BSc Botany Various Type Of Life Cycles In Algae Notes
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प्रश्न 4 – शैवालों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीवन–चक्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर –
शैवालों में विभिन्न प्रकार के जीवन–चक्र
(Various Type of Life Cycles in Algae)
सामान्यतः शैवाल का मुख्य सूकाय युग्मकोद्भिद् होता है। जीवन-चक्र में इस युग्मकोद्भिद् से अगुणित (haploid) युग्मक (gamete) बनते हैं। युग्मकों के संलयन से युग्मनज (zygote) बनता है जो द्विगुणित (diploid) होता है। इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन से फिर युग्मकोद्भिद् बनता है। इस प्रकार जीवन-चक्र में अगुणित व द्विगुणित अवस्थाएँ एकान्तरित होती हैं। इसे पीढ़ी एकान्तरण भी कहते हैं। सभी शैवालों में स्थायी पीढ़ी एकान्तरण नहीं मिलता है। सभी नील-हरित शैवालों में पीढ़ी एकान्तरण नहीं मिलता है, इनमें केवल अलैंगिक जनन होता है। कुछ क्लोरोफाइसी जैसे क्लैमाइडोमोनास व स्फीरेला (Sphaerella) आदि में लैंगिक जनन तो मिलता है, परन्तु बीजाणुउद्भिद् पीढ़ी नहीं मिलती है। बहुत-से शैवालों में बीजाणुउद्भिद् पीढ़ी केवल जाइगोट से प्रदर्शित होती है। पीढ़ियों के एकान्तरण के अनुरूप शैवालों में विभिन्न प्रकार के जीवन-चक्र मिलते हैं।
शैवालों में मुख्यत: छह प्रकार का जीवन-चक्र मिलता है –
(1) हेप्लॉन्टिक जीवन-चक्र (Haplontic life cycle), (2) डिप्लॉन्टिक जीवन-चक्र (Diplontic life cycle), (3) हेप्लो-डिप्लॉन्टिक जीवन-चक्र (Haplo-diplontic life cycle), (4) डिप्लो-हेप्लॉन्टिक जीवन-चक्र (Diplo-haplontic life cycle), (5) हेप्लो बायोन्टिक जीवन-चक्र अथवा हेप्लो-हेप्लो-डिप्लॉन्टिक जीवन-चक्र (Haplobiontic life cycle or Haplo-haplo-diplontic life cycle), (6) डिप्लो-बायोन्टिक जीवन-चक्र अथवा हेप्लो-डिप्लो-डिप्लॉन्टिक जीवन-चक्र (Diplo-biontic life cycle or Haplo-diplo-diplontic life cycle)।
- हेप्लॉन्टिक जीवन–चक्र (Haplontic life cycle)-इस प्रकार के जीवन-चक्र की मुख्य अवस्था युग्मकोद्भिद् होती है। इस युग्मकोद्भिद् से युग्मक बनते हैं। दो अगुणित युग्मकों के संलयन से एक युग्मनज (zygote) बनता है। केवल युग्मनज ही द्विगुणित (diploid) होता है। तुरन्त ही यह युग्मनज अर्द्धसूत्री विभाजन से 4 बीजाणु बनाता है जो अगुणित होते हैं। इन बीजाणुओं के अंकुरण से नया युग्मकोद्भिद् बनता है। जब मुख्य पादप समयुग्मक (isogametes) बनता है, तब दोनों प्रकार के युग्मक + स्ट्रेन के एक ही पादप से बनते हैं। परन्तु दूसरी स्थिति में + व – युग्मकोद्भिद् अलग-अलग भी होते हैं जहाँ + युग्मकोद्भिद् से + युग्मक तथा – युग्मकोद्भिद् से – युग्मक बनते हैं; जैसे—यूलोथ्रिक्स एवं स्पाइरोगाइरा आदि।
