BSc Botany Diversity Of Alage Lichens And Bryophytes Short Question Answer
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खण्ड ‘अ‘ :
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न ज्ञान V – – – – – – – – – – – – –
प्रश्न 1 – सरगामस का जीवन–चक्र।
उत्तर –
सरगासम का जीवन–चक्र
(Life cycle of Sargassum) Notes
सरगामस का जीवन-चक्र डिप्लॉन्टिक प्रकार का होता है। अधिकतम भाग जीवन-चक्र का द्विगुणित होता है। केवल अण्ड तथा पुंमणु ही अगुणित होते हैं। मुख्य पादप द्विगुणित है जीवन-चक्र में कोई भी पीढ़ी एकान्तरण नहीं मिलता है। मुख्य पादप पर एन्थ्रीडिया (2x) तथा ऊगोनिया (2x) बनते हैं। इनमें अर्द्धसूत्री विभाजन से पुंमणु (x) व अण्ड (x) बनते हैं। निषेचन के पश्चात् जाइगोट (2x) बनाता है, जिसके तुरन्त अंकुरण से नया द्विगुणित पादप बनता है।
प्रश्न 2 – वर्ग क्लोरोफाइसी के मुख्य लक्षण लिखिए।
उत्तर –
वर्ग क्लोरोफाइसी के मुख्य लक्षण–वर्ग क्लोरोफाइसी के मुख्य लक्षण अग्रलिखित हैं
(1) इन्हें हरित शैवाल (Green Algae) भी कहते हैं। (2) इनके सदस्य जलीय (aquatic) एवं स्थलीय (terrestrial) दोनों अवस्थाओं में मिलते हैं। साइफोनेल्स एवं अल्वेसी के सदस्य पूर्ण रूप से समद्र (marine) में पाए जाते हैं, जबकि ऊडोगोनिएल्स एवं कोन्जुगेल्स केवल मीठे पानी (fresh water) में पाए जाते हैं। क्लेडोफोरेल्स के सदस्य दोनों जगह पाए जाते हैं। (3) इनके क्रोमैटोफोर हरी घास के रंग के समान होते हैं। (4) इनमें मुख्य पूर्णांक (pigments) chlorophyll-a. B-carotene तथा lutein होते है। Chlorophyll-b, a-carotene. violaxanthin भी थोड़ी मात्रा में मिलते हैं। (5) संचित भोजन स्टार्च (starch) के रूप में होता है। (6) पाइरीनॉइड्स (pyrenoids) स्टार्च प्लेट युक्त होते हैं। (7) इसमें चल कोशिकाएँ बराबर पक्ष्मी (equal-flagella) वाली होती हैं। (8) कोशिका भित्ति cellulose की बनी होती है। (9) लिंगी प्रजनन समयुग्मी (isogamous) स विषमयुग्मी (oogamous) सभी प्रकार का होता है। (10) क्रोमैटोफोर 2 से 6 थाइलकायड्स वाले होते हैं जो कि एक बैंड से जडे रहते हैं।
प्रश्न 3 – ब्रायोफाइटा की मानव के लिए उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर –
ब्रायोफाइटा की मानव के लिए उपयोगिता
(Utility of Bryophyta for Human) Notes
आर्थिक दृष्टि से इस समूह की बहुत ही कम विशेषता है। बोवर (1935) के अनुसार, मॉस (Mosses) एवं लिवरवर्ट (Liverworts) पृथ्वी पर लगने वाले पौधों के पूर्वज इसलिए माने जाते हैं क्योंकि ये पौधे नम तथा शुष्क अवस्थाओं में फलते-फूलते रहते हैं तथा इनकी प्रकृति एम्फीबियस (amphibious) होती है। ब्रायोफाइटा की मानव के लिए निम्नलिखित उपयोगिता हैं –
(1) स्फैग्नम (Sphagnum) की पीट (peat) ईंधन के रूप में काम आती है और इसके सूखे पौधे सर्जिकल औजारों को बाँधने के काम आते हैं। बहुत ही खराब प्रकार की भूमि की जलधारण क्षमता को भी पीट (peat) मॉस बढ़ाते हैं। बहुत-से. मॉस (Mosses) को काफी उच्च पारिस्थितिक मूल्य का माना जाता है क्योंकि उन्हें भूमि को बनाने वाला (soil formers) कहते हैं।
(2) कुछ सीमा तक ब्रायोफाइटा के सदस्यों को बाढ़ रोकने में भी सहायक माना जाता है।
(3) कुछ पक्षी एवं शाकाहारी जानवर ब्रायोफाइटा समूह के कुछ पौधों को विशेष आहार के रूप में खाते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी इन पौधों का भोजन के रूप में कोई विशेष महत्त्व नहीं होता है।
(4) एण्टीसेप्टिक (antiseptic) विशेषताओं के कारण स्फैग्नम (Sphagnum) के पौधे घाव को भरने में भी सहायक होते हैं।
