BSc 1st Year Botany Electron Microscopy And Serology Notes

BSc 1st Year Botany Electron Microscopy And Serology Notes

 

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खण्ड

 

प्रश्न 1 – पादप विषाणु की पहचान की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी तथा सीरम विज्ञान आदि द्वारा पादप विषाणु की हचान

(Identification of Plant Virus by the help of Electron Microscopy and Serology)

रोग जनक की पहचान के लिए इलेक्ट्रॉन सक्ष्मदर्शी का सहारा लेते हैं क्योंकि सामान्य सक्ष्मदर्शी से विषाणु को नहीं देखा जा सकता है। पौधे में RNA विषाणु (पादप विषाणु) की पहचान इलेक्ट्रोफोरेसिस अथवा सीरम विज्ञान परीक्षणों जैसे ELISA द्वारा भी करते हैं। कुछ पौधों में न्यूक्लिक अम्ल संकरण की विधि का भी प्रयोग किया जाता है। इस विधि के लिए PCR (Polymerase Chain Reaction) मशीन का भी उपयोग करते हैं।

सर्वप्रथम संचरण विधि की जानकारी से पता चलता है कि रोग जनक का संचरण यान्त्रिक विधि द्वारा या किसी कीट या अन्य किसी प्रकार से हो रहा है। यान्त्रिक रूप से संचरित होने वाले विषाणुओं में कुछ विशेषताएँ मिलती हैं; जैसे

  1. परपोषी के बाहर इसकी दीर्घ आयु (long age)।
  2. ताप निष्क्रिय बिन्दु (Thermal inactive point)
  3. तनुकरण अन्त बिन्दु (Dilution end point)

लक्षण अध्ययन के पश्चात् इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से विषाणु की प्रारम्भिक पहचान के लिए उनका संरोपण (inoculation) करते हैं।

कुछ रोग जनकों का सूचीकरण (indexing) किया जाता है। ये सूचक विशिष्ट विषाणु . के प्रति अति संवेदनशील होते हैं।

सीरम विज्ञान (Serology) 

यह रोग जनक की पहचान की प्रारम्भिक तकनीक है। जनक के अन्त में विकसित की गई महत्त्वपर्ण तकनीक है एलिसा (Elisa) अथवा एन्जाइम लिन्कड इम्यूनोएब्सॉरबेन्ट जैसे इसके अनेकों रूपान्तरण उपलब्ध हैं।

प्रत्यक्ष एलिसा में पॉलीस्टाइलीन माइक्रोटाइटर प्लेट (PMP) के 0 – 4 मिली आकार के कूप क्रमश: इसी क्रम में ऊँचाई तक भरे व खाली किए जाते हैं

(a) विषाणु प्रतिरक्षी

(b) संक्रमित पादप रस (विषाणु) ..

(c) विषाणु का वह प्रतिरक्षी जिससे एक विकर संयोजित हो।

(d) विकर का अवस्तर जिससे विकर क्रिया कर रंग में परिवर्तन कर सके।

इस अवस्था को कूप से खाली नहीं करते हैं और 30-40 मिनट में इस कूप में होने वाले को कैलोरीमीटी द्वारा निरीक्षित किया जाता है। रंग की उपस्थिति से विषाण की सान्द्रता व उपस्थिति का पता लगाते है।

इसके अतिरिक्त विषाणु का पता लगाने के लिए अन्य सीरम तकनीक हैं

(a) आइसेम (ISEM, Immuno Sorbent Electron Microscopy)

इसमें किसी मिश्रण में अथवा अल्प सान्द्रता में उपस्थित विषाणु का पता इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी हेतु तैयार ग्रिड (grid) को पहले लक्ष्य विषाणु के प्रतिरक्षी आवरण से लगाते हैं। विषाणु प्रदर्श को प्रतिरक्षी के आवरण वाली ग्रिड पर रखते हैं, प्रतिरक्षी इस विषाणु को जकड़कर ग्रिड पर सान्द्रित कर देती है जिससे यह इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से दृश्य हो जाता है तथा प्रतिरक्षी को प्रतिक्रिया से पहचाना जा सकता है।

(b) इम्यूनोफ्लोरिसेन्ट अभिरंजक तकनीक (Immunoflorescent Staining Technique)-पहले पत्ती के भाग को फिक्स कर विषाणु प्रतिरक्षी से उपचारित करते हैं। प्रतिरक्षी को फ्लोरीजिन आइसोबायोसाइनेट (FITC) से चिह्नित कर लेते हैं जो पराबैंगनी | प्रकाश में प्रतिदीप्त होता है। विषाणु संक्रमित कोशिकाओं को UV प्रकाश में देखने से ये प्रतिदीप्त होगी और अन्य काली दिखाई देंगी।

 


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