What are Multistage Amplifier Notes

What are Multistage Amplifier Notes

What are Multistage Amplifier Notes:-Input and output impedance, transistor as an oscillator, general discussion, and theory of Hartley oscillator only. Elements of transmission and reception, basic principles of amplitude modulation and demodulation. Principle and design of linear multimeters and their application, cathode ray oscilloscope, and its simple applications.

प्रश्न 25. बहुचरण प्रवर्धक क्या होते हैं? परिपथ आरेख देते हुए R-C युग्मित ट्रांजिस्टर प्रवर्धन की कार्य-विधि समझाइए। प्रवर्धक का आवृत्ति अनुक्रिया वक्र खाचिए तथा समझाइए कि निम्न तथा उच्च आवृत्तियों पर प्रवर्धन क्यों घट जाता है, जबकि मध्यम आवृत्ति परिसर में नियत रहता है

What are multistage amplifiers? Give the circuit diagram and explain the working of the R-C coupled transistor amplifier. Draw the frequency response curve of the amplifier and explain why does the amplifier gain falls off at low and high frequencies, but remains constant over middle-frequency range?

 

अथवा

 

R-C युग्मित प्रवर्धक का परिपथ आरेख बनाइए तथा कार्यविधि समझाइए। आवृत्ति अनुक्रिया वक्र खींचिए तथा समझाइए। 

Give the circuit diagram and explain the working of the R-C coupled amplifier. Draw and explain the frequency response curve.

 

उत्तर : बहुचरण अथवा सोपानी प्रवर्धक (Multistage or Cascade Amplifier)-एक अकेले ट्रांजिस्टर प्रवर्धक का वोल्टेज प्रवर्धन सीमित होता है। जब अधिक वोल्टेज प्रवर्धन की आवश्यकता होती है तब दो या दो से अधिक प्रवर्धक सोपानी क्रम में (in cascade) लगाए जाते हैं, अर्थात् पहले चरण से निर्गत वोल्टेज दूसरे चरण में निवेशी वोल्टेज के रूप में प्रयुक्त होता है, तथा यही क्रिया आगे बढ़ायी जाती है, तब सम्पूर्ण वोल्टेज प्रवर्धन विभिन्न चरणों के वोल्टेज प्रवर्धनों की गुणा के बराबर होता है। सोपानी प्रवर्धकों का यह प्रबन्ध बहुचरण प्रवर्धक (multistage amplifier) कहलाता है।

 

एक चरण से निर्गत वोल्टेज को अगले चरण पर निवेशी वोल्टेज के रूप में स्थानान्तरित करने के प्रबन्ध को युग्मन (coupling) कहते हैं। व्यवहार में युग्मन की कई विधियाँ हैं। ये हैं—प्रत्यक्ष युग्मन (direct coupling), प्रतिरोध धारिता युग्मन (resistance capacitance or R-C impedance coupling) तथा ट्रांसफॉर्मर युग्मन (tranformer coupling)।

 

R-C युग्मित प्रवर्धक (R-C Coupled Amplifier)-युग्मन की विभिन्न विधियों में प्रतिरोध धारिता (R-C) युग्मन सबसे अधिक प्रचलित है क्योंकि यह सबसे सस्ता है तथा आवृत्तियों के बड़े परास में उत्तम तद्रूपता (fidelity) देता है।

 

एक द्वितीय चरण प्रवर्धक (two stage amplifier) का सामान्य परिपथ चित्र-65 में दिखाया गया है। इसमें दो एकल चरण (single stage) उभयनिष्ठ उत्सर्जक ट्रांजिस्टर पवर्धक हैं जो कि विभव विभाजक विधि द्वारा बायसित (biased) हैं। प्रथम चरण (first stage) ट्रांजिस्टर.का संग्राहक प्रतिरोध RC युग्मक संधारित्र CC तथा द्वितीय चरण (sedy stage) ट्रांजिस्टर का बायसिंग प्रतिरोधक R1 मिलकर युग्मक नेटवर्क (countine network) बनाते हैं। इसलिए इसका नाम R-C युग्मित प्रवर्धक है।

 

प्रत्येक चरण में प्रतिरोधक R1 , R2 , तथा RE में बायसिंग तथा स्थायीकरण (stabilization) परिपथ बनता है। उत्सर्जक प्रतिरोधक RE के समान्तर में लगा उपमार्गी (by pass) संधारित्र CE प्रवर्धित सिगनल को निम्न प्रतिघात (low reactance) पथ प्रदान करता है। यदि CE नहीं होगा तो प्रवर्धित सिगनल प्रतिरोधक RE में प्रवाहित होकर इसमें विभवपतन उत्पन्न कर देगा जिससे कि निर्गत वोल्टेज (output voltage) घट जाएगा। युग्मक संधारित्र (coupling capacitor) CC a.c. सिगनल को जाने देता है, परन्तु d.c. अवयव को रोक देता है। इससे दोनों चरणों के बीच d.c. व्यवधान तथा इसके फलस्वरूप कार्यकारी-बिन्दु Q का विस्थापन नहीं हो पाता।

