BSC P Block Elements Inorganic Chemistry Notes
BSC P Block Elements Inorganic Chemistry Notes:- In this post inorganic chemistry p block elements Comparative study (including diagonal relationship) of groups 13-17 elements, compounds like hydrides, oxides, oxyacids and halides of groups 13-16; hydrides of boron-diborane and higher boranes, borazine, borohydrides, fullerenes, carbides, fluorocarbons, silicates (structural principle), tetrasulphur tetra nitride, basic properties of halogens, interhalogens and polyhalides.
Unit IV
प्रश्न 31. p-ब्लॉक के तत्वों की प्रवृत्ति की निम्न के सन्दर्भ में विवेचना कीजिा।
- इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
- आयनन विभव
- अक्रिय युग्म प्रभाव
- आयनिक त्रिज्या
- श्रृंखलीकरण
उत्तर : p-ब्लॉक के तत्व— ये ऐसे तत्व हैं जिनके परमाणुओं के बाह्यतम इलेक्ट्रानि विन्यास की p-उपकोश क्रमश: भरती है। समूह 13 (III-A) से समूह 18 (शून्य) के तर इसके अन्तर्गत आते हैं। इन तत्वों का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np1-6 होता है।
(ii) आयनन विभव— p-ब्लॉक के तत्वों का आयनन विभव अपेक्षाकृत आधक सके। सामान्य रूप से आयनन विभव परमाणु क्रमांक के बढ़ने के साथ-साथ समूह में घटता तथा आवर्त में बढ़ता है। किसी आवर्त में आयनन विभव के मान का बढ़ना एक समान नहीं है। यह देखा गया है कि समूह 13 (III-A) के तत्वों का आयनन विभव इसके बायीं ओर के समूह 2CII-A) के तत्वों के आयनन विभव की अपेक्षा कम होता है। इसी प्रकार समूह 16 (VI-A) के तत्वों का आयनन विभव इसके बायीं ओर के समूह 15 (V-A) के तत्वों के आयनन विभव से कम होता है। इस अनियमितता का कारण यह है कि इन तत्वों में पूर्ण व अर्द्धपूर्ण उपकक्षाए पायी जाती हैं जो कि अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होती हैं।
(iii) अक्रिय या निष्क्रिय युग्म प्रभाव— समूह 18 को छोड़कर p-ब्लॉक के तत्व सामान्य रूप से एक से अधिक स्थायी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं। इन तत्वों की अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था बाह्यतम कक्षा में उपस्थित s व p-इलेक्ट्रॉनों की संख्या के योग के बराबर होती है। इसके अतिरिक्त, कुछ भारी p-ब्लॉक के तत्व निम्न ऑक्सीकरण अवस्था – (समूह संख्या-2) भी प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए, समूह 13 (III-A) के भारी तत्व अर्थात् In व Tl + 3 ऑक्सीकरण अवस्था के साथ-साथ अपने यौगिकों में + 1 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करते हैं। इन तत्वों में + 1 ऑक्सीकरण अवस्था + 3 ऑक्सीकरण अवस्था से अधिक स्थायी होती है। इसी प्रकार समूह 14 (IV-A) के भारी तत्व अर्थात् Sn व Pb, + 4 ऑक्सीकरण अवस्था के साथ-साथ अपने यौगिकों में + 2 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करते हैं। इन तत्वों में + 2 ऑक्सीकरण अवस्था + 4 ऑक्सीकरण अवस्था से अधिक स्थायी होती है। निम्न ऑक्सीकरण अवस्थाएँ तब उत्पन्न होती हैं जबकि बाह्यतम कक्षा के s-इलेक्ट्रॉन बन्ध बनाने में प्रयुक्त नहीं होते तथा निष्क्रिय हो जाते हैं। इसे निष्क्रिय युग्म प्रभाव (inert pair effect) कहते हैं।
(iv) आयनिक त्रिज्या— सामान्य रूप से आयनिक त्रिज्याएँ परमाणु क्रमांक के बढ़ने के साथ-साथ समूह में बढ़ती तथा आवर्त में घटती हैं। अत: किसी दिए आवर्त में ब्लॉक के तत्वों में समूह 13 (III-A) के तत्वों का परमाणु आकार अधिकतम तथा निष्क्रिय गैसों का परमाणु आकार न्यूनतम होना चाहिए। परन्तु निष्क्रिय गैस के परमाणुओं की परमाण त्रिज्या इनकी वाण्डर वाल्स त्रिज्या होती है जो कि सहसंयोजक त्रिज्या की अपेक्षा बड़ी होती है। बाह्यतम कक्षा से इलेक्ट्रॉनों के निकलने या प्राप्त करने से आयन प्राप्त होते हैं। धन आयन मल परमाणु से छोटा तथा ऋण आयन मूल परमाणु से बड़ा होता है।
(v) श्रृंखलीकरण— किसी परमाणु के द्वारा समान परमाणुओं की लम्बी श्रृंखला बनाने का प्रवृत्ति शृंखलीकरण कहलाती है। इस प्रकार शृंखलाएँ बनाने की प्रवृत्ति कार्बन में अद्वितीय होती है। कार्बन परमाण क्योंकि अधिक से अधिक चार कार्बन परमाणुओं के साथ आबन्ध बना सकता है, ये श्रृंखलाएँ सीधी, पार्श्व या चक्रयुक्त हो सकती हैं। इन यौगिकों के स्थायित्व का कारण दो कार्बन परमाणुओं के बीच प्रबल आबन्ध का बनना है। कार्बन के अतिरिक्त यह गण सामान्य रूप से सिलिकन, फॉस्फोरस, सल्फर इत्यादि में भी पाया जाता है। इस प्रकार काin पाए जाने वाले तत्वों को परस्पर प्रबल आबन्ध बनाना चाहिए। इन आबन्धों की शक्ति दुसरे तत्वों विशेषकर ऑक्सीजन के साथ बनाए गए आबन्धों की शक्ति के समान या उनसे अधिक होनी चाहिए। कुछ आबन्ध ऊर्जाएँ निम्न हैं-
C-C = 83 किलोकैलोरी Si-Si = 53 किलोकैलोरी
C-O = 84 किलोकैलोरी Si-O= 88 किलोकैलोरी
Ge-Ge = 40 किलोकैलोरी Sn-Sn = 37 किलोकैलोरी
C−C, C−O, C−H व C−X आबन्धों की आबन्ध ऊर्जाएँ लगभग समान होने के कारण कार्बन की श्रृंखला बनाने की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। Si-Si आबन्ध ऊर्जा Si-(1 आबन्ध की ऊर्जा से बहुत कम होने के कारण Si_Si आबन्ध युक्त यौगिक आवश्यक ऊर्ज देने के बाद Si-0 बन्ध युक्त यौगिकों में परिवर्तित हो जाते हैं। अत: सिलिकन की श्रृंखला बनाने की प्रवृत्ति कम है। IV समूह में क्योकि आबन्ध ऊर्जाएँ कार्बन से सिलिकन तक बहन तेजी से कम होती हैं तथा इसके पश्चात् धीरे-धीरे कम होती जाती है, अतः शृंखला बनाने की प्रवृत्ति भी निम्न क्रम में कम होती जाती है—
C >>> Si > Ge > Sn
अत: कार्बन कई ऐसे यौगिक बनाता है जिनमें अत्यधिक कार्बन परमाणु परस्पर जुड़े हैं। सिलिकन में यह शृंखला छ: सिलिकन परमाणुओं से अधिक नहीं पायी जाती। जर्मेनियम में यह प्रवृत्ति और भी कम होती है, श्रृंखला में दो से अधिक परमाणु नहीं पाए जाते। टिन व लेड में श्रृंखला बनाने की प्रवृत्ति नगण्य होती है।
प्रश्न 32. बोरेक्स को बनाने की विधियाँ, प्रमुख गुण तथा उपयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : बोरेक्स (Na2B4O7.10H2O)
बनाने की विधियाँ–1. कोलेमेनाइट से– महीन पिसे हुए खनिज को सोडियम कार्बोनेट विलयन की निश्चित मात्रा के साथ उबालते हैं
2Ca2B6O11+ 3Na2CO3 + H2O → 3Na2B4O7 + 3CaCO3 ↓ + Ca(OH)2
कैल्सियम कार्बोनेट के अवक्षेप को छानकर पृथक् कर देते हैं तथा छनित बोरेक्स के क्रिस्टलीकरण करने पर बोरेक्स के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं।
- प्राकृतिक बोरेक्स या रेसोराइट से— महीन पिसे हुए खनिज को गर्म जल में घोलन पर बोरेक्स घुल जाता है तथा अविलेय अशुद्धियाँ नीचे बैठ जाती हैं। विलयन को सान्द्रित करा ठण्डा करने पर बोरेक्स के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं।
- बोरिक अम्ल से— अम्ल के विलयन को सोडियम कार्बोनेट के द्वारा उदासीन कर पर भी बोरेक्स प्राप्त होता है।
Na2CO3 + 4H3BO3→ Na2B4O7+6H2O+ CO2
गुण-1. यह एक क्रिस्टलीय ठोस है। यह तीन रूपों में पाया जाता है
(i) प्रिज्मीय बोरक्स (Na2 B4O7.10H2O)— यह बोरेक्स का साधारण रूप हा संतप्त विलयन से साधारण ताप पर क्रिस्टलीकरण पर प्राप्त होता है।
