Physical Chemistry Gaseous State Notes
Physical Chemistry Gaseous State Notes:-
प्रश्न 7. (अ) सिद्ध कीजिए—
उत्तर : वान्डरवाल्स समीकरण से,
उपर्युक्त समीकरण एक घनीय समीकरण है तथा हल करने पर V के तीन मान देती है। ताप में वृद्धि के साथ ये मान पास-पास आते जाते हैं तथा क्रान्तिक ताप पर ये समान हो जाते हैं। इस आयतन को क्रान्तिक आयतन कहते हैं। माना V के तीन मान x, y एवं 2 हैं, तब
प्रश्न 7. (ब) संगत अवस्थाओं के नियम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। अथवा संगत अवस्थाओं का नियम क्या है? वाण्डरवाल्स समीकरण से समानीत अवस्था समीकरणं निकालें।
उत्तर : वान्डरवाल्स समीकरण के स्थिरांक a व b सीधे रूप में मापे नहीं जा सकते हैं। अतः इस समीकरण को सभी गैसों के लिए उपयोगी बनाने के लिए इन स्थिरांकों की उपेक्षा करना जरूरी है। इस प्रकार की समीकरण प्राप्त करने के लिए हम गैस के P, V तथा T मानों को उसके क्रान्तिक दाब, क्रान्तिक आयतन तथा क्रान्तिक ताप के रूप में लिखते हैं।
समीकरण (2) वान्डरवाल्स की समानीत अवस्था समीकरण कहलाती है।
इससे स्पष्ट होता है— “यदि दो पदार्थ समान समानीत ताप तथा समान समानीत दाब पर हों तो इनके समानीत आयतन भी समान होंगे।” इस अवस्था में दोनों पदार्थों को संगत अवस्था में कहेंगे तथा यह सामान्यकरण संगत अवस्था का नियम कहलाता है।
महत्त्व या उपयोग विभिन्न द्रवों के भौतिक गुणों तथा रासायनिक संघटनों के सम्बन्ध का अध्ययन करने में यह नियम काफी सहायक सिद्ध हुआ है। इन गुणों का समान समानीत ताप पर अध्ययन किया जाता है क्योंकि दाब का द्रव के आयतन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यह देखा गया है कि किसी द्रव का क्वथनांक परम ताप स्केल पर उसके क्रान्तिक ताप का 2/3 होता है। सभी द्रव अपने क्वथनांकों पर अपनी संगत अवस्थाओं में उपस्थित होते हैं। इस कारण द्रवों के गुणों का क्रान्तिक ताप पर अध्ययन करने के लिए हम उनके क्वथनांकों का अध्ययन करते हैं।
प्रश्न 8. गैसों के गतिक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या करते हुए गतिक समीकरण की व्युत्पत्ति कीजिए। गतिक विचारों के आधार पर समीकरण PV = RT का निगमन कीजिए। गतिक समीकरण से विभिन्न गैसीय नियमों को कैसे व्युत्पन्न करते हैं?
अथवा गैसों के अणुगति सिद्धान्त की अभिधारणाएँ लिखिए। गतिज गैस समीकरण _PV = =mNe2 की व्युत्पत्ति कीजिए।
उत्तर : गैसों के गतिक सिद्धान्त की कल्पनाएँ या अभिधारणाएँ—गैसों का गतिक सिद्धान्त क्रौनिग, क्लॉसियस, मैक्सवेल द्वारा गैसों का सैद्धान्तिक रूप से व्यवहार व्यक्त करने के लिए दिया गया। यह सिद्धान्त निम्नलिखित मुख्य अभिधारणाओं पर आधारित है
(1) प्रत्येक गैस में असंख्य छोटे-छोटे कण होते हैं जिन्हें अणु कहते हैं। ये अणु इतने छोटे होते हैं कि इनका वास्तविक आयतन गैस के पूर्ण आयतन की तुलना में नगण्य होता है। – (2) गैस के अणु सदैव तीव्र गति से हर सम्भव दिशा में भिन्न-भिन्न वेगों से चलते रहते हैं। ये सदैव सीधी रेखा में चलते हैं तथा आपस में या पात्र की दीवार से टकराते रहते हैं।
(3) अणु पूर्णतया प्रत्यास्थ होते हैं। अतः इनके आपस में संघट्टन के कारण गतिज ऊर्जा की कोई हानि नहीं होती है। .
(4) अणुओं का एक-दूसरे के प्रति कोई विशेष आकर्षण नहीं होता है।
(5) गैस द्वारा उत्पन्न दाब, चलायमान अणुओं की पात्र के फलकों (faces) पर संघट्टन के कारण होता है।
(6) गैस का परम ताप उसमें उपस्थित सभी अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा होती है तथा दोनों एक-दूसरे के समानुपाती होते हैं।
(7) अणुओं की गति पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव नगण्य होता है।
गैसों का गतिक समीकरण
उपर्युक्त अभिधारणाओं की सहायता से गतिक समीकरण का निगमन निकि प्रकार से किया जाता है
माना एक घनाकृतिक पात्र में गैस की निश्चित मात्रा बन्द है। माना घनाकृतिक पात्र के फलकों की लम्बाई = 1 सेमी
पात्र का आयतन = V मिली
गैस के अणुओं की संख्या = n
गैस के प्रत्येक अणु का भार = m
अणुओं का वर्ग-माध्य-मूल वेग = u सेमी/सेकण्ड
पात्र में अणु सभी दिशाओं में गतिमान रहते हैं, परन्तु किसी एक समय में अणु के वेग को घन के तीनों फलकों (तलों) X, Y व Z-अक्षों के समान्तर तीन दिशाओं में खण्डित किया जा सकता है। माना तीनों अक्षों के समान्तर वेग क्रमश: ux,uy व uZ हैं।
सरलता के लिए हम केवल एक अणु लेते हैं जो X-अक्ष के समान्तर दो सम्मुख फलकों A व A’ के मध्य गतिमान है तथा उन फलकों से बार-बार टकराता रहता है।
चित्र-8
संघट्टन से पूर्व अणु का संवेग = mux
संघट्टन के बाद अणु का संवेग = m (-ux)= -2 mux
∴ प्रत्येक संघट्टन के बाद संवेग में परिवर्तन = mux-(-mux)= 2muX
फलक A पर टकराने के बाद, अणु को फलक A से टकराने के लिए। सेमी चलन पड़ता है, अर्थात् अणु को A’ फलक पर टकराने में ll us सेकण्ड लगते हैं।
गतिक समीकरण से गैस नियमों का व्युत्पात्त 1
.बॉयल का नियम-इस नियम के अनुसार, “स्थिर ताप पर किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन (V) उसके दाब (P) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।” अर्थात्
स्थिर ताप पर गैस की गतिज ऊर्जा भी स्थिर होगी, अत: स्थिर ताप पर,
PV = स्थिरांक
यहीबॉयल का नियम है।
- चार्ल्स का नियम-इस नियम के अनुसार, “स्थिर दाब पर किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन (V) उसके परम ताप (T) के समानुपाती होता है।” अर्थात्
यही चार्ल्स का नियम है।
- सामान्य गैस समीकरण PV = RT की व्युत्पत्ति–
मोल गैस के लिए स्थिरांक K का मान R के बराबर होता है और यह गैस स्थिरांक कहलाता है। अत: उपर्युक्त समीकरण में K के स्थान पर R रखने पर,
- डाल्टन का आंशिक दाब नियम- इसके अनुसार, “गैसों के मिश्रण का कुल दाब (P) सभी गैसों के आंशिक दाबों ( p) के योग के बराबर होता है।”
यही डाल्टन का आंशिक दाब नियम है।
- ग्राहम का विसरण नियम– इस नियम के अनुसार, “समान ताप व दाब पर गैस के विसरण की दर (r) उसके घनत्व (d) के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है।”
यही ग्राहम का विसरण नियम है।
प्रश्न 9. 1023 गैस अणुओं का दाब एक लीटर के बर्तन में ज्ञात कीजिए यदि . प्रत्येक अणु का भार 10-22 ग्राम है तथा मूल माध्य वर्ग चाल 105सेमी सेकण्ड–1 है।।
हल : दिया है, अणुओं की संख्या, N = 1023
पात्र का आयतन, V = 1 लीटर = 103 सेमी3
एक अणु का भार, M = 10-22 ग्राम
मूल माध्य वर्ग चाल, U = 105 सेमी सेकण्ड–1
दाब, P= ?
