Result Affected Inductance Finite Resistance
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प्रश्न 6. एक संधारित्र का निरावेशन, प्रेरकत्व के द्वारा एक परिपथ में किस व्यंजक से दिया जाता है? परिणामों की व्याख्या कीजिए। यदि प्रेरकत्व में एक परिमित प्रतिरोध उपस्थित हो तो परिणाम किस प्रकार प्रभावित होता है?
By which expression the discharging of a condenser through an inductance is given? Discuss the results. How is this result affected if the inductance has a finite resistance?
उत्तर : आवेशित संधारित्र का प्रेरकत्व में निरावेशन— माना एक संधारित्र C तथा एक प्रतिरोधहीन प्रेरकत्व कुण्डली L, एक सेल E के साथ श्रेणीक्रम में जुड़े हैं (चित्र-26)। चित्रानुसार हम स्विच S का a से सम्पर्क करके संधारित्र को आवेशित करते हैं तथा फिर S का 6 से सम्पर्क करके संधारित्र को प्रेरकत्व कुण्डली L से होकर निरावेशित होने देते हैं। माना आवेशित होने पर संधारित्र पर आवेश 40 तथा निरावेशन के दौरान किसी क्षण t पर संधारित्र पर शेष आवेश q है।

तब उस क्षण पर संधारित्र की प्लेटों के बीच विभवान्तर q/C होगा। यदि उस क्षण प्रेरकत्व L में बहने वाली निरावेशन धारा i है तब प्रेरकत्व में प्रेरित विद्युत वाहक बल L(di/dt) होगा तथा इसकी दिशा संधारित्र की प्लेटों


संधारित्र प्रेरकत्व में निरावेशित होने लगता है तथा परिपथ में विद्यत धारा वामावर्ती दिशा में प्रवाहित होने लगती है। जैसे-जैसे धारा का मान शून्य से बढ़ता है, प्रेरकत्व के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित होने लगता है तथा जब धारा अधिकतम मान i पर पहुच जाता है तो चुम्बकीय क्षेत्र में संचित ऊर्जा – Li2 हो जाती है। इस समय संधारित्र पूर्ण रूप से निरावेशित हो जाता है तथा इसकी प्लेटों के बीच विभवान्तर शून्य हो जाता है [चित्र-27(b)]। इस प्रकार संधारित्र की प्लेटों के मध्य विद्युत क्षेत्र के रूप में संचित ऊर्जा, चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में परिवर्तित हो जाती है। संधारित्र के निरावेशित हो जाने पर, धारा in एकदम शून्य नहीं हो जाती अपितु कुछ समय तक घटते हुए प्रवाहित होती है। इस बीच चुम्बकीय क्षेत्र भी घटता रहता है। चुम्बकीय क्षेत्र के घटते समय प्रेरकत्व में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जो, लेंज के नियमानुसार, धारा के घटने का विरोध करता है। अतः धारा सतत रूप से समान दिशा में बहती रहती है, जिससे संधारित्र विपरीत दिशा में आवेशित हो जाता है |चित्र-27(C)]। इस प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में संचित ऊर्जा पुनः विद्युत क्षेत्र के रूप में संचित हो जाती है। अब संधारित्र विपरीत दिशा में निरावेशित होता है। इस प्रकार आवेशन-निरावेशन की क्रिया समान रूप से चलती रहती है। दूसरे शब्दों में, विद्युत दोलन अनन्त समय तक होते रहते हैं।

प्रतिरोध का प्रभाव— उपर्युक्त प्राप्त स्थिति वास्तव में एक आदर्श स्थिति है जिसमें प्रेरकत्व का प्रतिरोध शून्य माना गया है। व्यावहारिक रूप में प्रेरकत्व में सदैव एक परिमित प्रतिरोध होता है जिसके कारण विद्युत ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में क्षय होता रहता है। इस अवमंदन प्रभाव के कारण दोलनों का आयाम धीरे-धीरे कम होता जाता है तथा अन्त में दोलन समाप्त हो जाते हैं।