Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi Notes

Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi Notes

Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi Notes :- BSc 1st Year Botany Cell Biology And Genetics Examination Paper Notes. This Post is very useful for all the Student Botany. This post will provide immense help to all the students of BSc Botany.


(Diversity of Viruses, Bacteria and Fungi) 

खण्ड‘ : लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न ज्ञान ?

प्रश्न 1 – पिली की संरचना का वर्णन कीजिए। थवा जीवाणु में पिली अथवा फिम्ब्री पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर सामान्यत: ग्राम निगेटिव जीवाणुओं में फ्लैजेला के अलावा कोशिकाभित्ति से क्ष्म, दृढ़ तथा सीधे रोममय उपांग निकलते हैं जिनको पिली अथवा फिम्ब्री कहते हैं। इनकी म्बाई 0.5 से 20u तथा चौड़ाई 30-80 A तक हो सकती है। ये पिलिन (pilin) नामक टीन से निर्मित होती हैं तथा कोशिका के चारों तरफ विन्यसित होती हैं। इनका मुख्य कार्य संजक अंग (adhesive organ) तथा संयुग्मन (conjugation) के समय दो जीवाणु कोशिकाओं को लिंगी रोम (sex pili) द्वारा जोड़ना है। ये अन्दर से खोखली होती हैं जिन दाता कोशिका (donor cell) से ग्राही कोशिका (recipient cell) में आनुवंशिक पर (genetic material) का स्थानान्तरण होता है।

Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi
Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi

प्रश्न 2 – विषाणुओं की प्रकृति को समझाइए। 

उत्तर

Content in The Article

विषाणुओं की प्रकृति 

(Nature of Viruses) Notes

विषाणु सजीव तथा निर्जीव दोनों के गुण रखते हैं, इसलिए जीवन की उत्पत्ति की विकास से इनका सीधा सम्बन्ध है। विषाणुओं के कुछ मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं –

(1) ये संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा नहीं देखे जा सकते हैं। इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मद द्वारा ही देखा जा सकता है।

(2) इनमें प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल होते हैं, इनमें DNA या RNA मिलता है।

(3) ये केवल जीवित प्राणियों तथा वनस्पतियों के अन्दर ही प्रजनन कर सकते इसलिए इन्हें ‘जीवित’ कहते हैं।

(4) ये कोशिकाओं के अन्दर पाए जाते हैं तथा पूर्ण परजीवी होते हैं।

(5) इनमें mutation हो सकता है।

(6) इनमें कोई जननांग (sex organs) नहीं होते हैं।

(7) ये Artificial media पर नहीं उग सकते हैं।

(8) इन पर ताप तथा नमी का असर होता है।

(9) अपने host पर ये काफी साफ दिखने वाले लक्षण दिखाते हैं।

(10) इनसे काफी भयंकर रोग होते हैं।

कुछ वनस्पतिविज्ञ ऐसा मानते हैं कि विषाणु ऐसे निर्जीव न्यूक्लियोप्रोटीन्स होते हैं जिन अपने स्वयं के प्रोटोप्लाज्म बनाने की क्षमता को नष्ट कर दिया लेकिन अपने विभाजित होने शक्ति को बनाए रखा है। इसलिए ये किसी दूसरे जीवित प्राणी या पौधे के प्रोटोप्लाज्म के अन्दर रहते हैं।

प्रश्न 3 – जीवाणु कोशिका भित्ति के कार्य बताइए। 

उत्तर

जीवाणु कोशिका भित्ति के कार्य 

(Functions of Bacterial Cell wall) Notes

जीवाणु की कोशिका भित्ति कोशिका को आकार प्रदान करती है तथा यह दृढ़ होती इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –

(1) कोशिका भित्ति कोशिका की आन्तरिक संरचनाओं की रक्षा करती है।

(2) कोशिका भित्ति कुछ जीवाणुओं की जातियों में रोग उत्पन्न करने की क्षमता रखती है।

(3) कोशिका भित्ति पर कुछ प्रतिजैविक (actil site) होता है।

(4) कोशिका भित्ति की संरचना के आधार पर ग्राम पॉजीटिव तथा ग्राम निगेटिव जीवाणुओं को विभेदित किया जाता है।

(5) जब जीवाणु कोशिका का परासरण दाब अधिक हो तथा बाहरी माध्यम का परासरण दाब कम हो तब, कोशिका भित्ति जीवाणु कोशिका को (फटने से) संरक्षण देती है।

(6) कोशिका भित्ति पेप्टीडोग्लाइकन या म्यूरीन (Peptidoglycan or Murein) की बनी होती है। इसके साथ कुछ अन्य पदार्थ भी हो सकते हैं।

प्रश्न 4 – आर्द्रतापन अथवा पादप गलन रोग से आप क्या समझते हैं? इसके लक्षण, हेतकी नियन्त्रण का उल्लेख कीजिए। 

उत्तर आर्द्रतापन रोग कवकजनित रोग है तथा पिथियम से होता है।

रोग के लक्षण (Symptoms of Disease)—यह रोग अधिक नम तथा गर्म भूमि में तीव्रता से बढ़ता है। बीज के अंकुरण के साथ ही पौधे में संक्रमण आरम्भ हो जाता है। अंकुर भूमि से बाहर नहीं निकल पाता है तथा कभी-कभी पूरा बीज ही सड़ जाता है। इस प्रकार बीज के अंकुरण पर असर पड़ता है। यदि बीज अंकुरित हो भी जाए तो जड़ों तथा तने का निचला भाग, हाइपोकोटाइल आदि का रंग पीला पड़ जाता है। तना निर्बल होने से पौध झुककर गिर जाती है तथा तना गल जाता है और पौधा मर जाता है।

हेतुकी (Etiology)—यह एक कवकजनित रोग है जो पिथियम डिबेरिएनम से होता है तथा सरसों, बन्दगोभी, बैंगन, मिर्च, गाजर, मूली, शलजम, टमाटर आदि में अत्यधिक होता है। पिथियम की अन्य प्रजातियाँ भी हैं। यह एक विकल्पी परजीवी (facultative parasite) है। यह मृदा में निषिक्ताण्डों के द्वारा जीवित रहता है। अनुकूल वातावरण में बीज व बीजांकुरों में संक्रमण कर असंख्य चल बीजाणुधानियाँ बनाता है जो अन्य बीज व बीजांकुरों पर संक्रमण