गतिक समीकरण से,
प्रश्न 10. (अ) अणुओं के औसत वेग, वर्ग-माध्य-मूल वेग तथा प्रायिकता वेग की परिभाषा लिखिए तथा ये किस प्रकार सम्बन्धित हैं? अथवा निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-सर्वाधिक सम्भावित चाल। अथवा वर्ग-माध्य–मूल वेग तथा सर्वाधिक प्रायिक वेग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर : औसत वेग (Average Velocity)
यह वेग एक ही गैस के सब अणुओं के वेगों का औसत होता है। यदि गैस के अणुओं के वेग क्रमशः u1, u2, u3, ….., un हों तथा अणुओं की संख्या n हो तो औसत वेग v निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता है
वर्ग-माध्य-मूल वेग (Root Mean Square Velocity)
यह वेग एक ही गैस के सब अणुओं के वेगों के वर्गों के औसत का वर्गमूल होता है। इसको ‘u’ से प्रदर्शित करते हैं।
__माना किसी गैस के n अणुओं के वेग u1, u2, u3, ….., un हैं, तब
सर्वाधिक प्रायिक वेग (Most Probable Velocity)
गैस के अधिकतम अणुओं के वेग को सर्वाधिक प्रायिक वेग कहते हैं। इसको से ‘प्रदर्शित करते हैं। गैस के ताप में वृद्धि के साथ इसका मान बढ़ता है।
उपर्युक्त तीनों वेगों के मान व सम्बन्ध निम्न प्रकार हैं—
प्रश्न 10. (ब) 1000°C ताप पर CO2 अणु के लिए R.MSA कीजिए।
प्रश्न 11.(अ) स्थिर आयतन पर आर्गन की विशिष्ट ऊष्मा 0.075 तथा अणु भा 40 है। इसके अणु में कितने परमाणु हैं? (R = 1.99 कैलोरी प्रति डिग्री प्रति मोल)।
प्रश्न 11. (ब) वान्डरवाल्स स्थिरांक लीटर-वायुमण्डल दाब प्रति मोल CO2 लिए, a = 3.6तथा b = 4.28 x 10-2 हैं। गैस के लिए TC तथा VC ज्ञात कीजिए।
अथवा वान्डरवाल्स स्थिरांक a = 3.6 लीटर2 वायुमण्डल मोल-2 b = 4. 28x 10-2 लीटर मोल–1 CO2, के लिए है। गैस के लिए TC तथा VC कीजिए।
प्रश्न. 12. समीकरण PV = n RT के सीमाबन्धन क्या हैं तथा वान्डरवाल्यो मधार किए? वान्डरवाल्स समीकरण किस प्रकार आदर्श व्यवहार से गैसों के बचलन को स्पष्ट करती है?
अथवा दर्शाइए कि वान्डरवाल्स समीकरण, साधारण गैस समीकरण का सुधरा रूप है। यह वास्तविक गैसों के व्यवहार की व्याख्या कैसे करती है? अथवा वान्डरवाल्स समीकरण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : समीकरण PV = RT के सीमाबन्धन
आदर्श गैसें आदर्श गैस समीकरण का पूर्णतः पालन करती हैं। गैसों के अणुगति सिद्धान्त से विभिन्न गैस नियम व्युत्पन्न हुए हैं जो अणुगति सिद्धान्त के अभिगृहीतों पर आधारित हैं। चूँकि वास्तविक गैसें ताप तथा दाब की सभी परिस्थितियों में आदर्श गैस समीकरण का पालन नहीं करती हैं। अतः अणुगति सिद्धान्त के कुछ अभिगृहीत सही नहीं हैं। ये केवल तब सत्य होती हैं, जबकि गैस का दाब कम तथा ताप अधिक होता है तथा इनसे विपरीत स्थितियों में ये अभिगृहीत सत्य नहीं हैं। अभिगृहीतों के सावधानीपूर्वक किए गए अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि इनमें से दो अभिगृहीत सही नहीं हैं जो निम्नलिखित हैं—
- गैस के अणुओं का आयतन गैस द्वारा घेरे गए आयतन की तुलना में बहुत कम होता है।
- गैस के अणुओं के मध्य कोई आकर्षण बल नहीं होता।
आण्विक आयतन- गैसों के अणुगति सिद्धान्त के अनुसार गैस का आयतन गैस के अणुओं तथा उनके मध्य स्थित रिक्त स्थानों के आयतनों के योग के तुल्य होता है। इसके अतिरिक्त गैस के अणु असंपीड्य (incompressible) होते हैं तथा इन अणुओं के मध्य के रिक्त स्थान को ही प्रसार अथवा संकुचन के दौरान क्रमशः बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
अब स्थिर ताप पर, यदि गैस की निश्चित मात्रा का दाब अत्यन्त कम हो तो इसका तात्पर्य यह है कि बॉयल के नियम के अनुसार गैस का आयतन बहुत अधिक है। दसरे शब्दों में, रिक्त स्थाना का आयतन अधिक होगा तथा आण्विक आयतन इन परिस्थितियों में नगण्य हो सकता है। कविपरीत यदि गैस का दाब बहुत उच्च है तो संगत आयतन कम होगा। इसका तात्पर्य यह है . रक्त स्थानों का आयतन कम होगा तथा आण्विक आयतन नगण्य नहीं हो सकता। अत: गैस दाब पर आदर्श गैस व्यवहार से अधिकतम विचलन तथा कम दाब पर न्यूनतम विचलन दर्शाएगी।
