Sporophyte Of Pogonatum BSc Botany Notes
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प्रश्न 11 – पोगोनेटम के बीजाणुउद्भिद् का वर्णन कीजिए।
उत्तर –
पोगोनेटम का बीजाणुउद्भिद्
(Sporophyte of Pogonatum) Notes
परिपक्व स्पोरोफाइट अथवा स्पोरोगोनियम फुट, सीटा व कैप्सूल में विभेदित होता है।
फुट ( Foot पाद)-पाद लम्बा-पतला होता है तथा यह मादा गैमीटोफाइट में धंसा रहता है। यह वहाँ से पोषक तत्त्वों व जल का अवशोषण करता है। इसकी सतह से कुछ विशिष्ट कोशिकाएँ बनती हैं जो तेजी से पदार्थों का संवहन करती हैं इन्हें ट्रांसफर कोशिका कहते हैं।
सीटा (Seta)—यह बहुत लम्बा व पतला वृन्त के समान होता है। इसके अन्त में कैप्सॊल मिलता है। इसकी लम्बाई 5 सेमी तथा व्यास 0.5 मिमी के लगभग होता है (पो० कम्यून)। इसका मुख्य कार्य जल का संवहन कैप्सूल तक करना है। इसकी बाह्य परत मोटी भित्ति वाली कोशिकाओं से बनी एपिडर्मिस है। एपिडर्मिस के नीचे स्क्लेरनकाइमा की बनी भूरे रंग की हाइपोडर्मिस होती है। हाइपोडर्मिस से नीचे मृदूतकीय कॉर्टेक्स मिलता है। इसकी कोशिकाओं के मध्य अन्त:कोशिकीय अवकाश (intercellular space) मिलता है। सेन्ट्रल स्ट्रेण्ड हाइड्रोइड कोशिकाओं से बनती है।
एपोफाइसिस (Apophysis)—यह कैप्सूल के नीचे तथा सीटा का अग्र भाग है। इसकी कोशिकाओं में हरितलवक भी मिलता है। इसकी बाह्य परत एपिडर्मिस होती है। यह एपिडर्मिस सीटा की एपिडर्मिस के साथ निरन्तर (continuous) होती है। एपीडर्मिस में रन्ध्र (stomata) भी मिलते हैं। इस भाग में हाइपोडर्मिस नहीं मिलती है। सेन्ट्रल स्ट्रेण्ड भी सीटा के सेन्ट्रल से निरन्तर (continuous) होता है तथा कैप्सूल के कॉल्यूमेला तक निरन्तरता में रहता है।
कैप्सूल (Capsule)—यह एपोफाइसिस के अन्त में उपस्थित होता है। जब तक यह कैलिप्ट्रा से ढका रहता है यह ऊर्ध्व रहता है। कैप्सूल लगभग वर्गाकार होता है। इसमें अगुणित बीजाणु बनते हैं। कैप्सूल का निचला भाग थीका (theca) कहलाता है यह कोणीय तथा बीजाणु का उत्पादन करता है। कैप्सूल का ऊपरी भाग ऑपरकुलम (operculum) कहलाता है। ऑपरकुलम शंक्वाकार होता है तथा यह बन्ध्य ढक्कन (lid) है। इस पर एक लम्बी चोंचनुमा रोस्ट्रम मिलता है। रोस्ट्रम को कैलिट्रा के हटने के बाद ही देखा जा सकता है।