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परिपथ प्रचालन (Circuit Operation)-प्रत्यावर्ती (a.c.) निवेशी वोल्टेज सिगनल Vin, को निवेशी संधारित्र Cin के द्वारा प्रथम चरण ट्रांजिस्टर T1 के आधार B पर लगाते हैं। T1 द्वारा प्रवर्धित निर्गत वोल्टेज सिगनल, इसके संग्राहक प्रतिरोधक RC के सिरों के बीच प्राप्त होता है तथा निर्गत वोल्टेज की कला निवेशी वोल्टेज के सापेक्ष उत्क्रमित होती है। यह निर्गत वोल्टेज सिगनल युग्मक संधारित्र CC के माध्यम से द्वितीय चरण (second stage) ट्रांजिस्टर T2 के आधार B पर पहुँच जाता है, तब यह T2 द्वारा पुनः प्रवर्धित होकर T2 के संग्राहक प्रतिरोधक RC के सिरों के बीच, पुनः कला-उत्क्रमण के साथ प्राप्त होता है। T2 से निर्गत वोल्टेज सिगनल द्वितीय चरण के युग्मक संधारित्र CC के माध्यम से पारगत होकर लोड प्रतिरोध-RL पर पहुँच जाता है। RL के सिरों के बीच उपलब्ध निर्गत सिगनलं Vout, निवेशी सिगनल Vin की द्वि-प्रवर्धित (twice amplified) प्रतिकृति है। यह निवेशी सिगनल Vin की ही कला में है क्योंकि इसकी कला दो बार उत्क्रमित हुई है।

 

कुल वोल्टेज लाभ (Overall Voltage Gain)-द्विचरण प्रवर्धक से प्राप्त कुल वोल्टेज लाभ दोनों चरणों के अलग-अलग लाभों के गुणनफल से कुछ कम होता है। इसका कारण यह है कि प्रथम चरण का प्रभावी लोड प्रतिरोध, द्वितीय चरण के निवेशी प्रतिरोध के पावी प्रभाव (shunting effect) के कारण कुछ घट जाता है। इससे प्रथम चरण का वोल्टेज लाभ कम हो जाता है।

 

R-C युग्मित प्रवर्धक की आवृत्ति अनुक्रिया (Frequency Response of R-C Coupled Amplifier)-प्रवर्धक द्वारा प्राप्त वोल्टेज प्रवर्धन निवेशी वोल्टेज की आवृत्ति पर निर्भर करता है। वोल्टेज प्रवर्धन व आवृत्ति के बीच ग्राफ चित्र-66 में दिखाया गया है। यह एक ) वक्र है जिसे प्रवर्धक का आवृत्ति अनुक्रिया वक्र (frequency response curve) कहते हैं। इस वक्र से यह पता चलता है कि मध्य आवृत्ति परिसर (middle frequency range) में प्रवर्धन स्थायी बना रहता है, परन्तु निम्न (50 Hz से नीचे) व उच्च (20 kHz से ऊपर) दोनों आवृत्तियों पर इसका मान घटने लगता है। वोल्टेज प्रवर्धन में होने वाले इस पतन की व्याख्या निम्नवत् की जा सकती है

 

  1. निम्न आवृत्तियों पर पतन (Fall at Low Frequencies)-50 Hz से नीची आवृत्तियों पर युग्मक संधारित्र CC का प्रतिघात (= 1/2 piefC) काफी ऊँचा हो जाता है जिससे कि यह वोल्टेज सिगनल के केवल कुछ भाग को ही प्रथम चरण से द्वितीय चरण में जाने देता है। इसके अतिरिक्त उपमार्गी संधारित्र CE भी अपने उच्च प्रतिघात (निम्न आवृत्तियों पर) के कारण उत्सर्जक प्रतिरोधक RE को पूर्णत: पार्श्वपथित (shunt) नहीं करता है।
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इस कारण प्रतिरोधक RE में धारा प्रवाहित होती है तथा इसके सिरों के बीच a.c. वोल्टेज स्थापित हो जाता है। इन दो कारणों से निम्न आवृत्तियों पर प्रवर्धक का वोल्टेज लाभ घट जाता है।

 

  1. उच्च आवृत्तियों पर पतन (Fall at High Frequencies)-20 kHz से ऊँची आवृत्तियों पर युग्मक संधारित्र CC का प्रतिघात इतना कम हो जाता है कि यह लघु पथ short circuit) की भांति कार्य करने लगता है। इससे दूसरे चरण का लोड प्रभाव (loading offect) बढ़ जाता है, फलस्वरूप वोल्टेज लाभ घट जाता है। इसके अतिरिक्त उच्च आवत्तियोंपर टांजिस्टर की उत्सर्जक-आधार संधि का धारितीय प्रतिघात (capacitis तथा संयोजक तारों की अवांछित (stray) धारिता कम होती है। इससे आधार धारा जिस कारण धारा प्रवर्धन गुणक B घट जाता है फलस्वरूप वोल्टेज लाभ घट जाता है |

 

  1. मध्यम आवृत्तियों पर स्थायित्व (Constancy at Middle Frequen 50 Hz तथा 20 kHz के बीच, जो कि श्रव्य-आवृत्ति परिसर हैं, वोल्टेज लाभ लग रहता है। इस परिसर में आवृत्ति के बढ़ने पर युग्मक संधारित्र CC का प्रतिघात घटना वोल्टेज लाभ बढ़ाने का प्रयत्न करता है। परन्तु घटा हुआ प्रतिघात दूसरे चरण का लोड (loading effect) भी बढ़ा देता है जो वोल्टेज लाभ घटाने का प्रयत्न करता है। ये दोप एक-दूसरे को लगभग निरस्त कर देते हैं तथा वोल्टेज लाभ नियत बना रहता है।

 

अनुप्रयोग (Applications)-R-C युग्मित प्रवर्धक काफी बड़े आवृत्ति परियार उच्च कोटि की श्रव्य तद्रूपता देते हैं। अत: वे वोल्टेज प्रवर्धक के रूप में जनता के समक्ष भाषण देने के लिए प्रयुक्त युक्ति के प्रारम्भिक चरणों में (in the initial stages of public address systems) प्रयुक्त होते हैं, परन्तु इन्हें निम्न प्रतिबाधा प्रतितुलन के कारण अन्तिम चरण में नहीं लगाया जाता।


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