आण्विक आकर्षण- अगुगति सिद्धान्त के अभिगृहीत के अनुसार गैस के अणुओं के कषण एवं प्रतिकर्षण बल नगण्य होता है। यह केवल तब सत्य हो सकता है जब गैस पूर-दूर हो। यह स्थिति केवल उच्च ताप पर ही सम्भव है क्योंकि उच्च ताप पर अणुओं की औसत गतिज ऊजा गतिज ऊर्जा उच्च होती है तथा अणु परस्पर दूर-दूर होते हैं। यदि गैस का ताप अत्यन्त कम हो तो औसत गतिज ऊर्जा का मान बहुत कम हो जाता है तथा गैस के पास-पास आ जाते हैं। अतः आकर्षण एवं प्रतिकर्षण बलों को नगण्य नहीं माना जा सकता गसे कम ताप पर आदर्श गैस व्यवहार से अधिकतम विचलन दर्शाती हैं।
पुनः समीकरण PV = RT के अनुसार, स्थिर ताप पर, गैस के दाब तथा आयतन गुणनफल स्थिर होना चाहिए। अत: स्थिर ताप पर आदर्श गैस के लिए PV तथा P के म ग्राफ खींचने पर, वक्र P-अक्ष के समान्तर एक सीधी रेखा के रूप में प्राप्त होता है पर वास्तविक गैसों जैसे H,, He, Co..O, आदि के लिए भिन्न परिणाम प्राप्त होते हैं जो की चित्र-9 में दर्शाए गए हैं
कम दाब पर, हाइड्रोजन व हीलियम को छोड़कर सभी गैसों के लिए PV का मान आद गैस से कम आता है, जबकि अधिक दाब पर यह मान आदर्श गैस की अपेक्षा उच्च होता है
विचलन के लिए सुधार (वान्डरवाल्स समीकरण)
गैसों के अणुगति सिद्धान्त की अभिगृहीतों की उपर्युक्त दोनों कमियों अर्थात् आण्विन आयतन तथा आण्विक आकर्षण में वान्डरवाल्स ने सन् 1873 में सुधार किए। उसने एक संशोधित समीकरण प्रस्तुत की जिसे गैसीय अवस्था की वान्डरवाल्स समीकरण कहा जाता यह वास्तविक गैसों के लिए उपयुक्त है तथा निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त की जाती है
यहाँ ‘a’ आण्विक आकर्षण के लिए नियतांक तथा ‘b’ आण्विक आयतन नियतांक है।
वान्डरवाल्स समीकरण की व्यत्पत्ति
वान्डरवाल्स समीकरण व्युत्पन्न करने के लिए आण्विक आकर्षण दोनों में संशोधन किया गया।
आण्विक आयतन में संशोधन-वान्डरवाल्स के जावा संपीडन के दौरान इनका आण्विक आयतन अपरिवर्तित रहता आयतन में से घटा देना (अपवर्जित कर देना) चाहिए। यह आयतन अपवर्जित आयतन अथवा सह-आयतन कहलाता है। यदि गैस के n मोल हों तथा गैस आयतन b हो तो nb अपवर्जित आयतन होगा।
इस प्रकार, वान्डरवाल्स के अनुसार संशोधित आयतन इस प्रकार होगा—
संशोधित आयतन (Vcorr.) = (V – nb) (n मोलों के लिए)
= (V – b) (1 मोल के लिए)
आण्विक आकर्षण में संशोधन- विचलन के कारणों के उपर्युक्त दिए गए स्पष्टीकरण में हम यह देख सकते हैं कि गैस के अणुओं के मध्य सदैव आकर्षण बल उपस्थित रहते हैं जिन्हें कुछ निश्चित परिस्थितियों में ही नगण्य माना जा सकता है। आण्विक आकर्षण में संशोधन के लिए, माना गैस में X तथा Y दो अणु उपस्थित हैं। अणु X पात्र के मध्य में स्थित है, जबकि Y पात्र की दीवार के समीप स्थित है। इस प्रकार अणु X अन्य सभी अणुओं द्वारा सभी दिशाओं में समान रूप से आकर्षित होता है। अतः इस पर परिणामी बल नगण्य होगा, परन्तु अणु Y, जो पात्र की दीवार के समीप है, आण्विक आकर्षण के कारण एक खिंचाव | भीतर की ओर अनुभव करेगा तथा इस खिंचाव का प्रभाव समाप्त करने के लिए कोई बाह्य बल उपस्थित नहीं है। अत: यह आन्तरिक खिंचाव अणु के उस संवेग को कम कर देता है जिससे 1 यह पात्र की दीवार से टकराता। दूसरे शब्दों में, अणु कम वेग से दीवारों से टकराता है तथा उस दाब की तुलना में कम दाब लगाता है जो वह आकर्षण बलों की अनुपस्थिति में लगाता। इस प्रकार गैस का मापा गया दाब (P) वास्तविक दाब की तुलना में कम होता है। मापित दाब (P) में अतिरिक्त दाब (p) जोड़ने पर हमें आण्विक आकर्षण का कुल मान प्राप्त होगा। अत:
संशोधित दाब (Pror) = P+ p
यह अतिरिक्त दाब निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है
- उन गैस अणुओं की संख्या पर, जो अणु Y पर आन्तरिक बल लगाते हैं। यह संख्या गैस के घनत्व (d) पर निर्भर करती है, अर्थात्
P ∝ d
- उन गैस अणुओं की संख्या पर, जो पात्र की दीवार के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर प्रतिसेकण्ड टकराते हैं। यह संख्या भी गैस के घनत्व (d) पर निर्भर करती है। अब चूंकि
जहाँ ‘d’ एक नियतांक है। इसका मान गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है। अत.