- डिप्लॉन्टिक जीवन–चक्र (Diplontic life cycle)-इस प्रकार के जीवन – चक्र में मुख्य पादप बीजाणुउद्भिद् होता है। इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन होने से युग्मक (gamete) बनते हैं। ये युग्मक अगुणित (haploid) होते हैं। युग्मक बनने के कुछ समय पश्चात् इनमें संलयन होता है और युग्मनज (zygote) बनता है। यह युग्मनज द्विगुणित (diploid) होता है। इस युग्मनज में सूत्री विभाजन से माइटोस्पोर बनते हैं जिनके अंकुरण से नया पादप (द्विगुणित) बनता है। इस प्रकार इन पादपों में अगुणित अवस्था केवल युग्मकों तक सीमित रहती है। मुख्य अवस्था द्विगुणित होती है; जैसे-फ्यूकस व सारगासम आदि में।
- हेप्लो–डिप्लॉन्टिक जीवन–चक्र (Haplo-diplontic life cycle)-इस प्रकार के जीवन-चक्र में दो स्पष्ट अवस्थाएँ (diplophasic) मिलती हैं। इसमें दो भिन्न पादप युग्मकोद्भिद् व बीजाणुउद्भिद् विकसित होते हैं। मुख्य पादप युग्मकोद्भिद् (gametophyte) होता है। इसमें सूत्री विभाजन द्वारा युग्मक बनते हैं। युग्मकों में संलयन से युग्मनज बनता है। यह द्विगुणित (diploid) होता है। इस युग्मनज के अंकुरण से बीजाणुउद्भिद् (sporophyte) बनता है। यह पीढ़ी द्विगुणित होती है। बीजाणुउदभिद में बीजाणुधानी बनती है जिसमें अर्द्धसूत्री विभाजन से फिर मियोस्पोर (haploid) बनते हैं। इनके अंकरण से युग्मकोदभिद् बनता है। इस प्रकार के जीवन-चक्र में पीढ़ी एकान्तरण स्पष्ट होता है; जैसे- अल्वा (Ulva), एक्टोकार्पस (Ectocarpus) आदि। यहाँ क्योकि दोनो पादप युग्मकोद्भिद् व बीजाणुउद्भिद् देखने में समान है; अतः पादपों की यह अवस्था समजात (isomorphic) अवस्था कहलाती है। डिक्ट्योटा (Dictyota) में युग्मकोद्भिद् चपटा व फीतेनुमा होता है जिस पर एन्थ्रीडिया व ऊगोनिया मिलते हैं, इनमें नर व मादा युग्मक बनते हैं। इनके संलयन से ऊस्पोर बनता है। ऊस्पोर द्विगुणित होता है। ऊस्पोर के अंकुरण से अलैगिक बीजाणुउद्भिद् बनता है, जहाँ टेट्रास्पोरेन्जिया बनते हैं तथा इनके अर्द्धसूत्री विभाजन से टेट्रास्योर बनते हैं, जो अगुणित होते हैं। इनके अंकुरण से फिर पादप (अगुणित) बनता है।
- डिप्लो–हेप्लॉन्टिक जीवन–चक्र (Diplo-haplontic life cycle)-इसमें मुख्य पादप बीजाणुउद्भिद् होता है, जहाँ पर बीजाणुधानी में अर्द्धसूत्री विभाजन से मियोस्पोर (अगुणित) बनते हैं। मियोस्पोर के अंकुरण से युग्मकोद्भिद् बनता है। यह अगुणित होता है। युग्मकोद्भिद् पर जनन अंग बनते हैं जहाँ सूत्री विभाजन से नर व मादा युग्मकों का निर्माण होता है। इन युग्मकों के संलयन से युग्मनज बनता है। युग्मनज द्विगुणित होता है। इसमें सत्री विभाजन से माइटोस्पोर बनते हैं। सीधे अंकुरण अथवा माइटोस्पोर के अंकुरण से फिर बीजाणुउद्भिद् (2X) बनता है। इस प्रकार के जीवन-चक्र में बीजाणुउद्भिद् बड़ा तथा युग्मकोद्भिद छोटा होता है। यह विषमजात (heteromorphic) होता है। उदाहरण के लिए लेमिनेरिया में बीजाणुउद्भिद् चपटा, फीतेनुमा होता है, जबकि युग्मकोद्भिद् छोटा होता है।
