bsc 1st year protozoa euglena monocystis and paramecium short question answer notes

BSc Zoology Protozoa Euglena Monocystis And Paramecium Notes

 

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Protozoa Euglena Monocystis And Paramecium Notes


जन्तु विज्ञान

BSc 1st Year (Lower Non-Chordata)

UNIT-I

Protozoa:                       Euglena, Monocystis and Paramecium

UNIT-II

Porifera:                       Sycon

UNIT-III

Coelenteratai             :                       Obelia and Aurelia

Ctenophora:                        Salient features

UNIT-IV

Platyhelminthes:                       Fasciolà (Liver fluke) and Taenia (tapeworm)

Nemathelminthes      :                     Ancylostoma (hookworm)

Unit I


प्रश्न 1 – ‘यूग्लीनॉयड गतिका संक्षेप में वर्णन कीजिए। 

Describe in short of Euglenoid movement’.

उत्तर यूग्लीनाभ गति (Euglenoid movement)- यूग्लीना के तनुत्वक् (pellicle) में पर्याप्त लचीलापन होता है जिसके कारण यह क्रमाकुंचन (peristalsis) कर सकने में समर्थ होता है। क्रमाकुंचन क्रिया तनुत्वक् में उभारों तथा खाँचों के रूप में उपस्थित संकुचनशील रचनाओं, जिन्हें मायोनीम (myoneme) कहते हैं, के द्वारा सम्पन्न होती है। क्रमाकुंचन क्रिया के द्वारा यह तली पर कृमि के समान परिसर्पण (wriggling) या छटपटाने की गतियाँ (writhing movements) करता है।

Protozoa Euglena Monocystis And Paramecium Notes
Protozoa Euglena Monocystis And Paramecium Notes

प्रत्येक क्रमाकुंचन लहर के अन्तर्गत यूग्लीना का शरीर आगे से पीछे की ओर क्रमश: छोटा एवं चौड़ा होता जाता है। सामान्यतः प्रोटोजोआ संघ के जन्तुओं एवं यूग्लीना में इस प्रकार की गति पायी जाती है, इस गति को यूग्लीनाभ गति (Euglenoid movement) कहते हैं।

प्रश्न 2 स्पष्ट कीजिए कि यूग्लीना एक पौधा नहीं वरन् जन्तु है।

Clarify that Euglena is not a plant but an animal.

अथवा यूग्लीना का अध्ययन जन्तु विज्ञान में क्यों किया जाता है?

Why Euglena is studied in Zoology.

उत्तरअग्रलिखित कारणों के आधार पर कहा जा सकता है कि यूग्लीना पोध का अपेक्षा जन्तु अधिक है।

(1) यूग्लीना में प्लाज्मा कला के चारों ओर कोशिकाभित्ति नहीं होती।

(2) इसमें सेन्ट्रीओल होते हैं जो ब्लीफैरोप्लास्ट या काइनेटोसोम का निर्माण करते हैं।

(3) इसमें भोजन का संचय पैरामाइलोन के रूप में होता है जो पादप स्टार्च नहीं है।

(4) इसमें पराकशाभी पिण्ड (paraflagellar body) जो संवेदी या प्रकाशग्राही अंगक है, पाया जाता है।

(5) यह जन्तु की भाँति गति करता है।

(6) यह जन्तु के समान उद्दीपनों को ग्रहण करता है।

(7) इसमें पोषण प्राणिसमपोषी (Holozoic) प्रकार का होता है।

(8) इसमें अन्तःकोशिकीय पाचन (Intracellular digestion) पाया जाता है।

उपर्युक्त कारणों की वजह से यूग्लीना पौधा नहीं वरन् जन्तु है और इसी कारण यूग्लीना का अध्ययन जन्तु विज्ञान में किया जाता है।

प्रश्न 3 – यूग्लीना में परासरणनियमन तथा उत्सर्जन कैसे होता है? 

How osmoregulation and excretion take place in Euglena ?