उपर्युक्त दोनों संशोधनों द्वारा प्राप्त आयतन तथा दाब के मानों को आदर्श गैस समी में प्रतिस्थापित करने पर. हम निम्नांकित समीकरण प्राप्त करेंगे—
प्राप्त समीकरण वान्डरवाल्स गैस समीकरण कहलाती है।
आदर्श व्यवहार से गैसों के विचलन का स्पष्टीकरण
(i) कम दाब पर-दाब कम होने पर आयतन अधिक होगा। अत: V के सापेक्ष । नगण्य माना जा सकता है।
अत: वान्डरवाल्स समीकरण में (V – b) के स्थान पर V रखने पर,
स्पष्ट है कि PV का प्रेक्षित मान, आदर्श गैस के लिए अपेक्षित मान की अपक्षा होता है। यही कारण है कि कम दाब पर गैसों के वक्र, आदर्श गैस के वक्र से नीचे का।
प्राप्त होते हैं।
- उच्च दाब पर- दाब उच्च होने पर आयतन कम होगा। इस स्थिति में 2 मान p की अपेक्षा बहुत कम होने के कारण इसे नगण्य माना जा सकता है। इस स्थि वान्डरवाल्स समीकरण निम्न रूप ले लेती है
P(V-b) = RT
PV – Pb = RT
PV = RT + Pb
= (PV) आदर्श + Pb
स्पष्ट है कि PV का प्रेक्षित मान, आदर्श गैस के लिए अपेक्षित मान से अधिक होता है। – दाब उच्च होने पर, वास्तविक गैसों के वक्र, आदर्श गैस के वक्र आदर्श गैस के वक्र से ऊपर प्राप्त होते है |
- उच्च ताप पर- ताप आयतन होता है अत: ताप में वद्धि होने च्च हो जाएगा। इस स्थिति में b तथा दोनों उपेक्षणीय होते हैं जोसमीकरण आदर्श गैस समीकरण का रूप ले लेती है—
माप पर-ताप, आयतन के समानुपाती होता है।
PV = RT से शब्दों में, उच्च ताप पर वास्तविक गैसें आदर्श व्यवहार दर्शाती हैं।
- हाइडोजन तथा हीलियम का असामान्य व्यवहार- H, तथा He का अण भार बत कम होने के कारण इनके अणुओं के मध्य दुर्बल वान्डरवाल्स बल कार्यरत होते हैं जिस | कारण आकर्षण बल की माप को सामान्य ताप तथा कम दाब पर भी उपेक्षित किया जा सकता है। इस स्थिति में, वान्डरवाल्स समीकरण निम्न रूप ले लेती है—
P (V – b) = RT
PV = RT + Pb = (PV) आदर्श + Pb
PV का प्रेक्षित मान, आदर्श गैस के लिए अपेक्षित मान से उच्च होने के कारण, H2 तथा He के वक्र प्रारम्भ से ही आदर्श गैसों के वक्र से ऊपर प्राप्त होते हैं।
अतः स्पष्ट है कि वान्डरवाल्स समीकरण आदर्श व्यवहार से गैसों के विचलन को स्पष्ट करती है।
प्रश्न 13. CO2 गैस के 0.5 मोल का 27°C पर दाब 100kPa है। इसका आयतन (a) गैस समीकरण तथा (b) वान्डरवाल्स समीकरण द्वारा ज्ञात कीजिए।
(a = 0 . 5 Nm4mol-2, b = 4 x 10-5 m3 JK-1 mol-1, R = 8. 314 mol-1)
हल : दिया है,
गैस के मोलों की संख्या, n = 0 . 5 mol
प्रश्न 14. (अ) जूल-थॉमसन प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : जूल-थामसन प्रभाव
जेम्स जल तथा विलियम थॉमसन ने वास्तविक गैसों के व्यवहार का अत्यधिक गति अध्ययन किया और बताया कि यदि वायु या अन्य किसी गैस को एक छोटे छिद्र द्वारा किन एक निश्चित दाब वाले क्षेत्र से कम दाब (परन्तु निश्चित) वाले क्षेत्र में ले जाया जाता है कम गैस प्रसारित होती है तथा उसका तापमान कम हो जाता है। गैस के इस प्रसार को छिद्रित प्रसार कहते हैं तथा यह प्रभाव जूल-थॉमसन प्रभाव कहलाता है। अत: किसी गैस को किया छोटे छिद्र द्वारा उच्च दाब वाले क्षेत्र से निम्न (कम) दाब वाले क्षेत्र में प्रसारित करन” तापमान में होने वाला परिवर्तन जूल थॉमसन प्रभाव कहलाता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि जल थॉमसन प्रभाव शीतलन उत्पन्न करता है
गैसों के अणुओं के मध्य कार्यरत अन्तर-आण्विक बल के आधार पर इस प्रभाव को सरलता से स्पष्ट किया जा सकता है। गैसों के अणु परस्पर प्रबल आकर्षण बल द्वारा रहते हैं, अत: यदि इन्हें प्रसारित होने दिया जाए अर्थात् इनके मध्य की दूरी को बढ़ा दिया तब इन्हें अन्तराण्विक आकर्षण बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ेगा तथा इस कार्य हेतु तन अणुओं की गतिज ऊर्जा से कुछ ऊर्जा लेनी होगी। गतिज ऊर्जा का मान कम होने का शीतलन हो जाएगा क्योंकि गतिज ऊर्जा ताप के समानुपाती होती है।
आदर्श गैस के लिए जूल-थॉमसन प्रभाव शून्य होता है।
प्रश्न 14. (ब) शीत उत्पन्न करने के लिए कौन-सी विधियाँ प्रयुक्त होती है तथा पहुँच जाता है? यह कैसे किया जाता है? गैसों के द्रवीकरण में यह कैसे जाता है ? द्रवीकरण का महत्त्व बताइए।
उत्तर. शीत उत्पन करने के लिए विधिया
