Meaning and Definition of Measure of Central Tendency or Average

Meaning and Definition of Measure of Central Tendency or Average

 

केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप अथवा माध्य का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Measure of Central Tendency or Average) 

एक समंकमाला की केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप का आशय उक्त समंकमाला के उस मूल्य से है जिसके आस-पास अन्य समंकों के केन्द्रित होने की प्रवृत्ति पायी जाती है। यह मूल्य समंक-श्रेणी के लगभग केन्द्र में स्थित होता है और समंक-श्रेणी की महत्वपूर्ण विशेषताओं को स्पष्ट करता है। केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप को माध्य (average) द्वारा प्राप्त किया जाता है । मुख्य परिभाषायें निम्नलिखित हैं—

 

प्रो० क्रॉक्सटन एवं काउडन के अनुसार, “माध्य, समंकों के विस्तार के अन्तर्गत स्थित एक ऐसा मूल्य है जिसका प्रयोग श्रेणी के सभी मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिये किया जाता है। चूंकि माध्य समंकों के विस्तार के अन्तर्गत ही होता है, इसलिये इसे केन्द्रीय मूल्य का माप भी कहा जाता है।

 

सिम्पसन एवं काफ्का के अनुसार, “केन्द्रीय प्रवृत्ति का माप एक ऐसा प्रतिरूपी मूल्य है जिसके चारों ओर अन्य संख्यायें केन्द्रित होती हैं|

 

निष्कर्ष-उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि कोई ऐसी अकेली संख्या, जो समंक श्रेणी के सभी पद-मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती हो, माध्य कहलाती है। माध्य में वे सभी विशेषतायें होती हैं जो

सम्बन्धित समंक श्रेणी के अन्य पद-मूल्यों में पायी जाती हैं । इसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जैसे केन्द्रीय । प्रवृत्ति का माप, सांख्यिकीय माध्य, प्रतिनिधि मूल्य, इत्यादि । यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि माध्य को उसी इकाई में व्यक्त किया जाता है जिस इकाई में समंक व्यक्त किये गये हों।

 

 

केन्द्रीय प्रवत्ति की विभिन्न मापें

(Various Measures of Central Tendency) 

अथवा (Or)

सांख्यकीय माध्यों के प्रकार 

(Types of Statistical Averages)

 

केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप के रूप में अनेक माध्यों का प्रयोग किया जाता है जिनमें से मुख्यतः निम्नलिखित हैं

(अ) स्थिति-सम्बन्धी माध्य (Positional Averages):

(1) मध्यका (Median),

(2) बहुलक या भूयिष्ठक (Mode),

(ब) गणितीय माध्य (Mathematical Averages):

(1) अंकगणितीय माध्य या समान्तर माध्य (Arithmetic Average or Mean),

(2) गुणोत्तर माध्य (Geometric Mean),

(3) हरात्मक माध्य (Harmonic Mean),

(4) द्विघातीय माध्य (Quadratic Mean),

(स) व्यापारिक माध्य (Business Averages):

(1) चल माध्य (Moving Average),

(2) प्रगामी माध्य (Progressive Average),

(3) संग्रथित माध्य (Composite Average)

 

स्थिति-सम्बन्धी माध्य श्रेणी में स्थित ऐसे मूल्य हैं, जिन्हें श्रेणी के अन्तर्गत उनकी पुनरावृत्ति अथवा बीच में स्थित होने के आधार पर परिकलित किया जाता है।

गणितीय माध्य, अंकगणितीय अथवा बीजगणितीय विधियों के आधार पर परिकलित किये जाते हैं । यह आवश्यक नहीं है कि इनका मूल्य श्रेणी में स्थित हो।

 

ऐसे माध्य जिनकी गणना व्यापार के कुशल संचालन तथा पूर्वानुमान के लिये की जाती है, उन माध्यों को व्यापारिक माध्य कहा जाता है।

 

भूयिष्ठक या बहलक 

(Mode)

हम प्रायः प्रतिदिन सुनते हैं कि ‘एक भारतीय की औसत लम्बाई 156 सेमी. हैं, ‘भारत का असित आदमी ईमानदार है, ‘औसत आदमी के पैर में 7 नम्बर का जूता आता है’। इन कथनों में जिस माध्य की और संकेत है वह बहुलक या भूयिष्ठक है।

सरल शब्दों में, भूयिष्ठक या बहुलक श्रेणी का वह मूल्य होता है, जिसकी आवृत्ति सर्वाधिक होती हैं दूसरे शब्दों में,वह मूल्य जो श्रेणी में सबसे अधिक बार आता है, भूयिष्ठक कहलाता है। यह श्रेणी का सबसे अधिक लोकप्रिय मूल्य होता है तथा इसके चारों ओर मूल्यों का जमाव भी अधिक होता है।

