Sexual Reproduction In Riccia BSc Botany Notes
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प्रश्न 2 – रिक्सिया में लैंगिक जनन का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर –
रिक्सिया में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Riccia) Notes
इनमें पुंधानी(antheridium) नर व स्त्रीधानी (archegonium) मादा जननांग होते हैं। दोनों प्रकार के जननांग थैलस की अपाक्ष सतह पर, मध्य खाँच में परिवर्द्धित होकर अग्राभिसारी क्रम (acropetal succession) में अन्तःस्थापित रहते हैं अर्थात् नवजात जननांग शीर्ष की ओर तथा परिपक्व शीर्ष से दूर होते हैं। रिक्सिया की कुछ जातियाँ उभयलिंगाश्रयी (monoecious होती है। जैसे रि० रोबस्टा (R. robusta), परन्तु अन्य जातियाँ एकलिंगाश्रयी (dioecious) होती है। जैसे रि० हिमालयेन्सिस (R. himalyansis)।
पुंधानी (Antheridium)—प्रत्येक पुंधानी एक पुंधानी गुहिका (antherit chamber) में स्थित रहती है। पुंधानी में एक छोटा बहुकोशिकीय वृन्त होता है जो पंधानी को गुहिका के तल से जोड़ता है। पुंधानी की काय (body) गोलाकार या सिरे पर नुकीली होती है इसके काय में अनेक पुंजनक कोशिकाएँ (androgonial cells) होती हैं जो एककोशिकीय बन्ध्य परत के जैकेट से आवरित रहती हैं। पुंजनक कोशिकाओं के विभाजन के फलस्वरूप एन्ड्रोसाइट्स (androcytes) या शुक्राणु मातृ कोशिकाओं (spore mother cells) का. निर्माण होता है। प्रत्येक मातृ कोशिका रूपान्तरित होकर नर युग्मक का निर्माण करती है, इन्हें पुंमणु (antherozoid or spermatozoid) कहते हैं। घुमणु एक केन्द्रकयुक्त तथा द्विकशाभिक रचना होती है।
परिपक्वता पर पुंधानी की क्रॉस भित्तियाँ (cross walls) अपघटित होकर श्लेष्मी पदार्थों में परिवर्तित हो जाती हैं और ये पुंमणु इस श्लेष्मी पदार्थ में तैरते रहते हैं। श्लेष्मी पदार्थ आर्द्रताग्राही (hygroscopic) होता है। जैसे ही पुंधानी गुहिका के छिद्र (ऊपर की तरफ खुला रहता है) से पुंधानी को नमी या जल प्राप्त होता है वैसे ही पुंधानी के अन्दर स्थित श्लेष्मी पदार्थ नमी को अवशोषित कर अन्दर का आयतन बढ़ा देते हैं। बढ़े हुए आयतन के कारण जैकेट कोशिकाओं पर दबाव उत्पन्न होने से वे ऊपर से फट जाती हैं और पुंमण मुक्त होकर कशाभिकाओं की सहायता से जल में तैरते हुए मादा जननांगों तक पहुँच जाते हैं।
स्त्रीधानी (Archegonium)—ये रचनाएँ भी पुंधानियों की भाँति मध्य अपाक्षी खाँच में परिवर्द्धित होती हैं तथा ये भी स्त्रीधानी गुहिका में (archegonial chamber) में स्थित होती हैं। स्त्रीधानी गुहिका भी ऊपर की ओर खुलती है। स्त्रीधानी की रचना फ्लास्कनुमा होती है जो एक वृन्त से आधार पर चिपकी रहती है। इनके फूले हुए आधारी भाग को अण्डधा (venter) व ऊपर के ऊपर के सँकरी नलिका समान भाग को ग्रीवा (neck) कहते हैं। ग्रीवा क्षेत्र छह उदग्र पंक्तियों से बना जैकेट होता है। अण्डधा भाग में जैकेट कोशिकाएँ दो पर्त में रहती हैं। अण्डधा गहिका (venter cavity) में अण्ड (egg) या अण्डगोल (oosphere) होता है तथा इसके ऊपर अण्डधा नाल कोशिका (venter canal cell) होती है। ग्रीवा गुहिका (neck cavity) में चार ग्रीवा नाल कोशिकाएँ (neck canal cells) एक पंक्ति में व्यवस्थित रहती हैं। ग्रीवा के अन्तिम सिरे पर चार आवरण कोशिकाएँ (cover cells) ग्रीवा के मुख को ढके रहती हैं। स्त्रीधानी वस्तुतः पूरी गुहिका के अन्दर नहीं रहती वरन् इसकी ग्रीवा (neck) का कुछ भाग गुहिका से बाहर थैलस के ऊपरी सतह पर निकला रहता है।
निषेचन (Fertilization)—यह क्रिया जल की उपस्थिति में ही होती है। स्त्रीधानी के परिपक्व होते ही ग्रीवा नाल कोशिकाएँ व अण्डधा नाल कोशिका विघटित होकर श्लेष्मी पदार्थ में रूपान्तरित हो जाती है। जैसे ही स्त्रीधानी जल के सम्पर्क में आती है तो यह श्लेष्मी पदार्थ जल अवशोषित कर फूल जाते हैं। अत: अन्दर का आयतन बढ़ जाने से आवरण कोशिकाओं पर दबाव उत्पन्न होता है। इससे आवरण कोशिकाएँ खुल जाती हैं तथा कुछ श्लेष्म की मात्रा भी बाहर आ जाती है। इसके श्लेष्म में घुलनशील प्रोटीन्स तथा पोटैशियम के अकार्बनिक लवण पास है जो आस-पास में तैरते हुए पुंमणुओं (antherozoids) को आकर्षित कर स्त्रीधानी में प्रवेश करवाते है। यह क्रिया रसायन अनुचलनी (chemotactic) है। अब एक पुमणु के संलयित होने से द्विगणित या निषेचित अण्ड रचना बन जाती है। शीघ्र ही इस पर एक ” भित्ति स्त्रावित हो जाने से अब यह रचना निषिक्ताण्ड (oospore) में रूपान्तरित हो जाती है।
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