What Semiconductor Physics Notes

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What Semiconductor Physics Notes:-Transistor biasing circuits base bias, emitter bias, and voltage divider .bias, D.C. load line. Basic A.C. equivalent circuits, low-frequency model, small-signal amplifiers, common emitter amplifier, common collector amplifiers, and common base amplifiers, current and voltage gain, R.C. coupled amplifier, gain, frequency response, the equivalent circuit at low medium and high frequencies, feedback principles.

खण्ड-

प्रश्न 12. (अ) अर्द्धचालक क्या है? एक p-n सन्धि डायोड की कार्य-विधि का वर्णन कीजिए। सन्धि डायोड में धारा के प्रवाह की विवेचना कीजिए तथा सन्धि डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र खींचिए। 

What is semiconductor? Describe the working of a p-n junction diode. Analyse current flow in junction diode and draw its characteristics curve.

(ब) आन्तर अर्द्धचालको तथा बाह्य अर्द्धचालकों में विभेद कीजिए। 

istinguish between intrinsic and extrinsic semiconductors. 

 

 

उत्तर : (अ) अर्द्धचालक (Semiconductor)-अर्द्धचालक एक ऐसा ठोस है जिसकी विद्यत चालकता धातओं की अति उच्च चालकता तथा अचालकों की अति निम्न चालकता के बीच होती है। सबसे अधिक सामान्य रूप से ज्ञात अर्द्धचालक सिलिकन तथा जर्मेनियम हैं।

 

सिलिकन और जर्मेनियम अपने प्राकृतिक रूप में निज अर्द्धचालक कहलाते हैं। जब किसी शुद्ध अर्द्धचालक में अपद्रव्य की थोड़ी-सी मात्रा मिला दी जाती है तो अर्द्धचालक का चालकता बहुत अधिक बढ़ जाती है। ऐसे अर्द्धचालकों को बाह्य अर्द्धचालक कहते है। n-प्रकार तथा p-प्रकार के अर्द्धचालक वास्तव में बाह्य अर्द्धचालक हैं।

 

किसी n-प्रकार के अर्द्धचालक में स्वतन्त्र रूप से घूमने वाले इलेक्ट्रॉन (electrons) होते हैं तथा उतनी ही संख्या में निश्चित दाता आयन होते हैं, जो कि धनावेशित होते हैं, जबकि p-प्रकार के अर्द्धचालक में कोटर (holes) होते हैं तथा उतनी ही संख्या में ऋणावेशित ग्राही आयन रहते हैं। किसी n-प्रकार या p-प्रकार के अर्द्धचालक में पूरा पदार्थ विद्युत-उदासीन होता है। p-प्रकार के अर्द्धचालक में कोटरों का विचरण n-प्रकार के अर्द्धचालक में इलेक्ट्रॉनों के विचरण के सापेक्ष कम होता है।

इस प्रकार के सन्धि डायोड में एक p-type ayee n-type p-प्रकार के क्रिस्टल को एक विशेष विधि द्वारा n-प्रकार के क्रिस्टल से इस प्रकार जोड़ा जाता है कि वे मिलकर एक सतत क्रिस्टल संरचना गठित कर लें।दोनों से मिलकर बनी सन्धि को p-n सन्धि कहते हैं, जैसा कि चित्र-39 में दिखाई देता है।

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जैसे ही सन्धि बनकर तैयार होती है, ऊष्मीय विक्षोभ के कारण आवेश वाहकों का सन्धि के

आर-पार विसरण तुरन्त प्रारम्भ हो जाता है। n-क्षेत्र से कुछ इलेक्ट्रॉन p-क्षेत्र में विसरित होते हैं तथा p-क्षेत्र के कुछ कोटर n-क्षेत्र में विसरण के द्वारा पहुँच जाते हैं। विसरण के पश्चात् ये आवेश अपने-अपने प्रतिरूप (counter part) से मिलकर एक-दूसरे को विद्युत-उदासीन कर देते हैं। इस प्रकार सन्धि के समीप n-क्षेत्र में धनात्मक आवेशित दाताओं (donors) का आधिक्य होता है तथा p-क्षेत्र में ऋणात्मक आवेशित ग्राहियों (acceptors) का आधिक्य हो जाता है। इसके कारण सन्धि पर एक विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप एक आन्तरिक विद्युत क्षेत्र E1 कार्य करने लगता है जिसकी दिशा n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर होती है। यह विद्युत क्षेत्र कुछ ही समय में इतना बढ़ जाता है कि इससे आवेश वाहकों का और आगे विसरण रुक जाता है। सन्धि में दोनों तरफ एक पर्त बन जाती है, जो गतिशील आवेश वाहकों से स्वतन्त्र हो जाती है। इस पर्त को अवक्षय पर्त (depletion layer) कहते हैं। इस अवक्षय पर्त पर लगने वाला विभवान्तर विभव प्राचीर (potential barrier) कहलाता है। यह सन्धि के ताप के अनसार 0.1 से 0.5 वोल्ट तक हो सकता है।

 

सन्धि डायोड में धारा का प्रवाह (Flow of Current in Junction Diod चित्र-40 (a) में दर्शाए अनुसार बिना किसी बाह्य बैटरी के सन्धि डायोड में कोई विना प्रवाहित नहीं होती है।

 