(5) स्फैग्नम की पीट से मिलने वाली कुछ वस्तुएँ (e.g. अमोनिया. पीट. टार. पैराफीन
आदि) अनेक उद्योगों में उपयोग की जाती हैं।
(6) काफी तीव्र, ज्यादा तथा गहन वृद्धि के कारण स्फैग्नम (Sphagnum) को भूमि को बाँधने वाला भी कहते हैं।
(7) जानवरों के लिए शरद् ऋतु का बिस्तर या कपड़ा तैयार करने में भी स्फैग्नम काम में आता है। बहुत-से मॉस (Mosses) भूमि के कटाव को रोकते हैं तथा इस प्रकार भूमि संरक्षण (soil conservation) का कार्य करते हैं।
प्रश्न 4 – क्लोरोफाइसी का संक्षिप्त वर्गीकरण लिखिए।
उत्तर – इस वर्ग का विस्तृत वर्गीकरण सर्वप्रथम फ्रिट्श ने 1935 में दिया था। दो उन्होंने 9 गणों में बाँटा-वॉल्वोकेल्स, क्लोरोकोकेल्स, यूलोट्राइकेल्स, क्लैडोफोरेल्म कीटोफोरेल्स, ऊडोगोनिएल्स, कॉन्जुगेल्स, साइफोनेल्स तथा केरेल्स आदि।
स्मिथ ने 1955 में क्लोरोफाइसी को 13 गणों में बाँटा। ये हैं-वाल्वोकेल्स. टेट्रास्पोरेल्स, यूलोट्राइकेल्स, अल्वेल्स, शाइजोगोनिएल्स, क्लैडोफोरेल्स, कीटोफोरेल्स, ऊडोगोनिएल्स, जिग्निमटेल्स, क्लोरोकोकेल्स, साइफोनेल्स, साइफोनोक्लेडेल्स तथा डेरीप्लेडेल्स आदि। स्मिथ ने केरेल्स को केरोफाइसी में रखा।
प्रेस्कॉट ने 1969 में क्लोरोफाइसी को 17 गणों में बाँटा। चैपमैन तथा चैपमैन ने 1973 में 11 वर्ग बनाए। विनोग्रेडोवा ने 1982 में क्लोरोफाइसी को 9 गणों में बाँटा। फ्रिट्श का वर्गीकरण सबसे सरल व सुलझा हुआ है।
प्रश्न 5 – सरगासम की वर्गिकीय स्थिति तथा प्राप्ति स्थान लिखिए।
उत्तर –
वर्गीकीय स्थिति
वर्ग (Class) – फियोफाइसी (Pheophyceae)
गण (Order) – फ्यूकेल्स (Fucales)
कुल (Family) – सरगासेसी (Sargassaceae)
वंश (Genus) – सरगासम (Sargassum)
प्राप्ति स्थान
सरगासम एक समुद्री पादप है। इसकी लगभग 200 जातियाँ पायी जाती हैं जो ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका व अमेरिका आदि से अधिक मिलती हैं। सरगासो सी अटलाण्टिक महासागर में है, यह अफ्रीका के पश्चिम में स्थित है जहाँ सरगासम बहुतायत में मिलता है। यहाँ इसकी सघनता के कारण कभी-कभी जहाज भी फँस जाते हैं। इसकी अधिकता के कारण ही इस स्थान को सरगासो सी कहते हैं। पहले यह माना जाता था कि इस स्थान पर सरगासम नेटेन्स (Sargassum natans) मिलता है परन्तु बोर्गसन (Boergesen) के अनुसार, यहाँ सरगासम वलोयर (S. vulgure), स. फिलिपेन्डुला (S. filipendula) आदि मिलते हैं। स. फिलिपेन्डुला (S. filipendula) एक बहुत बड़ा केल्प है जिसमें लम्बी, पतली तने जैसी प्रजातियाँ स्वतन्त्र रूप से तैरने वाली हैं। इनमें प्रजनन केवल विखण्डन के द्वारा होता है। इनमें लैंगिक जनन नहीं पाया जाता है। स. इनर्वी (S. enerve) को खाने तथा सजाने में प्रयोग में लाया जाता है। यह भारत में समुद्री तटों पर तथा जापान व सिलोन में मिलता है।
भारत में यह बम्बई, ओखा, द्वारका, पोरबन्दर, रामेश्वरम्, त्रिवेन्द्रम आदि में समुद्र के तटों पर मिलता है। स. प्लेजियोफिल्लम (S. plagiophylum), स. टिनेरियम (S. tenerrium), स. कापोंफिल्लम (S. carpophyllum), . स. ड्रप्लीकेटम (S. duplicatum), स. सिनेरियम (S. cinereum), स. इलीसीफोलियम (S. elicifolium), स. मायपरीओसिस्टम (S. myriocystem) आदि जातियाँ भारत में मिलती हैं।
प्रश्न 6 – कारा का वर्गीकरण लिखिए।
उत्तर –
कारा का वर्गीकरण (Classification of Chara)
जगत (Kingdom) पादप (Plantae)
विभाग (Division) क्लोरोफाइटा (Chlorophyta)
वर्ग (Class) क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae) .