करती हैं। यह कवक अनेक वर्षों तक भूमि में रहता है और अपना जीवन-चक्र पूर्ण करता है। कवक जाल की मोटाई 50 तथा शाखा की मोटाई 3-4u होती है। जीवद्रव्य में रिक्तिकाएँ, वसा कण तथा माइटोकॉण्ड्रिया मिलते हैं। कवक जाल विकर स्रावित कर परपोषी की कोशिका भित्ति को विलीन कर देते हैं। अलैंगिक प्रजनन कोनीडियम या बीजाणुधानी या जूस्पोर से होता है तथा लैंगिक जनन पंधानी व अंडधानी से निषिक्तांड के बनने से होता है। कवक भूमि में मृतोपजीवी के रूप में भी जीवित रहता है।

नियन्त्रण (Control) (1) बीज बोने से पहले बीजों को गर्म जल (122°C पर) में 20-25 मिनट तक रखें।

(2) कवकनाशी से बीज को उपचारित करें।

(3) फॉर्मेल्डिहाइड अथवा ब्रेसीकोल से भूमिशोधन करें।

(4) खड़ी फसल पर 275 ग्राम केप्टॉन 40 लीटर पानी में घोलकर 1/5 हेक्टेयर (200 वर्गमीटर) में हजारे की सहायता से जड़ों के पास डालें।

प्रश्न 5 – जीवाणु अभिरंजन की ग्राम विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर

जीवाणु अभिरंजन की ग्राम विधि 

(Gram Technique of Bacterial Staining) Notes

यह क्रिया ग्राम स्टेनिंग (Gram staining) भी कहलाती है। इस स्टेन का प्रयोग सर्वप्रथम जीवाणु वैज्ञानिक ग्राम (Gram) ने सन् 1884  इस अभिरंजन के फलस्वरूप दो प्रकार के जीवाणु ग्राम पॉजीटिव (ग्राम ग्राही अथवा अभिरंजित होने वाले) तथा ग्राम निगेटिव (ग्राम अग्राही अथवा अभिरंजित न होने वाले जीवाणु) मिलते हैं। ग्राम के नाम पर इसको ग्राम स्टेनिंग कहते हैं।

इस क्रिया में सर्वप्रथम जीवाणु वाले घोल को क्रिस्टल वॉयलेट (crystal violet) से तथा आयोडीन से अभिरंजित करते हैं। घोल बैंगनी हो जाता है। इस सूखी स्लाइड को ऐसीटोन अथवा ऐल्कोहॉल में धोते हैं, फिर स्लाइड को देखने पर पता चलता है कि ग्राम पॉजीटिव जीवाणु बैंगनी तथा ग्राम निगेटिव जीवाणु रंगहीन रहते हैं। अब इस स्लाइड को सैफ्रेनीन से रँगते हैं जिससे पता चलता है कि बैंगनी हो चुके जीवाणु उसी प्रकार रहते हैं, परन्तु बैंगनी रंग न लेने वाले जीवाणु सैफ्रेनीन से लाल हो जाते हैं। इस क्रिया को ग्राम स्टेनिंग कहते हैं।

Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi
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प्रश्न 6 – एगेरिकस का जीवनचक्र केवल चित्रों की सहायता से दर्शाइए।

उत्तर –

एगेरिकस का जीवन चक्र 

(Life – cycle of Agaricus) Notes

Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi
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प्रश्न 7 – मैथ्यूज के अनुसार विषाणु के मुख्य गुण लिखिए।

उत्तर

विषाणु के मुख्य गुण

(Main Characters of Virus) Notes

मैथ्यूज (Mathews) 1970 के अनुसार विषाणु के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं-

(i) इनमें केवल एक प्रकार का न्यूक्लिक अम्ल (DNA or RNA) मिलता है।

(ii) न्यूक्लिक अम्ल एक कैप्सिड से घिरा रहता है जिस पर कभी-कभी एक पतला आवरण (envelope or limiting membrane) होता है।

(iii) इनका गुणन जीवित कोशिकाओं में ही सम्भव है। ये अपने गुणन (multiplication) के लिए परपोषी कोशिका के कोशिकांगों का उपयोग करते हैं।

(iv) अनुकूल वातावरण में परपोषी में बीमारी पैदा कर सकते हैं।

प्रश्न 8 – कवक के सामान्य लक्षण लिखिए।

उत्तर –

कवक के सामान्य लक्षण 

(General Characters of Fungi) Notes

ह्विटेकर के अनुसार फंजाई (कवक) में उन जीवों को रखा गया है, जो विषमपोषी तथ यूकैरियोट हैं। ये कार्बनिक पदार्थों का अवशोषण करते हैं।

(1) जीवित जीवों से भोजन अवशोषित करने वाले परजीवी कवक कहलाते हैं।

(2) मृत जीवों से भोजन अवशोषित करने वाले कवक मृतोपजीवी (saprophyte)] कहलाते हैं।

(3) इनका शरीर तन्तुमय होता है। ये तन्तु एक जाल बना लेते हैं जिसे कवक जाल अथवा माइसीलियम (mycelium) कहते हैं।

(4) कुछ कवक एककोशिकीय होते हैं; जैसे- सिनकाइट्रियम, यीस्ट। (5) कुछ कवक शैवाल के साथ सहजीवी होते हैं और लाइकेन बनाते हैं। (6) इनकी पोषण विधि अवशोषी होती है।

(7) संचित भोजन ग्लाइकोजन के रूप में मिलता है।

प्रश्न 9 – कवकों के चार प्रमुख उपयोग लिखिए।

उत्तर –

कवकों के उपयोग 

(Uses of Fungi) Notes

(1) कवकों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है।

(2) डबलरोटी उद्योग में कवक बहुत उपयोगी हैं।

(3) ऐल्कोहॉल युक्त पेय पदार्थों के निर्माण में कवकों का इस्तेमाल किया जाता है।।

(4) भूमि की उर्वरता बढ़ाने में भी कवक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 10 – भिण्डी का पीला शिरा मोजैक रोग का वर्णन कीजिए। 

