Platyhelminthes Nemathelminthes BSc Zoology Notes
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Platyhelminthes Nemathelminthes BSc Zoology
Unit IV
प्रश्न 21 – फैसिओला के सरकेरिया लारवा की संरचना का वर्णन कीजिए।
Describe structure of Cercaria larva of Fasciola.
उत्तर – सरकेरिया फैसिओला हिपैटिका का लारवा है। प्रत्येक रेडियाई में बने 14 से 20 सरकेरिया लारवा जन्म-रन्ध्र (birth pore) से बाहर आकर घोंघे की पाचन ग्रन्थि में पहुँच जाते हैं। आकारिकी में सरकेरिया लारवा बहुत कुछ वयस्क फ्लूक के समान होता है। इसका शरीर अण्डाकार और 0. 25 मिमी से 0. 35 मिमी तक लम्बा होता है तथा इसमें तैरने के लिए एक लम्बी पुच्छ होती है।
इसकी शरीर भित्ति में पक्ष्माभी अधिचर्म के नीचे उपअधिचर्मी पेशीन्यास (subepidermal musculature) का एक महीन स्तर होता है। पेशीन्यास के नीचे उपकला (subepithelium) का निर्माण करने वाली कोशिकाओं का एक स्तर होता है। इसकी क्यूटिकल में पीछे की ओर मुड़े हुए शूल पाए जाते हैं। शरीर भित्ति के नीचे पुटीजनक ग्रन्थि कोशिकाएँ (cystogenous gland cells) होती हैं, जो मेटासरकेरिया के लिए पुटी का स्रावण करती हैं।
वयस्क के समान मुख-चूषक और अधर-चूषक या ऐसीटेबुलम सुनिर्मित होते हैं। सरकेरिया के शरीर में वयस्क जन्तु पाचक, उत्सर्जी तथा जनन तन्त्रों के आद्यावशेष भी होते हैं। मुख एक पेशीय ग्रसनी (pharynx) में खुलता है जिसके बाद ग्रसिका (oesophagus) और आंत्र होती हैं। आंत्र अधर चूषक से आगे दो भुजाओं में बँटी होती हैं। दोनों पार्वीय भागों में ज्वाला कोशिकाओं (flame cells) की एक बड़ी संख्या पायी जाती है जो एक जोड़ी उत्सर्जी नलिकाओं में खुलती हैं।
दोनों उत्सर्जी नलिकाएँ पुच्छ के सामने परस्पर मिलकर एक उत्सर्जी आशय या ब्लैडर (excretory vesicle or bladder) बनाती हैं। ब्लैडर से एक उत्सर्जी वाहिनी निकलकर पुच्छ में बढ़कर दो शाखाओं मे विभाजित हो जाती है और एक जोड़ी वृक्कक रन्ध्रों द्वारा बाहर खुल जाती है। इसके शरीर में जनन कोशिकाओं (germ cells) के समूह भी होते हैं। ये कोशिकाएँ वयस्क के जनन तंत्र के आद्यावशेष माने जाते हैं। सरकेरिया परिपक्व अवस्था प्राप्त करने के पश्चात् घोंघे के ऊतकों से होता हुआ जल में मुक्त हो जाता है। तत्पश्चात्
जलीय पादप अथवा घास से चिपक जाता है। इसकी पूँछ विलुप्त हो जाती है और यह अपने चारों ओर पुटी निर्माण कर मेटासरकेरिया (Metacercaria) में बदल जाता है।
प्रश्न 22 – निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए
(अ) लॉरर्स कैनाल
(ब) फ्लेम कोशिकाएँ।
Write short note on :
(a) Laurer’s canal
(b) Flame cells.
उत्तर – (अ) लॉरर्स कैनाल (Laurer’s canal)-फैसिओला के शरीर में अण्डवाहिनी से जुड़ी एक प्रजनन नलिका (Copulatory tube) होती है। इस मांसल नलिका को लॉरर्स कैनाल अथवा लॉरर्स-स्टाइडिआ कैनाल (Laurer-Stiedia Canal) कहते हैं। प्रजनन काल में यह कैनाल एक पृष्ठ छिद्र के द्वारा शरीर से बाहर खलती है। यह छिद्र एक योनि (Vagina) की भाँति कार्य करता है।
(ब) फ्लेम कोशिकाएँ (Flame cells)-फ्लेम कोशिकाएँ प्राक्नैफ्रीडिया (Protohephridia) होते हैं जो मीसेनकाइमी कोशिकाओं से विकसित होते हैं। ये कोशिकाएँ मीसेनकाइम में एक विशिष्ट संख्या में वितरित रहती हैं।
फ्लेम कोशिका अनियमित आकार की होती है जो अपने आस-पास के क्षेत्र में कूटपादरूपी तन्तुओं का एक जाल बनाती है। इस कोशिका के मध्य में एक गुहा (cavity) उपस्थित होती है जिसमें छोटे रोम (cilia) पाए जाते हैं। प्रत्येक रोम एक आधारी काय से विकसित होता है जो कोशिका के कोशिका द्रव्य में उपस्थित होता है। सभी रोम एक ज्वाला की भाँति प्रतीत होते है। अत: इस कोशिका को ज्वाला कोशिका (Flame cell) कहा जाता है।
प्रश्न 23 – यकृत वर्म में मेहलिस ग्रन्थियों पर टिप्पणी लिखिए।
Write short note on Mehlis glands of Fasciola hepatica.