गण (Order) केरेल्स (Charales)
कुल (Family) केरोफाइसी (Charophyceae)
वंश (Genus) – कारा (Chara)
प्रश्न 7 – ऐगार–ऐगार का स्रोत एवं अनुप्रयोग लिखिए।
उत्तर–ऐगार-ऐगार प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त होने वाला पदार्थ है। इसका उपयोग जीवाणु एवं कवकों के संवर्द्धन के लिए किया जाता है। ऐगार जेलिडियम ग्रेसिलेरिया प्रजातियों से प्राप्त होता है।
चीन तथा जापान में ऐगार-ऐगार का प्रयोग भोज्य पदार्थ के रूप में काफी समय से किया जा रहा है। जल में घुलनशील एवं जेल प्रकृति होने के कारण ऐगार का प्रयोग आइसक्रीम, चॉकलेट, जैम, सॉस इत्यादि बनाने में किया जाता है। सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी ऐगार का प्रयोग होता है। | प्रयोगशाला में ऐगार का प्रयोग ठोसकृत कारक (solidifying agent) के रूप में किया जाता है। –
प्रश्न 8 – मार्केन्शिया एवं एन्थोसिरॉस की बाह्य संरचना की तुलना कीजिए।
उत्तर –
मार्केन्शिया एवं एन्थोसिरॉस की बाह्य संरचना की तुलना
(Comparison of External Morphology of
Marchantia and Anthoceros)
क्र०
सं० |
मार्केन्शिया (Marchantia)
|
एन्थोसिरॉस (Anthoceros) |
1. | पौधे थैलॉयड होते हैं। | पौधे थैलॉयड होते हैं। |
2. | थैलस समतल तथा दो सतहों (dorsal तथा ventral) वाले होते हैं। | मार्केन्शिया की तरह ही होते हैं।
|
3. | थैलस हरे रंग के तथा dichotomous शाखाओं वाले होते हैं। | इनका थैलस Marchantia के थैलस से छोटा होता है। साफ dichotomy नहीं दिखाई देती है। |
4. | जननांग विशेष शाखाओं |(antheridiophore तथा archegoniophore) पर होते हैं।
|
जननांग dorsal सतह पर होते है।
|
5. | Gammae कुछ ही जातियों में तथा gemma cups में मिलते हैं। | Gammae कुछ ही जातियों में मिलते हैं। |
6. | नीचे की सतह ventral surface पर rhizoids तथा scales होते हैं। | नीचे की सतह पर केवल rhizoids मिलते हैं।
|
प्रश्न 9 – शैवाल में पाए जाने वाले हेप्लॉन्टिक जीवन–चक्र का उदाहरण सहि विवरण दीजिए।
उत्तर – हेप्लॉन्टिक जीवन-चक्र (haplontic life cycle) व्यवस्था के अन्तर्गत समस जीवन-चक्र की विभिन्न अवस्थाएँ अगुणित होती हैं, परन्तु केवल जाइगोट अथवा युग्मनज है द्विगुणित (diploid) होता है। इस जीवन-चक्र में मुख्य पादप युग्मकोद्भिद् (gametophytel होता है। इसमें बनने वाले दोनों युग्मक (+ व –) अगुणित (haploid) होते हैं। इन युग्मकों वे संयुग्मन से युग्मनज बनता है, जो द्विगुणित होता है। इस युग्मनज में अर्द्धसूत्री विभाजन में मियोस्पोर बनते हैं जो फिर अगुणित होते हैं जिनसे मुख्य पादप युग्मकोद्भिद् बनता है उदाहरण-वॉलवॉक्स, क्लैमाइडोमोनास आदि।
प्रश्न 10 – मार्केन्शिया में नर युग्मकोद्भिद् (male gametophyte) का एन्थीडियोफोर के साथ तथा मादा युग्मकोभिद् (female gametophyte) का आर्किगोनियोफोर के साथ चित्र बनाइए।
उत्तर –
मार्केन्शिया का नर तथा मादा युग्मकोद्भिद्
(Male and Female gametophyte of Marchantia)
प्रश्न 11 – कारा के जीवन–चक्र का रेखांकित चित्रण कीजिए।
उत्तर –
कारा का जीवन–चक्र (Life-Cycle of Chara)
प्रश्न 12 – कैप कोशिकाओं के विषय में टिप्पणी लिखिए। यह किस वा मिलती हैं?