उत्तर यह एक विषाणुजनित रोग है। भारत में इस रोग का पता सन् 1940 में महाराष्ट्र में कोंकण के डप्पल व उनके साथियों ने तथा सन् 1955 में झामिश्रा ने बिहार में लगाया। आजकल यह रोग व्यापक रूप से मिलता है।

रोग के लक्षण (Symptoms of Disease)-यह भिण्डी के पत्ते पर दिखाई देता है। इसके कारण पत्ती में शिरा उद्भासन (vein clearing) के साथ हरिमाहीनता (chlorosis) मिलती है। पत्ती का जाल स्पष्ट हो जाता है। पत्तियाँ पीली व छोटी हो जाती हैं।

हेतुकी (Etiology)—यह रोग भिण्डी मोजैक वाइरस (Bhindi mosaic virus) अथवा हिबिस्कस वाइरस 1 स्मिथ (Hibiscus virus 1 smith) द्वारा होता है। यह रस संचरित | रोग नहीं है। यह सफेद मक्खी बेमिसिया टैबैसी (Bemisia tabaci) द्वारा संचरित होता है। ।

नियन्त्रण-(1) बीमार पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए।

(2) सफेद मक्खियों के लिए 0.3 % फॉलिडोन या डेमिक्रॉन 100 ई० सी० तथा नुवान 100 ई० सी० (1 ml दवाई 3 लीटर जल में) के 1 : 1 मिश्रण का छिड़काव करें।

(3) रोग-प्रतिरोधी किस्म उगाएँ।

प्रश्न 11 – प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर लिखिए।

उत्तर

प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर

(Differences Between Prokaryotic And Eukaryotic Cells)

क्र0

सं0

प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cell) यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic Cell)
1. इसमें सत्य केन्द्रक (true nucleus) नहीं मिलता है। केन्द्रक कला (nuclear membrane) तथा न्यूक्लिओलस

(nucleolus) अनुपस्थित होते हैं।

इसमें सत्य केन्द्रक मिलता है। केन्द्रक कला तथा न्यूक्लिओलस पाए जाते हैं।
2. इसमें केवल एक क्रोमोसोम होता है। इसमें एक से अधिक क्रोमोसोम होते हैं।
3. क्रोमोसोम में हिस्टोन (histone) प्रोटीन नहीं होती है। क्रोमोसोम में हिस्टोन प्रोटीन होती है।
4. जाइगोट की प्रकृति (nature) मीरोजाइगोट (merozygote) होती है | अर्थात् यह partialy diploid होता है। जाइगोट डिप्लॉइड (diploid) होता है।
5. इसमें माइटोसिस तथा मिओसिस नहीं होती हैं। इसमें माइटोसिस तथा मिओसिस दोनों होती हैं।
6. इसमें आनुवंशिक पुनर्योजन (genetic recombinations), जैसे ट्रांसफॉर्मेशन (transformation),तथा कंजूगेशन (conjugation) मिलते हैं। इसमें सत्य लैंगिक जनन होता है।
7. इसमें माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जी एपरेटस, एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम,

क्लोरोप्लास्ट का अभाव होता है।

इसमें ये सभी मिलते हैं।
8. इसमें राइबोसोम 70S प्रकार का होता है। इसमें राइबोसोम 80S प्रकार का होता हैं।
9. इसकी कोशिकाभित्ति में म्यूकोपेप्टाइड्स होते है। इसकी कोशिकाभित्ति में म्यूकोपेप्टाइड्स नहीं होते हैं।
10. इसमें मीसोसोम मिलते हैं। इसमें मीसोसोम नहीं मिलते हैं।
11. इसके फ्लैजेला में तन्तु स्पाइरल रूप में व्यवस्थित होते हैं। इसमें 9 + 2 विन्यास मिलता है।
12. इसके केन्द्रक का आकार निश्चित नहीं होता है तथा इसको केन्द्रकाभ (nucleoid) या incipient nucleus कहते है। इसमें केन्द्रक का आकार निश्चित होता हैं तथा केन्द्रक पूर्ण विकसित होता हैं।

प्रश्न 12 – एस्कोबोलस के जीवनचक्र का रेखांकित चित्र बनाओ।

उत्तर –

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प्रश्न 13 – मीसोसोम पर टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर मीसोसोम (Mesosome)-अधिकांश मीसोसोम ग्राम पोजीटिव जीवाणुओं में मिलते हैं। इनके कई आकार सम्भव हैं। आमतौर पर ये नलिकावत् (tubular) या वेसीकुलर (vesicular) होते हैं। इनकी रासायनिक संरचना जीवद्रव्यकला के समान होती है। इनमें श्वसन के लिए आवश्यक एन्जाइम (enzymes) मिलते हैं। इनके कार्य की तुलना यूकैरियोटिक कोशिका के माइटोकॉण्ड्रिया से की जा सकती है। कोशिका विभाजन व एण्डोस्पोर (endospore) बनने के समय क्रॉसभित्ति बनाने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है।

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प्रश्न 14 – एगेरिकस की बटन अवस्था पर टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर एगेरिकस की बटन अवस्था (Button Phase of Agaricus) एगेरिकस का फलनकाय वायवीय भाग है, इसको फलनकाय (fruiting body) या छत्रक (mushroom) भी कहते हैं। आरम्भ में यह संघनित कवक तन्तुओं (compact hyphae) की एक छोटी गाँठ के समान होती है जो आमतौर पर राइजोमॉर्फ से विकसित होती है। तरुण अवस्था में फलन छोटा, गोलाकार या नाशपाती के समान होता है। इसको बटन अवस्था (button | stage) कहते हैं।

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इस बटन जैसी संरचना पर एक उपसंकुचन (constriction) बनता जाता है जो धीरे-धीरे बढ़कर ऊपर की तरफ छत्रक के समान (umbrella shaped) स्पोरोफोर में विकसित होता है तथा नीचे की तरफ वृन्त का निर्माण करता है। यह संरचना परिपक्व अवस्था में छह से नौ सेमी तक हो सकती है।

प्रश्न 15 – विषाणु की परिभाषा लिखिए तथा DNA RNA विषाणु के विषय में बताइए। 

उत्तर विषाणु की परिभाषा (Definition of Virus) बॉडेन (Bawden. 1943) के अनुसार, विषाणु ऐसे रोगजनक अविकल्पी परजीवी हैं जिनका आमाप 200 मिलीमाइक्रोन से कम होता है।