उत्तर-मेहलिस ग्रन्थियाँ यकृत वर्म के शरीर में अण्डवाहिनी, मध्यवर्ती पीतक वाहिनी तथा गर्भाशय तीनों के जोड़ पर गुच्छे के रूप में उपस्थित रहती हैं। इससे निकलने वाला द्रव गर्भाशय को चिकना बनाने का कार्य करता है जिससे अण्डे आसानी से आगे की ओर सरक सकें तथा शुक्राणु सक्रिय बने रहें।
प्रश्न 24 – टीनिया के परिपक्व खण्ड का सचित्र वर्णन कीजिए।
Describe with diagram of the mature proglottid of Taenia.
उत्तर – टीनिया के परिपक्व खण्ड
(Mature Proglottid of Taenia)
यह वर्गाकार, उभयलिंगी, जननांगों के एक सेट तथा तन्त्रिका तन्त्र से युक्त होता है। इसमें प्रजनन अंग ही मुख्य होते हैं। नर प्रजननं अंगों में पुटक वृषण (follicular testes) शुक्रवाहिकाएँ (vasa efferentia), शुक्र वाहक (vas deferens) और सिरस (cirrus) पाए जाते हैं।
मादा जनन अंगों में संयोजकों द्वारा जुड़ी अण्डाशयिक पालियाँ (ovariar lobes) अण्डवाहिनी (oviduct), अण्डवाहीका (ootype), विटेलेरिया (नगूाततोीगो) और मेहलिस ग्रन्थियाँ (Mehlis glands) हैं। योनि जननिक परिकोष्ठ (genital atrium) से आरम्भ होकर अण्डवाहिका (ootype) में खुलती है। अण्डवाहिका में खुलने से पहले फूलकर यह शुक्रधानी (seminal receptacle) बनाती है। गर्भाशय अण्डवाहिका से निकलकर ऊपर की ओर फैला हुआ है। नर व मादा जनन नलिकाएँ एक जनन छिद्र वाले जननिक कोष्ठ (genital atrium) में खुलती हैं।
उत्सर्जनी नलिका तथा तन्त्रिका रज्जु भी पाश्व्र में उपस्थित होती है।
प्रश्न 25 – टीनिया के परिवर्धन में सिस्टीसर्कस (ब्लैडर वर्म) की रचना का वर्णन कीजिए।
Describe the structure of cysticercus (bladder worm) in the development of Taenia.
उत्तर – टीनिया का सिस्टीसर्कस या ब्लैडर वर्म
(Cysticercus or Bladder worm of Taenia)
यह टीनिया के जीवन-वृत्त में हेक्साकैंथ से उत्पन्न भ्रूण है। इसका निर्माण द्वितीय परपोषी (सूअर) के शरीर में होता है। हुकविहीन हेक्साकैंथ या गोलांकुश परपोषी के ऊतकों से पोषक द्रव का अवशोषण करता हुआ परिमाण में बढ़ता है।
इसके मध्यवर्ती भाग की कोशिकाओं के टूट जाने के कारण इसमें एक केन्द्रीय गहिका दिखाई देने लगती है। धीरे-धीरे यह गुहिका बड़ी होने लगती है और एक तरल से भर जाती है। हकों वाले सिरे के विपरीत अगले सिरे के स्थान की भित्ति मोटी होकर अन्तर्वलित हो जाती है और प्रोस्कोलैक्स की रचना करती है जिसमें चूषक, हुक व रोस्टेलम होते हैं। भ्रूण की इस अवस्था को ब्लैडर वर्म कहते हैं।
ब्लैडर की भित्ती पतली होती है। भित्ति में बाहर की ओर एक बहुकेन्द्रकी जीवद्रव्य की मोटी पर्त क्यूटिकल और अन्दर की ओर जनन पर्त होती है। ब्लैडर में एक तरल भरा रहता है। तरल में अधिकतर परपोषी का रुधिर प्लाज्मा होता है।
एक सिस्टीसर्कस केवल उसी दशा में वयस्क फीताकृमि में परिवर्धित होता है, जब यह मनुष्य के द्वारा अन्तर्गृहीत कर लिया जाता है। सूअर के शरीर में यह कई वर्षों तक निष्क्रिय जीवन व्यतीत करता है तत्पश्चात् यह मृत होकर कैल्सिभूत हो जाता है।
प्रश्न 26 – टीनिया के ग्रेविड प्रोग्लोटिड से आप क्या समझते हैं?