(ii) अष्टफलकोय बरिक्स (Na2B4O7.5H2O)लवण के विलयन को मा ऊपर ताप पर निर्जलीकरण करके इसे प्राप्त करते हैं।
(iii) बोरेक्स काँच (Na2B4O7)— यह साधारण बोरेक्स का निर्जला एप है। से साधारण बोरेक्स को इसके गलनांक से ऊपर गर्म करके प्राप्त किया जाता है। यह एक महीना काँच जैसा पदार्थ है। यह वायु से नमी को सोखकर धीरे धीरे साधारण रूप में परिवर्तित हो जाता है।
- क्षारीय प्रकृति— यह ठण्डे जल में अल्प-विलेय तथा गर्म जल में अधिक बिलय है। इसका जलीय विलयन क्षारीय होता है।
Na2B4O7 + 7H2O (गर्म) → 2NaOH+ 4H3BO3
- ऊष्मा का प्रभाव— इसे गलनांक से ऊपर गर्म करने पर यह अपने क्रिस्टलन के जल के अणु पृथक् कर देता है तथा फूलकर एक सफेद सरन्ध्र पदार्थ देता है जिसको और गर्म करने पर यह पिघलकर एक यौगिक देता है जो कि पारदर्शक काँच जैसे पदार्थ में परिवर्तित हो जाता है, जो सोडियम मेटाबोरेट तथा बोरिक ऐनहाइड्राइड का मिश्रण है।
उपर्युक्त बीड को क्षारीय मूलकों के लवणों के सम्पर्क में लाकर फिर उसस ऑक्सीकारक ज्वाला में गर्म करते हैं। इससे रंगीन बीड बनती है, जिससे रंगीन क्षारी मूलकों की पहचान की जाती है। यह रंगीन बीड धात्विक मेटाबोरेट के बनने के कारण होली है; जैसे—
अन्य क्षारीय मूलकों की बीड के रंग निम्नलिखित होते हैं
क्षारीय मूलक | Cu2+ | Cr3+ | Fe3+ | Mn 2+ | Co2+ | Ni2+ |
बीड का रंग | हरा-नीला | हरा | पीला | बैंगनी | नीला | भूर |
(2) प्रकाशीय व बोरोसिलिकेट काँच बनाने में।
(3) धातुकर्म में गालक के रूप में।
प्रश्न 33. सिलिकेट क्या होते हैं? इनकी संरचना, वर्गीकरण एवं औद्योगिक महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर : सिलिकेट
पृथ्वी की भू-पर्पटी (earth’s crust) में अधिक प्रतिशतता सिलिकेट, खनिज पदार्थों ऐलुमिनो सिलिकेट, मिट्टी (जिसमें सभी चट्टानें, रेत चट्टानों के टूटने से प्राप्त उत्पाद आदि) को होती है। भवन निर्माण का सारा अकार्बनिक पदार्थ प्राकृतिक चट्टानें, जैसे ग्रेनाइट से लेकर कृत्रिम उत्पाद, जैसे ईंट, सीमेण्ट, गारा आदि इनके साथ-साथ मिट्टी से बनने वाले पदार्थ तथा काँच सभी सिलिकेट ही हैं।
जब क्षार धातु कार्बोनेट को सिलिका के साथ गलाया जाता है तो कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है तथा क्षार धातुओं के सिलिकेट का एक जटिल मिश्रण प्राप्त होता है। … image 120 a
यदि क्षार धातु की मात्रा अधिक होती है तो यह उत्पाद जल में घुलनशील होता है परन् यदि क्षार धातु की मात्रा कम होती है तो यह उत्पाद जल में अघुलनशील होता है। जल घुलनशील सिलिकेट मुख्य रूप से कम अणु भार वाले होते हैं, जैसे-Na2 Si2O5 Na,Si05 आदि। दूसरी ओर जल में अघुलनशील सिलिकेट बहुत बड़े बहुलका ऋणायन युक्त होते हैं तथा ये प्रकृति में पाए जाने वाले खनिज पदार्थ (कुछ विशेष सर जिओलाइट (synthetic zeolite) जिनका उपयोग आयन विनिमयक (ion exchanger रूप में किया जाता है) जैसे यौगिक होते हैं।
ऋणयनों की उपस्थिति के आधार पर सिलिकेटों की संरचना
सिलिकन (Si) तथा ऑक्सीजन की विधुत ऋणात्मक में अंतर 1.7 है इससे स्पष्ट होता है की Si O आबन्ध आयनिक प्रकृति का है। सिलिनी । उनी पनि राणायनों के रूप या प्रकार या वर्ग पर आधारित होती है। गोनि, सानो । गुणायन का आकार बड़ा होता है जालक (lattice) की विमाए (dimensions) ऋणायनो द्वारा निर्धारित होती हैं न कि धनायनों द्वारा। सभी सिलिकेटो की मोलिक इकाई siO4-4 ऋणायन है। Si4+ तथा O2- की त्रिज्याओ का अनुपात 0.29 है, इसमे भी ज्ञात होता है कि से खनिज पदार्थ चार उपसहसंयोजक सिलिकन अर्थात च्तुश्फ्ल्कीय siO4-4 पर आधारित है क्योंकि इन ऋणायनों में सिलिकन sp3-संकरण करता है, अत: इराकी सरचना चतुणलकीय होती है।
जैसे कि ऊपर चित्र में दर्शाया गया है कि चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन के साथ आबन्ध बनाते हैं।
चित्र (A) में सरल वृत्त [o] ऑक्सीजन परमाणु को तथा छायित वृत्त [∙] सिलिकन को प्रदर्शित करते हैं। Si-O तथा O-O बन्ध लम्बाइयाँ क्रमश: 1 ∙ 62 Å तथा 2∙7 Å होती है। य SiO4-4 , चतुष्फलकीय इकाई संघनित होकर (एक या अधिक ऑक्सीजन के साझे द्वारा) विभिन्न प्रकार के ऋणायन बनाती हैं।
सिलिकेटों का वर्गीकरण
यद्यपि सभी सिलिकेटों में चतुष्फलकीय SiO4, इकाई होती है तथापि इनका वर्गीकरण तथ्य के आधार पर किया जा सकता है कि SiO4, इकाइयाँ किस प्रकार से परस्पर जुड़ी । इस आधार पर सिलिकेटों को अग्रलिखित चार वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है.
- विविक्त ऋणायन वाले सिलिकेट
(Silicates with Discrete Anions)
(a) सरल विविक्त ऋणायन— इस प्रकार के सिलिकेटों में SiOR ऋणायन होता है जिसकी आकृति चतुष्फलकीय होती है। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार के सिलिकेटों में SiO4-4 ऋणायन निकटवर्ती SiO4-4 ऋणायन से ऑक्सीजन द्वारा आबंधित नहीं होता। इस प्रकार के सिलिकेट ऑर्थो सिलिकेट कहलाते हैं। इस प्रकार के कुछ मुख्य सिलिकेट के फिनेसिट (Be2,SiO4 ), विलेमाइट (Zn2SiO4), ऑलिविन (9 Mg2SiO4. FeSiO4) तथा जिकॉन (ZrSiO4).
(b) अधिक जटिल विविक्त ऋणायन– इस प्रकार के सिलिकेट निम्न दो प्रकार के होते हैं
(i) अचक्रीय विविक्त ऋणायनों वाले सिलिकेट–जब प्रत्येक SiO4-4 निकटवन SiO4-4 के साथ एक ऑक्सीजन परमाणु के साथ साझा करके जुड़ा होता है तो अचक्र विविक्त ऋणायन वाले सिलिकेट बनते हैं। इस प्रकार के सिलिकेटों को सामान्य मंत्र (Sin O3n+1] (2n + 2)- द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इस प्रकार का प्रमुख ऋणायन पाइरोसिलिकेट ऋणायन, Si2O6-7 है।
- चक्रीय विविक्त ऋणायनों वाले सिलिकेट
जब प्रत्येक SiO4-4 ऋणायन निकटवर्ती SiO4-4 के साथ ऑक्सीजन परमाणु जड़ते हैं तो चक्रीय विविक्त ऋणायन प्राप्त होता है। इस प्रकार के सिलिकेटों का सामान्य सूत्र
एन्स्टेटाइट में सेतु न बनाने वाली ऑक्सीजन अन्य ऑक्सीजन के साथ इस प्रकार व्यवस्थित होती है कि मैग्नीशियम की समन्वय संख्या छ: हो जाए। स्पोड़मीन में लीथियम तथा ऐलुमिनियम दोनों की समन्वय संख्या छः होती है जबकि डिओपसाइड में कैल्सियम तथा मैग्नीशियम की समन्वय संख्या क्रमश: 8 तथा 6 होती है।
(b) द्विशृंखला ऋणायन वाले सिलिकेट (Silicate Containing Double Chain Anions)—इस प्रकार के खनिज पदार्थों में दो समान्तर शृंखलाएँ ऑक्सीजन परमाण द्वारा एक दूसरे से जुड़ी होती हैं, जैसे कि आगे दर्शाया गया है। इनका सामान्य मंत्र होता (si4O11)6n-n है।
संरचना से स्पष्ट है कि जब आधे सिलिकन परमाणु अन्य सिलिकन परमाणुओं के साथ जुड़ी तीन ऑक्सीजन परमाणुओं के साथ साझा करते हैं तथा शेष आधे सिलिकन परमाणु शेष सिलिकन परमाणुओं के साथ जुड़े दो ऑक्सीजन परमाणुओं के साथ जुड़े होते हैं तब इस प्रकार के ऋणायन बनते हैं।
एम्फिबोल्स खनिज पदार्थों में द्विशृंखला ऋणायन उपस्थित होते हैं।
- परतीय संरचनाओं वाले सिलिकेट
(Silicates with Layer Structures)
जब प्रत्येक Sio4-4 आयन के चारों ऑक्सीजन परमाणुओं में से केवल तीन ऑक्सीजन परमाणु निकटवर्ती Sio4-4 आयन के साथ जुड़ते हैं तो परतीय संरचना वाले सिलिकेट बनते हैं। तथा इनका संघटन (Si2O5)2n-n है जिसे आगे दर्शाया गया है।
मृत्तिका खनिज (clay mineral) तथा माइका में छ: भुजीय परतीय ऐपोफिलाइट KFCa4 Si8O208H2O खनिज में चार तथा आठ रिंग की एकान्तरीय परतीय सरचा होती हैं।