उत्तर –
कैप कोशिकाएँ (Cap Cells)
ऊडोगोनियम में कुछ कोशिकाओं में टोपीनुमा संरचना बनती है जिसे कैप सेल कहते। इनको संख्या से यह निश्चित होता है कि कोशिका में कितने विभाजन हो चुके हैं। केवल कोशिकाएँ ही विभाजन कर सकती हैं जिनमें Cap Cells मिलती हैं।
कैप कोशिकाएँ ऊडोगोनियेल्स ऑर्डर के सदस्यों में मिलती हैं। ये कायिक कोशिकाओं के distal end पर वलय के रूप में मिलती हैं। ये कोशिकाएँ कायिक कोशिका के विभाजन के समय निर्मित होती हैं। वास्तव में ये सन्तति कोशिका के अगले भाग में मातृ कोशिका के parental wall के अवशेष (remains) हैं। कैप धारण करने वाली कोशिका कैप कोशिव कहलाती है। कैप की संख्या दर्शाती है कि कोशिका कितनी बार विभाजित हुई है।
कोई भी Cap cell युक्त कोशिका जूस्पोरेन्जियम (zoosporangium) अथवा एन्थ्रीडियम (antheridium) में रूपान्तरित हो सकती है। अत: इन कोशिकाओं का काम प्रजनन में योगदान देना है। केवल इन कोशिकाओं में ही अलैंगिक व लैंगिक जनन की सामधान होती है।
प्रश्न 13 – मार्केन्शिया (Marchantia) तथा एन्थोसिरॉस (Anthoceros) के युग्मकोद्भिदों (gametophytes) की आन्तरिक रचना (anatomy) की तुलना कीजिए।
उत्तर –
मार्केन्शिया एवं एन्थोसिरॉस के युग्मकोदभिदों की आन्तरिक संरचना की तुलना:
(Comparison of Anatomy of the Gametophytes of Marchantia and Anthoceros)
क्र०
सं०
|
मार्केन्शिया (Marchantia)
|
एन्थोसिरॉस (Anthoceros) |
1. | आन्तरिक रचना में थैलस दो भागों में बाँटा जा सकता है
(i) Photosynthetic भाग, (ii) Storage भाग। |
थैलस की आन्तरिक रचना एक-सी होती है। दो भागों में बँटी नहीं होती है। |
2. | Photosynthetic भाग ऊपरी सतह को दर्शाता है तथा assimilatory भाग कहलाता है। | Photosynthetic भाग तथा storage भाग अलग-अलग नहीं होता है। |
3. | Barrel-shaped छिद्र होते हैं। | Air chambers होते हैं।
Air pores अनुपस्थित होते हैं। |
4. | Air chambers नहीं होते हैं। | Air chambers नहीं होते हैं। |
5. | Photosynthetic filaments शाखित होते हैं। | Parenchyma की तरह का काशिकाएँ होती हैं। |
6. | Storage region में oil तथा mucilage की कोशिकाएँ होती हैं। | Storage region नहीं होता है। |
7. | Scales नीचे की epidermis की सतह पर लगे रहते हैं। | Scales नहीं पाए जाते हैं। |
8. | नीचे की epidermis पर smooth- walled तथा tuberculate rhizoids होती हैं।
|
नीचे की epidermis पर केवल चिकनी भित्ति (smooth-walled) rhizoids ही होती हैं। |
9. | Pyrenoids नहीं होते हैं। | Pyrenoids होते हैं। |
10. | Nostoc-cavity नहीं होती है। | Nostoc-cavity होती है। |
प्रश्न 14 – एन्थोसिरॉस के थैलस की आन्तरिक संरचना का केवल स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर –
एन्थोसिरॉस के थैलस की आन्तरिक संरचना
