Median Business Statistics Notes

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Median Business Statistics Notes:-

 

मध्यका (Median)

 

बहुलक की तरह मध्यका भी स्थिति सम्बन्धी एक माध्य है।

मध्यका, एक क्रमबद्ध (आरोही अथवा अवरोही क्रम में) समंकमाला का वह केन्द्र-बिन्दु है जो समंकमाला को दो बराबर भागों में इस प्रकार बाँट देता है कि उसके एक ओर के सभी पद उससे कम मूल्य के तथा दूसरी ओर के सभी पद उससे अधिक मूल्य के होते हैं। उदाहरण के लिये, यदि सात विद्यार्थियों के प्राप्तांक 35, 40, 45, 50, 55, 60 तथा 65 हैं तो मध्यका प्राप्तांक 50 होंगे क्योंकि यही एक ऐसा मूल्य है जिसके एक ओर तीन छोटे मूल्य तथा दूसरी ओर तीन बड़े मूल्य हैं।

 

परिभाषाएं (Definitions)- मध्यका की कुछ मुख्य परिभाषाएं इस प्रकार हैं—

 

कॉनर (Connor) के अनुसार, “मध्यका समंक श्रेणी का वह चर मूल्य है,जो समूह को दो बराबर भागों में इस प्रकार बाँटता है कि एक भाग में सभी मूल्य मध्यका से अधिक और दूसरे भाग में सभी मूल्य मध्यका से कम होते हैं।“

बाउले (Bowley) के अनुसार, “यदि एक समूह के पदों को उनके मूल्यों के अनुसार क्रमबद्ध (ranked) किया जाये, तब लगभग मध्य पद का मूल्य मध्यका होगा।”

सैक्रिस्ट (Secrist) के अनुसार, “एक श्रेणी में मध्यका उस पद का अनुमानित या वास्तविक मूल्य है, जो श्रेणी को मूल्यों के आधार पर क्रमबद्ध करने पर दो भागों में बाँट देता है।”

 

उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् यह कह सकते हैं कि

(1) मध्यका एक केन्द्रीय मूल्य (central value) है,(2) यह समंकमाला को आरोही (बढ़ते हुये) या अवरोही (घटते हुये) क्रम में व्यवस्थित करने पर ठीक बराबर के दो भागों में बाँट देता है, (3) एक भाग में सभी मूल्य मध्यका से छोटे होते हैं और दूसरे भाग में सभी मूल्य मध्यका से बड़े होते हैं तथा (4) इसे ‘M’ चिन्ह के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

 

गुणात्मक तथ्यों (जैसे–स्वास्थ्य, बौद्धिक योग्यता, सुन्दरता एवं कार्यकुशलता आदि) से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन में यह बहुत उपयोगी है। सामाजिक समस्याओं जैसे-मजदूरी, धन का वितरण, आदि के अध्ययन में भी मध्यका का ही प्रयोग किया जाता है।

 

मध्यका ज्ञात करने के लिये समंकमाला का अनुविन्यास (arrangement) आवश्यक है। पद किसी मापनीय गुण के आधार पर आरोही (ascending) या अवरोही (descending) क्रमानुसार अनुविन्यासित किये जाते हैं। आरोही क्रम में सबसे पहले सबसे छोटे पद को और उसके बाद उससे बड़े और इसी क्रम में अन्त में सबसे बड़े पद को रखते हैं तथा अवरोही क्रम में ठीक इसके विपरीत, अर्थात् पहले सबसे बड़े और अन्त में सबसे छोटे पद को रखते हैं।

 

मध्यका के गुण (Merits of Median) 

 

(1) सरलता- मध्यका को ज्ञात करना एवं समझना सरल है।

(2) निरीक्षण से भी अनुमान कई प्रकार की श्रेणियों में केवल निरीक्षण से ही मध्यका का अनुमान लगाया जा सकता है।

(3) कभी-कभी अधूरे समंक से भी परिकलन सम्भव- मध्यका प्राप्त करते समय यदि कुछ अंशों तक समंक अधरे रहें तब भी इसे ज्ञात किया जा सकता है। गणना के लिये सम्पूर्ण समंक की आवश्यकता नहीं होती है। यदि केवल पदों की संख्या तथा मध्यका वर्ग के विषय में सूचनायें प्राप्त हों तो यह पर्याप्त है।

(4) बिन्दुरेखीय निरूपण- मध्यका को बिन्दुरेखीय रीति से भी ज्ञात किया जा सकता है।

 

(5) चरम मूल्यों का प्रभाव नहीं- मध्यका पर असाधारण और अति-सीमान्त (heterogenous) का प्रभाव नहीं पड़ता है।

 

(6) निश्चित एवं स्पष्ट-मध्यका निश्चित होती है, भूयिष्ठक की भाँति अस्पष्ट और अनिश्चित नही इसे निश्चितता के साथ सदैव ज्ञात किया जा सकता है।

 