तीन विमीय जाल संरचना वाले सिलिकेट (Silicates with Three Dimensiome Network)- Sio4-4 आयन के सभी ऑक्सीजन परमाणु निकटवर्ती Sio4-4 समूह
साथ साझा करके जो जाल संरचना बनाते हैं उसमें प्रत्येक ऑक्सीजन परमाणु दो SiO, समूह में समान होता है। इस प्रकार इस संरचना का संघटन SiO2 प्राप्त होता है। इस प्रकार का संघटन निम्न में पाया जाता है
(a) सिलिका के सभी क्रिस्टलीय रूप–सिलिका के निम्न तीन रूप हैं
(i) क्रिस्टोबेलाइट (Crystobalite)
(ii) ट्राइडिमाइट (Tridymite)
(iii) dalle (Quartz),
क्रिस्टोबेलाइट तथा ट्राइडिमाइट उपर्युक्त प्रकार से ही बनते हैं तथा इनमें अन्तर केवल त्रिर्यक बंधनी (cross linkage) का होता है। क्वार्ट्स में नियमित व्यवस्था में कुछ अव्यवस्था होती है जिसके फलस्वरूप त्रिभुजीय स्क्रू अक्ष (Trigonal screw axes) के चारों ओर −O−Si−O−Si−O− श्रृंखला का सर्पाकार (spiral) होता है।
(b) फेल्स्पार, जिओलाइट तथा अल्ट्रामेरीन–यदि (Sin O2n) के ढाँचे (framework) में एक या अधिक सिलिकन परमाणुओं को ऐलुमिनियम परमाणु से प्रतिस्थापित कर दें तो उपर्युक्त प्रकार, के खनिज पदार्थों का ढाँचा प्राप्त होता है। इस प्रक्रम के फलस्वरूप नए ढाँचे पर ऋण आवेश उत्पन्न होता है जिसे उचित आकार के धनायन द्वारा
संतुलित कर लिया जाता है। इस प्रकार एक नया अणु प्राप्त हो सकता है। यह नया आ. फेल्स्पार, जिओलाइट अथवा अल्ट्रामेरीन हो सकता है। यहाँ यह बताना महत्त्वपूर्ण है कि
समचतुष्फलकीय संरचना बनाए रखने के लिए इन खनिज पदार्थों में निम्नलिखित अनुपात अवश्य होना चाहिए—
फेल्स्पार— चट्टान बनाने वाले खनिज पदार्थों में ये बहुत महत्वपूर्ण हैं तथा लगभग ही तिहाई आग्नेय शैल (igneous rocks) इसकी बनी होती है। फेल्स्पारों को उनकी समिति तथा धनायनों की आयनिक त्रिज्याओं के अनुसार दो समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। [Ba2+ तथा K+ आयनों की आयनिक त्रिज्याएँ (क्रमश: 1 • 35Å तथा 1 • 33 Å) Ca2+ तथा Na+ आयनों (क्रमश: 0 • 99Å तथा (0 • 95 Å) से अधिक हैं।]
(i) ऑर्थोक्लेस फेल्स्पार— इनकी सममिति एकनताक्ष (monoclinic) होती है तथा इसके उदाहरण-ऑर्थोक्लेस (Orthoclase) KAISi3O8 तथा केलसेन (Celsian) BaAl2Si2O8 हैं।
(ii) पेलगिओक्लेस फेल्स्पार–इनकी सममिति त्रिनताक्ष (triclinic) होती है। इसके . उदाहरण—ऐल्बाइट (Albite), NaAlSi3O8 तथा ऐनोरथाइट (Anorthite CaAl2Si2O8 हैं।
संरचना— इन खनिज पदार्थों की संरचना SiO4 तथा AlO4 समूहों के त्रिविमिय बंधन ना तथा ऋण आवेशित ढांचे के अन्तराकाशी (interstices) में Na+ , K+ Ca2+ या Ba2+ के स्थान पर आधारित है। इन खनिज पदार्थों के (Si, Al)O2, के ढाँचे को 4 : 8 के जाल की परतों के रूप में लिया जा सकता है जिसे यहाँ दर्शाया गया है।
प्रत्येक चतुष्फलक का चौथा सिरा कागज के तल के ऊपर की ओर या नीचे की ओ.. होता है। तत्पश्चात, ये परतें आपस में जुड़कर सममिति के तल बनाते हैं।
जिओलाइट— जिओलाइट में (SiAl)n O2n, ढाँचा होता है तथा ढाँचे पर उत्पन्न ऋण आवेश धनायनों द्वारा संतुलित हो जाता है। इसकी संरचना फेल्स्पार की संरचना से अधिक खुली होती है तथा इसमें रिक्त स्थान होता है जिसमें गैसें, जैसे-CO2, NH3 तथा द्रव जैसे-जल, एथिल ऐल्कोहॉल आदि प्रवेश कर जाते हैं तथा वहाँ अवशोषित हो जाते हैं। चूंकि जल अणुओं का संरचना के प्रति कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं है अर्थात् निर्जलीकरण तथा जलयोजन से द्वितीय ठोस प्रावस्था नहीं बनती। इन रिक्त स्थानों में धनायन भी विसरित हो सकते हैं तथा
जिओलाइट के ये गुण होते हैं कि वे विनिमय अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करें। उदाहरणार्थ, सा जिओलाइट जैसे-एनलसाइट (analcite) की क्रिया लवण के जलीय विलयन से करें तो धात्विक आयन, जैसे-Ag+ , Na+ से प्रतिस्थापित हो जाते हैं।
NA [AIsi2O6] H2O + AgNO3 → Ag[AlSi2O6] H2O + NaNO3
इस प्रकार की अभिक्रियाएँ उत्क्रमणीय होती हैं तथा इनका उपयोग जल के मृदुकरण में किया जाता है।
जिओलाइट के उपयोग
(i) जल का मृदुकरण-कठोर जल का मृदुकरण परम्यूटिट (permutit) से किया ना है जोकि सोडियम जिओलाइट है। कठोर जल के Ca2+ आयन सोडियम जिओलाइट के मोडियम आयनों से विनिमय करते हैं। जब परम्यूटिट में Ca2+ आयनों का सान्द्रण अधिक हो जाता है तो इसे सोडियम क्लोराइड के संतृप्त विलयन से अभिकृत करते हैं जिससे पुन: विनिमय प्रक्रम होता है अर्थात् उत्क्रम प्रक्रम होता है।
Na2O. Al2O3. nSiO2 – mH2O + CasO4 → CaO . Al2O3nSiO2.mH2O + Na2SO4
CaO. Al2O3 . nSiO2+mH2O+ 2NaCl → Na2O. Al2O3. nSiO2 . mH2O + CaCl2
(ii) गैसीय मिश्रण का पृथक्करण–कुछ जिओलाइटों में यह गुण होता है कि वे गैसों के मिश्रण में से कुछ गैसों को अधिशोषित कर सकते हैं। अत: चैबजाइट (Chabazite) (Ca, Na2) (Al2Si4O12) . 6H2O तथा गमेलिनाइट (gmelinite) मेथेन तथा एथेन को तीव्रता से तथा ॥ पैराफीनों को धीरे-धीरे अधिशोषित करते हैं लेकिन शृंखला युक्त पैराफिनों तथा ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन को अधिशोषित नहीं करते। मोरडेनाइट (Mordenite) जिसमें सोडियम पर्याप्त मात्रा में होता है मेथेन तथा एथेन को धीरे-धीरे परन्तु नाइट्रोजन, ऑक्सीजन तथा अन्य छोटे अणुओं को शीघ्रता से अधिशोषित करते हैं। जब मोरडेनाइट में से सोडियम का प्रतिस्थापन बेरियम द्वारा कर देते हैं तो यहाँ नाइट्रोजन, ऑक्सीजन तथा छोटे अणुओं का अधिशोषण होता है परन्तु मेथेन या एथेन का नहीं। अत: उपयुक्त तापमान पर कुछ विशेष गैसों का अधिशोषण सम्भव होता है जिनका सामान्यतया पृथक्करण कठिन होता है।
अल्ट्रामेरीन—ये संश्लेषित रंगीन तथा रंगहीन सोडियम ऐलुमिनो सिलिकेट होते हैं। [(SiAl)n O4n ] ढाँचे तथा संतुलित धनायनों के अतिरिक्त इनमें कुछ ऋणायन, जैसे S2-, Cl–, SO2-4 भी होते हैं। जैसे
अल्ट्रामेरीन (Ultramarine) Na8 [Al6Si6O24]S
सोडालाइट (Sodalite) Na8 [Al6Si6O24]Cl2
नोसेलाइट (Nosalite) Na8 [Al6Si6O24]SO4
जिओलाइटों के समान धनायनों का भी विनिमय होता है जैसे—सोडालाइट (जिसमें क्लोराइड आयन होते हैं) को सोडियम सल्फेट के साथ गर्म करने पर नोसेलाइट प्राप्त होता है। यह इस तथ्य से भी इंगित होता है कि अनेक अल्ट्रामेरीन ऐसे भी बनाए गए हैं जिनमें Na+ के स्थान पर धनायन, जैसे-Li+ , TI+ , Ca2+ तथा Ag+ होते हैं तथा S2- के स्थान पर Se2- या Te2- ऋणायन होते हैं फलस्वरूप इनका रंग रंगहीन से पीला, लाल, बैंगनी तथा नाला होता है।
यद्यपि अभी भी रंग का स्रोत भली-भाँति ज्ञात नहीं है तथापि यह माना जाता है धनायन की उपस्थिति के कारण रंग में परिवर्तन होता है। अल्ट्रामेरीन को सोडियम फॉ। बलीराइड के साथ गर्म करने पर इसका रंग नष्ट हो जाता है। इसे सोडियम फॉर्मेट के साथ करने पर क्षार धातु की मात्रा बढ़ती है जबकि क्लोरीन के साथ गर्म करने पर क्षार धातु की मान घटती है। यह भी हो सकता है कि अल्ट्रामेरीन का रंग सल्फाइड आयन के कारण हो।
अल्ट्रामरीन का उपयोग नीले रंजक (pigment) के रूप में किया जाता है। इन उपयोग स्त, लीनन, चीनी आदि के हल्के पीले रंग को समाप्त करने में भी किया जाता है|
प्रश्न 34. निम्नलिखित यौगिकों के बनाने की विधियों, गुणों व उपयोगों का व कीजिए—
(i) सिलिकन टेट्राफ्लुओराइड, (ii) कैल्सियम कार्बाइड, (iii) सिलिकन कार्बाद
