Describe Working Carnot’s Reversible heat Engine
Describe Working Carnot’s Reversible heat Engine:-Thermodynamics Relationships: Thermodynamic variables: extensive and intensive, Maxwell’s general relationships, application to Joule-Thomson cooling and adiabatic cooling in a general system,vander Waal’s gas, Clausius-Clapeyron heat equation. Thermodynamic potentials and equilibrium of thermodynamical systems, relation with thermodynamical variables. Cooling due to adiabatic demagnetization. Production and measurement of very low temperatures.
प्रश्न 14. कार्नो के उत्क्रमणीय ऊष्मा इंजन की कार्य–विधि का वर्णन कीजिए। इसकी दक्षता के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। का! इंजन को व्यवहार में प्राप्त करना सम्भव क्यों नहीं है?
Describe the working of Carnot’s reversible heat engine. Obtain an expression for its efficiency. Why is Carnot’s engine not a practical possibility?
अथवा
सिद्ध कीजिए कि सभी उत्क्रमणीय इंजनों की दक्षता केवल स्रोत व सिंक के तापों पर निर्भर करती है।
Prove that the efficiencies of all reversible engines depend only upon the temperatures of source and sink.
अथवा
कार्नो चक्र एवं कार्नो उत्क्रमणीय ऊष्मा इंजन का वर्णन कीजिए तथा इसकी दक्षता भी ज्ञात कीजिए।
Describe Carnot’s cycle and Carnot reversible heat engine and also determine its efficiency.
उत्तर : कार्नो का उत्क्रमणीय ऊष्मा इंजन (Carnot’s Reversible Heat Engine)—कानों ने एक आदर्श ऊष्मा इंजन की रूपरेखा प्रस्तुत की। इस इंजन की सैद्धान्तिक महत्ता यह है कि इसे मानक मानकर वास्तविक ऊष्मा इंजनों के कार्यों की जाँच की जा सकती है।
कार्नो आदर्श इंजन की परिकल्पना चित्र-16 में दर्शायी गई है। इसके मुख्य भाग निम्नलिखित हैं
(i) इसमें एक सिलिण्डर होता है जिसकी दीवारें पूर्ण ऊष्मारोधी होती हैं, लेकिन उसका आधार पूर्ण चालक होता है। इसके अन्दर एक आदर्श गैस कार्यकारी पदार्थ के रूप में भरा होती है। इस सिलिण्डर के अन्दर एक पूर्ण कुचालक एवं घर्षणरहित पिस्टन होता है। जिसक ऊपर इच्छानुसार भार रखा जा सकता है। इस सिलिण्डर में किसी गैस (कार्यकारी पदार्थ) का एक निश्चित द्रव्यमान लिया जाता है।
(ii) अनन्त ऊष्माधारिता की एक गर्म वस्तु जिसकी ऊष्माधारिता एक उच्च नियत ताप T1 पर सदैव रहती हो, एक स्रोत (source) का काम करती है। इस स्रोत से कितना मा कार्यकारी पदार्थ ले सकता है।
(iii) इसमें एक पूर्ण कुचालक प्लेटफार्म भी होता है जो कि सिलिण्डर के लिए स्टैण्ड की तरह कार्य करता है।
(iv) एक ठण्डी वस्तु जिसकी. कष्माधारिता अनन्त हो जो कि एक. निम्न ताप T2 (T1 > T2) पर हो, एक सिंक (sink) का कार्य करती है। इस सिंक को कितनी भी मात्रा में कार्यकारी पदार्थ ऊष्मा दे सकता है।
सिलिण्डर को स्रोत, स्टैण्ड एवं सिंक में से किसी के भी ऊपर रखा जा सकता है। इसे एक से दूसरे पर बिना घर्षण के चलाया भी जा सकता है अर्थात् एक पिण्ड से दूसरे पर ले जाने में कोई कार्य नहीं करना पड़ता। कार्यकारी पदार्थ द्वारा आदर्श गैस पर चार क्रियाएँ पूरे चक्र के दौरान की जाती हैं। जिनमें दो समतापीय एवं दो रुद्धोष्म होती हैं। इस चक्र को कार्नो चक्र कहते हैं। इस कानों चक्र को P.V ग्राफ (चित्र-17) से दर्शाया जाता है।