बहुलक या भूयिष्ठक अंग्रेजी के Mode शब्द का हिन्दी अनुवाद है। ‘Mode’ शब्द फ्रेंच भाषा ‘La Mode’ से बना है, जिसका अर्थ है फैशन या रिवाज। जिस वस्तु का फैशन होता है, अधिकतर व्यक्ति उस वस्तु का उपभोग करते हैं। अतः सांख्यिकी में भूयिष्ठक उस पद का मूल्य या आकार है जिसकी आवृत्ति समंक श्रेणी में सबसे अधिक हो। इस बात को अधिक स्पष्ट शब्दो में हम यों कह सकते हैं कि समंकमाला में सबसे अधिक बार आने वाले मूल्य को भूयिष्ठक कहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि हम यह कहें कि किसी गाँव में कुल 1,000 व्यक्तियों में से उनकी आयु का भूयिष्ठक 17 वर्ष है तो इसका अर्थ यह हुआ कि उस गाँव में सबसे अधिक संख्या 17 वर्ष के व्यक्तियों की है । इसे ‘Z’ द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। –

 

परिभाषायें (Definitions) 

 

क्रॉक्सटन एवं काउडेन (Croxton and Cowden) के अनुसार, “किसी वितरण का बहुलक वह मूल्य है,जिसके चारों ओर पद सर्वाधिक केन्द्रित हों । वह मूल्यों की श्रेणी में सर्वाधिक प्रतिरूप (Typical) माना जा सकता है।“

केनी और कीपिंग (kenney and Keeping) के अनुसार, “सांख्यिकी में बहुलक उस मान को कहते हैं जो समंकमाला में सबसे अधिक बार आता है।“

जिजेक (Zizek) के मतानुसार, “भूयिष्ठेक वह मूल्य है जो पदों की श्रेणी में सर्वाधिक बार आता हो तथा जिसके चारों ओर अन्य पदों का वितरण सर्वाधिक घना हो|”

ए० एम० टटल (A. M Tuttle) के अनुसार, “भूयिष्ठक वह मूल्य है जिसके निकटतम पड़ोस में अधिकतम आवृतियों का घनत्व होता है|”

निष्कर्ष (Conclusion)- स्पष्ट है कि बहुलक उस बिन्दु को बताता है जहाँ सबसे अधिक पद-मूल्य संकेन्द्रित होते हैं।

 

बहुलक के लाभ 

(Merits of Mode) 

 

  • गणना सरल
  • चरम मल्यों का न्यनतम प्रभाव
  • श्रेणी का महत्वपूर्ण माप
  • गुणात्मक तथ्यों में प्रयोग
  • बिन्दुरेखीय निर्धारण
  • सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व

 

बहुलक के दोष (Demerits of Mode) 

 

  • अनिश्चित एवं अस्पष्ट
  • चरम मूल्यों की उपेक्षा
  • बीजगणितीय विवेचन सम्भव नहीं
  • अनुपयुक्त माप
  • कुल मूल्य ज्ञात न होना

 

 

व्यापार तथा व्यवसाय में भूयिष्ठक का अधिक उपयोग होता है। फैशन निर्माताओं का पूरा व्यवसाय ही भूयिष्ठक पर आधारित है। जूते का आकार, सिले सिलाये कपड़ों की डिजाइन, कालर का आकार, पेंट की मोहरी की चौड़ाई (Bottom), सैण्डिल की ऊँचाई आदि का उत्पादन इसी के आधार पर किया जाता है।

 

भूयिष्ठक ज्ञात करने की रीति 

(Method of Calculating the Mode)

 

विभिन्न प्रकार की समंक-श्रेणियों में बहुलक ज्ञात करने की प्रक्रिया निम्न प्रकार है

 

व्यक्तिगत श्रेणी (Individual Series)

 

इस श्रेणी में भूयिष्ठक ज्ञात करने की निम्न दो रीतियाँ प्रयोग की जाती हैं-

(अ) निरीक्षण द्वारा, (ब) खण्डित श्रेणी में बदलकर।

 

  • निरीक्षण द्वारा इसमें केवल निरीक्षण (Inspection) के द्वारा यह निश्चित करना होता है कि कौन-सा मूल्य सबसे अधिक बार आ रहा है । जो मूल्य सबसे अधिक बार आए वही भूयिष्ठक होगा। परन्तु यदि प्रत्येक पद-मूल्य समान बार आता है तो इस प्रकार के वितरण में भूयिष्ठक नहीं होता है। यदि दो या दो से अधिक पद-मूल्य अन्य पद-मूल्यों की अपेक्षा अधिक, परन्तु समान बार आते हैं तो इस प्रकार के वितरण में एक से अधिक भूयिष्ठक होते हैं, ऐसी सारणी को बहुभूयिष्ठक वाली सारणी (Multi-modal Series) कहते हैं । परन्तु यह ध्यान रखें कि इस रीति का प्रयोग तभी करना चाहिये जबकि पदो की संख्या बहुत कम हो उदाहरण 1 देखिये।

 

Illustration 1. 