(7) गुणात्मक विशेषताओं के अध्ययन में उपयुक्त- गुणात्मक विशेषताओं का अध्ययन करने के लिये मध्यका को अन्य सभी माध्यों की अपेक्षा अच्छा समझा जाता है, जैसे बुद्धिमत्ता, स्वस्थता आदि ।


मध्यका के दोष (Demerits of Median) 

(1) अनुविन्यास आवश्यक- मध्यका ज्ञात करने के लिये पदों को आरोही या अवरोही क्रम में अनुविन्यासित करना पड़ता है। इसमें समय लगता है और असुविधा होती है। अविच्छिन्न श्रेणी में इसका निर्धारण इस मान्यता पर आधारित होता है कि प्रत्येक वर्ग में आवृत्तियाँ समान अन्तर पर वितरित हैं जो सदैव सत्य नहीं रहती हैं।

(2) गणितीय शुद्धता में कमी- मध्यका और आवृत्तियों की कुल संख्या से गुणा करने पर मूल्यों का कुल योग प्राप्त नहीं किया जा सकता।

(3) प्रतिनिधित्व का अभाव- मूल्यों का वितरण अनियमित होने पर मध्यका समूह का ठीक प्रकार से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती।

(4) सभी पदों का समान महत्व- इस माध्य को निकालने में श्रेणी के सभी पदों को समान महत्व दिया जाता है जो अशुद्ध है।

(5) बीजगणितीय प्रयोग नहीं इसका प्रयोग बीजगणितीय क्रियाओं में नहीं किया जा सकता।

(6) निर्धारण कठिन- यदि मध्य-पद दो मूल्यों के बीच पड़ता है तो इसे एकदम ठीक प्राप्त करना कठिन होता है । ऐसी दशा में सम्भावित मूल्य ही प्राप्त किया जा सकता है।

 

मध्यका ज्ञात करने की रीति (Method of Calculating the Median) 

विभिन्न समंक श्रेणियों (Series) में मध्यका ज्ञात करने के लिये अलग-अलग प्रक्रिया अपनायी जाती है जिसका वर्णन निम्नलिखित है

व्यक्तिगत समंकमाला (Individual Series) 

  • सर्वप्रथम प्रदत्त समंकमाला के सभी पद-मूल्यों को आरोही अथवा अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर लेते हैं।
  • मध्यका पद (Middle item) ज्ञात करने के लिये निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं

 

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M = मध्यका पद (Median item)

N = पदों की कुल संख्या (Number of items)

 

  • अन्त में उपर्युक्त सूत्र से प्राप्त मध्यका पद की क्रम संख्या पर स्थित पद का मूल्य ही मध्यका कहलाता है। यदि प्रदत्त समंकमाला में पदों की संख्या ‘विषम’ (odd) [2 से विभाज्य नहीं होती जस 7, 9, 11, 13, 15 आदि। है तो मध्यका ज्ञात करने में कोई असुविधा नहीं होती क्योंकि मध्यका पद सदा पूर्णांक में ही आता है। लेकिन जब पदों की संख्या ‘सम’ (even) होती है अर्थात 2 से विभाजित हो जाता। तो (N + 1) में 2 से भाग देने पर पूर्णांक नहीं आयेगा वरन किसी भी संख्या के आगे 5 अवश्य आय ऐसी दशा में मध्यका का मूल्य निश्चित करने के लिये प्राप्त मध्यका पद के दोनों ओर की दो पूर्णमा संख्याओं के मूल्यों को जोड़कर 2 से भाग कर देंगे एवं ऐसा करने से जो संख्या प्राप्त होगी वही मध्यका कहलायेगी। उदाहरण के लिये, यदि किसी समंकमाला में 10 पद-मूल्य दिये हुये हैं तो मध्यका 10+1/2

5.5 वा पद होगा एवं 5.5वें पद का मूल्य ज्ञात करने के लिये अग-सत्र का प्रयोग करेंगे—

 

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व्यक्तिगत श्रेणी में मध्यका निकालने की प्रक्रिया को उदाहरण 15 व 16 के द्वारा भली-भाँति समझा जा

सकता है।

 

विच्छिन्न या खण्डित समंकमाला (Discrete Series)

इस समंक श्रेणी में पद-मूल्यों के साथ-साथ उनकी आवृत्तियाँ भी दी हुई होती हैं। इस समंक श्रेणी में मध्यका ज्ञात करने की प्रक्रिया निम्न प्रकार है

  • सर्वप्रथम संचयी आवृत्ति (E) ज्ञात करते हैं।
  • निम्नलिखित सूत्र के द्वारा मध्यका पद की क्रम संख्या ज्ञात करते हैं
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N = आवृत्तियों का योग

  • उपर्युक्त सूत्र से प्राप्त मध्यका पद को यह देखते हैं कि वह कौन-सी संचयी आवृत्ति में पड रहा है। उक्त मध्यका-पद जिस भी संचयी आवृत्ति में पहली बार शामिल हो रहा हो, उसी संचयी आवत्ति के सामने वाला पद-मूल्य ही मध्यका-मूल्य कहलाता है।