- हिम मिश्रण जब वाष्पशील प्रशीतक द्वारा- इस विधि का सिद्धान्त यह है कि पदार्थ वाष्पीकृत होता है तो वह अपने चारों ओर के वातावरण से वाष्पीकरण का त कर लेता है जिससे वातावरण का ताप कम हो जाता है। ठोस CO2, (सूखी इधर के मिश्रण को कम दाब पर वाष्पीकृत करने से ताप – 110°C तक पहुँच इसी प्रकार डाइफ्लुओरोडाइक्लोरो मेथेन या फ्रीऑन (CF2,Cl2,), द्रव SO2, द्रव आदि NH3 पदार्थ भी कम ताप उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त होते हैं।
- ठण्डी संपीडित गैस के एडियाबैटिक (रुद्धोष्म ) प्रसारण से- जब किसी गैस कानदाब से कम दाब पर एक छिद्रित प्लग द्वारा प्रसारण करते हैं तो उसका ताप काफीमर जाता है। ताप गिरने के इस प्रभाव को जूल-थॉमसन प्रभाव कहते हैं।
- एडियाबैटिक विचुम्बकन से— इसका सिद्धान्त यह है कि यदि पैरामैग्नेटिक पदार्थ को चम्बकित किया जाए तथा फिर एडियाबैटिक रूप से विचुम्बकित किया जाए तो इसका ताप कम हो जाता है। गियाक ने इस विधि से 0 – 0033 K का ताप प्राप्त किया। न्यूक्लियर | चुम्बकीय विधि द्वारा 0 – 0001 K तक का ताप प्राप्त किया गया है।
गैसों का द्रवीकरण
प्रयोगात्मक निरीक्षणों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं—
(i) गैस को द्रवित करने के लिए इसका ताप गैस के क्रान्तिक ताप से कम होना चाहिए। जितना ताप कम होगा, उतना ही द्रवीकरण में आसानी होगी।
(ii) प्रत्येक क्रान्तिक ताप के लिए न्यूनतम दाब का मूल्य निश्चित होगा। जितना ताप कम होगा, उतना ही द्रवीकरण दाब कम होगा।
नार्थ मोर (1835) ने SO., Cl, आदि गैसों को कम ताप व उचित दाब पर द्रवित या। फैराडे ने इसी सिद्धान्त को अपनाते हुए CO2,NO3,NH3 आदि गैसों को द्रवित कया। 3000 वायुमण्डलीय दाब प्रयुक्त करने पर भी H2, N2, O2 गैसें द्रवित नहीं की जा । अत: इनको स्थायी गैसें कहा गया। बाद में एन्ड्यू (1869) ने क्रान्तिक ताप को बताते कहा कि यदि गैस का ताप क्रान्तिक ताप से अधिक है तो उसका द्रवीकरण नहीं किया जा सकता है चाहे उस पर दाब कुछ भी क्यों न लगा दें। इस सिद्धान्त को मानते हुए आजकल । प्रत्येक गैस को द्रवित किया जा सकता है।
कैलीटेट व पिक्टैट (1879) ने उपर्यक्त सिद्धान्त के आधार पर O2 को 380 वायुमंडल दाब व द्रव SO2, प्रशीतक के प्रयोगों से द्रवित किया। लिण्डे ने जूल-थॉमसन प्रभाव द्वारा वायु को द्रवित किया।
लिण्डे प्रक्रम- शुष्क व CO2, विहीन वायु को 200 वायुमण्डलीय दाब तथा – 20°C तक शीतक से प्रवाहित करके ठण्डा किया जाता है तत्पश्चात् इसको लम्बी सर्पिल नली से प्रवाहित करते हैं। गैस के इस अचानक प्रसारण द्वारा वायु का ताप गिर जाता है। ठण्डी वायु को फिर इसी प्रकार प्रवाहित करते हैं जब तक जेट से द्रव वायु प्राप्त न हो।
क्लॉड प्रक्रम— इसमें वायु को जूल-थॉमसन प्रभाव तथा बाहरी दाब के विरुद्ध कार्य करके ठण्डा किया जाता है। शुष्क व शुद्ध वायु शीतक से प्रवाहित करने के बाद सर्पिल नली से गुजारी गई। इसका एक अंश प्रसार सिलिण्डर में आता है तथा प्रसारित होकर कार्य करता है। इससे वह ठण्डा हो जाता है। शेष भाग भी जेट से प्रसारित होता है तथा ठण्डा हो जाता है। इस प्रक्रम को तब तक दोहराते हैं, जब तक कि गैस द्रवित होने तक ठण्डी न हो जाए।
H2, व He द्रवित नहीं की जा सकती हैं क्योंकि इनके क्रान्तिक ताप कम होते हैं (H2, =- 80°C; He=- 240° C)। अत: ‘जूल-थॉमसन प्रभाव’ से ठण्डी होने के स्थान पर ये गैसें गर्म हो जाती हैं। ट्रेवरस व ऑन्स (1905) ने इन गैसों को क्रान्तिक ताप से नीचे ठण्डा करके ‘जूल-थॉमसन प्रभाव’ द्वारा ही द्रवित किया।
द्रवीकरण का महत्त्व
द्रवित गैसें दैनिक जीवन तथा उद्योगों में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं।
- सोडा फाउन्टेन में; जैसे-द्रव CO2,।
- प्रशीतक के रूप में; जैसे-NH3g, SO2,।
- वैल्डिंग में; जैसे—संपीडित CO2 I
- रॉकेट तथा नोदक वायुयानों में; जैसे-O2, के लिए द्रव वायु।
- विरंजक तथा रोगाणुनाशी के रूप में; जैसे-द्रव Cl2l
प्रश्न 45. वान्डरवाल्स समीकरण तथा क्रान्तिक घटना के सम्बन्ध में क्रान्ति स्थिरांकों से क्या तात्पर्य है? वान्डरवाल्स स्थिरांक के रूप में क्रान्तिक स्थिराक कीजिए। क्रान्तिक स्थिरांकों के मान प्रयोग द्वारा किस प्रकार ज्ञात करते हैं?