(Internal Structure of Thallus of Anthoceros)
प्रश्न 15 – पोगोनेटम के आर्थिक महत्त्व व पीढ़ी एकान्तरण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
पोगोनेटम का आर्थिक महत्त्व
(Economic Importance of Pogonatum)
पोगोनेटम गुर्दे व पित्त की थैली की पथरी को गलाने के लिए दिया जाता है। पादप का काढ़ा औरतों के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए दिया जाता है। सूखे पादपों को गद्दों में भरा जाता है। बहुत-से युग्मकोद्भिद् के सूखे सेन्ट्रल स्ट्रेण्ड से झाडू व ब्रुश बनते हैं। इन झाड़ओं को बेसोम (besome) कहते हैं। इन बेसोम से कालीन, पर्दे आदि झाड़ने का काम किया जाता है।
पोगोनेटम में पीढ़ी एकान्तरण
(Alternation of generation in Pogonatum)
मुख्य पादप पर्णिल (leafy) व एकलिंगाश्रयी युग्मकोद्भिद् है। नर व मादा पादप अलग-अलग होते हैं, परन्तु युग्मकोद्भिद् के अग्र भाग पर एन्थ्रीडिया समूह में मिलते हैं। मादा युग्मकोद्भिद् के अग्र भाग पर आर्किगोनिया के गुच्छे मिलते हैं। एन्थीडिया में नर या युग्मक (X) पुमणु के रूप में बनता है तथा आर्किगोनिया में मादा युग्मक अण्ड तथा (X) बनता है। अण्ड तथा पुमणु के संलयन से जाइगोट (2X) बनता है। इस जाइगोट में सूत्री विभाजन से तन्तुमय भ्रूण बनता हैं। भ्रर्ण के निचले शीर्ष से फुट बनता है जो मादा युग्मकोद्भिद् से भोजन का चूषण करता है। ऊपरी शीर्ष कोशिका से सीटा व कैप्सूल बनता है। आर्किस्पोरियल कोशिकाएँ कैप्सूल में बनती हैं। आर्किस्पोरियम से स्पोर मातृ कोशिकाएँ बनती हैं जिनमें अर्द्धसूत्री विभाजन से स्पोर चतुष्क (X) बनता है। बीजाणु के अंकुरण से तन्तुमय प्रोटोनीमा बनता है। इसी प्रोटोनीमा ने राइजोइड व पर्णिल प्ररोह (leafy shoot) विकसित होते हैं। इस प्रकार स्पष्ट पीढ़ी एकान्तरण मिलता है। बीजाणुउद्भिद् आंशिक परजीवी होता है। थीका व कैप्सूल प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं फुट, मादा गैमीटोफाइट से जल व खनिज का अवशोषण करता है।
प्रश्न 16 – हेटरोसिस्ट के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर –
हेटरोसिस्ट (Heterocyst)
ये नील-हरित शैवालों (Blue-green algae) या मिक्सोफाइसी (Myxophyceae) के कुछ पौधों में होते हैं। इन पौधों में कुछ विशेष प्रकार की बड़े आकार की कोशिकाएं हेटरोसिस्ट (Heterocyst) का निर्माण करती हैं।
प्रत्येक हेटरोसिस्ट खाली गोल, अण्डाकार या लम्बी रचना होती है जो कि एक मोटी भित्ति से घिरी होती है। इसकी भित्ति दो परतों की बनी होती है। प्रत्येक हेटरोसिस्ट के दोनों ओर एक polar nodule होता है। प्रत्येक Polar nodule में एक छिद्र होता है।
