Meiotic Cell Division BSc Zoology Question Answer Notes
Meiotic Cell Division BSc Zoology Question Answer Notes :- In this post all the questions of the second part of zoology are fully answered. This post will provide immense help to all the students of BSc zoology. All Topic of zoology is discussed in detail in this post.
प्रश्न 10 – अर्द्धसूत्री विभाजन कहाँ पाया जाता है? प्रावस्था (प्रोफेज प्रथम) की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करते हुए इसकी उपयोगिता बताइए।
Where does meiotic cell division occurs ? Describe different stages of first prophase and its significance.
अथवा अर्द्धसूत्री कोशा विभाजन की प्रोफेज प्रथम पर टिप्पणी कीजिए।
Write short note on Prophase I of meiosis.
उत्तर –
अर्द्धसत्री विभाजन
(Meiotic Cell Division) Notes
अर्द्धसूत्री विभाजन जनदों (gonads) की जनन कोशिकाओं में होता है। इसमें गुणसूत्रों की संख्या आधी (n) रह जाती है अर्थात् नर व मादा की जनन कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या कायिक कोशिकाओं में पायी जाने वाली संख्या से आधी रह जाती है। शुक्राणु तथा अण्डाणु के संगलन से बने युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या फिर से दुगुनी (2 n) हो जाती हैं।
प्रथम पूर्वावस्था (First Prophase) Notes
अर्द्धसूत्री विभाजन में कोशिका का दो बार विभाजन होता है जिससे विभाजन के फलस्वरूप चार कोशिकाएँ बन जाती हैं। प्रथम विभाजन के फलस्वरूप गुणसूत्र संख्या में न्यूनीकरण होता है, परन्तु गुणसूत्रों का विभाजन नहीं होता। दूसरे विभाजन में गुणसूत्रों के अर्द्धगुणसूत्र पृथक् होते हैं। इसके परिणामस्वरूप गुणसूत्रों की संख्या जो पहले विभाजन में आधी रह गई थी, दूसरे विभाजन में सतत अगुणित (haploid) बनी रहती है। अर्द्धसत्री विभाजन का दो भागों में वर्णन किया जाता है – प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन एवं द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन। अर्द्धसूत्री विभाजन से पूर्व भी अन्तरावस्था होती है जिसमें G1 प्रावस्था, S प्रावस्था तथा G2 प्रावस्था होती है। अर्द्धसूत्री विभाजन में G2 प्रावस्था या तो बहुत छोटी होती है या बिल्कुल नहीं होती। प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें न्यूनकारी विभाजन होता है। द्वितीय विभाजन सूत्री विभाजन के समान होता है। प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन में भी पूर्वावस्था, मध्यावस्था, पश्चावस्था और अन्त्यावस्था होती हैं।
प्रथम पूर्वावस्था की अवस्थाएँ
(Stages of First Prophase) Notes
प्रथम पूर्वावस्था जटिल और अत्यन्त लम्बी अवधी की होती है। इसके अन्तर्गत पाँच अवस्थाएँ होती हैं
- तनुसूत्र अवस्था (Leptotene)
- युग्मपट्ट अवस्था (Zygotene)
- स्थूलसूत्र अवस्था (Pachytene)
- द्विसूत्र अवस्था (Diplotene)
- पारगतिक्रम अवस्था (Diakinesis)
ये सभी अवस्थाएँ एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं।