उत्तर                       –   यूग्लीना में परासरणनियमन एवं उत्सर्जन

                      (Osmoregulation and Excretion in Euglena) 

परासरण क्रिया अन्त:परासरण द्वारा अन्दर प्रवेश करने वाले जल की अतिरिक्त मात्रा को बाहर त्यागने की क्रिया, शरीर के अगले भाग में स्थित संकुचनशील उपकरण द्वारा होती है।

यूग्लीना की तनुत्वक् (pellicle) जल के लिए पारगम्य होती है इसीलिए कोशिकाद्रव्य की सान्द्रता जल से अधिक होने पर यूग्लीना के शरीर में अन्त:परासरण द्वारा जल निरन्तर प्रवेश करता रहता है।

यूग्लीना विरिडिस के संकुचनशील उपकरण में एक बड़ी रिक्तिका के चारों · ओर अनेक छोटी-छोटी सहायक रिक्तिकाएँ होती हैं। कोशिकाद्रव्य जल की अतिरिक्त मात्रा को इन छोटी-छोटी रिक्तिकाओं में स्रावित करता रहता है और छोटी रिक्तिकाएँ अपने अन्दर एकत्रित हुए जल को बड़ी रिक्तिका में उड़ेलती रहती हैं। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया बड़ी संकुचनशील

Protozoa Euglena Monocystis And Paramecium Notes
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रिक्तिका के अनुशिथिलन (diastole) अर्थात् आयतन में वृद्धि और प्रकुंचन (systole) आयतन में कमी होने से होती है। अनुशिथिलंन होने पर संकुचनशील रिक्तिका जल से भर जाती है और प्रकुंचन होने पर यह अपने अन्दर ‘भरे जल को आशय में उड़ेलकर खाली हो जाती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि संकुचनशील रिक्तिका की आशय से लगी पाीय भित्ति अस्थायी होती है और प्रकुंचन प्रावस्था में फट जाती है जिससे संकुचनशील रिक्तिका आशय की गुहिका में फट जाती है और इसका जल आशय में निकल जाता है।

अमोनिया अपचयन क्रिया का एक नाइट्रोजनी उत्सर्जी उत्पाद है। इसे शरीर की सामान्य सतह से विसरण द्वारा बाहर निकाला जाता है। उत्सर्जी पदार्थ भी संकुचनशील रिक्तिका द्वारा आशय में निकाले जा सकते हैं। संकुचनशील तन्त्र के चारों ओर का सघन कोशिकाद्रव्य परासरण नियन्त्रण तथा उत्सर्जन दोनों कार्य करता है। यह सघन एण्डोप्लाज्म रिक्तिका के अवकाश में जल और उत्सर्जी उत्पादों का स्राव करता है।

प्रश्न 4 – पैरामीशियम की ट्राइकोसिस्ट का वर्णन कीजिए। 

Describe the structure of trichocyst of Paramecium. 

उत्तर              –       

पैरामीशियम की ट्राइकोसिस्ट (Trichocyst of Paramecium) 

ये पैरामीशियम की एक्टोप्लाज्म में छड़ के समान अंगक हैं। ये एक्टोप्लाज्म में आधारी काय (basal bodies) के साथ एकान्तरित रूप में पाए जाते हैं और शरीर की सतह के साथ समकोण बनाते हैं। इनका परिमाण लगभग 4u होता है।

प्रत्येक ट्राइकोसिस्ट में एक लम्बा शाफ्ट (shaft) और एक नुकीला शिखर (tip) होता है जो स्पाइक (spike) या बार्ब (barb) कहलाता है और एक कैप द्वारा ढका रहता है। इसके शाफ्ट की रचना ट्राइकोनिन प्रोटीन से होती है। इसके रेशे परस्पर घने होकर एक अनुप्रस्थ, धारीदार जालक की रचना करते हैं।

कार्य (Function)-जब पैरामीशियम जीवाणु को खाता है तो ट्राइकोसिस्ट विसर्जित हो जाती

हैं और प्राणी को आधार तल पर दृढ़ता से रोके रखती हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार ये रक्षा के अंगक हैं। यान्त्रिक, रासायनिक या विद्युत उद्दीपन के द्वारा इनका विसर्जन हो जाता है।

ट्राइकोसिस्ट का विसर्जन कुछ मिली-सेकण्डों में ही हो जाता है। जब एक ट्राइकोसिस्ट पूर्णरूपेण

विसर्जित होती है तो इसका शाफ्ट एक लम्बी  अनुप्रस्थ धारीदार छड़ बन जाता है और इसकी लम्बाई लगभग 40 u हो जाती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि विसर्जन की प्रक्रिया ट्राइकोनिन रेशों के जालक के फैलने से होती है।

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प्रश्न 5 – पुनरुद्भवन पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। 

Write short note on Regeneration.