उत्तर : समतापी रेखा- स्थिर ताप पर, गैस के दाब तथा आयतन के बीच खाताप व रेखा समतापी रेखा कहलाती है। एन्ड्रयू ने CO2, के विभिन्न तापों पर दाब के बढ़न का अवलोकन करने के लिए समतापी रेखाएँ खींची जो चित्र-12 में दिखाई गई है।
12 : 1°C पर समतापी वक्र ABCD प्राप्त हुआ। वक्र AB CO2, गैस के संपीडन को | दर्शाता है। जैसे-जैसे दाब बढ़ता है, CO2, गैस का आयतन बॉयल के नियमानुसार वक्र AB के | अनुसार कम होने लगता है। B पर द्रवीकरण आरम्भ हो जाता है तथा C तक सम्पूर्ण CO2 गैस द्रव में परिवर्तित हो जाती है। B तथा C के मध्य प्रत्येक स्थान पर CO2, द्रव व गैस के मिश्रण | के रूप में होती है। रेखा CD द्रव CO2, का बढ़ते दाब पर व्यवहार प्रकट करती है क्योंकि गैसों | की अपेक्षा द्रव कम संपीड्य होते हैं, इसलिए वक्र CD लगभग ऊर्ध्वाधर दिशा में बढ़ता है।
- 1°C पर समतापी रेखा EFGH, वक्र ABCD के समान है, परन्तु निम्नलिखित दो तथ्यों में भिन्न है
- द्रवीकरण के लिए प्रयुक्त दाब अधिक हो जाता है।
- क्षैतिज भाग की लम्बाई कम हो जाती है।
अत: जैसे-जैसे ताप बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे क्षैतिज भाग की लम्बाई कम होती | जाती है और एक विशिष्ट ताप पर क्षैतिज भाग की लम्बाई एक बिन्दु के रूप में बदल जाती है। | यह 31 – 1°C पर होता है। इस ताप पर गैस अचानक पूर्ण रूप से द्रव में परिवर्तित हो जाती है। | इस बिन्दु J पर गैस व द्रव का अन्तर लुप्त हो जाता है।
31 • 1°C के ऊपर समतापी रेखा से ज्ञात होता है कि इसके ऊपर CO, गैस का प्रवीकरण नहीं होता है, चाहे इसके ऊपर कितना ही दाब क्यों न लगाया जाए। उदाहरणार्थ | 21°C पर समतापी रेखा LM आदर्श गैस के समान समकोणीय अतिपरवलयाकार के समान | होती है।
अत: CO2, तथा प्रत्येक गैस के लिए वह ताप जिससे नीचे उचित दाब लगाने पर गैस वाकरण किया जा सके और जिसके ऊपर चाहे जितना दाब लगाया जाए वह कभी भी द्रवित न की जा सके, गैस का क्रान्तिक ताप कहलाता है। क्रान्तिक ताप पर गैस का क्रांतिक दाब आवश्यक गैस का क्रान्तिक दाब कहलाता है। एक मोल गैस का क्रान्तिक दाब पर आयतन, क्रान्तिक आयतन कहलाता है। क्रान्तिक ताप, क्रान्तिक दाब कान्तिक आयतन को क्रमश: TCPC व VC से प्रदर्शित करते हैं।
वह बिन्दु जिस पर कोई गैस बिना दाब परिवर्तित हुए ही अचानक द्रव्य में परिवर्तित हो जाए, क्रान्तिक बिन्दु कहलाता है। बिन्दु J क्रान्तिक बिन्दु है। क्रान्तिक बिन्दु से होकर गुजरने वाले वक्र, क्रान्तिक समतापी रेखा कहलाता है। जब गैस अपने क्रान्तिक ताप व् दाब पर होती है, तब यह अपनी द्रव अवस्था के समान होती है जिसको क्रान्तिक अवस्था कहा जाता है। गैस के अपनी द्रव अवस्था में परिवर्तित होने की इस परिघटनास्था को क्रान्तीक परिघटना कहते हैं।
अवस्था सातत्य
कार्बन डाइऑक्साइड के समतापी वक्रों से यह स्पष्ट होता है कि गैस का द्रव में या का गैस में संक्रमण बिना किसी अविरलता के सम्भव है। दूसरे शब्दों में, उपर्युक्त संक्रमण एकदम होता है और यह ज्ञात करना असम्भव हो जाता है कि वास्तव में गैस कब द्रव में परिवर्तित होना प्रारम्भ करती है। चित्र-11 में 21 : 1°C वाले समतापी वक्र ABCD का क्षैतिज भाग BC बहुत अधिक लम्बा है। अधिक ताप वाले वक्रों का यह भाग क्रम से छोटा होता जाता है तथा 31 • 1° C वक्र पर यह केवल एक बिन्दु मात्र रह जाता है। जैसे ही ताप 31 • 1°C होता है, द्रव तथा संतृप्त वाष्प के घनत्व एक-दूसरे के निकट आ जाते हैं तथा क्रान्तिक ताप (31 – 1°C) पर गैस तथा द्रव में कोई अन्तर नहीं रह जाता; इसलिए एक प्रावस्था से दूसरी प्रावस्था में क्रमिक संक्रमण होने की सम्भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। वास्तव में, यह ज्ञात करना असम्भव है कि किस बिन्दु पर या कब द्रव गैस में या गैस द्रव में परिवर्तित हो जाती है। इस घटना को अवस्था सातत्य कहते हैं।
अत: एक अवस्था का दूसरी अवस्था में क्रमिक (gradual) संक्रमण होने का प्रक्रम | जिसमें दोनों अवस्थाओं में अन्तर करना कठिन हो, अवस्था सातत्य कहलाता है।
क्रान्तिक स्थिरांक तथा वान्डरवाल्स समीकरण
वान्डरवाल्स समीकरण से,
P से भाग देकर तथा पदों को V के अवरोही घात (descending powers) के क्रम में लिखने पर,
यह एक घनीय समीकरण है जो हल किए जाने पर V के तीन मान देती है जो अग्रलिखित प्रकार के हो सकते हैं
- V के तीनों मान वास्तविक हों।
- V का एक मान वास्तविक तथा शेष दो काल्पनिक हों।
51∘C पर समतापी रेखा से हमें एक दाब पर V का केवल एक मान मिलता है, शेष दो निक होते हैं, परन्तु 12∙1°C पर एक दाब के लिए V के दो मान क्रमश: B तथा C मलते हैं। अतः तीसरा वास्तविक मान अज्ञात होता है। इसको ज्ञात करने के लिए थॉमसन 11817) ने समीकरण (1) में a, b, R व T के मान रखकर सैद्धान्तिक समतापी रेखाएँ निकालीं जो कि चित्र-11 में बिन्दुओं से दर्शायी गई हैं। इस प्रकार समतापी रेखा ABCD के स्थान पर थॉमसन की सैद्धान्तिक समतापी रेखा ABB1B2,B3CD प्राप्त हुई। इससे V. का तीसरा अज्ञात मान (B2) ज्ञात हो गया। अत: P के एक मान के लिए V के तीनों वास्तविक मान क्रमश: B, B2, तथा C हैं। जैसे-जैसे ताप बढ़ता है, वैसे-वैसे ये तीनों मान पास-पास आते जाते हैं। क्रान्तिक ताप पर V के तीनों मान बराबर हो जाते हैं। इस आयतन को क्रान्तिक आयतन कहते हैं। माना V के तीन मान x, y व z हैं तो