इस समंकमाला में मध्यका की गणना का स्पष्टीकरण निम्नलिखित उदाहरण से हो जायेगा

 

खण्डित श्रेणी में मध्यका पद का किसी संचयी आवृत्ति से ठीक अगली संख्या के मध्य में होना (Middle itcm as somewhere between succeeding number to any cumulative frequency in discrete series)- यदि मध्यका.पद ऐसी गैर पूर्णांक संख्या में आये जो किसी संचयी आवृत्ति से ठीक अगली संख्या से पहले हो तो मध्यका मूल्य (Median) की गणना के लिये ऐसी संचयी आवृत्ति के सामने वाले पद और अगले वाले पद को जोड़कर 2 का भाग दिया जाता है।

 

अविछन्न या अखण्डित श्रेणी  (Continuous Series)

इस समंक श्रेणी में वर्ग (class) एवं उनकी आवृत्तियाँ दी रहती हैं । इस श्रेणी में मध्यका ज्ञात करने के लिये अपनायी जाने वाली प्रक्रिया निम्न प्रकार है

(i) सर्वप्रथम संचयी आवृत्ति (C.F) ज्ञात करते हैं।

(ii) इसके बाद निम्नलिखित सूत्र के आधार पर मध्यका पद ज्ञात करते हैं-

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N = आवृत्तियों का योग

(iii) यह देखते हैं कि मध्यका पद किस संचयी आवत्ति में पहली बार पड़ रहा है, उसके सामने वाला वर्ग (class) ही मध्यका वर्गान्तर कहलाता है।

(iv) मध्यका वर्गान्तर तय हो जाने के पश्चात् मध्यका का मूल्य ज्ञात करने के लिये निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं

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जहाँ,M = मध्यका (Median)

L1 = मध्यका-वर्ग की निचली सीमा (lower limit of median class)

L2 = मध्यका-वर्ग की ऊपरी सीमा (upper limit of median class)

F = मध्यका-वर्ग की आवृत्ति (frequency of the median class)

m = मध्यका पद (median number)

c = मध्यका-वर्ग से ठीक पहले वाले वर्ग की संचयी आवृत्ति (C.F of the group just

preceeding the median class)

N = आवृत्तियों का योग (Total of Frequencies). . नोट-उपर्युक्त सूत्रों में (L2- L1) के स्थान पर भी लिख सकते हैं। से अभिप्राय मध्यका वर्ग के विस्तार (L2 – L1) से है।

 

अखण्डित श्रेणी में मध्यका सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु

(Some Important Points About Median in Continuous Series) 

(1) अवरोही वर्गान्तर (Descending class-intervals)- यदि वर्गान्तर अवरोही क्रम में दिये हुए हों तो सर्वप्रथम वर्गान्तरों को आरोही क्रम में विन्यासित कर लेना चाहये। ऐसा करते समय यह ध्यान रखें कि

प्रत्येक वर्गान्तर की आवृत्ति पूर्ववत् ही रहती है। केवल वर्गान्तरों का क्रम बदल जाता है। इसके बाद सम्पूर्ण प्रक्रिया यथावत् ही रहती है। परन्तु कुछ विद्वानों का यह मानना है कि प्रश्न को उसके मूल रूप में ही हल किया जाना चाहिये। किन्तु ऐसा करने पर सूत्र में थोड़ा संशोधन करना पड़ता है जो कि इस प्रकार है

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स्पष्टीकरण के लिये निम्नलिखित उदाहरण देखिये

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(2) समावेशी वर्गान्तर (Inclusive class-intervals)- यदि प्रश्न समावेशी वर्गान्तर के दिया हुआ हो तो मध्यका ज्ञात करने के लिये यह जरूरी है कि पहले उसे अपवजी (Exclusive) वर्गात परिवर्तित कर लिया जाये।

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किसी वर्ग या वर्गों की आवृत्ति शून्य होने पर मध्यका ज्ञात करना

(Determination of Median when frequency of any one class or classes are zero)

जब कभी आवृत्ति वितरण (अखण्डित श्रेणी की दशा में) किसी वर्ग अथवा वर्गों की आवृत्तियाँ शून्य हो तो ऐसे वितरण में मध्यका ज्ञात करने के लिये शून्य आवृत्ति वाले वर्गों को समाप्त कर दिया जाता है तथा ऐसे वर्गों का आधा भाग अगले वर्ग में तथा आधा भाग पिछले समूह में जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार जो संशोधित आवृत्ति वितरण प्राप्त होगा उसी के आधार पर मध्यका की गणना की जानी चाहिये। यदि किसी वर्ग की आवृत्ति शून्य हो परन्तु मध्यका वर्ग शून्य आवृत्ति वाले वर्ग से प्रभावित न हो रहा हो उस स्थिति में इस रीति के प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है और उक्त प्रश्न को सामान्य रीति से ही हल किया जा सकता है।

 

स्पष्टीकरण हेतु अग्रलिखित उदाहरण देखिये।

 


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