उत्तरप्रारंम्भिक अकशेरूकी संघों के जन्तओं में अपने कटे भागों को पुनः विकसित करने की अद्भुत क्षमता होती है, जिसे पुनरुद्भवन कहते हैं। एपीथीलियमी ऊतकों में यह क्षमता अत्यधिक विकसित, जबकि पेशीय ऊतकों तथा तन्त्रिकाओं ऊतकों में कम विकसित होती है। संघ पोरीफेरा में उपस्थित स्पंज यह क्षमता दर्शाती हैं।

यदि एक स्पंज को विभिन्न भागों में विभाजित कर दें तो प्रत्येक कटा भाग, जिसमें अमीबीय कोशिकाएँ (amoebocytes) तथा कोएनोसाइट (choanocytes) उपस्थित हों, पुन: पूर्ण स्पंज को विकसित कर लेता है। यह प्रक्रिया अनुकूल परिस्थिति में होती है।

प्रश्न 6 – पैरामीशियम में अवपक्ष्माभी तन्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 

Write a short note on infraciliary system in Paramecium. 

उत्तर                      –  पैरामीशियम में अवपक्ष्माभी तन्त्र

                      (Infraciliary System in Paramecium) 

तनुत्वक् की कूपिकाओं के ठीक नीचे अवपक्ष्माभी तन्त्र पाया जाता है, जो आधारी कायों (basal bodies) एवं काइनेटोडेस्मेटा (kinetodesmata) का बना होता हैं।

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  1. आधारी काय (Basal bodies)-प्रत्येक पक्ष्माभ का आधार एक नली के समान रचना होती है, जिसे आधारी काय या काइनेटोसोम (kinetosome) कहते हैं। पक्ष्माभ के परिधीय तन्तुओं के आधारी सिरों के स्थूल हो जाने के कारण आधारी काय का निर्माण होता है। इसमें मध्यवर्ती तन्तु नहीं होते। आधारी काय की भित्ति में उपतन्तुओं की बनी त्रिक ऐंठन (triplets) होती हैं। आधारी काय अपने आप में पुनरुत्पादी इकाइयाँ और नये पक्ष्माभों की प्रजनक (progenitors) होती हैं। प्रत्येक आधारी काय एक तारक-केन्द्र (anti उसकी व्युत्पत्ति होती है।
  2. काइनेटोडेस्मेटा (Kinetodesmata)-पक्ष्माभों की आधारी कायों से और एक्टोप्लाज्म में स्थित विशिष्ट पट्टीदार काइनेटोडेस्मी तन्तुकों (kinetodane fibrils) का एक तन्त्र होता है। प्रत्येक पक्ष्माभ के आधारी काय या काइनेटोसोम से केवल एक तन्तक या काइनेटोडेस्मोस निकलकर आगे बढ़ता हुआ धीरे-धीरे शुण्डाकार होता जाता है तथा पिछले आधारी काय के तन्तुकों से सम्बद्ध हो जाता है। इस प्रकार एक-दूसरे को ढकते हुए अनुदैर्घ्य तन्तुकों के एक बण्डल की रचना हो जाती है। इस बण्डल को काइनेटोडेस्मा (kinetodesma) कहते हैं, क्योंकि प्रत्येक तन्तुक पाँच आधारी कायों से आगे नहीं पहुँचता। अतः प्रत्येक काइनेटोडेस्मा में तन्तुकों की संख्या स्थायी रूप से पाँच रहती है। एक अनुदैर्घ्य पंक्ति की सब आधारी काय और उनके काइनेटोडेस्मेटा सम्मिलित रूप से एक इकाई बनाते हैं जिसे काइनेटी (kinety) कहते हैं।

कार्य (Function)—इन तन्तुकों का सम्बन्ध पक्ष्माभी स्पंदन और गति से होता है।

प्रश्न 7 – पैरामीशियम के मुख उपकरण अथवा मुख यन्त्र का वर्णन कीजिए। 

Explain the oral (feeding) apparatus of Paramecium. 