चूँकि स्रोत तथा सिंक की ऊष्मा धारिताएँ ‘अनन्त’ हैं, अत: उनके तथा सिलिण्डर के बीच ऊष्मा के आदान-प्रदान के समय उनके ताप अपरिवर्तित रहते हैं।
क्रिया–विधि (Mechanism)
माना सिलिण्डर में किसी आदर्श गैस के एक ग्राम को लिया गया है। इस समय कार्यकारी पदार्थ का दाब P1 आयतन V1 एवं ताप T1 है। यह अवस्था P-V ग्राफ में बिन्दु A से प्रदर्शित की गई है। –
प्रथम प्रक्रिया (First Process)-सिलिण्डर को स्रोत के ऊपर रखते हैं पिस्टन पर रखे हुए भार को धीरे-धीरे घटाते हैं। इस क्रिया के दौरान कार्यकारी पदार्थ में प्रसार होता है और बाह्य कार्य के कारण पिस्टन ऊपर उठता है। इस प्रक्रिया में पदार्थ का ताप गिरता है, चूँकि यह स्रोत के साथ सम्पर्क में होता है इसलिए अपना ताप फिर से T1 करने के लिए पर्याप्त ऊष्मा स्रोत से ले लेता है। यह प्रक्रिया समतापीय है एवं इसको A,B वक्र से प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रकार वक्र AB, स्थिर ताप T1 (स्रोत के ताप) पर पदार्थ के समतापी प्रसार (isothermal expansion) को प्रदर्शित करता है। माना इस प्रक्रिया में Q1 ऊष्मा पदार्थ ने स्रोत से अवशोषित की तो ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार इस प्रक्रिया में किया गया कार्य Q1 के बराबर होगा। इस प्रक्रिया में आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन नहीं होता है। अब पदार्थ P.V ग्राफ में बिन्दु B पर पहुँच गया है जिसके नियतांक P2,V2, T2 हैं। इस प्रक्रिया के दौरान किया गया कार्य ABGEA के क्षेत्रफल से प्रदर्शित होता है। इस प्रकार
द्वितीय प्रक्रिया (Second Process)-अब सिलिण्डर को स्रोत से हटाकर ऊष्मारोधी स्टैण्ड के ऊपर रख देते हैं। पुनः पिस्टन से भार हटाते हैं ताकि पदार्थ का फिर से प्रसार हो सके। इस बार प्रसार पूर्ण रूप से रुद्धोष्म होता है क्योंकि न तो कोई ऊष्मा सिलिण्डर में बाहर से आती है और न ही कोई ऊष्मा अन्दर से बाहर जाती है। पदार्थ अपनी आन्तरिक ऊर्जा का प्रयोग करके पिस्टन को उठाता है और इस प्रकार गैस का प्रसार होता है। इसी वजह से इस बार पदार्थ का ताप नीचे गिर जाता है।
अत: गैस को इस बार रुद्धोष्मीय रूप से (adiabatically) प्रसारित होने देते हैं। जब तक कि ताप गिरकर सिंक के ताप T2 तक नहीं बढ़ जाता है। इस प्रक्रिया को PV आरेख द्वारा BC वक्र द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
अब पदार्थ PV ग्राफ के E बिन्दु पर पहुँच जाता है। इस बिन्दु के निर्देशांक P3,V3,T3 हैं। अत: B से C तक जाने में किया गया कार्य
तृतीय प्रक्रिया (Third Process) ऊष्मारोधी स्टैण्ड से सिलिण्डर को हटाकर अब सिंक के ऊपर जिसका ताप T2 होता है, रख देते हैं। अब तक गैस में जितना प्रसार होना होता है वह हो चुका होता है। अब पिस्टन के ऊपर दाब बढ़ाने के लिए धीरे-धीरे भार रखते हैं। इससे गैस में संपीडन होता है। इस बार पिस्टन गैस पर कार्य करता है और इस कारण उत्पन्न हुई ऊष्मा तुरन्त सिंक को चली जाती है। पदार्थ का ताप इस प्रक्रिया के दौरान नियत (T2) रहता है। इस प्रक्रिया को CD से प्रदर्शित करते हैं। अब पदार्थ P.V ग्राफ के D बिन्दु पर पहुँच चुका होता है। बिन्दु D के नियतांक P4,V4, T4 हैं। इस दौरान माना पदार्थ ऊष्मा की Q2 मात्रा सिंक को देता है। अतः पदार्थ को C से D तक जाने में किया गया कार्य