- तनुसूत्र अवस्था (Leptotene or Leptonema)-अन्तरावस्था के पश्चार यह अर्द्धसूत्री विभाजन की पहली अवस्था है। इस अवस्था में गुणसूत्र धागों के समान लले तथा ढीले रूप से परस्पर गुंथे रहते हैं। इन धागों के ऊपर दानों के समा. वर्णकणिकाएँ (chromomeres) स्थित होती हैं। कीटों जैसे कुछ विशेष जन्तुओं मेंगुणसूत्रों के सिरे तारककेन्द्र के निकट केन्द्रक कला के ऊपर एक बिन्दु पर इकट्ठे हो जाते हैं। इस अवस्था में गुणसूत्रों का द्विगुणन (duplication) होता है।
- युग्मपट्ट अवस्था (Zygotene or Zygonema)-इस अवस्था में समजात chomologous) गुणसूत्रों का युग्मन होता है जिसे सूत्रयुग्मन (synapsis) भी कहते हैं। यह युग्मन जिप के समान होता है और यह गुणसूत्रों के सिरों पर, गुणसूत्र बिन्दु पर या किसी अन्य स्थान पर आरम्भ होता है। युग्मन समजात खण्डों के बीच होता है। युग्मन एकक्षेत्र विशेष में केवल दो गुणसूत्रों के बीच ही होता है।
- स्थूलसूत्र अवस्था (Pachytene or Pachynema)-समजात गुणसूत्रों का युग्मन युग्मपट्ट अवस्था में होने पर इस अवस्था में यह गुणसूत्र छोटे और कुण्डलित हो जाते हैं। अब गुणसूत्र मोटे धागे के समान और संख्या में अगुणित दिखाई पड़ते हैं। दो समजात गुणसूत्र परस्पर सघनता से चिपके रहते हैं। समजात गुणसूत्रों के इन युग्मों को युगली (bivalent) कहते हैं। एक युगली के प्रत्येक गुणसूत्र में दो अर्द्धगुणसूत्र होते हैं जिसके फलस्वरूप एक युगली वास्तव में चार अर्द्धगुणसूत्रों की बनी होती है और चतुष्क (tetrad) कहलाती है। ऐसी अवस्था में अर्द्धगुणसूत्रों के खण्डों का आदान-प्रदान या विनिमय होता है। केन्द्रिक अभी बनी रहती है। केन्द्रिकी संगठनकारी युगली केन्द्रिक से जुड़ी दिखाई दे सकती है।
- द्विसूत्र अवस्था (Diplotene or Diplonema) – इस अवस्था पर छोटे एवं मोटे समजात गुणसूत्र एक-दूसरे से पृथक् होना आरम्भ कर देते हैं। गुणसूत्रों का पृथक् होना गुणसूत्र बिन्दुओं पर से आरम्भ होता है और सिरों की ओर बढ़ता है। इस प्रकार की क्रिया को उपान्तीभवन (terminalization) कहते हैं। अब समजात गुणसूत्र केवल कुछ ही बिन्दुओं पर परस्पर जुड़े रहते हैं। इन सम्पर्क बिन्दुओं को काइऐज्मेटा (chiasmata) कहते हैं। ये बिन्दु आदान-प्रदान या गुणसूत्र खण्डों के विनिमय के स्थान हैं। जैसे-जैसे उपान्तीभवन होता है ये काइऐज्मेटा गुणसूत्रों के सिरों की ओर गति करते हैं। एक बिन्दु विशेष पर आदान-प्रदान में दो समजात युग्मित गुणसूत्रों में से प्रत्येक का एक-एक गुणसूत्र भाग लेता है।
- पारगतिक्रम अवस्था (Diakinesis)-गुणसूत्र इस अवस्था में भी छोटे होते रहते हैं। युगलियाँ और अधिक संकीर्ण अवस्था में होती हैं। केन्द्रिक अब लुप्त हो जाती है।
इन यगलियों को ऐसीटोकासन द्वारा अभिरंजित किया जा सकता है। ये सम्पूर्ण कोशिका समान रूप से बिखरी रहती हैं। अन्ततः काइऐज्मेटा सीमान्त हो जाते हैं और इस अ में गुणसूत्रों को गिना जा सकता है। इस अवस्था पर युगलियाँ केन्द्रकीय आवरण के नि परिधि पर आ जाती हैं। केन्द्रक कला इस अवस्था के अन्त में अदृश्य हो जाती है।
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