उत्तर    

पैरामीशियम का मुख उपकरण अथवा मुख यन्त्र (Oral apparatus of Paramecium) 

पैरामीशियम में मुख खाँच अधर तल पर पीछे की ओर एक नली की भाँति मार्ग बनाती है जिसे प्रघाण (vestibule) कहते   हैं। यह एक चौड़ी नालाकार मुख गुहिका (buccal cavity) में खुलता है। मुख गुहिका आगे बढ़कर एक छोटे-छिद्र द्वारा सँकरी ग्रसिका (gullet) या कोशिका ग्रसनी (cytopharynx) में खुल जाती है। इसी छिद्र को कोशिका मुख (cytostome) कहते हैं। कोशिका ग्रसनी अपने निचले सिरे पर एक खाद्य धानी की रचना करती है।

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मुख गुहिका (buccal cavity) की दायीं सीमा पर पक्ष्माभों की एक पंक्ति होती है जिसे एण्डोरल कला (endoral membrane) कहते हैं। बायीं ओर…. पक्ष्माभों की चार पंक्तियों के तीन समूह होते हैं जो मुख गुहिका के पिछले सिरे तक फैले होत हैं।

इन्हें अधर पेनिकुलस (ventral peniculus), पृष्ठ पेनिकुलस (dorsal peniculus) और क्वेड्लस (quadrulus) कहते हैं। ये पक्ष्माभी पंक्तियाँ महीन झिल्ली (membranelles) बनाती हैं।

एण्डोरल कला से एक पशुक तनुत्वक् (ribbed pellicle) कोशिका मुख तक फैली रहती है। नेमाडेस्मल तन्तु (nemadesmal fibres) पशुक तनुत्वक् के पृष्ठ में फैल जाते हैं तथा कोशिका ग्रसनी के चारों ओर पश्चमुख तन्तुओं (postoral fibres) की भाँति फैल जाते हैं। सामान्य कायिक पक्ष्माभों की पंक्तियाँ प्रघाण भित्ति को आस्तरित करती हैं।

प्रश्न 8 – पैरामीशियम के गुरु केन्द्रक और लघु केन्द्रक में अन्तर बताइए।

Differentiate between Macronucleus and Micronucleus in Paramecium. 

उत्तर                             –  गुरु व लघु केन्द्रक में अन्तर 

           (Differences between Macronucleus and Micronucleus) 

क्रo

संo

गुरू केन्द्रक

(Macronucleus)

लघु केन्द्रक

(Micronucleus)

1. गुरु केन्द्रक बड़ा लगभग व्रक्क के समान होता है। लघु केन्द्रक छोटा व गोलाकार होता है और यह गुरु केन्द्रक के गर्त में स्थित रहता है।
2. केन्द्रक कला अस्पष्ट होता हैं। इसके चारों और केन्द्रक कला होती हैं।
3. गुणसूत्र द्धिगुणित नहीं होता है। गुणसुत्रों की संख्या द्धिगुणित होती है।
4. यह जनन क्रियओं का नियन्त्रण न करके उपापचयी क्रियाओं का नियन्त्रण करता है। जनन प्रक्रिया में इसकी व्युत्पत्ति लधु केन्द्रक से होती है। यह जीव की जनन क्रियओं पर नियन्त्रण करता है।

 

प्रश्न 9 –  पैरामीशियम में द्विगुणन विभाजन को विस्तार से बताइए। 

 Describe binary fission in Paramecium. 

