्म (plant fossils) के अध्ययन में TEM, SEM इन्टरफेज सूक्ष्मदर्शी, फेज कन्ट्रास्ट सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग करते हैं। X-ray analysis विधि भी कछ पादप जीवाश्मों के अध्ययन में उपयोगी साबित हुई है।

भारत में गोंडवाना में जीवाश्मीकरण एक विशेष विधि से हुआ। इसमें पादप नदी के जल में तली पर एकत्रित हुए। इसमें इनका सूक्ष्मजीवों से न के बराबर अपघटन हुआ। जीवाश्मीकरण में जीवद्रव्य सर्वप्रथम नष्ट होता है। क्यूटिनयुक्त ऊतक मूल रूप से परिरक्षित होते हैं। जीवाश्मीकरण में सेडीमेन्टेशन का सर्वाधिक महत्त्व है।

जीवाश्मीकरण के मुख्य कारक (Factors of Fossilization) Notes

जीवाश्मीकरण के मुख्य कारक निम्नलिखित हैं

(a) जीव का मरना

(b) पानी में प्रतिजैविक पदार्थों की उपस्थिति

(c) जल की गहराई (d) चट्टानों का दबाव

(e) सेडीमेन्टेशन पदार्थ की उपस्थिति

(f) सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति

बायोस्टेटोनोमी (Biostatonomy) वह क्रिया है, जो जीव के मृत शरीर से जीवाश्म बनने तक होती है।

महत्व (Importance) Notes

जीवाश्मीकरण का महत्त्व निम्नवत् है

(1) भूवैज्ञानिक काल की जलवायु तथा वातावरण के विषय में जानकारी प्राप्त करना।।

(2) जीवाश्म के अध्ययन से विकास तथा फाइलोजेनी के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।

(3) जीवाश्म पौधों के उद्गम (origin) तथा वर्गीकरण के अध्ययन में सहायक होते हैं।

(4) जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम) आदि की खोज हेतु जानकारी प्राप्त करना।

 


 

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