उत्तर : (i) सिलिकन टेट्राफ्लुओराइड (SiFa4)
बनाने की विधि—(1) अक्रिस्टलीय सिलिकन पर फ्लुओराइड की क्रिया से,
के मध्य में एक दूसरे ग्रेफाइट का इलेक्ट्रोड होता है। विद्युत ताप भट्टी में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित करने पर कैल्सियम पिघली हुई अवस्था में प्राप्त होता है। इसे लगातार निकालते रहते हैं तथा ठण्डा करके छोटे टुकड़ों में तोड़ लेते हैं।
गुण—(1) शुद्ध कैल्सियम कार्बाइड रंगहीन ठोस पदार्थ है, परन्तु इसका व्यापारिक नमूना अशुद्धियों की उपस्थिति के कारण सलेटी रंग का होता है।
(2) यह जल के साथ क्रिया करके ऐसीटिलीन देता है।
कैल्सियम सायनेमाइड तथा कार्बन के मिश्रण को नाइट्रोलिम कहते हैं जिसका उपयोग खाद के रूप में होता है।
उपयोग— (1) ऐसीटिलीन बनाने में जो कि ऑक्सीऐसीटिलीन ज्वाला उत्पन्न करने में प्रयोग की जाती है। इस ज्वाला का ताप बहुत अधिक होता है और यह धातुओं को जोड़ने और काटने के काम आती है।
(2) कैल्सियम सायनेमाइड बनाने में जिसका उपयोग खाद के रूप में होता है।
(iii) सिलिकन कार्बाइड (कार्बोरंडम, Sic)
बनाने की विधि— यह बालू व कोक के 5 : 3 मिश्रण को कुछ लकड़ी के बुरादे व साधारण लवण के साथ लगभग 2000°C पर गर्म करके प्राप्त किया जाता है। यह क्रिया एक
विद्युत भट्टी में की जाती है जिसमें एक पतली कार्बन कोर से जुड़े दो ग्रेफाइट के इलेक्ट्रोड होते हैं जिसके चारों ओर क्रिया करने वाले पदार्थ रखे जाते हैं।
साधारण लवण गालक की तरह कार्य करता है तथा अशद्धियों के साथ वाष्पशाल क्लोराइड बनाता है। लकड़ी का बुरादा सरन्ध्रता को बढ़ाता है जिससे CO गैस सरलतापूर निकल जाती है। क्रिया के समाप्त होने पर कार्बन की कोर के चारों ओर सिलिकन काबा३७ परत बन जाती है। इसे पृथक् करके H2SO4NaOH तथा अन्त में जल के साथ धोकर सुख लेते हैं।
सभी तत्वों के बाहरी कोश में 5 इलेक्ट्रॉन हैं और बाह्यतम कोश का इइलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2 np3 है। भीतर के सभी उपकोश पूर्ण हैं। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में समान के कारण इनका एक-ही वर्ग में रखा जाना उचित है।
ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (Oxidation States)-इन तत्वों की सामान्य ऑक्सीका अवस्थाएँ -3, + 3 तथा + 5 होती हैं। आकार और धात्विक गुण वृद्धि के कारण इस वर्ग में की ओर चलने पर -3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करने की प्रकृति घटती है। जबकि ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व घटता है। इस वर्ग में नीचे की ओर +5 ऑक्सी अवस्था के स्थायित्व में कमी तथा + 3 ऑक्सीकरण अवस्था के स्थायित्व में वृद्धि होती है । अक्रिय युग्म प्रभाव पर आधारित है। इनके अतिरिक्त नाइट्रोजन ऑक्सीजन के साथ +1. तथा + 4 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करती है, जबकि फॉस्फोरस कुछ ऑक्सो अम्लों में तथा + 4 ऑक्सीकरण अवस्था भी व्यक्त करता है।
इन तत्वों का + 3 ऑक्सीकरण अवस्था में स्थायित्व क्रम N < P < As < Sb <R होता है जबकि +5 ऑक्सीकरण अवस्था में स्थायित्व क्रम N > P> As > Sb> Bi होता है।
इनके गुणों में समानता तथा उनमें क्रमिक परिवर्तन तत्वों को एक ही उपवर्ग में रखे जाने की पुष्टि करते हैं।
गुणों में समानता (Similarities in Properties)—इन तत्वों के गुणों में निम्नलिखित समानताएँ पायी जाती हैं
(1) इन तत्वों की मुख्य संयोजकता 3 तथा 5 है।
(2) ये (N2 को छोड़कर) स्वतन्त्र अवस्था में नहीं पाए जाते।
(3) N2 के अतिरिक्त सभी ठोस हैं।
(4) N2 को छोड़कर सभी अपररूपता प्रदर्शित करते हैं।
(5) ये सब हाइड्राइड बनाते हैं और सभी सहसंयोजक यौगिक हैं; जैसे—NHR3, PH3, AsH3, SbH3 तथा BiH3। नाइट्रोजन NH3 के अतिरिक्त दो हाइड्राइड NH2-NH2 (हाइड्राजीन) तथा N3H (हाइड्राजोइक अम्ल) बनाता है जिनमें NH2-NH2 की क्षारीय प्रकृति और N3H की अम्लीय प्रकृति होती है।
क्षारीय प्रकृति व तापीय अपघटन का क्रम–NH3 > PH3 > AsH3> SbH3 > BiH3
अपचायक क्षमता का क्रम–NH3 < PH3 < AsH3 < SbH3 < BiH3
(6) ये सभी बहुपरमाणुकता प्रकट करते हैं।
(7) ये सभी M2O3 तथा M2O5 प्रकार के ऑक्साइड बनाते हैं। नाइट्रोजन N2O, NO NO2, N2O3 तथा N2O प्रकार के पाँच ऑक्साइड बनाती है। M2O3 प्रकार ऑक्साइडों का स्थायित्व क्रम N से Bi तक बढ़ता है, जबकि अम्लीय प्रवृत्ति N स घटती है।
नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की अम्लीय प्रवृत्ति का क्रम ।
N2O < NO < N2O3 < NO2 < N2O5
(8) ये सभी MX3, प्रकार के हैलाइड बनाते हैं, जिनका जल-अपघटन हो जाता है।
क्षारीय प्रवृत्ति का क्रम NF3 > PF3 > AsF3 > SbF3 > BiF3
गुणों में क्रमिक परिवर्तन (Gradation in Properties)—परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ-साथ ऊपर से नीचे की ओर चलने पर
(1) सहसंयोजक त्रिज्या N से Bi तक बढ़ती है।
तत्व | N | P | As | Sb | Bi |
सहसंयोजक त्रिज्या (A) | 0.74 | 1.10 | 1.21 | 1.41 | 1.48 |
(2) आयनन विभव तथा विद्युत-ऋणात्मकता N से Bi तक घटती है।
तत्व | N | P | As | Sb | Bi |
आयनन एन्थैल्पी (किलोजूल मोल-1) | 1405 | 1012 | 947 | 834 | 703 |
विद्युत-ऋणात्मकता | 3.0 | 2.1 | 2.0 | 1.9 | 1.8 |
नाइट्रोजन को छोड़कर अन्य सभी तत्व पेन्टाहैलाइड भी बनाते हैं क्योंकि नाइट्रोजन की बाह्यतम कोश में रिक्त d-उपकोश न होने के कारण यह अपने अष्टक का प्रसार नहीं कर सकता है।
प्रश्न 36. आवर्त सारणी के VIA समूह के तत्वों के सामान्य लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: वर्ग 16 या VIA के तत्व
आवर्त सारणी के वर्ग VIA में ऑक्सीजन (O), सल्फर (S), सेलेनियम (Se), टेल्यूरियम (Te) तथा पोलोनियम (Po) तत्व सम्मिलित हैं। जिन्हें ऑक्सीजन परिवार के तत्व कहा जाता है। इनमें पोलोनियम रेडियोऐक्टिव तत्व है। इन तत्वों में प्रथम चार सदस्य अधातु (non-metal) हैं और पोलोनियम को छोड़कर शेष सभी तत्वों को सामूहिक रूप से कैल्कोजेन (chalcogen) कहते हैं, जिसका अर्थ अयस्क बनाने वाले तत्व होता है। यह नाम ब्रास के लिए ग्रीक भाषा के शब्द से व्युत्पन्न हुआ है तथा सल्फर एवं इसके समवंशिया का कॉपर के साथ संगुणन होने की ओर इंगित करता है। अधिकांश कॉपर खनिजों में या तो ऑक्सीजन अथवा सल्फर या वर्ग के अन्य सदस्य पाए जाते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration)-तत्वों के इलेक्ट्रोनिक विन्यास से स्पष्ट है कि प्रत्येक तत्व के सबसे बाहरी कोश में 6 इलेक्ट्रॉन (ns2– mp4) उपार है। चार इलेक्ट्रॉन, तीन p कक्षकों में स्थित हैं जिनका विन्यास p2xp1yp1z है। इस प्रकार कोश में आधे भरे हुए दो p कक्षक हैं जो अन्य तत्वों के साथ रासायनिक आबन्ध स्थापित क के लिए उत्तरदायी हैं।
8O = 1s2,2s22p4
16S = 1s2, 2s22p6,3s23p4
34Se = 1s2,2s22p6, 3s23p63d10,4s2 4p4
52Te = 1s2,2s22p6, 3s23p63d10,4s24p4d10,5s25p4
84Po = 1s2,2s22p6,3s2 3p6 3d10, 4s24p4 d104f14, 5s25p6 5d10,6s26p4
वर्ग VI A के तत्वों के गुणधर्म
वर्ग VIA के तत्वों के महत्त्वपूर्ण परमाण्विक एवं भौतिक गुण उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर अग्रांकित सारणी में दिए गए हैं। कुछ परमाण्विक, भौतिक तथा रासायनिक गुणों और उनकी प्रवृत्तियों की विवेचना निम्नलिखित है I.
