Zoology Notes History Of Aurelia

Zoology Notes History Of Aurelia

 

Zoology Notes History Of Aurelia :- This Post is very Use full For All Student of Zoology 1st Year in this post you will find all the information related to Zoology 1st year and important facts about Zoology have been discussed in this post.

 


प्रश्न 7 – ऑरीलिया के जीवन-वृत्त का वर्णन कीजिए।

Describe the life history of Aurelia. 

अथवा ऑरीलिया की संरचना एवं जीवन-चक्र का वर्णन कीजिए।

Describe the structure and life history of Aurelia. 

अथवा ऑरीलिया के साइफीस्टोमा लारवा पर टिप्पणी लिखिए।

Write note on Scyphistoma larva of Aurelia.

उत्तर ऑरीलिया एकलिंगी प्राणी (dioecious) है। इनमें लैंगिक द्विरूपता (Sexual dimorphism) नहीं होती है।

जननांग (Sex organs)-वृषण तथा अण्डाशय प्रत्येक मेड्यूसा में आमाशय परिधि के फर्श पर स्थित घोड़े की नाल के आकार की चार जनन ग्रन्थियाँ (प्रत्येक जठर कोष्ठ में एक) होती हैं। परिपक्व शुक्राणु तथा अण्डाणु जठरवाही गुहा में आकर शरीर से बाहर जाने वाली जल-धारा के साथ मुख से होकर जल में आ जाते हैं। अण्डाणु मुख भुजाओं की झालर में ठहर जाते हैं।

निषेचन (Fertilization) – अण्डाणु का निषेचन मुख या मुख भुजाओं की झालर में | होता है। निषेचन क्रिया आन्तरिक या बाह्य होती है।

प्लैनुला का बनना

(Formation of Planula) Notes

मुख भुजाओं की झालरें अस्थायी जनन प्रकोष्ठों (brooding chambers) का काय करती हैं। यहाँ पर प्रत्येक निषेचित अण्डे या युग्मनज (zygote) का प्रारम्भिक विकास होता है। जिससे पक्ष्माभित लारवा बन जाता है जिसे प्लैनुला लारवा कहते हैं।

पहले युग्मनज में होलोब्लास्टिक और समान विखण्डन होता है जिससे एक ठोस गेंद की भाँति रचना मोरूला बन जाता है। मोरूला शीघ्र ही एक स्तर वाले ब्लास्टुला में बदल जाता है जिसके अन्दर ब्लास्टोसील गुहिका होती है जिसमें द्रव भरा होता है।

ब्लास्टुला में अन्तरवलन (invagination) होने से दो स्तरों वाला गैस्टुला का विकास होता है। इसका बाहरी स्तर एक्टोडर्म तथा भीतरी स्तर एण्डोडर्म कहलाता है। गैस्टुला की एण्डोडर्म से आस्तरित गुहा आँतर गुहिका (enteric cavity) कहलाती हैं। इसका ब्लास्टोपोर पूरी तरह से बन्द नहीं होता। अब भ्रूण लम्बा हो जाता है, बाहरी एक्टोडर्म कोशिकाओं में सीलिया बन जाता है, ब्लास्टोपोर बन्द हो जाता है और प्लैनुला लारवा बन जाता है। ये लारवा मादा की मुख भुजाओं पर पुंज में सटे दिखाई पड़ते हैं।

साइफीस्टोमा का बनना

(Formation of Scyphistoma)

Study Notes

प्लैनुला लारवा बाहर आकर कुछ समय तक तैरते हुए स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करता है तथा बाद में यह अपने चपटे अपमुख सिरे से किसी पत्थर या समुद्री पौधे से चिपक जाता है। अब सीलिया समाप्त हो जाते हैं और लारवा के स्वतन्त्र दूरस्थ सिरे पर, जहाँ पहले ब्लास्टोपोर बन्द हुआ था, मुख बन जाता है। इसके पश्चात् लारवा लम्बा हो जाता है और फिर लगभग 5 मिमी लम्बा हाइड्रा के समान पॉलिप में कायान्तरित हो जाता है। इसका समीपस्थ भाग सँकरा होकर एक वृन्त की भाँति बन जाता है। यह अपने चिपचिपे आधारी बिम्ब (basal disc) द्वारा आधार तल पर चिपक जाता है। अब मुख के चारों ओर स्पर्शकों (tentacles) का मुकुलन होता है जिनसे 16 लम्बे और पतले स्पर्शक बनते हैं। मख वर्गाकार हो जाता है और इसके किनारे लम्बे होकर एक छोटा मैनुब्रियम बना लेते हैं। इस अवस्था में लारवा हाइड्रा के समान दिखाई देने लगता है और हाइड्राट्यूबा या शिशु साइफीस्टोमा कहलाता है।

History Of Aurelia
History Of Aurelia

आंतर गुहिका (enteric cavity) एण्डोडर्म चार अन्तरारीय (interradial) अनुदैर्घ्य जठर कटकों (gastric ridges) के रूप में उभर आती है जो साइफोजोआ का विशिष्ट लक्षण है और जिनके द्वारा आन्तर गुहा चार-चार कोष्ठों में विभक्त हो जाती है। इसी के साथ मुख और स्पर्शकों के बीच की एक्टोडर्म अन्तरवलित होकर चार अन्तरारीय कीप समान गड्ढे बनाती है जिन्हें पटीय कीप (septal funnels) कहते हैं जो जठर कटकों के अन्दर समाए रहते हैं।