थीका (Theca)—यह बहुस्तरीय मोटी संरचना है। इसकी बाह्य परत एपिडर्मिस है। इसकी भित्ति पर रन्ध्र नहीं मिलते हैं। एपिडर्मिस के नीचे 2 स्तरीय क्लोरोफिलयक्त ऊतक मिलता है। इस ऊतक की कोशिकाएँ मृदूतकीय तथा पतली भित्ति वाली होती हैं। इसके पश्चात बड़े वायु अवकाश (air spaces) होते हैं जिनमें ट्रेबेकुली (trabaculae) तन्त मिलते हैं। ट्रेबेकुली थीका की भित्ति को स्पोर सेक (spore sac) से जोड़ते हैं। स्पोर सेक के भीतरी ओर भी एक वायु अवकाश मिलता है। यहाँ पर भी ट्रेबेकुली मिलते हैं, परन्तु यह ट्रेबेकुली स्पोर सेक को कॉल्यूमेला से जोड़ते हैं। आर्किस्पोरियम कैप्सूल में एन्डोथीसियम की बाहरी परत से बनता है। स्पोर सेक दोनों ओर से वायु अवकाशों से घिरा रहता है। आर्किस्पोरियम की कोशिकाओं में विभाजन से 4-6 स्तरीय स्पोरोजीनस ऊतक बनता है। इसकी प्रत्येक कोशिका जननक्षम होती है तथा स्पोर मातृ कोशिका (spore mother cell) कहलाती है। यह द्विगुणित स्पोर मातृ कोशिका अर्द्धसूत्री विभाजन कर 4 अगुणित बीजाणु (spore) बनाती है। थीका का मध्य भाग बन्ध्य कॉल्यूमेला कहलाता है। कॉल्यूमेला के विस्तारण से ऊपर की ओर झिल्लीनुमा एपीफ्रेग्म (epiphragm) बनता है। यह एपीफ्रेग्म ऑपरकुलम के आधार पर बनता है। कॉल्यूमेला की परिधीय कोशिकाएँ भी प्रकाशसंश्लेषी होती हैं।
ऑपरकुलम (Operculum) Notes
यह कैप्सूल का अन्तस्थ (terminal) शंक्वाकार भाग है। यह एक प्रकार से थीका क्षेत्र पर ढक्कन या टोपी का कार्य करता है। ऑपरकुलम का ऊपरी भाग लम्बी चोंच के आकार का होता है इसे रोस्ट्रम (rostrum) कहते हैं। ऑपरकुलम में 2-3 स्तरीय डायफ्रार (diaphragm) मिलता है जो अरीय दीर्घित कोशिकाओं से बनता है। एन्यूलस अनुपस्थित होता है। ऑपरकुलम के आधार पर पतली झिल्लीनुमा एपीफ्रेग्म मिलता है। यह कॉल्यूमेला विस्तार से बनता है।
पेरीस्टोम (Peristome)- पोगोनेटम में पेरीस्टोम छोटे और ठोस पिरामिडाकार दन्तों से बनता है। प्रत्येक पेरीस्टोम दन्त मुड़ा हुआ अर्द्धचन्द्राकार होता है। परिपक्व पेरीस्टोम में प्रत्येक दन्त रंगीन होता है। ये दन्त लम्बवत् होते हैं। सभी दन्तों के अग्र भाग एपीफ्रेग्म से जडे रहते हैं। ये दन्त हाइग्रोस्कोपिक नहीं होते हैं। पोगोनेटम में 32 दन्त मिलते हैं।
बीजाणु का प्रकीर्णन (Dispersal of Spores)-परिपक्व कैप्सूल के मध्य के बन्ध्य भाग की कोशिकाएँ नष्ट हो जाने से कैप्सूल खोखला सा हो जाता है तथा इस भाग में बीजाणु आ जाते हैं। कैलिप्ट्रा के सड़ जाने के बाद कैप्सूल सूखने लगता है तथा ऑपरकुलम गिर जाता है जिससे पेरीस्टोम खुल जाते हैं। कैप्सूल क्षैतिज स्थिति (horizontal position) में मुड़ जाता है। एपीफ्रेग्म में छोटे-छोटे छिद्र बन जाते हैं। एपीफ्रेग्म के सूखने पर बीजाणु इन छिद्रों से दोलक्षेप विधि (Censer mechanism) द्वारा प्रकीर्णित होते हैं।
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