चतुर्थ प्रक्रिया (Fourth Process)-अब सिलिण्डर को पुनः ऊष्मारोधी स्टैण्ड के ऊपर रखते हैं और पिस्टन पर वजन बढ़ाते हैं। इस बार पदार्थ में रुद्धोष्मीय संपीडन होता है और उसका ताप बढ़ता है। यह संपीडन तब तक करते हैं जब तक कि ताप बढ़कर T1 नहीं हो जाता है और दाब एवं आयतन P1 एवं V1 इस प्रकार पदार्थ की आंतरिक ऊर्जा फिर से वही हो जाती है जो अपनी पूर्व अवस्था में होती है। यह संपीडन P.V ग्राफ में DA वक्र द्वारा निरूपित किया जाता है। अब पदार्थ बिन्दु A पर पहुँच जाता है। इस संपीडन के द्वारा किया गया कार्य
एक चक्र में किया गया कार्य
(Work done in a single cycle)
इस पूरे चक्र के दौरान पदार्थ ने Q ऊष्मा स्रोत से ली और Q ऊष्मा सिंक को दे दी। अ. ऊष्मा की नेट मात्रा जो कि अवशोषित की गई है—
= Q1 – Q2
उसी समय पर एक पूर्ण चक्र के दौरान इंजन के द्वारा किया गया कार्य
= क्षेत्रफल ABGEA+ क्षेत्रफल BCHGB– क्षेत्रफल CHFDC – क्षेत्रफल DFEAD
= क्षेत्रफल ABCHEA – क्षेत्रफल CHEADC
= क्षेत्रफल ABCD
इस प्रकार एक कार्नो चक्र के दौरान किया गया कार्य PV-ग्राफ में एक पूर्ण चक्र के क्षेत्रफल द्वारा निरूपित किया जा सकता है।
इंजन के द्वारा एक चक्र के दौरान किया गया नेट कार्य
इस प्रकार ऊष्मा को कार्य में परिवर्तित किया जा सकता है और बार-बार इस चक्र को दोहराकर कितना भी कार्य प्राप्त किया जा सकता है।
इंजन की कार्य दक्षता (Efficiency of Engine)
इंजन की कार्य दक्षता
अतः इस चक्र से यह स्पष्ट है कि कानों इंजन की दक्षता सिर्फ स्रोत एवं सिंक के ताप पर निर्भर करती है जितना अधिक तापान्तर होगा उतनी ही अधिक दक्षता होगी क्योंकि यदि T1 > (T1 – T2) तो दक्षता सदैव एक से कम होगी। किसी उत्क्रमणीय इंजन की 100% दक्षता के लिए (e = 1) T2 का मान शून्य होना चाहिए। चूँकि सिंक का ताप परम शून्य नहीं हो सकता, अत: 100% दक्षता का इंजन व्यावहारिक रूप में प्राप्त करना असम्भव है।
कानों इंजन की दक्षता रुद्धोष्म प्रसार निष्पत्ति (Adiabatic Expansion Ratio) के पदों में— दक्षता को रुद्धोष्म प्रसार-अनुपात p के पद में भी निश्चित किया जा सकता है।
कार्नो इंजन व्यवहार में सम्भव नहीं (Carnot’s engine is not practically | possible)-कानों इंजन के दो आदर्श लक्षण हैं
(1) चूँकि इंजन में स्रोत तथा सिंक की ऊष्माधारिताएँ अनन्त हैं, अत: कार्यकारी-पदार्थ ‘सम्पूर्ण ऊष्मा’ Q1 एक ही ‘नियत ताप’ T1 पर प्राप्त करता है तथा कार्य करने के पश्चात् शेष ‘सम्पूर्ण ऊष्मा’ Q2 एक ही ‘नियत ताप’ T2 पर दे देता है। इस प्रकार यह स्रोत तथा सिंक के तापान्तर T1 – T2 का पूर्ण उपयोग करता है।
(2) कार्नो चक्र में प्रत्येक प्रक्रम पूर्णत: उत्क्रमणीय है। इसके निम्नलिखित कारण हैं
(i) कार्यकारी-पदार्थ जिस सिलिण्डर में रखा है उसकी दीवारें पूर्णतया ऊष्मा अवरोधी है तथा उसमें व्यवस्थित पिस्टन भी पूर्णतया ऊष्मा अवरोधी व घर्षणरहित है। अत: क्षयकारी बल अनुपस्थित हैं। (ii) सिलिण्डर की पेंदी पूर्णतया ऊष्मा-चालक है, अत: जब इसे स्रोत अथवा सिंक पर रखते हैं तो कार्यकारी-पदार्थ तथा स्रोत अथवा सिंक के तापों में केवल अनन्त-सूक्ष्म अन्तर होता है। (iii) पदार्थ का प्रसार तथा संपीडन अनन्त-सूक्ष्म दर से किया जाता है, अत: इसके तथा बाह्य परिवेश के दाबों में अनन्त-सूक्ष्म अन्तर होता है। उपर्युक्त दोनों लक्षण व्यवहार में प्राप्त नहीं किए जा सकते। अत: कानों इंजन व्यवहार में सम्भव नहीं है।