DNA तथा RNA विषाणु

(DNA and RNA Virus)

विषाणुओं को एकैरियोट्स (Akaryotes) भी कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं।

(a) डीऑक्सीवायरा (Deoxyvira) इनमें आनुवंशिक पदार्थ DNA होता है।

(b) राइबोवायरा (Ribovira)-इनमें आनुवंशिक पदार्थ RNA होता है।

अधिकांशतः जन्तु विषाणुओं में DNA पाया जाता है, परन्तु कुछ ऐसे भी जन्तु विषाणु है। ( जिनमें DNA के स्थान पर RNA पाया जाता है; जैसे—पोलियो विषाणु, रेट्रोविषाणु, रिओविषाणु, रेबीज विषाणु आदि। अधिकांश पादप विषाणुओं में RNA पाया जाता है, परन्त . कुछ पादप विषाणु में RNA के स्थान पर DNA भी पाया जाता है; जैसे-गोभी का मोजेक  विषाणु। 

प्रश्न 16 – किसी पॉलिमॉर्फिक कवक तथा उसमें मिलने वाले बीजाणुओं का नाम प्रकार के होते लिखिए। 

उत्तर पक्सीनिया (Puccinia) एक पॉलिमॉर्फिक (polymorphic) कवक है। इसके जीवन-चक्र में पाँच प्रकार के बीजाणु मिलते हैं

(i) पिक्नीडियोबीजाणु (Pycnidiospores)

(ii) एसियोबीजाणु (Aciospores)

(iii) यूरीडोबीजाणु (Uredospores)

सकते हैं।

(iv) टेल्यूटोबीजाणु (Teleutospores)

(v) बेसीडियोबीजाणु (Basidiospores)।

प्रश्न 17 – जीवाणु तथा विषाणु में अन्तर लिखिए।

उत्तर

जीवाणु तथा विषाणु में अन्तर 

(Differences Between Bacteria and Virus) Notes

क्र0

सं0

जीवाणु (Bacteria)

विषाणु (Virus)

1. जीवाणु का आमाप 2 – 10u होता है। विषाणु का आमाप 10 – 30 mu

(मिली माइक्रॉन) होता है।

2. इन्हें साधारण सूक्ष्मदर्शी (simple

microscope) से देखा जा सकता है।

इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (electron microscope) से ही देखा जा सकता है।
3. जीवाणु सजीव होते हैं। विषाणु निर्जीव व सजीव के मध्य की

कड़ी हैं।

4. यह कोशिकीय (एककोशिकीय) होते हैं। ये अकोशिकीय (acellular) होते हैं।
5. इनमें कोशिका भित्ति पायी जाती है। इनमें कोशिका भित्ति नहीं पायी जाती।
6. इनमें कोशिकाद्रव्य, गुणसूत्र व राइबोसोम मिलते हैं। इनमें केवल न्यूक्लिक अम्ल व प्रोटीन आच्छद मिलता है।
7. न्यूक्लिक अम्ल केवल DNA होता है। न्यूक्लिक अम्ल DNA अथवा RNA

होता है।

8. जीवाणु फिल्टर (छानने) से छन जाते हैं। न्यूक्लिक अम्ल DNA अथवा RNA होता हैं।
9. ये सहजीवी, परजीवी, मृतजीवी अथवा स्वतन्त्र रूप से भी मिलते हैं। ये केवल अविकल्पी परजीवी (obligate parasite) होते है।
10. ये लाभदायक अथवा हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। ये केवल हानिकारक होते हैं।
11. इनमें अलैंगिक व लैंगिक जनन मिलता है। ये केवल गुणन (replication) कर सकते हैं।
12. ये कोशिका के अन्दर, स्वतन्त्र रूप से या प्रयोगशाला में सभी जगह प्रजनन कर सकते हैं। ये केवल पोषी कोशिका में ही प्रजनन कर सकते हैं।
13. जीवाणु द्धारा विकर का निर्माण व प्रोटीन संश्लेषण होता है। विषाणु के न्यूक्लिक अम्ल द्धारा पोषी कोशिका की ही अनुपस्थिति में सम्भव नहीं है।
14. जीवाणु परजीवी के रुप में विषाणु पर नहीं मिलता है। विषाणु जीवाणुभोजी (परजीवी) होते हैं।

प्रश्न 18 – निर्जर्मीकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर –

निर्जीकरण  

(Sterilization) Notes

किसी भी स्थान, वस्तु अथवा शरीर के किसी भाग (हाथ आदि) को जीवाणु से मुक्त करने की क्रिया निर्जीकरण (Sterilization) कहलाती है। निर्जीकरण की क्रिया किसी रासायन द्वारा (by chemical), ऊष्मा (heat) अथवा छानने (filter) के द्वारा कर सकते हैं।

सामान्यतः अस्पतालों, प्रयोगशालाओं आदि में निर्जीकरण की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण है। यहाँ आने वाले विभिन्न यन्त्रों, उपकरण आदि को ऑटोक्लेव अथवा प्रेशर कुकर में 110-120°C ताप तथा 15 पौंड दाब पर 15 मिनट तक रखकर निर्जर्मीकत किया जाता हैं कभी – कभी इन्जेक्शन की सुईं, नीडिल व चाकू, स्केलपेल, कैंची आदि को 15 मिनट तक उबलते पानी में रखते हैं जिससे उन्हें जीवाणुमुक्त कर सकें। प्रयोगशालाओं में निर्जीकरण के लिए फिलटर रसायन व ऑटोक्लेव का प्रयोग किया जाता है। अस्पतालों में यह क्रिया दो विधि से की जाती है

  1. अजर्म शल्य चिकित्सा (Aseptic Surgery)-इसमें शल्य क्रिया में उपयोग आने वाले सभी उपकरणों को जीवाणु अथवा रोगाणु मुक्त बनाने के लिए शल्य क्रिया कर (operation theater), फिल्टर, ऊष्मा व रसायनों आदि का प्रयोग करते हैं।
  2. प्रतिरोधी शल्य चिकित्सा (Antiseptic Surgery)-घावों को काबॉलिव अम्ल, डिटोल, सेवलॉन अथवा स्पिरिट से धोकर उसे रोगाणुओं से मुक्त किया जाता है।

