Derive an Expression Growth Current L-R Circuit
Derive an Expression Growth Current L-R Circuit:-Semiconductors, intrinsic and extrinsic semiconductors, n-type and p-type semiconductors, unbiased diode, forward bias and reverse bias diodes, diode as a rectifier, diode characteristics, zener diode, avalanche and zener breakdown, power supplies, rectifier, bridge rectifier, capacitor input filter, voltage regulation, zener regulator. Bipolar transistors three doped regions, forward and reverse bias, D.C. alpha, D.C. beta transistor curves.
खण्ड-‘ब‘
प्रश्न 1. L- R परिपथ में धारा की वृद्धि के व्यंजक की उत्पत्ति कीजिए।
Derive an expression for the growth of current in L-R circuit.
अथवा
L- R परिपथ में धारा क्षय के व्यंजक की उत्पत्ति कीजिए।
Derive the expression for decay of current in L-R circuit.
अथवा
श्रेणीक्रम में जुड़े प्रेरकत्व तथा प्रतिरोध वाले एक परिपथ में धारा की वृद्धि तथा क्षय के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। समय नियतांक की सार्थकता समझाइए। धारा वृद्धि तथा क्षय के ग्राफ खींचिए तथा उनमें समय नियतांक दर्शाइए।
Derive an expression for the growth and decay of current in a circuit containing resistance and an inductance in series. Explain the significance of time constant. Plot a graph of the rise and decay of current and show time constant on them.
उत्तर : LR परिपथ में धारा वृद्धि— माना एक परिपथ में L प्रेरकत्व की एक कुण्डली, R प्रतिरोध का एक प्रेरणविहीन प्रतिरोधक श्रेणीक्रम में सम्बद्ध हैं तथा इसमें E विद्युत वाहक बल की एक बैटरी तथा द्विमार्गी कुंजी S, ab लगी है।
स्विच S को a स्थिति में लगाकर बैटरी E को परिपथ में लाया जाता है। इससे धारा प्रवाहित होनी आरम्भ हो जाती है तथा कुण्डली से एक चुम्बकीय फ्लक्स बद्ध हो जाता है। परिवर्ती लियात में जब धारा परिपथ में बढ़ती है तो कुण्डली से बद्ध फ्लक्स परिवर्तित होता है जिसके कारण कुण्डली में एक विद्युत वाहक बल प्रेरित हो जाता है, जो कि परिपथ में धारा की वृद्धि का विरोध करता है, अतः धारा अपना अन्तिम स्थायी मान in तात्क्षणिकतः प्राप्त नहीं करती बल्कि यह एक ऐसी दर से बढ़ती है जो कि परिपथ के प्रेरकत्व तथा प्रतिरोध पर निर्भर करती है।
माना परिपथ में तात्क्षणिक धारा का मान i तथा t समय बाद धारा के बढ़ने की दर di/dt है। कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान L di/dt होगा, जो आरोपित विद्युत वाहक बल E का विरोध करता है।
धारा का क्षय— जब स्विच S को स्थिति b पर लाते हैं (चित्र-14) तो परिपथ में मुख्य विद्युत वाहक बल का स्रोत नहीं रहता तथा धारा क्षय होने लगती है, जबकि परिपथ का प्रतिरोध अपरिवर्तित रहता है। अब कुण्डली का स्वप्रेरकत्व धारा के क्षय होने का विरोध करता है। माना क्षय के दौरान किसी क्षण t पर धारा का मान i है। इस क्षण प्रतिरोध R के सिरों के मध्य विभवान्तर Ri है, जबकि परिपथ में बाह्य विद्युत वाहक बल E नहीं है, अतः स्वप्रेरित विद्युत वाहक बल L(di/dt), विभवान्तर Ri के बराबर तथा विपरीत होगा, अर्थात्
समीकरण (4) से स्पष्ट है कि परिपथ में धारा चरघातांकी रूप से क्षय होती है। धारा तथा समय के मध्य ग्राफ चित्र-16 में प्रदर्शित है।
समीकरण (4) का अवकलन करने पर, धारा के क्षय होने की दर
इससे स्पष्ट है कि अनुपात R/L का मान अधिक होने पर अथवा कालांक L/R का मान कम होने पर, धारा का क्षय अत्यधिक तीव्रता से होगा। चित्र-15 व 16 से स्पष्ट है कि धारा की वृद्धि तथा क्षय के वक्र परस्पर सम्पूरक हैं।
यदि समीकरण (4) में t = L/R रखा जाए, तब
अत: प्रेरकत्व वाले परिपथ का कालांक, समय का वह मान है जिसमें धारा का मान अधिकतम से गिरकर 1/ e रह जाता है।
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Thanks for the post