समीकरण (2) क्रान्तिक अवस्था की समीकरण है। समीकरण (1) को क्रान्तिक अवस्था की समीकरण (2) में परिवर्तित करने के लिए T के स्थान पर TC व P के स्थान पर P लिखते हैं। अत: T = Tc व P = Pc रखने पर समीकरण (1) निम्नवत् हो जाती है
समीकरण (2) व (3) समान हैं। अत: दोनों समीकरणों में V के विभिन्न घातों को समीकृत (equate) करने पर,
समीकरण (6) को समीकरण (5) से भाग करने पर,
Vc = 3b
Vc का मान समीकरण (5) में रखने पर,
क्रान्तिक स्थिरांकों को ज्ञात करना
- क्रान्तिक ताप तथा क्रान्तिक दाब ज्ञात करना— इनको ज्ञात करने का सिद्धान्त इस तथ्य पर आधारित है कि क्रान्तिक ताप पर द्रव तथा वाष्प के बीच सीमा लुप्त हो जाती है। इसको प्रयोग द्वारा ज्ञात करने के लिए उपकरण चित्र-13 में दर्शाया गया है।
जिस द्रव का क्रान्तिक ताप व क्रान्तिक दाब ज्ञात करना हो उसको पात्र V में लेते हैं जो काँच के जैकेट J से घिरा रहता है। J का ताप थर्मोस्टेट से निकले जल को गुजारकर बदला जा सकता है। V को एक पारे के मैनोमीटर M से जोड़ देते हैं। पहले जैकेट को थोड़ा ठण्डा करते हैं जिससे द्रव व वाष्प के बीच सीमा स्पष्ट (चमकदार) हो जाती है। बल्ब को तापमापक लगी भाप जैकेट में रखते हैं। अब ताप को धीरे-धीरे बढ़ाते हैं जब तक द्रव व वाष्प के बीच सीमा लुप्त न हो जाए। जिस ताप पर ऐसा होता है, उसे लिख लेते हैं। माना यह ताप t1°C है। फिर जैकेट को ठण्डा करते हैं जिससे बल्ब धुंधला हो जाता है तथा पृष्ठ पर सीमा पुन: आ जाती है। जिस ताप पर ऐसा होता है, उसे फिर लिख लेते हैं। माना यह ताप t2°C है। इस प्रकार द्रव का क्रान्तिक ताप Image होता है।
t1°C तथा t2°C ताप पर मैनोमीटर द्वारा दर्शाए दाबों का औसत क्रान्तिक दाब बताता है।
- क्रान्तिक आयतन ज्ञात करना- कैलीटेट तथा माथाएस ने बताया कि यदि द्रव तथा संतृप्त वाष्प के घनत्वों के औसत मानों तथा संगत ताप के बीच ग्राफ खींचा जाए तो एक सीधी रेखा प्राप्त होती है।
चित्र-14 में वक्र VC तथा LC क्रमश: संतृप्त वाष्प के घनत्व व द्रव के घनत्व तथा संगत ताप के बीच वक्र दर्शाते हैं। बिन्दु C जहाँ दोनों वक्र मिलते हैं, क्रान्तिक ताप । का मान बताता है। यह बिन्दु अधिक स्पष्ट नहीं है, परन्तु कुछ चपटा होता है। अत: वाष्प तथा द्रव के घनत्वों के औसत मान तथा ताप वक्र MC में एक ग्राफ खींचते हैं | जिससे एक सीधा वक्र MC प्राप्त होता है, जो वक्र VCL को बिन्दु C पर काटता है। यह बिन्दु क्रान्तिक ताप दर्शाता है क्योंकि इस अवस्था में द्रव तथा वाष्प के घनत्व समान हो जाते हैं। अत: बिन्दु C पदार्थ के क्रान्तिक घनत्का भी मान बताता है। .
प्रश्न 16. द्रव क्रिस्टल क्या होते हैं? स्मेक्टिक द्रव क्रिस्टल और नीमैटिक द्रव क्रिस्टल में क्या अन्तर है? अथवा द्रव क्रिस्टल क्या हैं? उनका वर्गीकरण कैसे किया जाता है? कोलेस्टेरिक द्रव क्रिस्टलों की संरचना का वर्णन कीजिए।
अथवा द्रव क्रिस्टल की नीमैटिक एवं कोलेस्टेरिक प्रावस्थाओं की संरचनाएँसमझाइए।
उत्तर : द्रव क्रिस्टल
कुछ ठोस पदार्थ गर्म करने पर एक के बाद दो प्रावस्थाओं में परिवर्तित हो जाते हैं। पहले वह पिघलकर एक धुंधला द्रव देते हैं तथा पुनः अधिक ताप तक गर्म किए जाने पर कई पारदर्शी द्रव बनाते हैं। उपर्युक्त दोनों परिवर्तन उत्क्रमणीय होते हैं और ठण्डा करने पर मल पदार्थ प्राप्त हो जाता है। धुंधले (या अर्द्धपारदर्शी) द्रव में विषमदैशिकता (anisotropy) का गुण पाया जाता है अर्थात् विभिन्न दिशाओं में ये विभिन्न भौतिक गुण दर्शाते हैं। वास्तविक दव समदेशिक (isotropic) होता है, अर्थात् प्रत्येक दिशा में समान भौतिक गुण दर्शाता है। धन द्रव को द्रव क्रिस्टल कहा जाता है यद्यपि यह नाम भ्रामक है क्योंकि यह द्रव अवस्था साधारणतया कोई क्रिस्टलीय गुण प्रदर्शित नहीं करती। वास्तव में, द्रव क्रिस्टल दव ही के को पृष्ठ-तनाव, विस्कासिता आदि गुण दर्शाते हैं। अत: इन्हें क्रिस्टलीय द्रव या विषमदैशिक द्रव कहना अधिक उपयुक्त होगा। एक अन्य नामकरण मेसोमॉर्फिक अवस्था (मध्य आकतिक अवस्था) अधिक उपयुक्त है, परन्तु ये सामान्यत: द्रव क्रिस्टल के नाम से ही जाने जाते हैं।
इस प्रकार का गुण दर्शाने वाले पदार्थ प्राय: लम्बी श्रृंखला वाले कार्बनिक यौगिक हैं जिनके अन्त में -OR, -COOR आदि समूह होते हैं तथा -C≡N, -N≡N-0-, -C≡C- आदि समूह श्रृंखला के मध्य स्थित होते
(C6H5COOC22H45) इस प्रकार का पहला पदार्थ है। यह 145°C पर पिघलकर धंधन द्रव तथा 178°C पर पुनः पारदर्शी द्रव देता है। इसके बाद अन्य पदार्थों p-ऐजॉक्सीऐनिसोल, p-ऐजॉक्सीफेनिटोल आदि में भी यह गुण पाया गया है। आजकलर पदार्थ ज्ञात हैं जो द्रव क्रिस्टल की श्रेणी में आते हैं।