परमाण्विक एवं भौतिक गुणधर्म
सारणी-3 : वर्ग VIA के तत्वों के भौतिक गुण गणधर्म
- परमाणु तथा आयनिक त्रिज्या–वर्ग में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर कोशों की संख्या में वृद्धि के कारण परमाणु तथा आयनिक त्रिज्याओं के मानों में वृद्धि होती है।
- आयनन विभव या ऊर्जा—वर्ग में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर आयनन ऊर्जा कमी होती है। इसका कारण परमाणु आकार में होने वाली वृद्धि है। इस वर्ग के तत्वों की आयनन ऊर्जा का मान वर्ग VA के संगत आवर्ती के तत्वों से कम होता है। इसका कारण यह है कि वर्ग VA के तत्वों में अतिरिक्त स्थायित्व प्राप्त अर्द्धपरित इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के का उपस्थित होते हैं।
- इलेक्ट्रॉन बन्धुता–वर्ग–VIA के तत्वों की इलेक्ट्रॉन बन्धुता का मान उन होता है। सल्फर से टेल्यूरियम तक इलेक्ट्रॉन बन्धुता का मान घटता है। ऑक्सीजन की इलेक्टॉन बन्धुता सल्फर से कम होती है क्योंकि ऑक्सीजन परमाणु का आकार अपेक्षाकृत अधिक छोटा होने के कारण इसका इलेक्ट्रॉन आवेश घनत्व उच्च होता है जिससे आने वाला इलेक्टॉन अधिक प्रतिकर्षित होता है। इस कारण इलेक्ट्रॉन को संयुक्त करने में अधिक ऊर्जा प्रयुक्त होती है, फलस्वरूप निर्मुक्त ऊष्मा का मान घट जाता है।
- विद्युत ऋणात्मकता—फ्लुओरीन के बाद ऑक्सीजन की विद्युत ऋणात्मकता का मान सब तत्वों से उच्चतम होता है। वर्ग में परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ कोशों की संख्या में वृद्धि के कारण परमाण्वीय आकार बढ़ता है। अत: विद्युत ऋणात्मकता में कमी होती जाती है। इससे यह प्रदर्शित होता है कि ऑक्सीजन से पोलोनियम तक धात्विक लक्षणों में वृद्धि होती है।
- अधात्विक गुण— ns2-np4 विन्यास से यह स्पष्ट है कि इन तत्वों की प्रधानत अधात्विक प्रकृति होनी चाहिए क्योंकि इनसे या तो इलेक्ट्रॉन प्राप्त करके या उनकी साझेदारी से अक्रिय गैसों के विन्यास को प्राप्त करने की प्रवृत्ति की अपेक्षा की जाती है, परन्तु इनके अधात्विक गुणों में परमाणु आकार में वृद्धि के साथ-साथ कमी आती है।
प्रथम चार तत्वों की प्रकृति अधात्विक है। इसे सामूहिक रूप से कैल्कोजन या अयस्ककारी तत्व कहते हैं। इस वर्ग के तत्वों में ऑक्सीजन और गन्धक में अधात्विक गुण सबसे अधिक तथा Se व Te में अपेक्षाकृत कम होता है। Po रेडियोऐक्टिव तथा अल्पजीले होते हुए भी स्पष्ट रूप से धात्विक है।
- गलनांक तथा क्वथनांक–इस वर्ग के तत्वों का परमाणु क्रमांक बढ़ने पर इनके गलनांक तथा क्वथनांक भी नियमित रूप से बढ़ते जाते हैं क्योंकि उनके परमाणुओं में वाण्डा वाल्स आकर्षण बल बढ़ते जाते हैं। Te व Po पर आने पर गलनांक व क्वथनांक दोनों का मान थोड़ा कम होता है, परन्तु Po का गलनांक असाधारण रूप से कम है।
- आण्विक संरचना—एक स्थायी द्विपरमाणुक अणु होने के कारण ऑक्सीजन एक गैस है, परन्तु इस । परिवार के अन्य सदस्य साधारण ताप पर ठोस अवस्था में होते हैं तथा इनके अणु जटिल होते हैं। S तथा Se के अणु साधारण ताप पर S8 और Se8 के रूप में पाए चित्र-58 : Sg पुटित वलय संरचना। जाते हैं और इनकी संरचना पुटित वलय संरचना (puckered ring structure) होती है।
- अपररूपता–ऑक्सीजन परिवार के सभी सदस्य एक से अधिक अपररूपो म पार जाते हैं। ऑक्सीजन दो अधात्विक अपररूपों O2, और O2, में मिलती है। गन्धक अनेक अपररूपो में पायी जाती है जैसे विषमलम्बाक्ष या a-गन्धक एकताक्ष या b-गन्धका सला लाल अधात्विक तथा भूरे धात्विक अपररूपों में मिलता है। टेल्यरियम के दो अपररूप हो। इसका अधात्विक अपररूप इसके धात्विक अपररूप की अपेक्षा कम स्थायी है। पोलोनियम के भी दो अपररूप (a तथा B) होते हैं जिनकी प्रकृति भी धात्विक होती है।
- श्रृंखलन बनाने की प्रवृत्ति-केवल ऑक्सीजन तथा गन्धक में ही श्रृंखला बनाने की प्रवृत्ति होती है। गन्धक में यह प्रवृत्ति अपेक्षाकृत अधिक होती है। अत: यह अत्यधिक स्थायी पॉलिऑक्साइड तथा पॉलिसल्फाइड बनाते हैं। उदाहरणार्थ-पॉलिसल्फाइड S, सल्फन H-Sn, -H, पॉलिसल्फ्यूरिक अम्ल HO3S (S)n –SO3H आदि में सल्फर के परमाणुओं की श्रृंखलाएँ होती हैं। इनके अतिरिक्त, सल्फर के विभिन्न अपररूपों में भी। S-परमाणुओं का वलय (ring) होता है। ऑक्सीजन भी पॉलिऑक्साइड H-0-0-H बनाता है। कमरे के ताप पर ऑक्सीजन गैस तथा अन्य तत्व ठोस हैं। ऑक्सीजन परमाणु का आकार छोटा होने के कारण यह pm-pm आबन्ध के द्वारा 0, अणु बनाता है। 02 अणुओं में परस्पर दुर्बल वान्डरवाल्स बल होने के कारण यह गैस है। अन्य तत्वों का आकार बड़ा होने के कारण वे pm-pm आबन्ध नहीं बनाते हैं। ये केवल एकल सहसंयोजक आबन्ध द्वारा परस्पर जुड़कर पुटित वलय बनाते हैं। इस कारण वे ठोस होते हैं। पुटित वलय में S, Se एवं Te अष्टपरमाणुक (octa-atomic) अणु Sg, Seg तथा Teg बनाते हैं। H-0-0-H
- रासायनिक गुणधर्म
प्रमुख रासायनिक गुण निम्नवत् हैं
- ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (Oxidation states)-वर्ग VIA (वर्ग 16) के तत्व अनेक ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं। -2 ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व वर्ग में नीचे की ओर घटता है। पोलोनियम बहुत कम स्थितियों में ही-2 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है। ऑक्सीजन की विद्युत ऋणात्मकता बहुत उच्च होने के कारण (OF, के उदाहरण को ठोडकर जिसमें इसकी ऑक्सीकरण अवस्था +2 है) यह केवल-2 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है। वर्ग के अन्य तत्व+2,+4,+ 6 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाते है. परन्त +4 तथा +6 अवस्थाएँ अधिक सामान्य हैं। सल्फर, सेलेनियम तथा टेल्यूरियम सामान्यतया
ऑक्सीजन के साथ यौगिकों में +4 ऑक्सीकरण अवस्था तथा फ्लुओरीन के साथ यौगिकों में +6 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। वर्ग में नीचे की ओर बढ़ने पर +6 ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व घटता है और +4 ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व बढ़ता है (अक्रिय युग्म प्रभाव के कारण)/ +4 तथा +6 ऑक्सीकरण अवस्थाओं में आबन्धन hd प्राथमिक रूप से सहसंयोजक होता है।
इसमें छह अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण S-परमाणु की +6 ऑक्सीकरण अवस्था भी सम्भव है।
- हाइड्रोजन के प्रति अभिक्रियाशीलता–वर्ग VIA (वर्ग-16) के सभी तत्व HE (E=O.S, Se. Te, Po) प्रकार के हाइड्राइड बनाते हैं। इनका अम्लीय गुण H2O से H2Te तक बढ़ता है। अम्लीय गुण में वृद्धि को वर्ग में नीचे की ओर जाने पर आबन्ध (H_E) वियोजन एन्थैल्पी में कमी द्वारा समझा जा सकता है। आबन्ध (H_E) वियोजन एन्थैल्पी में वर्ग में नीचे की ओर जाने पर कमी होने के कारण हाइड्राइडों के तापीय स्थायित्व में भी H2O से लेकर H2Po तक कमी होती है। जल के अतिरिक्त सभी हाइड्राइड अपचायक गुण वाले होते हैं तथा यह गुण H2S से लेकर H2Te तक बढ़ता है क्योकि आबन्ध वियोजन ऊर्जा घटती है।