हेटरोसिस्ट या तो terminal होता है जैसे रिवुलेरिया, ग्लियोट्राइका आदि में या कोशिकाओं के बीच में (intercalary) जैसे नॉस्टॉक आदि में होता है। कभी-कभी हेटरोसिस्ट में केवल एक ही छिद्र (pore) होता है। कभी-कभी हेटरोसिस्ट उगकर एक नया तन्तु (filament) भी बना लेते हैं। नॉस्टॉक (Nostoc) में हेटरोसिस्ट बहुतायत में मिलते हैं। ये सामान्यतः कोशिका के रूपान्तरण से बनते हैं।
कोहल (1930) तथा बोरजी (1878) के अनुसार ये सूत्र के गुणन के बिन्दु हैं। फ्रिटश (1904) के अनुसार ये भोजन संचयी कोशिकाएँ हैं। फ्रिटश (1951) के अनुसार अन्तस्थ हेटरोसिस्ट वृद्धि व विभाजन को बढ़ावा देते हैं।
पी० के० डे (1968) के अनुसार हेटरोसिस्ट नाइट्रोजन स्थिरीकरण में महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि ये सामान्यतः उस नील-हरित शैवाल में मिलते हैं, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण (N2 fixation) करती है, परन्तु ऑसिलैटोरिया (Oscillatoria) में ये नहीं पाए जाते हैं।
प्रश्न 17 – ऊगोनियम व कार्पोगोनियम में अन्तर बताइए।
उत्तर – अगानियम (Oogonium)-यह फ्यूकेल्स (सारगासम) में मिलता है। यहाँ ऊगोनिया फ्लास्क (flask) के आकार के कन्सेप्टेकल में मिलते हैं, जो रिसेप्टकल में धँसे रहते हैं। यस रहत हैं। ऊगोनिया अवृन्ती (sessile) तथा अण्डाकार (ovoid) होते हैं। प्रत्येक में एक अण्ड अथवा ओवम मिलता है। ऊगोनियम में टाइकोगाइन नहीं मिलती है।
कार्पोगोनियम (Carpogonium)-ये लाल शैवाल में मिलते हैं। यह लाल शैवाल की मादा युग्मकधानी (female gametangium) है। इसका आधार शून (swollen) तथा गर्दन (neck) लम्बी होती है जिसे ट्राइकोगाइन (trichogyne) कहते हैं। कार्पोगोनियम विशेष प्रकार के कार्पोगोनियल तन्तु पर स्थित होती हैं।
प्रश्न 18 – रिक्सिया में पीढ़ी एकान्तरण पर टिप्पणी लिखिए। ,
उत्तर –
रिक्सिया में पीढ़ी एकान्तरण _
(Alternation of generation in Riccia)
रिक्सिया युग्मकोद्भिद् पादप हैं, अतः अगुणित है। इससे बनने वाली पुंधानी, स्त्रीधानी, घुमणु तथा अण्ड सभी अगुणित रचनाएँ हैं। पुंमणु व अण्ड के संलयन के पश्चात् निषिक्ताण्ड – द्विगुणित रचना बन जाती है तथा यह बीजाणुउद्भिद् पीढ़ी प्रारम्भ करता है। निषिक्ताण्ड से बने स्पोरोगोनियम व बीजाणु मातृकोशिकाएँ द्विगुणित रचना होती हैं तथा इनमें अर्द्ध-सूत्री विभाजन के पश्चात् अगुणित बीजाणु बनते हैं। अत: बीजाणु इसके जीवन-चक्र में युग्मकोद्भिद् पीढ़ी प्रारम्भ करते हैं। रिक्सिया के जीवन-चक्र में अगुणित व द्विगुणित भाग लगभग बराबर होते हैं। इस प्रकार इसके जीवन-चक्र में सुस्पष्ट पीढ़ी एकान्तरण होता है तथा जीवन-चक्र हेप्लोडिप्लोबायोन्टिक (Haplodiplobiontic) प्रकार का होता है।
प्रश्न 19 – मार्केन्शिया के थैलस की आन्तरिक संरचना केवल नामांकित चिन की सहायता से दर्शाइए।
उत्तर –
मार्केन्शिया के थैलस की आन्तरिक संरचना
(Internal Structure of Thallus of Marchantia) T.S.