प्रश्न 19 – पक्सीनिया का जीवनचक्र कितने परपोषी पर तथा किस प्रकार का होता है? हिरासुका ने इन बीजाणुओं को क्या नाम दिया

उत्तर पक्सीनिया का जीवन-चक्र दो प्रकार के परपोषी पर पूरा होता है।

स्पोर जीवनकाल किस पर बनते है समय संक्रमण
यूरीडोस्पोर छोटा गेहूँ ग्रीष्म ऋतु गेहूँ पर
टेल्यूटोस्पोर अधिक गेहूँ शरद ऋतु नहीं (बेसीडियम बनाते है)
बेसीडियोस्पोर छोटा बेसीडियम (मृदा में) वसन्त ऋतु बरबेरिस
पिक्नियोस्पोर छोटा बरबेरिस पत्ती वसन्त ऋतु नहीं
एसियोस्पोर छोटा बरबेरिस पत्ती वसन्त ऋतु गेहूँ

Hiratsuka’s द्वारा दिया गया विभिन्न बीजाणुओं का नामकरण 

स्टेज 0 स्पर्मेशिया (पिक्नियोस्पोर)

स्टेज I एसियोस्पोर (प्लाज्मोगेमोस्पोर)

स्टेज II यूरीडोस्पोर (यूरीडिनोस्पोर, समरस्पोर, रेड रस्ट स्पोर, यूरीडियोस्पोर)

स्टेज III टीलियोस्पोर (टेल्यूटोस्पोर, विण्टर स्पोर, ब्लैक रस्ट स्पोर)

IV बेसीडियोस्पोर (स्पोरीडिया)।

प्रश्न 20 – वर्ग ड्यूटेरोमाइसिटीज के विशिष्ट लक्षण लिखिए। 

उत्तर वर्ग ड्यूटेरोमाइसिटीज के विशिष्ट लक्षण निम्नलिखित हैं

(1) लैंगिक जनन (sexual reproduction) अनुपस्थित होता है।

  1. कवकजाल (mycelium) कोशा के अन्दर अथवा कोशा अवकाश (intercellular spaces) में मिलता है। ये अन्तःपादप (endophytic) अथवा अधिपाद(ectophytic) हो सकते हैं।

(3) कवकजाल शाखित, पट्टयुक्त तथा हल्के भूरे रंग का होता है। (4) अलिंगी जनन कोनीडिया व क्लैमाइडोस्पोर्स द्वारा होता है।

(5) इस वर्ग के कवक आर्थिक महत्त्व के पौधों को बहुत हानि पहुँचाते हैं।

प्रश्न 21 – ग्राम पॉजीटिव तथा ग्राम निगेटिव जीवाणुओं में अन्तर लिखिए।  

उत्तर

ग्राम पॉजीटिव तथा ग्राम निगेटिव जीवाणुओं में अन्तर 

(Differences Between Gram Positive And Gram Negative Bacteria)

क्र0

सं०

ग्राम पॉजीटिव

(Gram -ve)

ग्राम निगेटिव

(Gram +ve)

1. इनकी कोशिकाभित्ति होमोजीनस (homogeneous) तथा मोटी

(150-200A) होती है।

इनकी कोशिकाभित्ति हेटरोजीनस (heterogeneous) तथा अपेक्षाकृत

पतली (75-120A) होती है।

2. इसमें लगभग 80% म्यूकोपेप्टाइड (mucopeptide) तथा शेष पॉलिसैकेराइड्स (polysaccharides) होते हैं। इनमें लगभग 12ज्ञ म्यूकोपेप्टाइड तथा शेष प्रोटीन, लिपोप्रोटीन, सैकेराइड्स (lipopolysaccharides) व फाँस्फोलिपिड्स होते हैं।
3. इनकी कोशिकाभित्ति में टिकोइक अम्ल (teichoic acid) मिलता है। इनकी कोशिकाभित्ति में टिकोइक अम्ल नही मिलता है।
4. इनकी कोशिकाभित्ति अपेक्षाकृत दृड़ होती हैं. इनकी कोशिकाभित्ति लचीली होती हैं।
5. इसमें टिकोइक अम्ल एण्टीजेनिक (antigenic) होता है। इसमें लिपोपाँलीसैकेराइड्स एण्टीजेनिक होते है।
6. इसमें प्रोटीन कम तथा कुछ ही प्रकार के ऐमीनो अम्ल मिलते हैं। इसमें अपेक्षाकृत प्रोटीन अधिक तथा अनेक प्रकार के ऐमीनो अम्ल मिलते हैं।
7. ये एण्टीबायोटिक के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। ये एण्टीबायोटिक के प्रति अपेक्षाकृत कम संवेदनशील होते हैं।
8. इनमें सभी प्रकार के स्पोर बनते हैं तथा सामान्यत: पोलर फलैजेला नहीं पाया जाता है। इनमें सामान्यत: स्पोर नहीं बनते है तथा फ्लैजेला पोलर होते है।
9. इनकी कोशिकाभित्ति में लिपिड (lipids) बहुत कम मात्रा में मिलते हैं। इनकी कोशिकाभित्ति में लिपिड अत्यधिक मात्रा में मिलते है।

प्रश्न 22 – रस्ट (Rust) पर टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर रस्ट (Rust)-यूरिडिनेल्स (Uredinales) ऑर्डर (order) के सदस्यों द्वारा उत्पन्न रोग को रस्ट अथवा किट्ट कहते हैं। इसमें पस्टियूल (pustule) पोषी व सतह पर बनते हैं। यह सामान्यत: काला, लाल, भूरा अथवा पीला होता है। सामान्यतः मिल वाले Rust निम्नलिखित हैं

  • Black rust of Wheat – Puccinia graminis tritici
  • Brown rust of Wheat – Puccinia recondita
  • Yellow rust of Wheat – Puccinia striformis
  • Rust of Linseed – Melampsora lini

प्रश्न 23 – सूक्ष्मजीवियों के वर्गीकरण की रूपरेखा दीजिए।

उत्तर –

सूक्ष्मजीवियों का वर्गीकरण

(Classification of Micro Organisms) Notes

Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi
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प्रश्न 24 – यीस्ट की परासंरचना का चित्र बनाइए।

उत्तर –

यीस्ट की परासंरचना (Ultrastructure of Yeast) 

Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi
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प्रश्न 25 – किसी पादप विषाणु अथवा जन्तु विषाणु का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर –

पादप विषाणु 

(Plant Viruses) Notes

पपीता, आलू, तम्बाकू, गेहूँ आदि अनेक प्रकार के पादप विषाणुओं द्वारा संक्रमित हो जाते हैं। विषाणु इन पौधों पर आक्रमण करते हैं तथा इन्हें रोगजनित कर देते हैं। वनस्पतिविज्ञों ने सिद्ध कर दिया है कि विषाणुं एक पौधे से दूसरे पौधे पर अनेक माध्यमों द्वारा स्थानान्तरित हो जाते हैं।

तम्बाकू पर पाए जाने वाले तम्बाकू मोजैक वायरस (Tobacco Mosaic Virus or – TMV) रोग का अध्ययन काफी विस्तार से किया जा चुका है। इस विषाणु की रचना बेलनाकार तथा हेलीकल सिमैट्री वाली होती है एवं इसका अणु भार लगभग 40 लाख डाल्टन होता है। इसकी रचना में मुख्य भाग प्रोटीन्स एवं न्यूक्लिक अम्लों का होता है। विषाणु के प्रोटीन आवरण में लगभग 2130 समान उपइकाइयाँ होती हैं। प्रत्येक उपइकाई (subunit) में 158 ऐमीनो अम्लों की एक शृंखला होती है।

Botany Diversity Of Viruses Bacteria And Fungi
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जन्तु विषाणु 

(Animal Viruses)

विषाणुओं द्वारा अनेक जन्तु संक्रमित होते हैं। इनके संक्रमण के आधार पर इन्हें निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है

  1. न्यूरोट्रोपिक विषाणु (Neurotropic Viruses)-ये विषाणु जन्तुओं के तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) को संक्रमित करते हैं।

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  2. डर्मोट्रोपिक विषाणु (Dermotropic Viruses)-इन विषाणुओं से जन्तु की त्वचा संक्रमित होती है।

सामान्य रूप में स्पर्श से ही जन्तु विषाणु अन्य दूसरे जन्तु में स्थानान्तरित हो जाते है। कफ के द्वारा भी इनका स्थानान्तरण होता है। जन्तु विषाणु मुख्य रूप से डी०एन०ए० तथा कभी-कभी आर०एन०ए० के बने होते हैं।

प्रश्न 26 – कुछ विषाणुजनित पादप रोगों के नाम लिखिए।

उत्तर कुछ विषाणुजनित पादप रोगों के नाम निम्नलिखित हैं

(1) तम्बाकू का मोजैक रोग (Tobacco mosaic disease)

(2) ईख का मोजैक (Sugarcane mosaic)

(3) लीफ कर्ल ऑफ पपाया (Leaf curl of Papaya)

(4) यलो वेन मोजैक ऑफ भिण्डी (Yellow vein mosaic of bhindi)

प्रश्न 27 – हाइपरप्लेसिया से आप क्या समझते हैं

उत्तर परपोषी की कोशिका उद्दीपन द्वारा तीव्रता से विभाजित होकर अतिवृद्धि क्षेत्र बनाती है, उसे हाइपरप्लेसिया कहते हैं। अतिवृद्धि पादपों में कई प्रकार की होती है; जैसे

  1. गॉल्स (Galls)-छोटे-से क्षेत्र में वृद्धि से वार्ट, नाट, ट्यूबरकल आदि बन जाते हैं। बड़े उभार को गॉल (gall) कहते हैं।
  2. कर्ल (Curling)-सतह की कोशिकाओं की अतिवृद्धि से पत्तियों में मुड़ाव आ जाता है; जैसे-Leaf curl of Peach.
  3. प्रोलिफरेशन (Proliferation) सामान्यतः नए अंग बन जाते हैं; जैसे “Green ear disease of Bajra.” –
  4. फिल्लोडी (Phyllody)—पुष्प के विभिन्न भाग पत्ती के समान हो जाते हैं। इस स्थिति को फिल्लोडी कहते हैं।

प्रश्न 28 – कवक से प्राप्त होने वाले 5 एण्टीबायोटिक के नाम लिखिए।

उत्तर कवक से प्राप्त होने वाले 5 एण्टीबायोटिक निम्नलिखित हैं

  • स्ट्रेप्टोमाइसिन- स्ट्रेप्टोमाइसिस ग्रेसियस
  • क्लोरोमाइसिटिन-  स्ट्रेप्टोमाइसिस वेनेजुएली
  • ओरोमाइसिन- स्ट्रेप्टोमाइसिस ओरोफेसियन्स

(iv) पेनिसिलिन – पेनिसीलियम नोटेटम

  • एरगोटिन- क्लेवीसेप्स परप्यूरिया

प्रश्न 29 – एक मृतजीवी कवक का नाम लिखिए।

उत्तर एगेरिकस (Agaricus) एक मृतजीवी कवक है।

प्रश्न 30 – रस्ट के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।

अथवा एकाश्रयी (ऑटोशियस) एवं भिन्नाश्रयी (हेटरोसियस) कवकों में अन्तर लिखिए। 

उत्तर रस्ट ऑटोशियस (autoecious) (जो अपना जीवन-चक्र एक परपोषी (host) पर पूरा करता है।) या हेटरोशियस (heteroecious) (जो अपना जीवन-चक्र दो असम्बन्धित परपोषी पर पूरा करते हैं) हो सकते हैं। रस्ट तीन प्रकार के होते हैं