What do you understand by Gravid Proglottid of Taenia ?
उत्तर – टीनिया के ग्रेविड प्रोग्लोटिड
(Gravid Proglottid of Taenia)
शरीर के पुराने तथा अन्त के 150 से 350 देहखण्ड पके हुए या प्रोग्लोटिड कहलाते हैं। यह चौड़ाई की अपेक्षा अधिक लम्बे होते हैं। इनके अन्दर निषेचित अण्डों से भरे शाखित गर्भाशय को छोड़कर शेष सभी जनन अंग ह्रासित हो जाते हैं। यह छोटे-छोटे समूहों में टूटकर परपोषी के मल के साथ बाहर निकलते रहते हैं। अण्डपूर्ण देहखण्डों को त्यागने की प्रक्रिया को प्रमोचन (apolysis) कहते हैं।
प्रश्न 27 – ओन्कोस्फीयर लारवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Write short note on Onchosphere larva.
उत्तर – टीनिया सोलियम में युग्मनज (zygote) का विदलन मादा के गर्भाशय में प्रारम्भ हो जाता है। सर्वप्रथम मोरूला प्रावस्था का निर्माण होता है जिसमें पिछले सिरे पर तीन जोड़ी काइटिनी हुक विकसित होते हैं।
इन हुकों का निर्माण ओन्कोब्लास्ट नामक विभेदी कोशिकाओं से स्रावित पदार्थ. से होता है। 6 हुक वाले इस भ्रूण को हैक्साकैन्थ (hexacanth) कहते हैं। इस हैक्साकैन्थ के चारों ओर दो झिल्लियाँ पायी जाती हैं। झिल्लियों से आवरित हैक्साकैन्थ ओन्कोस्फीयर कहलाता है।
प्रश्न 28 – एन्साइलोस्टोमा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Write short note on Ancylostoma.
उत्तर – एन्साइलोस्टोमा सामान्य हुकवर्म हैं जो निमेटोडा संघ का प्राणी है। यह मनुष्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है। यूरोप तथा एशिया में इस परजीवी का संक्रमण अधिक है। इसके वयस्क कृमि मनुष्य की आंत्र में परजीवी की भाँति उपस्थित होते हैं।
आंत्र में ये आंत्रीय भित्ति के स्तर से रुधिर, श्लेष्म कला के टुकड़ों, ऊतक द्रव, लिम्फ आदि का शोषण करते हैं। इनकी संक्रमणकारी अवस्थाएँ विष्ठा द्वारा मिट्टी में आ जाती हैं और त्वचा के द्वारा मानव शरीर से भरे
में प्रवेश करती हैं।
इनके नर में हुक के आकार की रचना पायी जाती है जिसके कारण इन कृमियों को हुककृमि कहा जाता है। संक्रमण के पश्चात् ये संक्रमणकारी लारवा प्रावस्थाएँ रुधिर वाहिनियों में प्रवेश कर जाती हैं तथा रुधिर के द्वारा हृदय से होती हुई फुफ्फुस (lungs) में प्रवेश कर जाती हैं
तथा श्वासनलियों से ग्रसनी में तत्पश्चात् छोटी आंत्र में पहुँचकर आंत्र के श्लेष्म स्तर से चिपक जाती हैं तथा दो त्वक्पतनों के पश्चात् वयस्क में परिवर्तित हो जाती हैं। वयस्क नर तथा मादा मैथुन करते हैं तथा मादा निषेचित अण्डे देती है जो मनुष्य के मल के साथ शरीर से बाहर आ जाते हैं।
प्रश्न 29 – रहैब्डिटॉइड लारवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Write short note on Rhabditoid larva.
उत्तर – गोल कृमियों में विदलन के पश्चात् एककोशिकीय युग्मनज एक बहुकोशिकीय ब्लास्टुला में परिवर्तित हो जाता है। यह ब्लास्टुला परिवृद्धि (epiboly) तथा अन्त:वृद्धि (emboly) के पश्चात् गैस्ट्रला में रूपान्तरित हो जाती है। गैस्ट्रला अवस्था कुछ समय पश्चात् एक किशोर लारवा बनाती है जिसमें आहार नाल, उत्सर्जी तन्त्र तथा तन्त्रिका तन्त्र का विकास हा जाता है। यह किशोर लारवा रहैब्डिटिस नामक गोलकृमि के समान प्रतीत होता है। इसलिए इसे रहैब्डिटॉइड लारवा कहते हैं।
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