 

निम्नलिखित आँकड़ों का बहुलक ज्ञात कीजिये

Find the mode of follwoing data-

7 8 9 9 7 6 9 4 10 3 5 9 9

 

Solution 

चूँकि पदों की संख्या अधिक नहीं है, अत: बहलक निर्धारण के लिये निरीक्षण विधि ही उपयुक्त रहेगी। निरीक्षण से स्पष्ट है कि उपर्युक्त संख्याओं में पद-मूल्य 9 सबसे अधिक बार आया है, इसलिये 9 ही भूयिष्ठक

कहलायेगा।

(ब) व्यक्तिगत श्रेणी को विच्छिन्न श्रेणी में बदलकर-जब व्यक्तिगत श्रेणी के अनेक पद दो या दो से अधिक बार आते हैं तो व्यक्तिगत श्रेणी को विच्छिन्न श्रेणी में बदलकर भूयिष्ठक ज्ञात किया जाता है । पदों को आरोही क्रम में रखकर उनके सामने आवृत्ति लिख दी जाती है। तदुपरान्त निरीक्षण के द्वारा यह ज्ञात करते हैं कि अधिकतम आवृत्ति किस पद की है । सबसे अधिक आवृत्ति वाला पद ही भूयिष्ठक होता है ।

 

विछिन्न श्रेणी  (Discrete Series)

जो इस समंक श्रेणी में बहुलक ज्ञात करने की निम्नलिखित दो रीतियाँ हैं

(अ) निरीक्षण रीति (Inspection Method),

(ब) समूहन रीति (Grouping Method)

 

(अ) निरीक्षण रीति (Inspection Method)-विच्छिन्न श्रेणी में बहुलक निर्धारण के लिये निरीक्षण रीति का प्रयोग निम्न दशाओं में ही उपयुक्त रहता है

(1) जब प्रदत्त आवृत्ति वितरण की आवृत्तियाँ नियमित हों अर्थात् प्रारम्भ में आवृत्तियाँ बढ़ती हुई हों केन्द्र में अधिकतम आवृत्ति हो और उसके बाद घटती हुई आवृत्तियाँ हों।

(2) अधिकतम आवृत्ति केवल एक ही हो।

इस रीति में आवृत्ति वितरण के विभिन्न पद-मूल्यों की आवृत्तियों का निरीक्षण करते हैं एवं जिस पद-मूल्य की आवृत्ति सबसे अधिक होती है उसे ही भूयिष्ठक कहते हैं।

 

(ब) समूहन रीति (Grouping Method)- जब आवृत्ति वितरण की आवृत्तियों में अनियमितता हो तो वहाँ पर भूयिष्ठक के लिये समूहन रीति का ही प्रयोग करना चाहिये। आवृत्तियों को अनियमित तभी माना

 

जाता है जब अधिकतम आवर्ती दो या दो से अधिक स्थानों पर हो समंकमाला के बिल्कुल प्रारम्भ में या बिल्कुल अन्त में हो अथवा जन” निश्चित क्रम न हो अर्थात् आवृत्तियाँ कभी बढ़ती और कभी घटती हई हों।

इस विधि के अन्तर्गत निम्नलिखित दो सारणी बनायी जाती हैं

(क) समूहीकरण सारणी (Grouping Table),

(ख) विश्लेषण सारणी (Analysis Table)।

 

समहीकरण सारणी बनाना-इस सारणी में आवृत्तियों का समूहीकरण किया जाता है। सुमहीकरण करने के लिये चर-मूल्यों (x) के अतिरिक्त आवृत्तियों के समूहीकरण हेतु छ: (6) खाने । हैं जिनमें निम्न प्रकार आवृत्तियो का समूहीकरण (Grouping) किया जाता है

(1) पहला स्तम्भ (खाना) (First Column)- इसमें प्रश्न में दी हुई आवृत्तियाँ ज्यों-की-त्यों लिन ली जाती हैं।