  1. मैक्रोसाइक्लिक (Macrocyclic)-इन रस्ट में सभी पाँच प्रकार के बीजाणु उत्पन्न होते हैं (पिक्नियोस्पोर या स्पर्मेटिया, एसियोस्पोर, यूरीडिनोस्पोर, टीलियोस्पोर, बेसीडियोस्पोर)। इसको Long cyclic rust भी कहते हैं जैसे पक्सीनिया हैलिन्थाई, यूरोमाइसिस फेबी ऑटोशियस मैक्रोसाइक्लिक रस्ट हैं, जबकि पक्सीनिया ग्रेमिनिस ट्रिटिसाई, पक्सीनिया पेनीसिटाई, हेटरोशियस मेक्रोसाइक्लिक रस्ट हैं।
  2. डेमीसाइक्लिक (Demicyclic)-इस रस्ट में यूरीडिनियल अवस्था (स्पोंगोनिया उपस्थित या अनुपस्थित हो सकते हैं) का अभाव होता है जैसे जिनोकोनिया पैकीयाना (Orange rust of Rubus) एक ऑटोशियस डेमीसाइक्लिक रस्ट है।
  3. माइक्रोसाइक्लिक (Microcyclic)-इसमें केवल टीलियोस्पोर (स्पोगोनिया उपस्थित या अनुपस्थित हो सकते हैं) ही द्विकेन्द्रकी बीजाणु बनते हैं; जैसे-पक्सीनिया मालवसेरम (hollyhock rust)। इस गण में 3 कुल हैं-पक्सीनिएसी, मेलम्पसोरेसी तथा कोलियोस्पोरेसी।

प्रश्न 31 – छह कवकजनित पादप रोगों के नाम रोगजनकों के नाम लिखिए।

उत्तर छह कवकजनित पादप रोगों व रोग जनकों के नाम निम्नलिखित हैं

(i) क्रूसीफेरी का श्वेत किट्ट रो (White rust of Cruciferae)-सिस्टोपस कैण्डिडा (Cystopus candida)।

(ii) आलू का पछेता अंगमारी रोग (Late blight of Potato)- फाइटोप्थोरा इनफेस्टेन्स (Phytophthora. infestans)।

(iii) धनिए का स्टेमगाल रोग (Stem gall of Coriander)-प्रोटोमाइसीज मैक्रोस्पोरस (Protomyces macrosporus)।

(iv) गेहूँ का काला किट्ट रोग (Black rust of Wheat)-पक्सीनिया |मिनिस ट्रिटिसाई (Puccinia graminis tritici)

(v) आलू का अंगमारी रोग (Early blight of Potato)-आल्टरनेरिया सोलेनी (Alternaria solani)।

(vi) गेहूँ का शलथ कण्ड (Loose smut of Wheat)-अस्टीलेगो न्यूडा ट्रिटिसाई ‘(Ustilago nuda tritici) .

प्रश्न 32 – वर्ग एस्कोमाइसिटीज के विशिष्ट लक्षण लिखिए।

उत्तर वर्ग एस्कोमाइसिटीज के विशिष्ट लक्षण निम्नलिखित हैं

(1) ये जल व स्थल दोनों में मिलते हैं।

(2) ये परजीवी व मृतजीवी होते हैं।

(3) इनका कवक जाल (mycelium) पूर्ण विकसित, पटयुक्त व शाखित होता है।

(4) लैंगिक प्रजनन (sexual reproduction) एस्कोस्पोर्स (ascospores) के द्वारा होता है।

(5) एस्कोस्पोर्स एस्कस (ascus) में बनते हैं। यह थैले के समान (sac like) रचना होती है।

(6) कोनीडिया अलैंगिक बीजाणु होता है।

(7) चल बीजाणु (motile spores) का अभाव होता है।

(8) अधिकतर जातियों में फलन पिण्ड (fruiting body) बनती है जिसे एस्कोकार्प (ascocarp) कहते हैं।

प्रश्न 33 – जीवाणु का वर्गीकरण लिखिए। 

उत्तर बर्गीज मैनुअल ऑफ डिटरमिनेटिव बैक्टीरियोलॉजी के आधार पर जीवाणुओं को शाइजोमाइसिटीज (Shizomycetes) वर्ग में रखा गया है। इस वर्ग को निम्नलिखित 10 गणों (orders) में बाँटा गया है

(i) Actinomycetales  (ii) Caryophanales

(iii) Beggiatoales (iv) Chlamydobacteriales

(v) Myxobacteriales (vi) Spirochaetales

(vii) Eubacteriales (viii) Mycoplasmatales

(ix) Pseudomonadales (x) Chlamydobacteriales.

प्रश्न 34 – डोलीपोर सेप्टम किस कवक में मिलते हैं?  

उत्तर बेसीडियोमाइकोटिना के अन्तर्गत मिलने वाले कवकों जैसे एगेरिकस में डोलीपोर सेप्टम मिलता है।

प्रश्न 35 – एगेरिकस यूरोशियम के फलन पिण्ड को क्या कहते हैं

उत्तर एगेरिकस के फलन पिण्ड को बेसीडियोकार्प तथा यूरोशियम के फलन पिण्ड को एस्कोकार्प कहते हैं।

प्रश्न 36 – एस्कोबोलस किस प्रकार का कवक है

उत्तर एस्कोबोलस मृतोपजीवी कवक है जो शाकाहारी जन्तुओं के गोबर पर उगती है। इसे कोप्रोफिलस (शमलरागी) कवक कहते हैं। यह एस्कोमाइसिटीज समूह का कवक है। इसमें कायिक, अलैंगिक व लैंगिक जनन मिलता है।

प्रश्न 37 – वायरोइड द्वारा होने वाले पादप रोग लिखिए।

उत्तर – 

वायरोइड तथा पादप रोग 

(Viroid and Plant Disease) Notes

वायरोइड से आलू, खीरा, टमाटर आदि में रोग होते हैं। PSTV सोलेनेसी व कम्पोजिटी कुल के पादपों पर परजीवी है। वायरोइड संक्रामक होता है। इसका संचरण यान्त्रिक घाव (mechanical injury) या सम्पर्क से हो सकता है। Coconut में वायरोइड से Codang Codang नामक रोग होता है।

प्रश्न 38 – जीवाणु द्वारा होने वाले चार रोगों के नाम लिखिए।

उत्तर जीवाणु द्वारा होने वाले चार रोगों के नाम निम्नलिखित हैं

क्र0

सं0

पौधों के रोग (Plant Diseases) रोग पैदा करने वाले जीवाणु  (Disease Causing Bacteria)
1. आलू का शैथिल रोग (Potato wilt) स्यूडोमोनास सोलेनेसेरम

(Pseudomonas solanacearum)

2. नींबू का केंकर (Canker of citrus) जैन्थोमोनास सिट्रई

(Xanthomonas citri)

3. क्राउन गाल (Crown gall) एग्रोबैक्टीरियम ट्युमिफेसियन्स

(Agrobacterium tumefaciens)