वर्ग VIA (वर्ग-16) के तत्वों के हाइड्राइडों के कुछ प्रमुख गुण निम्न क्रम में होते हैं
- ऑक्सीजन के प्रति अभिक्रियाशीलता— ये सभी तत्व EO2 तथा EO3 प्रकार के ऑक्साइड बनाते हैं जहाँ E = S, Se, Te तथा [P) हैं। ओजोन (O3) तथा सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) गैसें हैं, जबकि सेलेनियम डाइऑक्साइड (SeO2) एक ठोस है। डाइऑक्साइड का अपचायक गुण SO2 से ‘TeO2 तक कम होता जाता है। SO2 एक अपचायक है, जबकि TeO2 एक ऑक्सीकारक है। EO2 प्रकार के ऑक्साइडों के अतिरिक्त सल्फर, सेलेनियम तथा टेल्यूरियम EO3 प्रकार के ऑक्साइड (SO3, SeO3, TeO3) मा बनाते हैं। दोनों प्रकार के ऑक्साइड अम्लीय प्रकृति के होते हैं।
- हैलोजेन के प्रति क्रियाशीलता— वर्ग VIA के तत्व EXg, EX, तथा EX2 प्रकार के हैलाइड बनाते हैं, जहाँ E इस वर्ग की धातु है तथा X एक हैलोजेन है। हैलाइडों के स्थायित्व के घटने का क्रम है—F > Cl> Br> I| हेक्साहैलाइडों में केवल हेक्साफ्लुओराइड ही स्थायी हैलाइड होते हैं। सभी हेक्साफ्लुओराइड गैसीय प्रकृति के हैं। इनकी संरचना अष्टफलकोय होती है। सल्फर हेक्साफ्लुओराइड, SF6 त्रिविमीय कारणों से असाधारण रूप से स्थायी होता है।
टेट्राफ्लुओराइडों में से SF4 एक गैस, SeF4 द्रव तथा TeF4 एक ठोस है। ये हेक्साफ्लुओराइड sp3d-संकरित होते हैं, अत: इनकी संरचना त्रिकोणीय द्विपिरैमिडी होती है जिसमें एक निरक्षीय (equatorial) स्थिति पर एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म होता है।
सेलेनियम को छोड़कर सभी तत्व डाइक्लोराइड तथा डाइब्रोमाइड बनाते हैं। ये डाइहैलाइड sp3 संकरण द्वारा बनते हैं तथा चतुष्फलकीय संरचना के होते हैं।
वर्ग VIA के सभी तत्व हैलोजेन से क्रिया करके हैलाइड बनाते हैं। कुछ प्रमुख हैलाइड अग्रलिखित हैं
F | CI | Br | I | |
O से संयोग | O2F2
OF2 |
CI2O,CIO2
CI2O6,CI2O7 |
Br2O
BrO2 |
I2O4
I4O9 |
S से संयोग | S2F2
SF4 SF6 S2F10 |
S2CI2
SCI2 SCI4 – |
–
S2Br3 – – |
–
– – – |
प्रश्न 37. आवर्त सारणी के एक ही समूह में हैलोजेन तत्वों की स्थिति की विवेचना कीजिए। अथवा फ्लुओरीन के असामान्य व्यवहार की विवेचना कीजिए।
उत्तर : हैलोजेन तत्वों की आवर्त सारणी में स्थिति (फ्लुओरीन का असामान व्यवहार)-आवर्त सारणी के VII-A समूह में तत्व फ्लुओरीन (F), क्लोरीन (Cl), ब्रोमीन (Br) व आयोडीन (I) उपस्थित हैं जिनके परमाणु क्रमांक क्रमश: 9, 17, 35 व 53 हैं। इन तत्वों को हैलोजेन कहते हैं। हैलोजेन शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्दों हैलोस = समुद्री लवण व जीनस = उत्पन्न होना, से की गई है क्योंकि क्लोरीन, ब्रोमीन व आयोडीन के लवण समुद्र के जल में पाए जाते हैं। ये p-ब्लॉक के तत्व हैं जिनकी बाह्यतम कक्षा का सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np5 है। एक ही समूह के तत्व होने के कारण इनके गुणों में समानता तथा क्रमबद्ध परिवर्तन पाया जाता है। समूह का पहला तत्व फ्लुओरीन समूह के अन्य तत्वों से निम्नलिखित कारणों से भिन्नता प्रदर्शित करता है
(1) छोटा परमाणु आकार
(2) उच्च विद्युत ऋणीयता
(3) संयोजी कक्षा में खाली d-कक्षकों की अनुपस्थिति।
आवर्त सारणी में इन तत्वों की स्थिति निम्नलिखित तथ्यों के कारण न्यायसंगत है समानता
- इलेक्ट्रॉनिक विन्यास–इन सभी तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास एक जैसा होता है। इनकी बाह्यतम कक्षा का विन्यास ns2np5 है।
- संयोजकता—ये सभी एक संयोजक हैं। इसका कारण यह है कि इनकी संयोजी कक्षा में स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से एक इलेक्ट्रॉन कम है। इनके अधिकतर यौगिको म हैलोजेन एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके या एक इलेक्ट्रॉन का साझा करके अपना अष्टक पूर्ण करते हैं।
- भौतिक गुण
(i) अधात्विक लक्षण— ये सभी अधातु हैं।
(ii) गलनांक व क्वथनांक–इसके गलनांक व क्वथनांक कम हैं।
(iii) वाष्प का रंग–इनकी वाष्प रंगीन होती है तथा इनकी वाष्प की गन्ध तीक्ष्ण होती है।
(iv) परमाणुकता–गैस अवस्था में ये सभी द्विपरमाणुक हैं।
- हाइड्रोजन के साथ क्रिया– ये सभी हाइड्रोजन से संयोग करके गैसीय हाइड्रो अम्ल देते हैं। ये हाइड्रो अम्ल जल में घुलकर प्रबल अम्लीय विलयन देते हैं।
H2 + X2 → 2HX (X = F, Cl, Br, I)
- धातुओं व अधातुओं के साथ क्रिया–हैलोजेन अधिकतर धातुओं व अधातुओं से संयोग करके हैलाइड देते हैं।
- जल के साथ क्रिया–ये जल को अपघटित करके ऑक्सीजन देते हैं। आयोडीन जल के साथ केवल अपंचायक की उपस्थिति में क्रिया करता है।
2X2 + 2H2O→ 4HX + O2
- क्षारों के साथ क्रिया–फ्लुओरीन को छोड़कर अन्य सभी हैलोजेन ठण्डे व तनु क्षारों के साथ क्रिया करके हाइपो हैलाइट तथा गर्म व सान्द्र क्षारों के साथ क्रिया करके उच्चऑक्सी लवण हैलेट देते हैं।
फ्लोरीन क्षारों के साथ क्रिया करके ऑक्सीजन डाइफ्लुओराइड देती है।
2NaOH + 2F2 → 2Nar + OF2 + H2O
- ऑक्सीकारक गुण–फ्लुओरीन को छोड़कर जो कि अत्यन्त क्रियाशील है अम्ल हैलोजेन जलीय विलयन में ऑक्सीकारक की तरह कार्य करते हैं। अत:
NaNO 2 + H2O + Cla → NaNO 3 + 2HCI
K2SO3 + H2O + Br2 → K2SO4 + 2HBr
- अन्तरा–हैलोजेन यौगिकों का बनाना हैलोजेन परस्पर संयोग र अन्तरा-हैलोजेन (inter-halogen) यौगिक बनाते हैं। ये यौगिक AX (CIF, BARD ICI, IBr); AX3 (ClF3, BrF3, ICl3); AX5 (BrF5 , IF5) तथा AX7, (IF7, ) प्रकार के होते हैं।
- ऑक्सी–अम्लों का बनाना—फ्लुओरीन को छोड़कर जो कि कोई स्थायी ऑपर अम्ल नहीं बनाता, अन्य हैलोजेन चार प्रकार के ऑक्सी-अम्ल बनाते हैं।
HXO हाइपो हैलस अम्ल
HXO2 हैलस अम्ल
HXO3 हैलिक अम्ल
HXO4 परहैलिक अम्ल (जहाँ x = Cl, Br, I)
क्रमबद्ध परिवर्तन
(1) परमाणु भार, परमाणु आयतन, घनत्व, गलनांक व क्वथनांक परमाणु क्रमांक के साथ-साथ बढ़ते हैं, जबकि विद्युत ऋणीयता व आयनन विभव परमाणु क्रमांक के बढ़ने के साथ-साथ घटते हैं।
(2) फ्लुओरीन व क्लोरीन गैस हैं, ब्रोमीन द्रव है जबकि आयोडीन ठोस है, अत: भौतिक अवस्था गैस से द्रव तथा फिर ठोस में परिवर्तित होती है।
(3) वाष्य का रंग समूह में ऊपर से नीचे की ओर गहरा होता है। अत: फ्लुओरीन हल्की पीली, क्लोरीन हरी-पीली, ब्रोमीन लाल-भूरी तथा आयोडीन की वाष्प का रंग गहरा बैंगनी होता है।
(4) रासायनिक क्रियाशीलता समूह में नीचे की ओर घटती जाती है, अत: फ्लुओरीन सबसे अधिक क्रियाशील तथा आयोडीन सबसे क्रम क्रियाशील है। यह निम्नलिखित गुणों से स्पष्ट है
(i) फ्लुओरीन कम ताप पर अँधेरे में हाइड्रोजन से संयोग करती है, क्लोरीन प्रकाश के उपस्थिति में, ब्रोमीन गर्म करने पर तथा आयोडीन उत्प्रेरक की उपस्थिति में गर्म करने पर हाइड्रोजन से संयोग करती है।
