Reproduction In Equisetum BSc Botany Notes

Reproduction In Equisetum BSc Botany Notes

 

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5 – इक्वीसीटम में जनन पर लेख लिखिए। 

उत्तर 

इक्वीसीटम में जनन

(Reproduction in Equisetum)

वर्धी प्रजनन (vegetative Reproduction) Study Material Notes

टयबर द्वारा कुछ जातियों में वर्धी प्रजनन होता है जैसे इक्वीसीटम अरवेन्स। कुछ जातियों में ट्यूबर की शृंखला-सी बन जाती है। ट्यूबर का बाहरी आवरण बिन्दु (rind) कहलाता है जो स्केलेरनकाइमा का बना होता है। इसके केन्द्र में पेरेनकाइमा की कोशिकाएँ होती हैं जिनमें भोज्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में होते हैं। अनुकूल वातावरण में ट्यूबर मातृ पौधे से अलग होकर नये पादप को जन्म देते हैं।

बीजाणु उत्पन्न करने वाले अंग (Spore producing organs) _ Notes

इक्वीसीटम समबीजाणुक है। बीजाणुधानी स्पोरेन्जियोफोर पर होते हैं जिनसे मिलकर स्ट्रोबिलस के आधार पर एन्यूलस (annulus) मिलता है। इसकी अक्ष पर स्पाइरल क्रम में

Reproduction In Equisetum
Reproduction In Equisetum

स्पोरेन्जियोफोर (sporangiophores) लगे होते हैं। प्रत्येक स्पोरेन्जियोफोर में एक छोटा वृन्त (stalk) तथा हेक्सागोनल (hexagonal) पेल्टेट डिस्क (peltate disc) होती है। इस डिस्क के में अन्दर की तरफ 6-10 तक सेक के आकार में बीजाणुधानी (sac like sporangias लगे होते हैं। बीजाणुधानी एक स्तरीय बन्ध्य जैकिट से घिरी रहती है तथा इसके अन्दर बीजाणु भरे रहते हैं।

स्पोरेन्जियोफोर में एक पतला तथा छोटा वृन्त होता है जिसके द्वारा यह अक्ष (axis) से समकोण बनाता हुआ लगा रहता है। वृन्त के ऊपर हैक्सागोनल पेल्टेट डिस्क होती है। डिस्क के निचली सतह पर 5-10 बीजाणुधानियाँ होती हैं। बीजाणुधानी में स्फुटन लम्बी दरार से होता है जिससे बीजाणु बाहर निकलते हैं। स्पोरेन्जियम की संरचना

(Structure of Sporangium) ___ Notes

परिपक्व बीजाणुधानी लम्बी, स्यूनाकार (sac like) तथा गोल सिरे वाली होती है। इसके चारों तरफ एकस्तरीय जैकिट परत मिलती है। शेष परतें नष्ट हो जाती हैं। पैल्टेर डिस्क के अन्दर की तरफ बीजाणुधानी लगी रहती है। बीजणुधानी में बीजाणु भरे रहते हैं।

बीजाणुधानी का स्फुटन

(Dehiscence of sporangium). Notes

परिपक्व बीजाणुधानी में एक लम्बी दरार बनती है जिससे इसकी भित्ति फट जाती है। बीजाणुधानी खुलने से पहले स्ट्रोबिलस के इन्टरनोड लम्बे हो जाते हैं तथा स्पोरेन्जियोफोर अलग हो जाते हैं। जैकेट पर्त की कोशिकाओं में आर्द्रताग्राही परिवर्तन होने से वे सिकुड़ जाती हैं तथा दरार में से बीजाणु मुक्त हो जाते हैं।

बीजाणु (Spore)—बीयर (Beer, 1909) के अनुसार, बीजाणु में चार पर्तों की भित्ति होती है। सबसे बाहर की तरफ एपीस्पोर (epispore), बीच की पेरीस्पोर (perispore), तीसरी एक्सोस्पोर (exospore) तथा सबसे अन्दर वाली चौथी पर्त एन्डोस्पोर (endospore) कहलाती है। बीयर के अनुसार, एक्सोस्पोर तथा एन्डोस्पोर बीजाणु के प्रोटोप्लास्ट से बनता है जबकि एपीस्पोर तथा पेरीस्पोर टेपटम के साइटोप्लाज्म से बनती है। एपीस्पोर सपा सर्पिलाकार, बीज में जुड़े हुए इलेटर (elater) बनते हैं। इलेटर आर्द्रताग्राही होते हैं। वातावरणमें नमी होने पर ये बीजाणु के चारों तरफ लिपटे रहते हैं तथा शुष्क वातावरण में फैल जाते है। (ब्रायोफाइटा के इलेटर बन्ध्य स्पोरोजीनस कोशिकाएँ हैं तथा द्विगणित हैं जबकि इक्वीसीटम में ये अगुणित हैं तथा इनमें स्पाइल स्थूलन नहीं मिलते हैं।) इनमें ट्राइरेडियेट रिज नहीं दिखाई देती है।

इलेटरों का कार्य (Functions of elaters)-(1) आकार म बढ़ने पर इलेंटर बीजाणुधानी के स्फूटन में सहायक हो सकते हैं।

(2) आर्द्रताग्राही होने के कारण बीजाणु के विकिरण में सहायक होते हैं।

(3) इलेटर के कारण बीजाणु एक समूह में रहते हैं। एक बीजाणु के इलेटर दूसरे बीजाणु के इलेटर से उलझ सकते हैं।

(4) गीबेल के अनुसार, बीजाणु के इलेटर विकिरण के समय पैराशूट की भाँति कार्य करता है।

मेक्लीन तथा कुक (Mclean and Cook, 1951) ने इक्वीसीटम अरवेन्स में विषमबीजाणुता की प्राथमिक अवस्था की खोज की। छोटे तथा पीले बीजाणु, बड़े बीजाणुओं के साथ मिश्रित थे।

मेन्टोन (Manton, 1950) के अनुसार अगुणित गुणसूत्र संख्या 108 है।

 


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