4. बन्दगोभी का काला विलगन (Black rot of cabbage) जैन्थोमोनास कैम्पेस्ट्रिस (Xanthomonas campestris)

प्रश्न 39 – पोलीपोरस के जीवनचक्र का रेखांकित चित्र बनाइए।

उत्तर पोलीपोरस का जीवनचक्र 

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प्रश्न 40 – पक्सीनिया के पीले, ब्राउन काले रस्ट की तुलना कीजिए।

उत्तर

पीले, ब्राउन तथा काले रस्ट की तुलना 

(Comparison of Yellow, Brown and Black Rust)

क्र० सं० पीला रस्ट बाउन रस्ट काला रस्ट
1. यह P. striformis से होता है। यह P. recondita से यह P. Graminis होता है।
2. जनवरी में गेहूँ पर रोग के लक्षण () दिखाई देते है। दिसम्बर में रोग के लक्षण दिखाई देते है। मार्च में रोग के लक्षण दिखाई देते है।
3. यह भारत के पूर्वी तथा उत्तरी भागों में अधिकांशत: मिलता है। यह भी भारत के उत्तरी तथा पूर्वी भागों में अपेक्षाकृत अधिक मिलता है। यह भारत के उत्तरी भागों में मिलता है।
4. इस रस्ट के रोग चिन्ह पत्ती पर्ण आच्छद () वृन्त ग्लूम पर मिलते है। इसके रोग चिन्ह मुख्य रुप से पत्तियों पर मिलते हैं। इसके रोग चिन्ह तना, पत्ती आदि पर मिल सकते है।
5. यूरीडोराई नीबू के समान पीले होते हैं। यूरीडोरोराई लम्बे तथा नारंगी रंग के होते है। यूरीडोसोराई लम्बे, अण्डाकार तथा भूरे-लाल रंग के होते है।
6. यूरीडोस्पोर्स अण्डाकार होते है। इनमें 5-10 अंगुर छिद्र () मिलते हैं। ये निश्चित आकार के नही होते है। इनमें 2-4 अंकुर छिद्र मिलते हैं। ये गोलाकार हेते है। इनमें 4 अंकुर छिद्र मिलते है।
7. टेल्यूटोसोराई हल्के काले रंग के होते है। टेल्यटोसोराई प्राय: नही मिलते हैं तो हल्के काले रंग के होते हैं। ये काले रंग के होते है।

प्रश्न 41 – कवक कितने प्रकार के होते हैं? संक्षेप में लिखिए।

अथवा परजीवी तथा मृतोपजीवी कवक की परिभाषा लिखिए। अथवा अविकल्पी एवं विकल्पी परजीवी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। .. 

उत्तर क्लोरोफिल की अनुपस्थिति के कारण कवक परपोषित (heterotrophic) होते हैं। पोषण के आधार पर इन्हें निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है

  1. परजीवी (Parasites)—ये कवक अपना भोजन किसी जीव या जीवित ऊतकों से प्राप्त करते हैं। ये फसलों व पौधों में अनेक रोग फैलाते हैं जिससे राष्ट्र को आर्थिक हानि होती है। यदि कवक परजीवी के रूप में परपोषी या होस्ट (host) की ऊपरी सतह से भोजन प्राप्त करता है तब उसे बाह्यपरजीवी (ectoparasite) कहते हैं; जैसे-एरीसाइफी (Erysiphe)। जब परजीवी कवक पौधे के ऊतक के अन्दर से भोजन प्राप्त करते हैं तब इनको

अन्तःपरजीवी (endoparasite) कहते हैं; जैसेपिथियम (Pythium)।

परजीवी दो प्रकार के होते हैं

(i) अविकल्पी परजीवी (Obligate Parasite)-ये कवक अपना भोजन केवल जीवित परपोषी से ही प्राप्त करते हैं। इनकी वृद्धि के लिए जीवित जीवद्रव्य (living protoplasm) का होना आवश्यक है; जैसेपक्सीनिया (Puccinia)

(ii) विकल्पी परजीवी (Facultative Parasite)-ये परजीवी जीवित परपोषी को| अनुपस्थिति में आवश्यकता पड़ने पर मृतजीवी की तरह सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त कर सकते हैं; जैसे-अस्टीलेगो (Ustilago)|

  1. मृतजीवी या मृतोपजीवी (Saparophytes)-इस वर्ग के कवक अपना भोजन | मृतजीवों तथा सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं; जैसे- म्यूकर (Mucor)|

ये भी दो प्रकार के होते हैं

(i) अविकल्पी मृतजीवी (Obligate Saparophytes)—ये कवक अपना भोजन केवल मृत कार्बनिक पदार्थों (dead organic matter) से प्राप्त करते हैं; जैसे-म्यूकर (Mucor)। .

(ii) विकल्पी परजीवी (Facultative Parasite)—ये वे मृतजीवी कवक हैं जो आवश्यकता पड़ने पर विशेष परिस्थितियों में परजीवी की तरह परपोषी से अपना भोजन प्राप्त करते हैं; जैसे–फ्यूजेरियम (Fusariun) .

प्रश्न 42 – विभिन्न वायरोइड में न्यूक्लियोटाइड की संख्या लिखिए।

उत्तर वायरोइड में न्यूक्लियोटाइड की संख्या

वायरोइड न्यूक्लियोटाइड की संख्या
(1) पोटेटो स्पिन्डल ट्यूबर वायरोइड (PSTV) 359
(2) साइट्रस एक्सोकोर्टिस वायरोइड (CEV) 370-375
(3) क्राइसेन्थियम स्टन्ट वायरोइड (CSV) 554
(4) केहना केहना वायरोइड (CCV) 246(आरम्भ में) 296-297

(संक्रमण की अन्तिम स्थिति में)

 प्रश्न 43 विषाणु निर्जीव पदार्थों से किस प्रकार समान हैं? लिखिए। अथवा विषाणुओं के मुख्य लक्षण लिखिए। 

उत्तर 

विषाणुओं के मुख्य लक्षण 

(Main Characters of Viruses) Notes

विषाणुओं में जीव तथा निर्जीव दोनों ही प्रकार के गुण मिलते हैं। इनके जैविक गुण निम्नलिखित हैं –

(1) इनमें आनुवंशिक पदार्थ की पुनरावृत्ति (replication of genetic materials होती है।


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