उत्तर

पैरामीशियम में द्विगुणन विभाजन (Binary fission in Paramecium) 

पैरामीशियम में द्विगुणन विभाजन (अलैंगिक विभाजन) अनुकूल दशाओं में होता है। इसमें पैरामीशियम भोजन लेना बन्द कर देता है और इसकी मुख खाँच और मुखगुहीय संरचनाएँ अदृश्य होने लगती हैं।

इसी के साथ इसके लघु केन्द्रक में सूत्री विभाजन (mitosis) का आरम्भ होता है। केन्द्रक कला विलुप्त नहीं होती है। लघु केन्द्रक के परिमाण में कुछ वृद्धि होती है। गुणसूत्र प्रकट होने लगते हैं। (गुणसूत्रों की संख्या 36 से 150 तक होती है।) प्रत्येक गुणसूत्र लम्बाई में विभाजित होकर दो अर्द्ध गुणसूत्र बनाता है और दोनों सन्तति लघु केन्द्रक एक-दूसरे से पृथक् हो जाते हैं। इसी के साथ गुरु केन्द्रक लम्बाई में बढ़कर तथा मध्य से

संकीर्णित होकर असूत्री विभाजन द्वारा विभाजित हो जाता है। अब दो मुख खाँच बनने लगती हैं जिनमें से एक अगले भाग में और दूसरी पिछले भाग में होती है। दोनों संकुचनशील रिक्तिकाओं में से एक, अग्र अर्द्ध-भाग में तथा दूसरी पश्च अर्द्ध-भाग में ज्यों-की-त्यों बनी रहती है। इस दो प्रकार विभाजित हो रहे जनक प्राणी के प्रत्येक अर्द्ध-भाग में एक-एक संकुचनशील रिक्तिका प्रक पहुँच जाती है।

बाद में दोनों भागों में एक-एक नई संकुचनशील रिक्तिका बन जाती है। दो नई जात मुख संरचनाएँ भी प्रगट होने लगती हैं। इसी समय शरीर के मध्य के निकट एक संकीर्ण खाँच. बनने लगती है जिसके द्वारा दो सन्तति पैरामीशिया बन जाते हैं। ये दोनों वृद्धि करके पूर्ण आकार प्राप्त कर लेते हैं और फिर द्विखण्डन द्वारा विभाजित होते हैं।

पैरामीशियम काँडेटम द्विखण्डन द्वारा एक दिन में 2 या 3 बार विभाजित होता है। ये सभी आनुवंशिक रूप से समान होते हैं। सन्तति पैरामीशिया में से जो जनक पैरामीशियम के अग्रभाग से निर्मित होता है प्रोटर (proter) तथा पश्चभाग से बनने वाला सन्तति आपिस्थे (opisthe) कहलाता है।

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प्रश्न 10 – पैरामीशियम में एण्डोमिक्सिस पर टिप्पणी लिखिए। 

Write a note on Endomixis in Paramecium.

उत्तर पैरामीशियम में सर्वप्रथम इस घटना का उल्लेख 1914 में वुड्रफ | (Woodruff) तथा अर्डमैन (Erdmann) ने किया था। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में एक ही प्राणी के अन्दर सम्पूर्ण आन्तरिक केन्द्रकी पुनर्गठन होता है।

सर्वप्रथम पै० ऑरीलिया (P. aurelia) में गुरुकेन्द्रक (macronucleus) विलुप्त हो जाता है तथा लघुकेन्द्रकों (micronucleus) में दो विभाजनों के फलस्वरूप 8 सन्तति केन्द्रकों का निर्माण होता है जिसमें से 6 विलुप्त हो जाते हैं। इस अवस्था में पैरामीशियम भी विभाजित होता है और प्रत्येक सन्तति में एक-एक लघुकेन्द्रक पहुँच जाता है। प्रत्येक लघुकेन्द्रक में पुन: दो विभाजन होते हैं

तथा 4 नये केन्द्रकों का निर्माण होता है जिसमें से दो केन्द्रक आकार में वृद्धि करके गुरुकेन्द्रक में बदल जाते हैं तथा दो लघुकेन्द्रक कहलाते हैं। पैरामीशियम में पुन: द्विखण्डन होता है तथा दो सन्तति का पुनः निर्माण होता है, साथ-ही-साथ लघुकेन्द्रक में पुनः विभाजन हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक सन्तति पैरामीशियम में एक गुरुकेन्द्रक तथा दो लघुकेन्द्रकों का निर्माण हो जाता है।

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प्रश्न 11 – पैरामीशियम में ऑटोगैमी पर टिप्पणी कीजिए। 

Describe in short autogamy in Paramecium.