(2) द्वितीय स्तम्भ (खाना) (Second Column)- सबसे पहले प्रथम खाने में दी हुई पहली दो आवृत्तियों का जोड़, फिर इसके आगे वाली दो आवृत्तियों का जोड़ और इसी प्रकार अन्त तक दो आवत्तियों का जोड़ लिखा जाता है। अर्थात् दो-दो आवृत्तियों के जोड़े।

(3) तीसरा स्तम्भ (खाना) (Third Column)-प्रथम खाने में दी हुई आवृत्तियो में से प्रथम आवृत्ति को छोड़कर आगे वाली दो आवृत्तियों का जोड़, फिर और आगे वाली दो आवृत्तियों का जोड़ और इस प्रकार आगे भी जोड़ किया जाता है। अर्थात् प्रथम आवृत्ति को छोड़कर दो-दो के जोड़े।

(4) चौथा स्तम्भ (खाना) (Fourth Column)-प्रथम खाने में दी हुई आवृत्तियों में से पहली तीन आवृत्तियों का जोड़, फिर आगे वाली तीन आवृत्तियों का जोड़ और इसी प्रकार आगे भी तीन-तीन आवृत्तियों का जोड़ किया जायेगा। अर्थात् तीन-तीन के जोड़े।

(5) पाँचवाँ स्तम्भ (खाना) (Fifth Column)-प्रथम खाने में दी हुई आवृत्तियों में से पहली आवृत्ति को छोड़कर अगली तीन आवृत्तियों को जोड़, फिर अगली तीन आवृत्तियों का जोड़ और इसी प्रकार आगे भी किया जायेगा । अर्थात प्रथम आवृत्ति को छोड़कर तीन-तीन के जोड़े।

(6) छठा स्तम्भ (खाना) (Sixth Column)-प्रथम खाने में दी हुई आवृत्तियों में से प्रथम दो आवृत्तियों को छोड़कर अगली तीन आवृत्तियों का जोड़ और इसी प्रकार आगे तीन-तीन आवृत्तियों का जोड़ किया जायेगा। अर्थात् पहली दो आवृत्तियों को छोड़कर तीन-तीन के जोड़े।।

उपर्युक्त छह खानों में समूहीकरण की संख्यायें लिखने के बाद प्रत्येक खाने की सबसे बड़ी संख्या के नीचे लाइन खींचिये या मोटी करिये अथवा अन्य किसी प्रकार ऐसा करिये कि वह संख्या स्पष्ट रूप से प्रकट हो ।

(ख) विश्लेषण सारणी (Analysis Table) बनाना-यह सारणी उन अधिकतम आवृत्तियों (Maximum Frequencies) के आधार पर बनायी जाती है जिन्हें उपर्युक्त समूहीकरण वाली सारणी में रेखांकित (underlined) किया गया है या मोटा लिखा गया है । इस सारणी का नमूना आगे दिया है

 

 

 

 

 

स्तम्भ (Column No.) अधिकतम आवृत्ति वाले पद

(Size of items containing maximum frequency)

 

1
2
3
4
5
6
पदों की संख्या (No. of items)

 

यदि विश्लेषण सारणी अलग से न बनाना चाहें तो समूहीकरण सारणी के ही सातवें खाने में अधिकतम आवृत्ति वाले पदों के सामने चिह्न लगाते चलें और आठवें खाने में इन चिह्नों को जोड़ लें। इस प्रकार जिस की आवृत्ति सर्वाधिक हो, वही भूयिष्ठक होगा।

(ग) भूयिष्ठक का ज्ञानउपर्युक्त विश्लेषण सारणी के आधार पर वह मूल्य या पद निकाला जाता है जिसकी आवृत्ति सबसे अधिक होती है। यही पद या मूल्य भूयिष्ठक होता है।) ।

 

अखण्डित या सतत श्रेणी में बहलक मूल्य का निर्धारण Determination of Modal Value in Continuous Series)

 

जैसा कि हम जानते ही हैं कि इस श्रेणी में वर्ग एवं उनकी आवृत्तियाँ दी रहती हैं। इस श्रेणी में की गणना करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है

(1) इस श्रेणी में बहुलक की गणना के लिये अपवर्जी (Exclusive) श्रेणी का होना आवश्यक । अत: यदि प्रश्न में समावेशी (Inclusive) श्रेणी में दी हुई है तो उसे सर्वप्रथम अपवर्जी श्रेणी में बदल चाहिये । उदाहरण 8 देखिये। 

(2) यदि प्रश्न में मध्य-मूल्य, मध्य-बिन्दु अथवा केन्द्रीय मान दिये हैं तो सर्वप्रथम उनसे वर्गान्तर जान कर लेने चाहिये । उदाहरण 9 देखिये।