(ii) फ्लुओरीन जल के साथ बहुत तेजी से, क्लोरीन धीमी गति से, ब्रोमीन बहुत धाम गति से क्रिया करती है, जबकि आयोडीन जल के साथ क्रिया नहीं करती है।
(iii) फ्लुओरीन सभी हैलोजेनों को उनके लवण विलयनों से विस्थापित कर देता है, स्लोरीन केवल ब्रोमीन व आयोडीन को विस्थापित कर सकती है, ब्रोमीन केवल आयाडान का विस्थापित करती है। आयोडीन किसी भी हैलोजेन को विस्थापित नहीं करती।
प्रश्न 38. अन्तराहैलोजेन यौगिक क्या हैं? ये हैलोजेनों से अधिक क्रियाशाल क्यों हैं? विभिन्न प्रकार के अन्तरहैलोजेन यौगिकों के बनाने की विधि, गुण तथा सरचना का वर्णन कीजिए।
अथवा अन्तराहैलोजेन यौगिकों के निर्माण की सामान्य विधियाँ, गुणधर्म, उपयोग और संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर : अन्तराहैलोजेन यौगिक
दो भिन्न हैलोजेनों के संयोग से बने सहसंयोजक यौगिक अन्तराहैलोजेन यौगिक कहलाते हैं। इन यौगिकों को कम विद्युत् ऋणी हैलोजेन का हैलाइड कहा जाता है। इन यौगिकों में एक बड़े आकार का हैलोजेन परमाणु A होता है जो कि विषम संख्या के छोटे हैलोजेन परमाणुओं से जुड़ा रहता है। अत: ये दोनों प्रकार के परमाणु परस्पर संयोग करके AX (CIF, BrF, BrCI, ICI, IBr), AX3, (CIF3, BrF3, ICI3), AX5 (BrF5 , IF5) तथा AX7(IF7) प्रकार के यौगिक बनाते हैं। इन यौगिकों में बड़े हैलोजेन परमाणु की ऑक्सीकरण अवस्था क्रमशः + 1, + 3, + 5 व + 7 हैं। अन्तराहैलोजेन यौगिकों में क्योंकि छोटे हैलोजेन परमाणुओं की संख्या विषम होती है, अत: ये यौगिक प्रतिचुम्बकीय (diamagnetic) होते हैं, जिनमें उपस्थित सभी संयोजी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं।
यह देखा गया है कि जैसे-जैसे A व X परमाणुओं के आकार का अनुपात बढ़ता है वैसे-वैसे अन्तराहैलोजेन यौगिक में परमाणुओं की संख्या बढ़ती है। क्लोरीन के लिए फ्लुऔरीन के परमाणुओं की संख्या 3, ब्रोमीन के लिए 5 तथा आयोडीन के लिए यह संख्या 7 होती है। किसी अन्तराहेलोजेन यौगिक में दो से अधिक भिन्न हैलोजेन परमाणु नहीं होते क्योंकि ऐसे यौगिक अस्थायी होते हैं।
हैलोजेनों से अधिक क्रियाशीलता-अन्तराहैलोजेन यौगिक सामान्य रूप से अन्य हैलोजेनों (फ्लोरीन को छोड़कर) से अधिक क्रियाशील होते हैं। इसका कारण यह है कि इन यौगिकों का A-X बन्ध हैलोजेनों के X-X या A-A बन्धों से दुर्बल होता है।
AX प्रकार के यौगिक
(1) क्लोरीन मोनो फ्लुओराइड (CIF)
बनाने की विधि
क्लोरीन व फ्लोरीन के सीधे संयोग से CIF बनती है।
Ax प्रकार के यौगिकों की संरचना-AX प्रकार के अन्तराहैलोजेन यौगिकों की वन रक रखीच linear) है। इन यौगिको में केन्द्रीय बड़े आकार का हैलोजेन परमाणु
समानत होता है। उदाहरण के लिए ICI की संरचना में आयोडीन परमाणु अपने सात अब इल्जाटाने से एक का उपयोग क्लोरीन के कक्षक के इलेक्ट्रॉन के साथ (। बन्ध बनाने में कमाता है जवके आयोडीन परमाणु के पास छ: इलेक्ट्रॉन तीन एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों ऊपर रह जाते है। यौगिक की इलेक्ट्रॉनिक संरचना को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है |
इस आधार पर अणु की संरचना चतुष्फलकीय (tetrahedral) होनी चाहिए पार एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों की उपस्थिति के कारण अणु का आकार विकृत होकर एक रे जाता है।
AX, प्रकार के यौगिक
(i) क्लोरीन ट्राइ फ्लु ओराइड (CIF3)
बनाने की विधि—यह क्लोरीन या क्लोरीन मोनो फ्लुओराइड को फ्लोरीन अधिक मात्रा के साथ एक निकिल ट्यूब में 220°C पर गर्म करके बनायी जाती है।
AK3 प्रकार के यौगिकों की संरचना— AX3 प्रकार के अन्तरा-हैलोजेन योगिकी का कुछ झुकी हुई ‘T’-प्रकार की संरचना होती है। इन यौगिकों में केन्द्रीय बड़ा हैलोजेन परमाणु sp3d सकारत होता है। उदाहरण के लिए, CIF, की संरचना में क्लोरीन परमाणु अपने सात संयोजी इलेक्ट्रॉनों में से तीन का उपयोग तीन फ्लुओरीन परमाणुओं के -कक्षकों के इलेक्ट्रॉनों के साथ 3σ-बन्ध बनाने में करता है जबकि क्लोरीन परमाणु के पास चार इलेक्ट्रॉन दो एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों के रूप में शेष रह जाते हैं। यौगिक की इलेक्ट्रॉनिक संरचना को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है
इस आधार पर अणु की संरचना त्रिकोणीय द्विपिरैमिडी होनी चाहिए परनु दो एकको इलेक्ट्रॉन युग्मों की उपस्थिति के कारण अणु का आकार विकृत होकर झुक हुस-प्रकारक हो जाता है जिसका बन्ध कोण 87.5° होता है।
AX, प्रकार के यौगिक
(i) ब्रोमीन पेन्टा फ्लु ओराइड, (BrF5)
बनाने की विधि–BF3 में 100°C पर F2 प्रवाहित करके प्राप्त मिश्रण को 2000 पर गर्म करने पर—
BrF3 + F2 → BrF5
गुण–(i) यह एक रंगहीन सधूम द्रव है जिसका क्वथनांक 40 – 5°C तथा गला – 61 – 3° C है।
(ii) 400-500°C पर गर्म करने पर यह अपने तत्वों में वियोजित हो जाता है।
2BrF5 → Br2 + 5F2
(ii) आयोडीन पेन्टा फ्लुओराइड, (IF5)
बनाने की विधि–(i) आयोडीन या आयोडीन पेन्टा ऑक्साइड पर नाइट्रोजन मिश्रित अधिक फ्लुओरीन को प्रवाहित करने पर
I2 + 5F2 → 2IF5
गुण–(i) यह एक रंगहीन द्रव है जिसका क्वथनांक 104 – 5°C है।
(ii) यह जल के साथ तेजी से क्रिया करके I2O5 तथा HF देता है।
2IF5 + 5H2O→ I2O5 + 10HF
(iii) यह क्षार धातु हैलाइडों के साथ क्रिया करके जटिल यौगिक देता है। /
KF + IF5 → K[IF6]
AX5 प्रकार के यौगिकों की संरचना–AX5 प्रकार के अन्तराहैलोजेन यौगिकों की विकृत अष्टफलकीय (वर्ग पिरैमिड) संरचना होती है। इन यौगिकों में केन्द्रीय बड़ा हैलोजेन परमाणु sp3d2-संकरित होता है। उदाहरण के लिए, IF5 की संरचना में आयोडीन परमाणु अपने सात संयोजी इलेक्ट्रॉनों में से पाँच का उपयोग पाँच फ्लुओरीन परमाणुओं के p-कक्षकों के इलेक्ट्रॉनों के साथ 5σ-बन्ध बनाने में करता है जबकि आयोडीन परमाणु के पास दो इलेक्ट्रॉन एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म के रूप में शेष रह जाते हैं। यौगिक की इलेक्ट्रॉनिक संरचना को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है—
इस आधार पर अणु की संरचना अष्टफलकीय होनी चाहिए। परन्तु काकी इलेवदा। म की उपस्थिति के कारण अणु का आकार विकृत होकर वर्ग पिपिसी हो जाता है।
अन्तराहैलोजेन यौगिकों के उपयोग
अन्तराहैलोजेन यौगिकों के कुछ महत्वपूर्ण उपयोग निम्नलिखित हैं
(1) इनका प्रयोग अजलीय विलायक (non-watery solvent) के रूप में किया जाता है।
(2) ये यौगिक विभिन्न अभिक्रियाओं में उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं।
(3) ClF3 या BrF3 से UF6 का निर्माण किया जाता है जो 235U का प्रमुख स्रोत है।
U(s) + 3CIF3 (J) → UF6 (g) + 3CIF (g)
(4) इन यौगिकों का प्रयोग फ्लुओरीनीकरण के लिए किया जाता है।
प्रश्न 39.(अ) बोरिक अम्ल से प्रारम्भ करके निम्नलिखित यौगिकों को कैसे प्राप्त करोगे?