उत्तरडब्ल्यू०एफ० डिलर (W.F. Diller) ने 1936 में पैरामीशियम ऑरीलिया (Paramecium aurelia) में संयुग्मन के समान केन्द्रकी पुनर्गठन का वर्णन किया, परन्तु यह केवल एक प्राणी में होता है। उन्होंने इस प्रक्रिया को स्वयुग्मन (autogamy) या स्वयं संयुग्मन (self-conjugation) नाम दिया, क्योंकि इस प्रक्रिया में एक ही जीव के 2 लघुकेन्द्रक या युग्मक केन्द्रक परस्पर संयुक्त होकर एक युग्मनज केन्द्रक का निर्माण करते हैं।

पैरामीशियम में होने वाली इस प्रक्रिया में दोनों लघुकेन्द्रकों में अर्द्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप 8 अगुणित सन्तति केन्द्रकों का निर्माण होता है जिसमें से 7 विलुप्त हो जाते हैं। शेष | अण्डार एक केन्द्रक में सूत्री विभाजन होता है फलस्वरूप 2 युग्मक केन्द्रकों का निर्माण होता है। इसी समय गुरुकेन्द्रक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर कोशिकाद्रव्य में अवशोषित हो जाता है।

दोनों युग्मक केन्द्रक एक-दूसरे के साथ संलयित होकर एक युग्मनज केन्द्रक का निर्माण करते हैं। इस युग्मनज केन्द्रक (Synkaryon) में 2 बार विभाजन होता है तथा 4 केन्द्रक बन जाते हैं। इसमें से दो गुरुकेन्द्रक (macronucleus) तथा दो लघुकेन्द्रक (micronucleus) होते हैं, तत्पश्चात् । कोशिकाकाय तथा लघुकेन्द्रकों में एक साथ विभाजन होता है एवं 2 सन्तति प्राणी बन जाते हैं। |

प्रश्न 12 – पैरामीशियम में रोमकों की गति का वर्णन कीजिए। 

 Describe the ciliary movement in Paramecium.

उत्तर – पैरामीशियम में रोमकों की गति (Ciliary movement in Paramecium)-पैरामीशियम में पक्ष्माभ अथवा रोमकों (cilia) द्वारा प्रचलन की क्रिया होती है। प्रचलन अथवा गति करते समय प्रत्येक रोमक लोलक की भाँति दोलन करता है। प्रत्येक दोलन दो स्ट्रोक में पूर्ण होता है। इनमें प्रथम स्ट्रोक प्रभावी तथा द्वितीय स्ट्रोक मन्द पुन: प्राप्ति स्ट्रोक होता है।

शरीर के समस्त पक्ष्माभ समक्षणिक (simultaneously) एवं मुक्त रूप से गति न करके प्रगामी रूप से एक विशिष्ट तरंग के समान गति करते हैं, जिसे अनुक्रमिक लय (metachronal rhythm) कहते हैं।

एक अनुदैर्घ्य पंक्ति में स्थित पक्ष्माभ एक विशिष्ट तरंग में स्पन्दन करते हैं, जो अगले सिरे से आरम्भ होकर पीछे की ओर बढ़ती जाती है परिणामस्वरूप अनुदैर्घ्य पंक्ति में स्थित प्रत्येक पक्ष्माभ अपने पीछे के पक्ष्माभ से सदैव पहले गति करता है।

एक अनुप्रस्थ पंक्ति के सब पक्ष्माभ समक्षणिक रूप से स्पन्दन करते हैं। पैरामीशियम के आगे की ओर गति करते समय अनुक्रमिक तरंगें उसके पिछले सिरे से अगले सिरे की ओर चलती हैं।


 

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