प्रश्न 20 — पॉलीसाइफोनिया के जीवन–चक्र का रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर –
पॉलीसाइफोनिया का जीवन–चक्र
(Life-Cycle of Polysiphonia)
प्रश्न 21 – लाइकेन कितने प्रकार के होते हैं? इनके पाँच लाभ लिखिए।
उत्तर – लाइकेन तीन प्रकार के होते हैं
(अ) क्रस्टोज, (ब) फ्रूटीकोज तथा (स) फोलिओज
लाइकेन के पाँच लाभ – (1) ये वायु में SO, के प्रति संवेदनशील होते हैं।
(2) चट्टानों पर पादप अनुक्रमण के अग्रगामी हैं।
(3) भोजन के रूप में क्लैडोनिया, पार्मेलिया आदि प्रयुक्त होते हैं।
(4) लोबेरिया पल्मोनेरिया (Lobaria pulmonaria) नामक लाइकेन का प्रयोग इत्र बनाने में किया जाता है।
(5) ऑर्सीन नामक रंजक व लिटमस, रोसेला (Rocella) नामक लाइकेन से प्राप्त होता है।
प्रश्न 22 – गोनिमोब्लास्ट पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
गोनिमोब्लास्ट (Gonimoblast)
लाल शैवाल में जाइगोट से तन्तुमय संरचना निकलती हैं जिसके अन्त में कार्पोस्पोरेन्जिया मिलती है। बेट्रेकोस्पर्मम तथा पॉलीसाइफोनिया आदि में निषेचन के पश्चात् यह संरचना बनती है। कार्पोगोनियल भित्ति से गोनिमोब्लास्ट इनीशियल (Gonimoblast initial) छोटे-छोटे उभार के रूप में निकलते हैं जिनसे फिर शाखित अथवा अशाखित तन्तु बनते हैं, इन्हें . गोनिमोब्लास्ट तन्तु कहते हैं।
गोनिमोब्लास्ट तन्तु की अन्तस्थ कोशिका (terminal cell) कार्पोस्पोरेन्जिया में विभेदित होती है। कार्पोस्पोरेन्जिया में कार्पोस्पोर बनता है। प्रत्येक कार्पोस्पोरेन्जियम में एक कार्पोस्पोर बनता है। गोनिमोब्लास्ट तन्तु अगुणित (बेट्रेकोस्पर्मम) अथवा द्विगुणित (पॉलीसाइफोनिया) होते हैं। इसी के अनुसार कार्पोस्पोर भी अगुणित (बेटेकोस्पर्मम) अथवा द्विगुणित (पॉलीसाइफोनिया) होता है।
प्रश्न 23 – डिप्लोबायोन्टिक जीवन–चक्र किस शैवाल में मिलता है? उसका रेखांकित चित्र बनाइए।
उत्तर – डिप्लोबायोन्टिक जीवन-चक्र पॉलीसाइफोनिया में मिलता है। पॉलिसाइफोनिया का रेखांकित डिप्लोबायोन्टिक जीवन-चक्र निम्नवत् है –
प्रश्न 24 – क्लम्प निर्माण क्या है?
उत्तर –
क्लम्प निर्माण (Clump Formation)
यह अवस्था Phaeophyceae के कुछ पौधों के जीवन-चक्र में पायी जाती है। एक्टोकार्पस एवं सारगासम में यह अवस्था मिलती है।
निषेचन के समय Sargassum में मादा युग्मक (female gamete) को चारों तरफ से नर युग्मक (male gametes) घेर लेते हैं। इस अवस्था को ‘क्लम्प निर्माण’ कहते हैं। इन नर युग्मकों में से एक मादा से मिलता है तथा इस तरह से निषेचन की क्रिया पूर्ण होती है।
क्लैमाइडोमोनास की जातियों में अनेक नर युग्मक व मादा युग्मक फ्लैजेला द्वारा संलग्न होते हैं। अन्त में एक नर युग्मक व एक मादा युग्मक संगलित होकर जाइगोट बनाते हैं।
प्रश्न 25 – रिक्सिया में कायिक जनन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
रिक्सिया में कायिक जनन
(Vegetative Reproduction in Riccia)
रिक्सिया में कायिक जनन (Vegetative reproduction) अनुकूल परिस्थितियों में होता है। इस विधि में जनन तीव्र गति से होने के फलस्वरूप पादप समूह स्वभाव (gregarious habit) मे उगे रहते हैं। यह निम्नलिखित प्रकार से होता है
- 1. वृद्ध भागों के मृत व क्षय होने से (By Death and Decay of Older Parts)-थैलस के वृद्ध भाग मृत होकर नष्ट होते रहते हैं, जब यह नष्ट होने की क्रिया द्विभाजन स्थान तक पहुँच जाती है तो दोनों शाखाएँ पृथक् होकर दो स्वतन्त्र पादपों में विकसित हो जाती हैं।
- अपस्थानिक शाखाएँ (Adventitious Branches)-कभी-कभी थैलस कीअभ्यक्ष सतह पर मध्यशिरा क्षेत्र में अपस्थानिक शाखाएँ बन जाती हैं। ये शाखाएँ पृथक होकर नये पादप में विकसित हो जाती हैं; जैसे—रिफ्ल्यूटैन्स।