(i) बोरॉन ऐनहाइड्राइड (ii) बोरॉन ट्राइक्लोराइड (iii) बोरॉन हाइड्राइड (iv) बोरॉन ट्राइफ्लुओराइड।
उत्तर : (i) बोरिक अम्ल का बोरॉन ऐनहाइड्राइड में परिवर्तन–बोरिक अम्ल को रक्त तप्त करने पर बोरॉन ऐनहाइड्राइड प्राप्त होता है।
2H3 BO3 → B2O3 + 3HO
(ii) बोरिक अम्ल का बोरॉन टाइक्लोराइड में परिवर्तन–उपर्युक्त विधि से सब पहले बोरॉन ऐनहाइडाइड को प्राप्त कर लिया जाता है। बोरॉन ऐनहाइड्राइड को काबन का मिलाकर तप्त करके, क्लोरीन गैस प्रवाहित की जाती है तो बोरॉन ट्राइक्लोराइड भार जाता है।
प्रश्न 39. (ब) नाइट्रोजन अपने वर्ग के अन्य तत्वों से भिन्न क्यों होता है? विभिन्नता दिखलाने वाले कारकों को बताइए।
उत्तर : छोटे आकार, उच्च आयनन विभव, उच्च विद्युत ऋणात्मकता, विविध बन्ध जैसे –C= N, N= N आदि बनाने की प्रवृत्ति तथा बाह्य कोश (द्वितीय कोश) में रिक्त d-कक्षक की अनुपलब्धता के कारण सामान्यत: नाइट्रोजन, वर्ग-V का प्रथम तत्व, अपने परिवार के अन्य तत्वों से भिन्न होता है।
नाइट्रोजन की अन्य तत्वों से भिन्नता की मुख्य बातें निम्नलिखित है
(1) नाइट्रोजन गैस है, जबकि शेष तत्व ठोस है।
(2) नाइट्रोजन द्विपरमाणुक अणु (N= N) बनाती है, जबकि शेष चतुःपरमाणक अणु बनाते है; जैसे—P4, As4, Sb4, आदि।
(5) अमोनिया इस वर्ग के अन्य हाइड्राइडों की अपेक्षा अधिक स्थायी है। यह विपैली नहीं है, जबकि अन्य हाइड्राइड विषैले हैं। यह सिल्वर नाइट्रेट और कॉपर सल्फेट चिलेग होकर जिलेय जटिल यौगिक बनाती है, जबकि अन्य हाइड्राइड ऐसा नहीं कर पाते।
(6) नाइट्रोजन N2O तथा NO बनाती है, जबकि अन्य इस प्रकार के ऑक्साइड नहीं। बनाते। नाइट्रोजन के ट्राइ व पेन्टाऑक्साइड N2O3 व N2O5 एकल अणु हैं, जबकि अन्य के द्विक अणु है; जैसे-ट्राइऑक्साइड (P2O3)2 या P4O6, पेन्टाऑक्साइड (P2O5 ) या P4O10 आदि।
(7) NE, के अलावा नाइट्रोजन के हैलाइड NCI3, NBr3 तथा NI3 अस्थायी और विस्फोटक है, जबकि अन्य तत्वों के हैलाइड स्थायी हैं। फॉस्फोरस, आर्सेनिक व एण्टीमनी पेन्टाहैलाइड PCI5, AsCI5, व SbCl5, आदि बनाते हैं, परन्तु नाइट्रोजन पेन्टाहैलाइड नहीं बनाती।
(8) नाइट्रोजन के अतिरिक्त इस वर्ग के अन्य तत्व अपने-अपने हाइड्राइडों में हाइड्रोजन बन्ध नहीं बनाते।
(9) नाइट्रोजन के आठ परमाणुओं तक की सीधी शृंखलाएँ बनाई जा चुकी हैं यद्यपिया स्थायी नहीं है, परन्तु अन्य तत्वों में श्रृंखला बनाने की प्रवृत्ति केवल दो परमाणुओं तक है। सीमित है।
(10) नाइट्रोजन त्रि ऋणात्मक आयन N3- बनाती है। यह प्रवृत्ति फॉस्फोरस मक कम है, परन्तु शेष तत्वों में बिल्कुल नहीं है।
(11) नाइट्रोजन अणु (N2) की उच्च वियोजन ऊर्जा के कारण साधारण नाइट्रोजन रासायनिक रूप से निष्क्रिय है, परन्तु कम वियोजन ऊर्जा व एकल बन्न अन्य तत्व बहुत क्रियाशील हैं।
(12) नाइट्रोजन सल्फाइड नहीं बनाती, जबकि इस वर्ग के अन्य तत्व
अन्य तत्व अपने सल्फाइड बनाते है |
(13) नाइट्रोजन वायुमण्डल में स्वतन्त्र अवस्था में पायी जाती है लेकिन इस वर्ग के अन्य तत्व स्वतन्त्र अवस्था में नहीं पाए जाते।
(14) नाइट्रोजन की अधिकतम सहसंयोजकता चार है, परन्तु अन्य तत्वों की अधिकतम सहसंयोजकता रिक्त d कक्षकों की उपस्थिति के कारण पाँच हो सकती है।
प्रश्न 40. (अ) बोरॉन के हाइड्राइडों के बनाने की विधि, गुण तथा उपयोग की विवेचना कीजिए।
अथवा डाइबोरेन के बनाने की विधि तथा लक्षणों ( गुणधर्मों ) का वर्णन कीजिए। इसकी संरचना का भी वर्णन कीजिए।
अथवा बोरॉन हाइड्राइड का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर : बोरॉन हाइड्राइड–यद्यपि बोरॉन हाइड्रोजन से सीधे संयोग नहीं करता, फिर भी बोरॉन के कई हाइड्राइड ज्ञात हैं। ऐल्केन की भाँति इन्हें बोरेन कहते हैं। इन हाइड्राइडों की दो श्रेणियाँ Bn Hn + 4 तथा कम स्थायी श्रेणी Bn Hn + 6 ज्ञात हैं।
डाइबोरेन की संरचना
डाइबोरेन (अणुसूत्र B2H6) की संरचना को चित्र-63 द्वारा दर्शाया गया है। इसमें सिरे वाले चार हाइड्रोजन परमाणु तथा दो बोरॉन परमाणु समान तल में हैं। इस तल के ऊपर तथा नीचे दो सेतुबन्ध (bridging) हाइड्रोजन परमाणु हैं। सिरे वाले चार B_H बन्ध सामान्य द्विकेन्द्रीय-द्विइलेक्ट्रॉन (two centre-two electron) बन्ध हैं जबकि दोनों सेतु बन्ध भिन्न प्रकार के होते हैं, जिन्हें ‘त्रिकेन्द्रीय-द्विइलेक्ट्रॉन बन्ध’ (three centred-two electron bond) कहते हैं।
प्रश्न 40. (ब) ऑक्सीजन के फ्लु ओराइडों के बनाने की विधि, उनके गुण एवं संरचना की विवेचना कीजिए।
उत्तर : ऑक्सीजन फ्लुओरीन के साथ संयुक्त होकर दो प्रकार के पलुओराइडों अर्थात् ऑक्सीजन डाइफ्लुओराइड (OF2) तथा डाइऑक्सीजन डाइपलुओराइड (O2 F2) का निर्माण करता है |
ऑक्सीजन डाइफ्लुओराइड (OF2)— इसका निर्माण सोडियम हाइड्रॉक्साइड के जलीय विलयन पर फ्लुओरीन की मन्द धारा प्रवाहित करके किया जाता है।
2 F2 + 2OH– → 2 E– + F2O+ H2O
यहाँ पर यह ध्यान रखना अतिआवश्यक है कि अभिक्रिया के दौरान हाइपोफ्लुओराट का निर्माण नहीं हो।
गुण-1. यह एक रंगहीन गैस है।
- इसका क्वथनांक 128 K तथा गलनांक 49 K होता है।
- अणुओं के मध्य दुर्बल वान्डरवाल्स बलों की उपस्थिति के कारण इसका गलनांक अन्य ज्ञात यौगिकों की अपेक्षा काफी कम होता है।
- यह अत्यधिक विषैली होती है।
- यह फ्लुओरीन की अपेक्षाकृत कम क्रियाशील है यद्यपि यह एक प्रबल ऑक्सीकारक है।
- गर्म करने पर यह अपने अवयवी तत्वों में विघटित हो जाती है।
संरचना-इसकी संरचना चतुष्फलकीय होती है जिसमें चतुष्फलक की दो स्थितियों पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होते हैं। इसकी संरचना चतुष्फलकीय होने का कारण इसमें O का sp3 संकरित होना है।
एकाकी युग्म की उपस्थिति के कारण आबन्ध कोण होता है। OF2 के आबन्धित युग्म (bonding pairs), F की अधिक विद्युत ऋणात्मकता के कारण इसके निकट होते है। एकाकी युग्मों के मध्य, आबन्धित युग्मों की अपेक्षाकृत अधिक प्रतिकर्षण होता है। अतः आबन्ध कोण 109° 28′ (चतुष्फलकीय कोण) की अपेक्षा कम होता है।
डाइऑक्सीजन डाइफ्लुओराइड (O2F2)-फ्लुओरीन तथा ऑक्सीजन के मित्र को द्रवीय वायु में ठण्डा करके उस पर विद्युत विसर्जन करने पर डाइआक्सा डाइफ्लुओराइड का निर्माण होता है।
O2 + F2 → O2F2
गुण— 1. यह एक भूरे रंग को गैस है।
- यह 178K से उच्च ताप पर विघटित हो जाती है।
संरचना— इसको संरचना, H2O2 की संरचना के लगभग समान होती है यद्यपि इसमें O—O आबन्ध दूरी H2O2 को अपेक्षाकृत कम होती है।
Inorganic Chemistry Notes