(3) बहुलक मूल्य का निर्धारण सदैव साधारण आवृत्ति वितरण से ही निकाला जाता है। अतः यदि प्रश्न संचयी आवृत्ति समंकमाला के रूप में दिया हुआ है तो सर्वप्रथम उसे साधारण आवृत्ति वितरण में बदल लेना चाहिये । उदाहरण 10, 11 एवं 12 देखिये।

(4) यदि प्रश्न में विभिन्न वर्गान्तरों के वर्ग-विस्तार समान नहीं हैं तो उन्हें समान बना लेना चाहिये।। परन्तु यदि उन्हें समान वर्ग-विस्तार में परिवर्तित करना सम्भव न हो तो प्रश्न को उसके मूल रूप में ही हल का लेना चाहिये।

 

उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखने के बाद इस समंक श्रेणी में बहुलक ज्ञात करने के लिये निम्नलिखित दो कार्य करने पड़ते हैं

(1) भूयिष्ठक वर्ग का पता लगाना।

(2) भूयिष्ठक मूल्य ज्ञात करना।

 

भूयिष्ठक वर्ग का पता लगाना (Determination of Modal Class-Interval) 

 

इस समंक श्रेणी में बहुलक मूल्य निर्धारण के लिये सर्वप्रथम यह तय करना होता है कि बहुलक का मल्य कौन-से वर्ग में स्थित है। बहुलक वर्ग का पता लगाने के लिये खण्डित श्रेणी की भाँति ही निम्न दा रीतियों का प्रयोग किया जा सकता है

(अ) निरीक्षण रीति,

(ब) समूहन रीति।।

 

यदि आवत्तियाँ नियमित हों तो निरीक्षण रीति द्वारा ही बहुलक वर्ग निश्चित करना उपयुक्त रहता है। जिस वर्ग की सबसे अधिक आवृत्ति हो उसे ही भूयिष्ठक वर्ग (Modal Class) कहते हैं।

परन्तु ऐसी श्रेणी में जहाँ आवृत्तियाँ नियमित रूप से न घटती-बढ़ती हों. अधिक आवत्ति वाले वर्ग एक | से अधिक हों या आवृत्तियों के वितरण से अनुमान हो रहा हो कि सबसे अधिक आवृत्ति वाला वर्ग भूयि वर्ग नहीं होगा.तो इन दशाओं में भूयिष्ठक वर्ग को निश्चित करना सरल नहीं है और ऐसी दशा में विच्छि श्रेणी की भाँति समूहीकरण द्वारा ही भूयिष्ठक वर्ग को निश्चित करेंगे।

 

भूयिष्ठक सम्बन्धी सूत्र (Formula Relating to Mode)- भूयिष्ठक वर्ग निश्चित हो जाने पर. कार्य नहीं हो जाता क्योंकि कोई वर्ग माध्य नहीं हो सकता। माध्य एक निश्चित और अकेली संख्या होती है

ठक सम्बन्धी सकाई वर्ग माध्य नहीं हो

 

भूयिष्ठक वर्ग से केवल यह प्रकट होता है कि माध्य इसी वर्ग की निम्नतम और उच्चतम सीमा के बीच में है। बहुलक वर्ग में से बहुलक मूल्य निश्चित करने के लिये निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Meaning and Definition of Measure of Central Tendency or Average
Meaning and Definition of Measure of Central Tendency or Average

सूत्र में प्रयुक्त संकेताक्षर

 

Z = भूयिष्ठक (Mode)

L1 = भूयिष्ठक वर्ग की निम्न सीमा (lower limit of the modal class)

L2 = भूयिष्ठक वर्ग की उच्च सीमा (upper limit of the modal class).

F1 = भूयिष्ठक वर्ग की आवृत्ति (frequency of the modal class) .. … ..

F0 = भूयिष्ठक वर्ग से पूर्व वाले वर्ग की आवृत्ति (frequency of the premodal class)….;

F2 = भूयिष्ठक वर्ग के आगे वाले वर्ग की आवृत्ति (frequency of the class succeeding the modal class) serien

 

वैकल्पिक सत्र (Alternative formula): 

यदि भूयिष्ठक वर्ग से पहले वर्ग की आवृत्ति भूयिष्ठक वर्ग की आवृत्ति से अधिक हो तो निम्नलिखित । वैकल्पिक सूत्र का प्रयोग करते हैं—

Meaning and Definition of Measure of Central Tendency or Average
Meaning and Definition of Measure of Central Tendency or Average

 

 


Follow me at social plate Form

You Can got Video Lecture : Click

Classification and tabulation Notes Statics

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top