इस अवस्था में साइफीस्टोमा अशन करता हुआ वृद्धि करके लगभग 12 मिमी लम्बा हो जाता है। यह कई महीनों तक इसी अवस्था में रह सकता है। कभी-कभी यह पार्श्व मकलन द्धारा या क्षैतिज विसी स्टोलन बनाकर गुणन की क्रिया करता है। स्टोलन्स के मुकुलन द्वारा नयी हाइड्राट्यूबों का जन्म होता है। अन्त में ये हाइड्राट्यूबा मुकुलन द्वारा हाइड्रा के समान अपने पितृ जन्तु से अलग हो जाते हैं।

एफाइरियों का बनना या परशृंखलन

(Formation of Ephyrae or Strobilation)

Study Notes

हेमन्त और शरद ऋतु में साइफीस्टोमा के मुख सिरे में मुकुलन की एक विशेष प्रक्रिया या अनुप्रस्थ विखण्डन होता है जिसे स्ट्रॉबिलेशन कहते हैं।

इसके शरीर के दूरस्थ सिरे पर वलय के समान अनुप्रस्थ खाँचों की एक श्रृंखला बन जाती है जो धीरे-धीरे गहरी होती जाती है। अब साइफीस्टोमा छोटी-छोटी एक के ऊपर एक रखी प्लेटों या बिम्बों का स्तम्भ-सा दिखाई देता है। इस अवस्था में खण्ड युक्त साइफीस्टोमा को स्ट्रॉबिल और इसके प्रत्येक खण्ड को एफाइस लारवा कहते हैं। सभी एंफाइरी या एफाइरुली एक-दूसरे के साथ पेशियों से युक्त ऊतक के रेशों द्वारा जुड़े रहते हैं। जब यह एफाइरी वृद्धि कर जाती हैं तो इनके पेशीय धागे झटके के साथ सिकुड़कर स्थान-स्थान पर टूट जाते हैं। अतः पितृ स्ट्रॉबिला से दूरस्थ एफाइरी एक-एक करके पृथक् होकर उलट जाती हैं और छोटी-छोटी मेड्यूसी या जेली फिश की भाँति तैरने लगती है। एक स्ट्रीबिलेशन से लगभग 12 एफाइरी बनते हैं।

History Of Aurelia
History Of Aurelia

एफाइरी के अलग हो जाने के बाद साइफीस्टोमा के आधारी अविखण्डित भाग में नये स्पर्शक बन जाते हैं और यह एक पॉलिप या हाइड्राट्यूबा की भाँति कई वर्षों तक जीवित रहता है और प्रतिवर्ष ग्रीष्मकाल में अशन व वृद्धि करके मुकुलन द्वारा गुणन करता हुआ जा स्ट्रॉबिलेशन एफाइरी उत्पन्न करता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में एक पूर्ण साइफीस्टोमा बिना एफाइरी बनाए वयस्क ऑरीलिया में कायान्तरित हो जाता है।

एफाइरा (Ephyra) Notes

एक नया मुक्त एफाइरा लगभग 1 मिमी व्यास का होता है। इसकी सममिति चतुर्खण्डीय Primerous) होती है। इसके छत्र का तट आठ bifid lobes या भुजाओं में बँट जाने के कारण खाँचदार होता है और ये आठ गहरी विदरों द्वारा एक-दूसरे से पृथक् रहती हैं। प्रत्येक पाली (lobe) का दूरस्थ सिरा दो भागों में चिरा रहता है जिससे एक जोड़ी प्रारम्भिक लैपेट्स बन जाते हैं। इन पल्लवाभी (lappets) के बीच में एक छोटा अवकाश होता है जिसमें एक स्पर्शक पाया जाता है या टेन्टाकुलोसिस्ट या रोपैलियम (rhopallium) बनाता है। एफाइरा में साइफीस्टोमा के आमाशय का एक छोटा भाग जठर कटकों (gastric ridges) में होता है। बहि:छत्रीय सतह की ओर से आमाशय बन्द हो जाता है। किन्तु अवछत्रीय सतह की ओर खुला रहता है। आमाशय के किनारे वृद्धि करके एक छोटे मैनुब्रियम का निर्माण करते हैं जिसके शीर्ष पर एक चतुर्भुजीय मुख होता है। विस्तृत आंतर गुहिका आठों भुजाओं के अन्दर बढ़कर शाखित प्रार एवं अन्तरारीय नालों का रूप ले लेती है। बाद में अभ्यर नालें भी बन जाती हैं। जठर कटकों . (gastric ridges) या mesenteries के स्थान पर जठर तन्तु (gastric filaments) बन जाते हैं।

कायान्तरण (Metamorphosis)-एफाइरी समुद्री जल में तैरते हुए सूक्ष्म जीवों को खाता है। जैसे-जैसे इसमें वृद्धि होती है इसकी मीसोग्लिया जठरवाही (gastrovascular) नालों को छोड़कर शेष सब भागों के गैस्ट्रोडर्मिस के दोनों स्तर परस्पर जुड़कर एक ठोस पटलिका बना लेती है जिसे गैस्ट्रोडर्मल पटलिका (gastrodermal lamellae) कहते हैं। आठ अरों वाले एफाइरा का छत्र धीरे-धीरे वयस्क मेड्यूसा की भाँति वृत्ताकार प्लेट के समान हो जाता है। जैसे ही इसमें चार ओरल भुजाओं तथा मार्जिनल स्पर्शकों का निर्माण होता है. यह वयस्क ऑरीलिया बन जाता है।

 


Follow me at social plate Form

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top