वह पहला न्यून ताप जब ठोस धुंधले द्रव में परिवर्तित होता है, संक्रमण ताप (transition temperature) तथा दूसरा उच्च ताप जिस पर पारदर्शी द्रव प्राप्त होता है गलनांक (melting point) कहलाता है।
वेन्जोएट बेन्जोएट (द्रव क्रिस्टल) बेन्जोएट (द्रव) द्रव क्रिस्टल अत्यन्त स्थायी होते हैं तथा गर्म करने पर अपघटित नहीं होते हैं। अन्य द्रव क्रिस्टल-(पहला ताप संक्रमण ताप तथा दूसरा गलनांक है)
(i) p-ऐजॉक्सी ऐनिसोल
(CH3OC6H4NONC6H4OCH3) [116°C, 135°C]
(ii) p-ऐजॉक्सी फेनीटोल
(C6H5OC6H4NONC6H4OC2H5) [137°C, 167°C]
(iii) p-मेथॉक्सीसिनेमिक अम्ल
(CH3OC6H4CH=CHCOOH) [170°C, 186°C]
(iv) डाइएथिल बेन्जिडीन
(C2H5NHC6HA.C6H4NHC2H5) [115°C, 120°C]
द्रव क्रिस्टलों का वर्गीकरण
द्रव क्रिस्टलों को निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है-
(i) नीमैटिक द्रव क्रिस्टल, (ii) स्मेक्टिक द्रव क्रिस्टल, (iii) कोलेस्टेरिक द्रव क्रिस्टला
यह वर्गीकरण स्कैनिंग टनलिंग सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग करके किए गए संरचनात्मक काय तथा अन्य अन्वेषणों पर आधारित है। ये क्रिस्टल प्रावस्था को गर्म करके प्राप्त किए जाते हैं। 500 से अधिक ऐसे कार्बनिक यौगिक ज्ञात हैं जो द्रव क्रिस्टलों के तीनों प्रकारों में से एक का प्रदर्शित करते हैं।
(i) नीमैटिक द्रव क्रिस्टल (Nematic liquid crystal)
धागे जैसी संरचना वाले द्रव कण नीमैटिक द्रव कण कहलाते हैं। यह नीमैटिक ग्रीक भाषा के शब्द नीमेटॉस (Nematos) से लिया गया है जिसका अर्थ है धागा या नीमैटिक कण में अणु ठोसों के अनुसार व्यवस्थित रहते हैं, परन्तु उनका कोई का विन्यास नहीं होता है। जैसा कि चित्र-15 में प्रदर्शित किया गया है
चित्र-15 : नीमैटिक व्यवस्था में अणुओं का अव्यवस्थित विन्यास।
निम्नांकित सारणी में कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं जो कि मध्यरूपीय अवस्था को | प्रदर्शित करते हैं
सारणी : नीमैठिक प्रकार के पदार्थ
पदार्थ | संक्रमण ताप°C | गलनांक बिन्दु ताप°C |
p-मेथॉक्सीसिनेमिक अम्ल | 170 | 186 |
p-एजॉक्सी फेनीटॉल | 137 | 167 |
p-एजॉक्सी ऐनिसॉल | 116 | 135 |
(ii) स्मेक्टिक द्रव क्रिस्टल (Smectic liquid crystal)
वे द्रव क्रिस्टल, जिनका व्यवहार साबुन जैसा होता है, स्मेक्टिक द्रव क्रिस्टल कहलाते हैं। स्मेक्टिक शब्द ग्रीक शब्द साबुन से लिया गया है।
स्मेक्टिक द्रव क्रिस्टल में अणु निश्चित परतीय विन्यास में रहते हैं क्योंकि अणु का निश्चित अन्तर पर क्रमिक विन्यास होता है। जैसा कि चित्र-16 में प्रदर्शित किया गया है
चित्र-16 : स्मेक्टिक व्यवस्था में अणुओं का क्रमिक विन्यास।
निम्न सारणी में कुछ स्मेक्टिक प्रकार के मध्यरूपीय पदार्थ दिए गए हैं
सारणी : स्मेक्टिक प्रकार के मध्यरूपीय पदार्थ
पदार्थ | संक्रमण ताप °C | गलनांक बिन्दु ताप°C |
एथिल p-एजॉक्सी बेन्जॉएट | 114 | 121 |
एथिल p-एजॉक्सी सिनेमेट | 140 | 249 |
n-ऑक्टाइल-p-एजॉक्सी सिनेमेट | 94 | 175 |
नीमैटिक तथा स्पेक्टिक लक्षणों वाले यौगिक (Compounds with Nematie, and Smectic characteristics)_ऐसे बहुत-से यौगिक ज्ञात हैं जो कि नीमैटिक स्मक्टिक प्रावस्था दोनों में रहते हैं तथा जिनका निश्चित संक्रमण ताप होता है। एथिल ऐनिया -p-ऐमीनो सिनेमेट एक ऐसा यौगिक है जो दोनों अवस्थाओं में ताप के साथ निम्न प्रकार परिवर्तन प्रदर्शित करता है
(ii) कोलेस्टेरिक द्रव क्रिस्टल (Cholesteric liquid crystal)
नीमैटिक प्रावस्था से भिन्न यौगिक भी प्रकाशिक गुण प्रदर्शित करते हैं। ये यौगिक कोलेस्टेरिक प्रावस्था बनाते हैं। इन यौगिकों में ध्रुवित प्रकाश में वर्ण-प्रभाव परतीय संरचना के र कारण होता है। इस प्रावस्था की मोटाई ही इसे स्मेक्टिक प्रावस्था से भिन्न बनाती है।
प्रकाशिक सक्रिय अणुओं के कारण कोलेस्टेरिक अवस्था में निर्देश अक्ष के लम्बव – अक्ष के अनुदिश स्वत: ट्विस्ट होता है। कोलेस्टेरिक प्रावस्था में अत्यन्त उच्च प्रकाशिक घूर्णन क्षमता होती है। ध्रुवित प्रकाश का तल प्रति मिमी हजारों डिग्री घूर्णन करता है जो एक ठोस क्रिस्टल जैसे क्वार्ट्ज की घूर्णन-क्षमता से बहुत अधिक है।
इस प्रकार के द्रव क्रिस्टलों में आण्विक अक्ष क्रमवार व्यवस्थित होती हैं तथा अणु परतों में व्यवस्थित रहते हैं जिनमें अक्षों का विन्यास एक परत से दूसरी परत पर नियमित ढंग से स्थानान्तरित होता है। इन्हें कोलेस्टेरिक क्रिस्टल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस अवस्था से गुजरने वाले पदार्थ का ढाँचा कोलेस्टेरॉल के समान होता है।
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चित्र-17 : कोलेस्टेरिक द्रव क्रिस्टल की संरचना।
उदाहरण- कोलेस्टेरिल बेन्जोएट (C6H5COOC22H45) [145°C, आदि।
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