अग्र अभिनति (Forward Bias)-जब बाह्य बैटरी को इस प्रकार जोड़ा जाता और इसका धनात्मक सिरा सन्धि डायोड के p-क्षेत्र से और ऋणात्मक सिरा n-क्षेत्र से सम्बद्ध होनी बाह्य विद्युत क्षेत्र E की दिशा p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर होती है। इससे अल्प आन्तरिक विद्यत क्षेत्र E; उदासीन हो जाता है तथा कोटर p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर बाह्य विद्युत क्षेत्र E की विपरीत दिशा में तथा इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर बाह्य विद्युत क्षेत्र की विपरीत दिशा में चलते हैं। इस प्रकार एक विद्युत धारा स्थापित हो जाती है, जो बाह्य आरोपित विभवान्तर बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है। इस स्थिति में सन्धि को ‘अग्र अभिनति’ में कहा जाता है [चित्र-40 (b)]।

 

उत्क्रम अभिनति (Reverse Bias)-यदि बाह्य बैटरी को इस प्रकार जोड़ा जाए कि इसका धनात्मक सिरा n-क्षेत्र से तथा ऋणात्मक सिरा p-क्षेत्र से जुड़े तो बाह्यं विद्युत क्षेत्र की दिशा-n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर होती है। चित्र-40 (6) में दर्शाए अनुसार बाह्य आरोपित बाह्य क्षेत्र की दिशा वही होती है, जो आन्तरिक विद्युत क्षेत्र की है। फलस्वरूप बाह्य विद्युत क्षेत्र E, आन्तरिक विद्युत क्षेत्र Ei का मान बढ़ाने में सहायक होता है। इस स्थिति में p-क्षेत्र में कोटर तथा n-क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन सन्धि से दूर हटाए जाते हैं जिससे उनकी गति रुक जाती है और सन्धि को इस स्थिति में ‘उत्क्रम अभिनति’ में कहा जाता है।

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जब सन्धि उत्क्रम अभिनति में होती है तो एक बहुत अल्प उत्क्रमित धारा इसमें होकर करती है। इसका कारण यह है कि p तथा n-क्षेत्रों (दोनों) में कुछ ऊष्मीय उत्पादित इलेक्ट्रान तथा कोटर होते हैं। p-क्षेत्र में उपस्थित कुछ इलेक्ट्रॉन तथा n-क्षेत्र में उपस्थित कुछ कोटर, अल्पसंख्यक वाहक (minority carriers) कहलाते हैं। सन्धि को पार करने के लिए उत्क्रम आभनात बहुसख्यक वाहका (majority carriers) का नि अल्पसंख्यक वाहका का सहायता करता है, अत: एक बहुत अल्प उत्स बहती है।

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सन्धि डायोड का अभिलाक्षणिक (V-i) वक्र [Characteristics (V-i) curve of junction diode]-सन्धि डायोड का V.i अभिलाक्षणिक वक्र चित्र-41 में दिखाया गया है। अग्र अभिनति बढ़ने के साथ विद्युत धारा लगभग चरघातांकी (exponentially) रूप से तेजी से बढ़ती है। उत्क्रम अभिनति के साथ काफी लम्बे परास के लिए (उत्क्रमित) धारा बहुत अल्प रहती है तथा अभिनति बढ़ने के साथ बहुत कम बढ़ती है।

 

यदि उत्क्रम अभिनति बहुत उच्च कर दी जाए,. तब सहसंयोजक बन्ध (covalent bonds) सन्धि के समीप टूट जाते हैं तथा बहुत बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉन-कोटर युग्म निकलते हैं जिसके कारण उत्क्रम धारा एकसाथ अपेक्षतया अधिक मान तक बढ़ती है। इस घटना को ऐवेलांश भंजन (avalanche breakdown) कहते हैं और इससे उत्पन्न अत्यधिक ऊष्मा के कारण सन्धि नष्ट हो सकती है।

 

(ब) आन्तर अर्द्धचालक तथा बाह्य अर्द्धचालक में अन्तर (Differences between Intrinsic Semiconductors and Extrinsic Semiconductors)

 

(i) आन्तर अर्द्धचालक (Intrinsic Semiconductors)-एक ‘शुद्ध’ अर्द्धचालक (जिसमें कोई अपद्रव्य न हो) ‘आन्तर’ (intrinsic) अर्द्धचालक कहलाता है। इस प्रकार, शुद्ध जर्मेनियम तथा शुद्ध सिलिकन अपनी प्राकृतिक अवस्था में आन्तर अर्द्धचालक हैं तथा उनकी वैद्युत चालकता (जो कि ऊष्मीय उत्तेजन के कारण है) ‘आन्तर चालकता’ (intrinsic conductivity) है, परन्तु आन्तर चालकता इतनी कम होती है कि उसका कोई व्यावहारिक अनुप्रयोग नहीं है।

(ii) बाह्य अर्द्धचालक (Extrinsic Semiconductors)-यदि किसी शुद्ध अर्द्धचालक में बहुत थोड़ा-सा पंचसंयोजक (pentavalent) अथवा त्रिसंयोज

क (trivalent) अपद्रव्य (impurity) मिश्रित कर दें तो उसकी चालकता काफी बढ़ जाती है। इस प्रकार के अशुद्ध अर्द्धचालक ‘बाह्य’ (extrinsic) अथवा ‘अपद्रव्य’ अर्द्धचालक कहलाते ह तथा इनकी चालकता ‘बाह्य चालकता’ (extrinsic conductivity) कहलाती है।

 

अपद्रव्य मिश्रित करने की क्रिया को ‘अपमिश्रण’ (doping) कहते हैं। अतः अर्द्धचालक अपमिश्रित (doped) अर्द्धचालक भी कहलाते हैं। n-टाइप तथा मटा अर्द्धचालक अपमिश्रित (बाह्य) अर्द्धचालक होते हैं।

 


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