- हेप्लो–बायोन्टिक जीवन–चक्र (Haplo-biontic life cycle)-लाल शैवालों के जीवन में तीन अवस्थाएँ (trimorphic) मिलती हैं। बेट्रेकोस्पर्मम (Batrachospermum) के जीवन-चक्र में तीन अगुणित अवस्थाएँ मिलती हैं। द्धिगुणित केवल युग्मनज होता है। इसे हेप्लो–हेप्लो–हेप्लॉन्टिक (haplo-haplo-haplontic) जीवन-चक्र भी कहते हैं। इसमें मुख्य पादप युग्मकोद्भिद् (gametophyte) होता है। यहाँ अण्ड व स्पर्म बनते हैं। इनके संयुग्मन से जाइगोट (2X) बनता है। जाइगोट में अर्द्धसूत्री विभाजन के पश्चात् कार्पोस्पोरोफाइट बनता है। इसलिए कार्पोस्पोरोफाइट भी अगुणित होता है। इस कार्पोस्पोरोफाइट से कार्पोस्पोर बनता है। कार्पोस्पोर (X) के अंकुरण से कैन्ट्रेन्सिया अवस्था (chantransia stage) बनती है। इस अवस्था में मोनोस्पोरेन्जियम (monosporangium) बनता है जिसमें केवल एक बीजाणु (monospore) बनता है। यह भी अगुणित है। इस मोनोस्पोर के अंकुरण से मुख्य युग्मकोद्भिद् बनता है। इस प्रकार बेटेकोस्पर्मम के जीवन-चक्र की तीनों अवस्थाएँ अगुणित हैं।
- डिप्लो–बायोन्टिक जीवन–चक्र (Diplo-biontic life cycle) पॉलीसाइफोनिया (Polysiphonia) के जीवन-चक्र में तीन मुख्य पादप अवस्थाओं में से दो द्विगुणित तथा एक अगुणित होती है। इसे हेप्लो–डिप्लो–डिप्लॉन्टिक (haplo-diplo -diplontic) प्रकार भी कहा जाता है। यहाँ मुख्य पादप युग्मकोद्भिद् (gametophyte) है। इस पर एन्थ्रीडिया व कार्पोगोनियम बनते हैं। कार्पोगोनियम में अण्ड व एन्थ्रीडिया में स्पर्मेटियम बनता है। ये दोनों ही अगुणित होते हैं। इनके संलयन के पश्चात् द्विगुणित गोनिमोब्लास्ट फिलामेन्ट (gonimoblast filament) बनते हैं, जो सिस्टोकार्प (cystocarp) बनाते है। इनमें कार्पोस्पोर बनता है। यह द्विगुणित होता है। कार्पोस्पोर के अंकुरण से टेट्रास्पोरोफाइट (tetrasporophyte) बनता है। यह पादप भी द्विगुणित होगा। इसमें टेट्रास्पोरेन्जियम (tetrasporangium) बनता है, जिसमें अर्द्धसत्री विभाजन से चार टेट्रास्पार (अगुणित)बनते हैं। ये टेट्रास्पोर बड़े होते हैं, इनके अंकुरण से फिर युग्मकोद्भिद् बनता है। इस प्रकार पॉलीसाइफोनिया के जीवन-चक्र में दो द्विगुणित (टेटास्पोरोफाइटा व कार्पोस्पोरोफाइटा) तथा एक अगुणित (युग्मकोद्भिद्) अवस्था मिलती है। इसमें लैंगिक जनन सर्वथा जटिल होता है। इस प्रकार के जीवन-चक्र को डिप्लोबायोन्टिक प्रकार का जीवन–चक्र कहते हैं।
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