- चिरस्थायी शीर्ष (Persistant Apices)-गर्मियों के समय कुछ जातियों में वृद्धि शीर्षों को छोड़कर पादप के सभी भाग मृत हो जाने के फलस्वरूप नष्ट हो जाते हैं। वृद्धि शीर्ष मिटी में दबे रहकर मोटे हो जाते हैं, परन्तु जैसे ही वर्षा का समय आता है, ये वृद्धि कर नव पादप बनाते हैं; जैसे-रि० डिस्कलर (R. discolor)
- कंद परिवर्द्धन (Tuber Formation)-कुछ जातियों में वृद्धि ऋतु के अन्त में थैलस के शीर्ष मोटे होकर भोजन संग्रह कर गोल हो जाते हैं तथा इनके चारों ओर मोटी सुरक्षा परत बन जाती है, इन्हें कंद कहते हैं। प्रतिकूल अवस्थाओं के समाप्त होते ही कंद वृद्धि कर नव पादप बनाते हैं; जैसे-रि० बल्बीफेरा (R. bulbifera), रि० डिस्कलर (R. discolor) आदि।
- मूलाभास के अन्तिम सिरों द्वारा (By Apical Portion of Rhizoids)-यदा कदा मूलाभास के अन्तिम सिरों पर बहुकोशिकीय संरचना बन जाती है जो वृद्धि कर नये थैलस का निर्माण करती है; जैसे—रि० ग्लॉका (R. glauca)।
प्रश्न 26 – पोगोनेटम में कैप्सूल का स्फुटन तथा बीजाणुओं के प्रकीर्णन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –
पोगोनेटम में कैप्सूल का स्फुटन तथा बीजाणुओं का प्रकीर्णन
(Dehiscence of Capsule and Dispersal of Spores in Pogonatum)
बीजाणुओं का प्रकीर्णन (dispersal) पेरीस्टोम दाँतों की सहायता से होता है। शुष्क वातावरण में कॉल्यूमेला (columella) तथा ऑपरकुलम (operculum) का भाग सूखने लगता है जिस कारण एन्यूलस (annulus) फट जाता है तथा ऑपरकुलम एक ढक्कन के सामान अलग हो जाता है। पेरीस्टोम दाँत आर्द्रताग्राही (hygroscopic) होते हैं, शुष्क वातावरण में ऊपर उठ जाते हैं तथा नमी होने पर नीचे आ जाते हैं। इनकी इस प्रक्रिया से बीजाणुओं को कैप्सूल से बाहर निकलने में मदद मिलती है। शुष्क वातावरण में बाहरी पेरीस्टोम दाँत अपना पानी छोड़ देते हैं तथा सिकुड़ जाते हैं जिससे इनकी लम्बाई अन्दर वाले पेरीस्टोम दाँतों से कम हो जाती है तथा वे बाहर की तरफ मुड़ जाते हैं। इस कारण बाहरी पेरीस्टोम दाँतों के मध्य झिरी (slit) चौड़ी हो जाती है तथा कैप्सूल को झटका लगने (jerky movements) से बीजाणु बाहर निकलने लगते हैं। भीतरी पेरीस्टोम दाँत कैप्सूल के मुख पर चलनी (sieve) के समान कार्य करते हैं, जिससे एक समय में कुछ ही बीजाणु बाहर निकलते हैं।
प्रश्न 27 – लाइकेनों का औषधि में महत्त्व लिखिए।
उत्तर –
औषधि में लाइकेनों का महत्त्व
(Importance of Lichens in Medicines)
लाइकेन में लाइकेनिन (lichenin) नामक रसायन पाया जाता है जो विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयुक्त होता है। औषधि के रूप में लाइकेन के प्रयोग निम्नलिखित हैं –
(i) पेल्टिजेरा कैमोमा (Peltigera camoma) लाइकेन का प्रयोग हाइड्रोफोबिया (hydrophobia) के उपचार में किया जाता है।
(ii) लोबेरिया पल्मोनेरिया (Lobaria pulmonaria) नामक लाइकेन का प्रयोग फेफड़े के रोगों के उपचार में किया जाता है।
(iii) एवर्निया फरफ्यूरेसिया (Evernia furfuracia) का उपयोग कफ निवारक औषधि बनाने में किया जाता है। –
(iv) जैन्थोरिया पेरिटिना (Xanthoria parietina) का प्रयोग पीलिया के उपचार हेतु औषधि बनाने में होता है।
(v) असनिया (Usnea) तथा क्लैडोनिया (Cladonia) नामक लाइकेनों से प्राप्त असनिक अम्ल (usnic acid) एक विस्तृत क्षेत्र वाला (broad spectrum) एण्टीबायोटिक है। इसका उपयोग जलन एवं घावों के उपचार हेतु मरहम बनाने में किया जाता है। (vi) पार्मेलिया (Parmelia) लाइकेन का उपयोग मिर्गी रोग (epilepsy) के उपचार हेतु औषधि बनाने में किया जाता है।
प्रश्न 28 – एक्टोकार्पस के जीवन–चक्र का रेखांकित चित्र बनाइए।
उत्तर –
एक्टोकार्पस का जीवन–चक्र
(Life Cycle of Actocarpus)
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